बुधवार, 7 सितंबर 2022

सिर दुखाने वाले हैं गर तो टाइगर बॉम भी तो यहीं हैं....

मैं जहां पर इस वक्त नौकरी करता हूं...वहां पर एक मरीज़ आया मेरे पास ...मरीज़ कम है दरअसल, उसने बिना किसी बात पर उलझने की डाक्टरेट कर रखी है ...मैं उन दिनों नया नया था..एक दिन आया ..दो दिन आया....कुछ बार मिला ..लेकिन उसमें ऐसा क्या जादू कि जब भी मिले, और कुछ न सही थोड़ा या बहुत सिर तो दुःखा ही जाए...

मुझे कुछ दिनों बाद यह बात भी पता चल गई कि उस का सब के साथ यही हाल है...फिर मैंने उस के कुछ लोगों से भुग्त-भोगियों से उस के बारे में बात करनी शुरु की ...और हम लोग आपस में इतना हंसते उस की बातों और उस के लहज़े को याद करके कि हमारे पेट में बल पड़ना शुरू हो जाते ...और मज़ेदार बात यह कि अपनी तरफ़ से वह बड़ी शालीनता से ही पेश आता था लेकिन पता नहीं उस की शालीनता में भी , उसके लहज़े में कुछ तो ऐसा था कि मैं अपने करीबियों को बताता हूं कि उसे देखते ही १०-२० प्वाईंट बीपी तो ज़रूर उछल जाता होगा... और थोड़ा बहुत सिर भारी भी हो जाता है, अगर कोई टाइगर-बॉम जैसा शख्स उस के फ़ौरन बाद आप को बोलने-बतियाने के लिए मिल गया तो ठीक, वरना आप के उस दिन तो भाई समझिए पकौड़े लग गये....अब आप सोच रहे हैं कि यह टाइगर-बॉम जैसे लोग होते कौन हैं, अभी बताऊंगा इन रब्बी लोगों के बारे में ....

हां, तो पहले तो हम लोग सिर दुःखाने वाले लोगों के बारे में बात करेंगे ...हम में से हरेक के पास ऐसे कुछ लोग होते हैं जिन के साथ बात कर के मज़ा नहीं आता ...अब, उस की गहराई में जाने का कोई फायदा नहीं कि ऐसा क्यों होता है, बस आप मेरी बात से इत्तेफ़ाक तो रखेंगे ही कि ऐसा हम सब के साथ होता है ....माईं, किसी दिन मूड बढ़िया होता है, आदमी ने बढ़िया मनपसंद कपड़े भी पहने होते हैं...और बंदा आसमां पर उड़ रहा होता है कि कोई ऐसा शख्स अचानक कहीं से प्रकट हो जाता है कि दस मिनट बाद आप अकेले बैठे सिर न भी सहला रहे हों, लेकिन आसमां से अचानक ध़ड़ाम से नीचे ज़मीन पर गिर कर धूल चाट रहे होते हैं...ऐसा जादू होता है कुछ लोगों की बोल-वाणी में कि बंदा अपने आप को बिल्कुल निकम्मा, बेकार ...क्या कहते हैं यूज़लेस सा समझने लगता है ...

अचानक इस काले स्याह अंधेरे से आप को खींच कर बाहर निकालने वाला कोई शख्स मिल जाता है ..जिन को मैंने टाईगर-बॉम की संज्ञा दी है ...यह इंसान कोई भी हो सकता है ...आप के आसपास भी इस तरह के टाइगर बॉम जैसे लोग होते हैं...ज़्यादा नहीं होते, चार-पांच-सात ही लोग होंगे ...ये वे लोग होते हैं जिन का भरोसा आपने जीत लिया होता है और जो आप पर भी पूरा भरोसा करते हैं ...और एक बार किसी का भरोसा तोड़ने का मतलब तो आप समझते ही हैं, बंदा हमेशा के लिए अपनी ही क्या, दूसरे की आंखों में भी गिर जाता है ...

