आज सुबह सुबह मेरा पहला -दूसरा मरीज़ ही वह था जिस के मुंह के ऊपर सूजन आई हुई थी –दांत की सड़न की वजह से – और मेरे कुछ भी पूछने से पहले ही उस ने कहना शुरू कर दिया कि कल बस गलती से उड़द की दाल खा ली और यह बखेड़ा खड़ा हो गया है। मैंने उसे समझाया कि ऐसा कुछ नहीं है, आप कुछ भी खायें --- इस का उड़द-वड़द से कोई संबंध नहीं है।
वैसे अब मैं लिखते लिखते सोच रहा हूं कि हमें हमारे कालेजों में ये सब बातें पढ़ाई नहीं गईं, इसलिये हम तुरंत ही इन सब बातों को सिरे से नकार देते हैं, लेकिन कहीं इस में क्या कोई सच्चाई है, यह जानने की मेरी भी बहुत उत्सुकता है ---लेकिन मेरा अनुभव तो यही कहता है कि ऐसा कोई संबंध है नहीं।
ऐसी बहुत सी बातें हैं जो कि लोगों के मन में घर कर गई हैं और जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के मन में लगता है ट्रांसफर होती रहती हैं। ऐसी ही है एक जबरदस्त भ्रांति जिस ने लाखों लोगों को उलझा कर रखा हुआ है ---वह यह है कि बहुत से लोग यही समझते हैं कि हाई ब्लड-प्रैशर वाले मरीज का या हार्ट के मरीज़ के लिये दांत उखड़वाना बेहद जोखिम वाला काम है-----लोग सोच सकते हैं कि ऐसा करने से कुछ भी हो सकता है, हो सकता है कि रक्त के बंद न होने से बंदे की जान ही ना चली जाये, बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं और बिना वजह अपने इलाज को स्थगित करते रहते हैं।
और जहां तक शूगर के मरीजों की बात है, क्या कहूं----- किसी सड़े-गले दांत को उखड़वाने की बात करते ही, कह देते हैं कि मुझे तो शूगर है, मैं कैसे दांत उखवड़ा सकता हूं। फिर कहते हैं कि अगर मैंने दांत उखड़वा लिया तो मेरा तो जख्म ही नहीं भरेगा। लेकिन मुझे कईं बार लगता है कि इस तरह की भ्रांतियां फैलाने में नीम-हकीम, झोला-छाप डैंटिस्टों का बहुत बड़ा रोल है ----बस कुछ भी कह कर मरीज़ को इतना डरा देते हैं कि वह दांत उखड़वाने के नाम से ही कांपने लगता है।
मुझे प्रोफैशन में 25 साल हो गये हैं, साल में लगभग दो हज़ार के करीब दांत उखाड़ने का स्कोर है, तो अनुमान है कि चालीस पचास हज़ार दांत तो अब तक उखाड़ ही चुका हूं। और इस पचास हज़ार के स्कोर में सब तरह की बीमारियों से जूझ रहे लोग शामिल रहे हैं----हाई ब्लड प्रैशर, शूगर, कैंसर, हार्ट प्राब्लम, और भी सब तरह की शारीरिक बीमारियां ----यह सब लिखना इस लिये ज़रूरी लग रहा है कि पाठकों को मेरी बात पर विश्वास करने में आसानी हो---उन्हें यह ना लगे कि मैं कोई किताबी बात कर रहा हूं। इसलिये इसे लिखने को आप कृपया अन्यथा न लें। तो, मेरा क्या अनुभव रहा ----मेरा अनुभव यह है कि मरीज़ से अच्छे से बात करना और सारी बात को बहुत ही प्रेम से समझाना इस कायनात की सब से बड़ी दवा है।
मैंने आज तक ऐसा शूगर का एक मरीज़ भी ऐसा नहीं देखा जिस ने दांत उखड़वाया हो और जिस का जख्म न भरा हो-----यकीन कर लो, दोस्तो, बिलकुल सच लिख रहा हूं। वास्तव में इस में मेरा रती भर भी बड़प्पन नहीं है, कुदरत ही अपने आप में इतनी ग्रेट है कि थोड़ी सी सावधानियों के साथ सब कुछ अपने आप दुरुस्त कर देती है----ऐसे ही तो नहीं ना उसे हम लोग इसे मदर नेचर कहते फिरते।
