दरअसल कई बार वाट्सएप पर कुछ ऐसे संदेश किसी डाक्टर से मिल जाते हैं कि अपना काम बढ़ जाता है ...यही लगता है कि इन्हें हिंदी में लिख कर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाया जाए..आज भी सुबह एक ऐसा ही संदेश मिला है ...जानते हम सब कुछ हैं...लेकिन अगर परदे के पीछे की बात भी पता चल जाती है तो हम उस पर अमल भी करने का मन बना लेते हैं...क्या ख्याल है ... बस, आज की बात का विषय ही है कि सुबह नाश्ता करना क्यों ज़रूरी है...ध्यान से पढिए और अमल करिए...पढ़ने से भी कहीं ज़्यादा अमल ज़रूरी है ....
टन ...टन ..टन
सुबह की घंटी बजती है और हमारा दिमाग चिंता करनी शुरू कर देता है ...उठो, भाई, उठो, यह जाग जाने का समय है। हम ने पूरा ईंधन खपा दिया है..." इस के साथ ही दिमाग पहले न्यूरोन (दिमाग की सब से छोटी ईकाई) से यह पता करने की कोशिश करता है कि रक्त में कितना ग्लुकोज़ अभी बचा है। रक्त की तरफ़ से जवाब मिलता है ...बस, ईंधन (शुगर) अगले १५-२० मिनट के लिए ही बची है।
मस्तिष्क सकते में आकर न्यूरोन संदेशवाहक (neuraon messenger) को जवाब देता है - ठीक है, जाओ और लिवर से पूछो कि उस के पास कुछ रिज़र्व में है।
लिवर अपना बचत खाता जांच कर जवाब देता है कि ईंधन की सारी पूंजी बस २०-२५ मिनट के ही बची है। कुल जमा २९० ग्राम ग्लुकोज बचा है, जो कि ४५ मिनट तक ही चलेगा...और इस दौरान मस्तिष्क ईश्वर से यह दुआ करता रहेगा कि हमें नाश्ता करने की इच्छा हो जाए।
लेकिन अगर हम सुबह जल्दी में हैं या हमें सुबह कुछ भी खाना नहीं भाता तो बेचारे दिमाग को एमरजेंसी की घोषणा करनी पड़ती है...डियर कार्टीसोन, यहां तो ईंधन खत्म होने की कगार पर है और हमें ज़िंदा रहने के लिए एनर्जी चाहिए। आप मांसपेशियों की कोशिकाओं, हड्डीयों की लिगामेंट्स और चमड़ी के कोलेजन (skin collagen) ..कहीं से जो कुछ भी निकाल सकते हैं, खींच लीजिए....यह एक एमरजैंसी है।"
यह सुन कर कार्टीसोन (हारमोन) काम में जुट जाता है...ताकि सभी कोशिकाएं खुल पाएं और प्रोटीन उन से बाहर निकल पाए....जैसे सामान खरीदते वक्त मां का पर्स खुल जाता है..। ये सभी प्रोटीन अब लिवर में पहुंच कर ग्लुकोज़ में तबदील होने लगते हैं...और यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक कि हम कुछ खा नहीं लेते।
जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा ...जो भी व्यक्ति यह सोचता है कि सुबह नाशता ना करना ही ठीक है....दरअसल वह व्यक्ति अपने आप को मूर्ख बना रहा है ...और अपनी मांसपेशियों को नहीं, अपने आप को ही खा रहा है, बस यही समझ लीजिए।
इस का नतीजा यह निकलता है कि व्यक्ति की मांसपेशियां कमज़ोर और ढीली पड़ने लगती हैं... और दिमाग जो बुद्धिमता से जुड़े काम धंधे छोड़ कर सुबह का सारा समय एमरजैंसी सिस्टम को जगाने में पड़ा रहता है ...ताकि कैसे भी ईंधन और खाने का जुगाड़ हो सके।
इस का आप के वजन पर क्या असर पड़ता है?
जब कोई व्यक्ति सुबह की शुरूआत कुछ भी ना खाने से करता है तो वह जैसे शरीर में एनर्जी सेविंग सिस्टम को चालू कर देता है ....जिससे शरीर की सभी प्रक्रियाएं (metabolism) मंद पड़ जाती हैं....अच्छा, दिमाग को यह नहीं पता कि यह ना खाने वाली बात (fasting) कितना समय चलेगी, कुछ घंटे या कुछ दिन....इसलिए यह जटिल प्रतिबंध लगाए ही रहता है ...यही कारण है कि जब वही व्यक्ति बाद में दोपहर में खाता है तो उस भोजन को शरीर में "ज्यादा" मान लिया जाता है ...इसलिए इसे वसा के भंडार ती तरफ़ धकेल दिया जाता है ...और बंदे का वजन बढ़ने लगता है।
That's why if the person decides to have lunch later, the food shall be accepted as an excess, it will be deviated towards the 'fat reserve bank' and the person will gain weight.
