चुनाव में जा कर भाग लेने या ना लेने पर लोग बन गये पप्पू, लेकिन यह पढ़ा लिखा नाचीज़ बंदा तो क्रेडिट कार्ड को एटीएम पर इस्तेमाल करने की हिमाकत कर के कैसे बन गया पप्पू---आज अपने चिट्ठाकार बंधुओं से यह साझा करना चाह रहा हूं। इस का उद्देश्य केवल इतना है कि मेरे जैसी दूसरी भी शायद कईं आत्मायें इस हिंदी चिट्ठाकारों के झुंड में न छुपी बैठी हों और उन्हें पप्पू बनने से रोकने के लिये यह सब कुछ बेझिझक होकर लिखने की हिमाकत कर रहा हूं।
इस से पहले की मैं यह आपबीती लिखनी शुरू करूं अंग्रेज़ी की एक मशहूर कहावत का ध्यान आ रहा है ---- Experience is a great teacher ---- it does not give lessons, it gives TUITION !!
हुआ यूं कि कुछ अरसा पहले किसी लेखकों की बैठक में दिल्ली जाना था --- ( एक तो कमबख्त यह शौक बार बार जा कर लेखकों में जा कर घुसने का पता नहीं पिछले दस सालों से क्यों पाल रखा है और इस पर इतना पैसा खराब कर चुका हूं कि कभी इस से संबंधित अपने अनुभव आप को बताने लग गया ना तो इन में छिपा दर्द महसूस कर के आप का तो रूमाल भीग जायेगा ----यह मेरा विश्वास है)।
हां, तो उस लेखकों की वर्कशाप में जाने के लिये उन्होंने फीस ऑन-लाइन मांगी थी -- इसलिये बेटे ( जो कि कंप्यूटर इंजीनियरिंग तो कर रहा है, लेकिन अपने संसार में ज़्यादा खोया रहता है ---- और उस के बारे में वह लाइन याद आ रहा है ---कि वक्त आने पे बता देंगे कि क्या हमारे दिल में है !! ) के साथ बैठ कर एक रात को बहुत माथा-पच्ची करी कि पे-पाल का एकाउंट बन जाये--- लेकिन उस साइट पर खूब धक्के खाने के बाद यही पता चला कि बिना कोई सा भी क्रैडिट कार्ड लिये बिना यह संभव नहीं है।
चूंकि मैं बैंक का एक डैबिट कार्ड कुछ दिन पहले ही गुम कर चुका था , इसलिये नया अप्लाई करना ही था, सोचा कि लगे हाथ क्रैडिट कार्ड के लिये भी आवेदन कर ही दूं। उस बैंक के क्रेडिट कार्ड के लिये इतनी सारी फारमैलिटीज़ थीं कि रह रह कर ध्यान आ रहा था कि छोड़ यार क्या फायदा इस पंगे में पड़ने का। शायद उस पता वैरीफाई करने वाले को मेरी बातचीत इतनी इम्प्रैसिव न लगी कि वह मेरी सैलरी के बारे में मेरे से बार बार पूछ रहा था और पक्का प्रूफ़ भी चाहिये था। इसलिये पहले यह सब कुछ उसी बैंक से कोई फोन से भी पूछ चुका था ---इसलिये मैं इरीटेट तो हुआ ही हुआ था, मैंने उस बंदे से इतना भी कहा कि यार, मुझे नहीं चाहिये, कोई क्रैडिट कार्ड, प्लीज़ मेरे आवेदन को कैंसिल कर दें।
खैर, लोगों के घर घर जा कर बेचने वाले ये लोग कैसे यह बात मान लें ? फ्रैंकली स्पीकिंग उस समय तो मैं इन के प्रश्नों की बौछार से इतना चिढ़ चुका था कि अगर वह मुझे मेरा फार्म वापिस लौटा देता तो मैं इस चक्कर में पड़ता ही ना।
