रविवार, 1 अक्तूबर 2017

सुबह नाश्ते ना करने वालों के लिए एक संदेश...

दरअसल कई बार वाट्सएप पर कुछ ऐसे संदेश किसी डाक्टर से मिल जाते हैं कि अपना काम बढ़ जाता है ...यही लगता है कि इन्हें हिंदी में लिख कर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाया जाए..आज भी सुबह एक ऐसा ही संदेश मिला है ...जानते हम सब कुछ हैं...लेकिन अगर परदे के पीछे की बात भी पता चल जाती है तो हम उस पर अमल भी करने का मन बना लेते हैं...क्या ख्याल है ... बस, आज की बात का विषय ही है कि सुबह नाश्ता करना क्यों ज़रूरी है...ध्यान से पढिए और अमल करिए...पढ़ने से भी कहीं ज़्यादा अमल ज़रूरी है ....

टन ...टन ..टन 

सुबह की घंटी बजती है और हमारा दिमाग चिंता करनी शुरू कर देता है ...उठो, भाई, उठो, यह जाग जाने का समय है। हम ने पूरा ईंधन खपा दिया है..." इस के साथ ही दिमाग पहले न्यूरोन (दिमाग की सब से छोटी ईकाई) से यह पता करने की कोशिश करता है कि रक्त में कितना ग्लुकोज़ अभी बचा है। रक्त की तरफ़ से जवाब मिलता है ...बस, ईंधन (शुगर) अगले १५-२० मिनट के लिए ही बची है।

मस्तिष्क सकते में आकर न्यूरोन संदेशवाहक (neuraon messenger) को जवाब देता है - ठीक है, जाओ और लिवर से पूछो कि उस के पास कुछ रिज़र्व में है।

लिवर अपना बचत खाता जांच कर जवाब देता है कि ईंधन की सारी पूंजी बस २०-२५ मिनट के ही बची है। कुल जमा २९० ग्राम ग्लुकोज बचा है, जो कि ४५ मिनट तक ही चलेगा...और इस दौरान मस्तिष्क ईश्वर से यह दुआ करता रहेगा कि हमें नाश्ता करने की इच्छा हो जाए।

लेकिन अगर हम सुबह जल्दी में हैं या हमें सुबह कुछ भी खाना नहीं भाता तो बेचारे दिमाग को एमरजेंसी की घोषणा करनी पड़ती है...डियर कार्टीसोन, यहां तो ईंधन खत्म होने की कगार पर है और हमें ज़िंदा रहने के लिए एनर्जी चाहिए। आप मांसपेशियों की कोशिकाओं, हड्डीयों की लिगामेंट्स और चमड़ी के कोलेजन (skin collagen) ..कहीं से जो कुछ भी निकाल सकते हैं, खींच लीजिए....यह एक एमरजैंसी है।"

यह सुन कर कार्टीसोन (हारमोन) काम में जुट जाता है...ताकि सभी कोशिकाएं खुल पाएं और प्रोटीन उन से बाहर निकल पाए....जैसे सामान खरीदते वक्त मां का पर्स खुल जाता है..। ये सभी प्रोटीन अब लिवर में पहुंच कर ग्लुकोज़ में तबदील होने लगते हैं...और यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक कि हम कुछ खा नहीं लेते।

जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा ...जो भी व्यक्ति यह सोचता है कि सुबह नाशता ना करना ही ठीक है....दरअसल वह व्यक्ति अपने आप को मूर्ख बना रहा है ...और अपनी मांसपेशियों को नहीं, अपने आप को ही खा रहा है, बस यही समझ लीजिए। 

इस का नतीजा यह निकलता है कि व्यक्ति की मांसपेशियां कमज़ोर और ढीली पड़ने लगती हैं... और दिमाग जो बुद्धिमता से जुड़े काम धंधे छोड़ कर सुबह का सारा समय एमरजैंसी सिस्टम को जगाने में पड़ा रहता है ...ताकि कैसे भी ईंधन और खाने का जुगाड़ हो सके।

इस का आप के वजन पर क्या असर पड़ता है?

