रविवार, 13 जनवरी 2008

बच्चों में खांसी ?--- जब कुछ भी न करना ही गोल्डन !

जर्नल आफ अमेरिकी मैडीकल एशोशिएशन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अब मां-बाप को अपने खांसते हुए बच्चे को दवाईयों की बजाए शहद देने के बारे में सोचना होगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शहद लेने से बच्चों को खांसी में डैक्सट्रोमिथार्फैन से भी ज्यादा राहत महसूस हुई और वे रात को बेहतर ढंग से सो भी पाए। यहां यह बताने योग्य है कि आमतौर पर खांसी दबाने वाली कैमिस्ट से बिना किसी प्रैस्क्रिप्शन के मिलने वाली ज्यादातर दवाईयों में डैक्सट्रोमिर्थाफेन ही होती है। लेकिन इस तरह की खांसी-जुकाम के लिए कुछ भी न करने से शहद ले लेना बेहतर है, और कैमिस्ट की दुकान का रुख करने से पहले इस शहद को अवश्य ट्राई कर लेना चाहिए।

दोस्तो, वैसे भी हमारे देश में तो इस शहद को सदियों से ही खांसी की तकलीफ़ को भगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन क्या करें, दोस्तो, हम लोगों की मानसिकता ही कुछ ऐसी बन चुकी है कि जब तक हमारी किसी अच्छी से अच्छी प्रामाणिक एवं सिद्ध बात पर अमेरिकी वैज्ञानिकों की स्टैंप का ठप्पा नहीं लगता , हम कहां मानते हैं.........Generally, it is said that for anything to become popular( even it could be an ancient Indian practice), it has to be routed through America…………….that’s exactly what is happening with our Yoga………यह योग भी हमें तब ही ज्यादा भाया जब इसे अमेरिकी चासनी में घोल कर योगा बना कर हमारे सामने पेश किया गया। ।

अपनी शहद वाली बात पर वापिस आते हुए यह बताना भी जरूरी है कि शहद को एक साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं देना चाहिए

अमेरिकी मैडीकल एसोशिएशन के इस अध्ययन को एक शुभ संकेत इस लिए भी माना जा रहा है क्योकि आजकल मां बाप अपने खांसी-जुकाम से जूझ रहे बच्चों के लिए कोई दूसरे रास्ते तलाश रहे हैं क्योंकि पिछले महीने ही अमेरिकी फूड एवं ड्रग एडमिनीस्ट्रेशन के एक पैनल ने यह महत्वपूर्ण सिफारिश की है कि छःसाल से कम बच्चों ( children under the age of 6) को अपने आप ही खांसी-जुकाम की दवाईयां देनी शुरू नहीं कर देना चाहिए क्योंकि ऐसी अधिकांश दवाईयों में डैक्स्ट्रोमिथार्फैन ही होती है।

इस अध्ययन में दो से पांच साल के बच्चों को एक टी-स्पून का आधा हिस्सा, छः से ग्यारह साल के बच्चों को एक टी-स्पून एवं बारह से अठारह साल के बच्चों को शहद के दो चम्मच दिए गए

नैट बंधुओं, इस बात का ज़रा ध्यान रखें कि यह सब बातें आम खांसी-जुकाम के लिए ठीक हैं, कहने से भाव यह नहीं कि अगर दूसरी तरह की खांसी वगैरह की तकलीफ है तो उस में शहद कारगर नहीं है, जी नहीं, शहद तो शहद है- उसने तो अपना काम करना ही है---लेकिन यह ध्यान भी रखना होगा कि कब एक बार डाक्टर से मिलना भी जरूरी होता है। सीधी सीधी सी बात है कि जब बच्चे को ज्यादा ही तकलीफ़ है, वह तेज़ बुखार से भी परेशान है, गले में बेहद दर्द भी है, और खांसी करने से पीली बलगम निकलती है-------ऐसे में अपने फैमिली डाक्टर से मिल लेना चाहिए क्योंकि कईं बार इस इंफैक्शन की नकेल कसने के लिए एँटीबायोटिक दवाईयां भी देनी पड़ सकती हैं।
मैंने इस चिकित्सा क्षेत्र में इन एंटीबायोटिक दवाईयों का बहुत ज्यादा मिसयूज़ देखा है और वह भी इस सादी खांसी-जुकाम की परेशानी के लिए ही------जिस में अकसर किसी एंटीबायोटिक दवाईयों की जरूरत होती ही नहीं है। बचपन में सुनी एक बात याद आ रही है -------If you take medicines for common cold, it will take seven days to cure it……..if you don’t take any medicines, it will be alright in a week.
So, the weather here is getting colder day by day………..take care……..
Enjoy all those seasonal delicacies that are offered to us during this Lohri festival……………………….HAPPY LOHRI !!

शनिवार, 12 जनवरी 2008

मोशन सिकनैस--- जब मतली कर देती है हालत पतली


दोस्तो, अकसर हम देखते हैं कि बसों, गाड़ियों एवं अन्य वाहनों में यात्रा कर रहे लोगों को अकसर बार-बार मतली होने लगती है और कईँ बार तो यह उल्टियां उन की यात्रा का सारा मज़ा ही किरकिरा कर देती है। दोस्तो, मैं तो स्वयं ही इस का भुक्त-भोगी हूं ---- बस में यात्रा करना मेरे लिए आज भी आफ़त से कम नहीं है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि बस में ही यात्रा के दौरान किसी को यह तकलीफ़ हो, किसी को मोटर-कार में अथवा किसी को गाड़ी में भी यह तकलीफ होना बिलकुल संभव है। तो फिर इस से बचें कैसे.....अथवा एक बार जब ये उल्टियों वगैरह का चक्कर शुरू हो ही जाए तो इस से कैसे निबटा जाए।

तो, दोस्तो, सुनिए इस मोशन सिकनैस से बचने का सब से कारगर तरीका है कि आप बस अथवा गाड़ी (जिस के दौरान भी आप को यह तकलीफ होती है) में चढ़ने से लगभग आधा-या पौन घंटा पहले एक टेबलेट पानी के साथ ले लें.....उस टेबलेट में प्रोमैथाज़ीन नाम की दवा रहती है और यह 25(पच्चीस मिलीग्राम) की टेबलेट आसानी से बाज़ार में मिलती है। इस का एक ब्रांड तो बेहद पापुलर है— लेकिन मैं इस ब्रांड का नाम लिखना यहां ठीक नहीं समझता। दस टेबलेट्स की स्ट्रिप लगभग पच्चीस रूपये की मिलती है। फिर भी आप किसी भी केमिस्ट से जब सफर में उल्टियों आदि से बचाव की टेबलेट मांगेगे तो अधिकतर आप को यही ब्रांड ही मिलेगा। वैसे तो ब्रांड कोई भी हो, लेकिन ध्यान बस यह रहे कि उस में साल्ट प्रोमैथाज़ीन ही हो। अगर आप एक टेबलेट सफ़र शुरू होने से आधा-पौन घंटा पहले पानी से ले लेते हैं तो आप अगले 6-8 घंटे के लिए निश्चिंत हो सकते हैं। दस साल से कम आयु के बच्चों को इस पच्चीस मिलीग्राम की आधी टेबलेट ही काफी है।

