जी हां, पिछली बार मेरी ब्लड-शूगर जांच २००७ में हुई थी...उस समय पहले २००५ में मेरा एक आप्रेशन होना था...फिश्चूला का...आप्रेशन से पहले सभी जांचें हुई थीं।
इन आठ सालों में मिसिज़ ने बहुत बार कहा कि जांच करवा लिया करें....लेकिन मैं टालता ही रहा। सच बताऊं तो दोस्तो जिस तरह से मैं मीठे का शौकीन हूं ..या यूं कहूं कि था...डर ही लगता था कि चलो, ठीक ही चल रहा है, अगर शूगर बड़ी आई तो तुरंत दवाईयां खानी पड़ेंगी...बीसियों तरह के परहेज़ करने पड़ेंगे.
मैंने आप को बताया ना कि आखिरी ब्लड-शूगर की जांच मेरी २००७ में हुई थी...उसी साल मैं हिंदी ब्लॉगिंग के चक्कर में पड़ गया...और इन आठ सालों के दौरान शूगर की नियमित जांच के महत्व के बारे में बीसियों लेख इस ब्लॉग पर भी लिखे लेकिन अपनी शूगर जांच की हिम्मत नहीं जुटा पाया। ऐसे होते हैं हम डाक्टर लोग भी....दोस्तो, आप से कुछ भी छुपाने में मज़ा नहीं आता।
हम लोग कालेज में पढ़ा करते थे ...KAP Studies के बारे में ...कहने का मतलब Knowledge, Attitude, and Practice....मेरी उदाहरण से आप यह समझ सकते हैं कि केवल किसी बात की नालेज से ही बात नहीं बन सकती, उस के बारे में आप का क्या एट्ीट्यूड है, आप उस को कैसे प्रैक्टिस करते हैं, यह सब बहुत महत्वपूर्ण है। इस की और भी उदाहरणें हैं...डाक्टर लोग जब गुटखा चबाते हैं...आदि ..
इस का मतलब सीधा सीधा है कि नालेज तो वही काम की है जिसे प्रेक्टिस में लाया जा सके।
मीठे की बातें करूं....मुझे बचपन से ही मीठा बहुत पसंद है...याद है बिल्कुल छोटे थे तो इतने बिस्कुट विस्कुट तो मिला नहीं करते थे...अकसर उस की जगह एक मुठ्ठी में कच्चे चावल और दूसरी में चीनी दबा लिया करते और उसे चबा कर ही खुश हो जाया करते थे...फिर पके हुए चावल में चीनी डाल कर खाने की लत लग गई जो अाज तक कायम है, गुड़ वाले चावल, आधी रात में मां को जगा कर चीनी के परांठे खाने की फरमाईश रख देना...गेहूं और मक्के की रोटी पर शक्कर, चीनी और गुड़ रख कर खाना.....चाय भी ऐसी पसंद है जिसमें मीठा अच्छा खासा हो, लड्डू वड्डू भी बहुत अच्छे लगते हैं...लेकिन अब इतने लाते-खाते नहीं हैं...शुक्र हो मिलावटखोरों का ...कम से कम इन्होंने हमें डराया तो!
वैसे अब बिस्कुट और मिठाईयां, भुजिया आदि तो बहुत कम दिया है......मीठा पर भी बहुत कंट्रोल किया हुआ है।
2009 में मैं Kidney Foundation के आमंत्रण पर चेन्नई गया था -- वहां पर हमें एक ऐसे प्रोग्राम को देखने का अवसर मिला जो NGOs चलाती हैं, हाई-ब्लड-प्रेशर, डॉयबीटीज़ की रोकथाम के लिए ताकि गुर्दों को भी बीमारियों से बचाया जा सके...बिल्कुल सस्ते टेस्ट से ..पेशाब की जांच के लिए कुछ लोगों को ट्रेन्ड कर दिया गया था ...जो नियमित इस जनसंख्या की जांच किया करते थे...बहुत अच्छा अनुभव रहा उस प्रोग्राम में शिरकत करने का ..कहने का मतलब यह कि पहले तो उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसे रोगों की रोकथाम ही हो जाए कैसे भी (primary prevention) ..लेकिन अगर इस तरह की कोई तकलीफ हो भी तो उसे शुरूआती दौर में ही पता कर के ...उस के शरीर के विभिन्न हिस्सो में होने वाले बुरे प्रभावों से तो बचा ही जा सकता है।
इस पोस्ट का परिचय कुछ लंबा हो गया दिखता है...मैं तो अपनी ब्लड-शूगर की जांच की बात कर रहा था ..पिछले सात आठ वर्षों से पेन्डिंग थी...मैं बस टालता जा रहा था...बहुत बार इच्छा भी होती थी कि आज करवा लूं लेकिन फिर टाल देता।
