मंगलवार, 13 मार्च 2018

शौचालय में बैठने का सही तरीका

मैं किसी भी काम के माहिरों की बहुत कद्र करता हूं और यह ज़रूरी भी है ... ये लोग अपनी सारी ज़िंदगी अपने काम में महारत हासिल करने में गुज़ार देते हैं...इसलिए जब भी वाट्सएप पर कोई भी पोस्ट किसी माहिर की शेयर की हुई मिलती है तो मैं उसे बड़ी संजीदगी से पढ़ता हूं और समझने की कोशिश करता हूं...

और अगर यह माहिर कोई डाक्टर हो और वह अपने पेशे से जुड़ी कोई बड़ी अहम् बात शेयर कर रहा हो तो बात ही क्या है! यकीन मानिए देखने में आप को वह बात बिल्कुल छोटी लगेगी लेकिन उस का हमारी सेहत पर बहुत बड़ा प्रभाव होता है ...
चुटकुले, मज़ाक, व्यंग्य, सरकारों की नुक्ताचीनी, ट्रोल ....इन सब से अलग कुछ समय संजीदा किस्म की बातें भी पढ़ने समझने में बिताना ठीक होता है ...

मैंने अभी अभी वाट्सएप पर देखा कि हमारे अपने डीएवी स्कूल के ग्रुप में हमारे एक प्रिय साथी डा चावला ने एक पोस्ट शेयर की है ...यह एक अनुभवी सर्जन हैं...और जब मैंने उसे देखा तो यही सोचा कि इतनी अहम बात तो आगे भी ज़्यादा से ज्‍यादा लोगों के साथ शेयर करनी चाहिए... ये माहिर लोग दिन भर पेट की तकलीफ़ों से जूझ रहे परेशान लोगों को देखते हैं...वही मस्से, कब्ज, भगंदर, नासूर, फिस्चुला ....इसलिए अगर एक सर्जन की तरफ़ से ऐसी हिदायत आई है कि जैसे हम लोग पहले नीचे बैठ कर शौच किया करते थे वही तरीका बिल्कुल सही था ....तो यह बात मानने में ही हमारी भलाई है ..

इस वीडियो को मैं यहां एम्बैड भी कर रहा हूं .... आप देखिए कि किस तरह से इंगलिश टॉयलेट पर बैठने से हमारी आंतड़ियों की सफाई में रूकावट पैदा होती है ... और फिर हम तरह तरह की तकलीफ़ों से रूबरु होने लगते हैं....

और हां, इंगलिश टॉयलेट ही है अगर घर में या किसी कारणवश आप नीचे बैठ ही नहीं पाते हैं तो आप अपने पैरों के नीचे एक स्टूल रख सकते हैं जैसा कि इस वीडियो में दिखाया गया है ...



मैं तो इसे आज से ही लागू करने का मन बना लिया है ....आप देखिए, एक तो हमारा बैठने का तरीका सही नहीं, ऊपर से हाथ से मोबाईल या बुरी खब़रों से ठूंसा हुई अखबार ....फिर हम कहते हैं कि पेट अच्छे से साफ़ नहीं होता ... आप खुद ही समझदार हैं....अपनी सेहत से जुड़े फ़ैसले आपने खुद ही करने होते हैं...

मुझे ध्यान आ रहा है कि मैंने भी कुछ महीने पहले एक पोस्ट लिखी थी टॉयलेट में साफ़-सफ़ाई के बारे में ...उस का लिंक भी यहां लगा रहा हूं, देखिएगा....

 धोना या पोंछना --हिंदोस्तानी ठीक ठाक कर लेते हैं (इस पर क्लिक कर के इसे पढ़ सकते हैं) 

जाते जाते ध्यान आ रहा है कि बहुत से मैडिकल विशेषज्ञ तो कुछ बोलते ही नहीं सोशल मीडिया पर ....और जो कुछ कहते हैं कम से कम उन की बातों को ही हम पकड़ लिया करें....शुक्रिया डा चावला ...आप की इस वीडियो से बहुत लोगों को फ़ायदा होगा...

लिखते लिखते पैडमैन फिल्म का ध्यान आ रहा है ....अभी तक देखी नहीं वह फिल्म तो देखिए...


मंगलवार, 6 मार्च 2018

एक कंपनी के आटे में प्लास्टिक वाली वीडियो फेक है ...

फैंकना, फैंकू.....आज कल वैसे भी इन शब्दों से बच कर ही रहना चाहिेए...लोग कहने लगते हैं कि फलाना-ढिमका फैंकूं हूं... लेकिन यहां एक फेक वीडियो ...मतलब यहां पर लोगों को गुमराह करने वाली वीडियो की बात हो रही है ...

