कल और परसों मैंने बरसों बाद प्राणायाम् किया। इसे मैंने सिद्ध समाधि योग के कार्यक्रमों एवं रिट्रिज़ (retreats) के दौरान अच्छे से सीखा था...लगभग २० वर्ष पहले...मुंबई में रहता था तब.. कईं वर्ष तक उसे नियमित करता रहा...और बार बार सिद्ध समाधि योग के प्रोग्राम भी अटैंड किया करता था। अच्छा लगता था, बहुत हल्का लगता था।
ध्यान (meditation) भी वहीं से सीखा... सब दीक्षा वहीं से हासिल हुई.....कृपा हुई गुरू ऋषि प्रभाकर जी की.. वे इस के संस्थापक थे।
इस पोस्ट के ज़रिये मैं कोई भाषण देने की इच्छा नहीं रखता। बस केवल अपने अनुभव आपसे शेयर करना चाहता हूं .. जो सीखा .. उसे आप के समक्ष रखना चाहता हूं।
प्राणायाम् आप कृपया कभी भी किताब पढ़ कर या टीवी में देख कर न करें......आप इसे सिखाने वाले किसी गुरू का पता करें.....हर काम सीखने के लिए उस्ताद चाहिए होता है, उसी प्रकार इस सूक्ष्म ज्ञाण के लिए भी एक विशेषज्ञ चाहिए होता है..... गलत मुद्राएं विपरीत असर भी कर सकती हैं। यह एक बेहद वैज्ञानिक प्रक्रिया है दोस्तो।
मेरा अपना अनुभव प्राणायाम् का बेहद सुखद रहा। पता नहीं मैंने बीच में क्यों इसे करना छोड़ दिया....बस आलस की पुरानी बीमारी....लेकिन अभी भी जब भी इस का अभ्यास करता हूं तो बहुत ही हल्का महसूस होने लगता है....।
जैसा कि आपने भी सुना ही होगा कि प्राणायाम् में आखिर ऐसा भी क्या है कि आधे घंटे के प्राणायाम् अभ्यास के बाद इतनी स्फूर्ति और नवशक्ति का आभास होने लगता है....तुरंत ..बिल्कुल उसी समय....।
इस का कारण है कि सामान्य हालात में हम लोगों की सांस लेने की प्रक्रिया हमारे बाकी कामों की तरह बड़ी शैलो (सतही) होती है...हम ज़्यादा अंदर तक सांस नहीं भर पाते....जिस की वजह से ऑक्सीजन की सप्लाई भी पूरी मात्रा में हमारे फेफड़ों तक नहीं पहुंचती.... और ज़ाहिर सी बात है कि अगर वहां नहीं पहुंचती तो फिर शरीर के विभिन्न अंगों तक भी यह पर्याप्त मात्रा में पहुंच नहीं पाती......नतीजा हम सब के सामने... थके मांदे रहना, उमंग का ह्रास, बुझा बुझा सा दिन........लेकिन प्राणायाम् करते ही नवस्फूर्ति का संचार होने लगता है।
एक ज़माना था .. कईं वर्ष तक मैं सुबह और शाम दोनों समय प्राणायाम् अभ्यास किया करता था और दोनों समय ध्यान करना भी मेरे दैनिक जीवन का हिस्सा हुआ करता था.......लेकिन सब कुछ जानते हुए भी ..इन सब के महत्व को जानते हुए भी पता नहीं क्यों यह सब कईं वर्ष तक छूटा सा रहा.........अब फिर से करने लगा हूं तो अच्छा लगता है.....मन भी इस से एकदम शांत रहता है।
तनाव को दूर भगाने का इस से बढ़िया कारगर उपाय हो ही नहीं सकता, मैं इस की गारंटी ले सकता हूं.
