शनिवार, 10 जनवरी 2009

सावधान -- वज़न कम करने वाले प्रोडक्ट्स खतरनाक !!

रिश्तेदारी में एक महिला थीं – आज से लगभग पच्चीस-तीस साल पहले की बात है – 35-40 साल की उम्र थी -- स्वास्थ्य की प्रतिमूर्ति दिखती थीं – लेकिन उन्हें किसी भी हालत में अपना वज़न कम करना था--- इसलिये वे कुछ पावडर टाइप की दवाईयां ले रही थीं --- मैं सत्तर-अस्सी के दशक की बात कर रहा हूं ---- एक-दो वर्षों के बाद ही पता चला कि उन्हें लिवर कैंसर हो गया है--- डाक्टरों ने ढूंढ निकाला कारण को –वही मोटापा कम करने वाले पावडरों का सेवन – कमज़ोर होते होते वह कुछ ही समय में चल बसीं।

कुछ दिन पहले जब अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने लोगों के नाम यह चेतावनी जारी की है कि अमेरिका में वज़न कम करने के ऐसे लगभग 12 उत्पाद हैं जिन से बच कर रहने की विशेष ज़रूरत है क्योंकि इनमें कुछ घटक ( ingredients) ऐसे भी होते हैं जिन के बारे में इन्हें बनाने वाली कंपनियां बताती ही नहीं हैं और जो स्वास्थ्य के लिये बेहद खतरनाक हो सकते हैं।

अमेरिका में ऐसे प्रोडक्ट्स कुछ रिटेल स्टोरों पर एवं इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध हैं जिन के बारे में यह बताया जाता है कि इन में प्राकृतिक अथवा हर्बल पदार्थ ही मौजूद हैं । लेकिन इन की पैकिंग के लेबलों पर जिन इनग्रिडिऐंट्स के बारे में कुछ भी बताया नहीं होता उन में मिर्गी के इलाज के लिये इस्तेमाल होने वाली दवाई से लेकर एक कैंसर पैदा कर सकने की क्षमता रखने वाला पदार्थ ( suspected carcinogen) भी हो सकता है, ऐसा अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा है।

अकसर मैं देखता हूं कि कैमिस्ट की दुकानों पर , हिंदी की अखबारों में अथवा स्कूटर के कवरों पर इस तरह के मोटापा कम करने वाले उत्पादों के विज्ञापन अकसर दिख जाते हैं—और मैं व्यक्तिगत रूप से तो अपने मरीज़ों को इन के बारे में आगाह करता ही रहता हूं लेकिन ऐसा सोचता हूं कि इन से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में लोगों को व्यापक स्तर पर सचेत करने की बहुत ही ज़्यादा ज़रूरत है। ध्यान यह भी आ रहा है कि अगर आज की तारीख में अमेरिका जैसे देश में इस तरह की उत्पादों के बारे में चेतावनियां जारी की जा रही हैं तो फिर हमारे देश में ऐसे ही उत्पादों-पावडरों एवं कैप्सूलों- के नाम पर क्या क्या बिक रहा होगा और ध्यान उस महिला की तरफ़ भी जा रहा है कि अगर आज ही हालात ऐसे हैं तो उस ने पच्चीस-तीस साल पहले जो खाया होगा वह भी किसी ज़हर से कम थोड़े ही होगा --- अब अगर मुझे कोई भी कहे कि नहीं, नहीं, यहां तो भई सब कुछ ठीक ठाक है तो वह कोई भी हो, उसे मैं केवल इतना ही कहूंगा --- Better you SHUT UP !!

समस्या यह भी है कि इस तरह के वज़न कम करने वाले उत्पादों में जो भी नुकसान देने वाली पावर-फुल ड्रग्स होती हैं जो कि आम लोगों के जीवन के लिये खतरा हैं --- उन के बारे में जानने का लोगों के पास तो बिल्कुल भी कोई साधन है ही नहीं। और इसीलिये अमेरिका में वहां की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने यह चेतावनी जारी की है।

एफ डी ए ने खोज करने पर पाया है कि इन मोटापा कम करने वाले जिन घटकों के बारे में लोगों को बिल्कुल बताया नहीं जाता ( undeclared ingredients) उन में सिबूट्रामीन( sibutramine- a controlled substance), रिमोनाबैंट( rimonabant- a drug not approved for marketing in the United states), फैनीटॉयन ( Phenytoin – मिर्गी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाई), और फिनोलथ्लीन( Phenolphthalein – एक ऐसा पदार्थ जिसे हम लोग कैमिस्ट्री के एक्सपैरीमैंट्स में इस्तेमाल करते हैं और जो कैंसर रोग पैदा कर सकता है !!) शामिल हैं।

