सोमवार, 6 मार्च 2023

एंटीबॉयोटिक्स से कहीं ज़्यादा भरोसा है मुलैठी पर..

अगर मैं दंत चिकित्सक न होता तो पंजाबी लोकगीत गायक तो बन ही जाता ..नहीं तो किसी म्यूज़ियम का क्यूरेटर हो जाता...कुछ भी कर लेता...बहुत काम हैं जिस तरफ़ भी बंदा अपने मन को लगा ले....मुझे पुरानी एंटीक, विंटेज चीज़ों में खास रूचि है ....सौ साल पुरानी कोई किताब हो, अस्सी साल पुराने मैगज़ीन हों....मैं एंटीक शाप्स में और ऑनलाइन इन को ढूंढता रहता हूं ...ये मेरे लिए सिर्फ़ आइट्म ही नहीं होती, दरअसल ये अपने वक्त के किस्से ब्यां करती हैं और मुझे लिखने के लिए मजबूर करती हैं ...मेरे लिए ये चीज़ें नहीं है, मेरे लिए ये सब लिखने के प्राप्स हैं....जैसे नाचने वालों को प्राप्स लगते हैं, मुझे ये सब प्राप्स लगते हैं लिखने के लिए ....

खैर, बात यूं है कि कुछ दिन पहले यहां मुंबई की एक एंटीक शाप में मुझे एक डिब्बी दिखी ...क्या है न, अब ऐसी चीज़ों को देखने से ही एक अंदाज़ा सा हो जाता है कि ये ५० साल पुरानी होगी, यह सौ साल पुरानी वगैरह वगैरह ....खैर, इन दुकानदारों को भी पता रहता है कि जो कलैक्टर इस तरह की दो कौड़ी की चीज़ को ढूंढ़ते हैं, और खरीदते हैं ...उन से कैसे पैसे निकलवाने हैं....चलिए, वे अपनी जगह ठीक हैं....मेरे लिए वह चीज़ अनमोल है जिसे मैंने आज तक कभी नहीं देखा, और आने वाले समय में भी देखने की कोई गुंजाइश नहीं है ... 

चलिए, मैंने वह डिब्बी खरीद ली ...दाम बताऊंगा तो बेवकूफ़ी लगेगी ...खैर, मुझे लेनी थी सो ले ली....देखिए आप भी इसे ....



इस लिंक पर जा कर यह भी देखिए यह अस्सी साल पुरानी डिब्बी इ-बे पर ३४ यू एस डॉलर में बिक रही है ...यह रहा लिंक ....

आपने भी पढ़ लिया होगा कि इस में मैंथोल और मुलैठी का रस (एक्सेट्रेक्ट) आता था ...और यह गले में खिच खिच के काम आती थीं ..इंगलैंड की किसी कंपनी से बन कर आती थीं हिंदोस्तान में ....मुझे याद आ रहा है प्राइमरी क्लास के एक मास्टर ने एक बार हमें बताया था कि अंग्रेज़ों के राज में सूईं भी इंगलैंड से आती थीं और यहां बिकती थीं....यह भी देखिए कि मुलैठी जैसी चीज़ को भी किस तरह से पैक-वैक कर के इंगलैंड से लाकर यहां बेचा जाता था ....ऐसे और भी कुछ प्रोड्क्ट्स - कुछ आम दवाईयों के बारे में भी किसी और दिन बताऊंगा ....

मुझे यह डिब्बी देख कर बहुत ज़्यादा हैरानी हुई थी ....क्योंकि मेरी उम्र ६० साल है और जहां तक याद है बचपन से ही हमें मुलैठी पर ही भरोसा रहा ...गले में खिच खिच होती, दर्द वर्द होता, खांसी जुकाम होता ...तो हमें मुलैठी ही चबाने के लिेये दी जाती ....उन दिनों दांतों में भी अच्छी ताकत थी ...न नुकुर करते करते उसे चबा ही लेते और झटपट आराम भी मिल जाता ....कभी एंटीबॉयोटिक इस्तेमाल करने का कुछ झंझट ही न था...नमक वाले पानी से गरारे करो, मुलैठी चबाओ, बेसन का पतला सीरा, गुड़ वाली सौंठ खाओ....और मस्त रहो .....यही थी अपनी खांसी-जुकाम, गले में खिच खिच की दवाईयां ....वैसे तो अभी तक भी यही हैं...लेकिन अब कभी कभी एंटीबॉयोटिक लेने की नौबत भी आ जाती है ...लेकिन फिर भी भरोसा अभी भी मुलैठी पर पूरा है ...