थोड़ी बातें शूगर के मरीज़ के बारे में और करनी होगीं--- निसंदेह किसी भी शूगर के मरीज़ को अपना कोई भी सड़ा-गला दांत जिस में पस पड़ी है या किसी अन्य कारण की वजह से डैंटिस्ट ने जिसे उखड़वाने की सलाह दी हुई है, उसे उखड़वा कर छुट्टी करनी चाहिये।
अगर शूगर कंट्रोल में है तो ठीक है , वरना कईं कईं दिन तक शूगर के कंट्रोल होने की प्रतीक्षा करना कि जब शूगर बिलकुल नार्मल हो जायेगी तो देखेंगे ----तब तक ऐंटिबायोटिक दवाईयां और पेन-किल्लर्ज़ लेते रहने से क्या फायदा ---उन के अपने ढ़ेरों साईड-इफैक्ट्स हैं। इसलिये मैंने तो कभी शूगर के मरीज़ों को पोस्ट-पोन शूगर की वजह से नहीं किया -----कुछ केसों में दो-तीन दिन पहले ऐंटीबायोटिक दवाईयां शुरू करनी होती हैं,( बहुत कम केसों में) ---और मरीज़ को कहा जाता है कि आप अपने रूटीन के हिसाब से सुबह नाश्ता करें, उस के बाद अपनी शूगर की दवाई या इंजैक्शन ले कर डैंटल क्लिनिक में आ जायें-----वह सुबह वाला टाइम इन मरीज़ों के लिये बहुत श्रेष्ट होता है। न ही मरीज़ को कुछ पता चलता है और न ही डाक्टर को..........everything happens so smoothly and thereafter healing of the wound is also so uneventful. बस, मुंह में मौजूद जख्म को साफ-सुथरा रखने के लिये बहुत साधारण सी सावधानियां उसे बता दी जाती हैं। इसलिये मैंने तो कभी भी किसी भी शूगर के मरीज़ को यह आभास होने ही नहीं दिया कि शूगर का रोग कोई ऐसा हौआ है जिस में दांत उखाड़ने का मतलब है कि मुसीबतें मोल लेना------दरअसल देखा जाये तो ऐसा है भी कुछ नहीं। लेकिन शूगर के मरीज़ का दांत उखाड़ने से पहले उस की ब्लड-रिपोर्ट और अन्य टैस्ट और उस की जनरल हैल्थ जरूर देख ज़रूर लेता हूं - जो मुझे लगभग हमेशा ही हरी झंडी दिखाती है। Thank God !!
अब आते हैं ----हाई ब्लड-प्रैशर की तरफ़ ----सब से बड़ा डर लोगों को लगता है कि दांत उखवाड़ने के बाद खून बंद नहीं होगा। इस के बारे में यह ध्यान रखिये कि वैसे तो अकसर मरीज़ों को अपने ब्लड-प्रैशर के बारे में पता ही होता है लेकिन अगर किसी को पता नहीं है तो उस का चैक करवा लिया जाता है और अगर हाई-ब्लड-प्रैशर एसटैबलिश्ड हो जाता है तो फिजिशियन की सलाह अनुसार उस का ब्लड-प्रैशर कंट्रोल होने पर दांत बिना किसी परेशानी के निकाल दिया जाता है और यह पूरी तरह से सुरक्षित प्रोसिज़र है। कंट्रोल का मतलब दांत उखड़वाने के लिये तो यहां यहीं लें कि हो सकता है ब्लड-प्रैशर नार्मल रेंज से थोड़ा ज़्यादा ही हो, लेकिन मैंने तो अपनी प्रैक्टिस में इन मरीजों को भी बिलकुल बिना किसी तकलीफ़ के दांत उखड़वाने के बाद बिलकुल ठीक होते देखा है।
यहां मुझे हाई-ब्लड-प्रैशर के दो-तीन मरीज़ों के साथ दांत उखाड़ते समय अपने अनुभव याद आ रहे हैं----लेकिन उन्हें अगली पोस्ट में डालता हूं क्योंकि यह पोस्ट 1000शब्दों को पार कर चुकी है। और हार्ट के मरीज़ों की बात अगली पोस्ट में ही करेंगे।
बहुत बहुत शुभकामनायें। मैडीकल साईंस कईं बार अनसरटन भी हो सकती है --इसलिये आशीर्वाद दें कि ऐसे ही बिना किसी तरह की कंप्लीकेशन के मरीज़ो की सेवा में लगा रहूं और उन के विश्वास पर हमेशा खरा उतरता रहूं।