शुक्रवार, 18 जनवरी 2008

तो आप को भी मीठी-मीठी टिप्पणीयां ही चाहिएं.!!

क्या दोस्तो, यह मैं क्या देख रहा हूं ....मैंने यह नोटिस किया है कि कुछ लोगों को केवल मीठी-मीठी टिप्पणीयां ही चाहिएं...नहीं, नहीं , ऐसा मुझे किसी ने कहा तो नहीं है, लेकिन जो मैं इन ब्लोग्स की टिप्पणीयों वाली विंडोस से आबजर्व कर पाया हूं कि मामला कुछ कुछ ऐसा ही है। या फिर हम साफगोई से डरते हैं, घबराते हैं, भागने की कोशिश करते हैं....यार,यह सब बलागर्स की विशेषताओं में कब से शामिल हो गया, समझ नहीं आ रहा।
दोस्तो, मैं बात कर रहा हूं comment moderation की...यार, अपने कीमती समय खोटी कर के किसी भी ब्लागर को जब बड़ी ही आत्मीयता से कोई कमैंट भेजते हैं तो सबमिट करने पर पाते हैं कि आप की टिप्पणी सेव कर ली गई है, ब्लागर की अपरूवल के बाद प्रकाशित हो जाएगी.....यार, ये ब्लागर्स हैं या भगवान......एक तरह से देखा जाए तो हमारी spontaneity के इलावा हम बलागर्स में है ही क्या, अब अगर उस पर भी कोई अपनी धौंस दिखायेगा तो इन बंदों को चाहे वह कोई भी हो क्या टिप्पणी -विप्पणी देकर अपना टाइम खोटी करना। दोस्त, मैंने तो आज से क्या अभी से फैसला कर लिया है कि ऐसे किसी भी ब्लागर को टिप्पणी नहीं भेजूंगा, जिस ने यह सुविधा आन की होगी.....यार इस से मैं तो बडा़ इंस्लटेडिट महसूस करता हूं।
यह कमेंट माडरेशन वाली सुविधा तो वही बात लगती है कि जैसे किसे ने मेरा मुंह रूमाल से बंद कर दिया हो कि बेटा, रूमाल तभी हटाऊंगा अगर तूं मेरे बारे में अच्छा अच्छा बोलेगा। क्या नाटक है यह ,दोस्तो.. हटा दो ,आज ही अपनी यह कमेंट माडरेशन वाली आपशन....क्या यार हम सब इतना पढ़े लिखे , मैच्यूर लोग हैं, हम लोग आपस मे एक दूसरे की बात सुनने से डर रहे हैं. ....चलिए, मुझे आप जितने मरीज कमैंटस भेजिए, चाहे अनानिमस ही भेजें, मैं सब को स्पोटर्समैन स्पिरिट में लेने के लिए सदैव तत्पर हूं,,,और आप से प्रोमिस करता हूं कि कभी भी यह आपशन आन नहीं करूंगा। मुझे तो दोस्तो ऐसा करना ड्रामेबाजी लगती है। वैसे भी मेरे गुरू जी ने तो हमें यही सिखाया है..........
we unnecessarily worry about what people say about us !!
Actually what we speak about others speaks volumes about us!!

दोस्तो, मेरी बात को कृपया अन्यथा न लें,,,,नया नया ब्लागिया हूं....इस लिए जो बात परेशान कर रही थी, आप के सामने रख दिया क्योंकि डाक्टरी के इलावा जो इस दुनिया से सीखा है कि लेखन वही है जिस लिखे बिना आप बस रह न सकें। ठीक है, ठीक है, तो फिर इस दुनिया के किसी भी बंदे की टिप्पणी से क्यों भागना....इसे भागना ही कहेंगे न कि पहले आप टिप्पणी पढ़ेगे , फिर अपरूव करेंगे कि वह छपेगी कि नहीं.....छोड़ो यारो, Come on...be brave to face even the nastiest comments...................Well, this is my opinion. What's yours, by the way ??

Good night , friends,
Dr Parveen chopra
18.1.08...21:23hrs

क्या ये बीमारियां परोसने वाले दोने हैं?




