शनिवार, 31 जनवरी 2009

चमड़ी को चमड़ा बनने से पहले --- पानमसाले को तो अभी से ही थूकना होगा !!


हमारा धोबी नत्थू अकसर मुझे जब यह कहता है कि वह तो पिछले 20 साल से ज़र्दे-धूम्रपान का सेवन कर रहा है लेकिन उसे किसी प्रकार की बीमारी नहीं है, यहां तक की कभी कब्ज की शिकायत भी नहीं हुई ----यह सुन कर मुझे यह लगता है कि वह मुझे मुंह चिढ़ा रहा हो कि देखो, हम तो सब कुछ खा पी रहे हैं लेकिन फिर भी हैं एक दम फिट !!

वैसे मुझे वह क्या चिढ़ायेगा ---लेकिन इसे पढ़ कर कहीं आप भी यह मत सोच लें कि ज़र्दा-धूम्रपान उस के लिये घातक नहीं है। ज़र्दा-धूम्रपान से होने वाले नुकसान शुरू शुरू में महसूस नहीं होते हैं –इन का पता तभी चलता है जब कोई लाइलाज बीमारी जकड़ लेती है। लेकिन यह पता नहीं कि किसी व्यक्ति को यह लाइलाज रोग 5 वर्ष ज़र्दा-धूम्रपान के सेवन पर होगा या 50 वर्ष के इस्तेमाल करने के बाद !!

इसे समझने के लिये एक उदाहरण देखिये --- अपने मकान के पिछवाड़े में बार बार भरने वाले बरसात के पानी को यदि आप ना देख पायें तो नींव में जाने वाले इस पानी के खतरे का अहसास आपको नहीं होगा। उसका पता तभी चलेगा जब इससे मकान की दीवार में दरार आ जाए या मकान ही गिर जाए ---लेकिन तब तक अकसर बहुत देर हो चुकी होती है। ज़र्दा-धूम्रपान का इस्तेमाल एक प्रकार से बार-बार पिछवाड़े में भरने वाले पानी के समान है।

आज मेरे पास लगभग बीस वर्ष का युवक आया ----आया तो था वह मुंह में किसी गांठ को दिखाने के लिये ---लेकिन मुझे उस का मुंह देख कर लगा इस ने तो खूब पान-मसाला खाया लगता है। पूछने पर उसने बताया कि डेढ़-दो साल पहले इस पानमसाले के एक पैकेट को रोज़ाना खाना शूरू किया था और पिछले तीन महीने से छोड़ रखा है--- ( लगभग सभी मरीज़ यही कहते हैं कि कुछ दिन पहले ही बिल्कुल छोड़ दिया है !!) –उस नवयुवक के मुंह की चमड़ी बिलकुल चमड़े जैसी बन चुकी थी --- और चमड़ा भी बिलकुल वैसा जैसा पुराना चमड़ा होता है ---अपने जिस शूज़ को आप छःमहीने तक नहीं पहनते जिस तरह से उस का चमड़ा सूख जाता है, बिलकुल वैसी ही लग रही थी उस के मुंह की चमड़ी ---- उस से मुंह पूरा खोले ही नहीं बन पा रहा था । इस अवस्था को कहते हैं ----ओरल सबम्यूकसफाईब्रोसिस (Oral submucous fibrosis)---- यह पानमसाला सादा या ज़र्देवाला खाने से हो सकती है और इसे मुंह के कैंसर की पूर्व-अवस्था कहा जाता है (Oral precancerous lesion of the oral cavity) .

कृपया इसे ध्यान से पढ़िये ---- मुंह की कोमल त्वचा (Oral mucous membrane) के साथ तंबाकू, चूना, सुपारी आदि का सतत संसर्ग बड़े भयंकर परिणाम ले आता है । मुंह की त्वचा द्वारा रक्त में घुलता निकोटीन ( nicotine) तो अपने हिस्से का काम करता ही है , लेकिन इन वस्तुओं का सतत संपर्क मुंह की कोमल त्वचा के ऊपर की पर्त को इतना ज़्यादा नुकसान पहुंचाता है कि धीरे धीरे यह कोमल त्वचा अपना मुलायमपन (smoothness), चमकीलापन (luster), और लचक (elasticity) खो देती है।
लार-ग्रंथि (salivary gland) को हानि पहुंचने से लार कम हो जाती है और मुंह सूखा रहता है। स्वाद परखने वाली ग्रंथियां (taste buds) भी कुंठित हो जाती हैं और प्रकृति की जिस अद्भुत रचना से मानव नाना प्रकार के भिन्न भिन्न स्वादों को परख पाता है, वे निक्म्मी हो जाती हैं।

इस के फलस्वरूप मुंह की त्वचा सूखी, खुरदरी, झुर्रीदार बन जाती है और उस की निचली पर्त में भी अनेकानेक परिवर्तन होने लगते हैं। ऐसे मरीज़ों का मुंह खुलना धीरे धीरे बंद हो जाता है जैसा कि मुझे आज मिले इस मरीज़ का हाल था। गरम,ठंडा,तीखा, खट्टा सहन करने की क्षमता बहुत ही कम हो जाती है। इसी स्थिति को ही सब-म्यूक्स फाईब्रोसिस (Submucous fibrosis) कहा जाता है और यह मुंह में होने वाले कैंसर की एक खतरे की घंटी के बराबर है। ऐसे व्यक्ति को तुरंत पान-मसाले, गुटखे, ज़र्दे वाली लत छोड़ कर अपने दंत-चिकित्सक से बिना किसी देरी के मिलना चाहिये क्योंकि ऐसे व्यक्तियों में भविष्य में मुंह का कैंसर हो जाने की आशंका होती है। इसीलिये इन सब को ---पानमसाले को भी ----हमेशा के लिये आज ही इसे थूक देने में समझदारी है।