अब मैं आप को इन टाइगर-बॉम जैसे लोगों की कुछ खासियत बताना चाहता हूं ...ये वे चंद लोग होते हैं जब उन को आप मिलते हैं तो आप दोनों के चेहरे फूल की तरह खिल जाते हैं...असली फूल की तरह ...नकली फूल चाहे जितने भी खूबसूरत आज बाज़ार में मिल रहे हैं लेकिन वे अपनी असलियत जल्द ही दिखा देते हैं...

अच्छा, एक बात और भी याद आ रही है कि ये लोग ज़रूरी नहीं कि आप के आसपास ही हों, ये हो सकता है कि आप के पचास साल पुराने दोस्त हों, स्कूल के, कॉलेज के ज़माने के या जहां पर आप पहले कहीं नौकरी करते थे, ये वहां के भी हो सकते हैं...लेकिन इतनी बात तो पक्की है कि उन चंद लोगों के साथ बात करते वक्त आप को अपनी बातों को तोलना नहीं पड़ता ...आप बिल्कुल बाल मन से उन से सब कुछ कह लेते हैं ...कुछ भी ...और वह भी बेधड़क हो कर दिल की बात खोल कर कहते हैं...अब तो वाट्सएप का ज़माना है, बहुत बार तो आपस में ऑडियो मैसेज का भी आदान-प्रदान होता है ...और फोन पर तो बहुत बार बात होती है ...अब आप सोचिए कि हम लोग जिस दौर में जी रहे हैं, वहां फोन पर खुल कर बात करना, ऑडियो मैसेज भेजना इत्यादि इतना सहज भी नहीं होता अमूमन लेकिन इन चंद लोगों पर मैंने पहले भी कहा कि आप को अपने से भी ज़्यादा भरोसा होता है ...क्योंकि आप दिल में कहीं यह बात भी रखते हैं कि यार, अगर फलां बंदा मुझे कभी धोखा देगा तो फिर कुछ भी हो सकता है ....वैसे तो यह भी एक काल्पनिक बात ही लगती है मुझे ....क्योंकि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मुझे आजतक तो कोई ऐसा शख्स मिला नहीं जिसने मेरे साथ ऐसा किया हो और मैं .....??? मैं तो एक कान से सुन कर दूसरे तक भी नहीं पहुंचने देता...उसे पहले ही अपने अंदर दफ़न कर देता हूं....ऐसे ही निभती हैं ये यारीयां, दोस्तीयां .......वरना आज के दौर में कौन किसी से बतियाना चाहता है ..किसी के पास वक्त ही कहां है ...

हां, तो आगे चलते है ं....ये जो टॉइगर बॉम जैसे लोग आप के इर्द-गिर्द फैले होते हैं न, इन के साथ बात करते वक्त आप के पास कोई टॉपिक नहीं होता, टॉपिक होने से बातें नीरस हो जाती हैं, मन ऊबने लगता है ...बिना टॉपिक के ही चुटकुलों जैसी बातें कर के एक दूसरे के चेहरों पर खुशी लाना ही उन छोटी छोटी मुलाकातों का मक़सद होता है ...और कुछ नहीं, किसी ने कुछ नहीं किसी से लेना या देना....बस, आप लोग मिलते हैं खिले हुए चेहरों के साथ, दो चार पांच ठहाके लगाए और आप दोनों का दिन बन गया.....ताज़गी आ गई ...मूड एक दम फ्रेश हो गया....अब आप ही बताएं की अगर दुनिया नुमा इस भट्ठी में ऐसे चंद लोग हमारे पास फैले होते हैं तो क्या ये टाईगर-बॉम से कम हैं...सीधी-सपाट बातें भी लतीफ़ों जैसी, कोई भारी भरकम बातें नहीं और सब के सब दूसरों पर हंसने की बजाए अपने आप पर हंसना पसंद करते हैं ...ये भी इन रब्बी लोगों की खासियत होती है, लिख लीजिए कहीं ...

