रविवार, 13 फ़रवरी 2022

कर्ज़ (लघु-कथा)

राधा देवी भरे पूरे परिवार में जिस में उन के पति, उन का बेटा, बहू और उन से बहुत प्यार करने वाले उन के पोते-पोतियां हैं, माटुंगा में रहती हैं... खुशी खुशी दिन कट रहे थे ...फिर धीरे धीरे 70 साल की उम्र तक पहुंचते पहुंचते राधा देवी की यादाश्त कम होने लगी ...वह कुछ ज़्यादा ही भूलने लगीें...

उन का बेटा दीपक जो माटुंगा के ही एक कॉलेज में प्रोफैसर है, उन्हें लेकर एक सामान्य चिकित्सक के पास गया...डाक्टर साहब पुराने पढ़े हुए थे ...बिना कोई महंगी जांचें किए ही उन की समझ में आ गया कि यह महिला तो एल्ज़ीमर्ज़ (यादाश्त ख़त्म हो जाने की बीमारी) की तरफ़ बढ़ रही है ...डाक्टर ने दीपक को सारी बातें अच्छे से समझा दीं ...और ज़रूरी एहतियात रखने के लिए भी बता दिया कि आने वाले समय में किस तरह से उन की मां के लिए तकलीफ़े बढ़ने वाली हैं, इसलिए घर में सब को बता दें कि इन्हें घर से बाहर अकेले न निकलने दें...और इन के खाने-पीने का भी ख़ुद ही ख्‍याल रखना होगा...इन्होंने कब खाया है और क्या खाया है? 

धीरे धीरे दीपक को समझ में आने लगा कि मां का तो घर के बाहर कहीं अकेले जाना भी सुरक्षित नहीं है ...दीपक अपनी बिल्डिंग के पहले माले पर रहता था, एक दिन मां नीचे बिल्डींग के बागीचे में दीपक के बेटे के साथ गई ...बेटे तो चंद मिनटों में वापिस लौट आया लेकिन मां बहुत देर तक जब न आई तो दीपक भाग कर नीचे गया और वहां गुमसुम बैठी मां को अपने साथ ऊपर ले आया...उस दिन के बाद उन्होंने मां को कभी भी अकेले कहीं जाने भी नहीं दिया और घर में भी उन्हें कभी अकेले नहीं छोड़ा...

जैसे तैसे ईश्वरीय इच्छा के समक्ष नतमस्तक हो कर पूरा परिवार खुशी से रह रहा था। दीपक की बहन ने नया घर लिया था दहिसर में ...उसने कहा कि गृह-प्रवेश के समारोह में सभी को आना है ....दीपक का पूरा परिवार और मां सब बड़ी चाव से गृह-प्रवेश वाले दिन बहन के घर बधाई देने पहुंच गए...मां को तो कुछ समझता नहीं था, वह तो बस दीपक को ही पहचानती थी और दीपक ही से खाना खाती थी..। दीपक को कईं बार लगता कि हम कहावतें तो सुन लेते हैं कि बुज़ुर्ग लोग बिल्कुल बच्चों के जैसे हो जाते हैं ...और अब वह इस बात को अपनी ज़िंदगी में अनुभव कर रहा था ...वह कईं बार कहता कि अब उसे अपनी मां बिल्कुल प्यारी नन्हीं मुन्नी बेटी जैसी ही लगती है ..और यह कहता कहता वह अकसर भावुक हो जाया करता....

