स्कूटर पर बैठ कर दांतों का इलाज करवाया जा रहा है ..लखनऊ कैंट की तस्वीर है यह |
बुधवार, 7 फ़रवरी 2018
गुरबत, अनपढ़ता, बेबसी, दबंगई ...दोषी कौन?
सोमवार, 19 सितंबर 2016
टैटू गुदवाना एक खतरनाक शौक तो है ही ..
मैं भी कुछ पिछले १५ वर्षों से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मेलों-त्योहारों में इन टैटू गुदवाने वालों का क्रेज देख रहा हूं...पंजाब के मुक्तसर में माघी मेला लगता है ...लगभग १५ साल पहले मैंने वहां सैंकड़ों लोगों को टैटू गुदवाते देखा ..बिल्कुल खराब हालात...अनहाईजिनिक... बीमारियां परोसने के अड्डे एक तरह से..
जी हां, जिस तरह से सड़कों पर बैठे कारीगरों द्वारा टैटू बनाए जाते हैं ...उन के फन के पूरे नंबर हैं..लेकिन वे भी नहीं जानते कि वे जाने-अनजाने हैपेटाइटिस बी, सी और एचआईव्ही इंफेक्शन जैसी गंभीर समस्याएं फैला रहे हैं...फैला तो और भी लोग रहे हैं...सड़क किनारे बैठे दा़ंतों के डाक्टर मरीज़ों का जब इलाज करते हैं, झोलाछाप जब अपने शिकारों को एक छींक आने पर सूई घोंप देता है, फुटपाथों पर बैठे नाई, चलते फिरते लाल टोपी धारी कान रोग विशेषज्ञ, भगंदर को जड़ से खत्म करने का दावा करने वाले बंगाली डाक्टर (इसी नाम से इन्हें बुलाया जाता है)...ये सब भी बीमारियां फैला भी रहे हैं और अकसर इन में स्वयं भी इस तरह की इंफेक्शन होने का अंदेशा तो रहता ही है ..
दो तीन पहले की बात है मैं लखनऊ में कहीं टहल रहा था, यह टैटू देखा तो इस बंदे से पूछ ही लिया कि यह क्या है, कहने लगा कि मंत्र है...मैंने पूछा कि इतनी बड़ी लिखत-पढ़त आज पहली बार देख रहा हूं...फोटो ले लूं?...उसने आज्ञा दे दी. वैसे हैं तो ये फिजूल के पंगे ...जो मैं अब लेने का आदि हो चुका हूं...अब कुछ नहीं हो सकता!
आज सुबह इस बंदे को ओपीडी में देखा तो इस का टैटू यह दिख गया...
मैंने इस को कहा कि तुमने भी सैफ की तरह का काम करवाया हुआ है!
मेरा सहायक पास ही खड़ा था, कहने लगा कि इस काम में एक दिक्कत है ...एक दोस्त का किस्सा बताने लगा कि उस की शादी हुई ..बीवी का नाम गुदवा लिया बाजू पर...लेकिन कुछ समय बाद उस से अनबन रहने लगी ..कहने लगा कि मुझे अब उस के नाम से भी नफरत है, सुबह सुबह बाजू देखता हूं तो उस का नाम दिखता है, बहुत खराब लगता है ...इसी चक्कर में उसने एक दिन चाकू से छील कर और किसी जुगाड़ से अपनी बाजू के उस हिस्से की चमड़ी ही जला डाली..
दो चार दिन पहले यहां हमारे घर के पास ही एक मेला लगा हुआ था...रात के ११ बजे के करीब भी इन टैटू गुदवाने वालों की दुकानदारी चमक रही थी ...बहुत से युवा लगभग इन दर्जन भर टैटू-मेकर्ज़ को घेर कर बैठे हुए थे ...इस तरह की भीड़ में किसी को कुछ सलाह नहीं दी जा सकती ...लेेकिन वे सभी बच्चे अपने आप को विभिन्न खतरनाक बीमारियों को एक्सपोज़ तो कर ही रहे थे..
