शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

सुनो रे भाई...ध्यान से सुनो!

आज मेरे पास एक ५६ वर्ष का एक मरीज़ आया था दांत की किसी तकलीफ़ के लिए... साथ में उस की बीवी थी जिसने मुझे शुरू में ही बता दिया कि इनको बिल्कुल भी सुनता नहीं है ..

बात करने पर पता चला कि पहले तो ठीक ठाक सुनता था लेकिन एक साल से जब से टीबी की डाट्स की दवाईयां चल रही हैं, इन को सुनना धीरे धीरे कम होने लगा ..और फिर पूरी तरह से ही सुनना बंद हो गया..

टीबी के इलाज के  लिए दी जाने वाली कुछ दवाईयों का यह साइड-इफैक्ट होता है कि श्रवण-शक्ति खत्म हो जाती है ... मैंने शायद ऐसा कोई मरीज़ पहली बार देखा था आज...वही बात है कि जिस के साथ कोई घटना घट जाती है उस की तो ज़िंदगी ही बदल जाती है ..

बीवी उस की बड़ी हिम्मत वाली लग रही थी, मैंने पूछा कि क्या कहते हैं विशेषज्ञ ..बताने लगीं कि कोई कुछ कहता है, कोई कुछ ..कोई कहता है कि सुनने लगेंगे ..कोई कहता है नहीं..

मैंने उसी समय नेट पर चैक किया तो पाया कि इन दवाईयों से जो श्रवण-शक्ति का ह्रास होता है वह स्थायी होता है ...मुझे दुःख हुआ...लेकिन मैंने उस महिला को यह नहीं बताया ...कोई आस लगाये बैठा है तो उसे कैसे यह सब बता दिया जाए।
नेट पर तो लिखा था कि जब इस तरह की दवाईयां चल रही हों और सुनने में थोड़ी सी भी दिक्कत होने लगे तो अपने चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें, और बहुत बार उन की कुछ दवाईयां बदल दी जाती हैं...

छोटे बच्चों में ऐसा कईं बार देखा जाता है कि जब बचपन में उन्हें बहुत सी दवाईयां दी जाती हैं ..उन में से कुछ ऐसी होती हैं जिन की वजह से उन में बहरेपन की शिकायत हो जाती है...इसलिए शिक्षित लोग इस के बारे में थोड़ा सचेत रहने लगे हैं...

हमारे पड़ोस की एक बुज़ुर्ग महिला को एक दिन सुबह अचानक सुनना बंद हो गया ...पता तब चला जब वह सुबह उठी और उन्होंने अपने बेटे से कोई बात की ...उसने जवाब दिया तो वह कहने लगीं कि क्या बात है इतना धीमा क्यों बोल रहा है...बेटे ने कहा कि ऐसा तो नहीं है, मैं तो ठीक ही बोल रहा हूं....अगले दो मिनट में यह पता चल गया कि उस अम्मा को सुनाई नहीं दे रहा बिल्कुल ..एक कान से तो पहले ही सुनाई नहीं देता था ..छेद की वजह से ...लेकिन दूसरे कान से अचानक इस तरह से सुनना बंद हो जाना चिंता का कारण तो था ही ..

हमारा पड़ोसी अपनी अम्मा को ईएनटी विशेषज्ञ के पास ले गया ..वहां पर आडियोमिट्री जांच हुई ...पता चला कि श्रवण-शक्ति न के बराबर ही है ...

हां, बीच में एक बात बतानी तो भूल ही गया कि जब उस महिला को सुनाई देना बंद हुआ तो वह इतना घबरा गई कि उसे लगने लगा कि उस के गले में ही उस की आवाज़ दब रही है और बाहर आ ही नहीं रही है....लेेकिन ऐसा नहीं था, घर के दूसरे लोग उन की बातें सुन रहे थे ...लेकिन अब यह बात उन तक कैसे पहुंचाई जाए....उन के बेटे ने झट से एक कागज़ पर लिखा कि आप चिंता मत करिए, सब ठीक हो जाएगा....आप की आवाज़ हमें अच्छे से आ रही है, और हम अपनी बात आपसे लिख कर कर लेंगे .. तब कहीं जा कर उस अम्मा की जान में जान आई...