हां, तो उस दिन बहन के घर में बहुत से रिश्तेदार भी आए हुए थे ..बहन ने जो नया घर लिया था वह आठवीं मंज़िल पर था .. सब लोग मिलने-जुलने में मसरूफ़ थे, कईं रिश्तेदार तो कितने लंबे अरसे बाद दिख रहे थे, सारे वहीं थे, इसलिए मां की किसी को ख़ास चिंता करने की कोई ज़रूरत महसूस न हुई क्योंकि सभी घर के लोग ही तो थे। अचानक दीपक के बेटे ने पूछा कि दादी, कहां है। बस, दीपक के तो चेहरे का रंग उड़ गया...सारी जगह खोज हुई, आठवीं मंज़िल के दूसरे फ्लैटों में भी देख लिया...टैरेस पर भी हो आए...दीपक बदहवास हुआ पड़ा लिफ्टवाले से भी कईं बार पूछ बैठा कि मां नीचे तो नहीं गई...लिफ्ट वाले ने कहा कि मैं तो साहब अभी आया हूं ....पता नहीं...। 

दीपक का पूरा परिवार और बहन का पूरा कुनबा मां की तलाश में लग गए...लेकिन मां कहीं हो तो पता चले....नीचे जा कर सोसायटी का बागीचा, उस के साथ सटे हुए मंदिर में भी देख आए..लेकिन कहीं कोई अता-पता नहीं...घर के आस पास तो हर जगह देख लिया...दीपक का रेलवे में भी रसूख था, इसलिए किसी को कहलवाने से वह स्टेशन पर जाकर सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखने लगा ..लेकिन कुछ सुराग नहीं लग रहा था ...सब को लगने लगा कि मां को क्या धरती निगल गई....देखते देखते शाम हो गई...दूसरे स्टेशनों के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज से भी कुछ पता नहीं चला....सुबह से शाम हो गई ....सारे परिवार का दिल डूबता जा रहा था ...मां को सिर्फ दीपक के पिता का नाम और माटुंगा याद था, लेकिन इससे होता ही क्या है, ऐसे तो तूड़ी (चारा) के बड़े ढेर में सूईं ढूंढने वाली बात थी,  जिस शहर में लोग आंखों से काजल चुरा लेते हैं, ऐसे में मां आठ घंटे से गायब है ..गले में सोने की चैन और हाथों में सोने की चार चूड़ीयां पहन रखी थीं मां ने ... सब मना कर रहे थे कि अब मां की जान की हिफ़ाज़त के लिए यह सब पहनना मुनासिब नहीं ..लेकिन दीपक और उस की बहन जानते थे कि मां को सोने के गहने पहनना कितना पसंद है..इसलिए वह हमेशा गहने तो पहने ही रहती ..वैसे भी दीपक को लगता कि मां को कहीं भी अकेले तो हम भेजते नहीं, ऐसे में कोई ख़तरा नहीं...

दीपक तो बदहवास सा दहिसर की सड़कों की खाक छान रहा था ...बहन अपने पति के साथ दहिसर स्टेशन की  जीआरपी चौकी पर रिपोर्ट लिखवाने चली गई...वहां बैठा दारोगा बार बार एक ही बात पूछे जा रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है कि इतनी बुज़ुर्ग औरत अपने आप आठवीं मंज़िल से नीचे भी आ गई और फिर यहां स्टेशन पर भी आ गई ....बहन ने यही कहा कि स्टेशन का तो हमें नहीं पता, हम लोग आसपास तो सब जगह देख ही चुके हैं ...इसीलिए हम अब हार कर स्टेशन पर आये हैं ....खैर, इंस्पैक्टर ने पूछना शुरू किया कि मां ने पहना क्या था, साड़ी का रंग क्या था, मां का ढील-ढौल कैसा है, कद-काठी कैसी है...पैरों में क्या पहन रखा था.... बहन सब कुछ बता रही थी और वह लिख रहा था .....तभी अचानक क्या हुआ? ...जैसे ही उसने अपना सिर ऊपर उठाया और उस के कमरे के दरवाज़े की तरफ़ उस की नज़र गईं तो वह एक लम्हे के लिए ठिठक सा गया .....अरे!!!!!......और उसने दीपक की बहन की कहा कि पीछे मुड़ के वह देख ले, उस की मां लौट आई है ...