कुछ दिन पहले मैं अपनी बड़ी बहन से मुलैठी के बारे में बात कर रहा था ...उन का गला खराब था ..मैंने कहा कि मुलैठी चबाओ...तो कहने लगी कि मिलती ही नहीं कहीं....मैंने बताया कि बाबा रामदेव की दुकानों पर मुलैठी क्वाथ मिलता है ...मुलैठी को लगभग चूरा कर के ....(shredded licorice) ....मुझे भी यह दिक्कत कईं बार आई है...लेकिन बहन बता रही थीं कि उन के पास मुलैठी का चूरण है वह उसे चाय या पता नहीं गर्म पानी में डाल कर पी लेती हैं....उन को भी राहत मिल जाती है ... अच्छी बात है, हमारे अपने अपने ज़िंदगी के तजुर्बे हैं, जिसे जिस चीज़ से राहत मिले, मां भी ८०-८५ की उम्र तक ये सब चीज़ें ही इस्तेमाल करती थीं ....और पुरानी चीज़ों की भी अच्छी अहमियत तो थी ही, ऐसे ही थोड़े न फिरंगी मुलैठी के रस को इस पैकिंग में इंगलैंड से लाकर बेचते रहे .....८० साल पहले ....यह डिब्बी तो ८० साल पुरानी है ....क्या पता यह धंधा कितना पुराना होगा...

मुलैठी को खरीदना अब मुश्किल हो गया है ....किसी पुरानी दुकान के पुराने बनिये से मिल भी जाती है कभी तो उस में अकसर घुन सा लगा होता है ...उसे चूसने की इच्छा नहीं होती....खैर, बाबा रामदेव की दुकानों पर जो मुलैठी क्वाथ मिलता है वह भी बढ़िया है ..दस पंद्रह बरस पहले १५ रूपये में मिलता था....अब भी ४० रूपये में मिल जाता है ...लेकिन है यह चीज़ बहुत बढ़िया ....

मुलैठी क्वॉथ ..

मुलैठी क्वाथ ऐसा दिखता है ....एक चम्मच मुंह में डाल कर चबाते रहिए...कुछ मिनट ..तुंरत राहत महसूस होती है ...


अभी दो तीन महीने पहले मुझे एक लिट-फेस्ट में उषा उत्थुप के प्रोग्राम में जाने का मौका मिला ....उन्हें सुन कर बहुत अच्छा लगा ..इतनी लाइवली हैं...अपनी यादें सुना रही थीं कि किस तरह से उन्हें एड्वटाईज़िंग में पहला मौका मिला ...उन्हें विक्स की गोली के लिए कोई जिंगल लिखना था...कुछ समझ में नहीं आ रहा था ....लास्ट मिनट पर उन की कही लाइन ने जैसे हिंदोस्तान की खिच खिच दूर भगा दी ..........गले में खिच खिच, गले में खिच खिच .....क्या करो....विक्स की गोली लो, खिच खिच दूर करो....मैं इस के बारे में अपने किसी पुराने ब्लॉग में लिख भी चुका हूं ....लेकिन इस वक्त मुझे लिखते लिखते फिर लगा कि खिच खिच पर कोई फिल्मी गीत कैसे नहीं है .....बस, ऐसे ही सोच रहा था तो पता नहीं कहां से खिच खिच से तो नहीं हिचकी वाले फिल्मी गीत की याद आ गई ...यह लिखना बंद कर के पहले तो उसे सुना.....यह मेरे कालेज के दौर का गाना है, बहुत पंसद है ....इस की मेरे पास कैसेट भी थी, बहुत सुना करता था ....लेटे लेटे, आंखें मूंद कर 😂😎😉....हा हा हा हा हा हा हा.....वे दिन भी क्या दिन थे...!! आज सुबह जब मैं जगा, तेरी कसम ऐसा लगा ....कि तूने मुझे याद किया है .....हिच हिच हिचकी लगी ...हिचकी...