अच्छा, तो पहले उस लेखकों वाली बैठक की भी एक क्लास ले लें ---हां, तो उन दुकानदारों की यह शर्त थी कि आनलाईन अगर वर्कशाप की फीस अदा कर देते हैं तो ठीक है, वरना ऑन-दा-स्पाट पेमेंट डबल ली जायेगी। तो, साहब, मैं भी पहुंच गया उस वर्कशाप में शिरकत करने के लिये --- यही सोच कर कि लिखने का क्या है, यूं ही लिख दिया होगा डराने के लिये --लेकिन मैं वहां पहुंच कर बहुत चौंका कि उन्होंने मेरे से डबल-रेट ही चार्ज किया। इन वर्कशापों में जाकर यही सीखा है कि यह भी दूसरी दुकानों की तरह दुकानदारियां सी ही हो गई हैं। इसलिये इन पर जा जा कर इतना ऊब चुका हूं कि अब इन से तौबा कर ली है।
लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि अपने अनुभव लोगों के साथ साझे नहीं करूंगा ----वह तो ज़रूर करता ही रहूंगा और भविष्य में ( मुझे खुद भी पता नहीं कब !!) यह सब अंधाधुंध बेबाकी से करने की इतनी चाह ज़्यादा चाह रखता हूं जितना मेरा छोटा बेटा बीस रूपये के कुरकुरे के पैकेट की चाह रखता है। ( जितने चटकारे ले कर वह उस के एक एक पीस को खाता है और दाल-रोटी-सब्जी खाते हुये उस के माथे के बल ऐसे लगते हैं जैसे कि ये लाइनें स्थायी ही हैं, मुझे खूब पता है कि आने वाले समय में उस के इन चेहरे की सिलवटों की वजह से क्या परेशानी होने वाली है, लेकिन अपने को तो बस छोटा सा सुकून है कि मैंने उसे किसी भी तरह का जंक-फूड बहुत ही कम बार खरीद कर दिया है---- शायद छःमहीने या एक साल में एक-आधा पैकेट लेकर दे भी दिया तो इस की क्या बात है !!
अच्छा, तो बच्चे के तरह तरह के पैकेट खाने के शौक से ध्यान आया कि इस क्रेडिट कार्ड को एटीएम पर इस्तेमाल मैंने कैसे किया । मैं बेटे के साथ जा रहा था ---क्रेडिट कार्ड आ गया, बाद में उस का पासवर्ड भी आ गया ( जिस जद्दोज़हद से वह आया, वह एक अलग स्टोरी है) ---यह सब दो एक महीने पहले की ही बात है। मैंने कभी इस को इस्तेमाल तो पहले किया नहीं था।
हां, तो बच्चों की तरफ़ से तरह तरह के पंप इस्तेमाल करने शुरू किये गये कि पापा, चलो आज उस फलां फलां रेस्टतां में चलते हैं, वे क्रैडिट कार्ड से पेमैंट लेते हैं। लेकिन उन का यह सुझाव घर में सभी को मंजूर न था क्योंकि आज तक मुझे नहीं याद कि कभी भी हम लोग किसी रेस्टरां में गये हों और फिर आग बबूला हो कर बाहर यह कहते ना बाहर निकले हों कि आगे से स्नैक्स ही ठीक हैं, ऐसा इसलिये है कि ऊपर वाले के आशीर्वाद से हमारे घर का खाना( बिल्कुल आप के घर के खाने की ही तरह !!) विश्व में सर्वोत्तम है ( थोड़ा सा झूठ बोलने के लिये क्षमा-प्रार्थी हूं ---मैं अपने जबरदस्त पसंदीदा ---अमृतसर के केसर के ढाबे को कैसे भूल गया !!) ---बाहर के खाने में तो मुझे वह सब से बढ़िया लगता था, लगता है और शायद लगता रहेगा। वरना, दूसरे जितने भी रेस्टरां वगैरा में जा कर खाया है तो आधे परिवार के सदस्यों की तबीयत तो घर आने तक खराब हो जाती है और आधे लोगों के मिजाज सुबह खराब हुये मिलते हैं कि तौबा, इतनी मिर्ची !!!!!!