उस दिन शाम को अम्मा का बेटा जब मेरे साथ बात कर रहा था तो यही बात कह रहा था कि आदमी के लिए पढ़ा लिखा होना भी कितना ज़रूरी है ..यही शेयर करने लगा कि शुक्र है कि अम्मा पढ़ना-लिखना जानती है ...वरना उस तक इतनी बात भी हम लोग कैसे पहुंचा पाते कि उस की आवाज़ गले में दबी हुई नहीं है, हम अच्छे से सब कुछ सुन रहे हैं ...

मुझे भी याद आया उस समय हम लोग अपने ननिहाल में गये हुए थे ...ऐसे ही किसी बुजुर्ग औरत के साथ हुआ होगा ... अब वह पढ़ना लिखना जानती नहीं थी, उस तक घर वाले लोग कैसे अपनी बात पहुंचा पाते .......बात बहुत लंबी है....उस में ज़्यादा नहीं घुसेंगे .....बस, इतना ही बताना चाहूंगा कि धीरे धीरे उस महिला को गली-मोहल्ले वाले पागल ही समझने लग पड़े ....

हां, तो हमारी इस पड़ोसिन की दवाईयां चलीं....विशेषज्ञ ने पूछा कि मधुमेह रोग तो नहीं है.......इन की जांच दो साल पहले ही हुई थी तब तो नहीं थी, लेकिन इस बार जब जांच करवाई गई तो उसमें मधुमेह रोग होेेने की पुष्टि हुई ..उस की भी दवाई शुरू हो गई... और कान के लिए भी कुछ दवाईयां एक महीने तक चलीं....उम्मीद तो कोई नहीं थी कि श्रवण-शक्ति लौट आएगी, विशेषज्ञों को भी नहीं थी कोई खास उम्मीद ..लेकिन ईश्वरीय अनुकंपा.....उन की श्रवण-शक्ति उन के गुज़ारे लायक वापिस लौट आई है ...अब यह एक रहस्य ही रहेगा कि यह कैसे हुआ अचानक, मधुमेह की वजह से हुआ या उम्र की वजह से हुआ जैसा की विशेषज्ञ लोगों ने उन्हें बताया था.....लेकिन चलिए ... जो भी है ... बहुत अच्छा हुआ...दो चार दिन जब यह प्राबलम उन्हें हुई तो उन के घर से ज़ोर ज़ोर से भजनों की आवाज़ आती थी ...बहुत ही तेज़...क्योंकि वे स्वयं तो सुन नहीं पा रही थीं..

मेरे एक साथी डाक्टर हैं जिन की २५ साल की बेटी हर समय कान में एयरफोन लगाए रखती थी और सारा दिन मोबाईल फोन पर बातें....हो गया उस के भी एक कान का कबाड़ा ...थोड़ा बहुत ठीक तो हो गया है ..लेकिन एक कान में जो गड़बड़ी हुई है वह स्थायी है ...अब वे एयरफोन का इस्तेमाल ही नहीं करती ........अच्छा करती हैं!

यह एक तरह की सिरदर्दी हो गई है समाज में कि लोग हर समय कान में एयरफोन घुसाए रखते हैंं.... कान तो खराब हो ही रहे हैं...और कितनी बार आप भी पेपर में देखते होंगे कि कितने बड़े बड़े हादसे ...यहां तक कि कईं युवक इसी शौक की वजह से ट्रेन से कट गये क्योंकि ट्रेन की आवाज सुनाई ही नहीं दी ...

कल मैं सड़क के किनारे यह लखनऊ में एक जगह खड़ा था...मैंने देखा कि एक मशहूर बिरयानी की दुकान में पांच सात लोग काम कर रहे थे और सभी ने कानों में एयरफोन ठूंस रखे थे ...गड़बड़ तो है ही ... यह सब कानों की तकलीफ़ों को निमंत्रण देने वाली बातें हैं....और अकसर ये सब बड़ी तेज़ आवाज़ में म्यूजिक सुनते हैं...