कुछ आज की भी बात कर ली जाए.....कल दोपहर मेरे गले में अचानक बहुत ज़्यादा इरिटेशन शुरू हो गई ....खांसी भी ...खिच खिच भी ...मैंने मुलैठी ढूंढी और जैसे ही उसे चबाया, आराम आने लगा .....और कल से वही कर रहा हूं....इस से तुरंत राहत मिलती है ...लेकिन मैं यह सब लिख किस के लिए रहा हूं ....कौन सुनता है किसी की आज ....लेकिन जिन पर लिखने की जिम्मेवारी है, उन का फ़र्ज़ होता है सब कुछ सच सच दर्ज करते जाना ......इस से ज़्यादा कुछ नहीं .....वैसे भी लेखकों का काम है मुनादी करना ....

बात वही है पिछले कुछ दिनों से मुझे कुछ खास विषयों पर लिखना था ..बस, वह ऐसे ही टलता रहा, आज ऐसे ही मुलैठी की यादों ने इन को पहले समेटने के लिए मजबूर कर दिया....मैं अपने किसी मरीज़ को मुलैठी के बारे में बताता हूं तो उसे समझ नहीं आती कि मैं क्या कह रहा हूं......अगर मीठी लकड़ी कहता हूं तो कुछ को समझ में आ जाता है ....


रविवार, 15 जनवरी 2023

बदल गई अब वो नसीहत...."थोड़ी थोड़ी पिया करो"


बाज़ारवाद बहुत ताकतवर है....हमारे तसव्वुर से भी कहीं ज़्यादा ...इसलिए भी होठों पर चु्प्पी का ताला लोगों को लगाना पड़ता है ... हां, यह जो दारू के बारे में नसीहत बदलने वाली बात है यह मीडिया में ज़्यादा दिखाई नहीं देगी...लेकिन फिर भी जो चोटी के मीडिया हाउस हैं वे अपनी परंपरा पर खरे उतरते हुए पब्लिक को इशारा तो कर ही  देते हैं...और कुछ वाट्सएप पर इस तरह के स्टेट्स डाल कर अपना फ़र्ज़ निभा देते हैं...

कुछ दिन पहले हमारे एक सीनियर डाक्टर हैं उन्होंने लेंसेट मैगजीन के हवाले से यह बात लिखी थी वाट्सएप पर कि अल्कोहल की कोई भी मात्रा सुरक्षित नहीं है ....हर मात्रा में दारू तबाही मचाने में सक्षम है। अभी कुछ बरसों पहले की बात है यह है कि कहा जाता था कि जो लोग थोड़ी थोड़ी पी लेते हैं, वे तनाव से दूर रहते हैं, मस्त रहते हैं, दिल की बीमारियों की चपेट में आने से थोड़ा बच जाते हैं....यही कह कर लोगों ने अपने दिल को समझा के रखा ....यह थोड़ी थोड़ी कब बहुत ज़्यादा होने लगी किसी को पता ही न चला...और जब आसपास के लोगों ने रोकना चाहा तो वही दलील दी जाती कि यह तो डाक्टर लोग भी कहते हैं कि थोड़ी बहुत तो लेते रहना चाहिए...

खैर, अभी कुछ अरसा पहले यह चर्चा होने लगी ...जनमानस में नहीं, बल्कि चिकित्सकों ने यह सलाह देनी शुरु कर दी कि थोड़ी बहुत दारू जो रोज़ लेने की बात है यह उन लोगों के लिए जो रोज़ाना पीते हैं और बहुत पीते हैं, टल्ली हो जाते हैं...वे अगर बिल्कुल थोड़ी मात्रा में लेने लगेंगे तो तनाव-वाव से दूर रहेंगे और हार्ट-वार्ट की तकलीफ़ों से दूर रहेंगे ..मुझे लगता है कि डाक्टरों की इस दलील ने लोगों को अगर दारू पीने के लिए उकसाया न भी हो तो भी उस से होने वाली बीमारियों का डर तो कुछ खत्म कर ही दिया....

