बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

गुरबत, अनपढ़ता, बेबसी, दबंगई ...दोषी कौन?

यह जो यूपी के उन्नाव में एक बात सामने आई है कि एक झोलाछाप डाकदर लोगों को एक ही सूईं से टीके लगाता रहा..जिस की वजह से २५ लोगों को एचआईव्ही संक्रमण हो गया ... मीडिया को तो टीआरपी भी देखनी है .. अभी एक पत्रकार किसी पीड़ित से पूछ रहा था कि क्या आप को पहले से पता था कि वह एक ही सूईं से टीके लगाता है ... बेवकूफ़ी से भरा सवाल तो है ही ....उस पीड़ित ने यही कहा कि पहले से पता होता तो हम लोग जाते ही क्यों वहां...

वैसे वह झोलाछाप इन लोगों का इलाज १० रूपये में करता था ... एक टीका तो लगाता ही था और साथ में दो तीन खुराक दवाई देता था...सुबह रेडियो में भी यह खबर आ रही थी कि इतने लोग इस से संक्रमित हो गये हैं और इन को इलाज के लिए फलां फलां जगह रेफर कर दिया गया है ... ठीक है, इलाज के लिए रेफर कर दिया है और इन की बेहतरी भी इसी में ही है कि वे  लोग समय पर दवाईयां आदि जो भी इन्हें दी जाएं...इन के खून की जांच के बाद ...लेते रहें ...लेकिन क्या इस से ये दुरुस्त हो जाएंगे! बीमारी के आगे बढ़ने की रफ्तार कम हो जाएगी..बस, बाकी इंफेक्शन तो रहेगा ही!

मुझे यह समझ नही आ रही थी इस तरह की घटनाओं में हम लोग दोष किस के सिर पर मढ़ें....गुरबत, अनपढ़ता, बेबसी, दबंगई .... गुरबत, अनपढ़ता, बेबसी तो पीड़ितों की हम जानते ही हैं ...लेकिन उस झोलाछाप की दबंगई की बात करें तो वह भी मुझे देखने में कहीं से भी दबंग नज़र नहीं आया....लेकिन दोष तो है कि जिस इलाज का आप को इल्म ही नहीं है उसी में जा घुसे ...और इतनी भयंकर बीमारियां परोस दी उन लोगों को ...अभी तो उस एरिया के २०० लोगों का ही टेस्ट हुआ है ... बाकी का तो अभी होना है ...

इस तरह की घटनाएं यहां वहां और सारे देश से यदा कदा आती रहती हैं....मीडिया के लिए ये वाकया होते हैं..हम लोगों के लिए भी शायद यही कुछ ... सुनते हैं, भूल जाते हैं... लेकिन जिस तन लागे, वह तन जाने! अभी मुझे ध्यान आ रहा है कि पंजाब के एक जिले में कुछ साल पहले एक झोलाछाप नपा गया क्योंकि उस ने एेसे ही दूषित सूईं से दर्जनों लोगों को हैपेटाइटिस बी की बीमारी दे डाली थी ...

कहने का मतलब है कि जो घटनाएं मीडिया में पहुंचती हैं....उस के अलावा भी सैंकड़ों-हज़ारों ऐसी घटनाएं होती होंगी और ज़रूर होती हैं...जिन तक मीडिया पहुंच ही नहीं पाता....बहुत से कारण है कि बहुत सी घटनाओं को तो दबा ही दिया जाता है ... 
देश में हर तरफ़ झोलाछाप डाक्टर, झोलाछाप फुटपाथिया डेंटिस्ट, चलते फिरते ट्रंकी वाले कान के स्पैशलिस्ट और हर मेले पर स्टॉल सजाए हुए आप को टैटू गुदवाने वाले मिल जायेंगे... और ये सब लोग भी कमा-खा ही रहे हैं ...क्योंकि लोग इन से इलाज करवा ही रहे हैं... 

