सुबह टहलने के बहुत से फायदे तो हैं ही ...हम स्कूल के दिनों से प्रातःकाल के भ्रमण का निबंध रटते आए हैं...फिर भी कभी भी बाहर जाने का बड़ा आलस्य सा बन आता है... एक बात और भी है कि अगर हम लोग दो चार दिन नहीं जाएं तो फिर आदत भी टूट सी जाती है। काश! हम सब लोग इसे दिनचर्या का एक अभिन्न अंग ही मान कर चलें।
पहले मैं बहुत से साल अपने इसी ब्लॉग में बीमारियों के बारे में लिखता रहा ....लेिकन फिर अचानक लगने लगा कि ऐसा लिखने के क्या हासिल...वही घिसी पिटी बातें...अचानक लगने लगा कि सेहत की बातें कहते-सुनते रहना चाहिए...पता नहीं कब किसी को कहां से प्रेरणा मिल जाए।
प्रातःकाल के भ्रमण से संबंधित मैं कुछ प्रेरणात्मक प्रसंग तो पहले भी इस ब्लॉग पर शेयर कर चुका हूं...लेिकन फिर भी कभी कभी अपने आप को भी बूस्टर डोज़ देने के लिए उस पाठ को फिर से दोहराना पड़ता ही है ताकि कभी सुस्ती छाने लगे तो अपनी लिखी बात ही याद आ जाए।
आज टहलते हुए मैंने एक बहुत ही बुज़ुर्ग दादा को देखा जो लाठी की टेक से टहल रहे थे ...आप देखिए यह सड़क कितनी लंबी है लेकिन मैं इन्हें दूर से देखा ...इन का उत्साह देख कर मेरा मन इन के चरण-स्पर्श करने को हुआ...लेकिन उस की जगह मैंने जेब से मोबाइल निकाल कर झट से इस प्रेरणा-पुंज को कैमरे में बंद कर लिया...लेकिन जैसे ही मैंने मोबाइल हटाया ...इन दादा जी ने मेरे को दूर से ही ताकीद कर दी...टहलने आते हो तो इसे तो घर पर भी रख आया करो। कम से कम टहल...
आगे के शब्द मुझे सुने नहीं....मैंने इन्हें इतना तो कहा कि ठीक है...लेकिन अभी सोच रहा हूं कि उन्होंने कहा होगा कम से कम टहल तो इत्मीनान से लेने दिया करो या फिर टहल तो इत्मीनान से लिया करो........दोनों ही बातें सही हैं.
वैसे मैं इस तरह के किसी व्यक्ति की फोटो लेना पसंद नहीं करता क्योंकि मुझे लगता है कि यह उस की निजता का एक तरह का हनन है....लेकिन फिर भी कुछ लोग इस तरह की इंस्पीरेशन लिए होते हैं कि उन की फोटो तो लेनी पड़ ही जाती है...लेकिन फिर भी फोटो में मैंने इन का चेहरा थोड़ा कवर कर दिया है।
कल मेरे पास एक रिटायर्ड कर्मचारी आये थे ..७० वर्ष के हैं, पूरी तरह से तंदरूस्त....ब्लड-प्रेशर की मशीन अपने बैग में रखी हुई थी...सब कुछ है, लेकिन खुशी नहीं है...बहुत सी काल्पनिक तकलीफ़ों में उलझे हुए हैं...कोई भी नशा नहीं करते।
ठीक उन के बाद एक ६५ वर्ष का बंदा आया....मैं हैरान हो गया, ओपीडी स्लिप पर इन की उम्र देख कर ...आप भी इस तस्वीर में देख सकते हैं कि इन की उम्र पचास के आसपास की लगती है...कोई भी नशा नहीं करते, रोज़ाना टहलते हैं, योगाभ्यास करते हैं।