ऐसा नहीं है कि ये टैटू इन जगहों पर ही गुदवाना खतरनाक है, बडे़ बड़े टुरिस्ट जगहों जैसे मनाली, गोवा, शिमला जैसी जगहों पर बड़े बड़े टैटू स्टूडियों में भी क्या पूरी तरह से एसैप्सिज़ रख पाते होंगे कि नहीं, कुछ पता नही....मुझे ऐसे लगता है कि नॉन-मैडीकल युवाओं के लिए इस तरह के काम पूरी सुरक्षा अंजाम दे पाना नामुमकिन सा होता होगा...दरअसल मुझे इन जगहों की टैटू सुविधाओं के बारे में कुछ ज्यादा पता भी नहीं है।
मुझे नहीं पता टैटू गुदवाने का इतिहास कितना पुराना है ..लेकिन हमारे पेरेन्ट्स, ग्रैंडपेरेन्ट्स सभी लोगों के हाथ या बाजू पर कुछ न कुछ गुदा ही रहा है ..या तो कोई धार्मिक चिन्ह या उनका नाम ...लेकिन पहले भी इस से संक्रमण होते तो होंगे, हमें उन का नाम नहीं पता होगा...जैसे हम आज कल हैपेटाइटिस सी के बारे में सुन रहे हैं कि इतने केस इसलिए आ रहे हैं क्योंकि बीस-तीस साल पहले रक्त चढ़ाने से पहले हैपेटाइटिस सी का परीक्षण ही नहीं होता था...बस, इसी चक्कर में भी संभवतः यह संक्रमण व्यापक स्तर पर फैलता रहा होगा...जो केस कुछ वर्षों बाद लिवर डिसीज़ होने पर चिकित्सकों की पकड़ में आने लगे..ऐसा ही है यह टैटू गुदवाने का खतरनाक खेल...कुछ भयंकर बीमारियां जिन के बारे में पुख्ता प्रमाण हैं कि वे इस से फैल सकती हैं...हो सकता है कि कुछ बीमारियां और भी हों, जिन के बारे में हमें पता ही न हो!
हम तो अभी तक टैटू के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मशीन की सूईं को लेकर ही चिंताग्रस्त हैं, लेकिन विकसित देशों में तो वे दूसरी बात से परेशान है ..इस के लिए इस्तेमाल की होने वाली इंक की मिलावट और उसमें जीवाणुओं की कंटेमीनेशन के बारे में वे बड़े सजग हैं..मैंने कुछ पेपर्ज देखे थे ...
चलिए, इस बात को यही खत्म करते हैं .. ढिंढोरा पीटना हमारा काम है, कोई भी निर्णय लेना पाठकों के हाथ में है! Take care...Tattoos and body-piercing are not as harmless as they are projected to be! वही ठीक है, जैसे बच्चे करते हैं ..डिस्पोजेबल टाइप के टैटू, दो मिनट में लगाते हैं, दोस्तों के साथ उन की पार्टी में चिल करते हैं..और अगले दिन धो डालते हैं...
शनिवार, 11 जून 2016
टैटू बनवाने के चक्कर में पड़ना ही क्यों!
मीडिया डाक्टर : हैपेटाइटिस
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गुरुवार, 28 जुलाई 2011
पीलिया के उचित इलाज में क्यों आती हैं इतनी दिक्कतें
भारत में अभी भी ज्यादातर लोग पीलिया का मतलब ठीक से नहीं समझते ...इस के बहुत से कारण हैं ..जितने भी कारण हैं उस लिस्ट में सब से ऊपर है तरह तरह की भ्रांतियां जिस की वजह से बहुत बार तो वे किसी चिकित्सक तक पहुंच ही नहीं पाते। बस झाड़-फूंक, टोने-टोटके.. तरह तरह के गुमराह करने वाले तत्व।
हैपेटाइटिस अर्थात् लिवर की सूजन और ये विभिन्न कारणों से हो सकती है ...जब यह सूजन वॉयरस की वजह से होती है तो इसे वॉयरस हैपेटाइटिस कहते हैं...और इन वायरसों की अलग अलग किस्में हैं –ए, बी, सी, डी एवं ई...और फिर इसी अनुसार कहा जाता है हैपेटाइटिस ए, हैपेटाइटिस बी, हैपेटाइटिस सी आदि।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े हैं कि हर वर्ष लगभग 10लाख मौतें वॉयरल हैपेटाइटिस की वजह से हो जाती हैं। और विश्व भर में हैपेटाइटिस बी और सी वायरस से इंफैक्शन लिवर(यकृत) के कैंसर का एक प्रमुख कारण है... लगभग 75 प्रतिशत केसों में इन वॉयरसों का संक्रमण लिवर कैंसर के लिये दोषी पाया जाता है।
हैपेटाइटिस ए एवं ई खाने आदि की वस्तुओं से एवं पानी से होता है और अकसर विश्व में विभिन्न जगहों पर यह बीमारी फूट पड़ती है।
यह लेख लिखते लिखते ध्यान आ गया कि मैंने पहले भी हैपेटाइटिस विषय एवं इस से संबंधित विषयों पर कुछ लेख लिखे थे ...चलिये इन में से कुछ के लिंक यहां लगाता हूं ...