संक्षेप में कहें तो इस तरह के सब पदार्थ केवल लोगों की सेहत के साथ घिनौना खिलवाड़ ही कर रहे हैं ---ध्यान आ रहा है कि पिछले हफ्ते ही एक नवयुवक जिस की उम्र भी लगभग 20-22 की ही होगी के मुंह में देखने पर पाया कि उस के मुंह में ओरल-ल्यूकोप्लेकिया है --- ( यह भी मुंह के कैंसर की एक पूर्व-अवस्था ही है ) लेकिन इस उम्र में मैंने पहले यह अवस्था पहले कभी नहीं देखी थी ---अकसर 35-40 साल के आसपास ही मैंने इस तरह के ल्यूकोप्लेकिया के केस देखे थे ---वह युवक कुछ सालों से ज़र्दे का सेवन करता था। ध्यान इस बात का भी आ रहा है कि कुछ हानिकारक पदार्थ जो इन में पड़े होते हैं उन का हमें पता है लेकिन उन पदार्थों का हमें कैसे पता चलेगा जिन के बारे में तो पैकेट के ऊपर भी कुछ नहीं लिखा होता लेकिन अकसर मीडिया में इन हानिकारक तत्वों की भी पोल खुलती रहती है।

चलो, यार, इधर ब्रेक लगाते हैं ----ताकि इस समय पान मसाला चबा रहे अपने बंधु , इसे थूक कर ( सदा,सदा के लिये !!) , अच्छी तरह कुल्ला करने के बाद तरोताज़ा होकर नेट पर वापिस लौटें और फिलहाल चुपचाप इस सुपरहिट गाने से ही काम चला लिया जाए।

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

आज एक पुराने पाठ को ही दोहरा लेते हैं !

सीख कबाब आप के शहर में भी खूब चलते होंगे---लेकिन इसे जानने के बाद शायद आप कभी भी उस तरफ़ का रूख ही न करना चाहेंगे --- ब्रिटेन के विभिन्न शहरों में बिकने वाले लगभग 500 कबाबों के अध्ययन करने से यह पता चला है कि इन में इतनी वसा, इतना नमक और इस तरह का मांस होता( shocking level of fat, salt and mystery meat !) है कि इसे जान कर आप भी हैरान-परेशान हुये बिना रह न पायेंगे।

जब कोई व्यक्ति कबाब खाता है तो समझ लीजिये उसे खाकर वह अपने दिन भर की नमक की ज़रूरत का 98प्रतिशत खाने के साथ साथ लगभग एक हज़ार कैलोरीज़ खपा लेता है। कहने का मतलब कि एक महिला को सारे दिन में जितनी कैलोरीज़ लेने की ज़रूरत है , उस का आधा भाग तो एक कबाब ने ही पूरा कर दिया। कबाब खा लेने से दैनिक सैचुरेटेड फैट की मात्रा का डेढ़ गुणा भी निगल लिया ही जाता है। कुछ ऐसे कबाब हैं जिन में लगभग दो हज़ार कैलोरीज़ का खजाना दबा होता है।

चिंता की बात यह भी तो है कि इन में से बहुत से कबाब तो ऐसे पाये गये जिन्हें बनाने के लिये वह मांस इस्तेमाल ही नहीं किया गया था जिस का नाम इंग्रिडिऐंट्स में लिखा गjया था। ज़रूरी नहीं कि कुछ भी सीखने के लिये सारे तजुर्बे खुद ही किये जाएं ----दूसरों के अनुभव से भी तो हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। और यहां इस अध्ययन से हम यह सीख क्यों न ले लें कि अगर ब्रिटेन में यह सब हो रहा है तो अपने यहां क्या क्या नहीं हो रहा होगा ? -----यह सोच कर भी हफ्तों पहले खाये कबाब की मात्र याद आने से ही उल्टी जैसा होने लगे तो कोई बड़ी बात नहीं है !!

ऊपर लिखी नमक वाली बात से तो मैं भी सकते में आ गया हूं –इस समय ध्यान आ रहा है कि यह नमक हमारी सेहत के लिये इतना जबरदस्त विलेन है लेकिन हम हैं कि किसी की सुनने को तैयार ही नहीं है, बस अपनी मस्ती में इस का अंधाधुंध इस्तेमाल किये जा रहे हैं -----जिस की वजह से उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोग के चक्कर में फंसते चले जा रहे हैं।

नमक के बारे में अमेरिका में लोग कितने सजग हैं कि न्यू-यार्क सिटी में विभिन्न रेस्टरां, बेकरर्ज़, होटलों आदि को कह दिया गया है कि नमक के इस्तेमाल में 25 फीसदी की कटौती तो अभी कर लो, और 25 फीसदी की कटौती का लक्ष्य अगले दस साल के लिये रखो---- क्योंकि यह अनुमान है कि इस 50फीसदी नमक की कटौती से ही हर साल लगभग डेढ़ सौ अमेरिकियों की जान बचाई जा सकती है।

और जिन वस्तुओं में नमक कम करने की बात इस समय हो रही है उन में पनीर, बेक्र-फॉस्ट सीरियल्ज़, मैकरोनी, नूडल्स, केक, मसाले एवं सूप आदि शामिल हैं ---- ( cheese, breakfast cereals, bread, macaroni, noodle products, condiments, soups) .