यह जो मैंने गुरबत और बेबसी वाली बात की है ....अब तो यह भी लगने लगा है कि ऐसा नहीं है कि गरीब लोग ही इन के शिकार बनते हैं या अनपढ़ लोग ही इन की बातों में आ जाते हैं....ठीक ठाक पढ़े लिखे लोग भी इन के पास जाते हैं... इन से टैटू भी गुदवाते हैं.... टीके भी लगवाते हैं.... भगंदर, फिश्चूला तक के टीके ये झोलाछाप लगा देते हैं ....कौन जानता है ये लोग रोज़ाना कितने सैंकड़े लोगों को एचआई व्ही, हेपेटाइटिस बी, सी तथा अन्य तरह के संक्रमण जिन के बारे में शायद अभी हम लोग जानते ही न हों, वे सब फैला रहे हों....कोई नहीं जानता, कोई आंकड़े नहीं है, बस ढुल-मुल रवैया है हर बंदे का ....अगर सख्ती बरती जाए तो ये झोलाछाप कहीं नज़र ही न आएं...लेकिन शायद यह कहना जितना आसान है उतना इस तरह की व्यवस्था को लागू करना इतना आसान भी नहीं है ...

अभी कुछ दिन पहले लखनऊ के एक खानदानी मर्दाना ताकत का व्यापार करने वाले एक हकीम के यहां छापा मार कर बिना लाईसेंस की दवाईयां आदि जब्त तो की हैं.....एक बात तो है ही सरकार काफी कुछ कर रही है, जागरूकता के लिए जनसंचार माध्यमों से संदेश प्रसारित करती है ... और भी बहुत कुछ ....कुछ तो जिम्मा जनता को भी तो लेना पडे़गा...हर बार वही अनपढ़ता वाली बात कह कर पल्ला नहीं छुड़ा सकते ....

स्कूटर पर बैठ कर दांतों का इलाज करवाया जा रहा है ..लखनऊ कैंट  की तस्वीर है यह 
गरीब-गुरबे ही क्यों .... अच्छे पढ़े-लिखे दिखने वाले भी इन झोलाछापों के चक्कर में आ ही जाते हैं...परसों मैंने यहां लखनऊ में पहली बार देखा कि एक युवक अपने स्कूटर पर बैठ कर एक चलते-फिरते झोलाछाप दांतों के स्पेशलिस्ट से कुछ दांत साफ़ करवा रहा था ...इस के बारे में मैं एक पोस्ट लिखूंगा अलग से ... मुझे दुख हुआ यह देख कर कि न तो यह काम करने वाले को ही और न ही करवाने वाले को ही पता है कि जो इलाज चल रहा है उस का और जो औजार इस्तेमाल हो रहे हैं इन से कितनी भयंकर बीमारियां फैलने का रिस्क है ... 

बड़ी विषम समस्याएं हैं हम लोगों की ... जागरूक करते रहते हैं ... सरकारी मीडिया भी अपना काम करता ही रहता है ...लेकिन फिर भी अगर लखनऊ जैसी जगह में यह मंजर दिखा या लखनऊ के ही साथ लगते उन्नाव में यह एचआईव्ही वाली घटना हुई ....ऐसे में जो दूर-दराज के एरिया हैं वहां पर क्या हो रहा होगा, उस की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते शायद.... 

जनमानस को जागरूक करने की और झोलाछापों पर शिकंजा कसने की बहुत ज़रूरत है ... 

बस, एक प्रार्थना ही कर लेते हैं सब के लिए ....

शनिवार, 13 जनवरी 2018

टमाटर के बिना ही बन रही है टमाटर सॉस

अकसर अगर हम नामी गिरामी कंपनियों के अलावा टमाटर सॉस की बात करते हैं तो हमारा इंप्रेशन यही होता है कि चालू कंपनियां सडे़-गले टमाटर इस्तेमाल करती होंगी और इन को तैयार करते वक्त स्वच्छता के मानकों का ध्यान नहीं रखा जाता होगा....यही सोचते हैं न हम?

साभार : हिन्दुस्तान १३.१.१८ (इसे अच्छे से पढ़ने के लिए इस इमेज पर क्लिक कर सकते हैं) 
मेरी भी यही सोच थी आज तक ...लेकिन आज का अखबार देख कर इतनी हैरानगी हुई ...गुस्सा भी आया कि किस तरह से जन मानस की सेहत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है कि टमाटर सॉस बनाते वक्त टमाटर इस्तेमाल ही नहीं किए जा रहे कुछ जगहों पर ..