खैर, यह वाली सलाह इस तरह से दी जाती थी कि अगर कोई दारू नहीं पीता है तो उसे थोड़ी दारू पीने के लिए नहीं कहना है ...यह बहुत ज़रुरी बात थी ...लेकिन इतनी सी बात भी सुनता कौन है...जिस तरह से दारू को पिछले कुछ सालों से समाज ने स्वीकार किया है, पिछले दस-बीस सालों में यह भी हम सब देख ही रहे हैं....वैसे लिखने वाली बात है नहीं, मेरा काम कोई मोरल-पुलिसिंग का न है, न मैं करना चाहता हूं ...आदमी क्या और औरत क्या, लेकिन अकसर बंबई में इंगलिश दारू की दुकानों के बाहर दारू खरीदने वाली की भीड़ में महिलाओं एवं युवतियों को देखता हूं ....और आते जाते रेस्टरां के बाहर अपने दोस्तों के साथ युवतियों को सिगरेट के छल्ले उड़ाते देखना भी एक आम बात लगती है ...

जैसा मैंने ऊपर लिखा कि मार्केट शक्तियां बड़ी पावरफुल हैं....अपने रास्ते में आने वाले किसी को भी कब हटा दें, किसी को पता भी न चले, एक बात ...और किस तरह से विज्ञापनों का सहारा लेकर दारू, सिगरेट जैसी चीज़ों को कहां से कहां पहुंचा दें ...कोई कल्पना चाहे न भी कर पाए, लेकिन देख तो हम सब रहे ही हैं...

हां, अब मुद्दे पर आते हैं...लेंसेट एक बहुत ही सम्मानीय एवं प्रतिष्ठित मैगज़ीन है....मैंने इसे १९८६ में पहली बार देखा था...हमारे कालेज की लाइब्रेरी में आता था ...जिन प्रोफैसर साहब के पास मैं एमडीएस कर रहा था वह इसे पढ़ने के बहुत शौकीन थे, दोपहर में खाने के बाद अकसर उन्हें इसे पढ़ता देखते थे हम ...और मैं भी लाईब्रेरी में ऐसे ही कभी कभी इस के पन्ने उलट-पलट लेता था...बिल्कुल पतला कागज़ और बिलकुल पतली सी मैगज़ीन ..छपाई अति उत्तम...और कंटेंट अति विश्वसनीय..

हां, उस दिन हमारे एक वरिष्ठ साथी ने हमारे ग्रुप में यह बात शेयर की कि दारू की कोई भी मात्रा सेफ नहीं है....तो पढ़ कर यही लगा कि बड़ी ज़रूरी बात है ...इस के बारे में मुझे भी लिखना चाहिए ...यह कुछ दिन पहले की बात है ...मसरूफ़ रहने से बात आई गई हो गई ....

Health and Cancer risks associated with low levels of alcohol consumption  (इस पूरे लेख को आप यहां पढ़ सकते हैं..) 

लेकिन दो दिन पहले जब टाइम्स ऑफ इंडिया देख रहा था ..सच में अब देखने की ही नौबत आ गई है....रोज़ सोचता हूं फलां फलां लेख तो ज़रूर शाम को पढूंगा ...लेकिन शाम को इतना थक-टूट जाते हैं कि अखबार देखने की इच्छा ही नहीं होती...सुबह वक्त नहीं होता ..खैर, उस दिन भी यही खबर दिखी कि विश्व स्वास्थय संगठन ने भी यही कहा है कि दारू की थोड़ी से थोड़ी मात्रा भी सेहत के लिए हानिकारक है, कईं तरह के कैंसर के जोखिम को बढ़ाती है ...लीजिए आप भी पढ़िए...

टाइम्स ऑफ इंडिया, मुंबई .१२ जनवरी २३


मेरी नज़र में हिंदोस्तान के सब से बेहतरीन अखबार को बाज़ारवाद के उमड़ते बवंडर में भी इस तरह की खबर को जगह देने के लिए शुक्रिया...👍🙏

यह खबर पढ़ने के बाद फिर एक बार लगा कि इस तरह की जानकारी तो हिंदी में भी मुहैया करवानी चाहिए अपने ब्लॉग के ज़रिए मुझे ...चाहे है वो भी एक खुशफ़हमी कि पता नहीं ब्लॉग में जनमानस की ज़बान में लिखने से पता नहीं मै कौन सा पहा़ड़ उखाड़ लूंगा ..चलिए..अपना काम तो कर देना चाहिए...जंगल मे आग लगी तो चिडिया अपनी चोंच में पानी भर भर के उस आग में फैंकनी जाती..किसी ने कहा, अरी पागल, तेरे चोंच भरे पानी से क्या होगा...तो वह बोली, मेरा नाम तो आग बुझाने वालों में लिखा जाएगा....वही बात है इस ब्लॉग में इस दारू न पीने वाली बात को लिखना भी...

