गुरुवार, 22 मार्च 2018

आज के दिन पानी की बातें ही होंगी...

सुबह अखबार देखा तो एक पूरी फेहरिस्त भी दिखी थी कि आज के दिन विश्व जल दिवस के मौके पर कौन कौन से प्रोग्राम कहां कहां होने जा रहे हैं...मैं आज के दिन के बारे में शायद भूल ही गया होगा अगर आज सुबह छोटी सी साईकिल यात्रा के दौरान मुझे खास देखा न होता...

ऐसा भी क्या खास देख लिया मैंने? -- आपने देखा होगा कि कुछ घरों के बाहर बहुत सारा पानी इक्ट्ठा हो जाता है ... पानी गंदा होता है, काई जमी होती है ...जानवर भी वहां पर पानी नहीं पीते, बिल्कुल बदबूदार, बीमारीयां परोसने वाला और मच्छरों की कॉलोनी होता है यह पानी ...आप ने ज़रूर देखे ही होंगे ऐसे मंज़र...इसे आप छप्पड़ से कंफ्यूज़ नहीं कर सकते ...

छप्पड़ क्या होते हैं...पहली बात तो यह है कि शायद यह पंजाबी का लफ़्ज है ...हिंदी में पोखर, तालाब कहते होंगे ...अकसर ये बरसाती पानी से गांव में या शहरों की खाली जगहों पर बन जाते थे ...बचपन में हम देखते थे हमारे साथी लोग उन छप्पड़ों में कूद कूद कर मज़ा किया करते थे और हम बस किनारे पर बैठ कर उन की हिम्मत की दाद दिया करते, शायद थोड़ी जलन भी होती लेकिन बस वहां किनारे पर मन ममोस कर बैठे ही आते ....उन छप्पड़ों में गाय, भैंस भी तैरने का आनंद ले रही होतीं...वे भी क्या दिन थे!

एक तो मैं बात को खींचने बड़ा लगा हूं... सीधी सी बात है कि आज सुबह मैंने देखा कि ऐसे ही एक गंदे पानी के तालाब के पास एक धोबी मैले कपड़ों की गठरियां खोलने में मशगूल था .. दोष उस का भी नहीं है, अब धोबीघाट तो पुरानी फिल्मों में ही दिखते हैं...उसने भी पूरी रिसर्च कर ही रखी होगी...वह भी अपना काम करे तो आखिर करे कहां...पापी पेट का सवाल है ...और सब से बड़ी बात जब ग्राहक को कोई शिकायत नहीं है तो आप और हम कौन होते हैं टांग अड़ाने वाले ....बस, ध्यान यही आ रहा था कि ऐसे पानी से धुले कपड़ों की साफ़-सफ़ाई का क्या म्यार होता होगा! यह एक लखनऊ की नहीं, सारे देश की समस्या होगी शायद!

मैंने अपने अनुभव और आबज़र्वेशन के आधार पर कह सकता हूं कि पर्यावरण की जितनी सेवा ऐसे लोग करते हैं जिन्हें हम कम पढ़ा लिखा, कम अवेयर कहते हैं या वे लोग जो कम साधन-संप्पन होते हैं ... वही लोग पेड़ों को काटने से गुरेज करते हैं... कम पानी में अपना निर्वाह करना जानते हैं... मजबूरी वश ही शायद, लेकिन वे लोग सीमित में भी खुश रहते हैं....पहाड़ों का ही देखिए, वहां के लोग तो प्राकृतिक संसाधनों को सहेज कर रखते हैं ...लेकिन पूंजीपति ही वहां जा कर कंकरीट के जंगल तैयार कर के पर्यावरण संतुलन में गड़बड़ कर देते हैं...

इसलिए मुझे हमेशा लगता है कि तरह तरह के दिन मनाने के नाम पर जो लोग या संस्थाएं पेज-थ्री जैसे आयोजन करती हैं ...वे सिर्फ़ पब्लिसिटी बटोरने का काम करते हैं ..अधिकतर ....(जेन्यून भी हैं बहुत से लोग) ... मुझे बड़ी चिढ़ होती है ऐसे प्रोग्रामों के नाम से ...मैं जानता हूं कुछ प्रभावशाली लोगों ने इन मौकों को नेटवर्किंग का बहाना बनाया हुआ है ...फंड्स मिलते हैं, मशहूरी होती है....रसूखदार लोगों के साथ उठना-बैठना होता है ...अखबारों में फोटो छपती हैं...बस...


