शनिवार, 24 जनवरी 2015

दवाईयों पर नाम तो कम से कम हिंदी में लिखा होना ही चाहिए....

इस देश में हिंदी के बिना गुज़ारा नहीं हो सकता...
जब मैंने हिंदी में ब्लॉग लिखना शुरू किया तो मुझे पहले दो तीन साल तो लोगों से ये सब बातें सुननी पड़ीं कि क्या करोगे हिंदी में लिख कर, कौन पढ़ेगा...लेिकन मुझे यही लगता था कि हिंदी में सेहत संबंधी विषयों पर विश्वसनीय सामग्री नेट पर नहीं है ..जिस तरह से कोई भी इंगलिश भाषा का जानने वाला गूगल कर के तुरंत जानकारी हासिल कर लेता है

लेकिन हिंदी भाषा के जानकार के लिए यह सब आसान नहीं है, आज से सात-आठ साल पहले तो हालात और भी खराब थे...समस्या यही है कि बहुत ही कम चिकित्सक नेट पर अपने अनुभव शेयर करते हैं, और हिंदी की तो बात ही क्या करें!...विश्वस्नीय कुछ खास मिलता ही नहीं है नेट पर।

फिर मैं दो तीन साल बीच में हिंदी के साथ साथ इंगलिश में भी एक हेल्थ ब्लॉग लिखता रहा.....शायद चार सौ के करीब लेख भी हो गये.....लेकिन पता नहीं इंगलिश ब्लॉग में मन बिल्कुल भी नहीं लगा।

दरअसल हमें कईं साल यही पता लगाने में लग जाते हैं कि हम करना क्या चाहते हैं, हमारा वह काम करने का मकसद है क्या, तो मुझे पिछले कुछ सालों से अच्छे से समझ आ गया कि मैं बस हिंदी भाषा का सहारा लेकर मैडीकल साईंस से संबंधित कंटेंट नेट पर क्रिएट करना चाहता हूं......बस.......बहुत साल लग गये इस बात का पता लगने में।

कोई महान् कारण नहीं मेरा हिंदी में लिखने का...कोइ फलफसा नहीं है बिल्कुल....बस, जो कारण था और है वह आपसे मैंने ऊपर शेयर किया है।

इस देश की यह बदकिस्मती है कि यहां पर हिंदी लागू करवाने के लिए कानून बनाने पड़ते हैं और हिंदी में काम करने वालों को अभी भी आज़ादी के ६५ साल बाद भी इनाम देकर पुचकारना पड़ता है।

जैसा पहले भी बहुत बार होता है आज भी मुझे गुस्सा आ गया......जब एक ८० साल के ग्रामीण बुज़ुर्ग ने मेरे सामने एक प्लास्टिक की पन्नी से इन दवाईयों का ढेर लगा दिया कि ज़रा यह बताएं तो कौन कौन सी कितनी बार खानी है। मुझे गुस्सा बुज़ुर्ग पर तो क्या आना था, न ही किसी और पर आया.....लेकिन व्यवस्था पर ही खीझ हुई कि क्या यार, इस आदमी के लिए अंग्रेजी में नाम लिखे इन दवाई के पत्तों का क्या मतलब होगा?....काला अक्षर भैंस बराबर।

अब कोई इन्हें क्या बताए कि कौन सी कब खानी है, कितनी बार खानी है ....आप इन दवा के पत्तों को देखें तो सब कुछ एक जैसा ही नहीं लगता क्या!...... इन की पैकिंग देखिए, इन टेबलेट्स का कलर देखिए.....इन में इन की उच्च रक्त चाप की दवाईयां भी थीं, दर्द और इंफेक्शन की दवाईयां हैं.......ये अलग अलग डाक्टरों ने लिखी हैं।

इस बुजुर्ग को ही यह दिक्कत नहीं है, अधिकतर लोगों को इस तरह की दिक्कत होती है और कुछ हद तक इन सब दवाईयों का नाम केवल इंगलिश में लिखा होना इस का कारण है।