न्यूयार्क सिटी बहुत से मामलों में सारे विश्व के लिये एक मिसाल सामने रखता है ---पहले वहां पर विभिन्न रेस्टरां में ट्रांस-फैट्स के इस्तेमाल पर रोक लगी , फिर हाल ही में वहां पर होटलों के मीनू-कार्डों पर बेची जाने वाली वस्तुओं के नाम के आगे उन में मौज़ूद कैलोरीज़ का ब्यौरा दिया जाने लगा और अब इस नमक को कम करने की मुहिम चल पड़ी है। इस से हमें भी काफ़ी सीख मिलती है – इतना कुछ तो सरकार किये जा रही है ---और किसी के घर आकर नमकदानी चैक करने से तो रही !!

हमें बार बार सचेत किया जा रहा है कि नमक एक ऐसा मौन हत्यारा है जिसे हम अकसर भूले रहते हैं। इसी भूल के चक्कर में बहुत बार उच्च रक्तचाप का शिकार हो जाते हैं, गुर्दे नष्ट करवा बैठते हैं, दिल के मरीज़ हो जाते हैं और कईं बार यही मस्तिष्क में रक्त-स्राव ( stroke) का कारण भी यही होता है। सन् 2000 में एक सर्वे हुआ था कि अमेरिका में पुरूष अपनी दैनिक ज़रूरत से दोगुना और महिलायें लगभग 70 फीसदी ज़्यादा नमक का इस्तेमाल करते हैं और इस के दुष्परिणाम रोज़ाना हमारे सामने आते रहते हैं, लेकिन फिर भी पता नहीं हम क्यों समझने का नाम ही नहीं ले रहे , आखिर किस बात की इंतज़ार हो रही है ?

एक बार फिर से उस पुराने पाठ को याद रखियेगा कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 2300मिलिग्राम सोडियम से ज़्यादा सोडियम इस्तेमाल नहीं करना चाहिये ---इस 2300 मिलिग्राम सोडियम का मतलब है कि सारे दिन में एक चाये वाले चम्मच से ज़्यादा खाया गया नमक तबाही ही करता है ------हाई-ब्लड प्रैशर, हृदय रोग से बचना है तो और बातों के साथ साथ यह नमक वाली बात भी माननी ही होगी------ इस खामोश हत्यारे से जितना बच कर रहेंगे उतना ही बेहतर होगा।

यह पुराने पाठ को दोहरा लेने वाली बात कैसी रही ? -- स्कूल में भी जब हम लोग कोई पाठ पढ़ते थे, अपने मास्टर साहब कितने प्यार से उसे दोहरा दिया करते थे ---बाद में हम लोग उसे घर पर दोहरा लिया करते थे और फिर कईं बार टैस्ट से पहले, त्रैमासिक, छःमाही, नौ-माही परीक्षा से पहले सब कुछ बार बार दोहरा करते थे और फिर जब बोर्ड की मैरिट लिस्ट में नाम दिखता था तो क्या जबरदस्त अनुभव होता था , लेकिन जो शागिर्द मास्टर के पढ़ाये पाठ को आत्मसात करने में ढील कर जाते थे उन का क्या हाल होता था , यह भी हम सब जानते ही हैं -------तो फिर उन दिनों की तरह अपनी सेहत के लिये इन छोटी छोटी हैल्थ-टिप्स को नहीं अपने जीवन में उतार लेते ----- आखिर दिक्तत क्या है !! ----मास्टर लोगों की मजबूरी यही है कि कॉरपोरल पनिशमैंट के ऊपर प्रतिबंध लग चुका है , वरना हम लोगों की क्या मजाल कि ..............................!!

बुधवार, 28 जनवरी 2009

चार साल से भी ज़्यादा हो गये हैं टाई पहने हुये ...


जब से अमर उजाला में मेरा यह लेख छपा है –इसे चार साल से भी ज़्यादा हो गये हैं ---मुझे कभी टाई पहनने की इच्छा ही नहीं हुई। अकसर अपने दूसरे साथियों को देख कर जो कभी थोड़ी प्रेरणा मिलती भी है वह इस लेख का ध्यान आते ही छू-मंतर हो जाती है। बस, इसे पढ़ते हुये यह ध्यान दीजियेगा कि यह तो बस मेरी ही आप बीती है ---बस, जगह जगह अपने यार का ज़िक्र करने का केवल एक बहाना ही किया है। उस समय शायद अपने बारे में इतनी बात मानने की भी हिम्मत नहीं थी !!