कुछ और बातों की तरफ ध्यान दीजिएगा-
  • ये दवाई तो तभी प्रभावी है अगर इसे सफर शुरू होने के आधा-पौना घंटे पहले ले लिया जाए।
  • जिन लोगों को मोशन-सिकनैस की शिकायत होती हो, वो ये टेबलेट तो ले लें, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखें कि इस को लेने से पहले पेट को परांठों से कहीं ठूंस मत लें। उन्हें तो सफर से पहले अथवा सफर में बिल्कुल हल्के फुल्के पेय-पदार्थ ( नहीं, नहीं, मैं कोल्ड-ड्रिंक्स की बात नहीं कर रहा) जैसे कि पतली लस्सी , नींबू-पानी, शर्बत, फलों का जूस इत्यादि ही लेना चाहिए....कोई एक-आध फल भी ले लें तो ठीक ही है। गलती से भी बच्चों के स्पाईसी स्नैक्स, भुजिया वगैरा न चख लें....हालत पतली से भी पतली हो जाएगी.....उसे क्या कहेंगे, पता नहीं।
  • अगर आप ने यह टेबलेट यात्रा शुरू होने के बाद मतली होने पर ली है तो इस का कोई इफैक्ट होता नहीं है।
  • वैसे तो दोस्तो इस बात का मोशन-सिकनैस से कोई सीधा संबंध है नहीं, लेकिन शायद मनोवैज्ञानिक रूप में ही सही, कुछ तो जरूर लगता है ......यात्रा से पहले अपना पेट साफ़ होने देना चाहिए।
चलो दोस्तो, अब छोड़ें इस बात को ---इस का एक छोटा सा सुखद पहलू यह भी है कि यह आस-पास की सीटों पर बैठे लोगों में अचानक सहानुभूति की एक भावना सी जगा देता है....झट से खिड़की वाली सीट खाली कर दी जाती है,कोई मेरे जैसे डाक्टर झट से कोई गोली निकाल लेता है, कोई मेरी मां जैसी अपनी चूरण की डिब्बी झट से निकाल लेती है, कोई वही दशकों से चली आ रही संतरे वाली खट्टी-मीठी गोली आप को देना चाहता है तो कोई अपने थैले में रखे हुए आधे नींबू के ऊपर नमक लगा कर थमा देता है .................How touching and how lovely !! This is real India where everybody is concerned about fellow passengers। Of course, except the ones who smoke in a crowded bus – these souls are least concerned about anything else – except ‘roasting their own lungs”----but, friends, this second hand smoke is a great contributing factor towards initiation of motion-sickness type symptoms in susceptible individuals like me….so, just take care and don’t hesitate to ask a smoker to stop it at least for the sake of his fellow passengers.

दोस्तो, परसों शाम को जब मैं भी बस की एक घंटे की यात्रा के दौरान सोनीपत जा रहा था, तो भरी बस में जब मैंने धुएं की छल्ले देखे तो मुझे पता लग गया कि आज मेरी खैर नहीं। कंडैक्टर को कहा कि यार, बंद करवाओ न ये बीड़ी......उस बेचारे ने भी अपनी लाचारी व्यक्त करते हुए यह कह दिया कि क्या करें, ये नहीं मानते, मैं तो खुद बीड़ी नहीं पीता, लेकिन क्या करें। खैर, अभी यह बात खत्म ही हुई होगी कि मेरा उल्टियों का सिलसिला शुरू हो गया......पर जब मैं दरवाजा खोल कर अपने आप को हल्का करने की कोशिश कर रहा था,तो कंडैक्टर ने एक मिनट के लिए बस रूकवा दी।

और, मैने एक बार फिर से सबक ले लिया है कि वो प्रो-मैथाज़िन की गोलियों की एक स्ट्रिप हमेशा घर में रखनी चाहिएं....क्या पता कब जरूरत पड़ जाए। अगली बार यात्रा के दौरान आप भी ध्यान रखिएगा.....take care, please !!

आप को आखिर कैमिस्ट से बिल मांगते हुए इतनी झिझक क्यों आती है ?


आप भी न्यूज़ मीडिया में अकसर नकली दवाईयों की खेप पकड़ने की खबरें देखते-सुनते रहते हैं , लेकिन अभी भी आप यही समझते हैं कि ये दवाईयों आप तक तो पहुंच ही नहीं सकतींतो, क्या आप नकली-असली में भेद जानने की काबलियत हासिल करना चाहते हैंअफसोस, दोस्त, मैं आप के जज़बात की कद्र करता हूं लेकिन मुझे दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आप कितनी भी कोशिशों के बावजूद ऐसा कर नहीं पाएंगेदोस्तो, हमें चिकित्सा के क्षेत्र में इतने साल हो गएयह काम अभी तक हम से भी नहीं हो सका !! तो फिर आप यही सोच रहे हैं कि आखिर करें तो करें क्या ---खाते रहे ऐसी वैसी दवाईया ? आखिर क्या करे आम बंदा ?-----दोस्तो, इस विषम समस्या से जूझने का केवल एक ही तरीका जो मैं समझ पाया हूं वह यह है कि आप कैमिस्ट से चाहे दस रूपये की भी दवाई लें,आप उस से बिल मांगने में कभी भी झिझक महसूस करें, प्लीज़आप यह समझ कर चलें कि जब आप बिल की मांग करेंगे तो आप को दवाई भी असली ही मिलेगी----नकली दवाई तो मिलने का फिर सवाल ही नहीं उठता,क्योंकि कैमिस्ट को उस बिल में दवाई के बारे में पूरा ब्यौरा देना पड़ता हैअगर हम इतनी सी सावधानी बरत लेंगे तो हमें पास की किसी बस्ती में बनी दवाईयों खरीदने से भी निजात मिल जाएगी


एक बात और जिस का विशेष ध्यान रखें वह यह है कि बसों वगैरह में जो सेल्स-मैन दर्द-निवारक दवाईयों के पत्ते बेचने आते हैं , उन से कभी भी ये दवाईयां खरीदेंचाहे ये सेल्समैन किसी IIM institute से नहीं निकले होते, फिर भी इन बंदों की salesmanship की दाद दिए मैं नहीं रह सकता----ठीक वही बात, दोस्तो, कि वे तो बिना बालों वाले को भी कंघी बेच डालें ! फिर भी मुझे,दोस्तो, ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा कि ये बलाग्स लिखने-पढ़ने वाले उन की बातों में सकते हैंलेकिन फिर भी मैं यह सब लिख रहा हूं ताकि आप के माध्यम से यह जानकारी आम इंसान तक पहुंच सके


दोस्तो, एक विचार जो मुझे कुछ दिनों से परेशान कर रहा है ,वह यह है कि कहीं आप को मेरी posts पढ़ कर यह तो नहीं लगता कि ये सब छोटी छोटी बातें जो मैं अकसर उठाता रहता हूं, यह तो सब को पहले ही से पता हैं..........दोस्तो, मेरा तो बस इतना सा तुच्छ प्रयास है कि ठीक है पता हैं तो अब इन को प्रैक्टीकल शेप दीजिए ----और अपने आसपास भी इन छोटी छोटी दिखने वाली बातों के प्रति जनचेतना पैदा करेंबस, दोस्तो मेरे पास यही छोटी छोटी बातें ही हैं-----जिस बंदे ने बस अपनी सारी ज़िंदगी इन छोटी-छोटी बातों के प्रचार-प्रसार के नाम लिख दी है, उस से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ??।


दोस्तो, आप से एक रिक्वेस्ट है कि कृपया मुझे अपनी मेल कर के अथवा अपनी टिप्पणी/ feedback में यह भी लिखें कि इस बलाग के माध्यम से किन मुद्दों को छूया जाएवैसे तो मैं यह स्पष्ट कर ही दूं कि मैं कोई ऐसा तीसमार खां भी नहीं हूं---बस जो दो बातें पता हैं उन्हें आप सब से शेयर कर के अच्छा लगता है, बस और कुछ नहींबाकी सब बातें तो मैंने आप सब से सीखनी हैं..................obviously in this wonderful platform of blogging…..where we understand, share and learn from each other’s wisdom and experience.

