"अच्छा, डाक्टर साहब, सातवां पे कमीशन लागू हो गया है, आप की तनख्वाह कितने पर फिक्स हुई है?"...कल दिल्ली से धीर साहब का फोन आया तो उन्होंने यह जानकारी जुटानी चाहिए...कोई भी कुछ पूछे तो उस का जवाब तो ठीक देना बनता ही है न, और फिर धीर साहब जैसा इंसान तो हमारे मन की तह से भी कुछ पूछे तो भी अच्छे से उन की उत्सुकता शांत होनी चाहिए, यह प्रश्न तो कुछ भी नहीं था..
धीरे साहब ने आगे पूछा कि अच्छा, यह भी बताओ कि आप को एरियर में कितने मिले हैं...वह भी सैंकड़े की रकम तक तो मुझे याद थी और मैंने ठीक ठीक बता दिया...और जितनी बार मुझे वह रकम रिपीट करनी पड़ी, उस से साफ़ ज़ाहिर था कि वे उसे अपनी डॉयरी में नोट कर रहे थे..
फिर कहने लगे कि डाक्टर साहब, इस का मतलब है कि उस डाक्टर (एक बड़े से घैंट बंदे का नाम लिया उन्होंने) की तो फिक्सेशन कम हुई है .....मैंने इस बात पर भी तुरंत प्रकाश डाल दिया कि उस की फिक्सेशन कम क्यों लगती होगी!
फिर मैंने उनसे अपनी मां की भी बात करवाई .... इन दोनों ने एक दूसरे का हाल चाल लिया ..और मां को मैंने कहते सुना कि धीर साहब, आप ठीक हैं ना, चलते फिरते हैं ना ?...और फिर मां ने उन्हें बताया कि धीर साहब, मैं भी अब लाठी से ही चल पाती हूं...
बहरहाल, फिर मेरे से बात हुई ... एक अधिकारी के बारे में बताते हुए खुश हो रहे थे कि अच्छा है वह पांच साल की एक्सटेंशन मिलने से पहले ही रवाना हो गया, वरना लोगों को बड़ी परेशानी होती!
अब एक ९५ जी हां, पिच्यानवें साल के बुज़ुर्ग का पे-कमीशन की फिक्सेशन, एरियर, कुछ लोगों को एक्सटेंशन न मिल पाने पर राहत महूसस करना ..कितने अद्भुत होंगे ये बुज़ुर्ग, इसीलिए आज सुबह सवेरे आप से इन का तारुफ़ करवाने का मन हुआ...कुछ न कुछ तो हमें सिखाने के लिए हरेक के पास होता है ...
धीर साहब अभी 95 साल के आसपास होंगे ..कम नहीं, इन से मेरी मुलाकात १० साल पुरानी है ...जब मेरी जगाधरी में नई नई पोस्टिंग हुई थी...यह रिटायर कर्मचारी हैं, ज़ाहिर है इलाज के लिए आते थे तो मिलते ज़रूर थे, दांतों की मुरम्मत भी इन की चलती रही ....२००६ से इन की मुझे चिट्ठीयां आनी शुरू हो गईं ...हमेशा पोस्टकार्ड भिजवाते थे ..मुझे अच्छे से याद है कि उन्हीं दिनों मेघदूत पोस्टकार्ड चले थे, २५ पैसे वाले, यह अकसर मेघदूत पोस्टकार्ड भी भिजवाते थे .. जितनी मुझे याद आ रहा है कि कईं बार मैं भी उस का जवाब लिख भेजता था...और फिर जब मोबाइल की तूती बोलने लगी तो मैं फोन पर ही इन की चिट्ठी की पावती इन्हें भिजवा दिया करता ...फिर धीरे धीरे इन के ख़त आने लगभग बंद से हो गये...
लेकिन ये नियमित अस्पताल में आया करते थे ....किसी भी काम से आते तो मिल कर ज़रूर जाते... उन दिनों ये ८५ साल की उम्र तो पार कर ही चुके थे ...सेहत ठीक ठाक ही थी, लेकिन इन की श्रीमति जी कैंसर से ग्रस्त थीं, वे भी महिला मोर्चा से जुड़ी हुई थीं, अकसर वे बताया करती थीं, सहज स्वभाव की महिला थीं वह भी ..