जैसा कि ऊपर भी बताया जा चुका है सिबूट्रामीन ( sibutramine - a controlled substance) जो कि ऐसे अधिकांश उत्पादों में पाई गई – इस से उच्च-रक्तचाप, दौरे ( fits), दिल की धड़कन बढ़ना ( palpitations), हार्ट-अटैक अथवा दिमाग में रक्त-स्राव ( stroke) भी हो सकता है। और अगर कोई व्यक्ति पहले से कोई दवाईयां ले रहा है तो इस सिबूट्रामीन के उन के साथ मिल कर खतरनाक दुष्परिणाम पैदा होने का खतरा और भी बढ़ जाता है। गर्भवती महिलाओं में, ऐसी महिलाओं में जो शिशुओं को स्तन-पान करवाती हैं अथवा 16 साल से कम बच्चों में तो सिबूट्रामीन के सुरक्षात्मक पहलू का आकलन ही नहीं किया गया है।

रिमोनाबैंट एक ऐसी दवा है जिस का गहन परीक्षण तो अमेरिका में हुआ लेकिन इसे एफडीए द्वारा अमेरिका में मार्केटिंग की अनुमति नहीं मिली। यह ड्रग जो यूरोप में बिक रही है जो वहां पर अप्रूवड है... इस को अवसाद एवं आत्महत्या जैसे विचारों के साथ जोड़ा जा रहा है । और यूरोप में पिछले दो सालों में इसे लेने वाले 5 व्यक्तियों की मौत एवं 720 दुष्परिणाम( adverse reactions) के केस हो चुके हैं, यह फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा है।

जाते जाते मुझे ध्यान आ रहा है कि हम लोग अकसर बड़े हल्के-फुलके अंदाज़ मे कह ही देते हैं कि अमेरिका हम से 100 साल आगे है ---लेकिन सोचने वाली बात यह है कि अगर अमेरिका में आज की तारीख में इस तरह की दवाईयों की बिक्री हो रही है तो हमारे यहां क्या क्या नहीं बिक रहा होगा --- इस का जवाब मैं आप के ऊपर छोड़ता हूं, लेकिन कृपया इस बात का जितना भी प्रचार-प्रसार हो करियेगा।

और दूसरा एक तर्कसंगत विचार यह भी आ रहा है कि बहुत हो गया कि किसी दवा को एक जगह पर तो मंजूरी है लेकिन दूसरी जगह पर उसी दवा पर प्रतिबंध है --- कहीं ऐसा तो नहीं कि हम लोगों की चमड़ी कुछ ज्यादा ही मोटी है ( जो कि वास्तव में नहीं है !!) या वही बात सही है कि अगर किसी ने भगवान देखना है तो वह यहीं मौजूद है ----- लेकिन ये सब हमारे कमज़ोर मन की दलीले हैं, सच्चाई से मुंह छिपाने के बहाने हैं, हमारे ढोंग हैं---- इस मुल्क में भी एक जान की कीमत भी उतनी ही है जितनी किसी बहुत ही अमीर मुल्क में ---लेकिन अफ़सोस है तो केवल इसी बात का कि यहां तो मौत का कारण तक ढूंढ़ने की कोशिश ही कहां की जाती है ---- जो गया सो गया, उस की लिखी ही इतनी थी , यही कह कर उसे राइट-ऑफ कर दिया जाता है ---- बस, हो गई छुट्टी !!

शुक्रवार, 9 जनवरी 2009

बीस साल बाद दिल्ली में एक रविवार (2)






और जब मैं धौला कुआं से वापिस दिल्ली के अंतर्राजीय बस अड्डे की तरफ़ लौट रहा था तो दिल्ली का मिजाज बदला बदला सा लग रहा था --- कारण ?--- मुझे नहीं पता कि इस मिजाज को बदले कितना अरसा हो गया होगा क्योंकि मेरे ख्याल में मैं किसी रविवार के दिन इस दरियागंज वाली सड़क से 18-20 साल बाद ही गुज़र रहा था।
दरअसल मैं अक्टूबर एवं नवंबर 1988 में दो महीने के लिये बिना सर्विस के यूं ही सबर्बन पास बना कर दिल्ली की सड़कों की खाक छानने रोहतक से लगभग रोज़ निकल जाया करता था --- वास्तव में एक जगह से नियुक्ति-पत्र आने में ही देरी लग रही थी --- लेकिन फिर भी मैं दिल्ली में भी किसी नौकरी की तलाश में चला जाया करता था। इन दिनों मैं अपने खाली समय में नेशनल मैडीकल लाइब्रेरी में भी बहुत जाया करता था।