लेकिन मेरा यकीन है कि सारा काम तो ज़मीन से जुड़ा हुआ आदमी ही करता है ...पेड़ अधिक लगाता है, मोह करता है उनसे, पानी का संरक्षण भी करता है ... शांतिपूर्ण सहअस्तित्व में यकीन भी ज़्यादा रखता है ... एक तरह से पर्यावरण का संतुलन जितना भी बचा हुआ है उसी के भरोसे बचा हुआ है ...मुझे इस समय उस महान पर्यावरण संरक्षक सुंदर लाल बहुगुणा की याद आ रही है जो पहाड़ी क्षेत्रों में जब कोई पेड़ काटने पहुंचता था तो वह पेड़ों से चिपक जाता था कि पहले मुझे पर कुल्हाड़ी चलाओ, फिर पेड़ पर चलाना! ..अनगिनत ऐसे उदाहरण पड़े हुए हैं...

दरअसल पानी दिवस की बात होगी तो और भी बहुत सी बातें होंगी, सब कुछ आपस में गुंथा हुआ है ... पानी के बचाव की बात होगी, संरक्षण की बात भी ज़रूरी है और पानी अधिक से अधिक बरसे, इस का भी मंथन होगा...पेड़ों के संरक्षण की बातें होंगीं, नदियों को सुरक्षित रखने की चर्चा होगी, प्रदूषण कम करने की बात भी जुड़ेगी....कार्बन ईमिशन कम करने की चर्चा, पेट्रोल का कम इस्तेमाल, ए.सी आदि का कम से कम उपयोग.....सब मुद्दे इतने जुड़े से हैं कि इन के जुड़ाव का सम्मान करना और इन के बारे में सचेत रहना भी पर्यावरण की सेवा ही है ...



शहरी लोग तो शेव और ब्रुश करते समय पानी की टूटी ही बंद रखें, कार और बागीचे में अगर रिसाईक्लड पानी से काम चला लिया करें तो यह भी एक सेवा ही है ... बड़ी बड़ी बातें बड़े लोगों के बड़े बड़े वादों पर छोड़ते हैं.. कुछ पता नहीं लगता कौन जेन्यून है और कौन जुमलेबाजी में माहिर है बस ...जैसे कईं बार हम असली नकली में फ़र्क पता नहीं कर पाते ...आज सुबह मैं घर के बाहर गया तो यह फूल देखा ....मुझे लगा कि इस बहार के मौसम में कितने रंग-बिरंगे रंग रंग के फूल खिल रहे हैं... लेकिन मैंने उठाया तो मुझे तब पता चला कि यार, यह तो नकली है!


इसी बात पर यह गीत याद आ गया, इसे सुनने लगा हूं...लेख-वेख को यही छोड़ते हैं... जितना कह दिया उतना ही काफ़ी है !!...

बुधवार, 14 मार्च 2018

सोना कितना सोना है ...

आज सुबह पहली मरीज़ थी एक महिला ५० साल के करीब की उम्र की ... आध घंटे पहले अपने पति के साथ अस्पताल ही आ रही थी कि लखनऊ के ईको गार्डन के पास दो लुक्खे आए ...और उसके एक कान की सोने की बाली खींच के हवा में उड़ गये ...(ईको गार्डन यहां का एक पॉश एरिया है)...

पति ने बताया कि वह अकसर ३५-४० की स्पीड से ही स्कूटी चलाते हैं...और जो दो लुक्खे आये उन की पल्सर मोटरसाईकिल की स्पीड बहुत तेज़ थी .. उन्होंने एक झपट्टे में ही यह काम कर डाला ... पीछे से आ रहे एक मोटरसाईकिल वाले को उन्होंने कहा कि इन का पीछा करो भाई ... कुछ दूर तक उसने उन लुक्खों का पीछा तो किया ..लेकिन लुक्खे तो ठहरे लुक्खे, कहां किसी की पकड़ में आते हैं...

इस महाशय ने १०० नंबर पर फोन किया ...दारोगा अपनी कार में पहुंच गये .. और डॉयरी वॉयरी में कुछ रपट लिख ली उन्होंने ...
यह सब बातें एक सरदार जी सुन रहे थे जो भी एक मरीज़ थे ...उन्होंने अपना अनुभव शेयर किया कि जिस एरिया में वे लोग रहते हैं वहां तो मियां-बीबी सैर कर रहे होते हैं ...तो पीछे से अचानक मोटरसाईकिल सवार लुक्खे आते हैं और धक्का देकर आदमी को गिरा देते हैं और औरत के ज़ेवर नोच कर उड़ जाते हैं..

