सुबह के पांच बज चुके हैं...और मैं २००७ नवंबर से जो काम इस समय नियमित करता आ रहा हूं...लैपटाप लेकर बैठ गया हूं..मन की बातें अपने ब्लॉग पर लिख लेता हूं..किसी के लिए कोई नसीहत नहीं, किसी को सुधारने का कोई एजेंडा नहीं (पहले अपने आप को तो सुधार लिया जाए !) ....ब्लॉगिंग मैंने नवबंर २००७ में शुरू की थी ..
मैं अकसर राजनीतिक या धार्मिक विषयों पर कुछ कहता हूं नहीं...ये मेरे विषय हैं नहीं...क्योंकि इन में बहसबाजी करनी पड़ सकती है बहुत बार...उस काम में मैं शुरू से ही बहुत कमज़ोर हूं...बेहद कमज़ोर ...इतना कमज़ोर कि मैं बहस तो क्या करनी है, मैं ऐसे लोगों से ही दूर भागने लग जाता हूं..
कल मैं सुबह उठा...अखबार उठाया तो देखा कि एचपीवी टीकाकरण का दिल्ली सरकार का विज्ञापन छपा हुआ था उसमें ...उस इश्तिहार में भी लिखा हुआ था और मुझे भी पता है ...यह भारत में पहली बार है और दिल्ली सरकार की अग्रणी पहल है...इस टीकाकरण के बारे में मैंने आठ नौ साल पहले अपने कुछ विचार लिखे थे, अगर आप इस के बारे में डिटेल से पढ़ना चाहें तो इन लिंक्स को देखिए...
हां, तो मैं मन ही मन दिल्ली सरकार की इस बेहतरीन पहल के बारे में सोचता रहा कईं घंटों तक ....
दोपहर में लेटा हुआ था ...तभी दिल्ली सरकार के रीडिंग कैंप के बारे में रेडियो से पता चला...
सरकारों को अभी तक खुद ही अपनी अपनी पीठें थपथपाते हुए यह तो कहते सुना था कि हम ने शिक्षा के क्षेत्र में भी इतनी कीर्तिमान हासिल कर लिए...हम नहीं कह रहे आंकड़े बोल रहे हैं...सरकारी स्कूलों की हालत इतनी सुधर गई है ...लेकिन देश के स्कूल की पोल तो तब खुली जब हम लोगों को यह पता चला कि अधिकांश स्कूलों में तो टॉयलेट हैं ही नहीं...और बच्चियां अधिकतर स्कूल में अपना नाम भी इसी कारण नहीं लिखवातीं ..
लेकिन एक सरकारी विज्ञापन में अगर कोई सरकार यह कहे कि एक सर्वे में यह पाया गया है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में छठी कक्षा में पढ़ने वाले ७४ प्रतिशत बच्चे ठीक से अपनी किताब ही नहीं पढ़ पाते ...इसलिए अब सरकार जगह जगह पर रीडिंग कैंप लगा रही है ...ताकि सभी बच्चे १४ नवंबर तक अपनी किताबें पढ़ सकें...
यह रेडियो विज्ञापन बार बार चल रहा था...कभी शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का संदेश, कभी किसी स्कूली बच्चे का और कभी किसी अध्यापक का संदेश आ रहा था कि आप भी अगर किसी ऐसे बच्चे को जानते हैं जो अपने पाठ को ठीक से पढ़ नहीं पाता तो उसे इस कैंप में भेजिए और हां, आप भी इस कैंप में बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना योगदान दे सकते हैं...
निःसंदेह इस तरह के activist-turned-politicians ही इस तरह की सुंदर पहल कर सकते हैं ..वरना शिक्षा मंत्री जैसे लोग कौन इन झमेले में पड़ते हैं...इन सब मुद्दों से कहां वे अपना सरोकार दिखा पाते हैं, ऐसा मैं सोचता हूं...
आज से चालीस पैंतालीस साल पहले के दिनों की बातें याद आ रही हैं...हमारे घर के पास ही एक सरकारी स्कूल था, जिसे अमृतसर की ठेठ भाषा में खोती-हाता कहा जाता था....वैसे पूरा शब्द होता है खोती-अहाता (जहां पर खोतियों को रखा जाता है...अब खोती किसे कहते हैं...मुझे नहीं पता गधे का स्त्रीलिंग क्या है हिंदी में ..लेकिन पंजाबी में उसे खोती कहते हैं! )....यह मैं १९६८ -७०-७२ के आस पास की बातें सुना रहा हूं... ठीक बारह बजे दूध की कांच की बोतलें उन बच्चों के लिए लेकर एक ट्रक आ जाता था...सब बच्चे उसे पीते थे ...और उस के बाद फिर से अपने पहाड़े रटने में लग जाते थे...पहाडे़ (जो आजकल टेबल हो गये हैं) रटने का एक अच्छा म्यूजिकल सिस्टम था...बारी बारी से बच्चों को टीचर के पास खड़े होकर एक सुर में कविता जैसी शैली में किसी एक पहाड़े को बोलना होता था, उसके पीछे पीछे फिर सारी कक्षा उस पहाड़े को रिपीट करती थी... मुझे अभी भी वह लिरिक्स याद है ....शायद मुझे भी अधिकतर पहाड़े अपने स्कूल की बजाए इन बच्चों के रटने की आवाज़ों की वजह से ही याद हो गये!
