बहुत लंबे अरसे के बाद कल सुबह बांद्रा के जॉगर्स पार्क में जाने का मौका मिला....जाने को तो जा ही सकते हैं, लेकिन आलस,और तरह तरह के बहानों का क्या इंतजाम करें, कभी मौसम के मिज़ाज ठीक नहीं हैं तो कभी अपने...कभी धूप ज्यादा हो गई है तो कभी कुछ...
अंड्राडे सर के बारे में आप भी पढ़िए इस लिंक पर जा कर - आप को सलाम करते हैं सर हम भी .... |
लेकिन सुबह जा कर किसी भी पार्क में अच्छा तो लगता ही है ...कल सुबह भी उठ तो गया साढे चार बजे ....पर जाने का मन नहीं था, खैर, किसी तरह मन को राज़ी कर ही लिया और साढ़ें पांच बजे के करीब चला गया....
वहां जाते ही पता चला कि इस पार्क का तो 34 वां हैपी-बर्थडे था दो दिन पहले ....अचानक वह दौर याद आ गया जब इसे तैयार हुए दो तीन साल ही हुए थे और हम लोग लोकल-ट्रेन में बांद्रा तक और वहां से बस या आटोरिक्शा में यहां शाम के वक्त आते थे ....उन दिनों यही कोई पांच रूपये की टिकट लगती थी अंदर जाने के लिए...
जॉगर्ज़ पार्क बड़ा व्ही.आई.पी पार्क लगता था ..लगता क्या था, है भी तो ...बहुत सुंदर पार्क है ...अब इस का प्रबंध बीएमसी के पास है ....और कुछ वर्षों से टिकट भी नहीं लेनी पड़ती। इस का वक्त भी बढ़ा दिया गया है ...सुबह पांच बजे खुलता है और दोपहर एक बजे बंद होता है ..फिर बाद दोपहर तीन बजे खुल जाता है और रात दस बजे तक लोग इसमें टहलते दिखते हैं...। अगर ध्यान हो आपको तो इसी पार्क के नाम वाली एक हिंदी फिल्म भी बनी थी ....अच्छी थी फिल्म. (इस गीत में भी आप तब के जॉगर्स पार्क के दीदार कर सकते हैं....😎)
फ़ुर्सत के पलों में भी लेखक शेल्फी लेने के चक्कर में |
इस का रख-रखाव बहुत अच्छे से किया जाता है ...टहलने का, जॉगिंग करने का ट्रैक बहुत बढ़िया है ....और हर तरफ हरियाली देख कर मन खुश हो जाता है ...सभी उम्र के लोगों के लिए यहां कुछ न कुछ है...ओपन-जिम भी है बहुत बढ़िया, एक तालाब है जिसमें बतखें मज़े से तैरती दिखती हैं.....बच्चे इस के पास मंडराते रहते हैं....समंदर के किनारे स्थित इस पार्क में बैठने की भी बहुत अच्छी व्यवस्था है और पार्क के अंदर कोई भी खाने-पीने की चीज़ भी नहीं ले जा सकता, यह बढ़िया उपाय है किसी भी सार्वजनिक जगह को साफ-स्वच्छ बनाए रखने के लिए..
यहां टहलते हुए विभिन्न रंगों की बोगनविलिया की झाडि़यां देख कर अच्छा लगता है ...सुबह सुबह कुदरत भी अपने राज़ खोलने को आतुर होती है जैसे ...मैं इस तरह के फलों को अकसर पेड़ों के नीचे गिेरे हुए देखता तो था ..लेकिन आज पता चला कि उस के अंदर क्या होता है क्योंकि यह आज टूटा हुआ दिखा ।...आकाश में आंख-मिचौनी करते बादलों का रूप देखते ही बनता है ....खास कर के तब जब लोग गर्मी-उमस से त्राहि त्राहि कर रहे हों....सुना है वर्ली सी लिंक से वर्सोवा तक जाने वाली कोस्टल रोड यहीं कहीं आस पास हो कर ही निकलेगी.....मुझे इस से ज़्यादा कुछ मालूम भी नहीं .....
पार्क के इस कार्नर से बांद्रा वर्ली सी-लिंक दिख रहा है .... |
बाहर निकलते हुए देखा एक महिला बिल्ली मौसियों को बड़े प्यार-दुलार से खाना खिला रही थी, देख कर मन खुश हो गया.....गेट के पास एक वयोवृद्ध सज्जन को व्हील-चेयर पर उन का सहायक पार्क के अंदर घुमाने ले जा रहा था ....और कुछ दिन पहले एक 40 की उम्र के करीब आयु का बेटा अपने पिता को हाथ पकड़ कर पार्क के अंदर ले कर जा रहा था ....और हां, एक सज्जन को उन का नाती घुमाने लाया था ... सही बात है ...घर से निकल कर कुदरत की गोद में थोड़ा वक्त बिताना है ...सब को अपनी अपनी बैटरी चार्ज करनी होती है सुबह सुबह ....
मुंबई में कुछ जगहों पर स्ट्रीट आर्ट मुझे बहुत मुतासिर करता है ....घर के पास लक्की अली के सुबह के तारे के बारे मे पता चला तो उसे यू-ट्यूब पर ढूंढ लिया.... |
जब किसी भी परेशानी की वजह से हम लोग पैदल टहल नहीं पाते ...तो ईश्वर का यह अनमोल वरदान समझ में आता है ....काश, हर पल हम शुकराने में रह पाएं.....लेकिन हम हैं कि यूं ही .....🙏 |
पसंद अपनी अपनी है ....मुझे सुबह के तारे तो कुछ भी समझ में नहीं आया क्योंकि मुझे तो सिर्फ़ अपने स्कूल-कॉलेज के ज़माने वाले नगमे ही समझ में आते हैं- बिल्कुल अच्छे से ....
यह सब लिखने का मकसद ....केवल इतना ही कि दूसरों को भी और खुद को भी सुबह उठने के लिए प्रेरित किया जा सके ....वैसे प्रेरित-व्रेरित होना या हवाना😂 बातें ही हैं, ऐसा लगता है मुझे ....जब मैं खुद ही आज अभी साढ़ें सात बजे उठा हूं और लैपटाप लेकर बैठ गया हूं ....चलिए, इस गीत को सुनिए....और दोस्तो, आप भी आइए,कभी इस तरफ़, बांद्रा स्टेशन से आटो में दस-पँद्रह मिनट लगते हैं....एक बार आईए, बार बार आने को मन मचलेगा...😎
यह कौन सा झाड़ है ....मुझे नहीं पता...अगर आप को मालूम है तो लिखिए कमेंट बॉक्स में .... |