कल कुछ इधर लखनऊ के पास छापेमारी में पता चला कि उस जगह पर बन रहे सॉस में किसी सब्जी का इस्तेमाल होने के बजाए स्टार्च, रंग और एमएसजी (मोनो सोडियम ग्लूटामेट) व अन्य सामग्री का इस्तेमाल हो रहा था और ये सब चीज़ें वहां से बहुत ही ज्यादा मात्रा में बरामद हुईं....ये सब चीज़ें सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक हैं... आप पढिए इस न्यूज-स्टोरी को जिस को मैंने यहां एम्बेड किया है ...

सोचने वाली बात यह है कि क्या यही एक जगह होगी कि यहां यह सब गोरखधंधा हो रहा था ...ऐसा कैसे हो सकता है! स्वास्थ्य विभाग की जिस टीम ने यह छापा मारा वह बधाई की पात्र है ...चाहे है तो यह एक tip of the iceberg वाली बात ही ..लेकिन इतनी भयंकर मिलावट सामने तो आई...अब लोगों का भी तो कुछ रोल है कि वे चालू किस्म की ऐसी चीज़ों से थोडा़ बच के रहें...

लोगों से यह उम्मीद करना कि वे बच कर रहें ...कुछ ज़्यादा नहीं लगता?...कैसे बचे आम जन ? अच्छी कंपनी की जो सॉस १२० रूपये में बिकती है ....ये चालू कंपनियां सॉस के नाम पर इस तरह का मिलावटी सामान २० रूपये में बेचती हैं...ज़्यादातर लोग देश में रोड-साइड ठेलों, खोमचों, ढाबों, चालू किस्म के रेस्टरां में ही खाते हैं....और क्या आप को लगता है कि वे अच्छी कंपनी के प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करते होंगे....आलम तो यह है यहां लखनऊ के कुछ बेहद नामचीन और प्रसिद्ध रेस्टरां से भी कुछ अरसा पहले चालू किस्म की सॉस बरामद हुई थी ....

और आंकड़े भी देखने-ढूंढने चाहिए कि कितने लोगों को अभी तक इस तरह के मिलावटी सामान तैयार करने या इस्तेमाल करने के ज़ुर्म में कैद हुई ...कितनों को जुर्माना हुआ...

मुझे तो यही लगता है कि जागरूकता ही एक उम्मीद बची है ....इन मिलावटखोरों का कोई क्या उखाड़ लेगा, कब उखाडेगा ....यह हम सब जानते हैं...कानूनी प्रक्रिया बड़ी जटिल है ... शायद अगर हम लोग खुली हुई सॉस बाज़ार में इस्तेमाल करना और खरीदना ही बंद कर दें तो कुछ हो जाए....शायद....फिर भी शायद वाली बात ही तो है.... देश में इतनी गरीबी, लाचारी, भुखमरी, बेबसी, शोषण है ...कि लोग कूड़ेदान बीनते दिख जाते हैं कि कुछ मिले तो सही .......ऐसे में सॉस कहां से आई ...कैसे बनी, इसे कौन देखेगा! धिक्कार है उन सब व्यापारियों पर जो इन धंधों में संलिप्त हैं...

मेरा काम है घंटी बजाना, वह मैंने बजा दी है .....सचेत रहिए, बचे रहिए और अपने से कम मुकद्दरवालों को भी थोड़ा बचाते रहिए...

सोमवार, 8 जनवरी 2018

और उस नन्हें बालक की सांसे थम गईं...

वाटसएप पर दो दिन पहले एक संदेश आया कि सारा संसार तो नफ़रत की आग में धधक रहा है, पता नहीं फिर यह कमबखत ठिठुरती सर्दी कहां से आई? मैं भी सहमत हूं इस बात से ...जिस तरह से हम लोगों ने आपस में तरह तरह की दीवारें खड़ कर रखी हैं, हम लोगों को हमारे ही अहम् (ईगो) ने बीमार कर रखा है... हम बिना बात के ही ऐंठे रहते हैं...दूसरे को नीचा और अपने को श्रेष्ठ दिखाने के चक्कर में हलकान हुए फिरते हैं...किसी को आंखों से हिकारत से देखते हैं, किसी को बातों से चोटिल करते हैं..किसी पर अपनी कलम की ताकत से वार करने से नहीं चूकते...यही सब करते हैं हम लोग....बात वही है जो हम लोगों को बार बार समझाई जाती है कि अंदर गई हुई सांस बाहर आई है तो ठीक है ...नहीं तो इस मिट्टी के पुतले की क्या बिसात! 

