बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

इस कैंडी को तो आप भी ज़रूर ही खाया करें ...




दो-तीन दिन पहले मैं अपनी माता जी के साथ बाज़ार गया हुआ था ---रास्ते में वे बाबा रामदेव के एक औषधालय के अंदर शहद लेने गईं ---मैं बाहर ही खड़ा हुआ था, जब वह बाहर आईं तो हाथ में दो पैकेट पकड़े हुये थे जिन्हें उन्होंने मेरी तरफ़ सरका कर खाने के लिये कहा।

यह निराली कैंडी मैंने पहली बार देखी थी – आंवला कैंडी – दो तरह के पैकेट में यह दिखीं। इस का स्वाद बहुत बढ़िया था। अब आंवले के गुण तो मैं क्या लिखूं---- बस, केवल इतना ही कहूंगा कि इसे प्राचीन समय से अमृत-फल के नाम से जाना जाता है और यह आंवला तो गुणों की खान है। यह आंवला कैंडी का 55 ग्राम का पैकेट 10 रूपये में मिलता है। यह बाबा रामदेव की दिव्या फार्मेसी द्वारा ही बनाया जाता है , इसलिये हम लोग इस की गुणवत्ता के बारे में आश्वस्त हो सकते हैं।

मैं जब भी अपने मरीज़ों को आंवला खाने की सलाह देता रहा हूं तो अकसर तरह तरह की प्रतिक्रियायें देखने-सुनने को मिलती रही हैं। कुछ तो झट से कह उठते हैं कि उस का तो स्वाद बहुत ही अजीब सा होता है, वह हम से तो नहीं खाया जाता।

अब मरीज़ों को जो भी बात कहनी होती है तो बड़ी सोच समझ कर कहनी होती है क्योंकि अधिकतर मरीज़ डाक्टर के मुंह से निकली बात को ब्रह्म-वाक्य समझ कर उस पर अमल करना शुरू कर देते हैं। यह मैं इसलिये कह रहा हूं क्योंकि बाज़ार से लेकर आंवले का मुरब्बा खाना आम आदमी के लिये थोड़ा बहुत महंगा ही है ---अगर तो इसे केवल किसी बीमार द्वारा ही लिया जाना हो तो शायद चल सकता है लेकिन अगर हम चाहते हैं कि एक औसत परिवार का हर सदस्य इस का नित्य-प्रतिदिन सेवन करे तो इस के इस्तेमाल का कोई सस्ता और टिकाऊ तरीका ढूंढना होगा।

यह आंवले का मुरब्बा तो मैं भी कभी कभी लेता रहा हूं ---- लेकिन बाज़ार में बिकने वाले मुरब्बा से मैं कोई ज़्यादा संतुष्ट नहीं हूं ---- बहुत अच्छी अच्छी दुकानों पर जिस तरह से बड़े बड़े टिन के डिब्बों में जिस तरह से इन की हैंडलिंग की जाती है , वह देख कर अजीब सा लगता है । व्यक्तिगत तौर पर मैं कम से कम अपने सेवन के लिये तो इस आंवले के मुरब्बे को बाज़ार से खरीद कर खाने के पक्ष में नहीं हूं---- और इस के कईं कारण हैं, दुकानों पर इस की इतनी बढ़िया हैंडलिंग न होना इस का एक मुख्य कारण है।

मैं अकसर जब मरीज़ों को आंवले के सेवन की बात कहता हूं तो वे समझते हैं कि मैं केवल इस के मुरब्बे की ही बात कर रहा हूं। कईं लोग मुरब्बे वाले आंवले को पानी से धो कर इस्तेमाल करने की बात भी करते हैं ---- क्योंकि उन्हें यह बहुत मीठा रास नहीं आता।

कईं बार मुझे अपने प्रयोग भी किसी किसी मरीज़ के साथ बांटने ज़रूरी हो जाते हैं --- क्योंकि हम सब लोग एक दूसरे से अनुभवों से ही सीखते हैं। कुछ साल पहले मुझे फिश्चूला की तकलीफ़ हो गई थी ---मैं लगभग चार पांच साल तक बहुत परेशान रहा --- अब क्या बताऊं कि चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़ा होने के बावजूद भी मैं आप्रेशन करवाने के नाम से ही कांप उठता था --- मैं सोचा करता था कि अगर मैं आंवले का नियमित प्रयोग करता रहूंगा तो शायद धीरे धीरे सब कुछ अपने आप ही ठीक हो जायेगा लेकिन ऐसा कभी होता है क्या !--- जयपुर के सर्जन डा. गोगना जी से आप्रेशन करवाना ही पड़ा और पूरे छ- महीने ड्रेसिंग चलती रही थी।