ये दोनों मियां-बीवी यमुनानगर में एक भव्य घर में रहते थे...मस्त थे ...खुश थे...धीर साहब तो बहुत से सामाजिक कामों से भी जुड़े रहे....लोगों के आंखों के फ्री-आप्रेशन करवाना, ज़रूरतमंदों में कपड़े बांटना, विधवाओं में राशन बांटना, सिविल अस्पताल के मरीज़ों में खाना बांटना, वहां मरीज़ों में दूध पहुंचा कर आना....इन के पास करने को बहुत कुछ था...हर समय व्यस्त ... और सारा काम अपने साईकिल पर ....बहुत से समाजसेवी लोगों के साथ ये जुड़े हुए थे और सारा काम निष्काम भाव से करते थे...यह कोई कहता नहीं है, लेकिन ताड़ने वाले ताड़ जाते हैं...
धीर साहब कुछ बार घर भी आए और अपने यहां आने के लिए भी बहुत कहा करतेे थे... एक दिन गर्मी की दोपहरी में मैं बर्फी-समोसे लेने गया बाज़ार में तो इन का घर पास में ही था, वहां रुक गया... मुझे इन की दिनचर्या देख कर बहुत खुशी हुई...हालांकि उन दिनों इन की श्रीमति जी की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी लेकिन फिर इन की मेहमाननवाज़ी मन को छू गई...
हां, समोसे-बर्फी से याद आया कि ये शहर का एक चलता फिरता एन्साईक्लोपीडिया थे, कहां से समोसे, कहां से राशन और कहां से क्या मिलना है, ये हमेशा बताते रहते .. हर जगह इन का सम्मान होता था, एक बार हम लोग इन के साथ राशन लेने इन की रिक्मैंडिड दुकान पर चले गये ...लेकिन वहां की भीड़ ...अगली बार से तौबा कर ली हमने।
अपनी सेहत को ठीक रखने का हर जुगाड़ इन के पास था... सुबह उठ कर कौन कौन से पत्ते उबाल कर पीने, फिर दलिया फिर जूस, फिर हल्का खाना और सुबह व्यायाम करना , योगाभ्यास करना .. लोगों को चिट्ठीयां लिखनी, फोन करने...और परहित के किसी भी काम में मस्त रहना इन की दिनचर्या में शुमार था...
धीर साहब, अब आप के ऊपर तो मैं लिखता ही जाऊंगा... कागज़़ कम पड़ेंगे...आप का उत्साह और आप के चेहरे पर हमेशा छाई रहने वाली मुस्कुराहट....क्या कहने.....हां, किसी विधवा की पेंशन का कोई लफड़ा हो तो ये बैंक में उसे जा कर निपटवा देते, किसी को इलाज पर किए गये पैसे न मिल रहे हों तो ये बाबू लोगों की खिंचाई कर देते ...लेकिन प्यार से ... और अपने पैसे नहीं मिले तो इन्होंने केस भी किया ...सुनाया करते थे ... लेकिन फिर यह थक से गये और इस के बारे में बात नहीं करते थे .
पांच छः साल पहले बीवी के रुख्सत होने के बाद कुछ समय के लिए तो ये अकेले अपने घर में रहते रहे लेकिन फिर इन के बेटों और बेटी जो दिल्ली गुड़गांव में रहते हैं, इन्हें इन की उम्र की वजह से उन्होंने अकेले रहने नहीं दिया...मकान बेच दिया गया ..शायद उन दिनों एक करोड़ के आसपास बिका था...इन्होंने दिल्ली के द्वारका में अपनी बेटी के पास ही एक फ्लैट लिया हुआ है, मस्त रहते हैं ...हमारे घर के हर सदस्य के जन्मदिन, शादी की सालगिरह....ऐसे हर दिन इन का सुबह फोन आता है ... और बहुत अच्छा लगता है ..
इन्हें यह सब याद कैसे रहता है इतना कुछ?....मैंने बताया न कि एक दिन मैं इन के यहां गया तो मैंने देखा कि इन्होंने बहुत सी डॉयरीयां लगाई हुई हैं....डायरी के हर पन्ने के ऊपर उस दिन का लेखा-जोखा लिखा कि फलां फलां दिन मेैंने क्या क्या किया, कहां कहां गया, किस का फोन आया और क्या बात हुई! और रंग बिरंगी स्याही से यह सब लिखा हुआ था....मेरी उस दिन की विज़िट भी उन्होंने दर्ज कर दी थी अपनी डॉयरी में ...सीधी सी बात है यार कि वे इस सब में व्यस्त रहते थे ...मस्त रहते थे .. कोई व्यसन नहीं, बिल्कुल.....दिल खोल कर हंसना और हंसाना ...