आप को आखिर कैमिस्ट से बिल मांगते हुए इतनी झिझक क्यों आती है ?


आप भी न्यूज़ मीडिया में अकसर नकली दवाईयों की खेप पकड़ने की खबरें देखते-सुनते रहते हैं , लेकिन अभी भी आप यही समझते हैं कि ये दवाईयों आप तक तो पहुंच ही नहीं सकतींतो, क्या आप नकली-असली में भेद जानने की काबलियत हासिल करना चाहते हैंअफसोस, दोस्त, मैं आप के जज़बात की कद्र करता हूं लेकिन मुझे दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आप कितनी भी कोशिशों के बावजूद ऐसा कर नहीं पाएंगेदोस्तो, हमें चिकित्सा के क्षेत्र में इतने साल हो गएयह काम अभी तक हम से भी नहीं हो सका !! तो फिर आप यही सोच रहे हैं कि आखिर करें तो करें क्या ---खाते रहे ऐसी वैसी दवाईया ? आखिर क्या करे आम बंदा ?-----दोस्तो, इस विषम समस्या से जूझने का केवल एक ही तरीका जो मैं समझ पाया हूं वह यह है कि आप कैमिस्ट से चाहे दस रूपये की भी दवाई लें,आप उस से बिल मांगने में कभी भी झिझक महसूस करें, प्लीज़आप यह समझ कर चलें कि जब आप बिल की मांग करेंगे तो आप को दवाई भी असली ही मिलेगी----नकली दवाई तो मिलने का फिर सवाल ही नहीं उठता,क्योंकि कैमिस्ट को उस बिल में दवाई के बारे में पूरा ब्यौरा देना पड़ता हैअगर हम इतनी सी सावधानी बरत लेंगे तो हमें पास की किसी बस्ती में बनी दवाईयों खरीदने से भी निजात मिल जाएगी


एक बात और जिस का विशेष ध्यान रखें वह यह है कि बसों वगैरह में जो सेल्स-मैन दर्द-निवारक दवाईयों के पत्ते बेचने आते हैं , उन से कभी भी ये दवाईयां खरीदेंचाहे ये सेल्समैन किसी IIM institute से नहीं निकले होते, फिर भी इन बंदों की salesmanship की दाद दिए मैं नहीं रह सकता----ठीक वही बात, दोस्तो, कि वे तो बिना बालों वाले को भी कंघी बेच डालें ! फिर भी मुझे,दोस्तो, ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा कि ये बलाग्स लिखने-पढ़ने वाले उन की बातों में सकते हैंलेकिन फिर भी मैं यह सब लिख रहा हूं ताकि आप के माध्यम से यह जानकारी आम इंसान तक पहुंच सके


दोस्तो, एक विचार जो मुझे कुछ दिनों से परेशान कर रहा है ,वह यह है कि कहीं आप को मेरी posts पढ़ कर यह तो नहीं लगता कि ये सब छोटी छोटी बातें जो मैं अकसर उठाता रहता हूं, यह तो सब को पहले ही से पता हैं..........दोस्तो, मेरा तो बस इतना सा तुच्छ प्रयास है कि ठीक है पता हैं तो अब इन को प्रैक्टीकल शेप दीजिए ----और अपने आसपास भी इन छोटी छोटी दिखने वाली बातों के प्रति जनचेतना पैदा करेंबस, दोस्तो मेरे पास यही छोटी छोटी बातें ही हैं-----जिस बंदे ने बस अपनी सारी ज़िंदगी इन छोटी-छोटी बातों के प्रचार-प्रसार के नाम लिख दी है, उस से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ??।


दोस्तो, आप से एक रिक्वेस्ट है कि कृपया मुझे अपनी मेल कर के अथवा अपनी टिप्पणी/ feedback में यह भी लिखें कि इस बलाग के माध्यम से किन मुद्दों को छूया जाएवैसे तो मैं यह स्पष्ट कर ही दूं कि मैं कोई ऐसा तीसमार खां भी नहीं हूं---बस जो दो बातें पता हैं उन्हें आप सब से शेयर कर के अच्छा लगता है, बस और कुछ नहींबाकी सब बातें तो मैंने आप सब से सीखनी हैं..................obviously in this wonderful platform of blogging…..where we understand, share and learn from each other’s wisdom and experience.

1 comments:

Neeraj Rohilla said...

डाक्टर साहब,
आपका प्रयास सराहनीय, आप अपने प्रयासों को जारी रखिये । लोग टिप्पणी भले ही न करें लेकिन आपके ब्लाग को पढ अवश्य रहे होंगे । दूसरे, आपका लिखा हुआ अगर कोई ६ महीने या एक साल बाद भी पढेगा तो भी उसे फ़ायदा ही होगा । मैं आपसे निम्न विषयों पर लिखने की गुजारिश करूँगा ।

१) शराब पीना: लेकिन मैं इस विषय पर आपका लेख सामाजिक परिपेक्ष में नहीं बल्कि ठेठ चिकित्सा विज्ञान की नजर से जानना चाहूँगा ।

२) दमे/अस्थमा की बीमारी: मेरे परिवार के एक सदस्य इस बीमारी से पीडित हैं इसलिये मैं इस विषय पर और जानकारी चाहूँगा ।

साभार,

गुरुवार, 10 जनवरी 2008

स्वप्नदोष जब कोई दोष है ही नहीं तो !!

दोस्तो, क्या आपने यौवन की दहलीज़ पर पांव रख रहे अपने बेटे की आंखों में एक अजीब-सी बेचैनी का तूफान देख कर कभी उसे यह कहने की जरूरत महसूस की है कि स्वप्नदोष (वही जिसे इंगलिश में हम लोग Nightfall भी कह दिया करते हैं)कोई दोष-वोष नहीं है, बस तुम इस के बारे में बिलकुल सोचा मत करो, सब कुछ समय के साथ ठीक हो जाएगा। Why don't you tell him that these 'night falls' are so common and almost a natural phenomenon !! उसे क्यों नहीं हम पूरी तरह एक बात समझा देते कि देखो, यह सिर्फ तुम्हारे साथ ही नहीं हो रहा, ऐसा अकसर इस उम्र में होता ही है, जब मैं तुम्हारी उम्र का था,तो मैं भी इस अवस्था से गुज़र चुका हूंदोस्तो, अपनी उदाहरण दे कर बताना बेहद जरूरी है----क्योंकि तब आप का बेटा आप से बेहतर रिलेट करने लगता है

मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई कि हम इतना पढ़े-लिखे हुए लोग भी इस मामले में क्यों चूक जाते हैं। क्यों लेते हैं हम कुछ चीज़ों को ---just taken for granted !!