हैपेटाइटिस सी के बारे में सब को जानना क्यों ज़रूरी है
टैटू गुदवाने से हो सकती हैं भयंकर बीमारियां
जब चिकित्सा कर्मी ही बीमारी परोसने लगें
दूषित सिरिंजों से हमला करने वालों की पागलपंथी
वो टैटू तो जब आयेगा, तब देखेंगे
चमत्कारी दवाईयां --लेकिन लेने से पहले ज़रा सोच लें..
और जहां तक हैपेटाइटिस के इलाज में आने वाली दिक्कतों की बात है, उन्हें शाम को एक दूसरी पोस्ट में करते हैं... क्रमश:.................
बुधवार, 13 जुलाई 2011
हैपेटाइटिस सी लाइलाज तो नहीं है लेकिन ...
अकसर ऐसे ही सुनी सुनाई बात को ध्यान में रखते हुये किसी से भी कोई पूछे कि हैपेटाइटिस सी किस रूट से फैलता है तो यकायक किसी भी पढ़े लिखे इंसान का यही जवाब होगा जिस रूट से हैपेटाइटिस बी फैलता है उसी रूट से ही यह भी फैलता है –देखा जाए तो कुछ हद तक ठीक भी है लेकिन जब कोई बात विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट पर है तो उस की विश्वसनीयता तो एकदम पक्की है ही।
WHO की साइट पर यह लिखा है ... It is less commonly transmitted through sex with an infected person and sharing of personal items contaminated with infectious blood. अर्थात् यह रोग हैपेटाइटिस सी यौन संबंधों के द्वारा इतना ज़्यादा नहीं फैलता।
लेकिन फिर भी हैपेटाइटिस सी अन्य देशों की तरह हमारे लिये भी एक बडा मसला बनता जा रहा है।
जब से यह रक्त चढ़ाने से पहले इस की हैपेटाइटिस सी के लिये भी जांच होती है तब से इस रूट से तो हैपेटाइटिस सी के किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने के चांस कम ही हैं। लेकिन गंदी, संक्रमित सिरिंज सूईंयों के द्वारा यह रोग संचारित होता रहता है।
इस तरह की सूईंयों का इस्तेमाल ये नीम हकीम और गांव-कसबों में बैठे झोलाछाप चिकित्सक लोग करते आ रहे हैं ... ये कुछ भी तो नहीं समझते कि ये पब्लिक को कितनी बड़ी बीमारी दिये जा रहे हैं... अकसर मैं सोचता हूं कि इस तरह की बीमारियां इन लोगों के द्वारा जो किसी को दे दी जाती हैं क्या ये मर्डर नहीं है। लेकिन इन तक कभी कोई पहुंचता ही नहीं पाता क्योंकि सिद्ध कौन करे कि फलां फलां को उस ने यह टीका लगाया था, इसलिये उस की मौत हो गई।
और दूसरे यह जो नशे लेते हैं ये एक दूसरी की इस्तेमाल की गई सिरिंजो, सूईंयों का इस्तेमाल करते हैं और हैपेटाइटिस सी, बी और एचआईव्ही जैसे रोगों को मोल ले लेते हैं।
कईं बार मैंने मेलों में देखा है ये जो टैटू आदि लोग गुदवा लेते हैं इन मशीनों के द्वारा भी यह रोग फैलता है। और आज के युवाओं को तो तरह तरह की पियरसिंग (body piercing) करवाने का खूब क्रेज़ है, इसलिये कौन देखता है कैसी मशीन इस्तेमाल की जा रही है. और तो और एक्यूपैंचर के इलाज के दौरान भी अगर अगर ठीक सूईंयां इस्तेमाल नहीं की जातीं, तो भी यह रोग फैल सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट में लिखा हुआ है कि जिन लोगों में यह इंफैक्शन हो जाती है उन में से 60से 70 प्रतिशत लोगों में यह क्रॉनिक (chronic) रूप ले लेती है अर्थात् उन का लिवर एक लंबी चलने वाली बीमारी का शिकार हो जाता है ... 5 से 20 प्रतिशत मरीज़ों में लिवर-सिरहोसिस (liver cirrhosis) हो जाता है .. अर्थात् लिवर सिकुड़ जाता है, उस में गांठे पड़ जाती हैं, और यूं कह लें वह फेल हो जाता है और अन्ततः 1 से 5 प्रतिशत लोगों की लिवर सिरहोसिस अथवा लिवर के कैंसर से मौत हो जाती है।