हां, तो सोचा कि इस क्रैडिट कार्ड को किसी अन्य जगह पर इस्तेमाल करने से पहले इसे किसी बैंक के एटीएम पर इस्तेमाल कर के देख लूं कि यह चलता भी है कि नहीं। छोटे बेटे के साथ जा रहा था कि उस ने इशारा किया कि पापा, इधर चैक कर लो, ऐसी जगहों पर मेरे साथ उस के घुसने की फीस है ---एक सौ रूपया। वाह, मेरा क्रैडिट कार्ड तो चल रहा है, उस दिन यह जानने की खुशी इतनी थी कि बेटे द्वारा एक सो रूपये की चपत का लगना भी ज़रा महसून न हुआ।
लेकिन, अपनी बुद्दि भी तो वही है ना खोजी पत्रकार वाली। इतने हफ्तों से यह सोचे जा रहा था कि यह बात समझ में आ नहीं रही कि क्रैडिट कार्ड से भी एटीएम से पैसे निकलवा लो और डैबिट कार्ड से भी । इतने हफ्ते तक मन में यही सोचे जा रहा था कि जब यह काम क्रैडिट कार्ड के इस्तेमाल से ही संभव है तो क्या लिया मैंने नया डैबिट कार्ड। लेकिन मुझे इस का जवाब मिलने का समय नहीं था और ऊपर वाले का शुक्र है कि मैंने इन पिछले हफ्तों में दोबारा इस का इस्तेमाल एटीएम पर नहीं कर दिया।
इस का जवाब मुझे मिला परसों, लेकिन मैं इसे समझ नहीं पाया ---- चूंकि एसएमएस था कि आप के ई-मेल पर आप की क्रेडिट कार्ड स्टेटमैंट भेज दी गई है, आप भुगतान कर सकते हैं। तो मैंने रात को जब ई-मेल खोली तो लिखा था कि आप ने चार सौ उन्चालीस रूपये और तेरह पैसे भरने हैं -----यह सब समझ में नहीं आ रहा था कि यह कमबख्त तीन सौ रूपये और चालीस रूपये के तरह तरह के टैक्स किस लिये जोड़ दिये हैं। बेटा कहने लगा कि टाटा-स्काई की री-चार्ज किया था ना ---फिर ध्यान आया कि वह तो नैट-बैंकिंग के ज़रिये किया था, फिर यह तीस सौ चालीस रूपये का फटका क्यों ? लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।
बहरहाल, ध्यान आया कि बैंक वालों ने क्रेडिट कार्ड के साथ कुछ पैंफलेट भेजे थे --जब उन को पढ़ना शुरू किया तो अच्छी तरह से समझ आ गया कि क्रैडिट कार्ड को इस्तेमाल करते हुये रकम चाहे जितनी भी निकालें,यह तीन सौ रूपये की करारी चपत तो सहनी ही पड़ेगी। इस एटीएम विद्ड्रायल नहीं कहते, इस के लिये और भी पालिश्ड टर्म है ---कैश एडवांस। और जब यह बंदा क्रैडिट कार्ड के साथ भेजी उन शर्तों को पढ़ रहा था तो उन में एक शर्त यह भी थी ---
Cash Advance Feees ---
The cardmember can use the card to access cash in an emergency from ATMS in India or abroad. A transaction fee of 2.5%( Minimun Rs.300)would be levied on the amount withdrawn and would be billed to the cardmember in the next statement.
तो फिर कल रात को सोने से पहले ये 439 रूपये 13 पैसे नेटबैंकिग को इस्तेमाल कर के उन को लौटा कर ----मेरे द्वारा निकलवाये गये 100 रूपये पर चार-सौ गुणा दंड देने के बाद ( जब तक इस को पंजाबी में नहीं लिखूंगा, ठंड नहीं पैनी ----उन्नां दे पैसे उन्नां दे मत्थे मार के मैं मुंडे नूं जफ्फी पा के सोन दी कीती !!) ----थोड़ा डिप्रैस सा हो कर सो गया लेकिन प्यारे से बेटे की प्यार की झप्पी ने इस गम को कहां छू-मंतर कर दिया , पता ही नहीं चला। बिल्कुल थोड़ा सा डिप्रैस इसलिये हुआ कि मैं तो गलत तरीके से कोई भी पैसा अपने पास आने ही नहीं होने नहीं देता लेकिन फिर अपने को क्यों ऐसे इतने महंगे महंगे फटके लगते हैं। फिर ध्यान आया कि शायद कुछ सबक सिखाने के लिये। और सोते सोते बच्चों को भी इस के बारे में भी बता दिया ताकि वे भी भविष्य में कभी पप्पू न बनें।