दो तीन दिन पहले मैं ट्रेन से लखनऊ से सैकेंड ए.सी में दिल्ली जा रहा था...शुरू से ही पास के एक केबिन से एक छोटे शिशु के रोने की थोडे़ थोडे़ समय बाद आवाज़ आ रही थी लेकिन अकसर छोटे बच्चे तो ये सब करते ही हैं ..किसी ने इतना नोटिस नहीं किया। 

रात में कुछ शोर शराबा हुआ ...एक महिला की आवाज़ आ रही थी कि मुझे तो मेरा बच्चा चाहिए बस...मुझे तो मेरा बच्चा चाहिए बस....अब बच्चे की आवाज़ तो नहीं आ रही थी लेकिन उस महिला के रुंदन-क्रंदन की छटपटाहट सुनाई दे रही थी ..और वह किसी को कह रही थी तुम्हारी लापरवाही की बदौलत यह सब हुआ ...

दरअसल हुआ यह जो मेरे भी कानों में पड़ा कि उस बच्चे को कोई सांस की तकलीफ़ थी ...लखनऊ के किसी अस्पताल द्वारा उसे दिल्ली के किसी बड़े अस्पताल में रेफर किया गया था...बच्चे को ऑक्सीजन लगी हुई थी ...और साथ में एक ऑक्सीजन का एक्स्ट्रा सिलेंडर भी एक या दो स्टॉफ के साथ रखवाया था...परिवार की बदकिस्मती यह रही कि सिलेंडर की चाबी स्टॉफ लाना भूल गया...जो मैंने अपने सहयात्रियों से सुना...अब जैसे ही पहला सिलेंडर खत्म हुआ और नया सिलेंडर खोलने की बात आई तो यह भूल सामने आई....सिलेंडर खोलने के लिए कुछ न कुछ जुगाड़ किया जाने लगा लेकिन ऑक्सीजन का सिलेंडर इस तरह का होता है कि उसे खोलने के लिए कोई जुगाड़ नहीं, बस उस की चाबी ही काम करती है...मां तो बार बार कहती रही कि आप लोग ऐसे कैसे यहां से वहां इलाज के लिए भेज देते हो अगर बच्चे की हालत ठीक नहीं थी तो ...वह कोई बात नही, एक दुःखियारी मां के दिल से निकल रहे उद्गार  थे.. 

बच्चा की जब सांसे उखड़ने लगीं और वह छटपटाने लगा तो बदहवास मां ने चेन खींच दी इस उम्मीद के साथ कि जहां भी गाड़ी रुकेगी ..वहां ही किसी पास के अस्पताल में बच्चे का इलाज करवा लेंगे...लोग कह तो रहे थे कि अभी मुरादाबाद २०-२५ मिनट में आ जायेगा...लेकिन बदकिस्मती देखिए कि चेन खींचने के बाद गाड़ी एक ब्रिज पर जा रूकी.... उन लोगों का नीचे उतरना तो दूर .. गाड़ी भी वहां काफ़ी समय रूकी रही ...क्योंकि लोग बता रहे थे कि एक बार चेन खींची जाने के बाद गार्ड को उस डिब्बे तक आकर कुछ लीवर ठीक करना होता है...तभी गाड़ी आगे चलती है ...बहरहाल जैसे तैसे कुछ समय के बाद कुछ रेलकर्मी आए...चेन को ठीक ठाक किया होगा ...और तब गाड़ी चल पड़ी... 

थोड़ी देर में मुरादाबाद आ तो गया लेकिन शायद तब तक देर हो चुकी थी ... किसी के मुंह से इतना तो कहते सुना कि अगरबत्ती जलवा दो....पता नहीं किसने यह कहा लेकिन कोई आला दर्जे का बेवकूफ़ ही होगा ...वे बच्चे का इलाज करवाने जा रहे थे ना कि ....