दोस्तो, आप भी सोच तो जरूर होंगे कि यह इस बलागिये ने तो जब से चिट्ठों की दुनिया में पांव रखा है न, बस हर वक्त डराता ही रहता है कि यह न खायो, वो न खायो, उस में यह है,उसमें वह है......बोर हो लिए यार इस की डराने वाली बातो से....हम तो जो दिल करेगा... करेंगे, खाएंगे पीएंगे, मजा करेंगे......वही कुछ कुछ ठीक उस पंजाबी गाने की तरह....
खाओ, पियो ,ऐश करो मितरो,
दिल पर किसी दा दुखायो न.....
लेकिन जब खाने वाली चीज़े जिस दोने में परोसी जा रही हैं, अगर वह ही आप की सेहत से खिलवाड़ करने लगे तो .....वो कहते हैं न कि बाड़ ही खेत को खाने लगे तो फिर कोई क्या करे....चुपचाप बैठा रहे, या शोर डाल कर लोगों को चेताया जाए। बस,दोस्तो, कुछ वैसा ही काम करने की एक बिलकुल छोटी सी कोशिश करता रहता हूं।
कल रात की ही बात है दोस्तो हम सब घूमने बाज़ार गये हुए थे। वहां पर एक अच्छी खासी मशहूर दुकान से मेरा बेटा एक दोने में गाजर का हलवा खा रहा था, अचानक उस ने शिकायत की यह हलवे के ऊपर क्या लगा है, अकसर हम उसे ऐसे ही कह देते हैं कि यार, तू न ज्यादा वहम न किया कर , बस खा लिया कर, कुछ नहीं है। अकसर हम इसलिए कहते हैं क्योंकि वह हर चीज़ को बड़ी अच्छी तरह से चैक कर के ही खाता है...शायद मां-बाप दोनों डाक्टर होने का ही कुछ असर है। कल भी ऐसा ही हुया, हम ने उसे मज़ाक में फिर कह दिया कि यार तेरी ही खाने की चीज़ में कुछ न कुछ लफड़ा होता है, लेकिन दोस्तो जब उस ने उस गाजर के हलवे से भरा चम्मच हमारे सामने किया तो हम दंग रह गए। बात क्या थी, दोस्तो, कि जिस दोने में वह गाजर का हलवा खा रहा था, वह वही आज कल कईं जगह पर मिलने वाले कुछकुछ ट्रेडी फैशुनेबल से डोने से ही खा रहा था, जो होता तो किसी पेड़ के पत्ते का ही है, लेकिन अंदर उस के एक चमकीली सी परत लगी होती है।
चूंकि वह उस तरह के ही दोने से खा रहा था तो यह समझते देर न लगी कि यहउस दोने की चमकीली ही उस हलवे के साथ उतर कर पेट में जा रही है।
दोस्तो, आप को भी शाकिंग लगा न, तुरंत वेटर ने वह दोना तो बदल दिया, लेकिन जिन करोड़ों बंदों को इस बात का ज्ञान नहीं है, बात उन के दोने बदलने की है, उन तक भी यह दोने न पहुंचे, बात तो तब बने.....
दोस्तो, मैं भी कल तक यही समझ रहा था कि इन बड़े आकर्षक दिखने वाले दोनों में कुछ उसी तरह का मैटिरियल लगा होता होगा जिस फायल में आजकल चपातियां लपेटने का चलन है। लेकिन आते वक्त उत्सुकता वश मैं वहां से एक खाली दोना मांग कर ले आया......दोस्तो, आप हैरान होंगे जब घर आकर मैंने उस दोने के ऊपर लगी परत को उतारा तो दंग रह गया ...यह कोई फायल-वायल नहीं था, ये तो एक पतला सा मोमी कागज था, पालीथीन जैसा जो अकसर दशहरे के दिनों में बच्चों के तीर कमान बनाने वाले, बच्चों के मुकुट बनाने वाले इस्तेमाल करतेहैं। यह सब देख कर बड़ा ही दुःख हुया कि आमजन की सेहत से कितना खिलवाड़ हो रहा है, यह सब चीज़ें हमारे शरीर में जाकरइतना ज्यादा नुकसान करती हैं कि अब क्या क्या लिखूं क्या छोडूं...फिर आप ही कहें कि बलोग की पोस्टिंग बड़ी हो गई है। तो , दोस्तो, आगे से आप भी इन बातों की तरफ जरूर ध्यान दीजिएगा। वही दशकों पुराने पत्ते के दोने में ही यह खाने-पीने की चीज़े खानी ठीक हैं, उस में यह बिना वजह की आधुनिक का मुलम्मा चढ़ाने का क्या फायदा ...और वह भी जब यह हमारे शरीर में ही इक्टठा हो रहा है। गाजर के हलवे में तो हम ने उसे पकड़ लिया, लेकिन क्याइस तरह के ही माड्रऩदोने में परोसी जा रहीं जलेबियों, गर्मागर्म टिक्कीयों,एवं पानी-पूरी इत्यादि के रास्ते हमारे शरीर के अंदर जा कर यह बीमारियों को खुला नियंत्रण नहीं देता होगा .....आप भी मेरी ही तरह यही सोच रहे हैं न। तो ,फिर अगली बार ज़रा दोने का ध्यान रखिएगा .......
पता नहीं , आप मेरी बात पर अमल कर पाएंगे या नहीं, लेकिन इस पूरे ऐपिसोड का मेरे बेटे को जरूर फायदा हो गया ......He got a cash reward of fifty rupees for his keen sense of observation…..दोस्तो, बस एक और भी है न अब बलोगरी में पांव रख ही लिया है , तो उन्हें जमाने के लिए ऐसे stingers को भी समय समय पर प्रोत्साहित तो करते ही रहने पड़ेगा, दोस्तो।

