आज सुबह से झमाझम बरसात हो रही थी …बाज़ार में पहुंच कर, बाद दोपहर एक चौराहे पर मैं जैसे ही गाड़ी से बाहर निकला…मुझे एक फड़फड़ाहट जैसी कुछ तेज़ आवाज़ सुनी…आवाज़ कुछ अजीब सी थी …इधर उधर देखा …
और पास ही एक मुर्गा बेचने वाले का स्टॉल था …उस के काउंटर के पीछे एक प्लास्टिक का ड्रम पड़ा हुआ था…ड्रम मीडियम साइज़ का ही था…एक लम्हे के लिए एक मुर्गा ऊपर तक उछला….मैंने समझा यह गलती से गिर गया है ….लेकिन तभी अगले ही पल बिल्कुल सन्नाटा…
मैं उधर पास ही खड़ा हो कर देखता रहा ….प्लास्टिक के नीले ड्रम से आप समझ गए होंगे जिन के ऊपर ढक्कन लगा रहता था और अकसर हम आते जाते देखते हैं लोग उन में पानी जमा कर के रखते हैं ….और वैसे छुट्टियों के भीड़-भड़क्के में जब लोग उन में सामान भर कर ठसाठस भरी गाडि़यों में अपना सामान लेकर चलते हैं और किसी तरह भी धक्कम-पेल कर के उन को गाड़ी में ठूंस देना चाहते हैं तो इस तरह की हरकतों से कैसे भगदड़ में मौतें भी हो जाती हैं…..दिल्ली स्टेशन का हादसा याद आ गया होगा आप को ….
ये ड्रम ही मनहूस हैं ….अभी लिखते लिखते यह ख्याल आया ….हादसे हुए इन की वजह से….पहले से इन में कैमीकल होते हैं और फिर लोग इस में पीने का पानी भी स्टोर करने लगते हैं….खतरा तो है ही ….लेकिन आज दोपहर देखा कि बेचारे मुर्गों की तो इन की वजह से आफ़त है …खैर, मुर्गे तो इन ड्रमों के बिना भी कत्ल होते रहे हैं ….इन बदनसीबों का नसीब ही ऐसा हुआ…..
कहीं पढ़ा था ….
जिसने भी दुनिया को जगाने की कोशिश की, उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया…
मुर्गा बांग देता है दुनिया को जगाने का काम करता है और मारा जाता है ….
बात सटीक है बिल्कुल ….इस की अनेक उदाहरणें हमारे इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं….चाटुकार लोग रस मलाई खाते दिखते हैं …और ……..(और क्या, सब जानते ही हैं….)
हां, तो उस ड्रम से आवाज़ आनी बंद हो गई….उस स्टाल पर एक ग्राहक खड़ा हुआ था ….मैं भी थोड़ी दूर एक मिनट के लिए खड़ा हो गया…इतना तो मैं समझ चुका था कि इन मुर्गों की अब खैर नहीं… अब उस ड्रम से निकाल कर इन की चमड़ी उधेड़ कर, काट कर ग्राहक के हवाले कर दिया जाएगा…..जा, बना ले सेहत, कर ले हासिल जबरदस्त ताकत और फिर ….।
इतने में पास ही की एक गली से वह दुकानदार आता दिखा….उस के हाथ में चार-पांच मुर्गे थे, टांगों से पकड़ कर उसने उन को उलटा किया हुआ था …आते ही उसने उन को काउंटर के नीचे पटक दिया….वे बंधे नहीं हुए थे …लेकिन अधमरे से लग रहे थे जैसे इतने बीमार हों कि जद्दोजहद करने की ताकत ही खो चुके हों….
अब तक तीन-चार ग्राहक और आ चुके थे …बरसात का मौसम हो ..झमाझम बरसात, ज़्यादा ठंडी पड़ रही है तो नॉन-वेज और दारू की दुकानों पर तो खरीदारों का तांता लग जाता है …अब उस दुकानदार ने पहले एक मुर्गा उठाया, चाकू से एक झटके से उस के गले पर वार किया…और उसे ड्रम के अंदर पटक दिया….वह एक बार छटपटाया। फिर एक और मुर्गे का भी यही हश्र हुआ…उस के बाद उसने एक मिनट से भी कम के लिए उस ड्रम के ऊपर ढक्कन रखा और उस के ऊपर बैठ गया….जैसे ही उसने ढक्कन खोला, माल बिकने के लिए पूरी तरह से तैयार ….
यह सब देख कर मन बहुत विचलित हुआ….बहुत ज़्यादा ….
वैसे जिस तरह से बड़े बड़े ट्रकों में सैंकडे मुर्गों-मुर्गियों को ट्रांसपोर्ट किया जाता है ….एक दूसरे से सटे हुए, डरे सहमे हुए …और शायद स्टीरॉयड दवाईयों के टीकों से त्रस्त….अपनी जान छूटने का इंतज़ार करते ये परिंदे ….