इस बात लिख कर मैं तो बस यह बात रेखांकित करना चाहता था कि मेरी उन चार-पांच साल तक चलने वाली तकलीफ़ के दिनों में इस आंवले में एक सच्चे मित्र की तरह मेरा पूरा साथ दिया। सर्दी के मौसम में तो जब आंवला बाज़ार में बिकता है उन दिनों तो मैं इसे उसी रूप में ही लेना पसंद करता हूं। इस का एक बहुत ही आसान हिंदोस्तानी तरीका है ----आंवले का आचार --- पंजाब में सर्दी के दिनों में यह बहुत चलता है।

अच्छा जब कभी आचार नहीं होता था तो मैं एक आंवले के छोटे छोटे टुकड़े कर लिया करता था और आचार की जगह इन टुकड़ों को खा लिया करता था ---इस तरह से भी ताज़े आंवले का सेवन कर लेना बहुत आसान है, इसे आप भी कभी आजमाईयेगा।
अच्छा तो जब ताज़े आंवले बाज़ार में नहीं मिलते तो तब क्या करें ---- सूखे आंवले का पावडर बना कर एक-आधा चम्मच लिया जा सकता है और यह भी मैं लगभग दो साल तक लेता रहा हूं। वो बात अलग है जिस शारीरिक तकलीफ़ का उपाय ही सर्जरी है , वह तो आप्रेशन से ही ठीक होगी लेकिन इस तरह से आंवले के इस्तेमाल से मेरा पेट बहुत बढ़िया साफ़ हो जाया करता था और मैं सौभाग्यवश उस फिश्चूला की जटिलताओं से बचा रहा।

आंवले की यह कैंडी भी बहुत बढ़िया आइडिया है --- आज कल जब बच्चे सब्जियां तक तो खाते नहीं है, ऐसे में उन से यह अपेक्षा करना कि वे आंवला खायेंगे, क्या यह ठीक है ? लेकिन मेरे विचार में उन्हें आंवले का सेवने करने के लिये प्रेरित करने के लिये इस आंवला कैंडी से बढ़िया कोई चीज़ है ही नहीं ---- इस का सेवन करने के बहाने वे आंवले के लिये अपना मुंह का स्वाद भी डिवैल्प कर पायेंगे जो कि इन की सारी उम्र मदद करेगा।

क्या है ना इस तरह की दिव्य वस्तुओं के लिये स्वाद डिवैल्प होना भी बहुत ज़रूरी है --- अब हम लोगों को बचपन से ही आदत रही है कि गला खराब होने पर मुलैठी चूसनी है और हम दो एक दिन में बिल्कुल ठीक भी हो जाया करते थे ....लेकिन अब हम लोग अपने बच्चों को इस का इस्तेमाल करने को कहते हैं तो वह नाक-मुंह सिकोड़ते हैं, और इस तरह से दिव्य देसी नुस्खों से दूर रह कर बिना वजह कईं कईं दिन तक दुःख सहते रहते हैं।

एक बार और भी है ना कि इस तरह की कैंडी खाते वक्त इसे ज़्यादा खा लेने से डरने वाली भी कोई बात नहीं --- जैसा कि मैंने उस पैकेट को दो-एक घंटे में ही खत्म कर दिया क्योंकि मुझे इस का स्वाद बहुत बढ़िया लगा। हां, अगर ज़्यादा मीठा सा लगे तो खाने से पहले धो लेंगे तो भी चलेगा।

आंवले इतने सारे दिव्य-गुणों की खान है कि इसे खाने का जहां भी मौका मिले उस से कभी भी न चूकें। और खास कर जब आंवला-कैंडी ऐसी कि बच्चे भी इसे बार बार चखने के लिये मचल जायें। तो, मेरा आपसे अनुरोध है कि आप इस आंवला कैंडी का खूब सेवन किया करें----- आज बाबा रामदेव की संस्था दिव्य फार्मेसी द्वारा तैयार इस आंवला कैंडी के लिये इस पोस्ट के माध्यम से विज्ञापन लिख कर बहुत अच्छा लग रहा है----शायद यह पहली बार है कि जब मैं किसी वस्तु का अपनी इच्छा से विज्ञापन कर रहा हूं ----- आप जिस भी शहर में हैं वहां पर बाबा रामदेव की फार्मेसी से ये सब प्राडक्ट्स आसानी से उपलब्ध होते हैं।