सोच रहा हूं यह हुआ क्यों ? --इस का कारण है ओव्हर-कान्फीडैंस( थोडा़ थोड़ा ध्यान आया कि क्यों बसअड़्डे पर खड़ी एक बूढ़ी मां (जिसे मेरे जैसा पढ़ा लिखा तबका अनपढ़ कहने की हिमाकत करता है) बार बार मेरे जैसे कईं सो-काल्ड पढ़े-लिखों से यह पूछ कर ही बस में चढ़ती है कि यह बस क्या बराड़े जायेगी) --- क्योंकि पहले ये पैम्फलैट जो बैंक वाले भेजते हैं इन्हें हम लोग कहां ढंग से देखते हैं, हमें तो यह कुछ पता ही है और शायद यह भी एक भावना रहती है कि यार, जो कुछ भी इन्होंने काटना है ना, वह तो काट ही लेंगे चाहे हम ये निर्देश पड़े या नहीं। दरअसल बहुत बार होते भी ये इतने पेचीदा हैं कि इन्हें पढ़ कर सिरदर्दी मोल लेने की इच्छा ही नहीं होती। और दूसरी बात यह है कि हम कुछ ज़रूरत से कुछ ज़्यादा ही पढ़े लिखे लोग किसी से ऐसी कोई भी बात करने में या अपने साथियों के साथ ही यह सब डिस्कस करने में पता नहीं क्यों अपनी कमज़ोरी समझते हैं --और ठोकरे ठोकरें खा कर सीखने में ज़्यादा विश्वास रखते हैं। कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही है।
हां, तो विभिन्न कारणों की वजह से (जिस की चर्चा फिर कभी कर लेंगे), अब मैं इंगलिश ब्लागिंग पर भी ध्यान देने की सोच रहा हूं ---उस के लिये मैंने कुछ स्ट्रेटैजीज़ ( शेखचिल्लीज़) बनाई है, थोड़ा इंगलिश में एसटैबलिश होने के बाद शेयर करूंगा। मेरा इंगलिश ब्लाग भी सेहत से संबंधित मुद्दों पर ही होगा। मुझे पता है कि वह कर पाना मेरे लिये इतना सहज नहीं होगा जितना अपनी ही भाषा में लोगों के साथ तुरंत ही जुड़ जाना, लेकिन जो भी होगा, देखा जायेगा क्योंकि पिछले पूरे डेढ़ साल में हिंदी चिट्ठारी से खूब प्रेम किया है (और आगे भी यह प्रेम तो जारी ही रहेगा) लेकिन इंगलिश ज़्यादा न लिख पाने की वजह से मेरा उस भाषा का एक्सप्रैशन, मेरी इंगलिश की अभिव्यक्ति प्रभावित हो रही है, इसलिये आज तो ऐसा लगता है कि अब नेट पर हिंदी एवं इंगलिश की भागीदारी फिफ्टी-फिफ्टी कर दूंगा।
फिलहाल एक काम करता हूं ---टेबल पर पड़ी चाय ठंडी हो रही है और उस के साथ पडा रस मुझे बुला रहा है, इसलिये यह सोच कर कि मेरे जैसे और भी बहुत हैं इस दुनिया में --और अपना गम गलते करने के लिये यह गाना सुन कर दिल खुश कर लेता हूं। आप भी सुनने से पहले दोबारा से चाय की फरमाईश कर डालिये।
शुभकामनायें , आप भी कहीं पप्पू न बनें।
इस से पहले की मैं यह आपबीती लिखनी शुरू करूं अंग्रेज़ी की एक मशहूर कहावत का ध्यान आ रहा है ---- Experience is a great teacher ---- it does not give lessons, it gives TUITION !!
