लगभग पंद्रह साल पहले जब मैंने सिद्ध समाधि योग प्रोग्राम के एक पेम्फलेट में यह पढ़ा कि डाक्टर लोग मरीज़ों को तो बड़ी आसानी से कह देते हैं कि चिंता मत किया करो। लेकिन वे खुद इतनी ज़्यादा चिंता से ग्रस्त रहते हैं। यह बात मुझे छू गई। वैसे सोचता हूं कि बात में सच्चाई तो है।
अकसर यह भी सोचता हूं कि हमारे शरीर में करोड़ों-अरबों सूक्ष्म रासायनिक प्रक्रियायें हर पल चल रही हैं..........और इन्हीं प्रक्रियाओं के फल-स्वरूप ही हमारे शरीर का इंटरनल-मिल्यू ( internal milieu) तय होता है.......जैसा भी हो......उदाहरण के तौर पर देखें तो अब किसी को ब्लड-प्रैशर है और किसी का बी.पी बिल्कुल परफैक्ट है। इसलिये मैं यह सोचने पर बहुत मज़बूर होता हूं कि रोज़ की एक टेबलेट या कुछ टेबलेट कैसे किसी का ब्लड-प्रैशर कंट्रोल कर सकती है। लेकिन हां, यह भी ठीक होगा की ब्लड-प्रैशर कंट्रोल तो हो जाता होगा लेकिन इस का क्यूर( इलाज) तो नहीं न हो पाता। मेरा व्यक्तिगत विचार तो यह भी है कि एक अंग्रेज़ी दवाई की गोली से हमारे शरीर रूपी इस बेहद अद्भुत संरंचना को कंट्रोल करना इस दैविक संरचना से पंगा लेने से क्या कम है..............?...इस के बारे में बहुत सोचता हूं !!!
इसीलिये सोचता हूं कि शायद इसीलिये इतने लोग दिखते हैं जो रोज़ाना टेबलेट्स लेते हैं लेकिन फिर भी कंपलेन करते हैं कि उन का ब्लड-प्रैशर कंट्रोल में नहीं है। सोचता हूं कि इस तरह की तकलीफ़ों के लिये और इन के स्थायी इलाज के लिये कभी भी मेरा इस टेबलेट कल्चर में विश्वास रहा ही नहीं।
यह तो हुई अंग्रेज़ी दवाईयों वाली बात................आयुर्वैदिक दवाईयों का या होम्योपैथिक दवाईयों का मुझे कोई खास ज्ञान है नहीं ......और ये ब्लड-प्रैशर को कंट्रोल करने के लिये भी जिन अंग्रेज़ी दवाईयों की बात मैंने की है...ये शत-प्रतिशत मेरे व्यक्तिगत विचार हैं जो कि आज मैं अपनी खुद की डायरी पर ही लिख रहा हूं। मैं यह भी तो नहीं चाहता कि मेरी यह बात पढ़ कर ब्लड-प्रैशर के मरीज़ अपनी अंग्रेज़ी दवाईयां फैंक दें और फिर जब इस के परिणाम-स्वरूप कुछ और ही जटिलतायें पैदा हो जायें तो बीच-बाज़ार मेरा गिरेबान पकड़ कर मुझ से जवाब मांगें कि लिखता तो बहुत कुछ है, अब बोल.....अब जवाब दे हमें कि अंग्रेज़ी दवाईयां लेते रहें कि नहीं !!