हां, तो कल हमारे अस्पताल की टीम जौनपुर गई हुई थी..वहां पर हेल्थ-चैकअप कैंप था....स्ट्रिप से ब्लड-शूगर की जांच भी हो रही थी.....लगभग १०० के करीब लोगों की ब्लड-शूगर की जांच हुई ...हैरानगी की बात यह थी कि इन में से २० केस ऐसे पाये गये जिन का रेन्डम ब्लड-शूगर का स्तर काफ़ी बड़ा हुआ था ...और लगभग इतने ही मरीज़ ऐसे थे जिन्हें पहले से मालूम था कि उन्हें शूगर है, उन का स्तर भी बड़ा हुआ था।
मुझे यह देख कर बहुत हैरानगी हुई कि उन बीस नये शूगर के केसों में से चार मरीज़ उस कैंप में ऐसे थे जिन के ब्लड-शूगर का स्तर चार पांच सौ के करीब था...जिसे mg% में दिखाया जाता है।
एक आदमी था...यही कोई ३५-४० का होगा...उसे कोई तकलीफ नहीं थीं, बता रहा था कि उसने पिछले ८-१० वर्षों में कभी कोई टेबलेट तक नहीं ली, बुखार तक नहीं हुआ...एकदम सेहतमंद है, कह रहा था ....उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस की ब्लड-शूगर का स्तर 507mg% आया है।
उसे लग रहा था कि उसने जांच से पहले लड्डू खाया था, कहीं लड्डू हाथ में तो नहीं लगा रह गया हो......उस का हाथ धुला कर वापिस जांच की गई तो भी उतनी ही रीडिंग आई।
जब वह मरीज़ कह रहा था कि मैं तो सेहतमंद हूं ...तो मेरे सामने बैठा फिज़िशियन उसे यही बताने की कोशिश कर रहा था कि इस तरह के कैंप आप जैसे लोगों के लिए ही होते हैं .....जिन्हें कोई तकलीफ़ नहीं है, लेकिन अंदर ही अंदर बीमारी शरीर के महत्वपूर्ण अँगों पर असर करती रहती है। ऐसे ही कुछ अन्य तीन चार मरीज़ थे ...जिन का स्तर भी ३००-४०० के करीब था।
उस समय मुझे लगा कि यह बात तो बड़ी बेवकूफी वाली है कि मैं अपने ब्लड-शूगर की जांच ही नहीं करवा रहा..पिछले सात आठ सालों से....मेरा कद है ५ फुट १० ईंच ...वजन है 97 किलो......जितना होना चाहिए उस से २० किलो ज़्यादा.....इसलिए मैं हिम्मत कर के उस काउंटर पर चला गया...मुझे लगा कि अच्छा भला तो हूं, पता नहीं क्या रिपोर्ट आ जाए...दोस्तो, बिल्कुल अपने मरीज़ों की तरह ही डर तो लग ही रहा था....सूईं चुभने का नहीं, रिजल्ट का ......चंद सैकिंडों में रिजल्ट आ जाता है .....यह रेंडम ब्लड-शूगर की जांच थी ....मेरी रीडिंग थी 121mg %..
ईश्वर का शुक्रिया अदा किया मन ही मन ....और आगे से मीठे को ध्यान से और लिमिट में खाने का प्रण किया.....हर जगह मीठे को इतना बड़ा विलेन बताया जाता है, फिर भी हम लोग पता नहीं क्यों कंट्रोल नहीं कर पाते..
हां, एक बात और ..एक बार इस तरह से जांच करवाने के बाद मेरी उम्र में (पचास के ऊपर) हर साल इस तरह की जांच होनी चाहिए...यह बहुत ज़रूरी होता है।
अच्छा ...आप को पता है मैंने यह इतनी लंबी राम कहानी क्यों लिख दी ..........केवल इसलिए कि अगर आप भी मेरी तरह से ब्लड-शूगर जैसी आसान सी शरीर की नियमित जांच से भागते रहते हैं....तो अब आप भी भागना बंद करिए और कल ही जा कर यह जांच करवा लीजिए...मैं अगली पोस्ट में लिखूंगा िक यह जांच कितनी आसान है ...सैकेंडों में आप को रिपोर्ट मिल जाती है।
आदत से मजबूर हैं, इतनी बातें ब्लड-शूगर की करने के बाद भी इच्छा हो रही है कि इस बात को विराम भी कुछ मीठी सी बात से ही किया जाए...दोस्तो, बात यह है कि आम हानिकारक मसाले से पकाए जाते हैं, इसलिए कुछ साल पहले से हम ने इसे चूस कर खाना बंद कर दिया क्योंकि नुकसानदायक कैमीकल छिलके पर लगे रहते हैं.....लेिकन एक चौंकाने वाली बात यह है कि बाहर से अच्छे भले दिखने वाले आम भी अकसर इस तरह से खराब होते हैं.......मैं तो यह बहुत बार नोटिस करने लगा हूं ..यह कल की तस्वीर है, आज की तस्वीर नहीं खींचीं, वह भी बिल्कुल इस के साथ मिलती जुलती ही थी...