बहन ने पीछे मुड़ कर देखा, एक सिपाही उस का हाथ पकड़ कर उसे इंस्पैक्टर की मेज़ की तरफ़ लेकर आ रहा था ....बेटी मां को गले लगा कर बिलख बिलख कर रोने लगी... लेकिन बेचारी मां को तो कुछ समझ हो, कुछ याद हो तो वह कुछ कहे ...वह वैसे ही गुमसुम सी खड़ी रही, फिर इंस्पैक्टर ने बैठा कर चाय-नाश्ता करवाया और खुशी खुशी विदा किया ....

इस के बाद परिवार में फिर से खुशियां लौट आईं ....सब राजी खुशी रहने लगे ...मां को और भी ख़्याल रखा जाने लगा ..

एक बरस बाद ....

दीपक की बहन और उसकी बेटी स्वाति दहिसर के एक सिनेमा घर में फिल्म देखने गई हुई थीं...सिनेमा ख़त्म होने के बाद जब वे खड़े हुए तो कुछ सीटें छोड़ कर स्वाति की नज़र एक मोबाइल फोन पर पड़ी...उसने उसे उठा लिया ... और मां से कहने लगी कि इसे गेट-कीपर को दे देते हैं....मां के मन में पता नहीं क्या ख्याल आया कि उसने कहा कि नहीं, अपने साथ रख ले, जिस का होगा, उस का फोन आएगा और आकर ले जाएगा....

और वे मोबाइल को लेकर घर लौट आए...तुरंत ही उस फोन पर घंटी बजी...स्वाति ने उठाया ...दूसरी तरफ़ से बात करने वाले इंसान ने अपने खोए हुए फोन के बारे में और कहां पर खोया सब कुछ बताया ....तो स्वाति ने कहा कि हां, वह हमारे पास ही है, आप कभी भी आ कर ले जाइएगा....और उसने अपना पता भी उस कॉल करने वाले को बता दिया। अगले दिन सुबह सुबह जैसे ही एक युवक अपना मोबाइल लेने आया तो दीपक की बहन ने उसे पहचान लिया ...और कहने लगी कि अरे, आप तो वही हैं जो दहिसर चौकी में काम करते हैं...उस युवक ने पूछा कि आपने मुझे पहचान कैसे लिया..

दीपक की बहन ने कहा ...कैसे न पहचानूंगी उस फरिश्ते को जिस की वजह से एक बरस पहले मुझे मेरी खोई हुई मां मिल गई थी, आप ही वह युवक थे जो मां का हाथ पकड़ कर मेरे हाथ में थमा गये थे ...मेरा तो सारा परिवार आप के एहसान के नीचे दबा हुआ है, आप का कर्ज़ मेरे ऊपर उधार है बहुत....और यह कहते कहते उसने मोबाइल उस युवक को लौटा दिया..तब तक स्वाति उस नेक इंसान के लिए चाय-नाश्ता भी लेकर आ चुकी थी...

चाय पीते उस युवक ने इतना तो कह ही दिया ... ताई, आप जिस कर्ज़ की बात कर रही हैं, वह तो आपने चुका दिया मुझे यह मेरा फोन लौटा कर..। 

दीपक की बहन से रहा नहीं गया....आँखें भरी हुई, गला रूंधा हुआ ...और कहने लगी...बेटा, जो तुम्हारा कर्ज़ है वह तो मैं कभी ज़िंदगी भर न चुकता कर पाऊंगी, वह तो बहुत भारी कर्ज़ है, इस फोन का क्या है, अगर, बेटा, तुम्हें एक दिन और न मिलता तो तुम दूसरा कहीं से भी राह चलते चलते खरीद लेते ...लेकिन अगर उस दिन तुम ने अपनी ड्यूटी अच्छे से न की होती, एक बदहवास बुज़ुर्ग औरत को प्लेटफार्म पर बैठे हुए अगर तुम्हारी पैनी निगाहें न देख पातीं तो मैं दूसरी मां को कहां से लाती!!