लेकिन आज चिकित्सा विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि हैपेटाइटिस सी का इलाज भी संभव है ---नये नयी नयी ऐंटी-वॉयरल दवाईयां आ चुकी हैं लेकिन इस के लिये मरीज़ को टैस्ट तो करवाना होगा, जल्द इलाज भी तो शुरू करवाना ही होगा.......लेकिन ये सारी की सारी बातें मुझे तो किताबी लगती हैं ....न तो अधिकतर लोग टैस्ट करवा ही पाते हैं, और अगर करवा भी लेते हैं तो महंगा इलाज कौन करवाये ---क्या नशे की सूईंयां आपस में शेयर करने वाले ये सब कर पाने में समर्थ होते होंगे, क्या गांव के मेलों में ज़मीन पर बैठ कर टैटू गुदवाने वाले ये सब काम कर पाते होंगे................आंकड़े कुछ भी मुंह फाड़ फाड़ कर बोलें, लेकिन वास्तविकता किसी से भी छुपी नहीं है।
मैं सोचता हूं क्यों इन नीमहकीमों को जो इस तरह के धंधे करते हैं, संक्रमित सूईंयों से भोली भाली जनता को बीमारी ठोकते रहते हैं, जो मेलों में ये टैटू वैटू का धंधा करते हैं इन पर क्यों शिकंजा नहीं कसा जाता....हम गन्ने का गंदा रस बेचने वाले का तो ठेला बंद करवा देते हैं लेकिन ये यमदूत के एजेंट खुले आम अपना गोरखधंधा जमाये रखते हैं।
अब आता हूं इस पोस्ट के शीर्षक की तरफ़ कि हैपेटाइटिस सी का इलाज तो है लेकिन कितने लोग इस सुविधा का लाभ उठा पाते होंगे --- क्या आप किसी ऐसे शख्स को जानते हैं जो यह इलाज करवा पाया ?....कहने का मतलब है कि अधिकतर लोग जो इन रोगों से संक्रमित होते हैं वैसे ही अभाव की ज़िंदगी जी रहे होते हैं, उन की अनेकों दैनिक मुश्किलों की तरह से यह भी एक अन्य मुश्किल है... न कभी टैस्ट न कभी इलाज....जब लिवर बिल्कुल जवाब दे देता है, बेचारे मर जाते हैं ....लेकिन कसूर किसी का कोई नहीं कहता ....सब कहते हैं बस पीलिया हुआ था, मर गया .....बहुत तकलीफ़ में था, बस मुक्ति मिल गई ....।
Further Reading
Hepatitis C -- WHO site
शनिवार, 26 फ़रवरी 2011
परमानैंट मेक-अप तकलीफ़ों का पिटारा लेकर आता है
कुछ दिन पहले ही मैं बात कर रहा था –टैटू के बारे में ..किस तरह से ये तरह तरह की बीमारियां फैलाने का काम कर रहे हैं और हाल ही में जर्मनी में इस के उपयोग में लाई जाने वाली स्याही के बारे में प्रकाश में आया कि यह कैंसर तक का कारण बन सकती है।
एक आफ़त का आज और पता चला – आज से पहले मुझे इस परमानैंट मेक-अप नाम की बीमारी का नहीं पता था, अचानक आज मुझे यह समाचार दिख गया ...Tattoos as makeup? Read the fine print. यह एक बहुत ही विश्वसनीय एवं लोकप्रिय न्यूज़-पेपर –न्यू-यार्क टाईम्स – में छपी है। मुझे कुछ कुछ आभास सा तो था कि कुछ कुछ गड़बड़ सी हो तो रही है परमानैंट मेक को लेकर लेकिन उम्मीद है कि यह न्यूज़ पढ़ने के बाद किसी की भी आंखें खुली की खुली रह जाएंगी.
