मेरी मां बताती हैं कि उन के जमाने में जब छोटे छोटे शिशु रोते थे और गृहिणियों को घर के काम काज निपटाने होते थे तो बच्चों को सुलाने के लिए उन्हें थोड़ी सी अफीम चटा दी जाती थी, और बच्चा बहुत लंबे समय तक सोता रहता था...लेिकन कईं बार जब इस की खुराक थोड़ी सी भी ज़्यादा हो जाती थी तो बेचारे बच्चे सदा के लिए ही सोये रह जाते थे। वैसे भी इस तरह के बच्चे आगे चल कर मंदबुद्धि तो हो ही जाते थे।
इसे क्या कहेंगे ... अज्ञानता, अनपढ़ता या कुछ और..... जो भी हो, लेकिन इस का मतलब यही है कि अफीम तब भी कितनी आसानी से मिल जाती होगी, अब भी इसे इस्तेमाल करने वाले इस का जुगाड़ कैसे भी कर ही लेते हैं।
कौन सा नशा है जिस का जुगाड़ नशा करने वाले नहीं कर पाते..... भांग पीने वाले सरेआम पीते हैं, भांग के पकोड़े कुछ त्योहारों के दौरान बिकते हैं, भांग पी और पिलाई जाती है। वैसे भी हम बचपन से देखते आ रहे हैं कि भांग के पौधे से भांग के पत्ते तोड़ कर नशा करने वाले इन्हें दोनों हाथों में रगड़ कर अपना कुछ जुगाड़ तो कर ही लेते हैं।
कहने का मतलब कि गलत काम करने के लिए भांग जैसी प्रतिबंधित चीज़ भी मिल जाती है लेकिन चिंता की बात यह है कि डाक्टर लोगों को कैंसर के मरीज़ों पर इस्तेमाल करने के लिए तो दूर, मैडीकल रिसर्च के लिए भी भांग नहीं मिल पाती।
बंगलोर के कुछ कैंसर रोग विशेषज्ञों ने अब इस मुद्दे को उठाया है कि चिकित्सकों को भांग के पौधे के चिकित्सीय गुणों की पड़ताल तो कर लेने दो।
कैंसर रोग विशेषज्ञों की मांग बिल्कुल मुनासिब है.....जब अमेरिका में वहां के डाक्टर कैंसर के रोगियों के इलाज के लिए भांग के पौधे से मिलने वाले दवाईयां मरीज़ों को लिख रहे हैं, तो भारत में इस तरह के मरीज़ क्यों इस इलाज से वंचित रहें!!
दरअसल भांग में कुछ इस तरह के अंश रहते हैं (derivatives) जो कैंसर के ट्यूमर तक रक्त की सप्लाई पहुंचाने में रुकावट पैदा करते हैं।
कैंसर कोशिकाएं एक तरह से भूखी कोशिकाएं होती हैं, जब उन तक रक्त की सप्लाई नहीं पहुंच पाती , तो ये कोशिकाएं ग्लूकोज़ की कमी की वजह से सूखने लगती हैं। कैंसर के रोगियों के इलाज में दी जाने वाली कीमोथेरिपी की वजह से मतली और उल्टी आती है... भांग में मौजूद कुछ तत्व इस को भी कंट्रोल करने में अहम् भूमिका निभाते हैं।
कैंसर विशेषज्ञ बिल्कुल सही फरमा रहे हैं कि उन्हें भांग के पौधे के मेडीकल इस्तेमाल के लिए रिसर्च करने के लिए भांग के पौधे तो उपलब्ध करवाए जाएं......बिल्कुल सही कह रहे हैं... पहले भी कितनी बार यह आवाज़ उठ चुकी है कि भांग के मेडीकल इस्तेमाल को मंजूरी मिल जानी चाहिए।
अमेरिका में तो भांग से कुछ दवाईयां तैयार कर के उन्हें एलज़िमर्ज़, ग्लोकोमा (काला मोतिया) और मल्टीपल स्क्लिरोसिस के रोगियों को दिया जाता है।
और डाक्टर लोग तो वैसे ही कह रहे हैं कि वे गांजे के मौज-मस्ती वाले इस्तेमाल के तो बिल्कुल विरूद्ध हैं, लेकिन उन्हें कम से कम इस के मैडीकल इस्तेमाल को तो परख लेने दो।
सीधी बात है, दोस्तो, हम कुछ भी क्लेम कर लें, भांग का इस्तेमाल तो नशा करने वाले कर ही रहे हैं......अगर डाक्टर उसी पौधे को बीमार लोगों के इलाज करने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं तो इस में ऐसी भी क्या रूकावट है......मेरे विचार में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को इस तरफ़ तुंरत ध्यान देना चाहिए और अगर कुछ मतभेद है भी तो चिकित्सकों के साथ बैठ कर उन को सुलटा लेना चाहिए.......कम से कम मरीज़ों को तो राहत मिले!!
इस तरह का पॉज़िटिव निर्णय करने में सरकार को बिल्कुल देरी नहीं करनी चाहिए........यह क्या यार, कैंसर रोग विशेषज्ञों को रिसर्च करने के लिए भांग के पौधे उपलब्ध नहीं हो रहे और जहां मैं रहता हूं ...पास के बाज़ार में दो दुकाने हैं.....जिन के बाहर बोर्ड लगा है ........भांग की सरकारी दुकान.......उन दुकानों के सामने से गुजरता हूं तो मेरे मन में बहुत से प्रश्न उछलने लगते हैं ... दो मिनट बाद शांत हो जाते हैं.........आज सोचा था कि इन में से किसी दुकान पर जा कर पता करूंगा कि आखिर यह सीन है क्या!!.........लेकिन आज शाम से ही लखनऊ में बस बारिश ही हुए जा रही है, फिर किसी दिन जाऊंगा और आप से डिटेल शेयर करूंगा........अगर आप में से किसी को इन सरकारी भांग की दुकानों का रहस्य पता हो तो नीचे कमैंट में लिखिएगा।
एक तो हिंदोस्तान को इन हिंदी फिल्मी गीतों ने सच में बिगाड़ रखा है.....मौका कोई भी हो, हर सिचुएशन के लिए एक सुपरहिट गीत तैयार है जैसा कि इस पोस्ट के लिए यह वाला गीत........भांग पीते मौज मनाते लोग.....
Idea .... Lift cannabis ban for med research, say oncologists (Times of India, Jan. 2' 2015)