आप ने भी देखा ही होगा कि कुछ चैनल वालों ने तो इस तरह के प्रोग्राम ही बना दिए हैं जिन में वे सोशल मीडिया पर वॉयरल हो चुके वीडियो के सच को जांचते हैं...और फिर उसे फेक न्यूज़ का ठप्पा लगा देते हैं...

न्यूज़-चैनल के लिए इस तरह का काम कर पाना मुमकिन होता है ...लेकिन मेरे जैसे ब्लॉगर के लिए यह कहां पॉसिबल हो पाता है कि सोशल मीडिया पर आने वाली खबरों को जांचते-परखते रहें ...दिन भर के अपने दूसरे कामों के साथ यह नहीं हो पाता .. वैसे भी जो लोग इस तरह की न्यूज़-वीडियो शेयर करते हैं उन की भी कुछ तो जिम्मेवारी है ...और जो इन्हें सच मान लेते हैं वह भी कहां बेकसूर हैं ...हर स्तर पर अपनी अपनी जिम्मेवारी है ... लेकिन आप ने कितनी बार देखा है कि कोई विशेषज्ञ जिसे  उस विषय का ज्ञान होता है, वह ऐसी किसी झूठी बात का खंडन करता हो ...

लोगों के पास समय ही कहां है, और वैसे भी लोग बात करना ही कहां चाहते हैं....सोच रहा हूं मैं भी इस पचड़े में पड़ना छोड़ दूं.. क्या करना, सब अपना अपना सच खुद टटोला करें... और नहीं तो गूगल चचा से ही पूछ लिया करें....लेकिन देख रहा हूं गूगल के सुझाए हुए वेबलिंक्स में से भी किस पर यकीं करना है किस पर नहीं, यह भी एक सीखने वाली बात है ..जो हर किसी को उस की शैक्षिक एवं बौद्धिक स्तर के अनुसार ही पता चल पाएगी...

अपनी बात कह के छुट्टी करूं.. हां, तो अभी एक वाट्सएप ग्रुप पर एक वीडियो दिखा कि एक मशहूर कंपनी के आटे में प्लास्टिक मिला है ... वीडियो देख कर डर तो लगा ..लेकिन यकीं तब भी नहीं हुआ... कारण? ..एक तो यह कि वह कंपनी बहुत बड़ी कंपनी है ...गुणवत्ता तो देखते ही होंगे ......इसे यह सोच कर बिल्कुल भी मत देखिए कि मैं किसी बड़ी कंपनी की हिमायत कर रहा हूं....यह काम मैंने किसी के लिए भी नहीं किया.... मैडीकल फील्ड में जब यह होने लगता है तो यह बहुत गलत बात है...सच को वैसे भी किसी सहारे की ज़रूरत नहीं होती और झूठ के पांव ही नहीं होते ....

वैसे भी हम कभी एमरजैंसी में ही बाज़ार से इस तरह के पैकेटों में मिलने वाला आटा ही खरीदते हैं ... बड़ा अजीब सा कारण है ... हमें बाज़ार से मिलने वाले आटे की रोटी मैदे की रोटी जैसी लगती है ..जिसे हम अकसर खाते नहीं हैं....आटाचक्की से मोटा पिसा हुआ आटा ही खा पाते हैं... खैर, अपनी अपनी आदते हैं और अपना अपना यकीन है ...

हां, तो मैं एक बड़ी कंपनी के आटे में प्लास्टिक दिखाने वाली वीडियो की बात कर रहा था ...वैसे उसे देखते ही मुझे १५-१६ साल पहले शिशुओं को दिए जाने वाली पावडर दूध जो चीन से आ रहा था, उस में प्लास्टिक की बात याद आ गई ...जिस की वजह से कईं छोटे शिशुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी थी ... और बहुत से बच्चों के तो गुर्दे खराब हो गये थे ...

इसलिए यह जो वीडियो सोशल मीडिया पर मिली थी ..प्लास्टिक वाले आटे के बारे में ... इस का सच जांचने के लिए गूगल की मदद ली तो पता चला कि यह फेक वीडियो है ... इस के बारे में आप इस लिंक पर क्लिक कर के खुद भी पढ़ सकते हैं ... देख लीजिए...


अच्छा तो मैंने आप को इसे पढ़ने के काम में लगा दिया है ....और मैं तब तक एक गीत सुन लूं ..लंबे अरसे के बाद आज टीवी पर इसे देखा ....आप भी देखिएगा... 

गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

मेडीकल पोस्ट शेयर करने से पहले ...

सुबह से शाम हो जाती है ...वाट्सएप पर हर तरह का ज्ञान हम तक पहुंचता रहता है ...सच झूठ का कुछ पता नहीं चलता, दंगे- फसाद शुरू हो जाते हैं इन के चक्कर में .. इसी तरह से लोगों में नफ़रत फैलाने का एजेंडा लिए हुए भी लोग कुछ न कुछ पोस्ट करते रहते हैं...और कुछ का तो सारा दिन काम ही यही होता है...