 जब कोई व्यक्ति सुबह की शुरूआत कुछ भी ना खाने से करता है तो वह जैसे शरीर में एनर्जी सेविंग सिस्टम को चालू कर देता है ....जिससे शरीर की सभी प्रक्रियाएं (metabolism) मंद पड़ जाती हैं....अच्छा, दिमाग को यह नहीं पता कि यह ना खाने वाली बात (fasting) कितना समय चलेगी, कुछ घंटे या कुछ दिन....इसलिए यह जटिल प्रतिबंध लगाए ही रहता है ...यही कारण है कि जब वही व्यक्ति बाद में दोपहर में खाता है तो उस भोजन को शरीर में "ज्यादा" मान लिया जाता है ...इसलिए इसे वसा के भंडार ती तरफ़ धकेल दिया जाता है ...और बंदे का वजन बढ़ने लगता है। 

That's why if the person decides to have lunch later, the food shall be accepted as an excess, it will be deviated towards the 'fat reserve bank' and the person will gain weight.

सुबह नाश्ता न करने पर सब से पहले हमारी मांसपेशियां ही घुल कर ईंधन का इंतजाम करने लगती हैं, इस का कारण यही है कि कोर्टीसोल हॉरमोन जो सुबह पर्याप्त मात्रा में होता है, मांसपेशियों के प्रोटीन को नष्ट कर के ग्लुकोज़ बनाने की प्रक्रिया को उत्तेजित करता है...

 अब आप जान गये होंगे कि क्यों सुबह बिना नाश्ते के नहीं निकलना चाहिए....आप का शरीर उसे पसंद करता है ...और आप को इस अच्छी आदत के एवज़ में बढ़िया स्वास्थ्य, दीर्घायु मिलेगी....

सुबह जल्दी नाश्ता करने से आप को पर्याप्त एनर्जी मिलेगी, जिस के आप का दिमाग फुर्ती से काम करेगा... आप के विचारों में गजब की तारतम्यता ---spontaneity-- आयेगी ...शरीर रिलेक्स रहेगा ..और तनाव कम होगा....

डाक्टरी बात तो यहीं खत्म हो गई...उस वाट्सएप पोस्ट में बस इतना ही कंटेट था....किसी को भी ब्रेकफॉस्ट छकाने के लिए।

मैं कुछ महीनों से यही सोच रहा हूं कि जैसे हमारे शरीर में हर छोटी से छोटी प्रक्रिया एक अद्भुत रहस्य है ....वैसे भी भूख लगने की प्रक्रिया भी तो एक ऐसी ही प्रक्रिया है ... कैसे हम लोगों को ठीक समय पर भूख लग जाती है... और अगर हम नाश्ता ना लेकर इस भूख को दबाने की कोशिश करते हैं तो वैज्ञानिक तौर पर इस सब के कितने दुष्परिणाम होते हैं वह तो आपने ऊपर पढ़ ही लिया ...मुझे तो यह भी लगता है कि उस सब के साथ साथ यह प्राकृतिक व्यवस्था का भी अनादर है....खुदा-ना-खास्ता अगर किसी की भूख ही जब उड़ जाती है तो उस पर क्या बीतती है ....यह तो वही ब्यां कर सकता है....

बस, आप थोड़े से सचेत रहिए....बात मान लिया करें....कुछ बातें बड़े काम की होती हैं....

गुरुवार, 17 अगस्त 2017

स्वाईन फ्लू की रोकथाम कितनी आसान है!

वैसे तो सोशल मीडिया पर नींद खुलने से लेकर रात होने तक सारा दिन कुछ भी ठेला जाता है ...मैं इन सब से इतना ऊब चुका हूं कि लगभग ९० से ९५ प्रतिशत माल तो कभी खोलता ही नहीं...और पढ़ना भी नहीं हो पाता..इन की सच्चाई के ऊपर प्रश्नचिंह भी लगा रहता है ...और जहां तक ज्ञान की बातें हैं...वे भी इस उम्र तक अपने हिस्से की सीख ही चुके हैं...अब और नहीं चाहिए, कासा भर चुका है...ज़रूरत है तो बस अमल की ...जिस में अभी तक शून्य हूं...