दो दिन सोचता ही रह गया लेकिन इस वक्त सोच रहा हूं कि अच्छा ही हुआ...लोगों ने लोहड़ी तो अच्छे से दारू-शारू के साथ मना ली...वरना यह सब पढ़ कर मज़ा किरकिरा हो जाता ....क्योंकि वैसे तो सभी जगह लेकिन पंजाब के तो गीत सुन कर ऐसा लगता है जैसा कि वह दारू पर ही जी रहा है, जीप पर चढ़े हुए कंधे पर दुनाली को टांगे दारू पी कर बड़कां मारने की बातें ...लेकिन यह सब इतना रोमांटिक है नहीं जितना दिखता है ..आस पास के सब लोग जिन को दारू, सिगरेट, बीड़ी पीते देखता था, सब के सब इन्हीं चीज़ों से होने वाली बीमारियों का शिकार हो के चले गए....और कुछ ऐसे भी जिन्होंने कभी इन का सेवन नहीं किया चले तो वह भी गए ....ऐसा नहीं है कि मैं अमर हूं या जो कुछ ऐसा खाते पीते नहीं, वे १५० साल जी लेंगे....ऐसा नहीं है, लेकिन बात इतनी सी है कि मक्खी देख कर तो नहीं निगली जाती ...क्या ख्याल है आपका?

अब ख्याल आ रहा है कि पढ़ने वालों को लग रहा होगा कि तुम भी तो बताओ अपने बारे में ....तो उस का जवाब यह है कि सारे अपने सारे खानदान में मैं एक अकेला ही ऐसा हूं जो पता नहीं कैसे बच गया इस से ...अच्छा ही हुआ, वरना जिस तरह का मैं ही मैं तो ठेके पर ही बैठा रहता...ऐसा क्या हुआ कि मैं इसे चखने से भी महरूम रह गया ..क्योंकि मुझे इस से पहले ही से बड़ी नफ़रत थी ...खास कर किसी भी दारू पिए हुए बंदे से बात करने की बात से ही ...फिर १८-१९ बरस की उम्र थी...मेडीकल कालेज अमृतसर की पैथोलॉजी की प्रोफैसर डा प्रेम लता वडेरा हमें एक दिन अल्कोहल के लिवर पर होने वाले बुरे प्रभावों - फैटी लिवर, सिरहोसिस- के बारे में इतने अच्छे से पढ़ा रही थीं कि ऐसे लगा जैसे एक मां अपने बच्चों को सचेत कर रही हो ....वह एक बहुत नामचीन पैथोलॉजिस्ट थी ....हमारी मां की उम्र की ही थीं ...पढ़ाने का तरीका भी ऐसा उम्दा ....(वैसे वो मेरी आंसरशीट को क्लास में दिखाया करती थीं कि ऐसे लिखते हैं पेपर में , यह होती है प्रिज़ेंटेशन....😎) ... देखिए, उन के पढ़ाने का असर कि उस दिन क्लास में मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि दारू को तो हाथ नहीं लगाना ....और पापा जो शाम को एक-दो छोटे छोटे पैग लेते थे, उन्हें भी मैंने यह कह कर बोर करना शुरू कर दिया कि पापा, यह खराब है, यह नुकसान करती है ...लेकिन ...लेकिन, वेकिन, छोड़ो, यार ...जितना लिख दिया बस काफ़ी है। 

एक वक्त वह भी आता है कि जब किसी चीज़ को छोड़ने से भी कुछ खास फर्क पड़ता नहीं, समझ गए न आप.....जैसे गुटखा खाने वाले लोग मुंह के एडवांस कैंसर का इलाज करवाने आते हैं तो कहते हैं कि एक महीने से गुटखा छुआ तक नहीं..बीड़ी पंद्रह दिन से बंद है ....मन तो होता है कहने को कि पी लो, अब और जितनी पीनी हो ....लेकिन मरीज़ से ऐसी बात कहां हम लोग कर पाते हैं....हम भी यही कह कर उस का मनोबल बढ़ाते हैं ...अच्छा किया, बहुत अच्छी बात है ...वैसे ऊपर जो मैंने विश्व स्वास्थ्य संगठन की फेक्ट-शीट लगाई है उसमें यह भी कितना स्पष्ट लिखा है कि जो लोग तंबाकू और दारू दोनों चीज़ों का इस्तेमाल करते हैं उन में कैंसर होने का खतरा कितना बढ़ जाता है ..

