बीते रविवार के दिन महान गायक किशोर कुमार का जन्म दिन था …षणमुखानंद हाल में शाम के वक्त प्रोग्राम था…उस प्रोग्राम में शामिल होने का मौका मिला…बारिश खूब हो रही थी लेकिन बंबई वालों को कब बरसात कुछ करने के लिए रोक पाती है ….पूरा हाल जिस में दो बॉलकनी भी हैं, खचाखच भरा हुआ था…हाउस-फुल।
किशोर कुमार के गीतों का दीवाना हूं मैं …लेकिन मुझे बार बार यह एहसास होता है कि मैं किशोर के गाए उन गीतों का ही दीवाना हूं जो ऐसे वक्त में आए जब मेरी आयु 5-6 वर्ष की थी ….यानि 1968 के आस पास के गीत …और फिर उस के बाद तो उन के गीतों की लिस्ट क्या बताएं जो हमें रट चुके थे ..बाद में जब तोहफा-वोहफा वाले गीत आए, वे मुझे तब भी पसंद न थे, अभी भी नहीं हैं…
म्यूज़िक कंसर्ट में चले तो गए…..पिछले 10 साल से हर साल ऐसा कुछ सबब बन जाता है कि किशोर के जन्मदिन के दिन कहीं न कहीं प्रोग्राम में शामिल होने का मौका मिल जाता है। लखनऊ में थे तो चारबाग रेलवे स्टेशन के ठीक सामने रविंद्रालय सभागृह में अकसर यह प्रोग्राम होता था .. सब से पहले मैंने कोई म्यूज़िक कंसर्ट भी शायद वहीं देखा था….शायद 200 रुपए की टिकट थी…2015 के आस पास की बात है….जब तक लखनऊ में रहे जाते रहे वहां ….हाल तो चाहे पुराना था लेकिन लखनऊ का टेलेंट तो आप लोग जानते ही हैं, शानदार प्रोग्राम होता था…
मुंबई में भी देखते रहे इस तरह के किशोर कुमार के प्रोग्राम ….इस बार भी पता चला तो चले गए।
इस में किशोर के बडे़ बेटे अमित कुमार, छोटे बेटे सुमित (लीना चंदावरकर के बेटे), अमित कुमार की पत्नी रीमा गांगुली और दोनों बेटियां भी शामिल थीं….दोनों बेटियों ने भी पहली बार स्टेज पर किशोर कुमार के गाए गीत पेश किए। सुमित ने भी गीत गाया…..और हां, अमित कुमार की बीवी रीमा गांगुली ने भी पहली बार स्टेज पर एक-दो गीत गाए…
इस सारे परिवार को गाते देख कर - अमित कुमार की बीवी, भाई और बेटियों को देख कर मुझे बिल्कुल ऐसे लग रहा था ….मुझे क्या, शायद औरों को भी …जैसे इंडियन ऑयडल के किसी शो में बैठे हुए हैं…समझ रहे हैं न आप…..अच्छा है, अगर समझ रहे हैं तो….
और अमित कुमार ने जितने गीत पेश किए वे भी किशोर कुमार के थे लेकिन मेरे इस संसार में प्रकट होने से पहले वाले ….कोई शक नहीं, वे भी सुपर हिट गीत रहे होंगे अपने दौर के, अमित ने किशोर कुमार की एक्टिंग, डॉयरेक्शन के भी कसीदे पढ़े लेकिन मुझे इस सब में कोई रुचि नहीं थी, क्योंकि कारण मैंने ऊपर लिख दिया है कि मुझे मेरी उम्र जब 5-6 साल की थी, उस के बाद के गीत ही भाते हैं….वैसे देखा जाए तो यह मेरी खुद की प्राब्लम है, किशोर कुमार की नहीं…..जैसे अपना ब्लॉग होता है वैसे ही अपनी पसंद नापसंद।
और हां, वैसे भी किशोर कुमार के गीतों को फीमेल आवाज़ में सुनना मुझे नहीं भाता….हम ठहरे किशोर कुमार के ऐसे फैन कि फुटपाथ से किशोर कुमार के सुपरहिट गीतों की 5-10 रुपए वाली किताबें खरीद कर आराम से उस के पन्ने उलट-पलट करते रहते थे, उन को पढ़ते रहते थे ….मैं यहां यह लिखने की बेवकूफी नहीं करूंगा कि उन को गुनगुनाते रहते थे …क्योंकि ऐसा करना भी कहां अपने बश में था…ज़्यादा से ज़्यादा जब रेडियो पर गीत बजते थे तो उस किताब को खोल कर बैठ जाते थे …कभी कभी….
लेकिन लखनऊ में रहते हुए किशोर के गीतों की एक किताब ने उर्दू सीखने में मेरी बहुत मदद की ….2018-19 के आसपास की बात है, उर्दू सीखने के लिेेए पूरी मेहनत तो कर रहा था लेकिन मेरे मोटे दिमाग में बात बैठ ही नहीं रही थी ….ऐसे में अचानक पुराने लखनऊ के नक्खास इलाके में मुझे एक छोटी सी किताब मिल गई..किशोर कुमार के गीतों की …बस, किशोर कुमार की फोटो देख कर उसे खरीद लिया …उर्दू की किताब को।
बस, फिर क्या था, जैसे तैसे किताब से फिल्म का नाम और उस गीत की पहली लाइन या शुरुआती अल्फ़ाज़ तो पढ़ ही लेता औखा-सौखा हो के …बस फिर क्या था, यू-ट्यूब पर वह गीत लगा कर किताब हाथ में पकड़ लेता ….बहुत जल्दी मुझे उर्दू के हर्फ़ समझ आने लगे और फिर गाड़ी चल निकली और इस गाड़ी को चलाने में लखनऊ के महान उर्दू उस्ताद मो क़मर खान साहब का बहुत योगदान…बहुत क्या, पूरे का पूरे श्रेय उन को ही देता हूं जिस तरह से उन्होंने हमें उर्दू लिखना-पढ़ना सिखा दिया…गंगा-जमुनी तहज़ीब से रु-ब-रु करवाया उस महान शख्शियत ने ….