लेकिन सोशल मीडिया पर कईं बार ऐसे संदेश आते हैं..जिन्हें आप तुरंत प्रसारित करना चाहते हैं...क्योंकि आप मैसेज भेजने वाले किसी डाक्टर मित्र को चालीस वर्षों से जानते हैं, आप को पता है कि वह बंदा बिल्कुल नो-नॉन सैंस तरह का है ...और वह किसी अन्य विशेषज्ञ की कही हुई कोई खा़स बात लिख रहा है तो फिर तो आप उस बात को अच्छे से पढ़ते हैं और एक एक शब्द का ध्यान रखते हुए उस का अनुवाद भी करने की कोशिश करते हैं....

ऐसा ही एक मैसेज मेरे एक डाक्टर मित्र ने कल फेसबुक पर स्वाईन फ्लू की रोकथाम के बारें में एक पोस्ट शेयर की थी...मैंने सोचा कि उसे आप सब के साथ एक ब्लॉग-पोस्ट के माध्यम से शेयर किया जाए.... (यह संदेश भी इंगलिश में था, मैंने उस को हिंदी में शेयर करने की यहां कोशिश की है...ज़रूरी लगा!)



स्वाईन फ्लू की इंफेक्शन के प्रवेश के दो ही रास्ते हैं... नथुने (nostrils) एवं मुंह/गला। हम लोग जितनी भी सावधानियां बरत लें लेकिन जब इस तरह का इंफेक्शन विश्व स्तर पर ही चल रहा हो तो H1N1 वॉयरस के संपर्क में आने से बच पाना लगभग नामुमकिन है, यह बात ध्यान से याद रखने योग्य है। एक बात ज़ेहन में और भी रखिए कि इस वॉयरस के संपर्क में आना इतना चिंता का कारण नहीं है, जितनी यह बात कि इस से संपर्क में आने के बाद इन वॉयरस पार्टिकल्स का तेज़ रफ़्तार से बढ़ना...

जब तक आप स्वस्थ हैं और आप में एच१एन१ इंफेक्शन के कोई लक्षण मौजूद नहीं हैं, तब भी इस वॉयरस की संख्या को बढ़ने से रोकने के लिए, लक्षण पैदा होने की रोकथाम हेतु और इस इंफेक्शन के साथ दूसरी तरह की मौकापरस्त इंफेक्शन (secondary infections) से बचने के लिए कुछ बिल्कुल साधारण से उपाय अपनाए जा सकते हैं... (अधिकतर सरकारी चिट्ठीयों में इन मामूली लेकिन बेशकीमती उपायों के बारे में लोगों को कम जागरुक किया जाता है)...सारा ध्यान बस N95 फेस मॉस्क और टैमीफ्लू के स्टॉक पर ही नहीं लगाए रखना चाहिए...

१. बार बार हाथ धोएं (इसे सरकारी संदेशों में रेखांकित किया जाता है)

२. हाथों को चेहरे से दूर ही रखें- जितनी भी तलब लगे, अपने हाथों को चेहरे पर बिना वजह न लगाते रहें...खाना, नहाना और चांटा लगाना इस के अपवाद हैं। (यह चांटा भी उस पोस्ट में लिखा हुआ है, इसे मैं नहीं जोड़ रहा हूं) हा हा हा हा हा...

३. नमक वाले गुनगुने पानी से दिन में दो बार गरारे करते रहें (अगर आप को नमक पर भरोसा नहीं है तो लिस्ट्रिन भी इस्तेमाल कर सकते हैं) ...एच१एन१ इंफेक्शन को गले अथवा नाक में शुरूआती इंफेक्शन के बाद पनपने और लक्षण पैदा करने के लिए दो तीन दिन का समय चाहिए होता है। साधारण से लगने वाले नमक वाले पानी के गरारे इस वॉयरस को आगे पनपने नहीं देते। आप इस बात को गांठ बांध लीजिए कि इस गुनगुने नमकीन पानी का सेहतमंद बंदे के ऊपर वैसा ही असर होता है जैसा कि किसी संक्रमित व्यक्ति के ऊपर टैमीफ्लू नामक दवाई का होता है ...इसलिए इस तरह के साधारण, आसानी से उपलब्ध और बेहद असरकारक उपायों को कम मत आंकें....ये भी बड़े काम की चीज़ें हैं..

