सोमवार, 13 अप्रैल 2015

आज का प्रातः काल भ्रमण कैसा रहा ?

कुछ खास नहीं...आज सुबह उठा तो ऐसे लग रहा था जैसे गले में थोड़ी ऐंठन सी है ...थोड़ा पेपर देखा..और सोचा कि आज अपनी कॉलोनी में ही टहल लिया जाए।

टहलते टहलते अपने पुराने दोस्त को फोन मिलाया...दस मिनट खूब हंसी मजाक की बातें हुई और पता नहीं कहां गई गले की ऐंठन और कहां गया भारीपन...समस्या सारी हम लोगों के अकेलेपन की है। और कोई समस्या नहीं है अधिकतर....बहुत कम लोग होते हैं जिन से हम दिल खोल कर बतिया सकते हैं।

हां, जैसा कि मैंने कल भी लिखा था कि हर सुबह कुछ नया लेकर आती है ....उसी तर्ज़ पर आज भी मुझे कुछ फूल पत्ते ऐसे ही दिखे जिन्हें मैंने पहले कभी नहीं देखा था....नाम जानने का तो सवाल ही नहीं....ज़रूरत भी क्या है।

हां, एक बात तो कहनी भूल ही गया कि मुझे एक बहुत बुज़ुर्ग अंकल जी भी दिखे ...उन्हें देख कर मुझे बहुत खुशी होती है..उन की प्रातः एवं सांयकालीन भ्रमण की नियमितता से मैं बहुत प्रभावित हूं...उन का परिचारक उन्हें घुमाने लाता है ..लेकिन पहले साथ में डंडी भी लेते थे तो चल पाते थे....अब वे डंडी का इस्तेमाल नहीं करते....अच्छा लगता है इस तरह के प्रबल आत्मशक्ति वाले लोगों को देखना।




यह जो आप गुलाबी रंग का फूल देख रहे हैं..इसे मुझे छू कर देखना पड़ा ...बिल्कुल मखमली.....इस की फोटो ही कितनी मनमोहक लग रही है!


हां, मुझे जहां तक ध्यान है मैंने शू-फ्लावर पहले कभी सफेद रंग का देखा होगा कभी... अाज यह दिखा तो इस की फोटो खींच ली। लेकिन इसे झूमते हुए कैमरे में कैद करना मुश्किल लग रहा है, इसलिए फोटो के लिए इसे पकड़ना पड़ा।

एक बात और ...हमारे आस पास कुछ घर हैं जहां पर गृहिणियों को पेड़-पौधों-फूलों से बेइंतहा मोहब्बत है ......हाथ कंगन को आरसी क्या, ये नीचे दी गईं दोनों तस्वीरें इसी प्रेम को दर्शा रही हैं...



पेड़ पौधे ही नहीं, प्राणियों के लिए भी इन का स्नेह-वात्सल्स इस तस्वीर से दिख जाता है।

और एक तस्वीर इन सुंदर बीजों की.......मैंने इन्हें ज़मीन से उठाया और मिसिज़ से पूछा कि अगर ये जमीन पर गिरे होते हैं तो ये बिल्कुल सीधे-सपाट होते हैं..लेकिन पेड़ पर लगे हुए ये टेढ़े-मेढ़े लग रहे हैं। श्रीमति ने समझाया कि यह इन बीजों के विकास की अवस्था होगी....अगर ये अपरिपक्व अवस्था में नीचे अपने आप गिरते हैं तो सीधे ही रहेंगे..लेिकन पेड़ के साथ जुड़े रहते रहते जब ये मोच्योर होते हैं तो इन का बाहर का छिलका इस तरह से बदलता है कि उस के अंदर का बीज बाहर निकल पाए......अचानक मुझे Seed Dispersal by Dehiscence वाला बॉटनी का टॉपिक याद आ गया।

कईं बार हमारे बिना किसी प्रयत्न किए हुए ही अपने राज़ सहज ही खोल दिया करती है.......लेकिन पहले हम कुदरत की इस अनुपम छटा को निहारने की फुर्सत निकालें तभी तो..

आज के बेईमान मौसम को देख कर कश्मीर की याद आ रही है.....तो चलिए आज उधर ही हो आते हैं..वैसे मैं आज तक वहां गया नहीं...मेरी मां जम्मू कश्मीर के मीरपुर की रहने वाली हैं जो एरिया अब पाकिस्तान के कब्जे में है...वे अकसर अपनी बचपन की यादें इस घाटी की हम से साझा करती रहती हैं..