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें...किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए..
पाठ्य पुस्तकों को पढ़ने-रटने के लिए भी यह मेहनत तो सब को करनी ही पड़ती थी ... मास्टर जी हमारे स्कूल में भी किसी एक छात्र को खड़ा करके एक पन्ना पढ़ने को कह देते थे...और हमें अपनी अपनी किताब साथ में खोल लेनी पड़ती थी..मुझे अभी तक इस का औचित्य कभी समझ में नहीं आया लेकिन कल मैंने मनीष सिसौदिया को सुना तो मुझे भी यह अहसास हुआ कि अगर बच्चे अपने पाठ पढ़ पायेंगे तो ही उसे समझ पाएंगे ...और तभी उन की बुद्धि का विकास भी हो पायेगा....मुझे यह बात सुनते सुनते तारे ज़मीं पर फिल्म का ध्यान आ रहा था ...मेरे विचार में मनीष स्वयं भी एक अध्यापक ही रहे हैं ...इसलिए वे इन तरह के शिक्षा से जुड़े अहम् मुद्दों की तरफ़ इतना ध्यान दे पा रहे हैं.....जिस के लिए ये सब बधाई के पात्र हैं।
वरना सरकारी स्कूल के बच्चों की शिक्षा के स्तर के बारे में सोचने की किसे पड़ी है ... अधिकतर टीचर नौकरी सरकारी स्कूल में हथियाना चाहते हैं लेकिन वहां जाते हुए अपने बच्चों को किसी प्राईवेट नामी-गिरामी स्कूल में ड्राप करते हुए जाते हैं...सरकारी मैडीकल कालेज सब मैडीकल शिक्षा पाने वालों की पहली पसंद होते हैं अकसर लेकिन वहां इलाज के लिए अधिकतर वही लोग जाते हैं जो साधन-संपन्न नहीं होते ... चलिए, यह तो अपने आप में एक मुद्दा है ही, इस के बारे में आए दिन पढ़ते रहते हैं!
कल मैं यह विज्ञापन रीडिंग कैंप वाला सुनते हुए यही सोच रहा था कि एक तो सभी बच्चों को लगभग लिखने में रुचि कम हो रही है ..लिखते भी कम हैं और ऊपर से यह जो समस्या कल पता चली कि अधिकांश बच्चे अपनी किताब को ठीक से पढ़ भी नहीं पा रहे ....चिंता का विषय तो है ही यह ..इसलिए अकसर यह भी कहा जाता है कि बच्चे स्कूल के दिनों में जो भी कॉमिक्स आदि पढ़ना चाहते हों, उन्हें पढ़ने से रोका नहीं जााए....इस से उन की रीडिंग कैपेसिटी बढ़ती है, कल्पनाशीलता और बुद्धि का विकास भी होता है!
बच्चों की ही बातें चल रही हैं ...तो तारे ज़मीं की फिल्म का ज़िक्र मैंने किया और साथ ही मुझे कल शाम एक मलयालम् फिल्म ओट्टल नाम की चल रही थी...टाटास्काई मिनिप्लेक्स चैनल पर आजकल मुंबई फिल्म फैस्टीवल चल रहा है, उस के अंतर्गत ही यह फिल्म दिखाई जा रही थी...फिल्म मलयालम भाषा में थी, सबटाईटल्स इंगलिश में थे, इसलिए आराम से समझ में आ गई...
साउथ इंडियन फिल्मों के बारे में मेरा कुछ ज़्यादा ज्ञान वैसे तो है नहीं, लेकिन आजकल टीवी में बहुत सी दिखने लगी हैं हिंदी डब्बिंग वाली ...वे सब की सब मुझे हिंदी डब्बिंग की वजह से डिब्बा ही लगती हैं...मैं पांच मिनट से ज्यादा उन्हें नहीं देख पाता .. लेकिन कुछ कुछ वहां की फिल्में ..जैसा कि मैं इस मलयालम फिल्म ओट्टल के बारे में बता रहा था, वे अपनी एक अमिट छाप छोड़ जाती हैं... यह एक दादा और उस के पोते की कहानी है ...उन दोनों का संसार बस इतना ही है...इतनी बेहतरीन एक्टिंग की है दोनों ने कि मैं उस का वर्णन ही नही ंकर सकता, हालात कुछ इस तरह से पलटी मारते हैं कि उस आठ-दस साल का बच्चा पटाखे बनाने वाली एक फैक्टरी के मालिक के चुंगल में फंस जाता है ....very touching story....आप का मनोरंजन भी करेगी, केरल के लोगों के रहन सहन के बारे में बताएगी....और कुछ प्रश्न भी आप के लिए छोड़ जायेगी...Food for thought! मेरे विचार में यह फिल्म हम सब को देखनी चाहिेए...मुझे अभी यू-ट्यूब पर इस का एक ट्रेलर मिल गया ...इसे पूरा कैसे देखना है, यह आप सोचिए...
बहुत खूब....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, सर
हटाएंBAHUT ACHHA LGA
जवाब देंहटाएंdhanyawaad...
हटाएंall the steps which are mentioned upsides and as my suggestions are concerned then one must run or at-least walk for half and hour bcaz it's very helpfull for all the diabetic. For further info go through this websiteMedical Tourism in India
जवाब देंहटाएंI am extremely impressed along with your writing abilities, Thanks for this great share.
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