अमृतसर से अंबाला आते हुये पंजाब और हरियाणा का बार्डर है शंभु...अनेकों बार ऐसा मंज़र देखा है कि ट्रेन के शंभु क्रॉस करते ही लोग अपने बीढ़ी, सिगरेट के बंडल निकाल लिया करते थे. इस का कारण? …ऐसा भी मैंने कईं बार देखा है कि किसी सिक्ख (सरदार जी) की किसी बीढ़ी सुलगाने की तैयारी कर रहे बंदे की तरफ़ एक टेढ़ी नज़र ही काफ़ी हुआ करती थी....शायद किसी को टोकने की ज़रूरत पड़ती ही न थी। पंजाब की बसों में तो कोई सिगरेट-बीड़ी सुलगाने की सोच ही नहीं सकता था !!
किसी डिब्बे में अगर कोई सरदार जी बैठे हुये हैं तो शंभु तक तो किसी की क्या मजाल कि बीढ़ी सुलगा जाए ... और अगर कोई निहंग सिक्ख है तो धूम्रपान करने वालों की ऐसी की तैसी। लेकिन वह भी शंभु तक ही।
और मैं देखा करता था कि शंभु स्टेशन पर पहुंचते ही लोग अपने अपने बीढ़ी के बंडल, सिगरेट के पैकेट यूं निकाल कर इत्मीनान की सांस लिया करते थे जैसे चंबल के बीहड़ों से बाहर निकल आये हों।
मैं तब भी सोचता था और आज भी वैसा ही सोचता हूं कि यह कैसा सिरफिरापन है. अच्छी से अच्छी बात को धार्मिक कट्टरवाद से जोड़ कर ही क्यों देखा जाता है, यह बात मैं बहुत से लोगों से सांझी करता हूं। हमें तो शुक्रगुज़ार होना चाहिये ऐसी लोगों का , गुरू की ऐसी बढ़िया सिखलाई का जो चार घंटे तक (अमृतसर से शंभु तक का ट्रेन सफ़र) हज़ारों लोगों के फेफड़े सिंकने से बचा लेती थी।
ध्यान आता है कि ऐसा रोकने टोकने का मतलब केवल यही क्यों लिया जाए कि इस से फायदा केवल सरदारों को ही होगा, सब के सब बच जाते हैं इस ज़हर से ..पीने वाले भी, साथ बैठे लोग, माताएं, बहनें और गर्भवती महिलाएं भी ... इस के प्रकोप से बचे रहते हैं। इसलिये आज भी जब कोई सरदार जी किसी बस में या गाड़ी में किसी बीढ़ीबाज़ को टोकता है तो मुझे बेहद खुशी होती है कि किसी ने तो हिम्मत की। और बहुत बार इस का तुरंत असर दिख जाता है... बहुत बार कहा सुनी हो जाती है जैसा कि मेरा अपना अनुभव रहा।
अभी मैं गर्भवती महिलायों की बात कर रहा था ...यह तो हम पिछले कईं दशकों से सुनते आ रहे हैं कि गर्भवती महिलाएं जो धूम्रपान करती हैं उन में कईं तरह की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं ...उन में ही नहीं उन के नवजात् शिशुओं में भी और गर्भावस्था के दौरान उन में कईं तरह की जटिलताएं उत्पन्न होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। दूर-देशों में तो यह समस्या बहुत विकराल है, अपने यहां पर भी है, लेकिन ज़्यादातर महिलाएं बीढ़ी आदि का उपयोग करती हैं इसलिये इन के दुष्परिणामों के बारे में अलग से कुछ कहने की ज़रूरत दिखती नहीं।
लेकिन अब जिस मुख्य समस्या की बात आज मैं करना चाह रहा हूं वह यह है कि जिन गर्भवती महिलाओं को सैकेंड-हैंड तंबाकू का धुआं भी मिल रहा है ... उन में भी शिशु के मृतजात होने का खतरा 23 प्रतिशत और शिशु के शरीर में होने वाली विकृतियों का रिस्क 13 प्रतिशत बढ़ जाता है.....यह किसी एक वैज्ञानिक के आंकड़े नहीं हैं, विश्व भर में पिछले कईं सालों में की गईं 19 स्टडीज़ का निष्कर्ष है यह जो अभी अभी मुझे बीबीसी न्यूज़ पर देखने को मिला है .....Passive Smoking Increases Still-birth risk, study says.