मुझे डर जिस बात का लगता है वह यह है कि जब किसी विकसित एवं सम्पन्न दूर देश में ये सब खतरनाक किस्म के मेकअप पनप रहे हैं तो इसे भारत में आते देर नहीं लगेगी... मैंने पहले ही कहा है कि भारत में इन के चलन के बारे में मेरा ज्ञान ऐसा ही है, इसलिए यह बड़ी बात न होगी अगर बड़े महानगरीय शहरों में इस तरह के धंधे पहले ही से न चल रहे हों।
मैं यह पढ़ कर हैरान परेशान हूं कि किस तरह से लोग आंखों के परमानैंट मेकअप के लिये आई-लाईनर की जगह टैटू ही गुदवा लेते हैं, अपनी भौहों (eye brows) को बार बार शेप देने से झंझट से छुटकारा दिलाने के लिये भी टैटू की मदद ली जा रही है, होठों तक पर यह परमानैंट मेक-अप करवा लिया जाता है।
इस तरह के प्रसाधनों (cosmetic procedures) के कितने कितने भयंकर प्रभाव हैं यह जानने के लिये आप को न्यू-यार्क टाइम्स की स्टोरी पढ़नी होगी जिस का लिंक मैंने ऊपर दिया है। एचआईव्ही, हैपेटाइटिस, टीबी, कैंसर, भय़ंकर एलर्जिक रिएक्शन ..... अनेकों भयंकर रोग इस तरह का काम करवाने से हो सकते हैं।
और जब इस तरह के परमानैंट मेकअप को उतरवाने की बात आती है तो और भी बड़ा पंगा ... रिपोर्ट में एक ऐसे ही विशेषज्ञ के बारे में बताया गया है जो लेज़र-ट्रीटमैंट से इन्हें उतार तो देता है लेकिन एक मरीज़ में इस तरह के मेकअप को उतारने में एक वर्ष लग गया –छः बार उसे वहां जाना पड़ा और दस हज़ार यू-एस डालर उसे फीस देनी पड़ी।
यह पोस्ट केवल इस लिये है कि अगर कभी इस तरह के मेकअप भारत में प्रवेश कर भी जाएं ---यकीन मानिए ये अवश्य आएंगे – तो हम पहले ही से स्वयं भी सचेत रहें और दूसरों को भी सचेत करते रहें ताकि गलती से भी यह गलती न हो जाए।
वैसे भी जो रियल ब्यूटी है वह कहां इन सब धकोंसलों की मोहताज है ....अगर मन अच्छा है, विचार अच्छे हैं तो वह चेहरे पर झलक ही जाती है, इसलिये बाहरी रंग रूप बिल्कुल ही बेमानी है, रियल ब्यूटी अंदरूनी है, जो बाहर परिलक्षित होती है ....एक ईमानदार मुस्कान के रूप में, सब के साथ एक जैसे मृदु-स्वभाव के रूप में, प्यार-आदर-सत्कार से सभी के साथ पेश आने से, हर किसी के मर्म को समझने से.......लेकिन यह क्या मैं तो सुबह सुबह फलसफ़ा झाड़ने लगा, इसलिये समय है कलम को यहीं विराम दे दूं।
यहां उस गीत का लिंक देना चाहता था ...कागज़ के फूल... खुशबू कहां से आयेगी... लेकिन आधा घंटा यू-ट्यूब पर ढूंढने पर भी जब वह नहीं दिखा तो बचपन में सैंकड़ों बार सुना वह गीत दिख गया ... बात वह भी यही कह रहा है ... सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से, खुशबू आ नहीं सकती कागज़ के फूलों से .... बात कितनी सही है...वैसे यह पुरानी फिल्म दुश्मन का गीत है .. यह फिल्म मुझे बहुत पसंद है... वह सुपर डुपर गीत भी इसी का ही है ....एक दुश्मन जो दोस्तों से भी प्यारा है... अगर अभी तो नहीं देखी, तो ज़रूर देखियेगा... मानवीय संवेदनाओं को झकझोड़ने वाली फिल्म है !
रविवार, 20 फ़रवरी 2011
हैपेटाइटिस-सी के बारे में सब को जानना आखिर क्यों ज़रूरी है?