रेडियो-टीवी तो मैं भी बहुत तेज़ सुनता था...और वॉक-मैन के ज़माने में टहलते वक्त ऊंची आवाज़ में बॉलीवुड गीतों को सुनना मेरी आदत थी ...फिर मुझे भी ऐसा लगने लगा कि मुझे ऊंचा सुनने लगा है...कोई पांच सात साल पहले की बात है .. उन्हीं दिनों मैंने एक लेख पढ़ा नेट पर और फिर मैंने उस पर लिखा भी ...उसमें यही बताया गया था कि किस तरह से ये एम-पी थ्री प्लेयर्ज़ हमें कानों की तकलीफ़ें दे रहे हैं.. पता नहीं उस दिन के बाद कभी इच्छा ही नहीं हुई एयरफोन्स का इस्तेमाल करने की .. अब कभी कभी लेपटाप पर पांच दस मिनट के लिए किसी पसंदीदा गीत को सुनने के लिए हैड-फोन लगा लेता हूं ...लेकिन वह भी बहुत कम ...

इतनी सारी बातें करने का मकसद?.....हम कुदरत की सभी नेमतों को बिल्कुल टेकन-फॉर-ग्रांटेड ले लेते हैं ...सब कुछ ठीक चल रहा है तो बहुत बढ़िया बात है ..जब कभी कुछ गड़बड़ हो जाती है तो नानी और नानी का पड़ोस याद आ जाता है ..इसलिए जो चेतावनी इन एयरफोन्स के बारे में और मोबाईल फोन पर लंबे लंबे समय तक बातें न करने की हिदायत दी जाती है ....उस के बारे में भी ध्यान दिया जाना चाहिए....क्या है ना, हम कह ही सकते हैं.....

मैं अभी बैठा यह सोच रहा था कि हमें ईश्वर ने आंखें, नाक, मुंह जैसे अनमोल अंग दिए हैं ... अच्छा बोलने, सुनने और देखने के लिेए.....लेकिन हम इतने ठंडे कैसे पड़ गये कि हमारे सामने कोई किसी की जान ले ले..हम देख रहे हैं ...लेकिन कोई भी हिल-जुल ही न हो ....आज दोपहर जब से मैंने टीवी पर जींद के एक मर्डर की तस्वीरें देखी हैं ना, मुझे बहुत बुरा लगा है ....


इतने सारे लोगों के सामने मर्डर हो गया सरेआम....किसी ने बीच बचाव करने की कोशिश भी नहीं की .......और सब से दुःखद बात यह कि इस मर्डर के दौरान सामने ही गोल-गप्पे बेचने वाला दुकानदार अपने गोल-गप्पे में पानी भरता रहा ....Shocking!

आने वाले समय की सूचक होती हैं इस तरह की घटनाएं.....थोड़ी कल्पना कीजिए कि अगर एक आदमी के साथ इस तरह की दरिंदगी हो सकती है और लोग देेखते रह गये .....ऐसे में महिलाएं के साथ इन रास्तों के बीच क्या नहीं हो सकता! .....
Bloody we all are hypocrites....

पाश ठीक ही कहता है ......

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
ना होना तड़प का
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना......

    "सबसे खतरनाक वो आँखें होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है.."



गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

पान मसाला छोड़ने के १५ साल बाद भी...

मुझे हमेशा से यह जिज्ञासा रही है कि पानमसाला छोड़ने के कितने अरसे के बाद मुंह के अंदरूनी चमड़ी की लचक लौट आती होगी ... लेकिन कभी किसी मरीज़ का इतने लंबे समय तक फॉलो-अप हो नहीं पाया कि इस का कुछ पुख्ता प्रमाण मिल पाता .. कारण कुछ भी हो सकते हैं...हम लोगों का ट्रांसफर हो जाता है, मरीज़ कब लौट कर आएंगे या नहीं, कोई भरोसा नहीं.. लेकिन मुझे यह जिज्ञासा तो हमेशा ही से रही..

आज से ९-१० साल पहले मैंने इसी ब्लॉग पर पोस्ट लिखी थी .. अब यह मुंह न खुल पाने का क्या लफड़ा है!  जब कभी भी मैं अपने ब्लॉग के स्टैटेस्टिक्स देखता हूं तो पता चलता है कि इसे इतने वर्षों से लोग निरंतर पढ़ रहे हैं ...रोज़ लगभग २०० पाठक इस पोस्ट पर आते है ं....किसी के कहने-कहलवाने से नहीं, बल्कि गूगल सर्च से वे इस पोस्ट तक पहुंचते हैं...सब कुछ पता चल जाता है .. मुझे लगता है कि मैंने वह पोस्ट इतनी अच्छी लिखी भी नहीं, तब मैं ब्लॉगिंग में नया नया था, जो सच लगा, लिख दिया था बस..