चलिए, अब इस बात को यहीं विराम देते हैं...ज़्यादा कागज़ काले करने से भी कुछ होता वोता नहीं है...समझदार को इशारा काफी होता है ...अब तो लगता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की यह बात अस्पतालों में जगह जगह लगी होनी चाहिए कि दारू की कम से कम मात्रा भी सेहत के लिए सुरक्षित नहीं है ... हां, मैं पंजाब की बातें कर रहा था ..दुनाली, जीपों, दारू और दारू पी कर बड़कें मारने की ....मुझे आज यह लिखते लिखते अचानक याद आया कि हम लोग बचपन में देखा-सुना करते थे कि पंजाब में विवाह शादी से पहले लेडीज़-संगीत (पंजाबी में उसे गौन या गावन कहते थे ...घर घर जा कर उस का सद्दा दिया जाता था...) शादी के कईं कईं दिन पहले यह शुरू हो जाता था ...चार पांच दिन पहले तो हमने देखा है, सुना है ...उसमें भी इस तरह के गीत ढोलक के साथ बजते थे ....नशे दीए बंद बोतले, तैनूं पीन गे ..हाय, तैनूं पीन गे नसीबां वाले ...(नशे को बंद बोतले, तुझे नसीबों वाले पिएंगे).. 😂


एक बात तो मैं दर्ज करनी भूल ही गया कि अभी मेरी जितनी उम्र है उस का आधा हिस्सा जिसने अमृतसर जैसे शाही शहर में बिताया हो ..जहां खाने पीने की पूरी ऐश थी...लज़ीज़ शाही खाना....आलू के परांठे और उस के बाद पेढ़े वाली मलाईदार लस्सी दा कड़े वाला गिलास....कमबख्त उस से ही इतना नशा हो जाता था कि दूसरे नशे के बारे में सोचने की होश ही किसे रहती....एक आम कहावत भी है न ..नशा तो रोटी में भी है ... सच बात है बिल्कुल...। लिखते लिखते याद आया हमारी एक कज़िन हम से १० साल बड़ी होंगी ...जब बंबई से अमृतसर आईं हमारे यहां तो एक दिन पानी का गिलास पकड़ कर इस गाने पर एक्टिंग करने लगीं ..हम सब बच्चों को अपने आस पास बिठा के ....हमें बड़ा अच्छा लगा, वह पानी का गिलास पकड़ कर १-२ मिनट के लिए ही यह गीत गाते झूम रही थीं.... हमने तब फिल्म भी न देखी थी ...बहुत बरसों बाद देखी... हां जी हां, मैंने शराब पी है ... 


अगर आप इस पोस्ट की भूमिका भी देखना चाहें तो यहां पधारिए.... 

शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

थोड़ी थोड़ी पिया करो.......लेकिन, ठहरिए!!

पचास बरस पहले का दौर याद आता है जब इस गीत या गज़ल का ख्याल आता है ...याद आता है वह वेस्टन कंपनी का टेप-रिकार्डर और उस में टेप पर बज रहा पंकज उधास का गाया वह गीत ....थोड़ी थोड़ी पिया करो...अच्छा लगता था उसे सुनना....१५ बरस पहले २००८ की बात होगी...अभी शायद मुझे ब्लॉगिंग करते एक साल ही हुआ था कि मैंने एक ब्लॉग लिखा था...थोड़ी थोड़ी पिया करो। नहीं, इसमें किसी को दारू पीने के लिए उकसाने वाली बातें न थीं....दिल से लिखा गया एक ब्लॉग था...जो पढ़ने वालों को इतना पसंद आया कि किसी मेहरबान ने उस का उन दिनों एक पॉडकॉस्ट ही बना दिया...

खैर, दारू की जब बात चलती है तो लोगों के दिलो-दिमाग में यही बात घर कर चुकी है कि थोड़ी बहुत पी लेना सेहत के लिए ठीक ही है ...इस से कोई दिक्कत नहीं होती, बल्कि सेहत पर कुछ अच्छा असर ही पड़ता है ..बिना टेंशन को दूर भगाने के लिए यह सब कुछ करता है ...यह तो एक प्रचलित धारणा है ही ...हर जगह ....दारू पीने वालों ने अपने मन को समझा लिया था ...और दारू बेचने वालों की तो बात ही क्या करें...वह लॉबी तो इतनी ताकतवर है कि किसी को कुछ बताने की ज़रूरत है नहीं...