हुआ यूं कि कुछ अरसा पहले किसी लेखकों की बैठक में दिल्ली जाना था --- ( एक तो कमबख्त यह शौक बार बार जा कर लेखकों में जा कर घुसने का पता नहीं पिछले दस सालों से क्यों पाल रखा है और इस पर इतना पैसा खराब कर चुका हूं कि कभी इस से संबंधित अपने अनुभव आप को बताने लग गया ना तो इन में छिपा दर्द महसूस कर के आप का तो रूमाल भीग जायेगा ----यह मेरा विश्वास है)।
हां, तो उस लेखकों की वर्कशाप में जाने के लिये उन्होंने फीस ऑन-लाइन मांगी थी -- इसलिये बेटे ( जो कि कंप्यूटर इंजीनियरिंग तो कर रहा है, लेकिन अपने संसार में ज़्यादा खोया रहता है ---- और उस के बारे में वह लाइन याद आ रहा है ---कि वक्त आने पे बता देंगे कि क्या हमारे दिल में है !! ) के साथ बैठ कर एक रात को बहुत माथा-पच्ची करी कि पे-पाल का एकाउंट बन जाये--- लेकिन उस साइट पर खूब धक्के खाने के बाद यही पता चला कि बिना कोई सा भी क्रैडिट कार्ड लिये बिना यह संभव नहीं है।
चूंकि मैं बैंक का एक डैबिट कार्ड कुछ दिन पहले ही गुम कर चुका था , इसलिये नया अप्लाई करना ही था, सोचा कि लगे हाथ क्रैडिट कार्ड के लिये भी आवेदन कर ही दूं। उस बैंक के क्रेडिट कार्ड के लिये इतनी सारी फारमैलिटीज़ थीं कि रह रह कर ध्यान आ रहा था कि छोड़ यार क्या फायदा इस पंगे में पड़ने का। शायद उस पता वैरीफाई करने वाले को मेरी बातचीत इतनी इम्प्रैसिव न लगी कि वह मेरी सैलरी के बारे में मेरे से बार बार पूछ रहा था और पक्का प्रूफ़ भी चाहिये था। इसलिये पहले यह सब कुछ उसी बैंक से कोई फोन से भी पूछ चुका था ---इसलिये मैं इरीटेट तो हुआ ही हुआ था, मैंने उस बंदे से इतना भी कहा कि यार, मुझे नहीं चाहिये, कोई क्रैडिट कार्ड, प्लीज़ मेरे आवेदन को कैंसिल कर दें।
खैर, लोगों के घर घर जा कर बेचने वाले ये लोग कैसे यह बात मान लें ? फ्रैंकली स्पीकिंग उस समय तो मैं इन के प्रश्नों की बौछार से इतना चिढ़ चुका था कि अगर वह मुझे मेरा फार्म वापिस लौटा देता तो मैं इस चक्कर में पड़ता ही ना।
अच्छा, तो पहले उस लेखकों वाली बैठक की भी एक क्लास ले लें ---हां, तो उन दुकानदारों की यह शर्त थी कि आनलाईन अगर वर्कशाप की फीस अदा कर देते हैं तो ठीक है, वरना ऑन-दा-स्पाट पेमेंट डबल ली जायेगी। तो, साहब, मैं भी पहुंच गया उस वर्कशाप में शिरकत करने के लिये --- यही सोच कर कि लिखने का क्या है, यूं ही लिख दिया होगा डराने के लिये --लेकिन मैं वहां पहुंच कर बहुत चौंका कि उन्होंने मेरे से डबल-रेट ही चार्ज किया। इन वर्कशापों में जाकर यही सीखा है कि यह भी दूसरी दुकानों की तरह दुकानदारियां सी ही हो गई हैं। इसलिये इन पर जा जा कर इतना ऊब चुका हूं कि अब इन से तौबा कर ली है।
लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि अपने अनुभव लोगों के साथ साझे नहीं करूंगा ----वह तो ज़रूर करता ही रहूंगा और भविष्य में ( मुझे खुद भी पता नहीं कब !!) यह सब अंधाधुंध बेबाकी से करने की इतनी चाह ज़्यादा चाह रखता हूं जितना मेरा छोटा बेटा बीस रूपये के कुरकुरे के पैकेट की चाह रखता है। ( जितने चटकारे ले कर वह उस के एक एक पीस को खाता है और दाल-रोटी-सब्जी खाते हुये उस के माथे के बल ऐसे लगते हैं जैसे कि ये लाइनें स्थायी ही हैं, मुझे खूब पता है कि आने वाले समय में उस के इन चेहरे की सिलवटों की वजह से क्या परेशानी होने वाली है, लेकिन अपने को तो बस छोटा सा सुकून है कि मैंने उसे किसी भी तरह का जंक-फूड बहुत ही कम बार खरीद कर दिया है---- शायद छःमहीने या एक साल में एक-आधा पैकेट लेकर दे भी दिया तो इस की क्या बात है !!