सरदार जी ने बताया कि अभी हाल का ही एक वाकया है कि एक औरत से चैन और कंगन की झपटमारी हुई ...उसके साथ उस की एक सहेली थी .. अभी वे लूट कर जा ही रहे थे और सहेली ने ज़ोर२ से शोर मचाया तो उस ने उसे कहा ...चुप कर, नकली ही थे। जैसे ही यह आवाज़ उन लुटेरे के कानों में पड़ी, वे लोग वापिस लौटे और महिला के मुंह पर कस के दो कंटाप मार गये कि नकली ज़ेवर पहन कर निकलती हो ...

बात वही है रोज़ ये जेवर लूटे जा रहे हैं...और हर शहर में ये घटनाएं हो रही हैं....अखबारें गवाह हैं ...शायद अब तो लोग ऐसी खबरें पढ़ते भी नहीं ... यह एक आम सी बात हो गई है ... और आज में सोच रहा था कि जो लोग इस तरह की लूट का शिकार औरतों से सहानुभूति दिखाते हैं वह भी काफ़ी हद तक सतही ही होती है ...कहीं न कहीं मन में सब के यही रहता है कि सारी दुनिया जानती है कि इस तरह की लूट अब बहुत आम बात हो गई है, ऐसे में हम लोग गहने-ज़ेवर पहन कर निकलते ही क्यों हैं....

बात सुनने में बड़ी अजीब सी लगती है कि लूट की घटनाएं होती हैं इसलिए औरतें ज़ेवर पहनना ही बंद कर दें ... ठीक है, अगर नहीं कर सकतीं तो ऐसी लूट के लिए तैयार भी रहें ... कानून व्यवस्था हम सब जानते हैं..कितने लुटेरे कब पकड़े जाते हैं और कितना माल उनसे बरामद होता है, यह आप और हम जानते हैं .... सरकार को Z plus security देनी है ...व्ही आई पी लोगों को भी ऐसे माहौल में सुरक्षित रखना है ...और भी बहुत से इंतजाम करने होते हैं...!!

मुझे कभी यह समझ नहीं आता कि इस तरह के हालात में लोग ज़ेवर पहनते ही क्यों हैं....बात सिर्फ़ लूट की ही नहीं है, जो लूटने निकला है ...वह पूरी तैयारी से निकला है ... और जो शिकार है वह एकदम निहत्था...वह शख्स कह रहा था कि हम तो शुक्र मनाते हैं कि हम लोग स्कूटर से गिरे नहीं ...अगर इस को (बीवी की ओर इशारा कर के कह रहा था) ब्रेन-हेमरेज हो जाता तो हम क्या कर लेते! आम आदमी कैसे अपने मन को तसल्ली दे लेता है!!

उसने बताया कि कुछ समय पहले उस की बेटी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ ..वह लड़कियों को स्कूटर चलाना सिखाती हैं और काफी साहसी है, ऐसे ही मोटरसाईकिल पर तीन लुक्खे आए, उस की सोने की चेन झपट कर दौड़ने लगे ...उसने भी अपनी स्कूटी तेज़ की और उन के पास जैसे ही पहुंची, एक ने तमंचा उस की तरफ़ कर दिया ...बस, वह अपनी जान बचाने के चक्कर में पीछे हट गई।

यह दोनों मियां बीबी मेरे पास अपने दांत उखड़वाने आए हुए थे ... दांत तो वे उखड़वा ही गये ... लेकिन बीच में एक बार झल्ला कर कहने लगा वह शख्स कि मैं तो कहता हूं कि असली सोना पहनना ही नहीं चाहिए... नकली ही पहनना चाहिए...
मैंने कहा कि पहनना ही क्यों चाहिए, और क्या गारंटी है कि नकली सोना पहनने वाले सुरक्षित रहेंगे ....जो भी इस तरह के सिरफिरे होते हैं वे पूरी तैयारी के साथ आते हैं... मैंने कहा कि हमारी तो एक अंगूठी पहनने की हिम्मत नहीं होती.... कब, कौन, कहां रोक ले क्या भरोसा....वैसे भी हम कौन सा  "शक्तिमान"  हैं...

 हां, तो इस से बचने का एक ही उपाय है कि लोग सोना पहन कर बाहर निकलना बंद कर दें ...अगर मेरी बात बुरी लगे तो अपनी सेफ्टी का इंतज़ाम भी स्वयं ही कर के निकलिए ....वरना उस शख्स की तरह उम्मीद ज़िंदा रखिए जैसे वह मुझे जाता जाता कह गया ..डाक्साब, मैंने भी उन्हें देख तो लिया है, आते जाते ध्यान रखूंगा ...और कभी तो मेरे हत्थे चढ़ ही जाएंगे....उस की इस बात से आज फिर लगा कि सच कहते हैं दुनिया आस पर टिकी है ..हम सब के अपने घरों में या बिल्कुल आसपास इक्का दुक्का किस्से हो चुके हैं, लेकिन हम हैं कि बाज़ ही नहीं आते सोना पहनने से .. अपनी जान तो जोखिम में डालते ही हैं, साथ में जाने वाले के लिए भी मानो खतरे की माला पहन कर चलते हैं... क्या ख्याल है आपका?