सुबह नाश्ता न करने पर सब से पहले हमारी मांसपेशियां ही घुल कर ईंधन का इंतजाम करने लगती हैं, इस का कारण यही है कि कोर्टीसोल हॉरमोन जो सुबह पर्याप्त मात्रा में होता है, मांसपेशियों के प्रोटीन को नष्ट कर के ग्लुकोज़ बनाने की प्रक्रिया को उत्तेजित करता है...
अब आप जान गये होंगे कि क्यों सुबह बिना नाश्ते के नहीं निकलना चाहिए....आप का शरीर उसे पसंद करता है ...और आप को इस अच्छी आदत के एवज़ में बढ़िया स्वास्थ्य, दीर्घायु मिलेगी....
सुबह जल्दी नाश्ता करने से आप को पर्याप्त एनर्जी मिलेगी, जिस के आप का दिमाग फुर्ती से काम करेगा... आप के विचारों में गजब की तारतम्यता ---spontaneity-- आयेगी ...शरीर रिलेक्स रहेगा ..और तनाव कम होगा....
डाक्टरी बात तो यहीं खत्म हो गई...उस वाट्सएप पोस्ट में बस इतना ही कंटेट था....किसी को भी ब्रेकफॉस्ट छकाने के लिए।
मैं कुछ महीनों से यही सोच रहा हूं कि जैसे हमारे शरीर में हर छोटी से छोटी प्रक्रिया एक अद्भुत रहस्य है ....वैसे भी भूख लगने की प्रक्रिया भी तो एक ऐसी ही प्रक्रिया है ... कैसे हम लोगों को ठीक समय पर भूख लग जाती है... और अगर हम नाश्ता ना लेकर इस भूख को दबाने की कोशिश करते हैं तो वैज्ञानिक तौर पर इस सब के कितने दुष्परिणाम होते हैं वह तो आपने ऊपर पढ़ ही लिया ...मुझे तो यह भी लगता है कि उस सब के साथ साथ यह प्राकृतिक व्यवस्था का भी अनादर है....खुदा-ना-खास्ता अगर किसी की भूख ही जब उड़ जाती है तो उस पर क्या बीतती है ....यह तो वही ब्यां कर सकता है....
बस, आप थोड़े से सचेत रहिए....बात मान लिया करें....कुछ बातें बड़े काम की होती हैं....
टन ...टन ..टन
सुबह की घंटी बजती है और हमारा दिमाग चिंता करनी शुरू कर देता है ...उठो, भाई, उठो, यह जाग जाने का समय है। हम ने पूरा ईंधन खपा दिया है..." इस के साथ ही दिमाग पहले न्यूरोन (दिमाग की सब से छोटी ईकाई) से यह पता करने की कोशिश करता है कि रक्त में कितना ग्लुकोज़ अभी बचा है। रक्त की तरफ़ से जवाब मिलता है ...बस, ईंधन (शुगर) अगले १५-२० मिनट के लिए ही बची है।
मस्तिष्क सकते में आकर न्यूरोन संदेशवाहक (neuraon messenger) को जवाब देता है - ठीक है, जाओ और लिवर से पूछो कि उस के पास कुछ रिज़र्व में है।
लिवर अपना बचत खाता जांच कर जवाब देता है कि ईंधन की सारी पूंजी बस २०-२५ मिनट के ही बची है। कुल जमा २९० ग्राम ग्लुकोज बचा है, जो कि ४५ मिनट तक ही चलेगा...और इस दौरान मस्तिष्क ईश्वर से यह दुआ करता रहेगा कि हमें नाश्ता करने की इच्छा हो जाए।
लेकिन अगर हम सुबह जल्दी में हैं या हमें सुबह कुछ भी खाना नहीं भाता तो बेचारे दिमाग को एमरजेंसी की घोषणा करनी पड़ती है...डियर कार्टीसोन, यहां तो ईंधन खत्म होने की कगार पर है और हमें ज़िंदा रहने के लिए एनर्जी चाहिए। आप मांसपेशियों की कोशिकाओं, हड्डीयों की लिगामेंट्स और चमड़ी के कोलेजन (skin collagen) ..कहीं से जो कुछ भी निकाल सकते हैं, खींच लीजिए....यह एक एमरजैंसी है।"
यह सुन कर कार्टीसोन (हारमोन) काम में जुट जाता है...ताकि सभी कोशिकाएं खुल पाएं और प्रोटीन उन से बाहर निकल पाए....जैसे सामान खरीदते वक्त मां का पर्स खुल जाता है..। ये सभी प्रोटीन अब लिवर में पहुंच कर ग्लुकोज़ में तबदील होने लगते हैं...और यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक कि हम कुछ खा नहीं लेते।
जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा ...जो भी व्यक्ति यह सोचता है कि सुबह नाशता ना करना ही ठीक है....दरअसल वह व्यक्ति अपने आप को मूर्ख बना रहा है ...और अपनी मांसपेशियों को नहीं, अपने आप को ही खा रहा है, बस यही समझ लीजिए।
इस का नतीजा यह निकलता है कि व्यक्ति की मांसपेशियां कमज़ोर और ढीली पड़ने लगती हैं... और दिमाग जो बुद्धिमता से जुड़े काम धंधे छोड़ कर सुबह का सारा समय एमरजैंसी सिस्टम को जगाने में पड़ा रहता है ...ताकि कैसे भी ईंधन और खाने का जुगाड़ हो सके।
इस का आप के वजन पर क्या असर पड़ता है?