फिर ये ट्रक अलग अलग बाज़ारों में मीट-मुर्गे की दुकानों के सामने रुकते हैं …माल उतारने के लिए….और फिर जिस तरह से इन को बेरहमी से बाहर निकाल कर, तराज़ू के ऊपर तोलने के लिए फैंका जाता है, वह मंज़र भी देखते नहीं बनता….
और कईं बार मैंने दस-बीस मुर्गों को उन की टांगों से बांध कर किसी मजदूर के कंधों पर एक लंबी रस्सी की मदद से टंगे देखा है जो इन को इन की मंज़िल तक पहुंचाने का काम करता है। कईं बार साईकिल के कैरियर पर भी दोनों तरफ़ उल्टे टंगे मुर्गे आपने भी ज़रुर देखे होंगे और बहुत बार मैंने स्कूटर की पिछली सीट पर भी इसी तरह से मुर्गे ढोए जाते देखे हैं…उन की टांगें बंधी हुईं और उल्टे लटकाए हुए….
अब जब इन की ढुलाई देखता हूं …इस तरह से उल्टे लटके हुए और टांगों से बंधे हुए तो मैं क्या कर सकता हूं….?
मैं कुछ नहीं कर सकता …..न ही कुछ कह सकता हूं ….पता लगे मैं ही कहीं उल्टा लटका पड़ा हुआ …पर एक काम तो मैं हर बार तबीयत से करता हूं ….मेरे पास जो भी पंजाबी गालियों का एक अच्छा-खासा खज़ाना है ….उन में से दो चार पांच निकाल कर इस्तेमाल कर लेता हूं ….दिल ही दिल में और अगर अभी अकेला हूं तो बहुत धीमी आवाज़ में ….
मैं जानता हूं ये लोग भी अपनी रोज़ी-रोटी के लिए यह काम कर रहे हैं….लेकिन कुछ बातें ऐसी होती हैं जो तर्क-वितर्क से परे होती हैं …
यह सब लिख रहा हूं ….इस की कोई धार्मिक वजह नहीं है ….मुझे पता है सभी धर्म-मज़हब के लोग ये सब खाते हैं …..और वैसे भी दुनिया में जो भी वैज-नॉन वैज चीज़ें उपलब्ध हैं, सारी दुनिया में वे सब खाई जाती हैं….दुनिया में लोगों का खान-पान, पहरावा, बोली …..सब कुछ अलग थलग है ….यह एक बहुत बड़ी सच्चाई है ….इस तरह के खानपान के आधार पर किसी तरह का भेदभाव करना बिल्कुल हिमाकत है ….मैं यह भी सोचता हूं ….जो किसी को पसंद है, खा रहा है …..
मैं नहीं खाता नॉन-वेज पिछले 30-32 बरसों से तो यह मेरा व्यक्तिगत मामला है …. इस से न तो मैं कोई बहुत बड़ा धर्म का ठेकेदार हो गया ….न ही मैं इस से आदरणीय फौजा सिंह की तरह 100 साल तक जीने की उम्मीद कर सकता हूं ….हर इंसान के कुछ खाने या न खाने की अपनी वजह है ….बस, इतनी सी बात है ….
मेरी वजह जानना चाहते हैं आप ….!!
तो सुनिए, 1994 में इन्हीं दिनों की बात है …हम लोग पूणा गये हुए थे …एक होटल में गए, वहां पर और कुछ समझ नहीं आया तो नॉन-वेज मंगवा लिया ….
लेकिन यह क्या, यह कमबख्त कैसा नॉन-वेज था, चबाया ही नहीं जा रहा था ….
हम लोग बिना खाए, बिल चुकता कर बाहर आ गए…
जब हम लोगों ने बंबई में आ कर कुछ दोस्तों से बात की तो उन से हमें पता चला कि हमें क्या परोसा गया होगा…….बस, उस दिन से कभी मटन-मुर्गा खाया नहीं, छूआ नहीं …और ताउम्र छूने की कोई मंशा नहीं है ….
बात धर्म-मज़हब की नहीं है …..वैज्ञानिक तौर पर भी हमारे दांतों की, हमारी आंतों की संरचना इस तरह की है कि उस परवरदिगार ने हमें शाकाहारी ही बना कर भेजा है ….और संसार में आकर हमारा मन यह सब खाने को मचलने लगा ….
बहुत सुनता हूं कुछ लोगों की मजबूरी है यह सब खाना….भई, मैं किसी को मना नहीं कर रहा हूं….जो किसी को पसंद होगा वह वही खाएगा….लेकिन क्या कोई मुझे मेरी बात कहने से रोक सकता है…..मेरे मन की जो बात है वह तो मैं ढंके की चोट कर कह कर ही रहता हूं ….यह तो हम सब का हक है।
अपनी बात ही नहीं हांकते रहना चाहिए….दूसरों की भी करनी चाहिए…..कल मेरा बेटा बता रहा था कि उसने किसी अच्छी जगह से कोई वेज-सैंडविच आर्डर किए….