लेकिन यह शत-प्रतिशत सच है कि यह लेख छपने के बाद एक बार भी टाई नहीं पहनी ----सभी जगह इस के बिना ही काम चला लिया। इसे क्या कहूं ----लेख का असर ? ………………जो भी है, धन्यवाद, अमर उजाला !!

मंगलवार, 27 जनवरी 2009

इन के लुप्त होने का मुझे बहुत दुःख है !!

मैं जब भी 26 जनवरी के राष्ट्रीय महोत्सव में सम्मिलित होता हूं तो एक बात मेरे को बहुत ही ज़्यादा कचोटती है कि इस के माध्यम से वैसे तो हम अपने संविधान की सालगिरह मनाते हैं, जश्न मनाते हैं ------यही संविधान जो हमें सब की बराबरी का सुंदर पाठ पढ़ाता है, यह कहता है कि देश के सब नागरिक एक समान हैं, कोई बड़ा नहीं, कोई छोटा नहीं ---- और यह संविधान प्रत्येक भारतीय को बराबरी का हक दे रहा है, लेकिन अकसर जहां पर ये समारोह चल रहे होते हैं मैं अकसर देखता हूं कि बहुत से लोगों को लड्डू के लिफ़ाफे तो दूर, यारो ,एक दरी भी नसीब नहीं होती ----- कुछ लोग दो-तीन घंटे तक बस चुपचाप खड़े होकर सारे प्रोग्राम का आनंद ले कर चुप चाप घर चले जाते हैं।

और मैं जब ऐसे ही किसी प्रोग्राम में सोफ़े पर बैठा इन सब की तरफ़ नज़र दौड़ाता हूं तो पाता हूं कि इन में से ऐसे भी हैं जो कि उम्र में मेरे से बहुत बड़े हैं, बुजुर्ग हैं ----और यह उन की देश-प्रेम की भावना है कि जो ये इन समारोहों में खिंचे चले आते हैं। और साथ में यह भी सोचता रहता हूं कि क्या मैं सोफ़े पर बैठा इस खड़ी जनता-जनार्दन के किसी भी सदस्य से ज़्यादा बड़ा भारतीय हूं, इन में से किसी से भी ज़्यादा देशभक्त हूं, इन में से किसी से भी किसी भी किस्म से ज़्यादा श्रेष्ठ हूं तो पाता हूं कि ऐसा बिलकुल नहीं है---------यही लोग इसी देश की जान है, संविधान रचे जाने की प्रेरणा है, इन्हीं लोगों के सपने इस संविधान में पड़े हैं, इन की आशायें-उम्मंगें-----सब कुछ इऩ का इसी संविधान में ही है। मैं इन्हें सम्मान पूर्वक कुर्सी जैसी छोटी वस्तु दिलाने की बात सोचता हूं ---- लेकिन अगर यह संविधान ही न होता तो इऩ की क्या हालत होती,यही सोच कर कांप जाता हूं !! जो भी होती , वह तो अलग बात है लेकिन चूंकि अभी तो हम सब भारतीयों की बराबरी का मसीहा ---यह संविधान है ---- तो फिर इन्हें बैठने के लिये कुर्सी नसीब क्यों नहीं होती ? मुझे यह प्रश्न परेशान कर देता है।

और हां, इस तस्वीर में यह जो आप संगीत का यंत्र देख रहे हैं ना, यह गणतंत्र दिवस के समारोह-स्थल के बाहर से लिया गया है ---- कल तो मैं और मेरा बेटा इसे तानपुरा कह कर ही बुलाते रहे, लेकिन आज ध्यान आ रहा है कि यह तो एक-तारा है ---- क्या मैं ठीक कह रहा हूं ?.
मुझे इस तरह के यंत्र देख कर बहुत ही खुशी होती है क्योंकि अपना बचपन याद आ जाता है और इन लुप्त हो रहे यंत्रों से जिन से देश की मिट्टी की खुशबू आती है
और इसे बेचने वाली महान आत्मा की बात ही क्या करें ---- यह फ़िराक दिल इंसान इसे बजाने की कला भी खरीदने वाले हर खरीददार को सिखाये जा रहा है। लेकिन मुझे इस यंत्र होने के धीरे धीरे लुप्त होने के साथ साथ इसे बेचने वाले उस गुमनाम से हिंदोस्तानी की भी फिक्र है क्योंकि मुझे दिख रहा है कि उस की खराब सेहत उस की निश्छल एवं निष्कपट मुस्कुराहट का साथ दे नहीं पा रही है , लेकिन साथ में सब को गणतंत्रदिवस की शुभकामनायें तो कह ही रही हैं। गणतंत्रदिवस के मायने सब के लिये अलग हैं ---इस जैसे हिंदोस्तानियों के लिये शायद यह कि इस दिन उस के ये यंत्र इतने बिक जायेंगे कि अगले पांच दिन बढ़िया निकल जायेंगे। यही सोचता हुआ कि इस महात्मा के बाद इस यंत्र का क्या होगा----कौन करेगा इतनी मेहनत इसे बनाने में, और कौन ही परवाह करेगा इन्हें खरीदने की !! ---बिना किसी विशेष प्रयास के यह वाद्य़ यंत्र भी लुप्त हो कर रह जायेगा---- तभी बेटे को कहता हूं कि चलो, बैठो यार चलते हैं।

गणतंत्र दिवस की आप सब को बहुत बहुत शुभकामनायें। तो, उस उस गुमनाम राही ( जो वह इकतारा बेच रहा था ) के नाम पर यह गीत ही हो जाये ----

सोमवार, 26 जनवरी 2009

आज मुझे इस विज्ञापन की बखिया उधेड़नी ही होगी !

