मुझे लखनऊ में रहते दो वर्ष हो चुके हैं... सड़क पर जाते समय यही डर लगा रहता है कि कहीं किसी पान थूकने वाले का थूक मुंह पे न पड़ जाए... स्कूटर पर चलते समय तो और भी दिक्कत होती है क्योंकि कोई भरोसा ही नहीं कि कब, किस तरफ़ से पान का थूक आ जाए।
दोस्तो, चिकित्सा क्षेत्र में हूं..अस्पताल में आए किसी बीमार के थूकने पर कोई आपत्ति नहीं है न ही हो सकती है, मेरी ओपीडी में किसी मरीज़ को उल्टी हो जाती है तो मैं या मेरा सहायक उस की पीठ पर हाथ रख कर उसे सहारा देने में नहीं चूकते.....यह अपना पेशा है।
लेकिन यह जो जगह जगह पान थूकने वाले हैं ना, इन से मुझे बड़ी चिढ़ है... दीवारें तो दीवारें, शहर की सड़कें तक इस थूक से रंगी हुई हैं। यह देखने में गंदा लगता है, वातावरण के लिए खराब है और सेहत के लिए भी तो बहुत नुकसानदायक ही है।
हां, तो दोस्तो, जब यहां पता चला कि लखनऊ में मैट्रो चलेगी तो मुझे दिल्ली मैट्रो वाले दिन याद आ गये...किस तरह से उन्होंने मेरे विचार में प्लेटफार्मों पर ही चेतावनी लगा रखी है कि स्टेशन परिसर या मैट्रो में थूकने वालों पर शायद ५०० रूपये का जुर्माना ठोका जाएगा...और मुझे पता चला है कि वे इस मामले में बहुत कड़क हैं......होना भी चाहिए, अगर इतनी स्वच्छता रखनी है तो यह सब तो करना ही होगा, वरना लोग डरते नहीं है....
दिल्ली मैट्रो ने एक बढ़िया काम किया है ...तरह तरह के गल्त कामों के िलए यह कानूनी-वूनी कार्रवाई का डर नहीं डाला...हर अपराध का रेट फिक्स है, आप हर्जाना भरिए और छूट जाइए....no questions asked!
मुझे लखनऊ मैट्रो को लेकर यही चिंता थी कि अगले दो एक साल में जब इस की सेवाएं शुरू हो जाएंगी तो यहां के पान-गुटखा थूकने वालों की तो बहुत आफ़त हो जाएगी.....मैं यही सोच रहा था कि देखते हैं यहां पर मैट्रो रेल का क्या रवैया रहता है, जब इस पान-गुटखा चबाने वालों को एक तरह से सामाजिक स्वीकार्यता हासिल है तो क्या यहां पर मैट्रो प्रशासन ढीला पड़ जाएगा, अगर कहीं बदकिस्मती से यह हो गया तो मैट्रो के स्टेशन परिसरों का और मैट्रो के सवारी डिब्बों का तो हुलिया बिगड़ जाएगा।
लेिकन कल की टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला कि यह पान-गुटखे वाला लफड़ा तो अभी ही से शुरू हो गया।
तो हुआ यह है, दोस्तो, कि मैट्रो के निर्माण कार्य के लिए मैट्रो रेल को जगह जगह बैरीकेड लगाने होते हैं....और ये तो आपने देखा ही होगा िक ये लोग बिना किसी तरह के अवरोध के अपना काम चुपचाप करते रहते हैं।
लेिकन लखऩऊ में अब मैट्रो तैयार करने वाली कंपनी इन पान-थूकने वालों से बड़ी परेशान हो गई है...लार्सन-टूबरो के एक अधिकारी ने कहा है कि मैट्रो बिछाना कोई बड़ा काम नहीं है, हम उसे करते आए हैं, लेकिन इन पान-गुटखा थूकने वालों को काबू में रख पाना बड़ा टेढ़ा काम लग रहा है।
रिपोर्ट में लिखा था कि जिस स्ट्रेच में अभी मैट्रो का काम चल रहा है, उस के आसपास मैट्रो रेलवे ने जो बैरीकेड लगा रखे हैं...आते जाते लोग दो और चार पहिया वाले इस के ऊपर सारा दिन थूकते रहते हैं जिस की वजह से वह इतने गंदे और भद्दे हो जाते हैं कि रोज़ाना सुबह आठ से दस मैट्रो कर्मचारी अपना नियमित काम छोड़ कर इन पान के दागों को धोने में ही लगे रहते हैं.....सच में इस से मैट्रो के निर्माण कार्य में बड़ी परेशानी हो रही है।
अब देखने वाली बात यह है कि यह तो अब की बात है जब कि मैट्रो का निर्माण कार्य शुरू हुआ है.... अभी यह देखना तो बाकी है कि जब मैट्रो बन कर तैयार हो जाएगी और इस पर गाड़ीयां दौड़ने लगेंगी तब क्या होता है।
आगे आगे देखिए होता है क्या, मेरी तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि काश! इसी मैट्रो के बहाने ही लखनऊ के बाशिंदों का पान-गुटखा-पानमसाला से मोहभंग हो जाए....इस से ये स्वयं भी स्वस्थ रहेंगे और लखनऊ मैट्रो -लखनऊ की शान --भी चमचमाती रहेगी।
काश! ऐसा ही हो!!