उस पोस्ट को पढ़ने के बाद मुझे लोग इस के इलाज के लिए ईमेल भेजते हैं... कि इलाज बताओ... मैं उन को सब से बड़ा इलाज तो यही बताता हूं कि आज ही से इस लत से छुटकारा पा लो....इस काम में उन्हें अपनी मदद खुद ही करनी पड़ेगी...कोई किसी की कोई लत नहीं छुड़वा सकता .. और कब मुंह की हालत बिल्कुल दुरुस्त हो जायेगी, इस के बारे में बिल्कुल कुछ नहीं कहा जा सकता...





यह सारी भूमिका लिखनी ज़रूरी इसलिए थी क्योंकि कल मेरे पास एक ६१ साल की महिला आई थीं...अपने दांतों का इलाज करवाने के लिए....कोई परेशानी थी इस महिला को दांतों में...

मैं जब इस महिला के मुंह का परीक्षण कर रहा था तो मुझे मुंह के हालात कुछ ऐसे लगे जैसे कि यह पानमसाला खाती हों....ये लक्षण क्या हैं, इस के बारे में मैं बीसियों लेख इसी ब्लॉग पर लिख चुका हूं, अगर ज़रूरत हो तो सर्च कर लीजिए इसी ब्ल़ॉग को, मैं तो इन दस सालों में गुटखे-पान मसाले की विनाशलीला की ऐसी गाथाएं लिख चुका हूं कि एक ग्रंथ तैयार हो सकता है ...पर अब मैं यह सब लिख लिख कर पक चुका हूं...कोई सुनता है नहीं...और अगर सुनता भी है तो तब जब चिड़िया खेत को चुग कर उड़ चुकी होती है ....तब क्या फायदा!

चलिए, उस ६१ वर्षीय महिला की बात ही करते हैं.....इस महिला ने पानमसाला आज से १५ वर्ष पहले छोड़ दिया था....और जो इन्होंने मुझे बताया वह यह कि इन्होंने खाया भी कुछ महीने ही ... मैंने पूछा कि अचानक ४५ साल की उम्र में पानमसाला खाने की क्या सूझी? ...बताने लगीं कि इन के पति ये सब पानमसाला-गुटखा खूब खाते थे .. इसीलिए इन्होंने उन का छुड़वाने के लिए खुद भी शुरू कर लिया कि शायद पति को इसी बात से ही पानमसाले से नफ़रत हो जाए....लेकिन कुछ ही महीने खाने के बाद इन के मुंह में घाव हो गये...खूब उपचार करवाया ...और पानमसाला का त्याग किया, तब कहीं जाकर इन्हें इस तकलीफ़ से मुक्ति मिली ..

मैंने ये जो तस्वीरें इस पोस्ट में लगाई हैं ये सभी इन के मुहं की है ं....पानमसाला छोड़ने के १५ साल बाद अाज भी इन के मुंह में ओरल-सबम्यूक्सफाईब्रोसिस (मुंह के कैंसर की पूर्वावस्था --oral pre-cancerous condition) के सभी लक्षण दिख रहे हैं....इन के मुंह के अंदर गालों की चमड़ी एकदम सख्त है . और पीछे भी देखिए तालू के पिछले हिस्से में कैसे एक सफेद सा रिंग बना हुआ है ...(Blanched out appearance of oral mucosa) ...

मैंने पूछा कि आपने १५ साल पहले जब पानमसाला छोड़ा तो क्या मुहं खुलना कम हो गया था ...कहने लगी, नहीं,ऐसी तो कोई बात नहीं थी.... लेकिन जब मैंने पूछा कि तब आप पानी के बताशे खा लेती थीं, तब इन्होंने याद आया कि हां, हां, इसी से तो तकलीफ़ का पता चला था कि मैं पानी के बताशे जैसे ही खाने लगती, वे मुंह के अंदर ठीक से जा नहीं पाते थे और टूट जाते थे ....

लेकिन अब यह कहती है ं कि अब मैं पानी के बताशे ठीक से खा लेती हूं....वैसे भी आप देख सकते हैं कि ये दो उंगली से थोड़ा ज्यादा ही मुंह इन का खुलने लगा है ...मुंह के अंदर घाव भी अब नहीं होते ...