सब से पहले तो आप को यह बताना होगा कि मुझे आज सुबह उठते ही यह ख्याल आया कैसे कि इस टॉपिक पर लिखने बैठ गया ...उस दिन मेरा सिर भारी हो रहा था ...बदपरहेज़ी से दिल भी कच्चा हो रहा था...कच्चा क्या, एक दो बार उल्टी होने की वजह से पूरा पक्का हो कर पका हुआ था ...गोली भी ली थी, लेकिन बस जैसे कुछ कायम न था ...इतने में मुझे एक टॉइगर-बाम जैसा शख्स मिल गया ...मैंने कहा चलो यार चाय पी कर आते हैं....हम पास ही बाहर चाय पीने निकल गये ...पांच मिनट की दूरी पर वह छोटी सी दुकान है...रास्ते में हम दोनों ने लतीफ़ों जैसी बात कीं...जी हां, बिना टॉपिक वाली, हल्की-फुल्की बातें, आप मज़ाक खुद उड़ाया....दो घूंट चाय पी ...और दस मिनट में जब मैं वापिस लौट रहा था तो मैं मन ही मन सोच रहा था कि अभी तो मेरा सिर भारी था और अभी मैं हवा में उड़ रहा हूं .....तो जनाब यह है टाइगर-बॉम का कमाल ....


अच्छा यह नहीं कि यह टाइगर बाम जैसे लोग आप से रोज़ ही मुलाकात करें, या आप रोज़ उन को मिलने जाएं ज़रूर, कईं बार वे कुछ मैसेज ही ऐसे भेजते हैं कि वह भी जैसे आप को रास्ता दिखाने का काम करते हैं ...आप आप से एक मैसेज शेयर करता हूं ...जो मुझे एक टाईगर-बॉम ने भिजवाया था दो तीन दिन पहले ...


ये जो रब्बी लोग होते हैं, ये इस तरह के बढ़िया मैसेज भिजवा कर अपने काम से फ़ारिग नहीं हो जाते ...जब मिलते हैं तो पूछते हैं कि हां, वह मैसेज भेजा था, मिल गया था ....फिर आप को उस मैसेज़ से इत्तेफ़ाक रखते हुए हामी भरनी होती है ...

अच्छा इन रब्बी लोगों के बारे में बात करते वक्त मैंने यह तो बता दिया ये लोग कौन हो सकते हैं...जाने-पहचाने-परखे, स्कूल कालेज के दिनों के, जहां आप काम करते हैं वहां आप के साथ काम करने वाले ....लेकिन बहुत बार आते-जाते टैक्सी, ऑटो वाले से भी कोई बात हो जाए तो देखिए....वह भी टाइगर-बॉम ही निकलता है ....और हां, कभी कभी बहुत ही कम बार ऐसे होता है किसी लोकल-गाड़ी में भी कोई ऐसा शख्स मिल जाता है ...लेकिन यह बरसों में एक बार होता है ...क्योंकि माहौल ही ऐसा है महानगरों का कि आप किसी के साथ खुल ही नहीं पाते हैं...