PS...सोने वोने से मुझे तो लगता नहीं कि कुछ होता है ...कुछ लोग पांच रूपये की मोती की माला में भी चमकते हैं और कुछ सोने लादे हुए भी ....Thank God beauty is not skin deep! Beauty is a very holistic concept...you know what I want to convey!

बर्फी फिल्म के इस गीत की तरह ही हम सब लोगों की हंसी-खुशी है ....क्या आप को ऐसा नहीं लगता? It has a very big message!!



मंगलवार, 13 मार्च 2018

दिन भर में कितना पानी पिएं और कब पिएं?


मुझे ऐसा लगता है कि यह सवाल बड़ा अहम है ...कि हमें कितना पानी पीना चाहिए और कब पीना चाहिए...इस के बारे में बिन मांगी सलाह देने वालों का तांता लगा हुआ है ... इतने लोग आप को इस सवाल का जवाब अपने अपने तरीके से देने वाले मिल जाएंगे कि सिर ही भारी हो जाए! 

मुझे याद है कि कुछ साल पहले मेरे पास एक बुज़ुर्ग आए थे ओपीडी में ...और सलाह देने लगे कि सुबह उठते ही दस पंद्रह गिलास पानी पीने चाहिए..मुझे अजीब सी बात लगी ...मैंने कहा कि इतना पानी कोई पी भी सकता है सुबह सुबह ...कहने लगे कि मैं तो पीता हूं ..इसे हाइड्रोथैरेपी कहते हैं... और मैं एक दम फिट रहता हूं...जिस बात के बारे में मुझे वैज्ञानिक तर्क नहीं मिल पाता उसे मैं एक कान से डाल कर दूसरे से निकाल दिया करता हूं...

और मजेदार बात यह होती है कि इस तरह के सलाह-मशविरे देने वाले लोगों को मैडीकल साईंस की ABC भी नहीं पता होती ...इसीलिए जब भी मुझे कोई मैसेज किसी विशेषज्ञ से मिलता है तो अकसर मैं समझ जाता हूं कि इस बात पर उस विशेषज्ञ की मोहर लगी हुई है ...

अभी बैठा हुआ था तो अपने एक पुराने ज़माने के स्कूल से दिनों से साथी डा चावला का एक वाट्सएप मैसेज आया ...जिसे मैंने यहां अपलोड किया है ... यू-ट्यूब के ज़रिये यहां लगाना चाहा तो अपलोड नहीं हुआ... मैंने ऐसे ही यू-ट्यूब पर हिंदी में यह लिख कर सर्च किया कि हमें कितना पानी पीना चाहिए और कब पीना चाहिए....बस, फिर क्या था, लाइन लग गई वीडियोज़ की .. कोई बाबा, कोई एक्सिविस्ट, कोई फलाना कोई ढिमका ... मैंने तो एक ही खोली और यू-ट्यूब बंद कर के डा चावला से मिली वीडियो पर ही फोकस करने लगा ...

मैं चाहता हूं कि आप यह जानकारी अच्छे से देखें और इस पर अमल भी करें ...


दरअसल इस तरह की पोस्टें शेयर करने के पीछे मेरा स्वार्थ भी छिपा होता है ...मैंने कहीं पढ़ा था और बहुत बार सुना भी है कि सीखने का सब से बढ़िया तरीका यह भी है कि आप पढ़ाना शुरू कर दीजिए...खैर, मैंने तो क्या पढ़ाना है, इस का मतलब आप यह ले लें कि जो बात या जो इल्म आप तक पहुंचा है आप उसे आगे बांटना शुरू कर दें ..क्योंकि जितनी बार आप उसे आगे भेजते हैं ..उतनी बार वही बात आप अपने आप से भी कह रहे होते हैं ...किसी भी बात पर अमल करने के लिए यह बड़ा ज़रूरी है ..

जब मैं यह वीडियो देख रहा था तो बीच में मैंने एक स्क्रीन-शॉट लिया जो जानकारी मुझे बड़ी सटीक लगी ...आप से भी शेयर करता हूं अभी ...