लेकिन ये कुछ अपनी जुबान के काले रंग और गालों के अंदरूनी हिस्से के अजीब से रंग के कारण चिंतित थीं....उन्हें बता दिया कि इस के बारे में घबराने की ज़रूरत नहीं ...यह बहुत बार हार्मोन्स की वजह से या शरीर में किसी तत्व की कमी की वजह से या कुछ दवाईयों के अधिक प्रयोग की वजह से भी हो जाता है ...इस के बारे में ज़्यादा न सोचें, जीवनशैली ठीक रहें, संतुलित आहार लें...

यह पोस्ट मैं कल ही से लिखना चाह रहा था, लेकिन इतनी गर्मी है कि इच्छा नहीं हो रही थी....इस बात को लिखना बेहद ज़रूरी था क्योंकि मेेरे मोबाइल में तो सैंकड़ों तस्वीरें पड़ी रहती हैं ...लेकिन दो दिन बाद मैं मरीज़ को भूल जाता हूं...इसलिए लिख नहीं पाता....यह तो ताज़ा ताज़ा वार्तालाप था, इसलिए लिख दिया...

लिखने का मकसद केवल इतना है कि पान-मसाले से होने वाले नुकसान का सब से उत्तम इलाज यही है कि इस लत को लात मार दीजिए आज ही ......और उसी दिन से आप को इस के फायदे महसूस होने लगेंगे ...मुंह के घाव आदि भरने लगेंगे ... लेकिन इस महिला के केस से इतना हमेशा याद रखिएगा कि सब कुछ एकदम से कुछ ही दिनों में अच्छा हो जायेगा, इस की उम्मीद भी मत करिए.....इतना तो है कि आप मुंह के कैंसर से बच जाएंगे.....लेकिन मुंह कितना खुल पायेगा, कितना नहीं, यह तो आप के दंत चिकित्सक ही आप के मुंह का परीक्षण कर के बता सकते हैं...

सीधी सीधी बात कहूं तो यह है गुटखे-पान मसाला खाने वाला कभी न कभी किसी बीमारी की चपेट में आ ही जाता है ... कह रहा हूं तो मान लो और इस खतरनाक खेल से तौबा कर लो ... मोटरसाईकिल में पैट्रोल डलवाते हुए मुंह में पानमसाला उंडेलने वाले लौंडों के लिए एक मरदाना टशन होता होगा ....लेकिन जब हम लोग किसी को मुंह के कैंसर की खबर सुनाते हैं या पहली बार संदेह की ही बात करते हैं  तो उस बंदे की हालत देखी नहीं जाती .. मैं तो आए दिन मुंह के कैंसर के नये मरीज़ देखता हूं और किस तरह से वे उस समय कहते हैं कि हम गाड़ी से नहीं, प्लेन सी आज ही टाटा अस्पताल चले जाएंगे ....लेकिन वे भी कौन सा जादू की छड़ी लेकर बैठे हुए हैं...

आज के लिए इतना ही ....अगर यह पढ़ कर अभी तक आप पानमसाला-गुटखे छोड़ने की योजना ही बना रहे हैं तो God bless you.....Panmasala-Gutkha is a killer...Quit this habit now ....मैं तो इसे भी आत्महत्या ही मानता हूं..
बच के रहिए, बचे रहिए....


रविवार, 16 अप्रैल 2017

क्या कोलेस्ट्रोल का कुछ लफड़ा है ही नहीं ?

हमारी सोसायटी में दो माली आते हैं ..जुडवां भाई हैं दोनों...साठ-पैंसठ साल के ऊपर के होंगे ...पतली-कद-काठी ...सारा दिन किसी न किसी घर के बेल-बूटों की मिट्टी के साथ मिट्टी हुए देखता हूं...आज शाम मैं बुक फेयर से लौट रहा था तो मैंने इन में से एक को देखा ...मैंने स्कूटर रोक लिया ...इन्हें मैं आते जाते माली जी, राम राम ज़रूर कहता हूं...मुस्कुरा कर जवाब देते हैं.. मैं रूका तो ये भी रूक गये...मैंने कहा ...यार, आप मेहनत बहुत करते हो...बताने लगे कि सुबह नौ बजे आते हैं और शाम पांच छःबजे लौटते हैं ...सारा दिन मैं इन दोनों भाईयों को अपने काम में मस्त देखता हूं...और शाम को ये ज़्यादा चुस्त-दुरूस्त दिखते हैं....लेकिन हम पढ़े-लिखे लोगों ने भी अपनी बेवकूफ़ी का परिचय तो देना ही होता है ..क्योंकि मैंने इन से यह पूछा...यार, आप थकते नहीं?....एक दो मिनट बातें हुई, हाथ मिला कर उन से छुट्टी ली .. (रोटी ये लोग साथ लेकर आते हैं, दोपहर में इन्हें कभी कभी खाते हुए देखता हूं..) 

