जब भी किसी ऐसे मरीज़ को जिसमें मुंह का कैंसर होने का संदेह लग रहा हो...किसी मैडीकल कालेज आदि जैसी जगहों पर भेजता हूं..तो अधिकतर उस मरीज़ का या उस के साथ आये हुये व्यक्ति का यही रिएक्शन रहता है कि वहां तो इस का टुकड़ा लेकर टेस्ट करेंगे तो इस तरह की छेड़छाड़ से तो यह बहुत फैल जाता है, ऐसा बताते हैं।
यह एक बहुत ही बड़ी भ्रांति है अपने लोगों में......अब यह कहां से चल पड़ी नहीं जानता.....लेकिन इतना तो तय है कि जो कैंसर रोग विशेषज्ञ होते हैं वे अपने काम में बहुत एक्सपर्ट होते हैं कि टुकड़ा कितना लेना है, कहां से लेना है.....और कहां पर जांच के लिए भेजना है, इस के बारे में कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए कि किसी जगह से मांस का कोई टुकड़ा आदि लेने से स्थिति बद से बदतर हो जाएगी।
मुंह के कैंसर के बारे में मैंने यह देखा कि कुछ दंत चिकित्सक या कोई अन्य सर्जन जिन्होंने मुंह के कैंसर का इलाज नहीं भी करना होता, वे भी टुकड़ा ले लेते हैं.. (इसे मैडीकल भाषा में बॉयोप्सी करना कहते हैं) और जांच के लिए उस टुकड़े को किसी लैब में भेजते हैं और अगर वहां से कैंसर की पुष्टि हो जाए तो मरीज़ को किसी कैंसर रोग विशेषज्ञ के पास रेफऱ करते हैं। ऐसा दंत चिकित्सक ही नहीं करते, मैंने बहुत बार देखा है कि ईएनटी (कान, नाक, गला रोग विशेषज्ञ) डाक्टर भी बॉयोप्सी कर देते हैं मुंह के संभावित कैंसर की........फिर बाद में किसी कैंसर सर्जन के पास रेफर करते हैं।
मुझे यह ठीक नहीं लगता क्योंिक मुंह के कैंसर के बारे में बात करें तो अधिकतर केसों को तो देखने मात्र से पता चल जाता है कि यह कैंसर ही है.....बस बॉयोप्सी से केवल पुष्टि करने भर की ज़रूरत रहती है। और मैं ऐसा मानता हूं कि दंत चिकित्सकों एवं अन्य सामान्य चिकित्सकों एवं सर्जनों को ऐसा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि वे मुंह के कैंसर के बारे में देखते ही काफी कुछ जान लें..कम से कम एक अनुमान तो हो ही जाना चाहिए....यह बड़ा ज़रूरी है।
एक बात और याद आ गई.......आपने बहुत बार सुना होगा कि किसी ने अपना कोई दांत निकलवाया और उस जगह पर मुंह में कैंसर बन गया.......नहीं, ऐसा नहीं होता, दरअसल होता क्या है कि कैंसर अगर जबाड़े में हड्डी में धीरे धीरे बढ़ रहा होता है तो इस वजह से बहुत बार उस के आस पास वाले दांत भी थोड़े हिलने लगते हैं.....कईं बार तो इतना हिलने लगते हैं कि वे अपने आप लगभग झड़ से जाते हैं......जैसा दूध के दांत अपने आप निकल जाते हैं!!