अवार्डों का मौसम है ---विभिन्न कारणों की वजह से लोगों को अवार्ड मिल रहे हैं –मुझे भी लगभग पंद्रह महीने तक हिंदी ब्लॉग लिखने के बाद परसों एक टिप्पणी के रूप में अवार्ड मिला कि मैं आंखे बंद करके एलोपैथी के लिये विज्ञापनीअंदाज़ में लेख लिखता हूं। इस से पिछली पोस्ट पर भी कुछ इस तरह की मिलती जुलती एक टिप्पणी आई थी।

वैसे इस तरह का स्पष्टीकरण देने की ज़रूरत तो है नहीं क्योंकि मैं किसी सेठ का गुलाम तो हूं नहीं कि कोई मुझे यह बताये कि यह लिख और यह मत लिख। वैसे कोई अगर यह कहता भी है तो तुरंत समझ में आ ही जाता है कि लिखने वाला किस भावना से ऐसा आग्रह कर रहा है। अपना तो सीधा सा फंडा है कि जिस बात को लिख कर सिर हल्का सा हो जाये , बस लिख कर छुट्टी की जाये, लेकिन फिर भी स्पष्ट कर ही देना ठीक होगा कि इस विज्ञापनबाजी के चक्कर में मुझे आज तक तो पड़ने की कोई ज़रूरत महसूस ही नहीं हुई। और शुक्र है कि किसी भी चीज की कमी नहीं है , वरना ज़रूरत अविष्कार की जननी है –यह मैं भी अच्छी तरह से जानता हूं।

लेकिन यह टिप्पणी देने वाले का भला हो --- क्योंकि इस विज्ञापनी अंदाज़ वाली बात से यह प्रेरणा मिली कि क्यों न मैं ब्लॉग में कुछ विज्ञापनों की बखिया ही उधेड़ लिया करूं। यह जो विज्ञापन आप यहां देख रहे हैं—इस तरह के कईं विज्ञापन आप को अकसर दिखते रहते हैं और इस तरह के लोशन वगैरा खरीदने के लिये उकसा ही देते हैं।

अकसर ऐसे मरीज़ मिलते हैं जिन से पता चलता है कि उन्होंने अपने दांतों पर बाज़ार से लेकर एक लोशन लगाया ताकि दांत चमक जायें लेकिन दो-चार दिन बाद ही दांत काले पड़ गये और साथ ही दांतों में ठंडा-गर्म लगना शुरू हो गया।

ऐसे एक एक बात गिनाने लगूंगा तो पोस्ट बहुत ही लंबी हो जायेगी—इसलिये एक काम करता हूं कि तरह तरह के लोशनों की हमारे मुंह एवं दांतों के स्वास्थ्य में क्या कोई भूमिका है , इस का विश्लेषण करते हैं ।

अभी तक कोई भी ऐसा लोशन बन कर तैयार नहीं हुआ है जिसे लगाने से दांत में किसी भी रंग का दाग दूर हो जाये -
लोशन के द्वारा यह काम संभव है ही नहीं --- ये दाग वगैरा दूर हो सकते हैं केवल एक प्रशिक्षित डैंटिस्ट के अपना इलाज करवा कर ही । कईं बार तो दांतों की पालिशिंग से ही ये दाग दूर हो जाते हैं। मैंने प्रशिक्षित डैंटिस्ट इसलिये लिखा है क्योंकि ये झोलाछाप अपने आप को दांतों का डाक्टर कहने वाले बशिंदे भी बहुत बार इस तरह के लोशन लोगों के दांतों पर लगा तो देते हैं ---बात में क्या होता है , इस से उन्हें क्या मतलब ? होता दरअसल यह है कि जो ये प्रोडक्ट्स वगैरह ये नीम-हकीम तथाकथित दंत-चिकित्सक इस्तेमाल करते हैं इस में कोई न कोई एसिड ( अमल, तेजाब) जैसी वस्तु पड़ी होती है ,अब आप ही सोचें कि जब इन तरह तरह की बेहद आयुर्वैदिक पदार्थों की आड़ में दांतों पर यह एसिड भी रगड़ा जायेगा तो क्या परिणाम होंगे --- मैं इस तरह के परिणाम अकसर देखता ही रहता हूं।

मसूढ़ों को शक्तिशाली बनाने वाला भी कोई लोशन अभी नहीं बना ---
ये सब गल्त क्लेम हैं, गल्त ही क्या , बेबुनियाद एवं भ्रामक हैं। लेकिन अफ़सोस यही है कि यहां पर लोशन ही नहीं तरह तरह के मंजन जो बसों में , फुटपाथों पर बिकते हैं ...वे भी यह क्लेम करते फिरते हैं। यह संभव ही नहीं है -----ये सब गुमराह करने के रास्ते हैं।