बचपन में हमारे घर के पीछे एक बहुत बड़ा बागीचा था.. जिसमें तरह की सब्जियां, फल-फूल बीजने और उन की देखभाल करने के लिए (कभी सुबह, कभी शाम) जो नेकपुरूष आते थे उन्हें हम बाबा जी कहते थे....सारे घर के लिए ही वे बाबा जी थे...बड़ी सब्जियां उन्होंने खिलाईं,  उन के पास जाकर बैठ जाता मैं बहुत बार....इसी वजह से फूल-पौधों के प्रति प्यार भी पैदा होता चला गया...  एक तरह से घर के सदस्य जैसे थे ...सुबह जब नाश्ता बनता तो सब से पहले दो परांठे, आम का आचार और चाय का गिलास उन के पास लेकर जाने की ड्यूटी मेरी ही थी...हम लोग भी यही सब कुछ खाते थे .. 

कभी परांठे-वरांठे खाने में सोचना नहीं पड़ना था... कुछ लाइफ-स्टाईल ही ऐसा था, अब बाबा जैसे लोग या हमारी सोसायटी के माली जैसे लोग घी के परांठे खा भी लेंगे तो इन का क्या कर लेगा घी...इतनी मेहनत- मशक्कत...और हम लोग भी तब पैदल टहलते थे, उछल-कूद करते थे, साईकिल भी चलाते थे ..जंक बिल्कुल खाते ही नहीं थे, होता भी कहां था इतना सब कुछ उन दिनों.. बिल्कुल नाक की सीध पर चलने वाली सीधी सादी ज़िंदगी थी .. 

अभी अभी मेरी एक सहपाठिन का वाट्सएप पर मैसेज आया ...वाशिंगटन पोस्ट की एक न्यूज़ स्टोरी का लिंक था ...जिसमें लिखा गया था कि अब अमेरिकी संस्थाएं कोलेस्ट्रोल वाली चेतावनी हटाने के बारे में फैसला लेने ही वाली है ..

पंजाबी की एक कहावत है ... कि फलां फलां को तो जैेसे किसे ने उल्लू की रत पिला दी हुई है ....उल्लू की रत पिए हुए बंदे की हरकत यह होती है कि वह हर किसी की हां में हां मिलाते फिरता है .. (वैसे मुझे यह नहीं पता कि यह रत होती क्या है, बस कहावत है!!) 


मुझे यह सोचना बड़ा अजीब लगता है कि अमेरिका जो कहेगा हमें वही मानना होता है ...वह कहता है कि यह खराब है तो हम उसे मान लेते हैं, फिर वह कहता है कि इसे कम करो ये दवाईयां खा के तो हम दनादन दवाईयां गटकने लगते हैं... फिर यही कहता कि इन कोलेस्ट्रोल कम करने वाली दवाईयों के कुछ दुष्परिणाम भी हैं तो हम उन दवाईयों को हिचकिचाते हुए बंद कर देते हैं....फिर अचानक एक दिन ऐसी खबर मिलती है ... कि ये कोलेस्ट्रोल तो खराब है ही नहीं..

तब कभी आंवले की तासीर की तरह अपने बड़े-बुज़ुर्गों की बरसों से मिल रही नसीहत याद आती है कि सब कुछ खाओ करो ...और परिश्रम किया करो .. लेकिन हम उन की बात को लगभग हमेशा यह सोच कर नकार देते हैं कि नहीं, यार, इन्हें क्या पता साईंस का ...इन की मानेंगे तो थुलथुले हो जाएंगे.....(जो कि हम वैसे भी हो चुके हैं!!) 

इस में कोई संदेह नहीं है कि सेहत के जुड़ा कोई भी मुद्दा हो .. मार्कीट शक्तियां इतनी पॉवरफुल हैं कि हम बात की तह तक पहुंच ही नहीं पाते .. 