पांच-छः साल पहले मैं आसाम में जोरहाट में एक लेखक शिविर में गया हुआ था ---वह मुझे यह देख कर बहुत अच्छा लगा कि कुछ दुकानों पर पान-मसालों एवं गुटखों के पैकेटों के साथ साथ सूखे आंवले के छोटे छोटे पाउच एक-एक रूपये में भी बिक रहे थे ---वहां मुझे यही विचार आ रहा था कि आदमी की ज़िंदगी भी क्या है ----दिन में बार बार उसे किन्हीं दो चीज़ों में से एक को चुनना होता है और इस च्वाईस पर ही उस का भविष्य निर्भर करता है ---अब जोरहाट वाली बात ही लीजिये कि बंदा चाहे तो एक रूपये में आंवले जैसे अमृत-फल का सेवन कर ले और चाहे तो एक रूपये का पान-मसाला एवं गुटखा रूपी ज़हर खरीद कर आफ़त मोल ले ।।

10 टिप्‍पणियां:

  1. चोपडा साहब जी, मै चार साल पहले जब भारत आया था तो आंबले , ओर त्रिफ़ला के दो दो डिब्बे( पिस्से हुये) ले आया था, कुछ दिन तो मेने इसे खाया, लेकिन सारा दिन मुंह का स्वाद खराब रहता था, फ़िर मेने इसे शहद मे मिला कर खाना चाहा , लेकिन बीच मे ही छोड दिया,क्या यह चुरण अब तक ठीक होगा, क्या अब भी उसे खा सकते है, जरुर बताये.
    आप ने आंबले के बारे बहुत सुंदर जानकारी दी है, धन्यवाद

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  2. आँवला कैण्डी की जानकारी देना ठीक रहा।

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  3. वास्‍तव में विभिन्‍न बीमारियों में और रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढाने में देशी नुस्‍खे बहुत कारगर होते हैं .... मैं मौसम में सालभर के लिए दस बारह किलो आंवले के मुरब्‍बे या जेली बना लिया करती हूं....पर हमलोगों को उसे खुद ही खाकर समाप्‍त करना पडता है....आजकल के बच्‍चे यह सब खाना बिल्‍कुल ही पसंद नहीं करते हैं...बहुत सुंदर जानकारी दी...पर बाजार में मिलनेवाले सामान से अच्‍छा खुद बनाकर खाना है।

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  4. चोपडा साहब, तुसी ते बोहत वदिया जानकारी वन्डी जा रहे हो.सच पुछो ते, मैं तां हजे तक तुहानु सिर्फ नाम वाला डाक्टर ही समझी जांदा सी. कमाल है मैनु ते अज पता चलिया कि तुसी ते सच्ची मुच्ची दे डाक्टर हो.लो जी फेर हुन ते तुहाडे नाल जुड के रहना ही पऊगा. भाई की पता कदों लोड पै जाए.
    वैसे ए आंवला कैंडी आली बोहत ही वधिया गल्ल दसी जे तुसी. एक वारी अजमा के वेखदे हां.

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  5. आंवले का सेवन मैं रोज करता हूँ लेकिन मुरब्बे के रूप में...मुरब्बा वो जो बंद डिब्बे में मिलता है...क्या उसे भी खाना ठीक नहीं रहेगा? उसे तो कोई हाथ भी नहीं लगा सकता क्यूँ की डिब्बा सील होता है...
    केंडी वाली बात पसंद आयी...इसे मंगवा कर चालू करता हूँ...
    नीरज

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  6. वाह, डाक्टर साहब। आजकल हम प्रतापगढ़ की आंवले की बर्फी खा रहे हैं!

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  7. मैंने भी इसका इस्तमाल किया हुआ है यह बहुत बढ़िया है ..आपने अच्छी जानकारी दी है ..आंवले का शरबत भी अब मिलता है मार्केट में वह कितना उपयोगी है ? और उसके क्या क्या फायदे हैं ?

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  8. यहाँ कोलकाता में कटे आंवले के छोटे पैकेट मिलतें हैं ..नमक मिर्च के साथ जो स्वादिस्ट भी होते हैं और स्वस्थ्य वर्धक भी.आमलकी कहते हैं इन्हें यहाँ..जानकारी का धन्यवाद.

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  9. आँवला कैण्डी की जानकारी- यह यहाँ के लिए बढ़िया रहेगा....अभी तो वो डिब्बे वाला मुरब्बा ही उपाय है मात्र.

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