और हां, जाते जाते एक बात लिख कर इस पोस्ट को बंद करूं कि टाईगर-बॉम का ख्याल मुझे यूं आया कि मेरे कुछ शौक ऐसे भी हैं कि मैं किसी एंटीक की दुकान से पुरानी ४०-५० बरस पुरानी चिट्ठीयां खरीद लेता हूं ...बहुत महंगी देते हैं वे ये एंटीक चिट्ठियां ...खैर, शौक का कोई मोल कहां होता है ...मुझे किसी की निजी बातों से क्या मतलब, बस, पढ़ता हूं उस दौर के लोगों के मन के अंदर झांकने के लिए....कि उस दौर में लोग क्या लिखते थे ...क्या दिल की बात लिखते थे ....जी हां, पहले तो मैं अपने पिता जी की लिखी चिट्ठियों को ही दुनिया की सब से बढ़िया चिट्ठीयां मानता था....हमारे कुछ रिश्तेदार यह भी कह कर हंसते थे कि अमृतसर वाले पापा जी की चिट्ठी आती है तो ऐसे लगता है जैसे अखबार आ गया हो, इतना कुछ लिख भेजते हैं.....जी हां, यह भी एक बहुत बड़ी खासियत थी उन की चिट्ठीयों में .........लेकिन अब जब मैं कुछ एंटीक चिट्ठीयां भी पढ़ चुका हूं तो मुझे यह विश्वास हो गया है कि हां, गुज़रे दौर में भी लोगों के पास फोन नहीं थे, वाट्सएप भले ही न था ....लेकिन ये जो ख़त थे न यही उन लोगों की टाइगर-बॉम थे ....(यहां यह याद आ रहा है दादी की टूटी-फूटी हिंदी में चिट्ठी जब आती थी तो पिता जी हम से दो-तीन बार पढ़वा कर उसे अपने तकिये के नीचे रख देते थे ...बार बार निहारते थे ....जैसे पढ़ने की कोशिश कर रहे हों ---हिंदी पढ़ना उन्हे नहीं आता था...).... हां, एक ऐसी ही एंटीक चिट्ठी में लिखा हुआ था किसी के रिश्तेदार ने जो कहीं बाहर रह रहा था कि वह फलां फलां चीज़ें भिजवा रहा है और उसमें आप की फेवरेट टाईगर-बॉम भी भिजवा रहा हूं ......उस वक्त तो मुझे ख्याल नहीं आया, अब इतना लिखने पर यह ख्याल आ रहा है कि यार, तुम्हारी चिट्ठी ही खुद टाइगर-बॉम है (मैंने तो पढ़ी है), अब इसे जिस ने भी आज से पचास साल पहले पढ़ा होगा उसे बॉम की डिबिया ही ज़रूरत ही कहां रहेगी .......लेकिन अगर उस तरह की चिट्ठी के बावजूद भी किसी को उस डिबिया की ज़रूरत महसूस हो...तो फिर तो मामला गड़बड़ है,दोस्तो ........फिर तो सेरिडॉन वाला मामला ही दिक्खे है .. 😎

लिखने के बाद यह भी ख्याल आया कि हमारे जो खून के रिश्ते होते हैं ...सब से बड़ी टाईगर-बॉम की डिबिया तो वही होते हैं....उन के बारे में मैने लिखा क्यों नहीं....क्योंकि वह भी कोई लिखने वाली बात है ...

और हां, एक बात और भूल गया यहां दर्ज करनी कि तब बहुत बड़ी दिक्कत हो जाती है जब दो तीन टाईगर-बॉम जैसे लोग एक साथ मिल जाते हैं....पता ही नहीं चलता...कि अभी तो रसगुल्ले से मुंह भरा पड़ा है, अब मिल्क-केक भी खाना है ....उसे पहले खाएं या इसे पहले खाएं....क्योंकि इतना कुछ होता है अपने ही ऊपर हंसने के लिए और बोलने-बतियाने के लिए कि क्या कहें....ऐसे मौकों पर एक शेल्फी भी अकसर हो जाती है ... 😎...और हां, आप भी जहां रहते हैं, काम करते हैं....इन टाईगर-बाम जैसे लोगों से राब्ता बनाए रखिए....वरना, बीमार हो जाएंगे ....सच कह रहा हूं...इसे एक हकीम की नसीहत की तरह लीजिए...

शनिवार, 27 अगस्त 2022

हुड़दंग-हुल्लड़बाज़ी ज़िंदगी बदल देती है कईं बार ....

आते जाते रास्तों पर सड़के नापते हुए फिरंगियों के वक्त की इमारतें देख कर हैरत में पड़ जाता हूं ...कुछ दिन पहले एक बस में बैठा बैलर्ड पियर जा रहा था (वी टी स्टेशन से गेटवे ऑफ इंडिया तक ए.सी बस सर्विस बहुत बढ़िया है)...रास्ते में एशिआटिक लाईब्रेरी दिखी ..पहली भी कईं बार देखी है ...उस दिन भी देखते ही बरबस मुंह से यही निकला ..पास बैठे अंजान यात्री से जैसे कुछ कहने लगा कि इन अंग्रेज़ों को भी अगर पता होता कि इन्हें इस देश से खदेड़ दिया जाएगा तो ये सब कुछ इतनी मोहब्बत से कहां बनाते ....उसने भी हामी भर दी ...। 