हां, तो जो वाशिंगटन पोस्ट का लिंक मेरी सहपाठी ने भेजा ..वह दो साल पुराना है ... लिखते लिखते मेरे जैसे लोगों को लाइनों के बीच भी पढ़ने की आदत हो जाती है .. (reading in between lines!) ...वैसे वह लेख बहुत बढ़िया है ... उस में ज्ञानवर्धक जानकारी भी है ..

सहपाठी ने यह ताकीद भी की थी कि इस विषय पर रिसर्च कर के ब्लॉग पर लिखना ...सब से पहले ..warning about cholesterol... को लिख कर ही गूगल सर्च किया तो ये रिजल्ट सामने आए.. 

American thinker का जनवरी २०१७ का यह ब्लॉग भी दिख गया .. आप इसे भी देख सकते हैं..Feds preparing to drop warning on Cholesterol 

यह खबर पढ़ने के बाद मुझे इच्छा हुई कि पिछले साल जो मैंने अपनी लिपिड प्रोफाईल करवाई थी, उसे ही देख लूं...कोलेस्ट्रोल तो 201mg% है और ट्राईग्लेसराईड का स्तर 274 है..जो कि सामान्य से लगभग दोगुना है

यह जो कोलेस्ट्रोल वाली चेतावनी को हटाने वाली बात है ...इस में कोई बात अलग नहीं लगती .....आज भी जो लोग मेहनतकश हैं (उदाहरण ऊपर आपने पढ़ीं) , उन्हें जब मक्खन-मलाई मिल जाती है तो उन्हें सोचना नहीं पड़ता ....और मेरे जैसों को आज भी सचेत रहने की ज़रूरत है ...Moderation is the key ...Balance is the keyword! ...हम लोग मेहनत करते नहीं, शरीर से काम लेते नहीं...खाने की इस तरह की खबरें ढूंढ-ढूंढ कर निकाल लेते हैं....सेलीब्रेट करते हैं कि चलिए, अब तो पाव-भाजी में मक्खन उंडेलने का लाईसेंस मिल गया .. और मैंने भी अपनी सहपाठिन को यही जवाब दिया कि ब्लॉग तो करूंगा ही .....लेकिन आज से ही दाल में एक चम्मच देशी घी उंडेलना शुरू कर रहा हूं....

मैंने यह बात कह तो दी .....लेकिन दिल है कि मानता नहीं.....मुझे नहीं लगता कि मैं अब फिर से बिना रोक टोक के मक्खन-देशी घी खाने लगूंगा ......अब आदत ही नहीं रही ...अंडा़ वैसे बचपन से ही नहीं खाया..जब मैंने अंडा खाना शुरु किया तो मुझे दो चार बार उल्टी हो गई ....बस, तब से अंडा कभी खाया ही नहीं... कोई और कारण नहीं, बस उस की smell नहीं सही जाती..

अच्छा फिर, यही विराम लगाते हैं.. ..एक गीत सुन लेते हैं..कल मैंने लखनऊ में एक कार्यक्रम में सुना था, बहुत दिनों बाद ....अच्छा लगता है बहुत यह गीत .......


अद्यतन किया ..9.45pm (१६.४.१७)....

 इस लेख पर एक टिप्पणी मित्र सतीश सक्सेना जी की आई है ...जिसमें इन्होंने एक लिंक दिया है ...अमेरिकी  नेशनल लाईब्रेरी ऑफ मैडीसन का जिस में इस तरह की एक रिपोर्ट का पोस्टमार्टम किया गया है जिसने कहा है कि दिल की बीमारी और कोलेस्ट्रोल का कोई संबंध नहीं ..

अमेरिकी नेशनल लाईब्रेरी ऑफ मैडीसन की रिपोर्ट का लिंक यह रहा ..जिसे पढ़ना भी ज़रूरी है ताकि हमारे आंखे अच्छे से खुली रहें .. Study says there is no link between cholesterol and heart disease. 

सतीश सक्सेना जी के बारे में बताते चलें कि इन का जीवन भी बडा़ प्रेरणामयी है ..इन्होंने ६१ साल की उम्र में जॉगिंग करना शुरू किया और अब ये दो तीन साल में ही मेराथान रनर हैं...