जी नहीं, यह बात बहुत महत्वपूर्ण है जो कि आप ही अपने बेटे को दुनिया में सब से अच्छे ढंग से बता सकते हैं, दूसरा कोई नहीं ----क्योंकि वह आप पर पूरा भरोसा करता है। शायद हमारा समय कुछ और था---हम लोगों की अपने बड़ों के साथ कहां इतनी ओपननैस थी, हम लोग ---शायद आप को भी कुछ कुछ याद होगा--तो बस यह सब बातें सोच सोच कर खुद मन ही मन कईं साल परेशान रहते थे। अकसर युवावस्था की दहलीज पर खड़े ये बच्चे अपने शरीर में होने वाले विभिन्न तरह के बदलाव( night-fall भी उन्हीं में से एक है, शेष के बारे में भी आप और हम अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन उस बच्चे से भी उस के मानसिक स्तर के अनुसार बात तो कर लीजिए) देख कर बौखला से जाते हैं कि पता नहीं मेरे साथ ही यह सब क्यों हो रहा है।

और, ये जो खानदानी नीम-हकीम वगैरह जगह जगह बैठे हुए हैं ,ये तो इस समस्या (वैसे तो यह कोई समस्या है ही नहीं,अगर एक बार समझ में आ जाए तो)--चलिए, समस्या कहते ही नहीं, मुद्दा कहते हैं...अब तो ठीक है........वे इस मुद्दे को अपने इश्तिहारों से और भी कंप्लीकेट कर के रखे हुए हैं। इतने अजीब तरह से अपनी मशहूरी करते हैं और अपने कुछ इस तरह के विज्ञापन छपवा कर इतनी strategic जगहों पर इन्हें चिपका देते हैं या बंटवा देते हैं कि टीन-एजर्रस का इन की दिमाग खराब करने वाली भाषा के जाल से बचना मुश्किल हो जाता है। और देर-सवेर यह निर्बोध किशोर इन के चंगुल में फंस जाते हैं। मेरा एक मित्र मुझे बता रहा था कि उस के पास एक व्यक्ति अपने 19-20 साल के बेटे को ले कर आया जो कि इन झोलाछाप नीम-हकीमों के चक्कर में फंस कर अपने योनअंगों की छोटीमोटी इंफैक्शन( और वह भी वास्तविक कम, काल्पनिक ज्यादा) से निजात पाने के लिए70-80 हज़ार रूपये धीरे-धीरे मां-बाप से छुप कर इस क्वैक को दे चुका था---मेरा वह मित्र skin and V.D specialist है, वह कह रहा था कि उसे केवल कुछ दिनों के लिए दवाईयां दीं, थोड़ी साफ-सफाई के बारे में अच्छी तरह से बता दिया जिस से वह बिल्कुल ठीक हो गया।

हां,तो दोस्तो, अपनी बात हो रही थी--स्वपन दोष की.......सीधी सी बात है कि दोस्तो जब कोई मटकी भर जाएगी तो थोड़ी छलकेगी ही --- वही बात यहां है कि किशोरावस्था के दौरान जब वीर्य की मटकी शरीर में भर जाती है तो वह कभी कभी छलक जाती है......that's all ! और इन बच्चों के लिए यह इतना बडा़ मुद्दा बना रहता है--- इतना बडा़ कि वे अपने कैरियर के हिसाब से इतने महत्वपूर्ण वर्षों में इस छोटी की वजह के कारण कईं बार पूरी तरह अपनी पढ़ाई में कंसैनटरेट ही नहीं कर पाते

हम कईं बार यह भी समझ लेते हैं कि बच्चे आज कल इतने एडवांस हैं, वे सब बातें जानते ही होंगे। लेकिन शायद नहीं...अपने दोस्तों से तो उन्हें भ्रामक या और भी अधकचरी जानकारी ही मिलेगी जिससे वे और भी उलझ कर रह जाएंगे। इंटरनैट पर सर्च कर के बहुत कुछ इस विषय से संबंधित भ्रांतियां उखाड़ फैंकने के लिए उन को मिल सकता है, लेकिन आप का बेटा तो बस आप के ऊपर ही सारे जहां से ज्यादा विश्वास करता है। इसलिए आप के द्वारा की गई बात बेहद कारगार सिद्ध होगी। आप एक बार इस विषय के बारे में संवाद छेड़ कर तो देखिए.........लेकिन यह सब जल्दी ही कर लीजिए। अभी भी कोई ब्लाक रास्ते में आ रहा है तो कम से कम मेरी इस पोस्टिंग को उसे पढ़वा तो दें, उसे तसल्ली सी हो जाएगी।

मेरा भी एक टीनएज बेटा है, उसे मैं यह बात कईं बार खुले तौर पर समझा चुका हूं....और कुछ कुछ अंतराल के बाद ऐसे ही थोड़ी दोहरा सी देता हूं। कईं बार जब मैं जब उसे चिंता में डूबा देखता हूं , तो उस से पूछता हूं कि क्या उसे ये बातें तो परेशान नहीं कर रहीं----तो वह तुरंत जवाब दे देता है----पापा, उस के बारे में तो आप कोई टेंशन न रखा करो, मैं इन सब बातों को समझता हूं, जानता हूं, मुझे ऐसा वैसा कोई फिक्र नहीं है। दोस्तो, यह बात एक ही बार कहने से नहीं चलेगा, समय समय उस की मानसिक स्थिति के अनुसार इस बात को बड़ी इंफारमल तरीके से दोहरा देना बेहद जरूरी है।

साथ साथ इन बच्चों को यह भी संदेश देना होगा कि सात्विक खाना खाएं, जंक फूड से दूरी बनाए रखें, पान-मसालों, गुटखों को पास न फटकने दें, रात को खाना सोने से कम से कम दो घंटे पहले खा लिया करें, योगाभ्यास(प्राणायाम् भी) एवं ध्यान किया करें और सब से जरूरी प्रार्थना किया करें----इस में बेहद शक्ति है। इस के इलावा कोई और भी समस्या है तो क्वालीफाईड डाक्टर हैं , उन की सलाह लेने में बेहतरी है।
तो क्या मैं यह इत्मीनान कर लूं कि आज शाम को आप अपने बेटे के दिल को थोड़ा टटोलेंगे ?? ....लेकिन प्लीज़ ये बातें करिए अकेले में ही।
So, good luck !!---Just go ahead !!

स्वपन दोष जब कोई दोष है ही नहीं तो !!

स्वप्नदोष जब कोई दोष है ही नहीं तो !!

दोस्तो, क्या आपने यौवन की दहलीज़ पर पांव रख रहे अपने बेटे की आंखों में एक अजीब-सी बेचैनी का तूफान देख कर कभी उसे यह कहने की जरूरत महसूस की है कि स्वप्नदोष (वही जिसे इंगलिश में हम लोग Nightfall भी कह दिया करते हैं)कोई दोष-वोष नहीं है, बस तुम इस के बारे में बिलकुल सोचा मत करो, सब कुछ समय के साथ ठीक हो जाएगा। Why don't you tell him that these 'night falls' are so common and almost a natural phenomenon !! उसे क्यों नहीं हम पूरी तरह एक बात समझा देते कि देखो, यह सिर्फ तुम्हारे साथ ही नहीं हो रहा, ऐसा अकसर इस उम्र में होता ही है, जब मैं तुम्हारी उम्र का था,तो मैं भी इस अवस्था से गुज़र चुका हूं। दोस्तो, अपनी उदाहरण दे कर बताना बेहद जरूरी है----क्योंकि तब आप का बेटा आप से बेहतर रिलेट करने लगता है।

मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई कि हम इतना पढ़े-लिखे हुए लोग भी इस मामले में क्यों चूक जाते हैं। क्यों लेते हैं हम कुछ चीज़ों को ---just taken for granted !!