आज दोपहर बाद भी अभी एक-दो घंटे पहले ढ़ाई बजे के करीब मैं भायखला स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर दादर जाने के लिए लोकल-ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था ...वैसे तो पिछले कुछ महीने में भायखला स्टेशन का पूरा काया कल्प हुआ है ..एक दम हैरीटेज लुक दी गई है ...अच्छा लगता है ...अचानक इस घंटे पर नज़र गई और उस पर लिखा साल देखा तो हैरानी भी हुई १६० साल से पुराना घंटा ...फोटो खींच ली ... वैसे भायखला उस रेल लाइन पर आता है जहां पर हिंदोस्तान की सब से पहली रेलगाड़ी चली थी...मुंबई वी टी (या बोरी बंदर कहते थे तब) से ठाणे तक ....बाकी की स्टोरी तो आप जानते ही हैं...

फिरंगियों की तरफ से इस तरह के पुराने सामान को जब देखता हूं तो उन से किसी भी तरह की सहानुभूति की तो ऐसी की तैसी ...हर बार यही मज़ाक सूझता है कि इन पट्ठों ने ये सब यही सोच कर बनाया-सजाया होगा कि अब तो यह सब कुछ अपना ही है ...लेेकिन फिर मन ही मन नतमस्तक हो जाते हैं आज़ादी के उन दीवानों के बलिदान पर जिन्होंने अपनी जान गंवा कर हमें आज़ाद भारत में सांस लेने का और इस तरह के घंटे की फोटो खींचने का मौका दिया....

दो-तीन मिनट तो कभी कभी लोकल गाड़ी के लिए इंतज़ार करना ही होता है ...लेकिन इसी दौरान देखा कि सामने तीन नंबर प्लेटफार्म पर जो लोकल ट्रेन मुंबई वी टी की तरफ जा रही हैं, उस में बहुत से युवा ऊंची ऊंची आवाज़ निकाल कर हूटिंग सी कर रहे हैं....ऐसी ही हुल्लडबाजी ...मस्ती .....। मैंने सोचा कि शायद कल रविवार है, रेलवे भर्ती बोर्ड या किसी अन्य विभाग का कोई पेपर हो ...लेकिन उन युवकों की उम्र देख कर लगा नहीं ...अजीब सा शोर था....

खैर, इतने में मेरी ट्रेन भी कसारा लोकल आ गई ...बैठ गया....पेपर पढ़ने लगा ...इतने में पता नहीं मन किया कि परेल स्टेशन पर ही उतर जाता हूं ...उतरने लगा तो वहां पर भी दूसरी तरफ़ से आने वाली एक गाड़ी गुज़र रही थी और खूब शोर मचा हुआ था ...मुझे अचानक ख्याल आया कि दो दिन बाद गणेश-चतुर्थी है ...ये लड़के लाल बाग से गणपति बप्पा की मूर्ती लेने निकले होंगे ...हुल्लडबाजी कर रहे हैं, मस्ती कर रहे हैं...उम्र ही ऐसी है इन की ...खैर, मैं नहीं उतरा वहां पर ..


अगला स्टेशन दादर था ...दादर सेंट्रल रेलवे के प्लेटफार्म नंबर एक पर उतरा तो यह महिला अपना बोझा ढोने के लिए बड़ी मशक्कत करती दिखी ..लेकिन उसने अपने बलबूते पर इतना सामान सिर पर उठा कर ही दम लिया....इतने में देखा एक लड़की १८-२० बरस की बदहवास सी प्लेटफार्म पर भागते भागते गाड़ी पर चढ़ने से रह गई ...उसे तुरंत एक महिला कांस्टेबल ने पकड़ कर नसीहत की अच्छी घुट्टी पिलाई कि इस के बाद कोई ट्रेन नहीं आएगी क्या....



खैर, सामने एक नन्हा बालक दिखा ...मां के हाथ में दूध की बोतल तो थी लेकिन वह मोबाइल पर गुफ्तगू में मसरूफ़ थी....वाट्सएप पर ऐसे बहुत सी पोस्टें दिखती रहती हैं न ...मुझे भी उस वक्त यही ख्याल आया जैसे कि वह शिशु मां को कह रहा हो कि मम्मी जी, मुझे भूख लगी है ...प्लीज़ मोबाइल पर तो सारा दिन रहती ही हो, मेरा भी तो कुछ ख्याल करो ...