हां, एक बात और ...एक डॉयरी में सभी परिचितोंं के परिवार वालों के जन्मदिन, शादी की सालगिरह का ब्योरा लिखा रहता था ...मैं उस दिन देख कर दंग रह गया..हमारे विभाग में कौन कब रिटायर होने वाला है, कौन हो गया और नया कौन उस कुर्सी पर टिकेगा ...उतना रिकार्ड हमारे प्रधान कार्यालय में शायद न हो, इन के पास और इन की यादाश्त में सब दर्ज मिलेगा...इन के किसी पुराने परिचित को घैंट से कुर्सी मिल जाए तो बधाई देने वालों में इन का नंबर सब से पहला होता....किसी तरह की झिझकता की तो ऐसी की तैसी ...हरेक से सीधा वार्तालाप...
शायद यही सादगी ...यह सहजता ...आज समाज से कहीं लुप्त होती जा रही है, हम लोग हर बात को स्वार्थ के तराजू में तोलने लगे हैं ...रही बात हर बात को डॉयरी में लिखने की ... अपने अपने मन की मौज है, अगर इन्हें इस में आनंद मिलता है, तो हमारा क्या ले रहे हैं....मैं भी यही करता हूं सारा दिन, अपने अनुभव अपने ब्लॉग पर दर्ज करता रहता हूं, धीर साहब भी तो एक ब्लॉगिंग ही कर रहे हैं ...ऑफ-लाईन ही सही ...
हां, एक बात और ...इन का एक पोस्टकार्ड है मेरे पास अभी भी, ये जब द्वारका चले गये तो इन्होंने वहां से अपना पता लिखा था, मेरी स्टडी-टेबल के शीशे के नीचे ही पड़ा हुआ है .. इसे देखते ही इन की याद आ जाती है ... हां, पिछले सालों में ये अपने पोस्टकार्ड में सत्संग की तारीख और स्थान भी बताया करते थे ...एक बार हम वहां हो कर भी आये थे...
अच्छे इंसान धीर साहब, हंस कर मिलना, हंसना हंसाना, मिलना-जुलना, दुःख-सुख बांटना, किसी के काम आना....संत लोग वही नहीं होते जिन्हें उपाधियां मिलती हैं, हमारे आस पास रहने वाले ये लोग भी निःसंदेह संत ही हैं..... जियो, धीर साहब, जुग जुग जियो.... १२० साल से भी ऊपर जियो, ईश्वर आप को ऐसे ही चलता-फिरता...टनाटन रखे .. मेरी शुभकामनाएं....मैंने कल आप को कहा था कि मैं आप को चिट्ठी लिखूंगा...कल ही इस लेख की एक कापी निकाल कर आप को भिजवाता हूं और जल्दी ही आप को दिल्ली में मिलूंगा भी ज़रूर... आप जैसे महान लोग हर लिहाज़ से प्रेरणा-स्रोत हैं...
लेकिन मेरी लापरवाही की इंतहा देखिए कि मुझे इन के जन्मदिन की तारीख नहीं पता लेकिन कल यह जब फोन कर रहे थे मुझे यह कह रहे थे कि अगर कभी मेरा फोन नहीं भी मिले तो मेरी बिटिया का नंबर भी लिख कर रख लो ...और मैंने उसे भी लिख लिया..
धीरे साहब ने आगे पूछा कि अच्छा, यह भी बताओ कि आप को एरियर में कितने मिले हैं...वह भी सैंकड़े की रकम तक तो मुझे याद थी और मैंने ठीक ठीक बता दिया...और जितनी बार मुझे वह रकम रिपीट करनी पड़ी, उस से साफ़ ज़ाहिर था कि वे उसे अपनी डॉयरी में नोट कर रहे थे..
फिर कहने लगे कि डाक्टर साहब, इस का मतलब है कि उस डाक्टर (एक बड़े से घैंट बंदे का नाम लिया उन्होंने) की तो फिक्सेशन कम हुई है .....मैंने इस बात पर भी तुरंत प्रकाश डाल दिया कि उस की फिक्सेशन कम क्यों लगती होगी!
फिर मैंने उनसे अपनी मां की भी बात करवाई .... इन दोनों ने एक दूसरे का हाल चाल लिया ..और मां को मैंने कहते सुना कि धीर साहब, आप ठीक हैं ना, चलते फिरते हैं ना ?...और फिर मां ने उन्हें बताया कि धीर साहब, मैं भी अब लाठी से ही चल पाती हूं...
बहरहाल, फिर मेरे से बात हुई ... एक अधिकारी के बारे में बताते हुए खुश हो रहे थे कि अच्छा है वह पांच साल की एक्सटेंशन मिलने से पहले ही रवाना हो गया, वरना लोगों को बड़ी परेशानी होती!