जब कोई व्यक्ति सुबह की शुरूआत कुछ भी ना खाने से करता है तो वह जैसे शरीर में एनर्जी सेविंग सिस्टम को चालू कर देता है ....जिससे शरीर की सभी प्रक्रियाएं (metabolism) मंद पड़ जाती हैं....अच्छा, दिमाग को यह नहीं पता कि यह ना खाने वाली बात (fasting) कितना समय चलेगी, कुछ घंटे या कुछ दिन....इसलिए यह जटिल प्रतिबंध लगाए ही रहता है ...यही कारण है कि जब वही व्यक्ति बाद में दोपहर में खाता है तो उस भोजन को शरीर में "ज्यादा" मान लिया जाता है ...इसलिए इसे वसा के भंडार ती तरफ़ धकेल दिया जाता है ...और बंदे का वजन बढ़ने लगता है।
That's why if the person decides to have lunch later, the food shall be accepted as an excess, it will be deviated towards the 'fat reserve bank' and the person will gain weight.
सुबह नाश्ता न करने पर सब से पहले हमारी मांसपेशियां ही घुल कर ईंधन का इंतजाम करने लगती हैं, इस का कारण यही है कि कोर्टीसोल हॉरमोन जो सुबह पर्याप्त मात्रा में होता है, मांसपेशियों के प्रोटीन को नष्ट कर के ग्लुकोज़ बनाने की प्रक्रिया को उत्तेजित करता है...
अब आप जान गये होंगे कि क्यों सुबह बिना नाश्ते के नहीं निकलना चाहिए....आप का शरीर उसे पसंद करता है ...और आप को इस अच्छी आदत के एवज़ में बढ़िया स्वास्थ्य, दीर्घायु मिलेगी....
सुबह जल्दी नाश्ता करने से आप को पर्याप्त एनर्जी मिलेगी, जिस के आप का दिमाग फुर्ती से काम करेगा... आप के विचारों में गजब की तारतम्यता ---spontaneity-- आयेगी ...शरीर रिलेक्स रहेगा ..और तनाव कम होगा....
डाक्टरी बात तो यहीं खत्म हो गई...उस वाट्सएप पोस्ट में बस इतना ही कंटेट था....किसी को भी ब्रेकफॉस्ट छकाने के लिए।
मैं कुछ महीनों से यही सोच रहा हूं कि जैसे हमारे शरीर में हर छोटी से छोटी प्रक्रिया एक अद्भुत रहस्य है ....वैसे भी भूख लगने की प्रक्रिया भी तो एक ऐसी ही प्रक्रिया है ... कैसे हम लोगों को ठीक समय पर भूख लग जाती है... और अगर हम नाश्ता ना लेकर इस भूख को दबाने की कोशिश करते हैं तो वैज्ञानिक तौर पर इस सब के कितने दुष्परिणाम होते हैं वह तो आपने ऊपर पढ़ ही लिया ...मुझे तो यह भी लगता है कि उस सब के साथ साथ यह प्राकृतिक व्यवस्था का भी अनादर है....खुदा-ना-खास्ता अगर किसी की भूख ही जब उड़ जाती है तो उस पर क्या बीतती है ....यह तो वही ब्यां कर सकता है....
बस, आप थोड़े से सचेत रहिए....बात मान लिया करें....कुछ बातें बड़े काम की होती हैं....