कुर्ला, मध्य रेल, लोकल प्लेटफार्म नंबर १

खैर, अभी इस प्यारे से बालक की तरफ से नज़र हटी ही थी कि आगे फिर थोड़ा शोर सा दिखा ...प्लेटफार्म पर कुछ खून गिरा हुआ था...मुझे लगा कि किसी को चोट वोट आई होगी या किसी को खून की उल्टी हुई होगी ... अभी चंद कदम आगे चला था कि प्लेटफार्म के एक एरिया को कार्डन-ऑफ किया गया था ... भान हुआ कि कुछ तो मनहूस बात हुई ही है ...आगे बढ़ तो गया लेकिन रहा नहीं गया....पाटिल हवलदार से पूछा कि क्या हुआ...उसने जो बताया वह दिल को दहलाने वाला था ...कहने लगा कि पांच-दस मिनट पहले चार युवक गिर गए गाड़ी से ...गिरा तो एक ही, साथ में तीन और ले बैठा....किसी का हाथ कट गया है, किसी का पांव.....बहुत अफसोस हुआ यह सुन कर। मेरे पूछने पर उसने बताया कि अभी तो सॉयन अस्पताल भेज दिया है ...बाद में उन के परिवार वाले उन्हें जहां से लेकर जाना चाहें....

पाटिल बता रहा था कि ये लड़के लोग गणपति चतुर्थी के चक्कर में बड़ा हुड़दंग मचा रहे थे ...चलती ट्रेन से खंभे को छूने की कोशिश कर रहे थे ...बहुत ज़्यादा अफसोस हुआ यह सुन कर ...यार-दोस्त थोड़ी मस्ती करने निकले और अचानक क्या से क्या हो गया....किसी को कुछ फ़र्क नहीं पड़ता ...मुंबई एक मिनट भी नहीं थमी..हादसे के पांच मिनट बाद सब कुछ ऐसे चल रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं...

पोस्ट इसलिए लिखने पर मजबूर हुआ कि मन की बात कह लूं कि त्यौहार का मतलब हम लोग क्यों इतने हुड़दंग करना ही मान लेते हैं...खुशी है, उत्सव का माहौल है, ठीक है...लेकिन जोश के साथ होश भी तो रखना होगा...मैं मानता हूं कि हर किसी को इस तरह की नसीहत की पुडि़या बहुत बुरी लगती है ...क्योंकि हादसा तो कभी भी हो सकता है...किसी के साथ भी ..लेकिन फिर भी जितना हो सके, उतना ही ख्याल रखना ही चाहिए....पानी के सामने, आग के सामने, और गाड़ी के सामने किसी की नहीं चलती....

पानी से याद आया...पिछले दिनों में हर साल की तरह बंबई के जुहू बीच और अन्य बीचों पर कुछ युवा डूब गए...रेड-एलर्ट जारी था ...और सरकार भी क्या करे, लेकिन जवान लोग किस की सुनते हैं...समंदर की लहरें लील ले गईं जवान लोगों को ...अकसर इस तरह की खबरें देख कर मुझे कुछ पंद्रह बीच बरस पहले कोच्ची की अपनी यात्रा याद आ जाती है..कोच्ची से कोई २०-२५ किलोमीटर दूर एक बीच है...वहां कहते हैं ज़्यादा आगे जाना खतरनाक होता है (चेतावनी हम लोगों ने बाद में पढ़ी थी) ..हम लोग किनारे पर ही खड़े थे ...अचानक लहर आई ..हमारे पैरों के नीचे से ऐसे रेत खिसकी की मां कहां गई, पर्स कहां गया, छोटा बेटा दो-तीन साल का कहां बह गया...बाकी भी सभी लुढ़क गए...उस वक्त तो यही लगा कि पता नहीं कितने लुढ़क गए, कितने रह गए ...खैर, फटाफट जैसे तैसे उठ खड़े हुए और भागे वहां से ..टैक्सी में बैठ कर ....अभी याद आया .....जी हां, वह था कोवलम बीच 