अच्छा, तो बच्चे के तरह तरह के पैकेट खाने के शौक से ध्यान आया कि इस क्रेडिट कार्ड को एटीएम पर इस्तेमाल मैंने कैसे किया । मैं बेटे के साथ जा रहा था ---क्रेडिट कार्ड आ गया, बाद में उस का पासवर्ड भी आ गया ( जिस जद्दोज़हद से वह आया, वह एक अलग स्टोरी है) ---यह सब दो एक महीने पहले की ही बात है। मैंने कभी इस को इस्तेमाल तो पहले किया नहीं था।
हां, तो बच्चों की तरफ़ से तरह तरह के पंप इस्तेमाल करने शुरू किये गये कि पापा, चलो आज उस फलां फलां रेस्टतां में चलते हैं, वे क्रैडिट कार्ड से पेमैंट लेते हैं। लेकिन उन का यह सुझाव घर में सभी को मंजूर न था क्योंकि आज तक मुझे नहीं याद कि कभी भी हम लोग किसी रेस्टरां में गये हों और फिर आग बबूला हो कर बाहर यह कहते ना बाहर निकले हों कि आगे से स्नैक्स ही ठीक हैं, ऐसा इसलिये है कि ऊपर वाले के आशीर्वाद से हमारे घर का खाना( बिल्कुल आप के घर के खाने की ही तरह !!) विश्व में सर्वोत्तम है ( थोड़ा सा झूठ बोलने के लिये क्षमा-प्रार्थी हूं ---मैं अपने जबरदस्त पसंदीदा ---अमृतसर के केसर के ढाबे को कैसे भूल गया !!) ---बाहर के खाने में तो मुझे वह सब से बढ़िया लगता था, लगता है और शायद लगता रहेगा। वरना, दूसरे जितने भी रेस्टरां वगैरा में जा कर खाया है तो आधे परिवार के सदस्यों की तबीयत तो घर आने तक खराब हो जाती है और आधे लोगों के मिजाज सुबह खराब हुये मिलते हैं कि तौबा, इतनी मिर्ची !!!!!!
हां, तो सोचा कि इस क्रैडिट कार्ड को किसी अन्य जगह पर इस्तेमाल करने से पहले इसे किसी बैंक के एटीएम पर इस्तेमाल कर के देख लूं कि यह चलता भी है कि नहीं। छोटे बेटे के साथ जा रहा था कि उस ने इशारा किया कि पापा, इधर चैक कर लो, ऐसी जगहों पर मेरे साथ उस के घुसने की फीस है ---एक सौ रूपया। वाह, मेरा क्रैडिट कार्ड तो चल रहा है, उस दिन यह जानने की खुशी इतनी थी कि बेटे द्वारा एक सो रूपये की चपत का लगना भी ज़रा महसून न हुआ।
लेकिन, अपनी बुद्दि भी तो वही है ना खोजी पत्रकार वाली। इतने हफ्तों से यह सोचे जा रहा था कि यह बात समझ में आ नहीं रही कि क्रैडिट कार्ड से भी एटीएम से पैसे निकलवा लो और डैबिट कार्ड से भी । इतने हफ्ते तक मन में यही सोचे जा रहा था कि जब यह काम क्रैडिट कार्ड के इस्तेमाल से ही संभव है तो क्या लिया मैंने नया डैबिट कार्ड। लेकिन मुझे इस का जवाब मिलने का समय नहीं था और ऊपर वाले का शुक्र है कि मैंने इन पिछले हफ्तों में दोबारा इस का इस्तेमाल एटीएम पर नहीं कर दिया।
इस का जवाब मुझे मिला परसों, लेकिन मैं इसे समझ नहीं पाया ---- चूंकि एसएमएस था कि आप के ई-मेल पर आप की क्रेडिट कार्ड स्टेटमैंट भेज दी गई है, आप भुगतान कर सकते हैं। तो मैंने रात को जब ई-मेल खोली तो लिखा था कि आप ने चार सौ उन्चालीस रूपये और तेरह पैसे भरने हैं -----यह सब समझ में नहीं आ रहा था कि यह कमबख्त तीन सौ रूपये और चालीस रूपये के तरह तरह के टैक्स किस लिये जोड़ दिये हैं। बेटा कहने लगा कि टाटा-स्काई की री-चार्ज किया था ना ---फिर ध्यान आया कि वह तो नैट-बैंकिंग के ज़रिये किया था, फिर यह तीस सौ चालीस रूपये का फटका क्यों ? लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।