और हां, जो बात विशेष रहती थी कि रविवार के दिन जब कभी दरियागंज के रास्ते से निकलना होता था तो वहां फुटपाथ पर कहीं कहीं पर किताबों वाले ज़रूर दिख जाते थे --- इसलिये इन से कभी कभी किताब भी खरीद ली जाती थी --- कौन सी किताबें ?- अब यह तो मत पूछो ---अंग्रेज़ी की वही किताबें जिन की इस उम्र में हमारे समय में पढ़ने की चाहत हुआ करती थी। अब जब उन किताबों के बारे में सोचता हूं तो हंसी आती है। लेकिन वह भी दौर था --- इस को कैसे नकारा जा सकता है।

लेकिन इस बार रविवार को मैं इस दरियागंज वाली सड़क का बहुत ही अलग नज़ारा देख रहा था --- यहां पर फुटपाथ पर सैंकड़ों किताबों की दुकानें बिछी पड़ी थीं और किताबों के प्रेमी लोग इन को खरीदने में व्यस्त थे। यह नज़ारा देखते ही बन रहा था। ये सब तस्वीरें उसी दरियागंज एरिया की ही हैं--- अब सोचता हूं कि किसी दिन रविवार के दिन इस जगह ज़रूर जाऊंगा।

इस क्षेत्र में बहुत रौनक थी --- किताबों की दुकान के पास ही अंग्रेज़ों की पहनी हुई जैकेटें, स्वैटर भी मिल रहे थे --- यह सब कुछ भी हम लोग पिछले तीस सालों से देख रहे हैं लेकिन मैं इस बात की खोज करूंगा कि स्वास्थ्य के पहलू से ये वस्त्र कितने सुरक्षित हैं --- मैं इस के बारे में बहुत बार सोचता हूं। लेकिन इस तरह के कपड़े बेचने वालों के अड्डों पर भी बहुत भीड़ थी।

और भीड़ यहां पर इतनी थी कि लगता था जैसे कोई मेला लगा हो --- मुझे ध्यान आ रहा था कि इसी फुटपाथ से शायद बीस साल पहले कईं बेल्ट भी खरीदे थे --- शायद दो-चार टाईयां भी खरीदी थीं ----क्या है न इंटरव्यू के लिये ये सब करना ही पड़ता था । बस, याद आ रहा है कि जैसे ही यह नौकरी लग गई यह दिल्ली जा कर यूं ही लगभग बिना वजह जा कर घूमना बंद सा हो गया --- और फिर दो एक साल बाद जब यह नौकरी छोड़ कर यूपीएससी द्वारा नियुक्त कर लिया गया तो सीधा बंबई पहुंच गया।

उस दिन मुझे दरियांगज एरिया से जुड़ी सारी यादें एक चलचित्र की भांति याद आ रही थीं --- बिल्कुल उसी तरह जिस तरह लगभग रोज़ आज कल जब मैं शाम को हास्पीटल से ड्यूटी करने के बाद बाहर निकलता हूं तो मुझे अपने पिता जी अकसर याद आते हैं ---दरअसल यहां यमुनानगर में शाम को अंधेरा बहुत जल्दी हो जाता है और जब मैं ड्यूटी के बाद छः बजे बाहर आता हूं तो मुझे मेरे ख्यालों में अपने स्वर्गीय पिता जी का चिंतित चेहरा अकसर दिख जाता है ---बात 1974 की हैं –अमृतसर के डीएवी स्कूल में मैं पढ़ा करता था ---छठी कक्षा में ---हिसाब में थोड़ी मुश्किल होती थी इसलिये स्कूल में ट्यूशन रखी हुई थी जो साढ़े पांच बजे तक चलती थी और फिर स्कूल से पैदल आना होता थी ----चूंकि मुझे आते आते थोड़ा अंधेरा हो जाया करता था तो अकसर मेरे पिता जी मुझे अकसर रास्ते में ही देखने आ जाया करते थे ---- आज सोचता हूं कि मेरे में आत्मविश्वास बहुत था, बहुत निडर था लेकिन अपने पिता के लिये तो एक 11 साल का बालक ही था---- उन के चिंतित चेहरे को जो सुकून मुझे देखने के बाद मिलता था वह मैं ब्यां नहीं कर सकता --- शायद उन्हें यही लगता होगा कि उन्हें कुबेर का खजाना मिल गया ।

जो भी था उन दिनों मुझे यह अनुमान नहीं होता था कि अपने बच्चों की इंतज़ार में बिताये गये चंद मिनट क्यों सदियों जैसे लगते हैं --- क्योंकि अब अपने पिताजी वाला काम मैं अपने बच्चों के साथ करता हूं --- और जिंदगी का चक्र चल रहा है ---- The history repeats itself----इतिहास अपने आप को दोहराता है !!