कल एक पोस्ट में मैंने अपने एक कर्मचारी की ९० वर्ष की मां की फोटो लगाई थी...उन की दिनचर्या बहुत सक्रिय है....इस दूसरी फोटो में देखिए कि उस उम्र में भी यह ज्ञानी जी अपने साईकिल पर पूरी मस्ती कर रहे हैं। सब कुछ हमारे मन की स्थिति पर निर्भर करता है..अगर सब कुछ नहीं भी तो बहुत कुछ तो निःसंदेह।
हां, तो मैं इंस्पीरेशन की बात कर रहा था, यह हमें कहीं से भी किसी भी वक्त मिल सकती है.....और सुबह सुबह टहलते समय तो सारी प्रकृति जैसे हमें उत्साहित करने में लगी होती है।
मैं तो बड़े बड़े पेड़ देख कर ही इतना खुश हो जाता हूं कि ब्यां नहीं कर सकता....कुछ पेड़ों पर लाल-पीले राखी के बंधन बंधे होते हैं ..वे तो समझिए बच ही गए... लेिकन कुछ बड़े बड़े पेड़ बिना इस तरह के बंधनों के भी बने होते हैं.....इतने विशाल पेड़ कि इन्हें देख कर मन खुशी से झूम उठता है।
लेकिन यह क्या अचानक एक पेड़ को इस हालत में देखा तो अचानक लगा कि इन्हें भी चमड़ी के रोग होते होंगे शायद ...लेकिन हम लोग अपने स्वार्थ के लिए इन की चमड़ी छीलते भी तो रहते हैं ..जैसा कि मुझे पास ही एक नीम के पेड़ के छिले हुए तने को देख कर आभास हुआ।
जो भी हो, दोस्तो, सुबह का समय होता मज़ेदार है.......एक दम शांत..सन्नाटा....और सन्नाटे में ही बहुत से जवाब सिमटे पड़े होते हैं....सुबह का वातावरण ...सुंदर पेड़-फूल....नैसर्गिक वातावरण....सब कुछ हमें उपलब्ध होता है...लेिकन अगर हम लोग उठ कर घर से बाहर निकलने की थोड़ी परवाह करें।
पहले मैं बहुत से साल अपने इसी ब्लॉग में बीमारियों के बारे में लिखता रहा ....लेिकन फिर अचानक लगने लगा कि ऐसा लिखने के क्या हासिल...वही घिसी पिटी बातें...अचानक लगने लगा कि सेहत की बातें कहते-सुनते रहना चाहिए...पता नहीं कब किसी को कहां से प्रेरणा मिल जाए।
प्रातःकाल के भ्रमण से संबंधित मैं कुछ प्रेरणात्मक प्रसंग तो पहले भी इस ब्लॉग पर शेयर कर चुका हूं...लेिकन फिर भी कभी कभी अपने आप को भी बूस्टर डोज़ देने के लिए उस पाठ को फिर से दोहराना पड़ता ही है ताकि कभी सुस्ती छाने लगे तो अपनी लिखी बात ही याद आ जाए।
आज टहलते हुए मैंने एक बहुत ही बुज़ुर्ग दादा को देखा जो लाठी की टेक से टहल रहे थे ...आप देखिए यह सड़क कितनी लंबी है लेकिन मैं इन्हें दूर से देखा ...इन का उत्साह देख कर मेरा मन इन के चरण-स्पर्श करने को हुआ...लेकिन उस की जगह मैंने जेब से मोबाइल निकाल कर झट से इस प्रेरणा-पुंज को कैमरे में बंद कर लिया...लेकिन जैसे ही मैंने मोबाइल हटाया ...इन दादा जी ने मेरे को दूर से ही ताकीद कर दी...टहलने आते हो तो इसे तो घर पर भी रख आया करो। कम से कम टहल...
आगे के शब्द मुझे सुने नहीं....मैंने इन्हें इतना तो कहा कि ठीक है...लेकिन अभी सोच रहा हूं कि उन्होंने कहा होगा कम से कम टहल तो इत्मीनान से लेने दिया करो या फिर टहल तो इत्मीनान से लिया करो........दोनों ही बातें सही हैं.
