गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

सी बी आई टीम पर दबंगों का हमला

जहां कहीं भी बिजली चोरी रोकने के लिए बिजली विभाग के लोग जाते हैं, लोग उन पर टूट पड़ते हैं अकसर...डाक्टरों को ड्यूटी पर पिटते देखा, पढ़ा और सुना, उमस भरी गर्मी की रातों में बिजली गुल होने पर पावर हाउस स्टॉफ पर जनता का गुस्सा देखा, किसी दुर्घटना के समय पुलिस पर बरसते पत्थर देखे, परचा लीक होने पर छात्रों द्वारा बसें-रेलगाड़ियां फूंक दी जाती है, बलात्कारियों के लिंग भी जनता ने काटे और उन्हें मौत के घाट भी उतारे जाने की खबरें आप के अपने ही देश में आने लगी हैं........क्या क्या िगनाते चलें, दोस्तो, लिस्ट बहुत लंबी है।

लेकिन .........

लेकिन क्या? 

लेकिन किसी दफ्तर में छापा मारने गई सीबीआई टीम पर वहां के दफ्तर के लोग ही धावा बोल दें, यह शायद हमने पहले कभी नहीं सुना होगा, इसलिए मैंने सोचा कि इतिहास की सुविधा के लिए इसे अपने ब्लॉग पर मैं भी दर्ज कर दूं।

खबरिया चैनल बहुत तेज़ हैं..आपने देख सुन पढ़ ही लिया होगा कि किस तरह से लखनऊ के आयकर विभाग में जब सीबीआई टीम ने एक अफसर को दो लाख रूपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा तो दफ्तर के लगभग ६० लोग उग्र हो गये....एक तरह से उन पर उन्होंने हमला बोल दिया।

सीबीआई की टीम में ऐसा नहीं था कि कोई एक ही आदमी था..नौ लोग थे वे...लेिकन कल अखबार में आया था कि उस समय तो उन्हें लगा कि वे बच नहीं पाएंगे।

सोचने वाली बात यह है कि आखिर ६० लोग इतने उग्र क्यों हो गए?....यह प्रश्न ही इतना बचकाना है ...और हर आदमी इस का जवाब जानता ही होगा। लेकिन मैं यहीं बस करूं.......मुझे तो अभी उसी विभाग से अपना ४० हज़ार का रिफंड लेना है.....हमारे दफ्तर के बाबू की गलती से दो साल पहले ज़्यादा आयकर काट लिया गया था, बीसियों चक्कर मारने के बाद भी ...अपने दफ्तर में और आयकर विभाग में .......अभी भी कुछ पता नहीं कि कब वह रकम वापिस मिलेगी। लेकिन बाबू तो ठहरा बाबू..........उसे कोई कैसे कुछ कहने की हिम्मत कर सकता है!

बहरहाल ३०-४० मिनट के बाद पुलिस आ गई...तब तक उन्होंने अपने आप को कमरे में बंद रखा, लेिकन उस दौरान भी उग्र भीड़ ने आग बुझाने वाले उपकरणों की मदद से दरवाजा तोड़ने की भरसक कोशिश की... और उस उपकरण पर लगी पाइप को दरवाजे के नीचे से कमरे में घुसा कर कार्बनडाईआक्साईड गैस छोड़ दी.. किसी तरह से सीबीआई टीम ने खिड़कियां-विड़कियां खोल कर अपनी जान बचाई।

बहरहाल उस दो लाख की रिश्वत लेने वाले को तो वे साथ ले कर ही गये... और आज के पेपर में खबर है कि उसे जेल भेज दिया गया है।

यहां तो दो लाख की रिश्वत की बात है .. लेकिन जोधपुर में उसी दिन १५ लाख की रिश्वत लेते किसी आयकर विभाग के अधिकारी को भी पकड़ा गया।

मैं कल अपनी श्रीमति जी से कह रहा था कि हम लोग पिछले २५ वर्षों से सर्विस कर रहे हैं... दोनों सर्विस में हैं...अपनी पसंद का एक अच्छा सा फ्लैट किसी बड़े शहर में लेने के लिए मनसूबे ही बनाते रहते हैं......मैजिक ब्रिक्स या ९९ एकर्ज़ पर कीमत देख कर चुपचाप उधर से नज़रे हटा लेते हैं। हम यही सोच रहे थे कि इन लोगों के लिए करोड़ों के बंगले खरीदने बाएं हाथ का खेल है!