जी नहीं, यह बात बहुत महत्वपूर्ण है जो कि आप ही अपने बेटे को दुनिया में सब से अच्छे ढंग से बता सकते हैं, दूसरा कोई नहीं ----क्योंकि वह आप पर पूरा भरोसा करता है। शायद हमारा समय कुछ और था---हम लोगों की अपने बड़ों के साथ कहां इतनी ओपननैस थी, हम लोग ---शायद आप को भी कुछ कुछ याद होगा--तो बस यह सब बातें सोच सोच कर खुद मन ही मन कईं साल परेशान रहते थे। अकसर युवावस्था की दहलीज पर खड़े ये बच्चे अपने शरीर में होने वाले विभिन्न तरह के बदलाव( night-fall भी उन्हीं में से एक है, शेष के बारे में भी आप और हम अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन उस बच्चे से भी उस के मानसिक स्तर के अनुसार बात तो कर लीजिए) देख कर बौखला से जाते हैं कि पता नहीं मेरे साथ ही यह सब क्यों हो रहा है।

और, ये जो खानदानी नीम-हकीम वगैरह जगह जगह बैठे हुए हैं ,ये तो इस समस्या (वैसे तो यह कोई समस्या है ही नहीं,अगर एक बार समझ में आ जाए तो)--चलिए, समस्या कहते ही नहीं, मुद्दा कहते हैं...अब तो ठीक है........वे इस मुद्दे को अपने इश्तिहारों से और भी कंप्लीकेट कर के रखे हुए हैं। इतने अजीब तरह से अपनी मशहूरी करते हैं और अपने कुछ इस तरह के विज्ञापन छपवा कर इतनी strategic जगहों पर इन्हें चिपका देते हैं या बंटवा देते हैं कि टीन-एजर्रस का इन की दिमाग खराब करने वाली भाषा के जाल से बचना मुश्किल हो जाता है। और देर-सवेर यह निर्बोध किशोर इन के चंगुल में फंस जाते हैं। मेरा एक मित्र मुझे बता रहा था कि उस के पास एक व्यक्ति अपने 19-20 साल के बेटे को ले कर आया जो कि इन झोलाछाप नीम-हकीमों के चक्कर में फंस कर अपने योनअंगों की छोटीमोटी इंफैक्शन( और वह भी वास्तविक कम, काल्पनिक ज्यादा) से निजात पाने के लिए70-80 हज़ार रूपये धीरे-धीरे मां-बाप से छुप कर इस क्वैक को दे चुका था---मेरा वह मित्र skin and V.D specialist है, वह कह रहा था कि उसे केवल कुछ दिनों के लिए दवाईयां दीं, थोड़ी साफ-सफाई के बारे में अच्छी तरह से बता दिया जिस से वह बिल्कुल ठीक हो गया।

हां,तो दोस्तो, अपनी बात हो रही थी--स्वपन दोष की.......सीधी सी बात है कि दोस्तो जब कोई मटकी भर जाएगी तो थोड़ी छलकेगी ही न--- वही बात यहां है कि किशोरावस्था के दौरान जब वीर्य की मटकी शरीर में भर जाती है तो वह कभी कभी छलक जाती है......that's all ! और इन बच्चों के लिए यह इतना बडा़ मुद्दा बना रहता है--- इतना बडा़ कि वे अपने कैरियर के हिसाब से इतने महत्वपूर्ण वर्षों में इस छोटी की वजह के कारण कईं बार पूरी तरह अपनी पढ़ाई में कंसैनटरेट ही नहीं कर पाते।

हम कईं बार यह भी समझ लेते हैं कि बच्चे आज कल इतने एडवांस हैं, वे सब बातें जानते ही होंगे। लेकिन शायद नहीं...अपने दोस्तों से तो उन्हें भ्रामक या और भी अधकचरी जानकारी ही मिलेगी जिससे वे और भी उलझ कर रह जाएंगे। इंटरनैट पर सर्च कर के बहुत कुछ इस विषय से संबंधित भ्रांतियां उखाड़ फैंकने के लिए उन को मिल सकता है, लेकिन आप का बेटा तो बस आप के ऊपर ही सारे जहां से ज्यादा विश्वास करता है। इसलिए आप के द्वारा की गई बात बेहद कारगार सिद्ध होगी। आप एक बार इस विषय के बारे में संवाद छेड़ कर तो देखिए.........लेकिन यह सब जल्दी ही कर लीजिए। अभी भी कोई ब्लाक रास्ते में आ रहा है तो कम से कम मेरी इस पोस्टिंग को उसे पढ़वा तो दें, उसे तसल्ली सी हो जाएगी।

मेरा भी एक टीनएज बेटा है, उसे मैं यह बात कईं बार खुले तौर पर समझा चुका हूं....और कुछ कुछ अंतराल के बाद ऐसे ही थोड़ी दोहरा सी देता हूं। कईं बार जब मैं जब उसे चिंता में डूबा देखता हूं , तो उस से पूछता हूं कि क्या उसे ये बातें तो परेशान नहीं कर रहीं----तो वह तुरंत जवाब दे देता है----पापा, उस के बारे में तो आप कोई टेंशन न रखा करो, मैं इन सब बातों को समझता हूं, जानता हूं, मुझे ऐसा वैसा कोई फिक्र नहीं है। दोस्तो, यह बात एक ही बार कहने से नहीं चलेगा, समय समय उस की मानसिक स्थिति के अनुसार इस बात को बड़ी इंफारमल तरीके से दोहरा देना बेहद जरूरी है।

साथ साथ इन बच्चों को यह भी संदेश देना होगा कि सात्विक खाना खाएं, जंक फूड से दूरी बनाए रखें, पान-मसालों, गुटखों को पास न फटकने दें, रात को खाना सोने से कम से कम दो घंटे पहले खा लिया करें, योगाभ्यास(प्राणायाम् भी) एवं ध्यान किया करें और सब से जरूरी प्रार्थना किया करें----इस में बेहद शक्ति है। इस के इलावा कोई और भी समस्या है तो क्वालीफाईड डाक्टर हैं , उन की सलाह लेने में बेहतरी है।
तो क्या मैं यह इत्मीनान कर लूं कि आज शाम को आप अपने बेटे के दिल को थोड़ा टटोलेंगे ?? ....लेकिन प्लीज़ ये बातें करिए अकेले में ही।
So, good luck !!---Just go ahead !!
Posted by Dr.Parveen Chopra at 8:53 AM
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pankaj said...

aap ne iss bare me jo jankaridi hai vo bahot achi hai
March 25, 2008 1:17 PM

स्वप्नदोष जब कोई दोष है ही नहीं तो !!


दोस्तो, क्या आपने यौवन की दहलीज़ पर पांव रख रहे अपने बेटे की आंखों में एक अजीब-सी बेचैनी का तूफान देख कर कभी उसे यह कहने की जरूरत महसूस की है कि स्वप्नदोष (वही जिसे इंगलिश में हम लोग Nightfall भी कह दिया करते हैं)कोई दोष-वोष नहीं है, बस तुम इस के बारे में बिलकुल सोचा मत करो, सब कुछ समय के साथ ठीक हो जाएगा। Why don't you tell him that these 'night falls' are so common and almost a natural phenomenon !! उसे क्यों नहीं हम पूरी तरह एक बात समझा देते कि देखो, यह सिर्फ तुम्हारे साथ ही नहीं हो रहा, ऐसा अकसर इस उम्र में होता ही है, जब मैं तुम्हारी उम्र का था,तो मैं भी इस अवस्था से गुज़र चुका हूंदोस्तो, अपनी उदाहरण दे कर बताना बेहद जरूरी है----क्योंकि तब आप का बेटा आप से बेहतर रिलेट करने लगता है

मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई कि हम इतना पढ़े-लिखे हुए लोग भी इस मामले में क्यों चूक जाते हैं। क्यों लेते हैं हम कुछ चीज़ों को ---just taken for granted !!