इन आठ सालों में मिसिज़ ने बहुत बार कहा कि जांच करवा लिया करें....लेकिन मैं टालता ही रहा। सच बताऊं तो दोस्तो जिस तरह से मैं मीठे का शौकीन हूं ..या यूं कहूं कि था...डर ही लगता था कि चलो, ठीक ही चल रहा है, अगर शूगर बड़ी आई तो तुरंत दवाईयां खानी पड़ेंगी...बीसियों तरह के परहेज़ करने पड़ेंगे.
मैंने आप को बताया ना कि आखिरी ब्लड-शूगर की जांच मेरी २००७ में हुई थी...उसी साल मैं हिंदी ब्लॉगिंग के चक्कर में पड़ गया...और इन आठ सालों के दौरान शूगर की नियमित जांच के महत्व के बारे में बीसियों लेख इस ब्लॉग पर भी लिखे लेकिन अपनी शूगर जांच की हिम्मत नहीं जुटा पाया। ऐसे होते हैं हम डाक्टर लोग भी....दोस्तो, आप से कुछ भी छुपाने में मज़ा नहीं आता।
हम लोग कालेज में पढ़ा करते थे ...KAP Studies के बारे में ...कहने का मतलब Knowledge, Attitude, and Practice....मेरी उदाहरण से आप यह समझ सकते हैं कि केवल किसी बात की नालेज से ही बात नहीं बन सकती, उस के बारे में आप का क्या एट्ीट्यूड है, आप उस को कैसे प्रैक्टिस करते हैं, यह सब बहुत महत्वपूर्ण है। इस की और भी उदाहरणें हैं...डाक्टर लोग जब गुटखा चबाते हैं...आदि ..
इस का मतलब सीधा सीधा है कि नालेज तो वही काम की है जिसे प्रेक्टिस में लाया जा सके।
मीठे की बातें करूं....मुझे बचपन से ही मीठा बहुत पसंद है...याद है बिल्कुल छोटे थे तो इतने बिस्कुट विस्कुट तो मिला नहीं करते थे...अकसर उस की जगह एक मुठ्ठी में कच्चे चावल और दूसरी में चीनी दबा लिया करते और उसे चबा कर ही खुश हो जाया करते थे...फिर पके हुए चावल में चीनी डाल कर खाने की लत लग गई जो अाज तक कायम है, गुड़ वाले चावल, आधी रात में मां को जगा कर चीनी के परांठे खाने की फरमाईश रख देना...गेहूं और मक्के की रोटी पर शक्कर, चीनी और गुड़ रख कर खाना.....चाय भी ऐसी पसंद है जिसमें मीठा अच्छा खासा हो, लड्डू वड्डू भी बहुत अच्छे लगते हैं...लेकिन अब इतने लाते-खाते नहीं हैं...शुक्र हो मिलावटखोरों का ...कम से कम इन्होंने हमें डराया तो!