हिंदी फिल्मी गीतों जादू.....


बिल्कुल जादू ही दोस्तो, पता नहीं कैसे बांध लेते हैं ये लोगों को दशकों तक.....एक फिल्म जो हिट हो जाती है या एक गाना जो सुपरहिट हो जाता है , क्या वो अपने आप में अजूबा नहीं है।
अभी चंद मिनट पहले मैं हरे रामा हरे कृष्णा का वही सुपर-डुपर गीत सुन कर झूम रहा था......नहीं, नहीं...खुल कर नहीं, इतनी मेरे जैसे बुझदिल की कहां हिम्मत, इसलिए केवल मन ही मन झूम रहा था और इसे लिखने वाले, इसे गाने वाले, इसे संगीत देने वाले, इसे फिल्म में फिल्माने वाले , इस में सहयोग देने वाले सैंकड़ों लोगों --स्पाट ब्वाय तक और उस सारे यूनिट को बारबार चाय पिला पिला कर चुस्त -दुरूस्ट रखने वाले किसी गुमनाम माई के लाल की दाद दिए बिना न रह सका। यही सोच रहा था जब कोई महान कृति बन कर हमारे सामने आती है तो हमें उस को बनाने के पीछे हर उस गुमनाम बंदे के प्रति नतमस्तकहोनाही चाहिए जिस की भी उस में भूमिका रही।
दोस्तो, यह हिंदी फिल्मों का , हिंदी फिल्मी गानों का भी हमारी लाइफ में कितना बड़ा रोल है, मैं इस के बारे में अकसर बड़ा सोचता हूं । पता है ऐसा क्यों है....क्योंकि ये हमारी सभी भावनाओं को दर्शाती हैं...ज़रा आप यह सोच कर देखिए कि हमारी कौन सी मानसिक स्थिति है जो इन फिल्मों में चित्रित नहीं है, तभी तो हमें दिन में कईं बार ये फिल्मे, इन के गोल्डन गाने याद आते रहते हैं, रास्ता दिखाते रहते हैं।
दोस्तो, क्या कोई भी बंदा जिस को रोटी फिल्म का वह गीत याद है कि .......जिस ने पाप न किया हो, जो पापी न हो, .....वो ही पहला पत्थर मारे......और किस तरह फिल्म में दिखाई गई सारी पब्लिक उस तिरस्कृत महिला को मारने के लिए सारे पत्थर नीचे फैंक देती है.....क्या ऐसा बंदा जिस की स्मृति में यह गाना घर चुका है, क्या वह बंदा किसे के ऊपर कोई अत्याचार कर सकता है, मैं तो समझता हूं ...कभी नहीं, और अगर वोह करता भी है तो मेरी नज़र में बेहद घटिया हरकत करता है।
दोस्तो, फिल्में हमें रास्ता दिखाने में आखिर कहां चूकती हैं.। जिस गाने की मैं पहले चर्चा कर रहा था , हरे रामा हरे कृष्णा फिलम के गीत की......उसमें केवल आप हिप्पीयों को ही न देखें, उस की कुछ लाइनें ये भी हैं.....
गोरे हों या काले,
अपने हैं सारे,
यहां कोई नहीं गैर......
और, हम कितनी दशकों से यह सब सुन रहे हैं, क्या हम ने ज़ीनत अमान जी की इस बात के बारे में भी कभी सोचने की कोशिश की..........लगता तो नहीं , अगर ऐसा होता तो, परसों रात को आजतक चैनल पर आसाम में आदिवासियों पर हो रहे घोर अत्याचार की तस्वीरें देख कर मेरे का शरमसार न होना पड़ता.....दोस्तो, उन खुदा के बंदों को रूईँ की तरह पीटा जा रहा था.....अच्छा , तो दोस्तो, अब यहां थोड़ा सा विराम लेता हूं क्योंकि मुझे भी तो एक हिंदोस्तानी होने के नाते शरम से सिर मुझे भी तो घोर शर्मिंदगी से अपने सिर झुकाने की रस्म-अदायिगी करनी है। आप क्या सोच रहे हैं.....इतना मत सोचा करो.... तकलीफ़ हो जाएगी, दोस्तो। मेरा क्या है, मैं तो थोडा़ आदत से मजबूर हूं।