बस, इस के आगे कोई कुछ बोल न सका....सब की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी ....उस युवक के प्रति कृतज्ञता प्रगट करने वाले आंखों से निकलते मोती ....और वह ताई के पांव छू कर चल दिया ....और ताई इसी कर्ज़ के बारे में सोचने लगी जो कभी चुक न पाएगा।  कुछ कर्ज़ ऐसे ही रहने ज़रूरी भी होते हैं शायद.....😢

(सच्ची घटनाओं पर आधारित .... नाम बदल दिए हैं...) 

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

लता दीदी की याद में ...अंतिम कड़ी

मैंने पिछले दो कड़ियों में दोस्तो आप तक लता मंगेश्कर जी के अंतिम संस्कार का आंखो देखा हाल पहुंचाने की एक मामूली सी कोशिश की थी, अभी उस महान हस्ती के बारे में चंद अल्फ़ाज़ और लिख कर अपनी बात ख़त्म करने लगा हूं... पहली कडी और दूसरी कड़ी लिंक यह रहा ...

लता दीदी आप की याद में ....कल सात रास्ते पर भी आप को लोग याद कर रहे थे ...

लता जी के जाने के बाद ख्याल आ रहा कि मैं उन्हें दीदी किस ज़ाविए से कह रहा हूं...वह तो मेरी मां की हमउम्र थीं तो उस तरह से मेरी तो मौसी ही लगी ...है कि नहीं....सारे हिंदोस्तान की वे कुछ न कुछ लगती हैं और सूरज चांद के अस्तित्व तक लगती रहेंगी...अधिकतर की दीदी, बहुत से लोगों की बहन और मेरे जैसे कुछ लोग जिन्होंने लिखते लिखते उन से मौसी का रिश्ता ही बना लिया...जो भी हो, वे बहुत अच्छी थीं और मुझे तो टीवी या यू-ट्यूब पर उन की बातें सुनना बहुत ज़्यादा भाता था...बिल्कुल सहजता से कोमल बातें करती तो ऐसा लगता कि उन के मुखारबिंद से फूल झड़ रहे होते ...उन की बच्चों जैसी बिंदास हंसी तो मुझे और भी फ्लैट कर जाती ...

आज से तीस चालीस पहले हम लोग कभी उन के बारे में बात करते तो कोई यह भी कह देता कि लता जी के गले का करोड़ों रूपये का बीमा हुआ है ...कोई कहता कि लता जी जब गाती हैं तो उन की आवाज़ में इतनी खनक है कि उन्हें किसी भी संगीत के वाद्य-यंत्र की ज़रूरत ही कहां है....हां, तो मैं बात कर रहा था किस तरह से लोगों ने उन के साथ अपनेपन के रिश्ते कायम कर रखे थे ...मुझे उन से मिलने की बहुत तमन्ना थी ....लेकिन ज़रूरत नहीं कि सभी ख्वाहिशें पूरी भी हों, कुछ अधूरी भी अगर रह जाएं तो भी बंदे का दिमाग ठिकाने पर रहता है ...

दो दिन पहले मेरे पास एक आफीसर आए तो लता की बात छिड़ गई ..मैंने कहा कि लता दीदी ने तीन पीड़ीयों का मन बहलाए रखा ..वह कहने लगा तीन नहीं चार, डा साहब. वह आफीसर यही कोई 35-40 साल का था, उस ने मुझे अच्छे से चार पीड़ीयां गिना भी दीं...अपने नाना जी से शुरू कर के ...लेकिन पता नहीं मेरी मोटी बुद्धि में बात देर से पड़ती है ...मैं अभी लिखते वक्त उन चारों का हिसाब लगा नहीं पा रहा हूं ..अगली बात मिलने पर पूछूंगा..मैं कौन सा ऐसे ही छोड़ देने वाला हूं ...😎..वैसे उन्होंने ने बताया कि उन की मां तो लता जी के यूं चले जाने पर खूब रोती रहीं। अनुपम खेर की माता जी की एक वीडियो देख रहा था ...वह भी बेहद भावुक हो रही थीं...उन्होंने भी यही कहा कि लता जैसी न कोई थी और न ही कोई फिर से पैदा ही होगी...