अब एक ९५ जी हां, पिच्यानवें साल के बुज़ुर्ग का पे-कमीशन की फिक्सेशन, एरियर, कुछ लोगों को एक्सटेंशन न मिल पाने पर राहत महूसस करना ..कितने अद्भुत होंगे ये बुज़ुर्ग, इसीलिए आज सुबह सवेरे आप से इन का तारुफ़ करवाने का मन हुआ...कुछ न कुछ तो हमें सिखाने के लिए हरेक के पास होता है ...
धीर साहब अभी 95 साल के आसपास होंगे ..कम नहीं, इन से मेरी मुलाकात १० साल पुरानी है ...जब मेरी जगाधरी में नई नई पोस्टिंग हुई थी...यह रिटायर कर्मचारी हैं, ज़ाहिर है इलाज के लिए आते थे तो मिलते ज़रूर थे, दांतों की मुरम्मत भी इन की चलती रही ....२००६ से इन की मुझे चिट्ठीयां आनी शुरू हो गईं ...हमेशा पोस्टकार्ड भिजवाते थे ..मुझे अच्छे से याद है कि उन्हीं दिनों मेघदूत पोस्टकार्ड चले थे, २५ पैसे वाले, यह अकसर मेघदूत पोस्टकार्ड भी भिजवाते थे .. जितनी मुझे याद आ रहा है कि कईं बार मैं भी उस का जवाब लिख भेजता था...और फिर जब मोबाइल की तूती बोलने लगी तो मैं फोन पर ही इन की चिट्ठी की पावती इन्हें भिजवा दिया करता ...फिर धीरे धीरे इन के ख़त आने लगभग बंद से हो गये...
लेकिन ये नियमित अस्पताल में आया करते थे ....किसी भी काम से आते तो मिल कर ज़रूर जाते... उन दिनों ये ८५ साल की उम्र तो पार कर ही चुके थे ...सेहत ठीक ठाक ही थी, लेकिन इन की श्रीमति जी कैंसर से ग्रस्त थीं, वे भी महिला मोर्चा से जुड़ी हुई थीं, अकसर वे बताया करती थीं, सहज स्वभाव की महिला थीं वह भी ..
ये दोनों मियां-बीवी यमुनानगर में एक भव्य घर में रहते थे...मस्त थे ...खुश थे...धीर साहब तो बहुत से सामाजिक कामों से भी जुड़े रहे....लोगों के आंखों के फ्री-आप्रेशन करवाना, ज़रूरतमंदों में कपड़े बांटना, विधवाओं में राशन बांटना, सिविल अस्पताल के मरीज़ों में खाना बांटना, वहां मरीज़ों में दूध पहुंचा कर आना....इन के पास करने को बहुत कुछ था...हर समय व्यस्त ... और सारा काम अपने साईकिल पर ....बहुत से समाजसेवी लोगों के साथ ये जुड़े हुए थे और सारा काम निष्काम भाव से करते थे...यह कोई कहता नहीं है, लेकिन ताड़ने वाले ताड़ जाते हैं...
धीर साहब कुछ बार घर भी आए और अपने यहां आने के लिए भी बहुत कहा करतेे थे... एक दिन गर्मी की दोपहरी में मैं बर्फी-समोसे लेने गया बाज़ार में तो इन का घर पास में ही था, वहां रुक गया... मुझे इन की दिनचर्या देख कर बहुत खुशी हुई...हालांकि उन दिनों इन की श्रीमति जी की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी लेकिन फिर इन की मेहमाननवाज़ी मन को छू गई...
हां, समोसे-बर्फी से याद आया कि ये शहर का एक चलता फिरता एन्साईक्लोपीडिया थे, कहां से समोसे, कहां से राशन और कहां से क्या मिलना है, ये हमेशा बताते रहते .. हर जगह इन का सम्मान होता था, एक बार हम लोग इन के साथ राशन लेने इन की रिक्मैंडिड दुकान पर चले गये ...लेकिन वहां की भीड़ ...अगली बार से तौबा कर ली हमने।
अपनी सेहत को ठीक रखने का हर जुगाड़ इन के पास था... सुबह उठ कर कौन कौन से पत्ते उबाल कर पीने, फिर दलिया फिर जूस, फिर हल्का खाना और सुबह व्यायाम करना , योगाभ्यास करना .. लोगों को चिट्ठीयां लिखनी, फोन करने...और परहित के किसी भी काम में मस्त रहना इन की दिनचर्या में शुमार था...