गुरुवार, 17 जनवरी 2008

बच्चों को क्या ऐसा खाया-पीया लग पाएगा ?

खाते-पीते बच्चों में खाने पीने की ही त्रासदी...........
अच्छे खाते-पीते घरों के बच्चों द्वारा खाए जाने वाली उन की मनपसंद विभिन्न वस्तुओं की कैलोरी वैल्यू कोजोड़-जोड़ कर उन के मम्मी-डैडी अकसर थोड़ा सुकून हासिल कर लेते हैं कि चलो, लाडले ने कुछ खायातो......लेकिन अफसोस तो इसी बात का ही है कि आज कल अधिकांश बच्चों में यह मांग अधिकतर चाकलेट, तरहतरह की कोल्ड-ड्रिंक्स, फलों के रस के नाम पर मिल रहे बढ़िया पैकिंग वाले खट्टे-मीठे जूसों,नूडल्स,चिप्स, बिस्कुट, बर्गर, भुजिया, केक-पेस्ट्री आदि जंक-फू़ड्स से ही पूरी होने लगी है

दोस्तो, बात जो सोचने वाली है वह यह है कि अगर केवल शरीर की कैलोरी मांग का ख्याल रखना ही इतना जरूरीहोता तो वह तो कोई भी 10-12 वर्ष की आयु का बच्चा दिन में दो चाकलेट और दो पैकेट बिस्कुट खा कर भी तो पूरीकर सकता है, लेकिन ऐसे में कहां से आएगी पौष्टिकता....ऐसा सब कुछ खाने पर कहां से आयेगी इन बच्चों केचेहरों पर रौनक, शरीर कैसे पल्लवित होगा ( हां, फूल कर कुप्पा जरूर हो जाएगा), कैसे बढ़ेगास्टेमिना-चुस्तीलापना-फुर्तीलापनयह भी एक तरह का कुपोषण ही है। ( This is another type of malnutrition only which is seen in these children). एक बात मेरे ध्यान में रही है चाहे पोषण ज्यादा होऔर चाहे कम हो---है तो दोनों ही कुपोषणयही कारण है कि हम डाक्टर लोग बार बार संतुलित आहार लेने की हीबात दोहराते रहते हैं

विडंबना देखिएजिस वर्ग को हम शायद जरूरत से थोड़ा ज्यादा ही पढ़-लिख बैठे लोग निम्न वर्ग कहते हैं, उन के बच्चों में कैलोरी की मांग पूरी होती है काफी हद तक सीधे-सादे, स्वास्थ्यवर्द्धक एक दम देसी हिंदोस्तानी खाने से ----वही दाल, रोटी, साग, सब्जी से !!--- उस बच्चे के सामने इसे खाने के इलावा कोई विकल्प है भी नहीं---खाना है तो खायो, वरना कल तक हवा ही खानी पड़ेगीयही बात उस बच्चे के लिए वरदान है क्योंकि दुनिया के बेशकीमती महंगे से महंगे टानिक भी इस देसी खाने के आगे टिक नहीं पाते---- शायद कुदरत का संतुलन बनाए रखने का यह अपना ही अनूठा ढंग हैयह बिल्कुल अंदर की बात है....एक तरह से ट्रेड-सीक्रेट....इसलिए इस पर शत-प्रतिशत विश्वास कर लेना