दोस्तो, चिकित्सा क्षेत्र में हूं..अस्पताल में आए किसी बीमार के थूकने पर कोई आपत्ति नहीं है न ही हो सकती है, मेरी ओपीडी में किसी मरीज़ को उल्टी हो जाती है तो मैं या मेरा सहायक उस की पीठ पर हाथ रख कर उसे सहारा देने में नहीं चूकते.....यह अपना पेशा है।
लेकिन यह जो जगह जगह पान थूकने वाले हैं ना, इन से मुझे बड़ी चिढ़ है... दीवारें तो दीवारें, शहर की सड़कें तक इस थूक से रंगी हुई हैं। यह देखने में गंदा लगता है, वातावरण के लिए खराब है और सेहत के लिए भी तो बहुत नुकसानदायक ही है।
हां, तो दोस्तो, जब यहां पता चला कि लखनऊ में मैट्रो चलेगी तो मुझे दिल्ली मैट्रो वाले दिन याद आ गये...किस तरह से उन्होंने मेरे विचार में प्लेटफार्मों पर ही चेतावनी लगा रखी है कि स्टेशन परिसर या मैट्रो में थूकने वालों पर शायद ५०० रूपये का जुर्माना ठोका जाएगा...और मुझे पता चला है कि वे इस मामले में बहुत कड़क हैं......होना भी चाहिए, अगर इतनी स्वच्छता रखनी है तो यह सब तो करना ही होगा, वरना लोग डरते नहीं है....
दिल्ली मैट्रो ने एक बढ़िया काम किया है ...तरह तरह के गल्त कामों के िलए यह कानूनी-वूनी कार्रवाई का डर नहीं डाला...हर अपराध का रेट फिक्स है, आप हर्जाना भरिए और छूट जाइए....no questions asked!
मुझे लखनऊ मैट्रो को लेकर यही चिंता थी कि अगले दो एक साल में जब इस की सेवाएं शुरू हो जाएंगी तो यहां के पान-गुटखा थूकने वालों की तो बहुत आफ़त हो जाएगी.....मैं यही सोच रहा था कि देखते हैं यहां पर मैट्रो रेल का क्या रवैया रहता है, जब इस पान-गुटखा चबाने वालों को एक तरह से सामाजिक स्वीकार्यता हासिल है तो क्या यहां पर मैट्रो प्रशासन ढीला पड़ जाएगा, अगर कहीं बदकिस्मती से यह हो गया तो मैट्रो के स्टेशन परिसरों का और मैट्रो के सवारी डिब्बों का तो हुलिया बिगड़ जाएगा।
लेिकन कल की टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला कि यह पान-गुटखे वाला लफड़ा तो अभी ही से शुरू हो गया।
तो हुआ यह है, दोस्तो, कि मैट्रो के निर्माण कार्य के लिए मैट्रो रेल को जगह जगह बैरीकेड लगाने होते हैं....और ये तो आपने देखा ही होगा िक ये लोग बिना किसी तरह के अवरोध के अपना काम चुपचाप करते रहते हैं।
लेिकन लखऩऊ में अब मैट्रो तैयार करने वाली कंपनी इन पान-थूकने वालों से बड़ी परेशान हो गई है...लार्सन-टूबरो के एक अधिकारी ने कहा है कि मैट्रो बिछाना कोई बड़ा काम नहीं है, हम उसे करते आए हैं, लेकिन इन पान-गुटखा थूकने वालों को काबू में रख पाना बड़ा टेढ़ा काम लग रहा है।
रिपोर्ट में लिखा था कि जिस स्ट्रेच में अभी मैट्रो का काम चल रहा है, उस के आसपास मैट्रो रेलवे ने जो बैरीकेड लगा रखे हैं...आते जाते लोग दो और चार पहिया वाले इस के ऊपर सारा दिन थूकते रहते हैं जिस की वजह से वह इतने गंदे और भद्दे हो जाते हैं कि रोज़ाना सुबह आठ से दस मैट्रो कर्मचारी अपना नियमित काम छोड़ कर इन पान के दागों को धोने में ही लगे रहते हैं.....सच में इस से मैट्रो के निर्माण कार्य में बड़ी परेशानी हो रही है।
अब देखने वाली बात यह है कि यह तो अब की बात है जब कि मैट्रो का निर्माण कार्य शुरू हुआ है.... अभी यह देखना तो बाकी है कि जब मैट्रो बन कर तैयार हो जाएगी और इस पर गाड़ीयां दौड़ने लगेंगी तब क्या होता है।
आगे आगे देखिए होता है क्या, मेरी तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि काश! इसी मैट्रो के बहाने ही लखनऊ के बाशिंदों का पान-गुटखा-पानमसाला से मोहभंग हो जाए....इस से ये स्वयं भी स्वस्थ रहेंगे और लखनऊ मैट्रो -लखनऊ की शान --भी चमचमाती रहेगी।
काश! ऐसा ही हो!!