आज बहुत अरसे बाद इस पर लिखने लगा हूं तो इतनी बातें याद आ रही हैं कि लगता है जो जो याद आ रहा है लिख दूं... यादों के झरोखे से दिखने वाले मंज़र कब दूर हो जाते हैं पता ही नहीं चलता....हमारे ताऊ जी के बेटे ने आज से ५०-५५ बरस पहले एक इंगलिश वाइन की शाप खोली...मैं यही कोई सातवीं-आठवीं कक्षा में था...मुझे अच्छे से याद है कि मैं एक दिन उस वाईन-शाप पर गया ...और पता नहीं मुझे क्या करना है, किसी कुर्सी को थोड़ा इधर उधर सरकाना था ...तो वाइन-व्हिस्की या पता नहीं क्या (इंगलिश दारू ही थी) ..उस का एक डिब्बा कार्डबोर्ड का वहां पड़ा था...उन बोतलों से भरा हुआ...मैं जैसे ही उसे उठाया, वह नीचे से फट गया और सारी बोतलें टूट गईं...मुझे बहुत बुरा लगा...थोड़ा डर भी लगा ...वैसे डर बहुत कम था क्योंकि मैं अपने घर वालों को जानता हूं, ये सब बडे़ ही भले लोग हैं, दूसरों को कुछ नहीं कहते तो मुझे इन्होंने क्या कहना था....

लेकिन यह बात तो मेरे दिलोदिमाग में आज भी ताजा है कि इतना बड़ा कांड होने के बावजूद किसी ने मुझे इतना भी नहीं कहा कि यार, यह क्या हो गया....वहां पर ऐसा माहौल था जैसे कुछ हुआ ही नहीं, जैसे रसोई में कोई गिलास टूट गया हो....अभी ख्याल आ रहा है कि हम लोगों से जैसा बर्ताव हुआ होता है, हम वही बर्ताव दुनिया को लौटाते हैं .....खैर, हमारे उस कज़िन की दुकान घाटे का सौदा ही थी...क्योंकि बिजनेस चलाना उन के बस की बात न थी, एक बात ....दूसरी बात यह कि शाम को उन के दोस्तो की महफिल रोज़ उस वाइन-शॉप में ही लग जाती थी...और एक महंगी सी बोतल तो उन को चाहिए होती थी ...और इस के साथ साथ दुनिया भर को दारू उधार देने से (जो कभी वापिस न मिला) वह दुकान का ऐसा दिवाला पिट गया कि उसके शटर नीचे गिर गए.... और उन्होंने आल इंडिया रेडियो में एक अच्छी नौकरी कर ली....इस के बाद बीसियों बरसों तक जब तक कुनबे के बुज़ुर्ग जिंदा रहे ...उन के ठहाके इसी बात पर लगते रहे कि चोपड़ों ने दारू की दुकान खोली और वह तो बंद होनी ही थी ...कोई उस ठेके से जुड़ा कोई किस्सा सुनाने लगता और कोई कुछ ...अरे यार, मैं एक बात तो भूल गया कि यह ठेके हमारे ताऊ जी की कोठी के बाहर ही था, मुझे याद है अंधेरा होते ही एक बोतल उस ठेके से उन के लिए भी पहुंचा दी जाती ..कईं बार तो वह खुद ही आ कर ले जाते ...