बुधवार, 7 जनवरी 2009

कईं बार ऐसा भी होता है – आगे कुआं पीछे खाई !!

पी.एस.ए टैस्ट – इस का पूरा नाम है प्रोस्टेट स्पैसिफिक ऐंटीजन टैस्ट। दोस्तो, यह तो हम सब जानते ही हैं कि बढ़ती उम्र के साथ कईं बार पुरूषों को पेशाब में थोड़ी दिक्तत सी होने लगती है ---बार बार पेशाब आना, बिल्कुल थोड़ा थोड़ा पेशाब आना, पेशाब करने में दिक्तत होना अर्थात् ज़ोर लगना। इन सब के बारे में आपने अकसर सुना होगा और यह भी सुना होगा कि ये सब प्रोस्टेट के बढ़ने के हो सकते हैं--- भारत के इस हिस्से में तो आम तौर पर यही कहा जाता है कि उस की गदूद बढ़ गई है।

गदूद बढ़ने को कहते हैं --- प्रोस्टेट एनलार्जमैंट । इस के लिये सर्जन से संपर्क करना आवश्यक होता है जो कि अल्ट्रासाउंड करवाने के बाद और चैक-अप करने के बाद यह निर्णय लेते हैं कि इस का आप्रेशन करना अभी बनता है कि नहीं, क्या अभी दवाईयों से चलेगा या नहीं। इस में ऐसे भी कईं मरीज़ देखे जाते हैं जिन्हें थोड़ी बहुत तकलीफ़ तो होती है लेकिन वे इस तरफ़ ध्यान नहीं देते लेकिन एक दिन अचानक पेशाब रूक जाने की वजह से इन्हें एमरजैंसी में पेशाब के लिये नली ( catheter) भी डलवानी पड़ सकती है --- यह नली स्थायी तौर पर ही नहीं लग जाती --- इस से मरीज़ के रूके हुये पेशाब को निकाल दिया जाता है और उस के बाद इस बढ़े हुये प्रोस्ट्रेट के इलाज के बारे में सोचा जाता है।

अब देखते हैं एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात --- पुरूष की प्रोस्टेट ग्रंथि एक प्रोटीन बनाती है जिसे कहते हैं प्रोटीन स्पैसिफिक ऐंटीजन जिस के स्तर को रक्त की जांच द्वारा मापा जा सकता है। कुछ बीमारियों में जिन में प्रोस्टेट का कैंसर शामिल है प्रोस्ट्रेट इस को ज्यादा मात्रा में बनाने लगता है इसलिये किसी पुरूष के रक्त की जांच कर के डाक्टरों को प्रोस्टेट कैंसर का बिल्कुल प्रारंभिक अवस्था में पता चल सकता है।

डाक्टर लोग अभी तक इस के बारे में एक राय नहीं बना पाये हैं कि क्या 50 वर्ष की उम्र पार कर लेने पर सभी पुरूषों का यह टैस्ट करवाना उचित है । इस का कारण यह है कि इस प्रोस्टेट टैस्ट के द्वारा जिन प्रोस्टेट कैंसर का पता चलता है उन में से बहुत से केस ऐसे भी होते हैं जिन में से यह कैंसर प्रोस्टेट के एक बिल्कुल ही छोटे से क्षेत्र तक ही महदूद रहता है और ये कभी भी आगे फैलता नहीं है जिस की वजह से कोई मैडीकल व्याधियां उत्पन्न ही नहीं होती।

अब ऐसा है न कि इस तरह के बिल्कुल छोटे से कैंसर का भी जब किसी को पता चलता है और वह उस का कोई उपचार नहीं करवाता तो भी उस की तो रातों की नींद उड़ी रहती है। और अगर वह इस तरह के बिल्कुल छोटे कैंसर का ( जिस ने भविष्य में कभी फैलना ही नहीं था) --- उपचार करवा लेता है तो उस को इस के इलाज के संभावित साइड-इफैक्ट्स जैसे कि यौन-सक्षमता का खो जाना और पेशाब की लीकेज की शिकायत हो जाना ( possible side effects such as loss of sexual function, or leakage of urine). वैसे देखा जाए तो बिल्कुल उस कहावत जैसी बात ही यहां भी लग रही है न --- आगे कुआं पीछे खाई --- बंदा जाए तो कहां जाए !!