लखनऊ से वापिस किशोर कुमार के जन्मदिन के प्रोग्राम में शामिल होते हैं….मुंबई में...
उस प्रोग्राम में सुदेश भोंसले और एक सिंगर प्रियंका मोइत्रा और आलोक भी थे ….आज इन तीनों का जादू चल रहा था ….यह जो प्रियंका मोइत्रा हैं यह पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, दुनिया भर में प्रोग्राम करती हैं…(कुछ दिन पहले कल्याणजी आनंद जी के प्रोग्राम में भी इन्होंने बहुत से गीत पेश किए थे …आनंद जी बहुत प्रशंसा कर रहे थे) …
किशोर कुमार के बारे में जो बातें बताई जा रही थीं वे काफी तो हमने वाट्सएप यूनिवर्सिटी के सिलेबस में कवर की हुई थीं। मोहित शास्त्री म्यूज़िक कंडक्ट कर रहे थे और प्रोग्राम के कंपियरिंग रेडियो सिटी के आर जे गौरव के हाथ में थी–.गौरव ने भी प्रोग्राम के दौरान यह सिद्ध कर दिया कि कैसे पब्लिक की नब्ज़ पर इन की पकड़ होती है …पब्लिक भी अब सीधी सादी भोली भाली नहीं रही कि कुछ भी चल जाएगा….वह वोकल हो चुकी है कि वह वाला या वह वाली सिंगर फिर से नहीं चाहिए और वह वाला या वह वाली सिंगर फिर से लाइए….और इस काम को गौरव ने बड़े अच्छे से, बड़ी शालीनता से संभाला…खैर, वह तो मुंबई का कल्चर ही है …ऑडिऐंस बहुत अच्छे से बिहेव करती है ….जब तक उस की नाक में दम ही न कर दिया जाए….वह अपनी जगह ठीक भी है, इतनी इतनी महंगी टिकटें ले कर बैठे होते हैं लोग….उस दिन भी विंडो पर 1500 रुपए से कम की टिकट ही नहीं थी, बाकी सब बिक चुकी थीं….
जो गीत वहां पेश किए गए, उन में से ये मेरी पसंद के थे …वैसे तो मेरी लिस्ट बहुत लंबी है …और इन गीतों से भी कहीं ज़्यादा शानदार गीत किशोर कुमार के ही गाए हुए जो मुझे लखनऊ में खूब सुनने को मिले ….वैसे तो यू-ट्यूब पर भी भरमार है इऩ गीतों की ….
दीवाना ले के आया है …दिल का नज़राना …
ओ मेरे दिल के चैन….
जीवन के हर मोड पर मिल जाएंगे हम सफर…
इक मैं और एक तूं….
कोई रोको न दीवाने को …
जब दर्द नहीं था सीने में ….(फिल्म अनुरोध)
रफ्ता रफ्ता देखो आंख मेरी लड़ी है….
आप की आंखों में महके हुए से राज़ हैं….
हम तुम से मिले…फिर जुदा हो गए (रॉकी)
टूटा जो दिल किसी का ..हैरत की बात क्या …
प्रोग्राम के दौरान मैं यही सोचता रहा कि किसी इंसान की मेहनत, मशक्कत और किस्मत का जादू होता है जो चल जाता है …और सालों साल लोगों के दिलोदिमाग पर छाया रहता है यह जादू …जैसे किशोर का जादू था ….इन पुराने गायकों ने घोर तपस्या की, जैसे सिद्धी हासिल कर ली हो अपने फन में …लेेकिन आगे की पीढ़ी वैसा जादू कर पाए, यह कोई कह नहीं सकता…वैसे मैं जब वापिस लौट रहा था तो मैंने मोबाइल में चेक किया तो मुझे पता चला कि किशोर कुमार के बेटे अमित ने भी बहुत काम किया है …सुना है अमित ने बहुत समय पहले फिल्मों के लिए गाना छोड दिया था …छोड़ दिया खुद ही या किसी दूसरे कारणों से छूट गया …वह मुद्दा नहीं है, लेकिन बंदे ने काम अपने समय में काफी किया है….और लिस्ट देख रहा था तो मालूम हुआ की जो गीत इन्होंने गाए उन में से भी कुछ मेरे बहुत पसंदीदा गीत है ….लेकिन क्या करे कोई, पब्लिक की यादाश्त भी तो बहुत कमज़ोर है ….
लेकिन किशोर कुमार के गाया यह गीत तो कुछ और ही ब्यां कर रहा है …
इस प्रोग्राम के सिलसिले में नहीं ....लेकिन एक बात है कि किसी भी बड़े फ़नकार का जो जादू होता है ...वह अपना अनूठा जादू होता है ...हर किसी का अपना मुकद्दर होता है, इसलिए ज़िद्द विद्द से कुछ होता नहीं. नामचीन डाक्टर,एक्टर,गायक, लेखक, टीचर , क्रिकेटर का बेटा या बेटी भी वैसे ही निकलें, ऐसा कहां होता देखा है हम लोगों ने ....अनेकों उदाहरण हैं हमारे सामने ...इसलिए ज़िद्द छोड़ देनी चाहिेए लोगों को ...और चुपचाप राज कपूर की इस बात को पल्ले बांध लेना चाहिए....