लोशन से दांत, इनामैल सुरक्षित रहेगा ---
इस का जवाब पहले ही दे चुका हूं कि ये लोशन इनामैल की धज्जियां उड़ाते हैं ना कि उसे सुरक्षित रखते हैं।

दांत की पथरी, मुंह से दुर्गंध, ठण्डा पानी या मिठाई खाने पर दांत सिरसिराना, पाइरिया एवं दांत से खून आना इस तरह के लोशन से कभी भी बंद हो ही नहीं सकता
यह कतई संभव है ही नहीं –अगर कोई ऐसी तकलीफ़ है तो डैंटिस्ट से मिल कर उपचार करवाना ही होगा, वरना दंत-रोग अंदर ही अंदर बढ़ता ही रहेगा।
इस तरह के लोशन ही क्यों, हिंदी के अखबारों में या जगह जगह ऐसी पेस्टों के विज्ञापन भी मिल जायेंगे जो कहेंगे कि इस से पॉयरिया ठीक हो जायेगा, मसूड़ों से खून आना ठीक हो जायेगा ---यह सरासर झूठ है, इस पर कभी भी विश्वास न ही करें तो बेहतर होगा – क्वालीफाइड डैंटिस्ट के पास जाये बिना यह कभी भी ( शत-प्रतिशत गारंटी !!) दुरूस्त हो ही नहीं सकता। हां, एक बात हो सकती है कि कुछ समय के लिये दांतों एवं मसूड़ों की कोई अवस्था दब जाये लेकिन इस अवस्था के पीछे जो कारण हैं वे बिल्कुल बरकरार रहते हैं और मज़े से पल्लवित-पुष्पित होते रहते हैं और बीमारी को उग्र रूप देना में योगदान देते हैं।

हिलने वाले दांतों तो मजबूत करने वाला कोई लोशन भी नहीं बना
अकसर यह भी कहा जाता है कि हिलने वालेदांत तो बिठाने के लिये भी पाउडर मिलता है। यह भी सरासर लोगों को च - - बनाने का एक ढंग है लेकिन लोग किसी ठोस प्रामाणिक जानकारी के अभाव में खुशी खुशी बन भी तो रहे हैं। हिलते दांतों के बारे में कुछ विशेष बातें मैं पहले भी लिख चुका हूं।

कहने को तो कोई यह भी कहे कि यार ये जो लोशन वगैरा मिलते हैं इन में तो कपूर, बबूल , माजूफल, लौंग का तेल, नारियल का मूल, दालचीनी, बकुल, अमृत पत्ता ------सब कुछ पड़ा तो हुआ है, सब कुछ आयुर्वैदिक ----भला, यह क्यों इस तरह के लोशन को भला-बुरा कह रहा है—हो न हो, यह मीडिया डाक्टर तो वास्तव में ही आयुर्वेद का धुर विरोधी भी है और किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त भी है।

आयुर्वेद की तारीफ़ मैं किन अल्फाज़ में करूं ---मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं, लेकिन आज कल कईं ऐसे -वैसे निर्मात्ता आयुर्वैदिक के नाम पर लोगों को वही बनाये ( आप समझते हैं क्या, ऊपर आप को हिंट दे तो दिया था !!) जा रहे हैं। वैसे भी मुझे अकसर उन इनग्रिडिऐन्ट्स की चिंता रहती है जिस का ज़िक्र इस तरह की दवाईयों की पैकिंग पर या रैपर पर कभी भी नहीं होता। और लोग यही समझते हैं कि आयुर्वैदिक ही तो है ना, तो सब ठीक ही होगा।

आयुर्वेदिक पद्धति से कोई अपनी किसी भी बीमारी का इलाज करवाना चाहता है तो उसे प्रशिक्षित आयुर्वेद के चिकित्सक के पास जाना ही होगा ----- वे ही इस तरह की दवाईयों के जानकार हैं, वरना झोलाछाप देसी डाक्टर तो इस देश के लगभग हर परिवार में एक-दो होते ही है जो लोकल बस स्टैंड पर खरीदी किसी देसी दवाईयों की किताब से ही अपने फन का सिक्का जमाने की धुन में मस्त हैं।

मुझे डर लगता है जिस तरह से लोग बस में किसी भी तरह के चूर्ण का सैंपल किसी से भी लेकर अपना हाजमा दुरुस्त करने लगते हैं, किस तरह अपने मुंह की बास खत्म करने के लिये किसी मंजन को आजमाने से नहीं चूकते, और तो और किसी से भी आंखों की दवाई डलवाने से भी नहीं चूकते----लेकिन ये सब खतरनाक काम हैं।लेकिन अफ़सोस जिन लोगों को मैं यह बात कहनी चाह रहा हूं उन तक मेरी बात शायद ही कभी पहुंचेगी। फिर भी कर्म किये जाना अपना कर्त्तव्य है।

और जाते जाते उस टिप्पणी का एक बार फिर से धन्यवाद करना चाहूंगा कि मुझे उस से एक नया आइडिया मिला। और रही बात, किसी टिप्पणी के माध्यम से किसी का मनोबल कम करने की बात, तो हम जैसे लोग कहां इस मिट्टी के बने हैं , हम ठहरे ढीठ किस्म के लोग, ऐसी हज़ारों टिप्पणीयों का स्वागत है और यह भी वायदा है कि इन्हें कभी भी डिलीट नहीं करूंगा-------मुझे उस टिप्पणी में यह भी लिखा गया था कि उसे डिलीट कर दूं , वरना मेरे टिप्पणीकारों को बुखार आ जायेगा---- लेकिन अफसोस मैं ऐसा करने के बिल्कुल भी मूड में नही हूं ---बुखार आयेगा तो क्या है , पैरासिटामोल की टेबलेट है ना !!