स्वस्थ लोग तो करें ही, जो भी किसी पुरानी जीवनशैली से संबंधित बीमारी जैसे की मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसे रोग हैं, माईग्रेन हैं......जो लोग अवसाद या डिप्रेशन आदि के शिकार हैं, वे भी इस जीवनशैली को एक बार अपना कर तो देखें। जीवन में बहार आ जाएगी।
हां, एक बात अकसर मैं सब के साथ साझा करता रहता हूं कि जब हम लोग नियमित प्राणायाम्-ध्यान करते हैं तो हम अपने खाने के बारे में भी ज़्यादा सजग रहने लगते हैं......अपने विचारों को भी देखने लगते हैं......इस के बहुत ही फायदे हैं.....क्या क्या गिनाऊं........हमारे सारे तन और मन को एक दम फिट करने का अचूक फार्मूला है......कोई पढ़ी पढ़ाई बात नहीं है, अापबीती ब्यां कर रहा हूं।
तीस पैंतीस मिनट प्राणायाम् में लगते हैं....बस.........और इतने फायदे। आप भी आजमा कर देखिए।
ध्यान (meditation) भी वहीं से सीखा... सब दीक्षा वहीं से हासिल हुई.....कृपा हुई गुरू ऋषि प्रभाकर जी की.. वे इस के संस्थापक थे।
इस पोस्ट के ज़रिये मैं कोई भाषण देने की इच्छा नहीं रखता। बस केवल अपने अनुभव आपसे शेयर करना चाहता हूं .. जो सीखा .. उसे आप के समक्ष रखना चाहता हूं।
प्राणायाम् आप कृपया कभी भी किताब पढ़ कर या टीवी में देख कर न करें......आप इसे सिखाने वाले किसी गुरू का पता करें.....हर काम सीखने के लिए उस्ताद चाहिए होता है, उसी प्रकार इस सूक्ष्म ज्ञाण के लिए भी एक विशेषज्ञ चाहिए होता है..... गलत मुद्राएं विपरीत असर भी कर सकती हैं। यह एक बेहद वैज्ञानिक प्रक्रिया है दोस्तो।
मेरा अपना अनुभव प्राणायाम् का बेहद सुखद रहा। पता नहीं मैंने बीच में क्यों इसे करना छोड़ दिया....बस आलस की पुरानी बीमारी....लेकिन अभी भी जब भी इस का अभ्यास करता हूं तो बहुत ही हल्का महसूस होने लगता है....।
जैसा कि आपने भी सुना ही होगा कि प्राणायाम् में आखिर ऐसा भी क्या है कि आधे घंटे के प्राणायाम् अभ्यास के बाद इतनी स्फूर्ति और नवशक्ति का आभास होने लगता है....तुरंत ..बिल्कुल उसी समय....।
इस का कारण है कि सामान्य हालात में हम लोगों की सांस लेने की प्रक्रिया हमारे बाकी कामों की तरह बड़ी शैलो (सतही) होती है...हम ज़्यादा अंदर तक सांस नहीं भर पाते....जिस की वजह से ऑक्सीजन की सप्लाई भी पूरी मात्रा में हमारे फेफड़ों तक नहीं पहुंचती.... और ज़ाहिर सी बात है कि अगर वहां नहीं पहुंचती तो फिर शरीर के विभिन्न अंगों तक भी यह पर्याप्त मात्रा में पहुंच नहीं पाती......नतीजा हम सब के सामने... थके मांदे रहना, उमंग का ह्रास, बुझा बुझा सा दिन........लेकिन प्राणायाम् करते ही नवस्फूर्ति का संचार होने लगता है।
एक ज़माना था .. कईं वर्ष तक मैं सुबह और शाम दोनों समय प्राणायाम् अभ्यास किया करता था और दोनों समय ध्यान करना भी मेरे दैनिक जीवन का हिस्सा हुआ करता था.......लेकिन सब कुछ जानते हुए भी ..इन सब के महत्व को जानते हुए भी पता नहीं क्यों यह सब कईं वर्ष तक छूटा सा रहा.........अब फिर से करने लगा हूं तो अच्छा लगता है.....मन भी इस से एकदम शांत रहता है।
तनाव को दूर भगाने का इस से बढ़िया कारगर उपाय हो ही नहीं सकता, मैं इस की गारंटी ले सकता हूं.
स्वस्थ लोग तो करें ही, जो भी किसी पुरानी जीवनशैली से संबंधित बीमारी जैसे की मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसे रोग हैं, माईग्रेन हैं......जो लोग अवसाद या डिप्रेशन आदि के शिकार हैं, वे भी इस जीवनशैली को एक बार अपना कर तो देखें। जीवन में बहार आ जाएगी।
हां, एक बात अकसर मैं सब के साथ साझा करता रहता हूं कि जब हम लोग नियमित प्राणायाम्-ध्यान करते हैं तो हम अपने खाने के बारे में भी ज़्यादा सजग रहने लगते हैं......अपने विचारों को भी देखने लगते हैं......इस के बहुत ही फायदे हैं.....क्या क्या गिनाऊं........हमारे सारे तन और मन को एक दम फिट करने का अचूक फार्मूला है......कोई पढ़ी पढ़ाई बात नहीं है, अापबीती ब्यां कर रहा हूं।
तीस पैंतीस मिनट प्राणायाम् में लगते हैं....बस.........और इतने फायदे। आप भी आजमा कर देखिए।