दो दिन पहले शाम को यहां मुंबई के षणमुखानंद हाल में रविंद्र जैन की याद में एक म्यूज़िक कंसर्ट था...यह ६.३० बजे शुरू होना था...लेकिन मुझे ड्यूटी पर कुछ ऐसा काम था कि मुझे फ़ारिग होते होते साढ़े सात बज गए ...मुझे यही लगा कि कुछ भी कर लूं, सवा आठ बजे तक ही पहुंच पाऊंगा ....वही हुआ वहां पहुंचते पहुंचते साढ़े आठ तो बज ही चुके थे ...
आर जे अकादमी- रविंद्र जैन अकादमी |
चलिए, मैं हाल में अंदर जा कर बैठ गया....बहुत सी सीटें खाली थीं, तो मैंने जो खाली देखी वहीं बैठ गया....जैसा कि टिकट से ही पता चलता है वहां पर सुरेश वाडेकर और अनूप जलोटा भी आने वाले थे...हाल में पहुंचते ही सुरेश वाडेकर गीत गाते दिखे ....हुस्न पहाड़ों का ...क्या कहने कि बारह महीने...मौसम जाड़ों का .... उस के बाद सब को सम्मानित करने का सिलसिला शुरू हो गया....
एक बहुत बड़ी गायिका वहां स्टेज पर उपस्थित थीं....बेगम अख्तर के साथ रह चुकी हैं...और भी बहुत से बडे़ बड़े उस्तादों से सीख चुकी हैं....लोगों ने कुछ गाने की फरमाईश की तो देखिए और सुनिए उन्होंने कैसे बिना किसी साज़ के फ़ौरन समां बांध दिया ......यह होता है टेलेंट ...प्रतिभा....रियाज़ का कमाल........
श्रीमति दिव्या रविंद्र जैन |
अभिषेक रविंद्र जैन, रविंद्र जैन के सुपुत्र सुरेश वाडेकर के साथ खड़े हैं |
जब मैं हाल के अंदर पहुंचा तो वहां पर सुरेश वाडेकर राम तेरी गंगा मैली का वह गीत गा रहे थे ...हुस्न पहाड़ों का ... |
अब देखिए मेरे वहां पहुंचने के १०-१५ मिनट के बाद ही इंटरवल हो गया....मैं तो पहले ही वह कच्चा-पक्का समोसा खा कर तंग हो रहा था..इसलिए मैंने तो कहां बाहर जाना था, बैठा रहा वहीं पर .....😂
रविंद्र जैन के बारे में कुछ बरसों तक ज़्यादा जानकारी थी नहीं....लेकिन जब टीवी पर उन के कईं इंटरव्यू देखे तो समझ में आने लगा कि स्कूल कालेज के जमाने से जिन गीतों पर मैंं फिदा था उन में से बहुत से तो रविंद्र जैन के संगीत से सजे हुए थे ...
१९७८-७९ के दिन याद - ४०-४५ बरस पहले वाले दिन याद करूं ..अपने कालेज के नये नये दिन ....एक रेडियो होता था...जिसे
ठंडी़ के दिनों में रात के वक्त आड़ा तिरछा घुमाते रहने से कईं बार दो चार मिनट के लिए विविध भारती लग जाया करता था ...उसी दौरान विविध भारती पर इस तरह के गीत सुनते थे ......सुनयना का सुनयना., सुनयना.....आज इन नज़ारों को तुम देखो और मैं तुम्हें देखते हुए देखूं....विकीपीडिया पर देखा तो पता चला कि इस से पहले भी जो गीत चितचोर फिल्म के, गीत गाता चल आदि के सुनते आ रहे थे ...उन के संगीत से लुत्फ़अंदोज़ हुए रहते थे उन में भी दादू का ही संगीत था...रविंद्र जैन मोहब्बत करने वाले उन्हें दादू कहते हैं...
दिव्या जैन की माता जी निर्मला जैन भी एक महान् लेखिका थीं। प्रोग्राम के दौरान दादू का रामायण सीरियल में जो अहम् योगदान था, उस के बारे में भी बातें हुईं....उस धारावाहिक में जैन साहब ने बहुत से गीत, भजन गाए...एक कलाकार ने आकर उन का यह गीत सुनाया.....सुनो रे राम कहानी ...अभी मैं इस गीत के नीचे लिखे क्रेड्टस देख रहा था तो पता चला कि इस के बोल, संगीत और आवाज़ सब कुछ उन का ही है ...रामायण सीरियल के बाद उन्हें फिल्मों में पार्श्व गायन के भी बहुत से अवसर मिलने लगे ...और वह गीत, शेरो शायरी, गज़लें, नज़्में भी लिखा करते थे ....हिदी, उर्दू, अवधी, भोजपुरी में भी लिखते थे ...सुरेश वाडेकर भी उन के साथ जुड़ी अपनी यादें साझा कर रहे थे कि किस तरह से लगभग रोज़ाना ही उन के साथ बैठना होता था ....
इस के बाद दूसरे गायकों ने कुछ गीत प्रस्तुत किए जिन में भी रविंद्र जैन ने संगीत दिया था....
पहेली फिल्म का गीत ...सोना करे झिल मिल...यह फिल्म १९७६ की है ...और इसे हम लोग ४५ साल से सुनते चले आ रहे हैं....लेकिन अभी तो जब कहीं बजता है तो सब काम छोड़ कर बैठ जाते हैं....
हिना फिल्म का यह गीत...जाने वाले ओ जाने वाले ....