थोड़ा मैं भी तड़का लगाता चलूं....आज सुबह यह गीत सुना है टीवी पर बहुत अरसे के बाद ...वही ज़ेहन में था....अचानक लगा कि अमिताभ नहीं यह बात नमक वाला गुनगुना पानी ही कह रहा हो कि हम हैं बड़े काम की चीज!!


४.हर रोज़ गुनगुने नमक वाले पानी से अपने नथुने ज़रूर साफ़ करें.. हरेक बंदा तो जल नेती और सूत्र नेति (जो नथुनों की सफ़ाई के लिए बहुत उम्दा योग क्रियाएं हैं) कर नहीं पाता, लेकिन नाक को थोड़ा ज़ोर लगा के (कह कहते हैं पंजाबी में सिड़कना या सुकड़ना) दिन में एक बार साफ़ करना और अपने नथुनों में नमकीन गुनगुने पानी में भीगी हुईं कॉटन-बड्स को हल्के से फेर देना भी वॉयरस की संख्या को कम करने का बेहद असरदार एवं सुगम तरीका है..

५. अपनी अच्छी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) को बनाए रखिए... उन सब खाद्य पदार्थों के सेवन से जिनमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता है.. (आमला, सिटरेस ग्रुप के फलों के सेवन से).....लेकिन अगर आप को विटामिन सी के लिए भी सप्लीमैंट्स ही लेने पड़ रहे हैं तो सुनिश्चित कीजिए कि उस में जिंक भी हो ताकि वह शरीर में अच्छे से जज़्ब (absorption) हो सके। 

६. जितना चाहें गर्म पेय लीजिए (चाय, काफी)....(यह इंफेक्शन के सीज़न तक ही लागू होता है....बाकी तो आप सब समझते हैं..) इस बात को समझिए कि गर्म पेय पदार्थों को पीने से भी गरारे करने जैसा ही अच्छा असर होता है लेकिन उलट दिशा में ...इन गर्म पेय पदार्थों से तेज़ी से पनप रहे वॉयरस के जीवाणु  गले से पेट की तरफ़ सरक जाते हैं जहां पर ये संख्या में बढ़ना तो दूर, ज़िदा ही नहीं रह पाते...इसलिए इंफेक्शन से बचाव हो जाता है। 

 मुझे तो यह लेख बहुत उपयोगी लगा ...मैं इस में लिखी बातों पर ध्यान दूंगा....विशेषकर अकेले बैठे हुए यह जो नाक वाक में कभी उंगली डाल लेने की गंदी आदत है, मुझे इसे रोकना होगा, गरारे भी किया करूंगा और हां, नथुने रोज़ाना साफ़ करने वाली बात भी मैं अाज से शुरू करूंगा... How foolishly we take everything for granted, including our own health!

सोशल मीडिया पर भी दोस्त कभी कभी बहुत काम की बातें शेयर करते हैं....उम्मीद है आप भी इस से फ़ायदा लेंगे...

मेरी तरफ़ से सारी कायनात के लिए आज की यह अरदास....आज मैंने छुट्टी ली है, एक दो लोकल काम हैं...इसलिए अभी सुबह थोड़ी फुर्सत लगी तो यह लिख लिया ....हो सके या अगर आप को लगे कि आप के किसी अपने या बेगाने के लिए भी ये छोटी छोटी बातें काम की हो सकती हैं तो शेयर करिएगा... 

मंगलवार, 8 अगस्त 2017

और ऐसे ही रेलवे अस्पतालों की लत लग जाती है !