लता जी के अन्तयेष्ठि के वक्त दूर दूर से लोग पहुंचे हुए थे ...सब उन से बेइंतहा प्यार करने वाले ...हर तरफ़ से आवाज़े आ रही थीं...नारे लग रहे थे ...लता दीदी अमर रहें ...लता दीदी अमर रहें...इतना प्यार बटोर कर ले गई हिंदोस्तान की यह बेटी...पास ही एक युवक खड़ा किसी से बात कर रहा था कि उस के पास तो कुछ पैसे भी नहीं थे, बस शिवाजी पार्क पहुंचने की तमन्ना थी... बस, जैसे तैसे भायंदर से यहां तक पहुंच गया...बता रहा था कि लता जी का अंतिम स्ंस्कार आज ही कर दिया ...अगर कल होता तो बाहर गांव से भी बहुत से लोग यहां पहुंच पाते ...खैर, ये तो पारिवारिक फ़ैसले होते हैं ..

पास ही एक दूसरा बंदा खड़ा था दूधे नाम से ...उसने बताया कि उस की घाटकोपर में फुटपाथ पर कपड़ों की दुकान है ...वह तो अढ़ाई बजे ही वहां पर पहुंच गया था ..मैंने पूछा इतनी जल्दी आ कर क्या किया...उसने बहुत सहजता से कहा कि मैं आकर यही देखता रहा कि कहां से अंदर जा पाऊंगा ..इतनी भीड़ में अंदर घुस भी पाऊंगा कि नहीं....सभी गेट देखता रहा और आखिर में बता रहा था कि इतना नज़दीक से लता दीदी के दर्शन हो गए...मेरी तमन्ना पूरी हो गई। मैं मन ही मन सोच रहा था कि यही तमन्ना तो हम भी लेकर आए थे जिसे ईश्वर ने पूरा कर दिया...


कुछ किन्नर भी अपने सहयोगियों के साथ वहां पर दिखे ...सब के भाव इस महान् हस्ती के साथ कुछ इस तरह से जुड़े दिखे कि मैं ब्यां नहीं कर पा रहूा हूं ...किन्नरों ने भी लता जी के गाए गीतों पर खूब नाच-कूद की ...इस वक्त यहां पहुंच कर यह उन का उस कर्ज को हल्का करने का इरादा रहा होगा ....लेकिन यह कर्ज कोई चुका न पाएगा....लता जी तो हम सब को इस कर्ज के नीचे अच्छे से दबा कर चली गईं .... मेरे पास खड़े एक युवक ने पास ही खड़े एक दूसरे युवक की तरफ़ इशारा किया कि देखिए, उस के पिता जी बीमार हैं, खटिया पर हैं ...यहां आ नहीं पाए ...तो यह यहां से उन्हें  चिता के दर्शन करवा रहा है और साथ में कह रहा है ....साथ में क्या कह रहा है, वह मेरी समझ में नहीं आया...मैंने उसी मराठी मानस से पूछा कि क्या कह रहा है ...उसने मुझे हिंदी में बताया कि वह अपने पिता जी को बता रहा था कि सब खत्म हो गया...

एक बात और बताऊं ...लता जी के अंतिम संस्कार के वक्त वहां पर आए सभी लोग अपने ही लग रहे थे ...ऐसे लग रहा था कि अपने घर का ही कोई सदस्य रूख्सत हो गया हो जैसे ...तभी तो चिता पूरी जलने तक किसी का बाहर जाने का मन ही नहीं कर रहा था ..वहीं खड़े खड़े इस देवी की जलती चिता को निहार रहे थे चुपचाप...जब मैं वीडियो बना रहा था तो एक युवक मेरे पास आया कि मैं मोबाइल नहीं ला पाया, अगर आप मेरे को यह वीडियो भेज देंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी ..मैंने कहा कि मेहरबानी कैसी, उसी वक्त कोशिश की उस के नंबर पर भेजने की ..लेेकिन नहीं हो पाया...घर आने पर भूल गया... अगले दिन सुबह होते ही उसे तीन वीडियो भेजे और साथ में लता जी पर लिखे अपने ब्लॉग का लिंक ...वह बहुत खुश हुआ...