वैसे अब बिस्कुट और मिठाईयां, भुजिया आदि तो बहुत कम दिया है......मीठा पर भी बहुत कंट्रोल किया हुआ है।
2009 में मैं Kidney Foundation के आमंत्रण पर चेन्नई गया था -- वहां पर हमें एक ऐसे प्रोग्राम को देखने का अवसर मिला जो NGOs चलाती हैं, हाई-ब्लड-प्रेशर, डॉयबीटीज़ की रोकथाम के लिए ताकि गुर्दों को भी बीमारियों से बचाया जा सके...बिल्कुल सस्ते टेस्ट से ..पेशाब की जांच के लिए कुछ लोगों को ट्रेन्ड कर दिया गया था ...जो नियमित इस जनसंख्या की जांच किया करते थे...बहुत अच्छा अनुभव रहा उस प्रोग्राम में शिरकत करने का ..कहने का मतलब यह कि पहले तो उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसे रोगों की रोकथाम ही हो जाए कैसे भी (primary prevention) ..लेकिन अगर इस तरह की कोई तकलीफ हो भी तो उसे शुरूआती दौर में ही पता कर के ...उस के शरीर के विभिन्न हिस्सो में होने वाले बुरे प्रभावों से तो बचा ही जा सकता है।
इस पोस्ट का परिचय कुछ लंबा हो गया दिखता है...मैं तो अपनी ब्लड-शूगर की जांच की बात कर रहा था ..पिछले सात आठ वर्षों से पेन्डिंग थी...मैं बस टालता जा रहा था...बहुत बार इच्छा भी होती थी कि आज करवा लूं लेकिन फिर टाल देता।
हां, तो कल हमारे अस्पताल की टीम जौनपुर गई हुई थी..वहां पर हेल्थ-चैकअप कैंप था....स्ट्रिप से ब्लड-शूगर की जांच भी हो रही थी.....लगभग १०० के करीब लोगों की ब्लड-शूगर की जांच हुई ...हैरानगी की बात यह थी कि इन में से २० केस ऐसे पाये गये जिन का रेन्डम ब्लड-शूगर का स्तर काफ़ी बड़ा हुआ था ...और लगभग इतने ही मरीज़ ऐसे थे जिन्हें पहले से मालूम था कि उन्हें शूगर है, उन का स्तर भी बड़ा हुआ था।
मुझे यह देख कर बहुत हैरानगी हुई कि उन बीस नये शूगर के केसों में से चार मरीज़ उस कैंप में ऐसे थे जिन के ब्लड-शूगर का स्तर चार पांच सौ के करीब था...जिसे mg% में दिखाया जाता है।
एक आदमी था...यही कोई ३५-४० का होगा...उसे कोई तकलीफ नहीं थीं, बता रहा था कि उसने पिछले ८-१० वर्षों में कभी कोई टेबलेट तक नहीं ली, बुखार तक नहीं हुआ...एकदम सेहतमंद है, कह रहा था ....उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस की ब्लड-शूगर का स्तर 507mg% आया है।
उसे लग रहा था कि उसने जांच से पहले लड्डू खाया था, कहीं लड्डू हाथ में तो नहीं लगा रह गया हो......उस का हाथ धुला कर वापिस जांच की गई तो भी उतनी ही रीडिंग आई।
जब वह मरीज़ कह रहा था कि मैं तो सेहतमंद हूं ...तो मेरे सामने बैठा फिज़िशियन उसे यही बताने की कोशिश कर रहा था कि इस तरह के कैंप आप जैसे लोगों के लिए ही होते हैं .....जिन्हें कोई तकलीफ़ नहीं है, लेकिन अंदर ही अंदर बीमारी शरीर के महत्वपूर्ण अँगों पर असर करती रहती है। ऐसे ही कुछ अन्य तीन चार मरीज़ थे ...जिन का स्तर भी ३००-४०० के करीब था।
उस समय मुझे लगा कि यह बात तो बड़ी बेवकूफी वाली है कि मैं अपने ब्लड-शूगर की जांच ही नहीं करवा रहा..पिछले सात आठ सालों से....मेरा कद है ५ फुट १० ईंच ...वजन है 97 किलो......जितना होना चाहिए उस से २० किलो ज़्यादा.....इसलिए मैं हिम्मत कर के उस काउंटर पर चला गया...मुझे लगा कि अच्छा भला तो हूं, पता नहीं क्या रिपोर्ट आ जाए...दोस्तो, बिल्कुल अपने मरीज़ों की तरह ही डर तो लग ही रहा था....सूईं चुभने का नहीं, रिजल्ट का ......चंद सैकिंडों में रिजल्ट आ जाता है .....यह रेंडम ब्लड-शूगर की जांच थी ....मेरी रीडिंग थी 121mg %..
ईश्वर का शुक्रिया अदा किया मन ही मन ....और आगे से मीठे को ध्यान से और लिमिट में खाने का प्रण किया.....हर जगह मीठे को इतना बड़ा विलेन बताया जाता है, फिर भी हम लोग पता नहीं क्यों कंट्रोल नहीं कर पाते..
हां, एक बात और ..एक बार इस तरह से जांच करवाने के बाद मेरी उम्र में (पचास के ऊपर) हर साल इस तरह की जांच होनी चाहिए...यह बहुत ज़रूरी होता है।
अच्छा ...आप को पता है मैंने यह इतनी लंबी राम कहानी क्यों लिख दी ..........केवल इसलिए कि अगर आप भी मेरी तरह से ब्लड-शूगर जैसी आसान सी शरीर की नियमित जांच से भागते रहते हैं....तो अब आप भी भागना बंद करिए और कल ही जा कर यह जांच करवा लीजिए...मैं अगली पोस्ट में लिखूंगा िक यह जांच कितनी आसान है ...सैकेंडों में आप को रिपोर्ट मिल जाती है।
बाहर से आम बिल्कुल दुरूस्त |
और अंदर यह मंज़र था...
तो इस से यही शिक्षा मिलती है कि आम को बिना काटे कभी भी मत खाईए....
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