रेलवे के एक सीनियर डाक्टर डा अनिल थॉमस ने सोशल मीडिया में कुछ दिन पहले अपने अनुभव इन शब्दों में साझा किए... (उन्होंने इंगलिश में लिखा था...लेकिन पता नहीं मैं कैसा टूटा-फूटा अनुवाद कर पाया हूं)... 

"आज का दिन काफ़ी व्यस्त था, ओपीडी का समय समाप्त होने में यही कुछ पौन घंटा रहता होगा... बरामदे में बहुत से मरीज़ अभी प्रतीक्षा कर रहे थे . मैंने अगले मरीज़ के लिए घंटी बजाई और एक ६३ वर्षीय पुरुष अपनी पत्नी के साथ कमरे के भीतर आया...उन्होंने बहुत अच्छे कपड़े पहने हुए थे ...और वे बढ़ती उम्र के साथ होने वाली आम शारीरिक समस्याओं के लिए मुझ से मशविरा करने आये थे, वह अकसर नियमित परामर्श लेने आते हैं।

इस बार उन्हें पेशाब की धार में कुछ समस्या थी पिछले पंद्रह दिनों से ..और दवाई से उन्हें कुछ आराम लग रहा था।

मैं अभी उनसे उन की तकलीफ़ के बारे में बात कर ही रहा था कि बीच में ही उस की पत्नी कहने लगी कि मैं तो इन्हें कहती हूं कि किसी अच्छे से मशहूर अस्पताल में चल कर दिखा लेते हैं ..और एक ऐसे ही अस्पताल में हमारी बेटी एंडोक्राईनोलॉजिस्ट  है और यही नहीं, इन का आठ लाख रूपये का मैडीकल इंश्योरेंस कवर भी है...

उस की पत्नी से इतनी जानकारी मिलने पर मुझे भी यह उत्सुकता हुई कि एक नामचीन अस्पताल में जाने की बजाए यह व्यक्ति इस पॉलीक्लिनिक में आना ही क्यों चुनता है? दोस्तो, उस पुरुष ने ऐसे कारण बताए जो किसी की भी आंखें खोलने के लिए काफ़ी हैं और जिस से रेलकर्मियों के रेल अस्पतालों में भरोसे और विश्वास की एक झलक मिलती है ...

१. वह ३६ साल तक रेलवे में लोकोपाइलट (ट्रेन ड्राईवर) रहा और इन ३६ सालों में वह एक बार भी कभी रेल अस्पताल के बाहर किसी चिकित्सक से परामर्श करने नहीं गया।

२.उस के दोनों बच्चों का जन्म भी रेलवे अस्पताल त्रिची में ही हुआ था।

३. बीस साल तक उस के दोनों बच्चों की सेहत की बेहतरीन देखरेख रेलवे के अस्पताल में ही होती रही।

४. २००४ में उस व्यक्ति की दोनों आंखों के मोतियाबिंद का आप्रेशन भी चेन्नई के बड़े रेलवे अस्पताल में हुआ।

५. उस की पत्नी जिसे मधुमेह है ..इस से आंखों पर किसी किसी को जो असर पड़ता है डॉयबिटिक रेटिनोपैथी...उस के लिए और ग्लुकोमा (काला मोतिया) के लिए यहां चेन्नई के हैडक्वार्टर अस्पताल के आंखों के विभाग में उस का लंबा और संतोषजनक इलाज चलता रहा।

६. हर महीने ये पति पत्नी आते हैं, लंबी कतारों में अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं और नियमित चलने वाली अपनी दवाईयां ले कर जाते हैं।

७. इस दंपति का बेटा गूगल में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और बेटी एक एंडोक्राईनोलॉजिस्ट है ..ये दोनों अपने मां-बाप के लिए बढ़िया से बढ़िया अस्पताल में ऑनलाइन एप्वांयऐंट लेकर बिना फीस की परवाह किए...सब से बढ़िया इलाज चाहते हैं।