बड़ी समस्या यही है कि आज से कुछ साल पहले तक रक्त ट्रांसफ्यूज़न से पहले रक्त दान से प्राप्त रक्त की हैपेटाइटिस-सी संक्रमण के लिये रक्त की जांच होती नहीं थी। यह जांच तो अमेरिका में ही नवंबर 1990 में शुरू हुई थी.... जहां तक मुझे ध्यान आ रहा है सन् 2000 तक इस के बारे में भारत चर्चा तो गर्म हो चुकी थी कि रक्त दान से प्राप्त रक्त की हैपेटाइटिस सी के लिये भी जांच होनी चाहिये।
मैंने आज सुबह यह जानकारी नेट पर सर्च करनी चाही कि वास्तव में भारत में यह टैस्टिंग कब से शुरू हुई लेकिन मुझे कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं मिली... इस के बारे में ठीक पता कर के लिखूंगा। मेरा एक बिल्कुल अनुमान सा है कि शायद पांच-सात पहले यह टैस्टिंग नहीं हुआ करती थी.... लेकिन फिर भी कंफर्म कर के बताऊंगा।
इतना तो है कि जो रक्त जनता को ब्लड-बैंक से पांच सौ रूपये में मिलता है उस की तरह तरह की टैस्टिंग के ऊपर सरकार का लगभग 1400 रूपये तो टैस्टिंग का ही खर्च आ जाता है ... एचआईव्ही, हैपेटाइटिस बी, सी , मलेरिया, व्ही.डी.आर.एल टैस्ट आदि ये सब टैस्ट किये जाते हैं।
हां, तो भारत में भी आज से कुछ साल पहले तक जो रक्त लोगों को चढ़ता रहा है उस की हैपेटाइटिस सी जांच तो होती नहीं थी... और प्रोफैशनल रक्त दाताओं की भी समस्या तो पहले ही रही है जिन में से कुछ नशों के लिये सूईंयां बांट लिया करते थे। गांवो-शहरों के नीम हकीम बिना वजह संक्रमित सूईंयों से दनादन इंजैक्शन बिना किसी रोक-टोक के लगाये जा रहे हैं, झोलाछाप डाक्टर सीधे सादे आम आदमी की सेहत के साथ खिलवाड़ किये जा रहे हैं... देश में जगह जगह संक्रमित औज़ारों से टैटू गुदवाने का शौक बढ़ता जा रहा है.... ऐसे में कोई शक नहीं कि बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें यह नहीं पता कि वे अन्य रोगों के साथ हैपेटाइटिस सी से संक्रमित हो सकते हैं।
हैपेटाइटिस सी ऐसी बीमारी है जिसके 20-30वर्ष तक कोई भी लक्षण नहीं हो सकते ...लेकिन लक्षण नहीं तो इस का यह मतलब नहीं कि यह वॉयरस शरीर में गड़बड़ नहीं कर रही। अब जिन लोगों को बहुत वर्षों पहले रक्त चढ़ा था या ऐसे ही कहीं किसी भी जगह से कोई टीका आदि लगवाया था या टैटू आदि गुदवाया था, मेरे विचार में ऐसे सभी लोगों को चाहे कोई तकलीफ़ है या नहीं, अपना हैपेटाइटिस सी टैस्ट तो करवा ही लेना चाहिये ... लेकिन अपने फ़िज़िशियन से बात करने के बाद.. शायद वह आप को कोई अन्य भी करवाने के लिये कहें, इसलिये सब एक साथ ही हो जाए तो बेहतर होगा।
और अगर टैस्ट पॉज़िटिव है भी तो हौंसला हारने की तो कोई बात है नहीं .... नईं नईं रिसर्च रिपोर्टे आ रही हैं कि इस पर भी कैसे कंट्रोल पाया जा सकता है। लेकिन सब से ज़रूरी बात है कि अगर हैपेटाइटिस सी का टैस्ट पाज़िटिव भी आया है तो उस से संबंधित सभी टैस्ट किसी कुशल फ़िज़िशियन अथवा गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट ( पेट की बीमारियों के विशेषज्ञ) की सलाह अनुसार करवा कर उन की सलाह अनुसार (अगर वे कहें तो) दवाई का पूरा कोर्स भी ज़रूर कर लेना चाहिये। अभी अभी मैं एक रिपोर्ट पढ़ रहा था कि किस तरह इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।
संबंधित जानकारी ....
