कुछ अरसा पहले हमारे यहां एक पोस्टर लगा हुआ था...Welcome every day with open arms!
Every new day comes with a bunch of opportunities and hopes!
बात है तो बिल्कुल सच....मैंने हमेशा यही नोटिस किया है कि मैं जब भी प्रातःकाल के भ्रमण के लिए जाता हूं तो हर बार कोई ऐसा प्राकृतिक नज़ारा देखता हूं ..कोई नया पौधा, कोई अनूठा फल, अचंभित कर देने वाला कोई पत्ता, कोई नया फूल ......कुछ भी नया ज़रूर दिख जाता है जिस का मैं नाम तो नहीं जानता, एक बात है लेकिन मैंने उसे पहले कभी देखा भी नहीं होता। और एक खास बात, हर सुबह का मूड बिल्कुल नया होता है।
आज भी जब मैं घर के पास एक बाग में घूमने गया तो वहां का नज़ारा बिल्कुल अलग था। उद्यान के बाहर ही गीता का ज्ञान बंट रहा था...सुंदर सी आवाज़ में एक सीडी के द्वारा गीता के श्लोकों के साथ साथ उन के अर्थ भी बताए जा रहे थे...अच्छा लगा...वे लोग गीता बेच भी रहे थे।
और इस बाग के बिल्कुल गेट के पास ही कुछ पुरूष-महिलाएं योगाभ्यास कर रहे थे....उन की तस्वीर खींचना उचित नहीं समझा।
इस बाग का नाम है ...स्मृति उपवन.......इस बाग के अंदर जाते ही लगता है जैसे आप किसी छोटे मोटे जंगल में आ गये हैं....ऐसा नहीं है कि सुनसान है...बहुत से लोग आते हैं प्रातःकाल के भ्रमण के लिए.......लेकिन अकसर देखता हूं आते जाते कि शायद दोपहर के समय इस का इस्तेमाल बदल जाता है....अंदर से निकलते हुए जोड़ों के हाव-भाव बहुत कुछ ब्यां कर जाते हैं।
आज मेरे मोबाइल की बैटरी ने दस मिनट बाद ही जवाब दे दिया...वरना मैंने बहुत सी तस्वीरें लेनी थीं।
इस के एक कोने में माली का आवास है... आज वहां ताला लगा हुआ था ... और अकसर आते जाते देखते हैं कि वह यहां रहते हुए पूरे फार्म-हाउस का आनंद लेता है... आज उस तरफ सन्नाटा था तो ये दो तस्वीरें लेने की गुस्ताखी कर ली...देखिए, वह कैसी साधारण ज़िंदगी जी रहा है...सिलवट्टा ...मिट्टी का चूल्हा...
आगे चल रहे थे तो मैंने बेटे को बाग की सब से फेवरिट जगह के बारे में बताया.....इस का कारण यह है कि मैं जिस भी मौसम में गया हूं ...वहां पर हमेशा इतनी ही हरियाली और और इतने ही बड़े बड़े पत्ते बिखरे देखता हूं....पता नहीं मुझे इस स्पॉट से क्यों इतना लगाव है....वहां से हटने की इच्छा ही नहीं होती......वहां खड़े होकर यही लगता है कि कहीं उत्तरांखंड की वादियों में पहुंच गये हैं.
अच्छा एक बात और है इस बाग की.....यहां पर जगह जगह सीमेंट के लगभग १०x१० फीट के लगभग --इस से भी बड़े सीमेंट के प्लेटफार्म बने हुए हैं.....वहां पर सभी आयुवर्ग के लोग बैठ कर योगाभ्यास करते हैं।
इस बाग में बहुत से लोहे के बैंच जगह जगह रखे हुए हैं...जहां पर लोग थोड़ा सुस्ता भी लेते हैं।
मेडीटेशन के लिए भी इस बाग में कुछ छतरीनुमा स्थान बनाए गये हैं....ताकि लोग एकांत में अपने आप के साथ कुछ लम्हें बिता पाएं।
एक कार्नर में बच्चों के झूले लगे हैं...और भी कुछ सी-सा टाइप के खेल....वे वहां मस्त रहते हैं।
एक महिला को अकसर मैं फूल ही तोड़ते देखता हूं ..एक पन्नी में इक्ट्ठा करती रहती है....सोचता हूं कि इसे किसी दिन कह ही दूं कि यह मत किया करे, लेकिन रूक जाता हूं।
आज इस बाग का राउंड लगाते लगाते कुछ चीज़े नई दिखीं ...मुझे नहीं पता ये क्या हैं, मैंने इन्हें उठा लिया........और प्रकृति की रहस्यमयी परतों का एक बार फिर से ध्यान आ गया....आप भी देखिए ये तस्वीरें...और पहचानिए ये फूल-फलियां हैं क्या! फली तो मैंने पहले भी देखी है लेिकन नहीं जानता कि यह है क्या। लेकिन हर बात को समझने को कह कौन रहा है!... बस ये सब निहारने से रूह खुश हो गई....