इसलिये यह कोई अचंभित होने वाली बात नहीं अगर इस न्यूज़-रिपोर्ट में यह कहा गया है कि जो पुरूष पिता बनने वाले हैं उन्हें धूम्रपान से दूर ही रहना चाहिये...बात तो यहां तक हो रही है कि जो पुरुष पिता बनने की तैयारी कर रहे हैं उन के लिये भी तंबाकू से बचे रहने में ही समझदारी है क्योंकि इस से उन के शुक्राणुओं पर असर तो पड़ता ही है और उन की स्मोकिंग की वजह से उन की पत्नी एवं उस के गर्भ में पल रहे शिशु पर होने वाले खतरनाक परिणामों की बात पहले कर ही चुके हैं !!
और जिन गर्भवती महिलाओं के शिशु पर सैकेंड-हैंड स्मोक के बुरे असर की बात हो रही है यह स्मोक घर में स्मोक कर रहे लोगों से भी हो सकता है और अपने कार्यस्थल पर फेफड़े सेंकने वालों से भी हो सकता है और अगर सारे दिन में लगभग दस सिगरेट कोई इन महिलाओं के आसपास मौजूद व्यक्ति पी लेता है तो इन औरतों में तरह तरह की जटिलताएं होने का खतरा खासा बढ़ जाता है।
इस तरह की बातें यहां भारत में कभी होती ही नहीं हैं ....देश में औरत के इस तरह के हितों के बाते में कैसे चर्चा हो और वह भी तब जब उस की भलाई के लिये पुरुष-प्रधान समाज के “मर्दों” को कुछ छोड़ने की बात कही गई हो, आप इस के परिणामों की स्वयं कल्पना कर सकते हैं। पढ़े लिखे लोग तो है ही , ऐसे तबके की कल्पना करिये जो छोटी छोटी झोंपडीनुमा आशियानों में रहते हैं जिस में इस तरह की सैकेंड हैंड स्मोक से आस पास मौज़ूद लोगों को खतरा कईं गुणा बढ़ जाता है।
आज वह दौर आ गया है कि किसी भी सार्वजनिक स्थान पर अपने पास बैठे किसी भी बीड़ीबाज और सिगरेटधारी को टोकने-रोकने की जिम्मेदारी हम पर बनती है....सरकार क्या क्या करे, कानून बन गया है यह क्या कम है, अब हर बीड़ीबाज़ के आसपास मंडराए रखने के लिये इतने जनता हवलदार कहां से आएं?
जहां से बात शुरू की गई वापिस वहीं पर आता हूं .. अपनी ज़िंदगी के शुरूआती बेहतरीन 28 साल अमृतसर में बिताए ---हर लिहाज़ से बेहतरीन --- इसलिए सिक्ख समुदाय को हमेशा से मैं दूसरे लोगों के लिये तंबाकू आदि चीज़ों से बचे रहने के लिये एक रोल-माडल जैसा दर्जा देता हूं लेकिन मुझे उस समय बेइंतहा मायूसी होती है जब मैं किसी सिक्ख समुदाय से संबंध रखने वाले को तंबाकू का इस्तेमाल करते देखता हूं .. सारा दिन मुझे भी मुंह में ही झांकना होता है, इसलिये कोई ऐसी बात छुपती नहीं..... चाहे बहुत ही कम हैं ऐसे लोग और अकसर क्या कारण बताते हैं ... कि कार्यक्षेत्र पर उपस्थित दूसरे लोगों की देखादेखी शुरू हो गया यह सब और कुछ बताते हैं कि यह शौक पड़ गया प्रवासी श्रमिकों की संगत में रहने से। पिछले कुछ अरसे में मैं तीन ऐसे केस देख चुका हूं सिक्ख धर्म समुदाय से संबंधित लोगों के जिन में तंबाकू की लत से मुंह का कैंसर हो गया ... तीनों में से अब कोई भी नहीं है, एक साल में ही चल बसे.....।
मुझे लगता है कि मुझे टिप्पणी यह भी आ सकती है कि तंबाकू की लत से लताड़े हुये ऐसे चंद सिक्ख तो सिक्ख थे ही नहीं ...गुरू की सिखलाई पर न चलने वाला कैसा गुरसिक्ख !!