छोड़ेंगे न हम तेरा साथ ओ साथी मरते दम तक ....(मरते दम तक- १९८७)
ले तो आए हो तुम सपनों के गांव में ...(दुल्हन वही जो पिया मन भाए)
अभी मैंने देखा मैंने यह गीत यू-ट्यूब पर लगाया तो अपने आप ही कुछ गीत बाद में चलने लगे.....एक था ...अंखियों के झरोखों से ...मैंने देखा जो सांवरे ....मुझे जिज्ञासा हुई कि देखा जाए यह किस का गीत है ....नीचे लिखा था, गीतकार रविंद्र जैन...जितने भी उस दौर के सुपर-डुपर गीत हुए.....उन में से बहुत से गीतों का संगीत दादू का रहा, या उन के लिखे हुए थे .....और बाद में तो वह पार्श्व गायन भी करने लगे...
सुनो तो गंगा यह क्या सुनाए.....कि मेरे तट पर वो लोग आए ...(सुरेश वाडेकर)
इस तरह के प्रोग्राम में शिरकत इसलिए नहीं करते लोग कि गीत सुन लेंगे...गीत तो सुनेंगे ही ....वो तो अब मोबाइल पर कभी भी सुन सकते हैं ...इस तरह के आयोजनों के दौरान इन अज़ीम शख्सियतों के आस पास रहे लोगों से उन के बारे में जानने का मौका मिलता है ...अनूप जलोटा बता रहे थे कि मैं जब भी उन्हें मिलता तो कहते - यार, वो वाला भजन सुनाओ....ऐसी लागी लगन....मीरा हो गई मगन ..अनूप जलोटा ने वह भजन भी सुनाया...इस से पहले उन्होंने शुरुआत अपने उस भजन से की ..श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम....अनूप जलोटा का एक प्रोग्राम हमें लखनऊ में भी देखने का सुअवसर मिला था ...क्या लंबी आवाज़ खींचते हैं......वाह......
श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम..... |
ऐसी लागी लगन ....मीरा हो गई मगन .... |
भजन को बीच ही में रोक के कहने लगे कि यह लंबी लंबी जो आवाज़ निकलती है यह बाबा रामदेव के प्राणायाम का कमाल है ......एक किस्सा सुनाने लगे......एक व्यक्ति जो निरंतर प्राणाायाम किया करता था ...बहुुत लंबी उम्र भोग कर जब ९४-९५ की उम्र में स्वर्गधाम पहुंचा तो मुख्य द्वार पर एक सुंदरी ने उसे वेलकेम ड्रिंक दिया...उसे बहुत खुशी हुई.....वह अभी थोड़ा आगे पहुंचा तो एक दूसरी सुंदरी ने उन के गले में गुलाब के फूलों की एक माला पहनाई .....वह बहुत खुश .......आगे गया तो एक सुंदरी ने उन के समक्ष एक नृत्य की प्रस्तुति दी.....वह बंदा वहां बैठा बैठा यह सोचने लगा कि बेकार में बाबा रामदेव के प्राणायाम के चक्कर में बहुत देरी हो गई यहां आने में ... 😎 दो भजन गाने के बाद अनूप जलोटा ने वह गीत सुनाया ....घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं ....जाते जाते कहने लगे कि यह उन के अपने घर का प्रोग्राम होता है ...यहां वह लोगों से मिलने आते हैं, दादू की याद में पुष्पांजलि देेने आते हैं....
२८ फरवरी को रविंद्र जैन का जन्म दिवस है .... |
एक बात और लिख दूं....कहीं भूल न जाऊं...मैं अकसर रेडियो ही सुनता हूं....कल रेडियो पर नौशाद साहब के संगीत के बारे में एक फिल्म लेखक कहने लगा कि फिल्म में उन का संगीत ऐसा होता था जैसे कोई किसी गांव से हो आया हो .....अभी मुझे लिखते हुए याद आया .....तो यह लगा कि बिल्कुल ठीक बात है ...और रविंद्र जैन साहब का संगीत सुन कर ऐसे लगता है जैसे अपने घर पर चारपाई पर नहीं बैठ कर किसी गांव-छोटे कसबे के मेले में घूमते हुए खुशियां मना रहे हैं......सोचिए कोई भी फिलम जिस में इन का संगीत था...चितचोर, अंखियों के झरोखों से ...गीत गाता चल ... क्या क्या गिनाएं .....अपने पास तो इतना भी सब्र नहीं है कि इन महान् हस्तियों के बारे में लिखते हुए घड़ी की तरफ़ देखने लगते हैं.... हां, भाई लोगो, रविंद्र जैन की एक किताब भी छपी हुई है ....देखिए यहां इस की जानकारी- दिल की नज़र से।
लीजिए, प्रोग्राम के अंत में जब किसी गायिका ने यह गीत गाया .......फकीरा फिल्म का ...दिल में तुझे बिठा के ...कर लूंगी मैं वंदना ....मुझे नहीं पता था कि इस का संगीत भी रविंद्र जैन का ही था......१९७६ की फिल्म का वह सुपर डुपर गीत ...४७ साल पहले अमृतसर के किसी थियेटर में देखी थी ....वह गीत हमेशा के लिए याद रह गया....
प्रोग्राम के आखिर में दादू का संगीतमय किया हुआ वह गीत पेश किया गया.....जोगी जी धीरे धीरे....(फिल्म -नदिया के पार) ..होली के दिन चल रहे हैं तो इस गीत पर धमाल तो होनी ही थी...यह गीत बजते ही लोग मस्ती में आकर नाचने लगे ....