अभी मुझे ध्यान आ रहा है निठल्ला चिंतन ब्लॉग के तरूण जी का --- उन्होंने मुझे शुरू शुरू में एक बार सचेत भी किया था कि कमैंट-माडरेशन ऑन कर लेनी चाहिये ---- मैंने ऑन की भी थी लेकिन कुछ दिन बाद ही अन्य ब्लागर बंधुओं के अनुरोध पर हटा भी दी थी क्योंकि पता नहीं मैं समझता हूं कि कमैंट-माडरेशन ऑन करना किसी आज़ाद बाशिंदे के मुंह पर पट्टी बांधने के समान है। आज सब तरफ़ आज़ादी की हवा चल रही है ---हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का अधिकार है , है कि नहीं ?

और जाते जाते उस टिप्पणी करने वाले से इतना ज़रूर पूछना चाहूंगा कि मेरी ऐसी कौन सी पोस्टें हैं जहां से उन्हें विज्ञापनबाजी की बास आ रही है , मुझे तो अपनी सभी पोस्टों से सच्चाई की , प्रेम प्यार की, अपनेपन की, सद्भाव की, विश्व-बंधुत्व की खुशबू आ रही है, लेकिन मैं गलत भी हो सकता हूं ---इसलिये अगर अन्य पाठकों को भी ऐसी वैसी बास आ रही हो, तो प्लीज़, बेझिझिक हो कर लिखियेगा, चाहे तो अनॉनीमस ही लिख दीजियेगा-----ताकि इस मीडिया डाक्टर पर बेकार लिखने की माथा-फोड़ी छोड़ कर हम भी नेट पर कोई दूसरी गली पकड़ें जहां पर दो पैसे भी कमायें और रोज़ाना बच्चों के तानों से भी बचें कि क्या हो जायेगा पापा ये सब लिखने से, देख लेना कुछ भी नहीं होगा !!

मैं खुशवंत सिंह जी की बेबाक लेखनी का बहुत प्रशंसक हूं --- पर पता नहीं आज कल उन के लेख दिखते नहीं हैं ---अगर आप को इस का कुछ पता हो कि वे आजकल किस पेपर में छपते हैं तो बतलाईयेगा, हां, तो उन की लिखी एक बात का ध्यान आ रहा है --- भगवान का शुक्र है कि पैन के लिये कोई कांडोम नहीं बना !! वाह, खुशवंत जी, क्या खूब बात कही !! -- आज के ज़माने में अगर ऐसा भी कुछ बन जाता तो अपने जैसों कितने ही लोगों का मन की बातें मन में रखे रहते दम ही निकल जाता।


मैं भी कभी कभी बाल की कितनी खाल खींचने लग जाता हूं ---- मैंने इतना लिख कर जो बात कही, वही बात सुपरस्टार राजेश खन्ना कितनी सहजता से, कितने सुकून से, कितने सुरीले अंदाज़ में कह रहे हैं, आप भी सुनिये।

रविवार, 25 जनवरी 2009

हनी, हम बच्चों को तबाही की तरफ़ धकेल रहे हैं !


इस समय मेरे सामने बच्चों के एक जंक-फूड का रैपर पड़ा हुआ है जिस के ऊपरी लिखी सूचना पढ़ कर मुझे डिस्कवरी चैनल के उस बहुत ही लोकप्रिय प्रोग्राम का ध्यान आ रहा है --- Honey, we are killing the kids !!
Ingredients के आगे लिखा हुआ है ----Rice meal, Edible oil, Corn Meal, Gram Meal, Spices, Condiments and Salt.

और इस के आगे एक बहुत ही बड़ी स्टैंप लगी हुई है कि नो एमएसजी, ज़ीरो ट्रांसफैट्स एवं कोलेस्ट्रोल फ्री ( No Added MSG, Zero Trans Fats, Cholesterol free) ---- अब इन शातिर कंपनियों को पता है कि पब्लिक को कैसे उल्लू बनाना है – चलो मान भी लिया कि कंपनी ने इस पैकेट में MSG ( Monosodium glutamate ---जिसे आमतौर पर रेहड़ी वाले चीनी नमक कह कर बहुत फख्र महसूस कर लिया करते हैं ), लेकिन यह कोलैस्ट्रोल फ्री वाली बात तो मेरी समझ में कभी आई नहीं कि आखिर यह कैसे हो सकता है कि इस तीस ग्राम के पैकेट में अगर लगभग 12 ग्राम वसा है तो यह भला कौन सा जादू हो गया कि फिर भी यह कोलैस्ट्रोल फ्री है।