जी नहीं, यह बात बहुत महत्वपूर्ण है जो कि आप ही अपने बेटे को दुनिया में सब से अच्छे ढंग से बता सकते हैं, दूसरा कोई नहीं ----क्योंकि वह आप पर पूरा भरोसा करता है। शायद हमारा समय कुछ और था---हम लोगों की अपने बड़ों के साथ कहां इतनी ओपननैस थी, हम लोग ---शायद आप को भी कुछ कुछ याद होगा--तो बस यह सब बातें सोच सोच कर खुद मन ही मन कईं साल परेशान रहते थे। अकसर युवावस्था की दहलीज पर खड़े ये बच्चे अपने शरीर में होने वाले विभिन्न तरह के बदलाव( night-fall भी उन्हीं में से एक है, शेष के बारे में भी आप और हम अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन उस बच्चे से भी उस के मानसिक स्तर के अनुसार बात तो कर लीजिए) देख कर बौखला से जाते हैं कि पता नहीं मेरे साथ ही यह सब क्यों हो रहा है।

और, ये जो खानदानी नीम-हकीम वगैरह जगह जगह बैठे हुए हैं ,ये तो इस समस्या (वैसे तो यह कोई समस्या है ही नहीं,अगर एक बार समझ में आ जाए तो)--चलिए, समस्या कहते ही नहीं, मुद्दा कहते हैं...अब तो ठीक है........वे इस मुद्दे को अपने इश्तिहारों से और भी कंप्लीकेट कर के रखे हुए हैं। इतने अजीब तरह से अपनी मशहूरी करते हैं और अपने कुछ इस तरह के विज्ञापन छपवा कर इतनी strategic जगहों पर इन्हें चिपका देते हैं या बंटवा देते हैं कि टीन-एजर्रस का इन की दिमाग खराब करने वाली भाषा के जाल से बचना मुश्किल हो जाता है। और देर-सवेर यह निर्बोध किशोर इन के चंगुल में फंस जाते हैं। मेरा एक मित्र मुझे बता रहा था कि उस के पास एक व्यक्ति अपने 19-20 साल के बेटे को ले कर आया जो कि इन झोलाछाप नीम-हकीमों के चक्कर में फंस कर अपने योनअंगों की छोटीमोटी इंफैक्शन( और वह भी वास्तविक कम, काल्पनिक ज्यादा) से निजात पाने के लिए70-80 हज़ार रूपये धीरे-धीरे मां-बाप से छुप कर इस क्वैक को दे चुका था---मेरा वह मित्र skin and V.D specialist है, वह कह रहा था कि उसे केवल कुछ दिनों के लिए दवाईयां दीं, थोड़ी साफ-सफाई के बारे में अच्छी तरह से बता दिया जिस से वह बिल्कुल ठीक हो गया।

हां,तो दोस्तो, अपनी बात हो रही थी--स्वपन दोष की.......सीधी सी बात है कि दोस्तो जब कोई मटकी भर जाएगी तो थोड़ी छलकेगी ही --- वही बात यहां है कि किशोरावस्था के दौरान जब वीर्य की मटकी शरीर में भर जाती है तो वह कभी कभी छलक जाती है......that's all ! और इन बच्चों के लिए यह इतना बडा़ मुद्दा बना रहता है--- इतना बडा़ कि वे अपने कैरियर के हिसाब से इतने महत्वपूर्ण वर्षों में इस छोटी की वजह के कारण कईं बार पूरी तरह अपनी पढ़ाई में कंसैनटरेट ही नहीं कर पाते

हम कईं बार यह भी समझ लेते हैं कि बच्चे आज कल इतने एडवांस हैं, वे सब बातें जानते ही होंगे। लेकिन शायद नहीं...अपने दोस्तों से तो उन्हें भ्रामक या और भी अधकचरी जानकारी ही मिलेगी जिससे वे और भी उलझ कर रह जाएंगे। इंटरनैट पर सर्च कर के बहुत कुछ इस विषय से संबंधित भ्रांतियां उखाड़ फैंकने के लिए उन को मिल सकता है, लेकिन आप का बेटा तो बस आप के ऊपर ही सारे जहां से ज्यादा विश्वास करता है। इसलिए आप के द्वारा की गई बात बेहद कारगार सिद्ध होगी। आप एक बार इस विषय के बारे में संवाद छेड़ कर तो देखिए.........लेकिन यह सब जल्दी ही कर लीजिए। अभी भी कोई ब्लाक रास्ते में आ रहा है तो कम से कम मेरी इस पोस्टिंग को उसे पढ़वा तो दें, उसे तसल्ली सी हो जाएगी।

मेरा भी एक टीनएज बेटा है, उसे मैं यह बात कईं बार खुले तौर पर समझा चुका हूं....और कुछ कुछ अंतराल के बाद ऐसे ही थोड़ी दोहरा सी देता हूं। कईं बार जब मैं जब उसे चिंता में डूबा देखता हूं , तो उस से पूछता हूं कि क्या उसे ये बातें तो परेशान नहीं कर रहीं----तो वह तुरंत जवाब दे देता है----पापा, उस के बारे में तो आप कोई टेंशन न रखा करो, मैं इन सब बातों को समझता हूं, जानता हूं, मुझे ऐसा वैसा कोई फिक्र नहीं है। दोस्तो, यह बात एक ही बार कहने से नहीं चलेगा, समय समय उस की मानसिक स्थिति के अनुसार इस बात को बड़ी इंफारमल तरीके से दोहरा देना बेहद जरूरी है।

साथ साथ इन बच्चों को यह भी संदेश देना होगा कि सात्विक खाना खाएं, जंक फूड से दूरी बनाए रखें, पान-मसालों, गुटखों को पास न फटकने दें, रात को खाना सोने से कम से कम दो घंटे पहले खा लिया करें, योगाभ्यास(प्राणायाम् भी) एवं ध्यान किया करें और सब से जरूरी प्रार्थना किया करें----इस में बेहद शक्ति है। इस के इलावा कोई और भी समस्या है तो क्वालीफाईड डाक्टर हैं , उन की सलाह लेने में बेहतरी है।
तो क्या मैं यह इत्मीनान कर लूं कि आज शाम को आप अपने बेटे के दिल को थोड़ा टटोलेंगे ?? ....लेकिन प्लीज़ ये बातें करिए अकेले में ही।
So, good luck !!---Just go ahead !!

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pankaj said...

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मंगलवार, 8 जनवरी 2008

जटरोफा के बीजों से सावधान रहिए !

जटरोफा कुरकास(जंगली अरंडी) सारे भारतवर्ष में पाया जाने वाला एक आम पौधा है। जटरोफा के बीजों में 40प्रतिशत तक तेल होता है। इससे बायोडीज़ल प्राप्त करने हेतु सैंकड़ों प्रोजेक्ट चल रहे हैं। जटरोपा के बीजों से प्राप्त तेल मनुष्य के खाने योग्य नही होता।

जटरोपा के विषैले गुण इस में मौजूद कुरसिन एवं सायनिक एसिड नामक टाक्स-एल्ब्यूमिन के कारण होते हैं। वैसे तो पौधे के सभी भाग विषैले होते हैं लेकिन इन के बीजों में इस की सर्वाधिक मात्रा होती है। इन बीजों को खा लेने के पश्चात शरीर में होने वाले दुःप्रभाव मूल रूप से पेट एवं आंतों की सूजन के कारण उत्पन्न होते हैं।

गलती से जटरोफा के बीज खा लेने की वजह से बच्चों में इस तरह के हादसे आए दिन देखने-सुनने को मिलते रहते हैं। इन आकर्षक बीजों को देख कर बच्चे अनायास ही इन्हें खाने को उतावले हो उठते हैं।

इस के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि इस पौधे के कितने बीज खाने पर विषैलेपन के लक्षण पैदा होते हैं। कुछ बच्चों की तो सिर्फ तीन बीज खा लेने ही से हालत पतली हो जाती है, जब कि कुछ अन्य केसों में पचास बीज खा लेने पर भी बस छोटे-मोटे लक्षण ही पैदा हुए। धारणा यह भी है कि इन बीजों को भून लेने से विष खत्म हो जाता है, लेकिन भुने हुए बीज खाने पर भी बड़े हादसे देखने में आये हैं।