हां, अभी कुछ दिन पहले कृष्ण जन्माष्टमी थी ..दही हांडी का उत्सव था ..किस तरह से कुछ युवक बुरी तरह से ज़ख्मी हो गए...अखबार में पढ़ा कि एक का तो दिमाग ऐसा डेमेज हुआ है कि उस का बचना मुश्किल है ..और दूसरा कोमा में है ....ऐसे बहुत से केस हर बरस होते हैं ....हम लोग सीख क्यों नहीं लेते ..उत्सव मनाएं लेकिन होशोहवाश में रह कर .... इस बार मेरे एक दोस्त ने दही हांडी वाले दिन एक वीडियो भेजी जिसे देख कर मेरा दिल दहल गया....कुछ युवक एक लड़के को पकड पर ऊपर हांड़ी की तरफ उछाल रहे थे ...उस युवक का जब सिर उस मटकी पर लगा वह हांडी फूट गई ....लेकिन होने को तो कुछ भी हो सकता था ...

यही नहीं होली के दिन भी सभी अस्पतालों की एमरजैंसी को किस तरह से मुस्तैद रहने को कहा जाता है ....क्योंकि हादसे होते हैं, चोटे लगती हैं उन दिनों भी ....बात सोचने वाली यही है कि क्या हम अपने आप में रह कर संयम से अपने तीज-त्यौहार नहीं मना सकते ....ऐसा क्या है कि धार्मिक त्यौहारों पर भी सरकारों को इतने बड़े स्तर पर पुलिस बंदोबस्त करना पड़ता है कि एक अजीब सा खौफ़ कहीं न कहीं सताने लगता है ...

बस बात यही खत्म करते हैं कि किसी को कोई नसीहत की ज़रूरत नहीं है, जितना कुछ जानने लायक है उस से तो ज़्यादा ही हम लोग जानते हैं......मानते हैं या नहीं, वह अलग बात है। बस, अपना ख्याल रखा करो भाई...बच कर रहिए, बच कर चलिए, खुद भी बचिए, औरों को भी बचाते रहिए ..

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

20 हत्याएं जिन्होंने दुनिया बदल दी ...




कुछ किताबें के कवर देख कर हम लोग उसे खरीदने पर मजबूर हो जाते हैं....मेरे साथ तो ऐसा अकसर होता ही है ...महंगी महंगी किताब खरीदते वक्त मुझे बस अपने दिल को यह तसल्ली देनी होती है कि मैं समझूंगा कि मैंने कुछ पिज़ा खा लिए ....जो कि मैं कभी खाता नहीं ...

खैर, यह किताब हाथ में आई तो इसे झट से पढ़ने की तमन्ना भी जाग उठी....जैसा कि हम सब के साथ होता है मैंने भी इस के लेखक के बारे में पढ़ा, और उन बीस लोगों की फेहरिस्त देखी जिन की हत्याओं ने दुनिया को ही बदल कर रख दिया...

किताब तो बाद में पढ़नी थी ...लेकिन जिस बात ने मुझे सब से ज़्यादा हैरान-परेशान किया वह यह थी कि उन बीस हस्तियों में मैंने १४ लोगों के नाम ही कभी नहीं सुने थे ...है कि नहीं हैरानी वाली बात....साठ साल की उम्र होते होते कुछ तो पढ़ते ही रहे हैं लेकिन फिर भी सामान्य ज्ञान इतना कमज़ोर ....सच में थोड़ी डिप्रेशन भी हुई कि जिन बीस लोगों की हत्याओं ने दुनिया में तहलका मचा दिया, उन में से तुम्हें ७० फीसदी का नाम तक नहीं पता, अपने आप से इतना तो कहना ही पड़ा। 