अब आप कल्पना कीजिए कि ऐसे ही किसी एक बंदे ने दांत उखड़वाया (जिस के जबड़े में कैंसर पहले से है) और दांत उखड़वाने के बाद अगर उस का ज़ख्म नहीं भर रहा और दो महीने बाद जब वही जबड़े का कैंसर उखड़े हुए दांत से बाहर आने लगता है तो ऐसा कह दिया जाता है कि दांत उखड़वाने से कैंसर हो गया.......इस में कोई सच्चाई नहीं है।
मुझे याद है दस वर्ष पहले का एक मरीज ...वह तंबाकू का खूब इस्तेमाल किया करता था.....और उस के ऊपरी आखिरी अकल की जाड़ के पास एक ज़ख्म सा था... अकसर इस तरह के ज़ख्म (जो जाड़ की रगड़ से ही होते हैं) खराब जाड़ निकालने पर दो चार दिन में ठीक हो जाते हैं....क्योंकि दांत तो उस का खूब हिल ही रहा था, उसे तो निकालना ही था, मैंने निकाल दिया...लेकिन लगभग एक महीने बाद जब वह मुझे चैकअप करवाने आया तो उसी जगह पर कैंसर जैसी ग्रोथ बन चुकी थी.......और मेरे पास आने से पहले वह बाहर दो चिकित्सकों को भी चैक करवा के आ चुका था कि कहीं दांत उखड़वाने से तो यह नहीं हो गया......उन्होंने भी उसे यही समझाया कि नहीं, यह तो पहले ही से था, अब दिखने लग गया और फिर उसे कैंसर रोग विशेषज्ञ के पास भेजा गया।
कैंसर रोग विशेषज्ञ जो बॉयोप्सी लेगा उस से उसे बीमारी के स्तर का पता तो चलता ही है, इसी से ही वह निर्णय लेते हैं कि किस तरह का इलाज इस मरीज़ के लिए उपर्युक्त है।
बात तो मैंने इस पोस्ट के माध्यम से इतनी रखनी थी कि मांस का टुकड़ा लेने से ऐसा नहीं होता कि कैंसर फैल जाए......लेकिन यह टुकड़ा कौन लेगा...ज़ाहिर सी बात है कि इस देश के मरीज़ यह निर्णय नहीं ले पाते कि यह काम किस से करवाएं......इसलिए विभिन्न चिकित्सकों को ही इसमें आत्म-अनुशासन की ज़रूरत है कि विशेषकर मुंह के कैंसर के केसों में जहां बहुत कुछ बिना कुछ टैस्ट किए ही दिख रहा है...साफ़-साफ़- और अगर उस टुकड़े की जांच करवाने पर कैंसर की पुष्टि भी हो गई तो भी सामान्य चिकित्सक अथवा सामान्य दंत चिकित्सक ने कुछ भी तो नहीं करना होता, मरीज़ को रेफर ही करना होता है.......ऐसे में जहां मरीज़ को रेफर किया जाता है, अगर वह कैंसर-रोग विशेषज्ञ फिर से बॉयोप्सी लेने को कहता है तो मरीज़ को बहुत बुरा लगता है.......इस सब के चक्कर में समय और पैसा तो बर्बाद होता ही है.........(क्योंकि पहली वाली बॉयोप्सी से बचा जा सकता था)... मरीज की परेशानी भी बढ़ जाती है....उस के लिए तो वैसे ही इस तरह की बीमारी का मात्र संदेह होने पर ही बिना सटीक इलाज के एक एक दिन बिताना भारी होता है।
जाते जाते मेरी हाथ जोड़ कर आप सब से एक ही प्रार्थना है कि अगर आप तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन कर रहे हैं, पानमसाला खा रहे हैं......गुटखा खा रहे हैं, डली चबा रहे हैं तो अभी से इस आदत को थूक दें.........बाद में कुछ भी कर लीजिए... दरअसल बहुत ही देर हो चुकी होती है। Stay healthy!!
यह एक बहुत ही बड़ी भ्रांति है अपने लोगों में......अब यह कहां से चल पड़ी नहीं जानता.....लेकिन इतना तो तय है कि जो कैंसर रोग विशेषज्ञ होते हैं वे अपने काम में बहुत एक्सपर्ट होते हैं कि टुकड़ा कितना लेना है, कहां से लेना है.....और कहां पर जांच के लिए भेजना है, इस के बारे में कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए कि किसी जगह से मांस का कोई टुकड़ा आदि लेने से स्थिति बद से बदतर हो जाएगी।
मुंह के कैंसर के बारे में मैंने यह देखा कि कुछ दंत चिकित्सक या कोई अन्य सर्जन जिन्होंने मुंह के कैंसर का इलाज नहीं भी करना होता, वे भी टुकड़ा ले लेते हैं.. (इसे मैडीकल भाषा में बॉयोप्सी करना कहते हैं) और जांच के लिए उस टुकड़े को किसी लैब में भेजते हैं और अगर वहां से कैंसर की पुष्टि हो जाए तो मरीज़ को किसी कैंसर रोग विशेषज्ञ के पास रेफऱ करते हैं। ऐसा दंत चिकित्सक ही नहीं करते, मैंने बहुत बार देखा है कि ईएनटी (कान, नाक, गला रोग विशेषज्ञ) डाक्टर भी बॉयोप्सी कर देते हैं मुंह के संभावित कैंसर की........फिर बाद में किसी कैंसर सर्जन के पास रेफर करते हैं।
मुझे यह ठीक नहीं लगता क्योंिक मुंह के कैंसर के बारे में बात करें तो अधिकतर केसों को तो देखने मात्र से पता चल जाता है कि यह कैंसर ही है.....बस बॉयोप्सी से केवल पुष्टि करने भर की ज़रूरत रहती है। और मैं ऐसा मानता हूं कि दंत चिकित्सकों एवं अन्य सामान्य चिकित्सकों एवं सर्जनों को ऐसा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि वे मुंह के कैंसर के बारे में देखते ही काफी कुछ जान लें..कम से कम एक अनुमान तो हो ही जाना चाहिए....यह बड़ा ज़रूरी है।
एक बात और याद आ गई.......आपने बहुत बार सुना होगा कि किसी ने अपना कोई दांत निकलवाया और उस जगह पर मुंह में कैंसर बन गया.......नहीं, ऐसा नहीं होता, दरअसल होता क्या है कि कैंसर अगर जबाड़े में हड्डी में धीरे धीरे बढ़ रहा होता है तो इस वजह से बहुत बार उस के आस पास वाले दांत भी थोड़े हिलने लगते हैं.....कईं बार तो इतना हिलने लगते हैं कि वे अपने आप लगभग झड़ से जाते हैं......जैसा दूध के दांत अपने आप निकल जाते हैं!!