जो भी हो मेरी जो भी बेबाक राय थी, मैंने आज डायरी में लिख दी है। इस में तो कोई शक है ही नहीं कि एमरजैंसी को टैकल करने के लिये एलोपैथिक दवाईयों का कोई जवाब नहीं है.........ऐसा मैं समझता हूं............जब कोई हार्ट-अटैक का मरीज़ आता है , जब किसी का ब्लड-प्रैशर बहुत ही ज़्यादा बढ़ जाता है तो किस तरह से अकसर एलोपैथिक दवाईयां उसे तुरंत ही लाइन पर ले आती हैं।
मेरी बात लगता है कि थोड़ी कंफ्यूज़िंग सी लग रही है....सो, सीधी सीधी बात करता हूं कि मैं किसी भी ब्लड-प्रैशर के मरीज़ को अपनी कोई भी दवाई बंद करने की सलाह कतई नहीं दे रहा हूं....लेकिन मैं इतना ज़रूर कह रहा हूं कि उन्हें अपनी जीवन-शैली में भी उचित परिवर्तन करने होंगे..................अपना वज़न कम करना होगा, नमक का इस्तेमाल कम करना होगा, रोज़ाना सैर और शारीरिक व्यायाम/ योग-प्राणायाम् करना होगा, खाने-पीने में एहतियात बरतनी होगी, और सब से ज़रूरी ....बेहद ज़रूरी है ..........कि रोज़ाना मैडीटेशन करनी ही होगी।
इन लाइफ-स्टाईल से संबंधित बीमारियों को दूर रखने के लिये मैडीटेशन का बहुत बड़ा रोल है.....और ध्यान रहे कि इस पुरातन विद्या को गुरू-शिष्य परंपरा के अंतर्गत ही किसी गुरू से ही ग्रहण किया जा सकता है। यह निहायत ही ज़रूरी है..................जैसे हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिये स्नान ज़रूरी है , उसी तरह से हमारे मन को साफ-स्वच्छ रखने के लिये भी मैडीटेशन बहुत---बहुत ----बहुत .....बहुत ही लाज़मी है। यह मेरा पिछले 14वर्ष का व्यक्तिगत अनुभव है .....और आज कल तो विश्व के चोटी के वैज्ञानिक इस की हामी भर रहे हैं। मेरे विचार में हमारी लाइफ़ में प्रतिदिन नियमित तौर पर मैडीटेशन करना ही सब से महत्वपूर्ण बात है।
और हां, मैं कह रहा था कि ब्लड-प्रैशर वाले मरीज़ अपनी दवाई तो न छोड़ें, लेकिन ऊपर बताये गये सब प्रकार के जीवन-शैली में बदलाव ज़रूर कर लें.....किसी तरह के तंबाकू, शराब या किसी भी नशे को पास न फटकने दें और एक बात और भी बहुत ज़रूरी है कि अपने ब्लड-प्रैशर को नियमित चैक भी करवाते रहें ......तो यकीन मानिये.....आप का इलाज कर रहे चिकित्सक धीरे धीरे आप की ब्लड-प्रैशर की दवाईयां कम करने या तो धीरे धीरे बंद करने पर ही बाध्य हो जायेंगे।
प्राब्लम तो बस यही है कि हम तो टस से मस होना नहीं चाहते....किसी तरह का बदलाव अपने जीवन में हमें गवारा है ही नहीं..............हम तो अपने कंफर्ट-ज़ोन के साथ इस तरह चिपके हुये हैं कि बस............लेकिन हां, ब्लड-प्रैशर कंट्रोल वाली गोली टाइम पर ज़रूर खा लेते हैं...............लेकिन अकेली यह एक अदद बेचारी गोली क्या कर लेगी ?
आयुर्वैदिक दवाईयों को मैं बहुत बढ़िया मानता हूं...........और उन से बढ़िया बाबा रामदेव जी की बातों को..............यह बाबा जी भी एक करिश्मा ही हैं.............करोड़ों लोगों को वे अपने जीवन से प्यार करना सिखा रहे हैं। मुझे स्वयं उन को सुनना बहुत भाता है। वैसे चिकित्सा क्षेत्र में अगर किसी को उस की महान उपलब्धियों के लिये नोबेल-पुरस्कार देना हो तो मेरे ज़हन में बाबा रामदेव का नाम सर्वोपरि आता है......सिम्पली ग्रेट !! लेकिन ये असली बाबा लोग कहां इन दुनियावी तगमों के पीछे भागते हैं !
पता नहीं बात अकसर लंबी हो जाती है...............लेकिन सब से महत्वपूर्ण बात वही है कि ज़्यादातर केसों में यह ब्लड-प्रैशर का हौवा हमारा खुद का ही तो पैदा किया होता है......हम ज़रा से सजग हो जायें....अपनी जीवन-शैली को थोड़ा टटोलने लगें तो इसे( हाई बीपी) भागने का रास्ता नहीं मिलता। लेकिन सब से अहम् बात हमें हमेशा याद रखनी होगी...............मैडीटेशन...मैडीटेशन ...मैडीटेशन.............जब तक हमारे मन पर विभिन्न प्रकार की कुंठाओं के परिणाम स्वरूप हर पल जम रही मैल की सफाई भी प्रतिदिन नहीं होगी तो कैसे हो पायेगा हमारा मन एकदम क्लियर....................मुझे अपने गुरू जी की बात इस समय याद आ रही है...................As a matter of fact all religions started with meditation….but somehow they all ended in giving prescriptions for actions !......कितनी सही बात है !
एक बात और भी है ना कि पुरानी बातों के बोझ को हम लोग जो हमेशा अपने दिल पर लादे रखते हैं ना ....यह भी हमें ढंग से जीने नहीं देता। इसलिये आज की बात आज ही भूल जानी चाहिये..............कल का नया दिन नईं उमंगे, नये सपने , ऩई अवसर ले कर आ रहा है..............तो चलिए बांहे पसार कर उस के स्वागत की तैयारी करें...............वैसे , इस गाने में अमिताभ बच्चन भी कुछ ऐसा ही संदेश दे रहे हैं .........सुनिये और कर डालिये अपने कुछ गम गलत ….अभी...इसी वक्त !!!!!