संतुलित आहार में सारे आवश्यक पौष्टिक तत्व उचित मात्रा और अनुपात में होते हैंसंतुलित आहार में हमें दोप्रकार के पौष्टिक तत्वों का ध्यान रखना चाहिएएक तो वे तत्व हैं जो ऊर्जा देते हैं और दूसरे वे हैं जो ऊर्जा नहींदेते हैं, बल्कि कुछ और काम करते हैंहम अभी इन दोनों तत्वों के बारे में बात करते हैं
ऊर्जा देने वाले तत्व तीन हैं---कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीनइन तीनों को मिला कर हमारे शरीर को पर्याप्त ऊर्जामिलनी चाहिएहमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट अन्य पौष्टिक तत्वों के साथ अनाज और दालों के रूप में हमें प्राप्तहोता हैआलू और केला भी इस के महत्वपूर्ण स्रोत हैंकार्बोहाइड्रेट शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं और यही इनकामुख्य कार्य हैप्रोटीन भोजन के नाइट्रोजन-युक्त तत्व हैं

उच्च श्रेणी का प्रोटीन प्राप्त करने के लिए मांस खाना आवश्यक नहीं हैशाकाहारी लोग इसे दूध और दही से प्राप्तकर सकते हैं और सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि अनाज और दालों के मिश्रण से भी उच्च श्रेणी का प्रोटीन मिलसकता हैअनाज (गेहूं, चावल,बाजरा, ज्वार आदि) हमारा प्रमुख भोजन है और दालें तो इस का एक महत्वपूर्णअंग है
मजे की बात तो यह है कि यह तथ्य प्राचीन सभ्यताओं ने संभवतः अनुभव से जान लिया थाअपने देश के उत्तरी भागों में दाल-रोटी, दक्षिणी भागों में सांभर-चावल, चीन में सोयाबीन और चावल और दक्षिण अमेरिका में मकई और लोबिया का मिश्रण आदिकाल से प्रचलित है

घी और तेल वसा के स्रोत हैंउनका प्रयोग अनिवार्य नहीं हैशरीर को वसा की जितनी न्यूनतम मात्रा चाहिए, उतनी वसा तो अनाज और दालों में भी होती हैयदि हम आवश्यकता से अधिक ऊर्जा लेंगे ---वह कार्बोहाइड्रेट केरूप में हो या प्रोटीन के रूप में ...वह शरीर में वसा के रूप में इकट्ठी हो जाती है

अब बात करते हैं उन तत्वों की जो ऊर्जा नहीं देते अर्थात् अपाच्य तत्व, विटामिन, खनिज तत्व और जल जोसंतुलित आहार का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा हैंअपाच्य तत्वों का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत साबुत अनाज औरदालें हैंमोटे आटे में और जिस आटे से चोकर निकाला गया हो, सेला चावल और साबुत दालों में ये अपाच्य तत्वअधिक मिलते हैंअपाच्य तत्व आंतों में पहुंचकर पानी को चूस लेते हैं और मल को नर्म करते हैंअपाच्य होतेहुए भी इन का स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव हैअनाज, दालें और हरी सब्जियां मिलकर हमें ऊर्जा प्रदान करने वालेऔर ऊर्जा प्रदान करने वाले, दोनों ही प्रकार के तत्व पर्याप्त मात्रा में देते हैं
विटामिन भोजन में बहुत थोड़ी मात्रा में होते हैंहमें उनकी आवश्यकता भी थोड़ी ही मात्रा में होती है, परंतु इस कामहत्व बहुत बड़ा हैविटामिन हमें चाहे ऊर्जा नहीं देते परंतु ये हमारे शरीर को दूसरे खाध्य तत्वों- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा को इस्तेमाल करने में सहायता करते हैं