और एक रोचक बात सुनिए ...जिन छः लोगों के नाम मैंने सुन रखे थे ...मुझे बिल्कुल भनक तक न थी उन में से दो की हत्या की गई थी ...इन में लार्ड माउंटबेटन और किंग लूथर का नाम मैं लेना चाहूंगा...इतनी बड़ी हस्तियां और हमें (नहीं, मुझे) इन के बारे में कुछ खास पता ही नहीं। जब से यह वाट्सएप आया है पिछले सात-आठ सालों में लेडी माउंटबेटन के साथ चाचा नेहरू की तस्वीरें तो वाट्सएप विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी चलाने वाले बार बार शेयर करते रहते हैं लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कभी कि माउंटबेटन की हत्या एक बम विस्फोट में १९७९ में हुई थी ...और उसी किताब से पता चला कि माउंटबेटन की हत्या के बाद भारत में एक हफ्ते का शोक रखा गया था ...उस में यह भी पढ़ा कि माउंटबेटन से हिंदोस्तान को पाकिस्तान और भारत में बांटने की गलती हो गई ....हैरानी तो मुझे भी बडी़ हुई कि ऐसी गलती हुई तो हुई कैसे ...खास कर के उस के बारे में, उस की बैकग्राउंड के बारे में पढ़ कर मुझे भी बड़ा अजीब सा लगा कि बस इसे एक गलती कह कर ही बात को रफा-दफा किया जाए...लाखों लोगों ने जाने गंवाई, बेघर हुए ...और आज तक लोग उस गलती का खमियाजा भुगत रहे हैं ...खैर, चलिए...अब पछताए होत क्या, जब चिढ़िया चुग गई खेत..

मार्टिन लूथर के बारे में भी पढ़ना है ...लिंकन के बारे में तो पहले ही से पढ़ा हुआ है ...भला इंसान था ...आप को भी याद होगा उसने जो चिट्ठी अपने बेटे के अध्यापक को लिखी थी .....बहुत ही नेक बंदा था ...इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के बारे में पढ़ा ....इन दोनों की हत्याएं तो हमें बड़े अच्छे से याद हैं...और उन के बाद होने वाला घटनाक्रम भी। राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या की पूरी जानकारी आज पहली बार हासिल हुई ...और इस लिस्ट में कैनेडी नाम का एक और इंसान था, उस के बारे में पता चला कि वह भी कैनेडी का भाई ही था ...वह भी राजनीति में आगे आ रहा था ...उसे भी राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या (१९६३) के पांच बरस बाद १९६८ में मौत के घाट उतार दिया गया...

वैसे तो हम जितना भी पढ़-लिख लें, जितना भी ज्ञान अर्जित कर लें, हमारा ज्ञान दुनिया के ज्ञान के समक्ष एक रेत के कण के बराबर भी नहीं है ...यह बात बिल्कुल सच है ....लेकिन हमें ऐसे ही कभी कभी ऐसा महसूस होने लगता है कि हम तो सब कुछ जानते हैं...ऐसा नहीं है ...मुझे भी अकसर किताबें पढ़ते पढ़ते ही यह अहसास होता है कि मैं कितना कम पढ़ा-लिखा हूं ...मुझे किसी ने पूछा कि आप फिक्शन पढ़ते हैं या नॉन-फिक्शन ....मैंने कहा मुझे जो भी किताब अच्छी लगे, मैं उसे पढ़ना चाहता हूं ....हिंदी-इंगलिश-पंजाबी में पढ़ता हूं अकसर ...गुज़ारे लायक उर्दू भी पढ़ लेता हूं ....किंडल होते हए भी किताब तो भई हाथ में थाम कर ही अच्छा लगता है ...

इस किताब में दर्ज अहम जानकारीयां किसी अगली पोस्ट में शेयर करूंगा... वैसे तो नाम अब आप के पास हैं, गूगल कर के भी खुद भी ऑन-लाइन पढ़ सकते हैं...

वैसे एक बात और है ...ख्याल अगर खुद के कमज़ोर सामान्य ज्ञान का आ रहा है तो बात यह भी याद आ रही है कि हम कितना दुनियावी वैभव, शानो-शौकत के पीछे भागते भागते हांफते रहते हैं, एक तरह से हलकान हुए रहते हैं और इधर दुनिया के गिने-चुने बीस लोगों की हत्या हो गई और मेरे जैसे पढ़े-लिखे कहलाने वाले तक को भी उन में से अधिकांश के नाम ही न पता थे ....सच में सब कुछ कितना क्षणिक है, कितना क्षण-भंगुर है ....लेकिन इत्ती सी बात ही हमारे पल्ले इतनी आसानी से कहां पड़ती है ...😂