New Hope for Hepatitis C
शनिवार, 19 फ़रवरी 2011
टैटू गुदवाने से हो सकती हैं भय़ंकर बीमारियां
लगभग छः साल पहले हम लोग भी मुक्तसर में माघी का मेला देखने गये .. मुक्तसर शहर फिरोज़पुर से लगभग 50किलोमीटर दूर है और वहां का माघी का मेला बहुत प्रसिद्ध है। अन्य नज़ारों के इलावा वहां ज़मीन पर बैठे एक टैटू बनाने वाले को भी देखा.. वह 20-20, 30-30 रूपये में टैटू बनाये जा रहा था... जिसे जो भी आकृति चाहिये होती वह पांच मिनट में बनती जा रही थी।
कोई मशीन की साफ़ सफ़ाई का ध्यान नहीं, और यह संभव भी नहीं था। लेकिन लोग जो इस तरह का खतरनाक गुदवाने का काम करवाते हैं वे इस के संभावित दुष्परिणामों से अनभिज्ञ होते हैं ... यह उन्हें एचआईव्ही, हैपेटाइटिस बी एवं सी जैसी बीमारियां दे सकता है। मैं अकसर ऐसे मौकों पर सोचता हूं कि इस तरह के धंधे कब तक चलते रहेंगे .. या तो लोग ही इतने जागरूक हो जाएं कि इस सब के चक्कर में न पड़ें, वरना सरकारी तंत्र को मेलों आदि से इस तरह की “कलाओं” को दूर रखना चाहिये।
मुझे आज इस का ध्यान इसलिये आया क्योंकि सुबह मैं msnbc की साइट पर एक न्यूज़-स्टोरी देख रहा था जिस में बताया गया था कि जर्मनी में टैटू बनाने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली स्याही में विषैले तत्व पाये गये जिस से चमड़ी का कैंसर तक होने का खतरा मंडराने लगता है। मैंने भी आज तक टैटू के अन्य नुकसान दायक पहलूओं के बारे में ही सोचा था ...और आज उस में एक बात और जमा हो गई है ...इस में इस्तेमाल की जाने वाली स्याही।
और एक बात ...अगर जर्मनी जैसे देश में ऐसी बात सामने आई तो आप स्वयं सोच सकते हैं कि हमारे देश में फुटपाथ पर बैठ कर इस तरह का धंधा करने वाले कैसी स्याही इस्तेमाल करते होंगे।
एक तो हिंदी प्रिंट मीडिया भी लोगों को बहुत उकसाता है... कुछ दिन पहले मैंने एक दूध की डेयरी पर पड़ी एक हिंदी की अखबार देखी.. उस में होठों के अंदर की तरफ़ विभिन्न आकर्षक आकृतियां गुदवाने के बारे में बताया गया था। और साथ में एक रंगीन तस्वीर भी छपी थी ... मैंने उस लेख को इसलिये पढ़ा क्योंकि मैं यह जानना चाहता था कि क्या इस से भयंकर बीमारियां होने के खतरे के बारे में कुछ लिखा गया है ...नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं लिखा गया था।
बात वही है, अब लोगों को स्वयं जागरूक होना होगा.. ये सब मुद्दे बेहद अहम् हैं .. लेकिन अखबारों के अपने मुद्दे हैं, उन की अपनी प्राथमिकताएं हैं.... क्योंकि उस लिप-टैटू के नुकसान बताए जाने से कहीं ज़्यादा उस अखबार ने एक लंबी-चौड़ी खबर के द्वारा पाठकों को यह बताना ज्यादा ज़रूरी समझा कि किस तरह से दस साल से बिना शादी के रहने वाले दो फिल्मी कलाकार अब अलग हो गये हैं.... अब हो गये हैं तो हो गये हैं, इस से आमजन को क्या लेना देना, यार, आम आदमी के सरोकारों की बात कौन करेगा ?
वैसे एक बात है कि ये जो बच्चे धुल जाने वाले टैटू को कभी कभी लगा कर अपना शौक पूरा कर लेते हैं, वही ठीक है। पता नहीं ना कि अब इस में कंपनियां किस तरह का कैमिकल इस्तेमाल करती होंगी, लगता है कि इस तरह के सभी शौंकों से दूर ही रहने में समझदारी है।
शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2008
वो टैटू तो जब आयेगा, तब देखेंगे....लेकिन अभी तो....