दूसरी तरफ़ बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर प्रोस्ट्रेट के ऐसे किसी कैंसर को प्रारंभिक अवस्था में ही पकड़ लिया जाए और समुचित उपचार कर दिया जाए तो समझ लीजिये बंदे को जीवनदान मिल गया। इसीलिये डाक्टर आज कर इस बात को खोज निकालने में पूरे तन-मन से लगे हुये हैं कि आखिर किस तकनीक से उन्हें यह पता लगे कि कौन सा प्रोस्टेट कैंसर फैलेगा और किस केस में यह शेर सारी उम्र सोया रहेगा ------- ताकि सोये हुये शेर को बिना वजह क्यों जगाया जाए !!

इस टैस्ट के लिये कोई विशेष तैयारी की आवश्यकता होती नहीं है लेकिन इस की रिपोर्ट कृत्तिम तौर पर बहुत बढ़ी हुई न आए ( artificially high test level) इस के लिये अमुक व्यक्ति को टैस्ट से पूर्व एक दिन संभोग नहीं करना चाहिये। और अगर आप कोई दवाईयां ले रहे हैं तो इस की जानकारी अपने डाक्टर को दे दें – इस से आप के डाक्टर को आप के टैस्ट का परिणाम समझने में आसानी होगी।

अब यह पोस्ट पढ़ने के बाद किसी के भी मन में यह प्रश्न पैदा होना स्वाभाविक है कि अब तक अगर डाक्टर लोग ही बिल्कुल छोटे प्रोस्टेट कैंसर के उपचार के लिये अपनी एक राय नहीं बना पाये हैं तो हम लोग कैसे निर्णय लें कि इलाज करवायें या नहीं ---- सर्जरी करवाये या नहीं ---- इस का जवाब तो दोस्तो यही है कि ये जो ये जो मंजे हुये सर्जन होते हैं इन को मरीज़ की जांच करने के बाद, अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट से , पीएसए टैस्ट से काफ़ी हद तक अनुमान हो ही जाता है कि इस केस की सर्जरी की आवश्यकता है कि नहीं !! और ध्यान रहे कि इन धुरंधर विशेषज्ञों की राय के आगे नतमस्तक होने के इलावा कोई चारा भी तो नहीं है क्योंकि इन्हें अंदर की भी सारी खबर है।

आज कल तो प्रोस्टेट के इलाज के लिये बहुत ही बढ़िया तकनीकों का पसार हो चुका है । दूरबीन से भी बढ़े हुये प्रोस्टेट को निकाल दिया जाता है --- इसलिये कोई इतना घबराने की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन बात इस बात का ज़रा ध्यान रहे कि अगर आप की नज़र में आप का कोई मित्र या संबंधी बढ़े हुये प्रोस्टेट के लिये दवाईयां खाये चला जा रहा है तो उसे कहें कि अगली बार किसी सर्जन से जब परामर्श हेतु जाएं तो इस टैस्ट के बारे में थोड़ी चर्चा ज़रूर करें।

क्या मैं भी कभी कभी सुबह सुबह इतने गंभीर विषयों पर लिखना शुरू कर देता हूं ---- तो, ठीक है , दोस्तो, खुश रहिये और परमात्मा आप सब को सेहत की नेमत से नवाज़ता रहे ---- मुझे अभी ध्यान आ रहा है कि मैं भी आप सब हिंदी के प्रकांड विद्वानों में घुस कर हिंदी के शब्दों की धज्जियां उड़ाने में लगा रहता हूं --- और आप सब लोग इतने विशाल हृदय हो कि फिर भी मुझे स्वीकार कर लेते हो--- दरअसल मैं जिन शब्दों को जैसा सुनता हूं वैसा ही लिख देता हूं --- कल ही एक सज्जन की पोस्ट से पता चला ( कथाकार डॉट काम) कि सही शब्द है खतो-किताबत न कि खतो-खिताबत जैसा कि मैं सोचा करता था --- और दोस्तो मुझे यह तो ज़रूर ही बताने की कृपा करें कि सही शब्द सांझा है या साझा ---किसे से विचार सांझे किये जाते हैं या साझे ----मुझे इस में बहुत बार दुविधा होती है !!