जाते जाते एक गीत हो जाए......मैं अकसर पुराने गीत शेयर करता हूं....लेकिन आज कर यश चोपड़ा की फिल्म दम लगा के हईशा के इस गीत ने हर तरफ़ धूम मचा रखी है.....लिरिक्स, म्यूजिक, फिल्मांकन.......मैं बेटा को कह रहा था कि इस ने १९९० में रिलीज़ हुई आशिकी की यादें तरोताज़ा कर दीं ..
Every new day comes with a bunch of opportunities and hopes!
बात है तो बिल्कुल सच....मैंने हमेशा यही नोटिस किया है कि मैं जब भी प्रातःकाल के भ्रमण के लिए जाता हूं तो हर बार कोई ऐसा प्राकृतिक नज़ारा देखता हूं ..कोई नया पौधा, कोई अनूठा फल, अचंभित कर देने वाला कोई पत्ता, कोई नया फूल ......कुछ भी नया ज़रूर दिख जाता है जिस का मैं नाम तो नहीं जानता, एक बात है लेकिन मैंने उसे पहले कभी देखा भी नहीं होता। और एक खास बात, हर सुबह का मूड बिल्कुल नया होता है।
आज भी जब मैं घर के पास एक बाग में घूमने गया तो वहां का नज़ारा बिल्कुल अलग था। उद्यान के बाहर ही गीता का ज्ञान बंट रहा था...सुंदर सी आवाज़ में एक सीडी के द्वारा गीता के श्लोकों के साथ साथ उन के अर्थ भी बताए जा रहे थे...अच्छा लगा...वे लोग गीता बेच भी रहे थे।
और इस बाग के बिल्कुल गेट के पास ही कुछ पुरूष-महिलाएं योगाभ्यास कर रहे थे....उन की तस्वीर खींचना उचित नहीं समझा।
इस बाग का नाम है ...स्मृति उपवन.......इस बाग के अंदर जाते ही लगता है जैसे आप किसी छोटे मोटे जंगल में आ गये हैं....ऐसा नहीं है कि सुनसान है...बहुत से लोग आते हैं प्रातःकाल के भ्रमण के लिए.......लेकिन अकसर देखता हूं आते जाते कि शायद दोपहर के समय इस का इस्तेमाल बदल जाता है....अंदर से निकलते हुए जोड़ों के हाव-भाव बहुत कुछ ब्यां कर जाते हैं।
आज मेरे मोबाइल की बैटरी ने दस मिनट बाद ही जवाब दे दिया...वरना मैंने बहुत सी तस्वीरें लेनी थीं।
आगे चल रहे थे तो मैंने बेटे को बाग की सब से फेवरिट जगह के बारे में बताया.....इस का कारण यह है कि मैं जिस भी मौसम में गया हूं ...वहां पर हमेशा इतनी ही हरियाली और और इतने ही बड़े बड़े पत्ते बिखरे देखता हूं....पता नहीं मुझे इस स्पॉट से क्यों इतना लगाव है....वहां से हटने की इच्छा ही नहीं होती......वहां खड़े होकर यही लगता है कि कहीं उत्तरांखंड की वादियों में पहुंच गये हैं.
अच्छा एक बात और है इस बाग की.....यहां पर जगह जगह सीमेंट के लगभग १०x१० फीट के लगभग --इस से भी बड़े सीमेंट के प्लेटफार्म बने हुए हैं.....वहां पर सभी आयुवर्ग के लोग बैठ कर योगाभ्यास करते हैं।
इस बाग में बहुत से लोहे के बैंच जगह जगह रखे हुए हैं...जहां पर लोग थोड़ा सुस्ता भी लेते हैं।
मेडीटेशन के लिए भी इस बाग में कुछ छतरीनुमा स्थान बनाए गये हैं....ताकि लोग एकांत में अपने आप के साथ कुछ लम्हें बिता पाएं।
एक कार्नर में बच्चों के झूले लगे हैं...और भी कुछ सी-सा टाइप के खेल....वे वहां मस्त रहते हैं।
एक महिला को अकसर मैं फूल ही तोड़ते देखता हूं ..एक पन्नी में इक्ट्ठा करती रहती है....सोचता हूं कि इसे किसी दिन कह ही दूं कि यह मत किया करे, लेकिन रूक जाता हूं।
आज इस बाग का राउंड लगाते लगाते कुछ चीज़े नई दिखीं ...मुझे नहीं पता ये क्या हैं, मैंने इन्हें उठा लिया........और प्रकृति की रहस्यमयी परतों का एक बार फिर से ध्यान आ गया....आप भी देखिए ये तस्वीरें...और पहचानिए ये फूल-फलियां हैं क्या! फली तो मैंने पहले भी देखी है लेिकन नहीं जानता कि यह है क्या। लेकिन हर बात को समझने को कह कौन रहा है!... बस ये सब निहारने से रूह खुश हो गई....
जाते जाते एक गीत हो जाए......मैं अकसर पुराने गीत शेयर करता हूं....लेकिन आज कर यश चोपड़ा की फिल्म दम लगा के हईशा के इस गीत ने हर तरफ़ धूम मचा रखी है.....लिरिक्स, म्यूजिक, फिल्मांकन.......मैं बेटा को कह रहा था कि इस ने १९९० में रिलीज़ हुई आशिकी की यादें तरोताज़ा कर दीं ..