लेकिन इस पुरूष ने आगे कहा ...लेकिन हम लोग रेलवे अस्पतालों के साथ पिछले ४० बरस का नाता ऐसे कैसे तोड़ सकते हैं? हमें एक अपनेपन का अहसास होता है यहां जब हम डाक्टरों, पैरामैडीकल स्टॉफ एवं मरीज़ों में जाने पहचाने चेहरे दिखते हैं और हमें यहां घर जैसा माहौल मिलता है।  प्राईव्हेट अस्पताल अति उत्तम हैं भी अगर, तो भी हमें वहां पर ओपीडी में हमें अकेलापन काटता है और अनजान डाक्टरों से बात करने पर भी कुछ तो खालीपन खलता है।

यह बंधन तो प्यार का बंधन है ....

उस व्यक्ति ने जाते समय रेलवे के पुराने डाक्टरों के बारे में मेरे ज्ञान को टटोला, मेरे से अपनी हेल्थ-बुक और नुस्खा लिया और मुझ से हल्के से हाथ मिला कर और एक मुस्कुराहट बिखेरते हुए कमरे से बाहर चला गया...

मेरी यह पोस्ट उन सभी विशेष डाक्टरों, पैरामैडीकल स्टॉफ को समर्पित है जो रेल के मुलाजिमों और सेवानिवृत्त कर्मियों को ता-उम्र रेलवे चिकित्सा सेवा की लत लगाए अपने साथ जोड़े रखते हैं.."
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मुझे डा अनिल थॉमस की यह फेसबुक पोस्ट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा...जो शब्द किसी प्रोफैशनल के दिल से निकलते हैं वे किसी प्रशंसा के मोहताज नहीं होते और जब यह प्रोफैशन कोई डाक्टर हो तो क्या कहने! मैं इस पोस्ट के एक एक शब्द की ईमानदारी को तसदीक करता हूं क्योंकि पिछले २६ बरसों से मैं भी इसी व्यवस्था का हिस्सा रहा हूं..

पोस्ट पढ़ कर पिछले एक सप्ताह से लग रहा था कि इस पोस्ट को (जो अंग्रेजी में थी) हिंदी में लिख कर ज़रूर शेयर करूंगा..लेकिन बस, ऐसे ही आलस करता रहा .. इसे पढ़ने के बाद सोच रहा हूं कि हम सब को --सब से पहले पॉलिसीमेकर्स को, स्वयं चिकित्सकों को ...और किसी भी सरकारी विभाग में नये नये दाखिल हुए डाक्टरों, एवं लाभार्थियों (beneficiaries) को….यह पोस्ट गहराई से सोचने पर मजबूर करती है ... इस पोस्ट में बहुत गहराई है।

एक दूसरी बात का भी लिखते लिखते ध्यान आ रहा है ...कि यह तो थी एक ६३ साल के व्यक्ति की बातें जिसने हमें अपने फीडबैक से खरीद लिया ....अब सोचिए कि ७०-८० और ८५-९० साल के हो चुके रेलकर्मियों के पास इस तरह की हौंसलाअफ़जाई के लिए उनकी मीठी यादों के पिटारे के रूप में कितना बड़ा खजाना दबा पड़ा होगा....जिसे कभी किसी ने ताकने की भी कोशिश नहीं की....समय की कमी, झिझक या बहुत से दूसरे कारणों के रहते ....चलिए, इन से बात करते हैं .......क्योंकि बात करने से ही बात बनती है .....और यह बातचीत भी अपने जीवन की दूसरी पारी खेल रहे इन बेशकीमती शख्शियतों के समग्र इलाज (holistic health care) का एक हिस्सा भी है ...कोई कोयले झोंकता रहा बरसों तक, कोई स्टीम-इंजन की गर्मी सहता रहा ५८ साल की उम्र तक.... हमें अपनी मंज़िल तक पहुंचाने के लिए.....कोई भारी भरकम थैले उठा कर रेल लाइनों को ठोंक-पीट कर रोज़ाना देखता रहा .......अब इन के शरीर के कलपुर्ज़ों और नट-बोल्ट को दुरुस्त रखने की बारी हमारी है। क्या ख्याल है आपका?