तो फिर आज की इस स्टोरी से हमें क्या शिक्षा मिलती है? – क्या अभी भी यह बताने की ज़रूरत है !!
संबंधित लेख
तंबाकू का कोहराम
किसी डिब्बे में अगर कोई सरदार जी बैठे हुये हैं तो शंभु तक तो किसी की क्या मजाल कि बीढ़ी सुलगा जाए ... और अगर कोई निहंग सिक्ख है तो धूम्रपान करने वालों की ऐसी की तैसी। लेकिन वह भी शंभु तक ही।
और मैं देखा करता था कि शंभु स्टेशन पर पहुंचते ही लोग अपने अपने बीढ़ी के बंडल, सिगरेट के पैकेट यूं निकाल कर इत्मीनान की सांस लिया करते थे जैसे चंबल के बीहड़ों से बाहर निकल आये हों।
मैं तब भी सोचता था और आज भी वैसा ही सोचता हूं कि यह कैसा सिरफिरापन है. अच्छी से अच्छी बात को धार्मिक कट्टरवाद से जोड़ कर ही क्यों देखा जाता है, यह बात मैं बहुत से लोगों से सांझी करता हूं। हमें तो शुक्रगुज़ार होना चाहिये ऐसी लोगों का , गुरू की ऐसी बढ़िया सिखलाई का जो चार घंटे तक (अमृतसर से शंभु तक का ट्रेन सफ़र) हज़ारों लोगों के फेफड़े सिंकने से बचा लेती थी।
ध्यान आता है कि ऐसा रोकने टोकने का मतलब केवल यही क्यों लिया जाए कि इस से फायदा केवल सरदारों को ही होगा, सब के सब बच जाते हैं इस ज़हर से ..पीने वाले भी, साथ बैठे लोग, माताएं, बहनें और गर्भवती महिलाएं भी ... इस के प्रकोप से बचे रहते हैं। इसलिये आज भी जब कोई सरदार जी किसी बस में या गाड़ी में किसी बीढ़ीबाज़ को टोकता है तो मुझे बेहद खुशी होती है कि किसी ने तो हिम्मत की। और बहुत बार इस का तुरंत असर दिख जाता है... बहुत बार कहा सुनी हो जाती है जैसा कि मेरा अपना अनुभव रहा।
अभी मैं गर्भवती महिलायों की बात कर रहा था ...यह तो हम पिछले कईं दशकों से सुनते आ रहे हैं कि गर्भवती महिलाएं जो धूम्रपान करती हैं उन में कईं तरह की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं ...उन में ही नहीं उन के नवजात् शिशुओं में भी और गर्भावस्था के दौरान उन में कईं तरह की जटिलताएं उत्पन्न होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। दूर-देशों में तो यह समस्या बहुत विकराल है, अपने यहां पर भी है, लेकिन ज़्यादातर महिलाएं बीढ़ी आदि का उपयोग करती हैं इसलिये इन के दुष्परिणामों के बारे में अलग से कुछ कहने की ज़रूरत दिखती नहीं।
लेकिन अब जिस मुख्य समस्या की बात आज मैं करना चाह रहा हूं वह यह है कि जिन गर्भवती महिलाओं को सैकेंड-हैंड तंबाकू का धुआं भी मिल रहा है ... उन में भी शिशु के मृतजात होने का खतरा 23 प्रतिशत और शिशु के शरीर में होने वाली विकृतियों का रिस्क 13 प्रतिशत बढ़ जाता है.....यह किसी एक वैज्ञानिक के आंकड़े नहीं हैं, विश्व भर में पिछले कईं सालों में की गईं 19 स्टडीज़ का निष्कर्ष है यह जो अभी अभी मुझे बीबीसी न्यूज़ पर देखने को मिला है .....Passive Smoking Increases Still-birth risk, study says.