अच्छा तो आज का दिन आप सब के लिये बहुत सी खुशियां ले कर आए ---- दो दिन पहले कनॉट-प्लेस की एक दीवार पर लिखी इस बात का ध्यान आ रहा है ------ When you look for the good in others, you discover the best in yourself !!----- जब आप किसी दूसरे की अच्छाईयां ढूंढने में लग जाते हो और आप को खुद की श्रेष्टताएं , विलक्षणता स्वयं ही दिखनी शुरू हो जाती हैं ---कहने वाले ने भी कितना बढ़िया बात कर दी है, दोस्तो !!

सोमवार, 5 जनवरी 2009

इंटरनेट पर स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी के लिये वेबसाइटें

इंटरनेट पर स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी तरह की जानकारी प्राप्त करने के लिये कुछ बेहद महत्त्वपूर्ण वेबसाइटों ( हाइपरलिंक्स सहित) को कहीं नोट करियेगा।

Centre for Disease Control and Prevention – सैंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एवं प्रिवेंशन –
www.cdc.gov
अन्य विशेषताओं के साथ साथ इस वेबसाइट पर एक विभिन्न रोगों का एक ए टू ज़ेड ( A to Z Disease Index) है जिस के द्वारा आप किसी भी शारीरिक एवं मानसिक तकलीफ़ के बारे में विस्तृत्त जानकारी हासिल कर सकते हैं।

U.S. Department of Health & Human Services’s National Institutes of Health – यूनाइटेड स्टेटज़ के हैल्थ एवं ह्यूमन सर्विसिज़ विभाग की नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हैल्थ की यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण वेबसाइट है जिस में स्वास्थ्य के सभी विषयों की समुचित जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
www.nih.gov

Labtestsonline --- लैबोरेट्री टैस्टों के लिये लैबटैस्ट ऑनलाइन – किसी भी लैबोरेट्री टैस्ट के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करने के लिये अथवा किस बीमारी के लिये कौन से टैस्ट आवश्यक हैं, इस के लिये आप लॉग-ऑन कर सकते हैं ---
www.labtestsonline.org.uk

World Health Organisation – विश्व स्वास्थ्य संगठन – इस वेबसाइट पर भी स्वास्थ्य संबंधी जानकारी बहुत अच्छे ढंग से मुहैया करवाई जाती है।
www.who.int

US Food and Drug Administration – अमेरिकी फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन – यह भी एक बहुत ही बढ़िया वेबसाइट है जिस में उपभोक्ताओं अर्थात् मरीज़ों के हितों को ध्यान में रख कर काफ़ी पठन सामग्री उपलब्ध है। अगर किसी दवा के कोई गल्त परिणाम सामने आ रहे हैं तो उसे भी इस वेबसाइट पर डाल दिया जाता है। इस साइट की इतनी विशेषताएं हैं कि आप इस की गली की तरफ भी कभी कभी ज़रूर निकल जाया करें – अगर अभी एक नमूना देखना चाहते हैं तो इस लिंक पर क्लिक करिये ---
www.fda.gov

स्वास्थ्य से संबंधित कुछ अन्य वेबसाइटों के लिंक यहां दिये जा रहे हैं --- अगर कभी समय निकाल पाये तो ज़रूर देख लीजियेगा –
US Department of Health and Human Services – अमेरिकी हैल्थ एवं ह्यूमन सर्विसिज़ विभाग का लिंक यह है
www.hhs.gov

कुछ अन्य साइटों को भी देखिये ---
www.healthfinder.gov
www.informedmedicaldecisions.org
www.womenshealth.gov
www.health.gov

National Library of Medicine – नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मैडीसन भी एक बहुत बढ़िया वेबसाइट है जहां से सेहत से संबंधित बहुत बढ़िया जानकारी हासिल की जा सकती है ।
http://www.nlm.nih.gov

Medline Plus – आप की सेहत से संबंधित बहुत ही विश्वसनीय जानकारी यहां पर उपलब्ध है –
www.nlm.nih.gov/medlineplus

HealthDay – हैल्थ-डे --- स्वस्थ जीवन के कुछ गुर हम लोग यहां पर भी सीख सकते हैं –
www.healthday.com

Masachussets Medical Society – मैसाच्यूसैट्ज़ मैडीकल सोसायिटी का वेबलिंक यह है –
www.massmed.org

International News Agencies – कुछ अंतरर्राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसियों की वेबसाइट पर भी स्वास्थ्य संबंधी शीर्षक के अंतर्गत हैल्थ से संबंधित उम्दा जानकारी मिल जाती है
Reuters www.reuters.com