थोड़े समय के बाद आवाज़े आनी बिल्कुल बंद हो गईं... रो रो कर वह मां भी थक हार के सो गई होगी...धुंध के कारण ट्रेन लेट थी दो तीन घंटे ..दिल्ली पर कोई व्यक्ति उन्हें रिसीव करने आया हुआ था ... शायद वह शिशु की दादी रही होगी जिसने शाल में उसे लपेटा हुआ था ...और मां नींद से उठने के बाद फिर रोने लगी ..उस का शोकग्रस्त पति रोते हुए उसे भी संभालने की कोशिश कर रहा था...प्लेटफार्म पर उन सब को जाते देख कर मन बहुत दुःखी हुआ... बेहद अफसोस हुआ... ईश्वर उस शिशु की आत्मा को शांति प्रदान करे .. जो खिलने से पहले सी टहनी से टूट गया....

एक पुरातन कहावत है ...जाको राखे साईंयां...लेकिन  इस के विपरीत इस शिशु के साथ तो सब कुछ इस के उलट हुआ जैसे होनी अटल होती है ...यही बात हो गई...

बात यही नहीं कि बच्चा कितना सीरियस था ....अगर दूसरा सिलेंडर खुल भी जाता तो शायद दिल्ली तक चिकित्सकों के पास तब भी पहुंच पाता या नहीं....बात यह भी नहीं है ...यह दुनिया ही आस पर टिकी हुई है...लेकिन आम पब्लिक की नज़र में और रिश्तेदारों की नज़र में इस कोताही की वजह से ही बच्चा चल बसा....कोई कितनी भी लीपापोती कर ले, लेकिन जो दिखता है वही सच माना जाता है ... क्या पता बच्चे की सांसे चलती रहतीं!

मुझे दो तीन दिन से यही ध्यान आ रहा है कि गोरखपुर में आक्सीजन की कमी की वजह से कितने दर्जन बच्चों ने अपनी जान गंवा दी....और भी यहां वहां इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं...और यहां तक कि गलती से ऑक्सीजन के खाली सिलेंडर भी मरीज को चढाए जाने के हादसे हो चुके हैं ....और हर हादसा एक सीख दे कर जाता है ...जैसा कि यह चाबी उपलब्ध न  होने वाला कांड़ सारी चिकित्सा व्यवस्था को एक बड़ा सबक दे गया...काश, हम लोग हर भूल से मिलने वाले सबक को गांठ बांध लिया करें...

पता नहीं मैं कितना ठीक हूं या नहीं लेकिन मेरे विचार में इस तरह की कुछ रिसर्च होनी चाहिए कि ऑक्सीजन वाले सिलेंडर को खोलने के लिए चाबी की ज़रूरत ही न हो... होना चाहिए कुछ ऐसा ज़रूर ...शायद लोगों ने कुछ कोशिश तो की होगी ...ऑक्सीजन की कम-ज़्यादा करने के लिए तो व्यवस्था होती ही है ...लेकिन खोलने का कुछ आसान तरीका होना चाहिए...अकसर देखने में आता है यह चाबी उस सिलेंडर के साथ ही टंगी होती है ....लेकिन फिर भी चाबी के इधर-उधर होने की या यात्रा के दौरान इस तरह की भूल होने की गुंजाइश तो रहती ही है ... हमें हर हादसा एक सबक देता है....

दुआ है कि सांसे सब की चलती रहें ....कुछ महीने पहले मेरा बेटा बाली के समुद्र में स्कूबा डाईविंग - गहरी डाईविंग की ट्रेनिंग ले कर आया तो मैं उस की समुद्र में नीचे जा कर तैरने की बातें सुन कर रोमांचित हो रहा था तो उसने मुझे एक ही बात कही कि बापू, उस ट्रेनिंग के दौरान एक बात तो सीख ली कि ज़िंदगी में बेकार की बातों की टेंशन-वेंशन में अपनी खुशखवार ज़िंदगी को बर्बाद नहीं करना चाहिए....और उसने मुझे समझाया कि बस एक बात है ....जब तक बाहर गई हुई सांस वापिस अंदर आ रही है ना समझो सब कुछ ठीक है ......मैंने उसे उस दिन अपना गुरू मान लिया और उस की यह बात पल्ले बांध ली...