वो टैटू तो जब आयेगा,तब देखेंगे लेकिन हमें आज ज़रूरत है मौज़ूदा टैटू बनवाने की मशीनों से बचने की।
आज समाचार-पत्रों में यह खबर दिखी है कि टैटू गुदवाने का जो चलन फैशन और स्टाइल के नाम पर ही शुरू हुआ था, अब यह जल्दी ही बीमारियों से बचाव का जरिया भी बन जाएगा। जर्मनी के शोधकर्त्ताओं ने इस बात का पता लगाया है कि टैटू गुदवाने की प्रक्रिया शरीर में दवा के प्रवेश की सबसे असरदार विधा है। खासकर डीएनए वाले टीकों के मामले में यह विधा इंट्रा मस्कुलर इंजेक्शन से कहीं बेहतर है। रिपोर्ट के अनुसार फ्लू से लेकर कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज में भी टैटू के जरिए बेहतर टीकाकरण हो सकता है।
विशेष टिप्पणी----- मैडीकल साईंस भी बहुत जल्द आगे बढ़ रही है...दिन प्रतिदिन नये नये अनुसंधान हो रहे हैं। अभी मैं दो दिन पहले ही एक रिपोर्ट पढ़ रहा था कि अब इंजैक्शन बिना सूईं के लगाने की तैयारी हो रही है। तो आज यह पढ़ लिया कि अब टैटू के जरिये भी दवाई शरीर में पहुंचाई जाएगी। यह तो आप समझ ही गये होंगे कि यहां पर उन टैटुओं की बात नहीं हो रही जो बच्चे एवं बड़े आज कल शौंक के तौर पर अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों में चिपका लेते हैं और जो बाद में नहाने-धोने से साफ भी हो जाते हैं। लेकिन यहां बात हो रही है उस विधि की जिस का एक बिल्कुल देशी तरीका आप ने भी मेरी तरह किसी गांव के मेले में देखा होगा।
एक ज़मीन पर बैठा हुया टैटूवाला किस तरह एक बैटरी से चल रही मशीन द्वारा बीसियों लोगों के टैटू बनाता जाता है...साथ में कोई स्याही भी इस्तेमाल करता है......किसी तरह की कोई साफ़-सफाई का कोई ध्यान नहीं....न ही ऐसे हालात में यह संभव ही हो सकता है, अब कैसे वह डिस्पोज़ेबल मशीन इस्तेमाल करे अथवा कहां जा कर उस मशीन को एक बार इस्तेमाल करने के बाद किटाणु-रहित ( स्टैरीलाइज़) करे...यह संभव ही नहीं है। ऐसे टैटू हमारे परिवार में किसी बड़े-बुज़ुर्ग के हाथ पर अथवा बाजू पर दिख ही जाते हैं। लेकिन यह टैटू गुदवाना बेहद खतरनाक है......मुझे नहीं पता कि पहले यह सब कैसे चलता था......था क्या, आज भी यह सब धड़ल्ले से चल रहा है और हैपेटाइटिस बी एवं एचआईव्ही इंफैक्शन्स को फैलाने में खूब योगदान कर रहा होगा। लोग अज्ञानतावश बहुत खुशी खुशी अपनी मन पसंद आकृतियां अपने शरीर पर इस टैटू के द्वारा गुदवाते रहते हैं। लेकिन इस प्रकार के टैटू गुदवाने से हमेशा परहेज़ करना निहायत ज़रूरी है।
यह तो आने वाला समय ही बतायेगा कि कि जिस टैटू की इस रिपोर्ट में बात कही गई है, उस की क्या प्रक्रिया होती है। लेकिन मेरी हमेशा यही चिंता रहती है कि जहां कहां भी यह सूईंयां –वूईंयां इस्तेमाल होती हों वहां पर पूरी एहतियात बरती जा पायेगी या नहीं.....यह बहुत बड़ा मुद्दा है, बड़े सेंटरों एवं हस्पतालों की तो मैं बात नहीं कर रहा, लेकिन गांवों में भोले-भाले लोगों को नीम-हकीम किस तरह एक ही सूईं से टीके लगा लगा कर बीमार करते रहते हैं ..यह सब आप से भी कहां छिपा है। पंजाब में भटिंडा के पास एक गांव में एक झोला-छाप डाक्टर पकड़ा गया था जो सारे गांव को एक ही नीडल से इंजैक्शन लगाया करता था ....इस का खतरनाक परिणाम यह निकला सारे का सारा गांव ही हैपेटाइटिस बी की चपेट में आ गया।
बात कहां से शुरू हुई थी, कहां पहुंच गई। लेकिन कोई कुछ भी कहे...जब भी इंजैक्शन लगवाएं यह तो शत-प्रतिशत सुनिश्चित करें कि नईं डिस्पोज़ेबल सूंईं ही इस्तेमाल की जा रही है। मैं तो मरीज़ों को इतना भी कहता हूं कि कहीं लैब में अपना ब्लड-सैंपल भी देने जाते हो तो यह सुनिश्चित किया करो कि डिस्पोज़ेबल सूईं को आप के सामने ही खोला गया है.......क्या है न, कईं जगह थोड़ा एक्स्ट्रा-काशियश ही होना अच्छा है, ऐसे ही बाद में व्यर्थ की चिंता करने से तो अच्छा ही है न कि पहले ही थोड़ी एहतियात बरत लें। सो, हमेशा इन बातों का ध्यान रखिएगा।
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