इस दिव्यांग के जज़्बे को सलाम...🙏

हां, जब मैंने लौटते वक्त बैसाखियों के सहारे चल रहे एक दिव्यांग शख्स को बाहर जाते देखा तो मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि कितना प्यार करते होंगे लोग इस देवी से कि इतनी मेहनत कर के यह दिव्यांग भी यहां पर अपने श्रद्धांजलि देने पहुंच गया ...पता नहीं कितनी दूर से आया होगा ...और इतने बड़े शिवाजी पार्क में भी तो इसे इतना चलना पड़ा होगा...मैं सोच रहा था कि इस वक्त चुस्त-दुरुस्त लोग नेटफ्लिक्स के हवाले हुए पड़े होंगे और यह बंदा इतनी मेहनत-मशक्कत कर के ........ऐसे लोगों के जज़्बे को भी मेरा सलाम।

गुस्ताख़ी माफ, वीडियो बनाने के लिए ..लेकिन लोगों को आज कर वीडियो की बात ही समझ में आती है, क्या करें...

और इस देवी को स्वर्ग की तरफ़ प्रस्थान इसी तरह से निहारते हुए हम वहां से लौट आए...Rest in peace, Lata Didi, you have done a lot for humanity! Now it is time to take some eternal rest!

मुझे यह भी लग रहा था कि इतना समय हो गया मुंबई में और शिवाजी पार्क नहीं आए कभी ...यह भी क्या बात हुई...बस, जब मैं लंबी दूरी के लिए साईकिल चलाने निकलता था पिछले बरस तो बाहर ही से देख लेते थे ...या खबरों में पढ़ लेते थे इस की ऐतिहासिकता के बारे में ...और यह भी कि सचिन तेंदुलकर भी बचपन में यहीं प्रेक्टिस किया करते थे ...लता जी भी क्रिकेट की जबरदस्त फेन थीं..उस दिन एक वीडियो देख रहा था जिसमें वह बता रही हैं कि पहले जब टेस्ट-मैच चार चार दिन चलते थे तो कईं बार मैच देखने के लिए वह आठ दिन तक घर ही में रहती थीं ..उन दिनों कोई रिकार्डिंग भी नहीं करती थीं...

पार्क के बाहर लगी हुई स्व. मीनाताई ठाकरे की प्रतिमा 


लता जी, अब हम भी इन फूलों में, इन की खुशबू में, खुली खुशनुमा फ़िज़ाओं में, कुदरती नज़ारों में, हंसते चेहरों में आप को ढूंढ लिया करेंगे, देख भी लिया करेंगे ...आप का गाया यह बेहद सुंदर गीत सुन लिया करेंगे .🙏.. वाह...गले में मां सरस्वती ने वास भी ऐसा किया कि करोड़ों अरबों लोगों में आप की आवाज़ का जादू बरसों-बरसों तक चलता ही चला गया ...और यह चलता ही रहेगा...हमने लोरी सुनने की उम्र में मां की लोरीयों के साथ साथ आप के वही गीत सुने, बड़े होने पर शोखी भरे गीत..आगे चल कर हमें जीवन की सीख, अच्छे-बुरे रास्ते की पहचान दिखाने वाले गीत, फिर और आगे चले तो वे गीत सुनने लगें जिन में ज़िंदगी का मक़सद पता चलता है ...अभी इन गीतों को समझ कर आत्मसात करने की कोशिश ही कर रहे थे कि आप तो चली ही गईं....