आ गया सैंडविच …..
लेकिन उसने जैसे ही एक बाइट ली ….उसे पता चल गया कि यह तो नॉन-वैज है …
उसने शिकायत की, पैसे वापिस हो गए …यह तो कोई मुद्दा ही नहीं है, और इन कंपनियों के लिए कितनी सामान्य सी बात होती होगी….जब उसने बताया कि उन का जो फीडबैक फार्म था, उस पर एक कॉलम ही था कि क्या आप को वैज मील की जगह नॉन-वैज मील भेजा गया……लेकिन जो भी है, अगर किसी ने बरसों से यह सब खाना छोड़ रखा है और गलती से वह इस का एक निवाला भी खा ले तो उस के लिए कितना ट्रामैटिक हो सकता है ….जान दीजिए….हां, निवाले से मुन्नवर राणा की लिखी बात याद आ गई ….
एक निवाले के लिए मैंने जिेसे मार दिया,
वह परिंदा भी कईं दिन का भूखा निकला ….
( जी हां, भूखे ही होते होंगे ये परिदें कईं दिनों से …..अकसर खबरें दिखती रहती हैं कि इन को तरह तरह के स्टीरॉय़ इंजैक्ट किए जाते हैं, और फीड भी एनाबॉलिक स्टीरायड से लैस होती हैं ….ये सब मीडिया में दिख जाता है ..लेकिन इस से इन का वज़न तो बढ़ जाता होगा, भूख इन की कहां मिटती होगी…!!
मौके-बेमौका देख कर मैं शाकाहारी खाने की हिमायत करता हूं और साथ में कह देता हूं कि इस बात में बिना वजह धर्म-मज़हब न घुसाएं….सुन है तो सुुनिए, अगर एक कान से सुन कर दूसरे कान से बाहर निकाल फैंकनी है, यह भी उन का अधिकार है …और जो खाना चाहते हैं, खा रहे हैं ….उस का फैसला करना उन का अधिकार है, अगर हम किसी रास्ते पर चल रहे हैं कुछ अरसे से तो जो उस रास्ते पर चलने की कोशिश करना चाहते हैं उन को एक इशारा करना तो अपना फ़र्ज़ बनता है, दोस्तो. …..
और ये इशारे भी सोच समझ कर करने होते हैं ….अब जैसे मैंने कुछ महीनों से मिल्क-और मिल्क प्रोडक्ट्स को लगभग त्याग रखा है ….लगभग न के बराबर ….सिर्फ चाय में बिल्कुल जो थोड़ा दूध जाता है, उस के बिना मैं नहीं रह सकता….और दूध से बनी कोई चीज़ नहीं लेता….कभी कभी जब कहीं पर बेसन के लड्ड़ू पड़े दिख जाते हैं तो यह नियम भी टूट जाता है ….जैसे आज शाम भी टूट गया ….जब चाय के साथ तीन बेसन के लडडू खा लिए ….क्या करें, कुछ आदतें छूटती नहीं …..लेेकिन देसी घी, मक्खन, दही….आईसक्रीम, रबड़ी, लस्सी….. पिछले चार महीनों से इच्छा ही नहीं …..
क्या कारण था यह सब छोड़ने का?
कोई खास नहीं, बस वितृष्णा सी ही हो गई इन सब चीज़ों से ….क्योंकि मिलावट की, नकलीपन की इतनी खबरें देख लीं कि इन सब से किनारा ही कर लिया…..
लेकिन हां, इस तरह के फैसले का जो भी अंजाम होगा, देखा जाएगा…..एक प्रयोग ही सही….लेकिन अभी तो इन सब चीज़ों की तरफ़ लौटने का कोई इरादा नहीं है ….बाकी, मुझे भी नहीं पता कि इस के कितने नुकसान होंगे, कोई एक फायदा होगा भी या नहीं….जो होगा, देखा जाएगा…..शायद इसीलिए मैंने किसी दूसरे को मिल्क या मिल्क प्रोडक्ट्स का त्याग करने की सलाह कभी न दी है और न ही दूंगा…..वैसे यह मेरा अधिकार क्षेत्र भी नहीं है, हां मैं अनुभव ज़रूर साझा कर सकता हूं….
PS....पोस्ट में जितने भी मंज़र (आज वाला भी) मैंने ब्यां किए हैं, उन सब से जुड़ी तस्वीरें मेरी फोटो गैलरी में हैं, लेकिन मैंने जानबूझ कर नहीं चस्पा कीं क्योंकि बेकार में ये किसी को भी विचलित कर देंगी...
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