बहरहाल, ध्यान आया कि बैंक वालों ने क्रेडिट कार्ड के साथ कुछ पैंफलेट भेजे थे --जब उन को पढ़ना शुरू किया तो अच्छी तरह से समझ आ गया कि क्रैडिट कार्ड को इस्तेमाल करते हुये रकम चाहे जितनी भी निकालें,यह तीन सौ रूपये की करारी चपत तो सहनी ही पड़ेगी। इस एटीएम विद्ड्रायल नहीं कहते, इस के लिये और भी पालिश्ड टर्म है ---कैश एडवांस। और जब यह बंदा क्रैडिट कार्ड के साथ भेजी उन शर्तों को पढ़ रहा था तो उन में एक शर्त यह भी थी ---
Cash Advance Feees ---
The cardmember can use the card to access cash in an emergency from ATMS in India or abroad. A transaction fee of 2.5%( Minimun Rs.300)would be levied on the amount withdrawn and would be billed to the cardmember in the next statement.
तो फिर कल रात को सोने से पहले ये 439 रूपये 13 पैसे नेटबैंकिग को इस्तेमाल कर के उन को लौटा कर ----मेरे द्वारा निकलवाये गये 100 रूपये पर चार-सौ गुणा दंड देने के बाद ( जब तक इस को पंजाबी में नहीं लिखूंगा, ठंड नहीं पैनी ----उन्नां दे पैसे उन्नां दे मत्थे मार के मैं मुंडे नूं जफ्फी पा के सोन दी कीती !!) ----थोड़ा डिप्रैस सा हो कर सो गया लेकिन प्यारे से बेटे की प्यार की झप्पी ने इस गम को कहां छू-मंतर कर दिया , पता ही नहीं चला। बिल्कुल थोड़ा सा डिप्रैस इसलिये हुआ कि मैं तो गलत तरीके से कोई भी पैसा अपने पास आने ही नहीं होने नहीं देता लेकिन फिर अपने को क्यों ऐसे इतने महंगे महंगे फटके लगते हैं। फिर ध्यान आया कि शायद कुछ सबक सिखाने के लिये। और सोते सोते बच्चों को भी इस के बारे में भी बता दिया ताकि वे भी भविष्य में कभी पप्पू न बनें।
सोच रहा हूं यह हुआ क्यों ? --इस का कारण है ओव्हर-कान्फीडैंस( थोडा़ थोड़ा ध्यान आया कि क्यों बसअड़्डे पर खड़ी एक बूढ़ी मां (जिसे मेरे जैसा पढ़ा लिखा तबका अनपढ़ कहने की हिमाकत करता है) बार बार मेरे जैसे कईं सो-काल्ड पढ़े-लिखों से यह पूछ कर ही बस में चढ़ती है कि यह बस क्या बराड़े जायेगी) --- क्योंकि पहले ये पैम्फलैट जो बैंक वाले भेजते हैं इन्हें हम लोग कहां ढंग से देखते हैं, हमें तो यह कुछ पता ही है और शायद यह भी एक भावना रहती है कि यार, जो कुछ भी इन्होंने काटना है ना, वह तो काट ही लेंगे चाहे हम ये निर्देश पड़े या नहीं। दरअसल बहुत बार होते भी ये इतने पेचीदा हैं कि इन्हें पढ़ कर सिरदर्दी मोल लेने की इच्छा ही नहीं होती। और दूसरी बात यह है कि हम कुछ ज़रूरत से कुछ ज़्यादा ही पढ़े लिखे लोग किसी से ऐसी कोई भी बात करने में या अपने साथियों के साथ ही यह सब डिस्कस करने में पता नहीं क्यों अपनी कमज़ोरी समझते हैं --और ठोकरे ठोकरें खा कर सीखने में ज़्यादा विश्वास रखते हैं। कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही है।