पांच छः साल पहले बीवी के रुख्सत होने के बाद कुछ समय के लिए तो ये अकेले अपने घर में रहते रहे लेकिन फिर इन के बेटों और बेटी जो दिल्ली गुड़गांव में रहते हैं, इन्हें इन की उम्र की वजह से उन्होंने अकेले रहने नहीं दिया...मकान बेच दिया गया ..शायद उन दिनों एक करोड़ के आसपास बिका था...इन्होंने दिल्ली के द्वारका में अपनी बेटी के पास ही एक फ्लैट लिया हुआ है, मस्त रहते हैं ...हमारे घर के हर सदस्य के जन्मदिन, शादी की सालगिरह....ऐसे हर दिन इन का सुबह फोन आता है ... और बहुत अच्छा लगता है ..
इन्हें यह सब याद कैसे रहता है इतना कुछ?....मैंने बताया न कि एक दिन मैं इन के यहां गया तो मैंने देखा कि इन्होंने बहुत सी डॉयरीयां लगाई हुई हैं....डायरी के हर पन्ने के ऊपर उस दिन का लेखा-जोखा लिखा कि फलां फलां दिन मेैंने क्या क्या किया, कहां कहां गया, किस का फोन आया और क्या बात हुई! और रंग बिरंगी स्याही से यह सब लिखा हुआ था....मेरी उस दिन की विज़िट भी उन्होंने दर्ज कर दी थी अपनी डॉयरी में ...सीधी सी बात है यार कि वे इस सब में व्यस्त रहते थे ...मस्त रहते थे .. कोई व्यसन नहीं, बिल्कुल.....दिल खोल कर हंसना और हंसाना ...
हां, एक बात और ...एक डॉयरी में सभी परिचितोंं के परिवार वालों के जन्मदिन, शादी की सालगिरह का ब्योरा लिखा रहता था ...मैं उस दिन देख कर दंग रह गया..हमारे विभाग में कौन कब रिटायर होने वाला है, कौन हो गया और नया कौन उस कुर्सी पर टिकेगा ...उतना रिकार्ड हमारे प्रधान कार्यालय में शायद न हो, इन के पास और इन की यादाश्त में सब दर्ज मिलेगा...इन के किसी पुराने परिचित को घैंट से कुर्सी मिल जाए तो बधाई देने वालों में इन का नंबर सब से पहला होता....किसी तरह की झिझकता की तो ऐसी की तैसी ...हरेक से सीधा वार्तालाप...
शायद यही सादगी ...यह सहजता ...आज समाज से कहीं लुप्त होती जा रही है, हम लोग हर बात को स्वार्थ के तराजू में तोलने लगे हैं ...रही बात हर बात को डॉयरी में लिखने की ... अपने अपने मन की मौज है, अगर इन्हें इस में आनंद मिलता है, तो हमारा क्या ले रहे हैं....मैं भी यही करता हूं सारा दिन, अपने अनुभव अपने ब्लॉग पर दर्ज करता रहता हूं, धीर साहब भी तो एक ब्लॉगिंग ही कर रहे हैं ...ऑफ-लाईन ही सही ...
हां, एक बात और ...इन का एक पोस्टकार्ड है मेरे पास अभी भी, ये जब द्वारका चले गये तो इन्होंने वहां से अपना पता लिखा था, मेरी स्टडी-टेबल के शीशे के नीचे ही पड़ा हुआ है .. इसे देखते ही इन की याद आ जाती है ... हां, पिछले सालों में ये अपने पोस्टकार्ड में सत्संग की तारीख और स्थान भी बताया करते थे ...एक बार हम वहां हो कर भी आये थे...
अच्छे इंसान धीर साहब, हंस कर मिलना, हंसना हंसाना, मिलना-जुलना, दुःख-सुख बांटना, किसी के काम आना....संत लोग वही नहीं होते जिन्हें उपाधियां मिलती हैं, हमारे आस पास रहने वाले ये लोग भी निःसंदेह संत ही हैं..... जियो, धीर साहब, जुग जुग जियो.... १२० साल से भी ऊपर जियो, ईश्वर आप को ऐसे ही चलता-फिरता...टनाटन रखे .. मेरी शुभकामनाएं....मैंने कल आप को कहा था कि मैं आप को चिट्ठी लिखूंगा...कल ही इस लेख की एक कापी निकाल कर आप को भिजवाता हूं और जल्दी ही आप को दिल्ली में मिलूंगा भी ज़रूर... आप जैसे महान लोग हर लिहाज़ से प्रेरणा-स्रोत हैं...
लेकिन मेरी लापरवाही की इंतहा देखिए कि मुझे इन के जन्मदिन की तारीख नहीं पता लेकिन कल यह जब फोन कर रहे थे मुझे यह कह रहे थे कि अगर कभी मेरा फोन नहीं भी मिले तो मेरी बिटिया का नंबर भी लिख कर रख लो ...और मैंने उसे भी लिख लिया..