शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

67 की उम्र में 70 किलोमीटर साईक्लिंग

श्रीपाल.. उम्र ६७ वर्ष 
श्रीपाल जी से मिलिए...इन की उम्र है ६७ वर्ष..सेवानिवृत्त हुए सात आठ बरस हो गये हैं...लखनऊ के पास गांव में रहते हैं जो ३५ किलोमीटर की दूरी पर है। आज एक दांत उखड़वाने के लिए पधारे हैं..

मैंने जैसे ही इन का रक्तचाप मापने के लिए कहा तो श्रीपाल ने कहा कि ३५ किलोमीटर साईकिल चला कर आया हूं...उन के कहने का मतलब यही रहा होगा कि जितनी दूर से वह आ रहे हैं ऐसे में शायद रक्तचाप बढ़ा हुआ ही होगा।

लेिकन नहीं रक्त चाप उन का बिल्कुल सामान्य ही निकला..

यह ३५ किलोमीटर साईकिल चलाने वाली बात जब मेरे कानों में पड़ी तो मुझे भी इन के बारे में जानने की उत्सुकता हुई...वैसे तो इन के चेहरे के ओजस को देख कर भी इच्छा तो हो रही थी.

मैंने कहा कि दांत तो आप समझिये आप का उखड़ ही गया, बस आप ज़रा संक्षेप में अपनी दिनचर्या बतलाईए।

श्रीपाल सुबह साढ़े चार बजे जाग जाते हैं, तुरंत टहलने निकल पड़ते हैं और छः बजे लौटते हैं...वापिस लौट कर नहाना धोना और उस के बाद नाश्ता....इसके आगे कुछ नहीं बोले...मैंने सोचा कुछ करते होंगे टाइम-पास के लिए..
हमें बड़ी तलब होती है न यह जानने के लिए कि बंदा टाइम-पास के लिए कर क्या रहा है!....हैरानगी हुई शायद श्रीपाल को मेरी बात से......इतना तो कहा इन्होंने कि क्या करना है! बस ऐसे ही दिन बीत जाता है।

मैंने सोचा टीवी देखते रहते होंगे.....नहीं, टीवी घर में है तो लेकिन ये कभी नहीं देखते... रेडियो है नहीं, अखबार का मैंने पूछना ज़रूरी समझा नहीं। मेरे जैसे लोग लेिकन सुबह सुबह अखबार पढ़ कर जमाने भर की निगेटिविटि अपने अंदर ठूंस लेते हैं ...उस के बाद कुछ और काम करते हैं! यह रहा इस का एक छोटा सा नमूना....मेरे दिन की शुरुआत। वैसे मैंने कल यह पोस्ट लिखी और आज सुबह मैंने भी अखबारें नहीं पढ़ीं...बस, इंगलिश पेपर को पांच दस मिनट के लिए देखा....यकीन मानिए, मुझे बहुत अच्छा लगा....मैंने समय से पहले सब काम निपटा लिए।

इन्हें इस बात का बड़ा दुःख है कि सारे एरिया में जैसे सूखा पड़ा हुआ है ....खेत खाली पड़े हैं, बस बालू वाली हवा चला करती है (जैसे रेगिस्तान में चलती है) ...कुछ काम धंधा है नहीं...इन्हें आर्थिक तौर पर कोई दिक्कत नहीं, पेन्शन आती है..

सेहत के बारे में बताते हैं कि बिना वजह मैं अस्पताल आता नहीं हूं...जब कोई तकलीफ़ ही नहीं है, कभी सिर दर्द तक नहीं हुआ और न ही कभी बुखार आया।

यह आज ही साईकिल पर नहीं आए हैं...जब भी लखनऊ का कोई काम होता है तो साईकिल पर ही आते हैं...बता रहे थे कि आज मैं तो अस्पताल में आठ बजे ही पहुंच गया था...साढ़े पांच बजे सुबह चल पड़ा था और अढ़ाई घंटे लगे आने में..बीच में थोड़ा सुस्ता लेता हूं, पानी पी लेता हूं .......जब १५ साल निरंतर ड्यूटी करने लखनऊ आता था तो यही दूरी डेढ़ घंटे में तय हो जाया करती थी।

आप को श्रीपाल की बात सुन कर कैसा लग रहा है?...हम लोग शहरों में हमेशा किसी न किसी बहाने की फिराक में रहते हैं कि आज टहलने न जाना पड़े या साईकिल न चलाने के लिए सड़कों को या भारी भीड़ को कोस देते हैं लेिकन ये बताते हैं कि सड़क बहुत बढ़िया है.....कोई दिक्कत नहीं है।

श्रीपाल के बारे में पढ़ कर आप को लग तो रहा होगा कि शहर और गांव की ज़िंदगी में अभी भी कितना फ़र्क है, और चाहे सिक्के के दो पहलू होते हैं......फिर भी गांव की ज़िंदगी, वहां की आबो-हवा सेहत के लिए बढ़िया तो है ही .......श्रीपाल का चमकता-दमकता चेहरा इस की गवाही दे रहा है।

मुझे भी इन से प्रेरणा मिली कि शरीर से काम लेना चाहिए......मेरे जैसों का क्या है, हम लोग प्रेरणा बटोरते बटोरते ही ज़िंदगी बिता देंगे ऐसा लगता है.....Ideas don't work unless we do!.......बस, इस तरह की अंग्रेजी की चंद बातें कह लेते हैं .......इससे ज़्यादा कुछ नहीं..

दो चार मिनट उन्होंने अपनी बात सुनाई.....फिर दांत उखड़वा कर चले गये......मैंने जाते समय उन्हें कहा कि आप से मिल कर बहुत अच्छा लगा......आप की जीवनशैली दूसरों के लिए प्रेरणा-स्रोत है।

आप किस सोच में पड़ गये?... विचार करने योग्य बात केवल यही है कि श्रीपाल की जीवनशैली में हमारे लिए क्या संदेश धरा-पड़ा है!