United Press International www.upi.com

Xinhua news agency www.xinhuanet.com/english

Harvard health ( हारवर्ड हैल्थ ) की भी दो साइटें बहुत बढ़िया हैं ---

www.health.harvard.edu

harvardhealth.gather.com

CNN : Health – Medical News for CNN – सी एन एन चैनल पर स्वास्थ्य संबंधित जानकारी इस लिंक पर मिल सकती है –
www.cnn.com/Health

मेरे विचार है कि आप इन वेबसाइटों की एक सूची बना कर रख लें। वैसे तो कुछ डॉट-काम वेबसाइटों पर भी बहुत उपयोगी जानकारी उपलब्ध हो जाती है लेकिन मैं सरकारी साइटों, यूनिवर्सिटी साइटों एवं ऐजुकेशनल संस्थानों की वेबसाइटों पर ही ज़्यादा निर्भर करता हूं ।

कभी कभी इन में से किसी भी वेबसाइट पर थोड़ा टहल लेना चाहिये --- एकदम ताज़ी जानकारी उपलब्ध हो जाती है।
परिवार के प्रत्येक वर्ग के लिये इन वेबसाइटों पर जानकारी उपलब्ध रहती है जैसे कि युवा वर्ग, किशोर बालाओं के लिये, गृहिणीयों के लिये , पुरूषों के लिये अलग सैक्शन रहते हैं। इन साइटों के उन सैक्शनों पर ही जाना ज़्यादा ठीक रहता है जहां पर लिखा रहता है For the Public ---- इस सैक्शन की भाषा बहुत सरल एवं सहज होती है क्योंकि इन्हें एक नॉन-मैडीकल पाठक को ध्यान में रख कर ही लिखा जाता है।

आप की सेहत की कामना के साथ ,
डा प्रवीण चोपड़ा

PS --- यह पोस्ट मैंने लगभग 20-25 दिन पहली ठेल तो दी थी --- हाथ से लिख कर – इंक-ब्लागिंग के ज़रिये – लेकिन मुझे लग रहा था कि ऐसी पोस्ट में हाइपर-लिंक्ज़ के बिना बात बन नहीं पाती है , सो आज टाइम निकाल कर यह काम पूरा कर दिया है । और दूसरी बात यह है कि इंक-ब्लॉगिंग में लिखे को गूगल-सर्च उठा नहीं पाती !!

रविवार, 4 जनवरी 2009

लगभग बीस साल बाद दिल्ली में एक रविवार .....भाग 1..

मुझे आज दिल्ली में एक राइटर्ज़-मीट( लेखन मिलन) के सिलसिले में जाना था --- प्रोग्राम तो था सुबह दस बजे से एक बजे तक – मैं यहां यमुनानगर से सुबह लगभग साढ़े चार बजे बस से चला और दिल्ली के अंतर्राजीय बसअड्डे पर लगभग साढ़े आठ बजे पहुंच गया था। वैसे तो मुझे कहीं भी आने-जाने का इतना आलस्य आता है किक्या बताऊं --- लेकिन जब किसी बहाने लेखकों से मिलने की बात होती है तो मेरे रास्ते में न तो दूरी और न हीसमय की कोई बाधा आती है। आप हिंदी चिट्ठाकारों का भी कोई समारोह हिंदोस्तान के किसी भी कोने में रख के देख लीजिये --- वहां पर भी पहुंच ही जाऊंगा। लेखकों के साथ कुछ समय बिताने के चक्कर में तो अन्य जगहों के इलावा असम के जोरहाट में भी 10 दिन लगा के आ चुका हूं।

हां, तो जैसे ही दिल्ली के बस अड्डे पर उतरा बस-अड्डे की दीवार पर इस दीवारी सूचना नेस्वागत किया --- ये एक-दो नहीं एक दीवार पर तो बीस बार ही लिखा हुआ था । इस सूचना को देख कर इतना ही सोचा कि या तो यह भी लगे हाथ कानून ही बन जाये कि किसी ने भी पेशाब करना ही नहीं है – वरना इन बीसियों नोटिसों की व्याकरण ही थोड़ी दुरूस्त कर दीजाये --- केवल वाक्य के शुरू में यहां लगाने भर की तो बात है , वरना यह तो बीड़ी-सिगरेट की मनाही याद दिलाने वाले किसी विज्ञापन की तरह ही लग रहा है !!