मेरा तो सीधा सादा फंडा है कि जिस बात की विश्वसनीयता में मुझे संदेह लगता है ...उसे आगे कभी भी शेयर नहीं करता ..तरह तरह के इलाज के विज्ञापन, दवाईयों के विज्ञान, चमत्कारी इलाज ...पता नहीं क्या क्या दिखता रहता है ...

किसी भी बात को अगर हम आगे शेयर करते हैं तो उस पर एक तरह से हमारी स्वीकृति का भी ठप्पा लग जाता है ....
मेरे पास तो रोज़ाना ऐसी बहुत सी पोस्टें आती हैं....लेकिन मैं आगे शेयर करना तो दूर, इसे भिजवाने वाले को इस की विश्वसनीयता जांचने का जिम्मा भी सौंप देता हूं..


आज भी अभी शाम में एक जिम्मेवार चिकित्सा कर्मी से एक वीडियो मिला कि दिल्ली के किसी अस्पताल के एक डाक्टर ने आप्रेशन से किसी की आंतड़ियों से नूडल्स निकाले हैं ..लिखा था कि ये हमारे शरीर में पचते नहीं हैं... इसलिए ये आंतड़ी में फंस गये ...

बात कुछ पच नहीं रही थी ...मैंने  उस वीडियो को डाक्टर्ज़ साथियों के ग्रुप में शेयर किया ... वहां भी आज दोपहर में थोड़ा सा माहौल गर्माया हुआ है ...होता है, कभी कभी हर ग्रुप में होता है ... मैंने एक्सपर्ट्स से रिक्वेस्ट करी कि वे बताएं कि क्या यह सच हो सकता है ... उसे ग्रुप पर शेयर किए हुए एक घंटा हो चुका है ...और एक्सपर्ट से एक जवाब मिला है ...कि यह नूडल्स तो नहीं लग रहे, ऐसा लग रहा है कि ये आंतडियों में इक्ट्ठा हो चुके कीड़ों का गुच्छा है ....यह विचार अनुभवी रेडियोलॉजिस्ट के हैं ...ज़ाहिर सी बात है उन का इस तरह के पेट के अंदरूनी मसलों के बारे में काफ़ी अनुभव होता है ..

बात यहां यह नहीं है कि नूडल्स खराब होते हैं या ठीक ... ये हम सब जानते हैं कि नूडल्स एक तरह का जंक -फूड तो है ही और दूसरे जंक-फूड की तरह इस के प्रभाव भी वैसे ही होते हैं ..लेकिन इस तरह की वीडियो सोशल मीडिया पर ठेल कर यह बताना कि नूडल्स वैसे के वैसे आंतडी़ तक पहुंच गये ...यह बात असंभव लगती है ....नूडल्सज़ ने मुंह से आंतड़ी तक का रास्ता तय भी कर लिया और उस के आकार पर कुछ असर ही नहीं पड़ा ... पेट का एसिड (ग्रेसटिक एसिड) भी उस का कुछ नहीं बिगाड़ पाया !!

वही एजेंडे वाली बात है ...क्या पता किसी अस्पताल की मशहूरी के लिए, या किसी चिकित्सक को प्रमोट करने के लिए या नूडल्स कंपनी से कोई पुराना हिसाब चुकता करने के लिए इस तरह की वीडियो वॉयरल कर दी होगी ... you see anything is possible now-a-days.

पारंपरिक मीडिया इस तरफ़ इतना ध्यान नहीं देता ...वह भी क्या करे, उसे अपनी TRP की चिंता है ...उऩ में से कुछ ने अपने सेठ के एजेंडे को भी देखना है ....इस तरह की खबरों की खबर लेने की उन्हें कहां फुर्सत है....

लेकिन इस तरह के वीडियो लोगों में बिना वजह डर फैलाते हैं ... अफवाहों को बढ़ावा देते हैं ....बेकार में यह सब देखने में लोग अपना समय नष्ट करते हैं...और क्या!

बात वही है कि ज्ञान की निरंतर वर्षा हो रही है ....लेकिन ज्यादातर मामलों में सच-झूठ का कुछ पता नहीं चलता...बस बेकार में हम हर बात के एक्सपर्ट बने फिरते हैं... चाहे हम लोग उस बात की एबीसी भी न जानते हों ...

ध्यान से रहिए.....पढ़े-लिखे होने का मतलब यह भी है कि हर ज्ञान की विज्ञान की कसौटी पर परखें ....और फिर ही उस को आगे शेयर करने के बारे में विचार करें...

चलिए, इस बात पर यहीं पर ही मिट्टी डालते हैं....बात करते हैं...पैडमैन की ....एक बेहतरीन फिल्म ....मैंने तो देख ली दो तीन दिन पहले ...आप ने देखी कि नहीं....अगर नहीं देखी तो इस वीकएंड पर देख आईए...it has a strong message!