मैं अकसर कुछ लोगों के इस तरह से महलनुमा आलीशान मकान और इन की दस बारह लाख की कीमत वाली गाड़ियां देखता हूं...लोगों में सब कुछ आ जाता है.. रिटायर कर्मचारी भी आ जाते हैं..अधिकारी भी आ जाते हैं...तो मैं सोच में पड़ जाता हूं कि इमानदारी की कमाई से इतना कैसे संभव हो सकता है...आदमी बस ठीक ठाक सा एक आशियाना ही बना सकता है, लेकिन इस तरह की बिल्डिंग्स जो कि भव्य इमारतें दिखती हैं बाहर ही से......इन की कल्पना ही नहीं की जा सकती।

लेिकन सुकून तो दोस्तो ईमानदारी में ही है......हमारी दिक्कत यह है कि हम लोग इतिहास से भी सबक नहीं लेते....अफसोस की बात यह है कि इतना पढ़े-िलखे और ऊंचे रूतबे वाले लोग भी इस में धंसे होते हैं...यूपी के ही रूरल हेल्थ मिशन के करोड़ों के घोटाले में लिप्त लोगों के साथ क्या हो रहा है.......जानें जा रही हैं. एक के बाद एक ...इस रहस्य से पर्दा नहीं हटेगा।

और व्यापम् घोटाले में भी यही कुछ हो रहा है.....इतने इतने भव्य भवन खड़े किये हुए किस काम के।

लिखते लिखते यही लग रहा है कि शायद कोई पाठक यही समझ ले कि यार, तेरे लिए अंगूर खट्टे हैं, कहीं इसलिए तो तू भड़ास नहीं निकाल रहा। नहीं, दोस्तो, हम लोगों के जीवन में बेहिसाब संतुष्टि है.......यह हमें विरासत में मिली है....हम ने बिल्कुल सीमित संसाधनों के रहते ..कभी भी अपने मां-बाप को किसी तरह की हाय-तौबा मचाते नहीं देखा... कभी भी नहीं, किसी का हक छीनते नहीं देखते, किसी से कठोरता से बात करने नहीं देखा, किसी से उलझते नहीं देखा, किसी का दिल दुःखाते नहीं देखा..........और क्या होता है, यही तो है ज़िंदगी।

एक बात और ...जिन्होंने भी भव्य भवन खड़े किये..होंगे यार इन में से अधिकतर पैदाइशी रईस होंगे ...हुआ करें....ईश्वर उन को और भवन दे....लेकिन जो लोग सर्विस में रहते हुए या बाद में करोड़ों की कीमत वाले भव्य भवन बांध लेते हैं...तो किसी भी देखने वाले को लगता है कि यह सब नौकरी से तो संभव है नहीं, और परिवार की आमदनी के कुछ अन्य स्रोत भी इतने पुख्ता हैं नहीं........वे शायद देखने वाले के चेहरे के भाव पढ़ लेते हैं और बिना पूछे ही यह ज़रूर कह देते हैं.........हम ने अपनी सारी पुश्तैनी ज़मीनें बेच दीं, गांव में बहुत जमीन पड़ी थी.....या किसी रिश्तेदार को ही मार देते हैं कि वह दे गया है.......लेिकन सुनने वाले को भी जानबूझ कर बेवकूफ बना रहने में ही आनंद आने लगता है।

जो भी हो, दोस्तो, ज़िंदगी प्यार का गीत है ........अभी अभी याद आया.... बेहद सुंदर गीत....
 "जिसका जितना हो आंचल यहां पर..
उसको सौगात उतनी मिलेगी। 
फूल जीवन में 'गर न खिलें तो..
कांटों से निभाना पड़ेगा। 
है अगर दूर मंज़िल तो क्या,
रास्ता भी है मुश्किल तो क्या,
रात तारों भरी न मिले तो..
दिल का दीपक जलाना पड़ेगा।"

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