अलविदा ... 

सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

स्वर कोकिला लता जी की याद में - दूसरी कड़ी



मैं आज सुबह आप को बता रहा था कि मैं लता जी के अन्तयेष्ठि स्थल - दादर के शिवाजी पार्क तक पहुंच गया...(इस लिंक पर आप पूरी बात देख-पढ़ सकते हैं..) 







जब मुझे किसी से पता चला कि शिवाजी पार्क के अंदर भी जा सकते हैं ..लता जी को श्रद्धांजलि देने तो मैं भी एक लाइन में लग तो गया ...अंदर घुसने से पहले सभी लोगों की अच्छे से तलाशी और मेटल-डिटेक्टर से जांच हो रही थी ...मैं भी लाइन में लग तो गया ..बाप रे बाप....इतनी लंबी लाइन ...गेट से बाहर भी पता नहीं कितनी दूर तक फैली हुई...और अंदर भी बहुत लंबी लाइन ...सिर के बाल सारे पके हों तो, उस का यह फायदा यह भी होता है कि आप को आप ही की उम्र के आसपास के अनजान बालों को लाल-काला रंग हुए लोग भी चाचा कहने लगते हैं...मैं गेट के बाहर लगी लाइन के आखिर में जा ही रहा था कि किसी तरफ़ से आवाज़ आई कि चाचा इधर ही लग जाओ...मैं वहीं खड़ा हो गया...मैंने सोचा कि अब चाचा बाकी काम अपने आप कर लेगा ...क्योंकि हमारा कल्चर ऐसा है कि हम बूढ़े लोगों को ज़्यादा टोकते नहीं हैं....मैं कुछ लोगों के आगे तो ऐसे ही निकल गया ...इतने में पता नहीं लाइन में क्या भगदड़ हुई ...लोग दो लाइनें बनाने लगे और मैं फिर आगे चलने लगा ..और इस तरह मुश्किल से पांच दस मिनट में लता जी के पार्थिव शरीर तक पहुंच गया ....सादर नमन किया ...बड़ा ग़मग़ीन माहौल था वहां...पहले तो लता जी को राजकीय सम्मान दिया गया... बैंड से धुनें बज रही थीं...मंत्रोच्चारण चल रहा था ...कुछ समय बाद ही चिता को आग दे दी गई ...



इस ताई को सुनना ही बहुत मार्मिक था...ज़ी टीवी की एक ऐंकर से इन की गुफ्तगू चल रही थी...बार बार भावुक हो रही थीं..इन्हें देख कर आसपास खड़े हम सब लोग भी भावुक हो गए...कल मुझे यह अहसास हो रहा था कि जहां आप रहते हैं न, वहां की भाषा भी सीख लेनी चाहिए...ज़्यादा दिमाग नहीं लगाना चाहिए, मुझे भी अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था कि इतने बरस हो गए यहां रहते हुए लेकिन अभी तक मराठी नहीं सीखी....वैसे मैं गुज़ारे लायक बात तो समझ ही लेता हूं और जो नहीं समझ पाता उस बात को किसी की आंखों में पढ़ लेता हूं ...

ज़ी वी वाली एंकर गईं तो दूसरे किसी चैनल का ऐंकर आ गया...लेकिन ताई की अब फिर से वह बात दोहराने की इच्छा न थी, वह अपने साथ आई महिला को इशारा करती है कि अब फिर से मेरे से नहीं होगा, चल चलते हैं...इस ताई की यह बात सच में मेरे दिल को छू गई...मुझे मराठी ज़ुबान बहुत अच्छी लगती है, ख़ास कौर जो गावठी मराठी गांव के लोग बोलते हैं...

लोगों ने अपने अपने ढंग से लता दीदी को श्रद्धांजलि दी 




संसार की हर शै का इतना ही फ़साना है ...इक धुंद में आना है, इक धुंद में जाना है 😂🙏