वैसे तो इन नोटिसों में छिपी बैठी
एक ग्रैफिटी यह भी तो थी !!























वहां से मुझे धौला कुआं जाना था – लगभग 45 मिनट का सफ़र था। रास्ते में जाते हुये पता चला कि 1 जनवरी 2009 को दिल्ली में नो-होंकिंग डे ( अर्थात् उस दिन हार्न बजेंगे ही नहीं !!)- मुझे नहीं पता कि वह दिन वास्तव में दिल्ली वालों ने कैसे मनाया होगा लेकिन इतना सोच ही रहा था कि कुछ ही दूरी पर एक अन्य बड़े से पोस्टर पर निगाह पड़ गयी ---जिस में एक हार्न के साथ एक कुत्ते की तस्वीर थी और ये पोस्टर उस कुत्ते की तरफ़ से ही लगे हुये थे जिस में वो बहुत गुस्सा से फरमा रहे थे ---
मैं बिना वजह भौंकता नहीं हूंआप भी बिना वजह हार्न बजायें।

प्रिय टॉमी, हम लोग तुम्हारे जितने समझदार होते तो बात ही क्या थी , यह नौबत ही न आती कि तुम से भी प्रवचन सुनने पड़ते !!

आगे थोड़ी दूरी पर देखा कि मैट्रो का काम चल रहा था – उस के इर्द-गिर्द लगे लोहे की शीटों पर एक बहुत ही बढ़िया संदेश हम सब के लिखा हुआ था --- हैल्मेट इज़ मोर इंपोर्टैंट दैन यूअर हेयर-स्टाईल ---
आप के हेयर-स्टाईल से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है आप का हेल्मेट पहनना!!

जहां पर दरियागंज लगभग खत्म होता है वहां पर एक बहुत बड़ा बोर्ड यह भी दिख गया --- अंग्रेज़ी में लिखा हुआ - दान देने के लिये उपर्युक्त कंबल खरीदने के लिये इस मोबाइल पर संपर्क करें – इन की कीमत 75 रूपये से शुरू होती है। बात सोचने वाली यही है कि क्या दान वाले कंबलों में प्यार की इतनी ज़्यादा हरारत होती है कि एक 75 रूपये वाला कंबल भी फुटपाथ पर पड़े हुये किसी बदकिस्मत को इस नामुराद ठिठुरन से बचा सकता है ---- एक बात और भी है न कि अब किसी का जीना-मरना तो दानकर्त्ता के हाथ में थोड़े ही है ---- सुबह वह फुटपाथी फटीचर उठे या उठे ---लेकिन ठंड की वजह से अकड़ चुके इस बंदे के पड़ोस में ही फुटपाथ पर पड़ी अखबार के स्थानीय पन्ने पर धन्ना सेठ की रंगीन फोटो के नीचे कितना साफ़ साफ़ लिखा भी तो होगा कि कल शाम धन्ना सेठ ने गरीबों में 100 कंबल बांटे ------ गिनती पूरी होनी थी , सो हो गई !! और इसी चक्कर में धन्ना सेठ ने अपना तो लोक-परलोक सुरक्षित कर लिया ---कोई घाटे का सौदा थोड़े ही है ?

दिल्ली की महत्वपूर्ण जगहों की दीवारों पर अकसर गुमशुदा लोगों की तस्वीर देख कर बहुत रहम आता है --- अरेभई, किसे पड़ी है इस चक्कर में अपने दो मिनट खराब करे ---- जो गुमशुदा हो गयें उन का तो पता है कि वेगुमशुदा हो गये हैं लेकिन ये जो लाखों लोग अपने आप से ही गुम हो चुके हैं, महानगर की भागम-भाग में इन का खुद जीवन भी तो कहीं गुम हो चुका है लेकिन इन का गुमशुदा नोटिस क्या कभी कोई छापेगा -----क्योंकि मेरे साथ साथ सब के सब डरते हैं ----सच्चाई डरावनी होती है।

वहां लेखकों के मिलन के दौरान प्रोफैसर जावेद हुसैन से ये पंक्तियां भी सुनीं ---
----
रोज़ किया करते हो कोशिश जीने की ,
मरने की भी कुछ तैयारी किया करो।

अच्छा तो दिल्ली में बिताये गये इस रविवार की बकाया रिपोर्ट एवं उस लेखक-मिलन के बारे में अगली दो पोस्टों में लिखूंगा --- अभी नींद आ रही है ---आज सफर बहुत किया है ---अच्छा तो दोस्तो, शब्बा खैर !! शुभरात्रि !!