लेकिन लगता है यह स्क्रीन-शॉट ज़्यादा क्लियर नहीं है ...चलिए, पैन से लिख कर आप से शेयर करते हैं....क्योंकि यह जानकारी काफी अहम है याद रखने के लिए...आप के लिए भी और मेरे लिए भी ... 

ज़्यादा गर्मी होने पर, एक्सरसाईज़ करते वक्त पानी की डिमांड बढ़ना नेचुरल है 

बातें हम लोग जानते हैं ...शायद ज़रूरत से ज़्यादा जानते हैं लेकिन इस्तेमाल नहीं करते, कर नहीं पाते या इस्तेमाल कर पाने की तमन्ना ही नहीं होती ... इसीलिए बार बार कुछ अच्छी बातों को दोहराया जाना ज़रूरी होता है ... 

मैं भी इस हिसाब से दिन भर की ज़रूरत का लगभग आधा या उससे थोड़ा ज्‍यादा ही पानी पीता हूं ....गलत बात है ...सुधर जाना ज़रूरी है ...यह जो सुबह उठते ही दो गिलास पानी पीने वाली बात है ..यह मुझे जब याद आ जाती है तो मैं ज़रूर पी लेता हूं ...फिर एक दो महीने की छुट्टी ...हां, खाने से बाद ३०-४० मिनट बाद ही पानी पीता हूं जैसा कि इस वीडियो में बताया गया है ..लेकिन खाना खाने से ४० मिनट एक गिलास पानी पीने वाली बात को नज़रअंदाज़ करता हूं... 

शायद आप भी मेरी तरह पानी तभी पीते हैं जब प्यास लगती है लेकिन मैडीकल विशेषज्ञ यही कहते हैं कि जब आप को प्यास लगती है तो इस का मतलब है कि आप के शरीर में पानी की कमी होने लगी है (डीहाईड्रेशन) ...इसीलिए यह नौबत आने ही नहीं देनी चाहिए....

आज से आप भी पानी पीने के बारे में सचेत रहिए...मैं भी कोशिश करूंगा .. अभी लिखते लिखते ही मुझे ध्यान आया शाम के समय पानी पीने वाली बात का तो मैंने अभी एक गिलास पानी पिया ... 

और हां, बच्चों को भी छुपटन से ही ये आदतें डाल दीजिए...क्योंकि बचपन की आदतें ही आगे चल कर पक्की होती हैं....कईं लोगों से सुनता हूं कि गुनगुना पानी पीना चाहिए सर्दी में ...लेकिन वह मेरे से बिल्कुल नहीं पिया जाता ... इतना अजीब लगता है कि क्या बताएं! और बचपन से ही आदत है कि खांसी-जुकाम होने पर बस नमक वाले पानी से गरारे करने हैं, मुलैठी चूसनी है ...बेसन का सीरा पीना है ....बस, यही परफैक्ट इलाज समझता हूं आज तक ...कभी भी ऐंटीबॉयोटिक लेने की इच्छा ही नहीं हुई खांसी जुकाम के लिए ....अगर कभी शुरू भी कर दिया तो महज़ एक ही खुराक के बाद छोड़ दिया ....क्योंकि गरारे और मुलैठी से ही ठीक लगता है ....वही बात है, बहुत सी आदतें बचपन से ही पड़ जाती हैं... 

तो ठीक है, दोस्तो, आज से हम सब अपनी पानी पीने की आदतों को देखेंगे .... सुधारेंगे ...और पानी पीने के लिए प्यास लगने का इंतज़ार नहीं करेंगे ...यह बहुत ज़रूरी है .. और हां, ज़रूरत से बहुत ज़्यादा पानी पीने के क्या नुकसान हैं....वह भी आपने वीडियो में देख ही लिए...इस से गुर्दे साफ़ नहीं होते, उन पर लोड पड़ता है ...और हां, कुछ शारीरिक व्याधियां ऐसी होती हैं जिन में डाक्टर लोग स्वयं मरीज़ को कम पानी पीने के लिए कहते हैं ..विशेषकर कुछ गुर्दे की बीमारियों में ...

बस अपना ध्यान रखिए ...और इन बातों को याद रखिए .. 

एक बाबा है जो अकसर टीवी पर दिख जाता है ...उसे अचानक गुलाब जामुन दिखने लगते हैं, हलवा दिखने लगता है...खीर दिखने लगती है ..बस, मुझे भी पानी पर लिखते लिखते मोहम्मद रफी साहब का यह सुपरहिट पंजाबी गीत याद आ रहा है ...जिसे २०-२५ साल की उम्र तक शायद सैंकड़ों-हज़ारों बार आल इंडिया रेडियो जालंधर से सुन चुका हूं...