इस पांच रूपये के पैकेट पर लिखी बाकी जानकारी कुछ इस प्रकार की थी --- कुल वजन 30 ग्राम
प्रत्येक 16 ग्राम उत्पाद में निम्नलिखित इन्ग्रिडिऐंट्स हैं –
कैलीरीज़ – 92.6
टोटल फैट – 5.8 ग्राम
कोलैस्ट्रोल - ज़ीरो मिलिग्राम ( कंपनी के लिये ज़ोर ज़ोर से तालियां मारने की इच्छा हो रही है !!----इतना बहादुरी का काम कर दिया !!)
टोटल कार्बोहाइड्रेट – 8.48 ग्राम
प्रोटीन – 1ग्राम

तो, सीधा सीधा इस का मतलब यह हुआ कि जब किसी ने यह पांच रूपये का पैकेट खा लिया तो उस ने बिना वजह स्वाद स्वाद के चक्कर में या यूं कह लें कि अपने मां-बाप के लाड के चक्कर में बिल्कुल कोरी सी 200 कैलोरी अपने अंदर फैंक दीं।

और ध्यान दें कि लगभग आधी कैलोरीज़ इस तरह के पैकेट में फैट से ही आ रही हैं।

अब अगर कोई यह सोचे कि क्या डाक्टर आज इस मासूम से पांच रूपये के पैकेट के पीछे पड़ गया है। जो भी हो, यह पैकेट इतना मासूम है----इस का कारण यह है कि इस तरह के पैकेट खाने से एक तो बच्चों को इस का चस्का सा लग जाता है जिस तरह का बीड़ी का या गुटखे-पान मसाले का चस्का होता है उसी तरह से इन बेकार की चीज़ों का भी एक चस्का ही होता है।

आपने क्या कहा ---- हम कौन सा बच्चों को ये सब रोज़ ले कर देते हैं ? –चलिये मैं यह भी बात मान लूं कि आप बच्चों को ये कभी कभी ले कर देते हैं लेकिन फिर भी आप ने उस दिन के लिये उस का नुकसान कर ही दिया ना---- क्योंकि बच्चों की भी अपनी कैलीरोज़ की ज़रूरत है –अब दो-चार सौ कैलोरी अगर उस की इस तरह के एक-दो चालू उत्पादों से पूरी हो गई तो भला उसे दाल, सब्जी खाने की क्या पड़ी है ---- बस, इस तरह के एक दो पैकेट, साथ में एक चॉकलेट बार, और ऊपर से थोड़ी बहुत कोल्ड-ड्रिंक हो गई तो हो गया उस का रात का खाना ----कब सोफे पर टीवी देखता हुआ, किसी भूत-प्रेत वाला टीवी सीरियल देखते देखते खौफ से डर कर आंखे बंद कर के सोने का नाटक करते करते खर्राटे भरने लगता है किसी को पता ही नहीं चलता क्योंकि वे अभी दूसरी तरफ़ वारदात देखने में मसरूफ़ हैं --- तो, बात तो ठीक ही हुई ना कि हनी, हम लोग बच्चों को तबाह ( चलिये खुल कर ही लिख देते हैं ---तबाह नहीं मार रहे हैं !!) – कर रहे हैं ।

हां, इस प्रोग्राम में दिखाया जाता था कि एक खूब मोटा-ताज़ा विदेशी
परिवार कैसे अपने खाने पीने की आदतों, टीवी देखने की आदतों एवं एक्सरसाइज़ करने की आदतों में क्रांतिकारी बदलाव कर के अपनी फिटनैस को पुनः प्राप्त कर लेते हैं ---- यह प्रोग्राम मुझे बहुत बढ़िया लगता है इसे देखने के बाद मैंने भी बहुत बार खीर एवं हलवा खाने के लिये मना किया होगा।

यह जो जंक फूड है ना इन पर सारी सूचना होती भी तो अंग्रेज़ी में ही है ----वैसे अगर हिंदी में भी यह सब लिखा रहेगा तो इन शक्तिशाली कंपनियों का भला कोई क्या उखाड़ लेगा --- वैसे इंगलिश में यह सारी सूचना लिख कर इन का काम आसान भी तो हो जाता है ---जो मां-बाप इंगलिश नहीं भी जानते वो भी इन्हें यह सोच कर खरीदते हैं कि चलो, इंगलिश में सब कुछ लिखा है तो ठीक ही होगा। लेकिन जो भी हो, आज कल जब भी मैं किसी ऐसे बच्चे के हाथ में ये पैकेट देखता हूं जिसे मैं समझता हूं कि इस पैकेट से कहीं ज़्यादा रोटी-सब्जी की ज़रूरत है तो मन बहुत दुःखी होता है --- इच्छा होती है इस के हाथ से इसे कैसे भी छीन लूं --- बाद में जब भूख लगेगी तो चुपचाप मज़े से खिचड़ी खा ही लेगा।

आप का प्रश्न मैंने भांप लिया है --- कि डाक्टर तुम्हारे सामने इस तरह के जंक-फूड का पैकेट कहां से आया ?—आप के सामने तो लगता है आज पोल खुल गई ---कल शाम को बेटे को दिलाया था ---लेकिन ज़रा इस तरफ़ भी ध्यान दीजियेगा कि यह सब होता कितने समय के बाद ------निःसंदेह कुछ महीनों के बाद !!
लेकिन फिर भी यह गलत है ---आखिर क्यों मैं उसे यह चस्का लगाने में उस की मदद कर रहा हूं !!