हां, तो विभिन्न कारणों की वजह से (जिस की चर्चा फिर कभी कर लेंगे), अब मैं इंगलिश ब्लागिंग पर भी ध्यान देने की सोच रहा हूं ---उस के लिये मैंने कुछ स्ट्रेटैजीज़ ( शेखचिल्लीज़) बनाई है, थोड़ा इंगलिश में एसटैबलिश होने के बाद शेयर करूंगा। मेरा इंगलिश ब्लाग भी सेहत से संबंधित मुद्दों पर ही होगा। मुझे पता है कि वह कर पाना मेरे लिये इतना सहज नहीं होगा जितना अपनी ही भाषा में लोगों के साथ तुरंत ही जुड़ जाना, लेकिन जो भी होगा, देखा जायेगा क्योंकि पिछले पूरे डेढ़ साल में हिंदी चिट्ठारी से खूब प्रेम किया है (और आगे भी यह प्रेम तो जारी ही रहेगा) लेकिन इंगलिश ज़्यादा न लिख पाने की वजह से मेरा उस भाषा का एक्सप्रैशन, मेरी इंगलिश की अभिव्यक्ति प्रभावित हो रही है, इसलिये आज तो ऐसा लगता है कि अब नेट पर हिंदी एवं इंगलिश की भागीदारी फिफ्टी-फिफ्टी कर दूंगा।
फिलहाल एक काम करता हूं ---टेबल पर पड़ी चाय ठंडी हो रही है और उस के साथ पडा रस मुझे बुला रहा है, इसलिये यह सोच कर कि मेरे जैसे और भी बहुत हैं इस दुनिया में --और अपना गम गलते करने के लिये यह गाना सुन कर दिल खुश कर लेता हूं। आप भी सुनने से पहले दोबारा से चाय की फरमाईश कर डालिये।
शुभकामनायें , आप भी कहीं पप्पू न बनें।
चलो जी यह अनुभव भी हों ही गया |
जवाब देंहटाएंबताईये पप्पू बन ही गये.
जवाब देंहटाएंक्रेडिट कार्ड के बारे में हमने इतना सुन रखा था और जब हमने इसे लिया तब भी पूरी रिसर्च करके उपयोग करना शुरु किया।
जवाब देंहटाएंहमेशा ध्यान रखें जब भी किसी कंपनी का लुभावना आफ़र मिले तो सबसे पहले उसकी शर्तें ध्यान से पढ़ लें तभी आफ़र को लें। साधारणतया: इस तरह के आफ़र के पीछे हमेशा लूट होती है।
चलिये पप्पू अब तो सीखेगा।
वाह जी वाह। अच्छा मंहगा अनुभव रहा।
जवाब देंहटाएंइह भी ठीक कीता कि उन्नां दे पैसे उन्नां दे मत्थे मार के मुंडे नूं जफ्फी पा के सोन दी कीती !!
सुकून उसी जफ्फी में है।
seekhne ki sikhaayi toh lagti hi hai bhai !
जवाब देंहटाएंaapko is baat pe on line badhaai !
चोपडा साहब बहुत ही सुंदर ढंग से आप ने दिल की बात लिखी,भारत मै मेने एक बार युही बिन जरुरत के अपने क्रेडिट कार्ड से १५ हजार रुपये निकाले, जिस पर यहां (जर्मन) के हिसाब से सिर्फ़ ३% ही ज्यादा देने थे, लेकिन जब मुझे एक दो महीनो के बाद बिल आया तो मेरे बेंक से ४५ हजार रुपये निकल चुके थे, फ़िर मेने पुछ ताछ करनी चाही तो मेरे बेंक वालो ने कहा कि हम् ने तो सिर्फ़ डॆढ % अपने खर्चे की रकम निकाली है बाकी अपने देश के बेंक से पुछो, अगर हम ने पता किया तो सारा खर्च तुमे देना पडेगा, अब मेने भारत मे नगद पेसे कभी नही निकाले, हां भुगतान वगेरा मै सभी अपने कार्ड से ही करता हुं, ओर पहले चेक कर के ही पिन ना० देता हुं
जवाब देंहटाएंहमारे यहां साल मे सिर्फ़ एक बार ही ६०, से ८० € लगते है, ओर नगद पेसा निकलवाने पर १% ही लगता है.