खनिज पदार्थों की आवश्यकता, विटामनों की तरह,बहुत कम होती है और ये भी ऊर्जा नहीं देतेलेकिन शरीर मेंकईँ प्रकार की अहम भूमिकाएं इन के द्वारा निभाई जाती हैं जैसे कि लोह (iron) रक्त की लाल कोशिकाएं बनाने केलिए आवश्यक है, कैल्शियम दांतों और हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए, आयोडीन थाइराइड ग्लैंड के ठीक ठाककाम करने के लिए आवश्यक है
विटामिन और खनिज तत्व पर्याप्त मात्रा में पाने के लिए हरी सब्जियां और फल लेना बहुत ज़रूरी हैयही बच्चों केआहार की सबसे बड़ी कमी है कि वे सब्जियां एक तो वैसे ही बहुत कम खाते हैं और ऊपर से हम सब्जियों कोपकाते समय उनके कुछ विटामिन भी नष्ट कर देते हैं

फलों और सब्जियों में मुख्य अंतर यह है कि फलों को कच्चा ही खाया जाता है- इसलिए उन के विटामिनों औरखनिज तत्व नष्ट नहीं होतेइस दृष्टि से तो कच्ची खाई जाने वाली सब्जियां जैसे कि गाजर, टमाटर, खीरा, ककड़ी, मूली इत्यादि फलों के समान ही हैं

फलों के गुण उनके विटामिन और खनिज तत्वों पर निर्भऱ करते हैंप्रायः फलों के गुणों और उन के मूल्य में कोईसंबंध नहीं होता, इसलिए महंगे फल स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक नहीं हैंयदि सस्ते फल और कच्ची हरीसब्जियां पर्याप्त मात्रा में ली जाएं तो हमें पर्याप्त विटामिन और खनिज तत्व मिल जाते हैं

बात बहुत लंबी हो गई है...लंबी ही नहीं..बहुत लंबी हो गई ...लेकिन क्या करें पाठ ही कुछ ऐसा था जो हम दूसरीकक्षा से आजतक पढ़ते चले रहे हैं लेकिन इस से संबंध केवल पढ़ने तक ही रखते हैं, गुढ़ते नहीं हैंदोस्तो, please don’t mind….I am also sailing in the same boat…and sometimes take a lot of liberty with junk food……लेकिन मुझे इस समय मेरे गुरूजी परम पूज्यनीय ऋषि प्रभाकर जी की बात याद गई कि तुमजितनी बार किसी दूसरे को कोई बात कहते हो उतनी बार तुम स्वयं अपने आप को भी वह बात कह रहे होते होइसलिए आज से मैं स्वयं भी एक बार फिर इन खाने-पीने की बातों का और भी ज्यादा ध्यान रखूंगा
मुख्य बिंदु यही है कि प्रकृति हमें भोजन जिस रूप में देती है वही रूप उत्तम होता हैआधुनिकता के नाम पर हमचाहे जितनी भी लंबी अंधाधुंध दौड़ कर हांफ लें, फास्टफूड और तरह तरह के जंक फूड के फ़ज़लो-करम से शरीरपर जगह जगह जमीं चर्बी कम करने के लिए किसी बहुत बड़े हाई-फाई स्लिमिंग सैंटर में अंग्रेज़ी कसरत कर रहेहोंगे तो दूर विविध भारती पर अपने रेडियोनामा वाले यूसूफ भाई द्वारा चलाया गया गाना हमें चिढ़ा रहा होगा.....
दाल रोटी खाओ-----प्रभु के गुण गाओ

Really, friends,it is same simple as that….but we are hell bent on making it complex by doing all sorts of things against Mother Nature…….अभी भी सुधर जाएं...अभी भी वक्त है......Tomorrow it may be too late !!!

Good luck, friends, take care !!

छाती में जलन --------आधुनिकता की अंधी दौड़ की देन !


कल ऐसे ही बैठे-बैठे मैंने अपने साथ काम करने वाले एक अन्य डाक्टर से मैंने यह पूछा कि उस ने कितनी बार यह एसिडिटि ( छाती में जलन) खत्म करने वाली गोलियां अथवा कैप्सूल खाए हैं। कभी भी नहीं”- उस का यह जवाब सुन के मुझे कोई ज्यादा हैरानी हुई क्योंकि मुझे भी अभी तक शायद 3-4 बार ही ऐसा कैप्सूल खाने की ज़रूरत पडी होगी। सोचने की बात तो बस यही है कि रोज़ाना ऐसे बीसियों मरीज़ फिर क्यों मिलते हैं जिन्हें छाती में जलन पर काबू पाने के लिए यह कैप्सूल एवं गोलियां सुबह-सुबह ही चाहिए होती हैं।