वैसे मैं इस तरह के किसी व्यक्ति की फोटो लेना पसंद नहीं करता क्योंकि मुझे लगता है कि यह उस की निजता का एक तरह का हनन है....लेकिन फिर भी कुछ लोग इस तरह की इंस्पीरेशन लिए होते हैं कि उन की फोटो तो लेनी पड़ ही जाती है...लेकिन फिर भी फोटो में मैंने इन का चेहरा थोड़ा कवर कर दिया है।
कल मेरे पास एक रिटायर्ड कर्मचारी आये थे ..७० वर्ष के हैं, पूरी तरह से तंदरूस्त....ब्लड-प्रेशर की मशीन अपने बैग में रखी हुई थी...सब कुछ है, लेकिन खुशी नहीं है...बहुत सी काल्पनिक तकलीफ़ों में उलझे हुए हैं...कोई भी नशा नहीं करते।
ठीक उन के बाद एक ६५ वर्ष का बंदा आया....मैं हैरान हो गया, ओपीडी स्लिप पर इन की उम्र देख कर ...आप भी इस तस्वीर में देख सकते हैं कि इन की उम्र पचास के आसपास की लगती है...कोई भी नशा नहीं करते, रोज़ाना टहलते हैं, योगाभ्यास करते हैं।
कल एक पोस्ट में मैंने अपने एक कर्मचारी की ९० वर्ष की मां की फोटो लगाई थी...उन की दिनचर्या बहुत सक्रिय है....इस दूसरी फोटो में देखिए कि उस उम्र में भी यह ज्ञानी जी अपने साईकिल पर पूरी मस्ती कर रहे हैं। सब कुछ हमारे मन की स्थिति पर निर्भर करता है..अगर सब कुछ नहीं भी तो बहुत कुछ तो निःसंदेह।
हां, तो मैं इंस्पीरेशन की बात कर रहा था, यह हमें कहीं से भी किसी भी वक्त मिल सकती है.....और सुबह सुबह टहलते समय तो सारी प्रकृति जैसे हमें उत्साहित करने में लगी होती है।
मैं तो बड़े बड़े पेड़ देख कर ही इतना खुश हो जाता हूं कि ब्यां नहीं कर सकता....कुछ पेड़ों पर लाल-पीले राखी के बंधन बंधे होते हैं ..वे तो समझिए बच ही गए... लेिकन कुछ बड़े बड़े पेड़ बिना इस तरह के बंधनों के भी बने होते हैं.....इतने विशाल पेड़ कि इन्हें देख कर मन खुशी से झूम उठता है।
लेकिन यह क्या अचानक एक पेड़ को इस हालत में देखा तो अचानक लगा कि इन्हें भी चमड़ी के रोग होते होंगे शायद ...लेकिन हम लोग अपने स्वार्थ के लिए इन की चमड़ी छीलते भी तो रहते हैं ..जैसा कि मुझे पास ही एक नीम के पेड़ के छिले हुए तने को देख कर आभास हुआ।
जो भी हो, दोस्तो, सुबह का समय होता मज़ेदार है.......एक दम शांत..सन्नाटा....और सन्नाटे में ही बहुत से जवाब सिमटे पड़े होते हैं....सुबह का वातावरण ...सुंदर पेड़-फूल....नैसर्गिक वातावरण....सब कुछ हमें उपलब्ध होता है...लेिकन अगर हम लोग उठ कर घर से बाहर निकलने की थोड़ी परवाह करें।
प्रेरणा के बिना कोई भी काम करना मुश्किल है
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने विवेक जी। आप का ब्लाग अकसर देखता रहता हूं ...बहुत अच्छा लगता है। आप बढ़िया मुद्दों को आजकल उठा रहे हैं।
हटाएंPeople often say that motivation doesn’t last. Well, neither does bathing. That’s why it should be repeated often. आपने सही कहा अच्छी आदते थोडा मुश्किल से हम सीखते है। इसीलिये बडे़ संस्थान में कर्मचारियों की हमेशा Training होती रहती है यह उनको Refresh करने के लिए होता है। कृपया आप आगे भी लोगों को Refresh करते रहें।
जवाब देंहटाएंजी हां, रिफ्रेशमेंट कोर्सों का भी यही उद्देश्य है कि मोटिवेशन का स्तर बरकरार रहे। अखिलेश जी, आपने अपने टहलने के बारे में कुछ नहीं कहा। लिखिएगा।
हटाएंहम भी रोज़ जा रहे टहलने कुछ दिनों से . कुछ लोग ऐसे भी जिन्हें हम रोज़ देखते है वह भी बचपन से
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह...धीरू सिंह जी....अच्छा लगा।
हटाएं