इसलिये यह कोई अचंभित होने वाली बात नहीं अगर इस न्यूज़-रिपोर्ट में यह कहा गया है कि जो पुरूष पिता बनने वाले हैं उन्हें धूम्रपान से दूर ही रहना चाहिये...बात तो यहां तक हो रही है कि जो पुरुष पिता बनने की तैयारी कर रहे हैं उन के लिये भी तंबाकू से बचे रहने में ही समझदारी है क्योंकि इस से उन के शुक्राणुओं पर असर तो पड़ता ही है और उन की स्मोकिंग की वजह से उन की पत्नी एवं उस के गर्भ में पल रहे शिशु पर होने वाले खतरनाक परिणामों की बात पहले कर ही चुके हैं !!
और जिन गर्भवती महिलाओं के शिशु पर सैकेंड-हैंड स्मोक के बुरे असर की बात हो रही है यह स्मोक घर में स्मोक कर रहे लोगों से भी हो सकता है और अपने कार्यस्थल पर फेफड़े सेंकने वालों से भी हो सकता है और अगर सारे दिन में लगभग दस सिगरेट कोई इन महिलाओं के आसपास मौजूद व्यक्ति पी लेता है तो इन औरतों में तरह तरह की जटिलताएं होने का खतरा खासा बढ़ जाता है।
इस तरह की बातें यहां भारत में कभी होती ही नहीं हैं ....देश में औरत के इस तरह के हितों के बाते में कैसे चर्चा हो और वह भी तब जब उस की भलाई के लिये पुरुष-प्रधान समाज के “मर्दों” को कुछ छोड़ने की बात कही गई हो, आप इस के परिणामों की स्वयं कल्पना कर सकते हैं। पढ़े लिखे लोग तो है ही , ऐसे तबके की कल्पना करिये जो छोटी छोटी झोंपडीनुमा आशियानों में रहते हैं जिस में इस तरह की सैकेंड हैंड स्मोक से आस पास मौज़ूद लोगों को खतरा कईं गुणा बढ़ जाता है।
आज वह दौर आ गया है कि किसी भी सार्वजनिक स्थान पर अपने पास बैठे किसी भी बीड़ीबाज और सिगरेटधारी को टोकने-रोकने की जिम्मेदारी हम पर बनती है....सरकार क्या क्या करे, कानून बन गया है यह क्या कम है, अब हर बीड़ीबाज़ के आसपास मंडराए रखने के लिये इतने जनता हवलदार कहां से आएं?
जहां से बात शुरू की गई वापिस वहीं पर आता हूं .. अपनी ज़िंदगी के शुरूआती बेहतरीन 28 साल अमृतसर में बिताए ---हर लिहाज़ से बेहतरीन --- इसलिए सिक्ख समुदाय को हमेशा से मैं दूसरे लोगों के लिये तंबाकू आदि चीज़ों से बचे रहने के लिये एक रोल-माडल जैसा दर्जा देता हूं लेकिन मुझे उस समय बेइंतहा मायूसी होती है जब मैं किसी सिक्ख समुदाय से संबंध रखने वाले को तंबाकू का इस्तेमाल करते देखता हूं .. सारा दिन मुझे भी मुंह में ही झांकना होता है, इसलिये कोई ऐसी बात छुपती नहीं..... चाहे बहुत ही कम हैं ऐसे लोग और अकसर क्या कारण बताते हैं ... कि कार्यक्षेत्र पर उपस्थित दूसरे लोगों की देखादेखी शुरू हो गया यह सब और कुछ बताते हैं कि यह शौक पड़ गया प्रवासी श्रमिकों की संगत में रहने से। पिछले कुछ अरसे में मैं तीन ऐसे केस देख चुका हूं सिक्ख धर्म समुदाय से संबंधित लोगों के जिन में तंबाकू की लत से मुंह का कैंसर हो गया ... तीनों में से अब कोई भी नहीं है, एक साल में ही चल बसे.....।
मुझे लगता है कि मुझे टिप्पणी यह भी आ सकती है कि तंबाकू की लत से लताड़े हुये ऐसे चंद सिक्ख तो सिक्ख थे ही नहीं ...गुरू की सिखलाई पर न चलने वाला कैसा गुरसिक्ख !!
तो फिर आज की इस स्टोरी से हमें क्या शिक्षा मिलती है? – क्या अभी भी यह बताने की ज़रूरत है !!
संबंधित लेख
तंबाकू का कोहराम