अकसर इन मरीज़ों को यही सलाह दी जाती है कि उन को इस जलन को ठंडा करने के साथ ही साथ इस की जड़, इस की उत्पति की तरफ भी तो देखने की ज़रूरत है ताकि इस समस्या को जड़ ही से खत्म किया जा सके। इन गोलियों, कैप्सूलों एवं पीने वाली दवाईयों ने तो बस छाती में उस दिन दहक रही आग को ही शांत करना है यह तो बिल्कुल एक टैम्परेरी सा ही काम हुया। लेकिन अपने लोगों की इस टैम्परेरी काम चलाने की आदत ने ही इन दवाईयों को बनाने वाली कंपनियों के सितारों बुलंद किए हुए हैं। इन दवाईयों का तो दोस्तो इस्तेमाल कुछ इतना ज्यादा है कि ऐसे लगता कि जैसे कुछ लोगों ने तो इन को अपने आहार का हिस्सा ही बना लिया है भय तो बस यही है कि कहीं आने वाले समय में इन का इस्तेमाल भी इस माडर्न सोसायटी का एक स्टेटस-सिंबल ही बन कर रह जाए।

ऐसे सभी मरीज़ों को जब मिर्ची खाने से रोका जाता है तो वे अकसर यही कर देते हैं कि दाल-सब्जी के स्वाद के लिए थोड़ी मिर्ची तो खानी ही पड़ती है न।---इसी लिए ये छाती में जलन से निजात पाने के लिए आप को कैपसूल-गोलियां भी रोज़ाना खानी ही पड़ती हैं। जी हां, इस मिर्ची का छाती में होने वाली जलन से बहुत गहरा रिश्ता है। कईं लोग तो ऐसा सोचते हैं कि हरी मिर्ची तो छाती में जलन से परेशान रहने वाले मरीज भी खा ही सकते हैं --- बिल्कुल नहीं, अगर कभी-कभार आप ने हरी मिर्च खानी भी है तो वही खाएं जो बिल्कुल भी तीखी हो.....लेकिन, हां, आप काली मिर्च को इस्तेमाल कर सकते हैं।

आप सब ने यह तो नोटिस किया ही होगा कि इस छाती में जलन के लिए पहले लोग अकसर मीठे सोडे ( बेकिंग सोडा) के एक चम्मच को पानी में घोल कर पी लिया करते थे। है तो वह भी एक बिल्कुल डंग-टपाऊ ( temporary relief) फार्मूला बिल्कुल जलती आग बुझाने जैसे। फिर आईं इस एसिड को खत्म करने वाली गोलियां और पीने वाली शीशीयां जिन का इस्तेमाल पूरे जोरों शोरों से हुया। अब तो दोस्तो इस काम के लिए मिलने वाले तरह-तरह के कैप्सूल लोगों को इतने प्यारे हो गये हैं कि अनपढ़ बंदे को भी इन के अंग्रेज़ी नाम अच्छी तरह से याद हैं।

इन दवाईयों ती तरफ मुंह करने से पहले हमें कुछ बातों की तरफ़ ज़रूर ध्यान देना चाहिए। मिर्ची के इस्तेमाल की बात तो हम ने पहले ही कर ली है, लेकिन दिन में बार-बार चाय पीने वालों में, मद्यपान करने वालों में, मैदे (refined flour) का ज्यादा इस्तेमाल करने वालों में, ज्यादा चिकनाई (fats) , जंक-फूड खाने वालों में, ज्यादा मिठाईयां खाने वालों में, रात को ठूस ठूस कर खाना खाने वालों में तथा सारा दिन बैठे रहने वालों में यह छाती में जलन की तकलीफ बहुत ही आम बात है। एक तरह से देखा जाए तो यह हमारी खुद की ही मोल ली बीमारी है। दोस्तो, इस से बचने के लिए मैदे-जैसे सफेद आटे से बनी हुईं रबड़ जैसी चपातियों से भी बचने की जरूरत है।