उल्टियां आना एवं बिल्कुल पानी जैसे पतले दस्त लग जाना इन बीजों से उत्पन्न विष के मुख्य लक्षण हैं। पेट-दर्द, सिर-दर्द, बुखार एवं गले में जलन होना इस के अन्य लक्षण हैं। इस विष से प्रभावित होने पर अकसर बहुत ज्यादा प्यास लगती है। इस के विष से मृत्यु की संभावना बहुत ही कम होती है।

क्या करें ..........
बेशक जटरोफा बीज में मौजूद विष को काटने वाली कोई दवा (एंटीडोट) नहीं है, फिर भी अगर बच्चे ने इन बीजों को खा ही लिया है तो आप घबराएं नहीं।
बच्चे को किसी चिकित्सक के पास तुरंत ले कर जाएं। अगर बच्चा सचेत है, पानी निगल सकता है तो चिकित्सक के पास जाने तक भी उसे पेय पदार्थ (दूध या पानी) पिलाते रहें जिस से कि पेट में मौजूद विष हल्का पड़ जाए। चिकित्सक के पास जाने के पश्चात् अगर वह जरूरी समझते हैं तो अन्य दवाईयों के साथ-साथ वे नली द्वारा (IV fluids)कुछ दवाईयां शुरू कर देते हैं। इस अवस्था का इलाज सामान्यतयः बहुत सरल है। 6घंटे के भीतर अकसर बच्चे सामान्य हो जाते हैं।

रोकथाम---------------बच्चों को इन बीजों के बारे में पहले से बता कर रखें। उन्हें किसी भी पौधे को अथवा बीजों को ऐसे ही खेल-खेल में खा लेने के प्रति सचेत करें। स्कूल की किताबों में इन पौधों का विस्तृत वर्णन होना चाहिए। अध्यापकों को भी कक्षाओं में बच्चों को इन बीजों से संबंधित जानकारी देते रहना चाहिए।

खुद मोल खरीदा जाने वाला एक शैतान ...


कुछ समय पहले एक 17वर्षीय किशोर से मिलने का मौका मिला जो अपने पिता के साथ मेरे पास मुंह के छालों के इलाज के लिए आया था। उस के मुंह के अंदर एक नज़र मारने मात्र से पता चला कि उस के मुंह के अंदर एक गाल पर सफेद, झुर्रीदार दाग एवं एक ज़ख्म है। उसे इस के बारे में न तो कुछ पता ही था और न ही उसे इस की कोई तकलीफ ही थी। सीधी सी बात है कि जब उसे यह ही नहीं पता था कि गाल के ऊपर ऐसा-वैसा कुछ है तो कितने समय से यह है, यह पूछने का तो सवाल ही न उठता था। दोस्तो, इस अवस्था तो ओरल-ल्यूकोप्लेकिया (oral leukoplakia) कहा जाता है ----यह मुंह के कैंसर की कैंसर पूर्व-अवस्था (प्री-कैंसर) है। अगर किसी भी रूप में तंबाकू का उपभोग इस अवस्था में भी छोड़ दिया जाए तो स्थिति के आसानी से काबू आने के काफी चांस होते हैं। लेकिन सोचने वाली बात तो यही है दोस्तो कि तंबाकू छोड़ने के लिए इस अवस्था में पहुंचने तक आखिर इंतजार ही क्यों किया जाए ?--- इस अवस्था में पहुंचने पर भी अगर तंबाकू, गुटखे, पानमसाले एवं पान से मोह बना रहे तो यह प्री-कैंसर की अवस्था मुख कैंसर का रूप भी धारण कर सकती है।

हां, तो मैं उस 17वर्षीय लड़के की बात कर रहा था, लेकिन वह लड़का तो यह मानने को तैयार ही न था कि उसने कभी भी तंबाकू को किसी भी रूप में इस्तेमाल किया है। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि ल्यूकोप्लेकिया की यह अवस्था सामान्यतयः इन खतरनाक उत्पादों के सेवन के बिना तो हो ही नहीं सकती। बार-बार एक ही बात पूछने पर लड़के ने आखिर बता ही दिया कि वह पिछले पांच वर्षों से तंबाकू-चूने का सेवन कर रहा है। उसने झट से अपनी जेब से तंबाकू-चूने का पाउच भी निकाल कर बाहर मेरी टेबल पर रख दिया।

शायद यह पढ़ कर आप भी सकते में आ गये होंगे लेकिन चौंकाने वाला कड़वा सत्य यही है कि अब छोटी उम्र में भी इस तरह की समस्या एक विकराल रूप धारण किए जा रही है। किशोरावस्था में ही इन रोगों की प्रारंभिक अवस्थाएं दिखना चिकित्सकों के लिए दुःखद चुनौती तो है , इस के साथ ही साथ समाज के लिए भी यह खतरे की घंटी है।

पिछले लगभग दो दशकों से मुंह के कैंसर से ग्रस्त रोगियों को अकाल मृत्यु का ग्रास बनते देख रहा हूं। हमारे देश में मुंह के कैंसर के रोगियों की संख्या बहुत ज्यादा है। इन में से अधिकांश के पीछे एक ही शैतान है---विलेन नं1---अर्थात् किसी भी रूप में तंबाकू का उपयोग। यह अकसर देखने में आया है कि लोग अकसर सिगरेट को ही ज्यादा बुरा समझते हैं जब कि वास्तविकता यह है कि स्मोकलैस तंबाकू( जिस के कश तो न खींचे जाएं, लेकिन जिसे चबाया जाए, गाल के अंदर रख कर चूसा जाए, गुटखा, ऩसवार, मसूड़ों के ऊपर लगाए जाने वाले तंबाकू वाले मंजन....लिस्ट काफी लंबी है) के भी सभी रूप बेहद घातक हैं।

आप इस विडंबना की तरफ भी गौर कीजिए - शरीर के अंदरूनी हिस्सों की तुलना में मसूड़े, गाल के अंदरूनी हिस्से, होंठ, जिह्वा, तालू ....ये सब शरीर के वे भाग हैं जिन में होने वाले किसी भी घाव अथवा बदलाव को बड़ी आसानी से प्रारंभिक अवस्था में ही देखा जा सकता है, फिर भी मुख-कैंसर के अधिकांश मरीज़ इस बीमारी के काफी उग्र रूप धारण कर लेने पर ही विशेषज्ञ के पास जाते हैं, लेकिन तब तक अकसर काफी देर हो चुकी होती है। जो मरीज मुंह में ल्यूकोप्लेकिया होने के बावजूद भी तंबाकू की गिरफ्त में हैं, दोस्तो, इसे हम धीरे-धीरे की जाने वाली आत्महत्या नहीं तो और क्या कहें ?--वैसे तो हमें नियमित रूप से स्वयं भी घर पर अपने मुख के अंदरूनी हिस्सों को शीशे में कभी-कभार जरूर देखते रहना चाहिए ताकि किसी तरह के बदलाव अथवा घाव को तुरंत पकड़ा जा सके।

दोस्तो, एक तो वैसे ही हमारे द्वारा किए जा रहे प्रकृति के अंधाधुंध शोषण के फलस्वरूप जल,वायु एवं खाध्य पदार्थों के प्रदूषण के बारे में तो हम सब को पता ही है, ऊपर से तंबाकू एवं शराब जैसे मादक पदार्थों को जले पर नमक छिड़कने के लिए खरीद कर हम अपनी ज़िंदगी से आखिर क्यों खिलवाड़ करते हैं !!---तंबाकू के तो , दोस्तो, सभी रूप ही घातक हैं, इस के सभी उत्पाद केवल उत्पात ही मचाते हैं। यहां तक कि हुक्का पीना भी खतरे से खाली नहीं है। समझदारी इसी में ही है कि हम इन सब वस्तुओं से मीलों दूर रहें , सीधा-सादा संतुलित आहार लें जिस में हरी-पत्तेदार सब्जियां एवं मौसमी फल भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो।

