मंगलवार, 18 मार्च 2008

यह जो पब्लिक है ...सब जानती है ...

अभी अभी आज की टाइम्स ऑफ इंडिया.(दिल्ली ) के लेट-एडिशन में छपी दो खबरें देख कर दंग रह गया हूं.....पहले पेज पर थी ...IIT-JEE cutoffs fell to single digits in 2007. और छठे पेज पर इसी से संबंधित दूसरी खबर थी ...IIT cutoffs may be low this year too. यकीन मानिये, ये दोनों न्यूज़-आइट्मस पढ़ कर मेरे पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गई। दूसरी खबर के साथ छपे एक टेबल से यह भी समझते देर न लगी कि 2006 में क्यों एक छात्र जिस ने मैथ, फिजिक्स और कैमिस्ट्री में क्रमशः 80,118 और 52 अंक (टोटल 250) लिये वह तो इस के लिये क्वालीफाई नहीं कर पाया, लेकिन एक दूसरा छात्र जिस ने क्रमशः 37,48 और 69 नंबर ही लिये (टोटल 154) वह इस टैस्ट को क्वालीफाई कर गया। बात समझ में नहीं आ रही ना, मेरी भी समझ में कुछ ज़्यादा आ नहीं रहा था. पिछले कुछ दिनों से इस के बारे में अखबारों के बारे में पढ़ तो रहे थे लेकिन आज ये खबरें पढ़ कर बहुत अजीब सा लगा।

किसी कारण वश स्कैन कर नहीं पाया, नहीं तो आप को ओरिजनल खबर ही पढ़ा देता। फिर भी इस ऊपर दिये लिंक पर क्लिक कर के आप भी थोड़ा इस के बारे में ज़रूर पढ़े।

और पता है यह खुलासा कैसे संभव हो पाया.....सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत किसी ने अरजी लगाई थी। मन ही मन मैंने भी इस गजब के अधिकार को एक जबरदस्त सलाम ठोक दिया..........आप किस बात की इंतज़ार कर रहे हैं !

2 टिप्‍पणियां:

  1. सूचना का अधिकार तो वास्तव में सही है. परंतु जो खबर दी गई है वो अधकचरी सी है. उस आलेख में दी गई टिप्पणियों से ही बात साफ हो जाती है कि कट आफ के नीचे जाने से आईआईटी की गुणवत्ता का कोई लेना देना नहीं है!

    वैसे भी, आईआईटी प्रवेश परीक्षा संसार में सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाती रही है!

    जवाब देंहटाएं
  2. इसका सीधा कारण है, आपको पता ही होगा की पिछले कुछ वर्षों में IIT-JEE का पूरा का पूरा पैटर्न ही बदल दिया गया है. पहले प्रशन पत्र सब्जेक्टिव होता था वहीं अब ओब्जेक्टिव टाइप होता है . साथ ही ड्राप लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है. और फ़िर बारहवीं में नियमित विद्यार्थी के तौर पर कम से कम 60% अंकों की बाध्यता लागू कर दी गई है. अभी कुछ साल पहले तक ही यह हाल था की उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल इत्यादी प्रदेशों (जहाँ तकनिकी शिक्षा की हालत ख़राब है ) के छात्र सालों ड्राप लेते थे , कोई ज़रूरी नहीं था की आप बहुत मेधावी हों, अगर आप औसत बुद्धि वाले छात्र होते हुए भी सालों JEE की कोचिंग पढ़ सकते थे तो काफ़ी था. तो उस व्यवस्था में मुकाबला Best Minded Students के बीच न होकर Best Coached Students के बीच था. ख़ुद मैंने देखा है, की हर IIT का सपना रखने वाला छात्र दसवी की परीक्षा के बाद से ही जुट जाता था. attendence की चिंता थी नही बस बारहवी पास होना काफ़ी था, प्राइवेट ही सही. IIT का बौद्धिक स्तर गिरने के कारण ही पैटर्न बदलने का फ़ैसला लिया गया . सब्जेक्टिव पैटर्न में नेगेटिव मार्किंग नही होती, हर स्टेप पर मार्किंग होती है, जिससे कट ऑफ़ बढ़ जाता है. पर ओब्जेक्टिव पैटर्न अलग है, और नतीजा आपके सामने है. फ़िर भी फिक्र की कोई बात नहीं, कम कट ऑफ़ वाले फ्रेशर, ड्राप स्टूडेंट्स से लाख गुना बेहतर और मेधावी हैं.

    जवाब देंहटाएं

इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...