वैसे भी यह उन दिनों की बात है जब यह समझा जाता था या यह माना जाता था कि अगर दारू इंगलिश है तो कोई बात नहीं ....यह तो देसी दारू ही है जो शरीर खराब करती है, यही आम धारणा थी लोगों में। और एक बात ...यह जो केंटीन से दारू मिलती थी आर्मी वालों को ..लोगों को उसे पा लेने का बडा़ क्रेज़ था, आर्मी में न काम करने वाले भी इतने व्यापक स्तर पर उस कैंटीन से मिलने वाली दारू का जुगाड़ कैसे कर लेते थे ...यह देख कर बड़ी हैरानी होती थी ...जुगाड़ भी ऐसे ऐसे कि क्या कहें....मौसा जी किसी छावनी में बैंक मैनेजर क्या हो गए, सारे कुनबे में उन का रुतबा बढ़ गया ....पता नहीं मैनेजरी से या इस बात से कि अब वह वहां की कैंटीन से अच्छी क्वालिटी की दारू हासिल करने का जुगाड़ कर पाते ....मुझे उन दिनों की बातें याद आती हैं तो बहुत हंसी आती है जब किसी छत पर या बैठक में दारू की महफिल जमी होती तो कमरे में कितने ठहाके लगा करते ...खुशियां ही खुशियां....सिगरेट से धुएं से भरा कमरा ...ऊल जूल बातें करते बंदे....मुझे पता इसलिए है क्योंकि कईं बार जब बर्फ कम पड़ जाती तो बाज़ार से बर्फ लाकर, दाल मौठ के साथ ...उसे अंदर पहुंचाने की ड्यूटी मेरी या मेरे जैसे किसी दूसरे की लगती थी ....ठहाकों के बावजूद उस कमरे में जा कर अजीब सा महसूस होता था ....जिसे मैं अभी तक कभी लिख नहीं पाया हूं ...खैर, उसे भी लिख दूं कभी तो ... 


खैर, उस दौर में हमारे चाचा लोग ५५५ के सिगरेट पीते थे और जॉनी वॉकर दारू ही लेते थे ....मुझे याद है अच्छे से क्योंकि मुझे उस जानी वाकर, वैटे 69 की खाली बोतलें बहुत पसंद थीं...और हमें उन के खाली होने के बाद फ्रिज में पानी ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल करने पर ही हर बार पांच फीसदी नशा हो ही जाता था ...और हम इन सब की रईसी को देख कर बस दांतों तले उंगली ही न दबाते थे ..दंग तो रह ही जाते थे ...५५५ कंपनी का सिगरेट ...जिसे उन दिनों शहर में ढूंढना मुश्किल होता था ....सिगरेट के बारे में भी उन दिनों यही बात मानी जाती थी कि जितना महंगा होगा उतना ही कम खराब होगा....५५५ पीने वाले भी कभी कभी ऐसे ही टशन के लिए बीड़ी के दो कश भी मारा करते थे, मैंने यह सब देखा है । वैसे मुझे गुज़रे दौर में महंगे दारू की खाली बोतलें ही न लुभाती थीं, मुझे अभी भी पुराने दौर की चीज़ों से खास लगाव है ...कुछ महीने पहले किसी एंटीक की दुकान पर ५५५ सिगरेटों की लोहे वाली डिब्बी दिख गई ...मैंने पहले कभी न देखा इस तरह की लोहे की डिब्बी को .......बहुत ज़्यादा महंगी बेच रहा था, खैर, मैंने उसे खरीद लिया ...क्योकि अभी तक तो ऐसी सिगरेट की डिब्बी न देखी थी न सुनी, और न ही आगे ही देखने की कभी उम्मीद ही लगी ....अभी ढूंढने लगा यहां पर फोटो लगाने के लिए तो मिली नहीं......पता नहीं कहीं पर रख कर भूल गया हूं....खैर, नेट से फोटो लेकर यहां लगा देता हूं....



आज सुबह सुबह उठते ही इस दारू का, इन सिगरेटों का ख्याल ऐसे आया कि लगभग ५० बरस पुरानी एक मैगजी़न के पन्ने अभी उलट ही रहा था कि सिगरेट के इस इश्तिहार पर नज़रें जा टिकीं....बस, फिर क्या था, बीते दिन आंखों के सामने घूमने लगे ...कभी यह कभी वो...पढ़ने की तो इच्छा थी नहीं, सोने का भी मन नहीं था चाहे नींद लग रहा था अभी पूरी नहीं हुई.....बस, और कुछ न सूझा तो यही डॉयरी लिखने बैठ गया...

यह डॉयरी लिखने की बात यह है कि जो मुद्दे की बात लिखना मैं चाह रहा हूं ....वह तो मैंने शुरू भी नहीं की। क्या करूं....पुरानी इधर उधर की यादों ने ही ऐसे घेर लिया कि लगा कि पहले इन्हें समेट लूं ...लेकिन फिर भी एक छोटा सा अंश ही समेट पाया ...और जो असल बात है वह कहने से रह गया.....कोई नहीं, अगली पोस्ट में उस बात को करते हैं.......ब्रेक के बाद!!😎😂