अब आप कल्पना कीजिए कि ऐसे ही किसी एक बंदे ने दांत उखड़वाया (जिस के जबड़े में कैंसर पहले से है) और दांत उखड़वाने के बाद अगर उस का ज़ख्म नहीं भर रहा और दो महीने बाद जब वही जबड़े का कैंसर उखड़े हुए दांत से बाहर आने लगता है तो ऐसा कह दिया जाता है कि दांत उखड़वाने से कैंसर हो गया.......इस में कोई सच्चाई नहीं है।
मुझे याद है दस वर्ष पहले का एक मरीज ...वह तंबाकू का खूब इस्तेमाल किया करता था.....और उस के ऊपरी आखिरी अकल की जाड़ के पास एक ज़ख्म सा था... अकसर इस तरह के ज़ख्म (जो जाड़ की रगड़ से ही होते हैं) खराब जाड़ निकालने पर दो चार दिन में ठीक हो जाते हैं....क्योंकि दांत तो उस का खूब हिल ही रहा था, उसे तो निकालना ही था, मैंने निकाल दिया...लेकिन लगभग एक महीने बाद जब वह मुझे चैकअप करवाने आया तो उसी जगह पर कैंसर जैसी ग्रोथ बन चुकी थी.......और मेरे पास आने से पहले वह बाहर दो चिकित्सकों को भी चैक करवा के आ चुका था कि कहीं दांत उखड़वाने से तो यह नहीं हो गया......उन्होंने भी उसे यही समझाया कि नहीं, यह तो पहले ही से था, अब दिखने लग गया और फिर उसे कैंसर रोग विशेषज्ञ के पास भेजा गया।
कैंसर रोग विशेषज्ञ जो बॉयोप्सी लेगा उस से उसे बीमारी के स्तर का पता तो चलता ही है, इसी से ही वह निर्णय लेते हैं कि किस तरह का इलाज इस मरीज़ के लिए उपर्युक्त है।
बात तो मैंने इस पोस्ट के माध्यम से इतनी रखनी थी कि मांस का टुकड़ा लेने से ऐसा नहीं होता कि कैंसर फैल जाए......लेकिन यह टुकड़ा कौन लेगा...ज़ाहिर सी बात है कि इस देश के मरीज़ यह निर्णय नहीं ले पाते कि यह काम किस से करवाएं......इसलिए विभिन्न चिकित्सकों को ही इसमें आत्म-अनुशासन की ज़रूरत है कि विशेषकर मुंह के कैंसर के केसों में जहां बहुत कुछ बिना कुछ टैस्ट किए ही दिख रहा है...साफ़-साफ़- और अगर उस टुकड़े की जांच करवाने पर कैंसर की पुष्टि भी हो गई तो भी सामान्य चिकित्सक अथवा सामान्य दंत चिकित्सक ने कुछ भी तो नहीं करना होता, मरीज़ को रेफर ही करना होता है.......ऐसे में जहां मरीज़ को रेफर किया जाता है, अगर वह कैंसर-रोग विशेषज्ञ फिर से बॉयोप्सी लेने को कहता है तो मरीज़ को बहुत बुरा लगता है.......इस सब के चक्कर में समय और पैसा तो बर्बाद होता ही है.........(क्योंकि पहली वाली बॉयोप्सी से बचा जा सकता था)... मरीज की परेशानी भी बढ़ जाती है....उस के लिए तो वैसे ही इस तरह की बीमारी का मात्र संदेह होने पर ही बिना सटीक इलाज के एक एक दिन बिताना भारी होता है।
जाते जाते मेरी हाथ जोड़ कर आप सब से एक ही प्रार्थना है कि अगर आप तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन कर रहे हैं, पानमसाला खा रहे हैं......गुटखा खा रहे हैं, डली चबा रहे हैं तो अभी से इस आदत को थूक दें.........बाद में कुछ भी कर लीजिए... दरअसल बहुत ही देर हो चुकी होती है। Stay healthy!!