हमारे देश में तो बहुत से लोग तंबाकू-चूने एवं गुटखे को होठों या गाल के अंदर दबा लेते हैं जहां से धीरे धीरे इस का रस चूसते रहते हैं। जिन लोगों को तंबाकू चबाने के इलावा शराब पीने की भी आदत है, उन में तो मुख-कैंसर होने की और भी ज्यादा संभावना रहती है। कुछ लोग तो इस तंबाकू-चूने के मिश्रण को रात में भी मुंह में दबा कर सो जाते हैं। बम्बई के टाटा हास्पीटल के एक पूर्व निर्देशक, डा.राव साहब, एक बार कह रहे थे कि अगर लोग रात को सोने से पहले अपने दांत साफ करने की आदत ही डाल लें तो भी मुंह के कैंसर के रोगियों की संख्या में भारी गिरावट आ जाएगी----इस का कारण यह है कि एक बार रात में सोने से पहले अपना मुंह साफ कर लेने के पश्चात तंबाकू-चूने अथवा गुटखे को मुंह में दबाने की भला किसे इच्छा होगी !! कितनी सही बात है !!!

सोमवार, 7 जनवरी 2008

हेयर-ड्रेसर के पास जाने से पहले.....

दोस्तो, मैं अकसर सोचता हूं कि हम बड़ी बड़ी बातों की तरफ तो बहुत ध्यान देते हैं लेकिन कईं बार बहुत महत्वपूर्ण बातें जो देखने में बिल्कुल छोटी मालूम पड़ती हैं, उन को जाने-अनजाने में इग्नोर कर देते हैं। ऐसी ही एक बात मैं आप सब से शेयर करना चाहता हूं कि हम हेयर-ड्रेसर के पास अपनी किट ले कर जाने को कभी सीरियस्ली लेते नहीं है, पता नहीं झिझकते हैं या फिर भी....पता नहीं क्या।

दोस्तो, किट से मेरा भाव है कि हमें चाहिए अपनी एक सिज़र, एक-दो कंघीयां व एक रेज़र हर बार हेयर-ड्रेसर के पास अपना ही लेकर जाना चाहिए। दोस्तो, मैं कोई अनड्यू पैनिक क्रियेट करने की बिल्कुल कोशिश नहीं कर रहा हूं, मुझे तो यह पिछले 15 सालों से लग रहा है कि यह आज के समय की मांग है। दोस्तो, आप ज़रा सोचें कि हम सब लोग अपने घर में भी एक दूसरी की कंघी इस्तेमाल नहीं करते----घर में आया कोई मेहमान आप की कंघी इस्तेमाल कर ले,तो इमानदारी से जवाब दीजिए कोफ्त सी होने लगती है न। तो फिर, हेयर-ड्रेसर के यहां हज़ारों सिरों के ऊपर चल चुकी उस कंघी से हम परहेज़ करने की कोशिश क्यों नहीं करते। प्लीज़ सोचिए !! अब करते हैं, रेज़र की बात----मान लिया कि ब्लेड तो वह बदल लेता है, लेकिन दोस्तो अगर किसी कंटमर को कट लगा है , तो इस बात की भी संभावना रहती है कि थोड़ा-बहुत रेज़र( उस्तरे) पर भी लगा रह गया हो। बातें तो ,दोस्तो, छोटी छोटी हैं लेकिन जिस तरह से एड्स और हेपेटाइटिस बी जैसी बीमारियों ने आजकल अपना मुंह फाड़ रखा है तो एक ही बात ध्यान आती है----पूरी तरह से सावधानी रखना ही ठीक है। अब जब लोग शेव करवा रहे हैं या कटिंग करवा रहे हैं तो जरूरी नहीं हर कट हमें दिखे, कुछ कट ऐसे भी होते हैं जो हमें दिखते नहीं हैं..अर्थात् माइक्रोकट्स। जहां तक हो सके शेव तो स्वयं ही करने की आदत होनी चाहिए। कंघी, उस्तरे की बात कर रहे थे, तो पता नहीं किस को कौन सी स्किन इंफैक्शन है, क्या है , क्या नहीं है----ऐसे में एक यह सब चीज़े शेयर करना मुसीबत मोल लेने के बराबर नहीं तो और क्या है। तो, सीधी सी बात है कि अपनी किट लेकर ही हेयर-ड्रेसर के पास जाया जाए। आप को शायद एक-दो बाहर थोड़ा odd सा लगे, लेकिन फिर सब सामान्य सा लगने लगता है। दोस्तो, मैं पिछले लगभग 15 सालों से हेयर-ड्रेसर के पास अपनी किट ले कर जाता हूं, और बहुत से अपने मरीज़ों को भी ऐसा करने के लिए कहता रहता हूं। क्या आप भी मेरी बात मानेंगे ?
जो मैंने बात कही है कि शेव वगैरह तो स्वयं घर पर ही करने की आदत डाल लेनी चाहिए---दोस्तो, चिंता नहीं करें, इस से आप के हेयर-ड्रेसरों के धंधे पर कुछ असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि वे तो पहले से ही आज की युवा पीढ़ी के नए-नए शौक पूरा करने में मशगूल हैं-----हेयर ब्लीचिंग, हेयर पर्मिंग, हेयर सटरेटनिंग......पता नहीं क्या क्या आज के यह नौजवान करवाते रहते हैं, लेकिन सब से ज्यादा दुःख तो उस समय होता है जब कोई 18-20 साल का नौजवान अपना फेशियल करवा रहा होता है।
दोस्तो, समय सचमुच बहुत ही ज्यादा बदल गया है ...अपने बचपन के दिन याद करता हूं तो एक लड़की की बड़ी सी कुर्सी पर एक लकड़ी के फट्टे पर एक नाई की दुकान पर अपने आप को बैठे पाता हूं जिस की सारी दीवारें मायापुरी की पत्रिका में से धर्म भाजी की फोटों की कतरनों से भरी रहती थीं और उस नाई को एक चमड़े की बेल्ट पर अपना उस्तरा तेज़ करते देख कर मन कांप जाता था कि आज खैर नहीं......लेकिन उस बर्फी के लालच में जो पिता जी हर बार हजामत के बाद साथ वाली हलवाई की दुकान से खरीद कर खिलवाते थे,यह सब कुछ सहन करना ही पड़ता था, और खास कर के वह अजीबोगरीब मशीन जो इस तरह से चलती थी मानो घास काटने की मशीन हो। बीच बीच में उस मशीन के बीच जब बाल अटक जाते थे, तो बडा़ दर्द भी होता था, और एक-दो अच्छे बड़े कट्स कटिंग के दौरान हमेशा न लगें हों, ऐसा तो मुझे याद नहीं.
वैसे दोस्तो, अब लगता है कि वही टाइम अच्छा था, न किसी बीमारी का डर, न कोई किट साथ लेकर जाने का झंझट......लेकिन दोस्तो, अफसोस, अब न तो वह नाई रहा, न ही उस का साज़ो-सामान और न ही पिता जी। लेकिन आज आप से बतियाने के बहाने देखिए मैंने अपने बचपन को फिर से थोड़ा जी लिया....................आप भी कहीं कुछ ऐसी ही यादों में तो नहीं खो गए---चलिए,खो भी गए हैं तो अच्छा ही है, वैसे भी मैं अकसर हमेशा कहता रहता हूं ............
Enjoy the little things in life, someday you will look back and realise that those were indeed the big things !!!!!...........................................What do you say ??

Ok, friends, Good night!!