जो लोग अकसर ज्यादा तनावग्रस्त हैं, उन में भी यह एसिडिटी की समस्या तो अकसर रहती ही है। तनाव को दूर रखने का तो सब से बढ़िया तरीका तो यही है कि रोज सवेरे 30-40मिनट तेज-तेज सैर की जाए। यह तो सारे शरीर को तंदरूस्त रखने के साथ-साथ हमारे मन को भी प्रसन्नचित रखती है। तनाव को दूर रखने के लिए मैडीटेशन का भी बहुत ही ज्यादा रोल है। रात में सोने से पहले कम से कम दो-तीन घंटे पहले खाना खा लेना ज़रूरी है और रात में खाने के बाद भी थोड़ा टहलना ज़रूरी है।

दोस्तो, विवाह-शादियों, पार्टियों में भी अकसर देखा जाता है कि खाने-पीने के सभी स्टालों पर दौड़ सी लगी होती है। बारात के आने से पहले ही भूख को अच्छी तरह से चमकाने के लिए गोल-गप्पे, चाट-पापड़ियां, टिक्कीयां, नूडल, पाव-भाजी, फ्रूट-चाट और फिर कोफते, शाही पनीर, दही-भल्लों एवं दाल-मक्खनी के साथ तीन-चार नान का जश्न मनाने की ललक और इस सब के बाद गुलाब-जामुन, गाजर के हलवे, मूंग के दाल के हलवे और साथ ही साथ एक ही प्लेट में एक साथ डाली गईं आईसक्रीम-जलेबियों की शामत सी जाती है---- आखिर कैसे रह जाए कोई भी स्टाल हमारी नज़र से बच कर ??--- लेकिन बस उस दिन रात में छाती में जलन की तो क्या, शायद उल्टियों की तैयारी पूरी हो गई।

दोस्तो, कभी कभार अगर थोड़ी बहुत बदपरहेज़ी करने की वजह से छाती में जो जलन सी महसूस होती है उस को तुरंत ठीक करने का एक सुपरहिट घरेलू नुस्खा यही है कि फ्रिज में रखे ठंडे दूध के दो-चार घूंट पी लें---उसी समय आराम मिल जाता है। अपने आप ही छाती में जलन के लिए गोलियां-कैप्सूल खाते रहना बिल्कुल उचित नहीं है। अगर आप बार-बार होने वाली छाती की जलन से परेशान हैं तो अपने क्वालीफाइड डाक्टर से मिलें--- अगर वह कोई दवाईयां लेने की सलाह देता है तो वह आप ज़रूर लें और इससे शायद कहीं ज्यादा जरूरी है कि जो भी परहेज बताया गया है, वह भी बात पूरी तरह से मान लें।

डाक्टर के पास इस छाती में जलन वाली तकलीफ के लिए जाने से पहले आप एक बार यह जरूर देख लें कि क्या आप का खाना-पीना ठीक है, जीवन-शैली ठीक है, क्या आप पूरी नींद लेते हैं.....अगर यह सब कुछ ठीक होने के बावजूद भी आप को अकसर छाती में जलन रहती है तो फिर आप को अपने डाक्टर से मिलना ज़रूरी है। वह फिर आप का पूरा निरीक्षण करेगा, क्या पता किसी बंदे के पेट में छोटा-मोटा ज़ख्म (peptic ulcer) ही हो जो जीवन-शैली में किसी भी तरह का परिवर्तन किए बिना इन कैप्सूल-टेबलैट्स से थोड़ा बहुत दब तो जाता हो लेकिन पता नहीं सही सलाह के बिना वह कब फूट पड़े, क्या पता किसी महिला को पित्ते की पथरीयों की वजह से यह शिकायत रहती हो, या फिर क्या पता किसी बंदे में उस के शरीर में शराब से होने वाले दुष्परिणामों का घड़ा ही भर चुका हो जिस की वजह से वह छाती की जलन से परेशान हो। इस सब की एक विशेषज्ञ चिकित्सक से जांच होनी जरूरी है।

दोस्तो, बहुत सारे लोगों में केवल अपनी जुबान के ऊपर थोड़ा कंट्रोल कर लेने मात्र से ही यह छाती की जलन उड़न-छू हो जाती है। वैसे बात यह है भी सोचने वाली की केवल अपनी जिह्वा के स्वाद के लिए हम इतनी तकलीफ़ सहते रहें....क्या यह ठीक है !!

इस ब्लाग की अगली पोस्टों को किन विषयों को देखना चाहेंगे, अगर हो सके तो बताने का कष्ट करें। धन्यवाद !