मैं नहीं कहता कि इंगलिश में नाम लिखा होने से वे आधे डाक्टर बन जाएंगे.....नहीं, कुछ नहीं, लेकिन तो कम से कम हो जाएगा कि एक हिंदी पढ़ने वाला जोड़-तोड़ कर यह तो पढ़ने की कोशिश कर लेगा कि वह जिस दवाई को खा रहा है उस का नाम क्या है।

वैसे तो मरीज़ों की समस्याएं इस देश में यहीं पर ही खत्म नहीं होती.....मानते हैं कि अनपढ़ता और सेमी-लिटरेसी भी इस के लिए जिम्मेदार हैं......लेिकन फिर भी जो काम जिस स्तर पर हो सकता है, वह तो होना ही चाहिए...पिछले वर्षों में हम ने कितना सुना कि अब दवाईयों की स्ट्रिप पर दवाई का नाम इंगलिश में भी लिखा होगा........लेकिन असल में क्या हो रहा है, क्या हम लोग जानते नहीं हैं?

चलिए मान भी लें कि किसी बुज़ुर्ग ने कैसे भी कोई जुगाड़ से दवाईयों की पहचान कर ली, और वह ठीक तरह से दवाई ले रहे हैं, लेकिन अगले महीने जब वह किसी सरकारी दवाखाने में जाते हैं तो दवाईयों के रैपर बदले हुए मिलते हैं..दवाई वही लेकिन कंपनी कोई दूसरी......अब इस में तो सरकारी ढंाचा कुछ नहीं कर सकता, लेकिन कम पढ़े लिखे बंदे की इतनी सिरदर्दी हो जाती है ...मैं ये सब बातें अकसर अनुभव की हैं।

दवाईयों का हिसाब किताब रखने के लिए कुछ लोग जुगाड़ भी कर लेते हैं......पहले हमारे पास कईं ऐसे मरीज आती थीं जो बताया करती थीं कि वे एक दिन में ली जाने वाली दवाईयों की सभी खुराकों (doses) को अपने दुपट्टे के तीन-चार कोनों में अलग अलग बांध कर गांठ बांध लेती हैं।

जितनी भी बातें लपेटता रहूं .........जितनी भी लछ्छेदार बातें कोई भी कर ले, लेकिन बदकिस्मती है कि इस दिशा में बहुत कम काम हुआ है.....बहुत काम ध्यान दिया जा रहा है......we are literally taking the things for granted --   कि हम ने इंगलिश में लिख दिया, फार्मासिस्ट ने इंगलिश में नाम लिखे पत्ते थमा दिए..........बाकी तो मरीज़ कर ही लेगा, हमारी छुट्टी और उस की जिम्मेदारी शुरू। नहीं, ऐसा नहीं है बिल्कुल, इस काम में मरीज़ द्वारा खूब गल्तियां होती रही हैं, हो रही हैं और बिल्कुल होती रहेंगी.. लेकिन ये गल्तियां अकसर सामने आती ही नहीं है..

जमा हुई दवाईयों की भूल-भुलैया...(इस लिंक पर क्लिक करिए)

अब आप सोच रहेंगे कि जब ये गल्तियां होती ही रहनी हैं तो मैंने इतना लंबा यह सब क्यों लिख दिया...........सुनिए, मैंने यह सब केवल इसलिए लिखा है ताकि कम से कम पॉलिसी बनाने वालों तक यह बात तो पहुंचे की दवाईयों पर िहंदी में तो नाम लिखा ही होना चाहिए.....इंगलिश में हो और अन्य भारतीय भाषाओं में भी हो, स्वागत है, लेकिन हिंदी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।





अच्छा, जाते जाते आज बसंत पंचमी की आप को बहुत बहुत बधाईयां......आज के दिन भी दवाईयों की इतनी उबाऊ और पकाऊ बातें तो कर लीं, दाल-रोटी के बारे में भी दो बातें सुन लेते हैं....

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