शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

डिप्रेशन ..आओ खुल कर बात करें..

आज विश्व स्वास्थय दिवस है ...जिस का इस बार का थीम भी यही है ..डिप्रेशन...आओ खुल कर बात करें..

लेेकिन आज मेरी तो बिल्कुल भी इच्छा नहीं है कि मैं वही घिसी पिटी बातें लिख कर आप को पका दूं...डिप्रेशन के बारे में जितनी भी काम की बातें हैं आप रेडियो, टीवी अखबार में और नेट पर देख-पढ़ लेते हैं, मुझे पता है आप सब नेट-सेवी हैं ...मैं तो बस आप से ऐसे बतियाना चाहता हूं जैसे हम लोग चौपाल पर बैठ कर हंसी-ठट्ठा कर रहे हों...ठीक है?

मुझे कभी भी निबंध की तरह अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिखना अच्छा लगता ही नहीं...कि डिप्रेशन बीमारी है क्या, इस के लक्षण क्या हैं, बचें कैसे और इलाज कैसे और कब करवाएं?....यह मेरा विषय है ही नहीं, क्योंकि मैं कोई विद्वान मनोचिकित्सक हूं ही नहीं....इसलिए बिल्कुल मन की बातें ही कहना चाहूंगा...

पढ़ाई लिखाई पूरी होने के बाद यह शायद १९९४ के आस पास की बात है कि मेरी भी तबीयत कुछ चिंता करने वाली हो चली थी..खामखां बातों की चिंता ..काल्पनिक बातों की चिंता ...बंबई में रहते थे ...मेरे साथ किसी ने ऐसे ही ज़िक्र किया कि एक योग विद्या का प्रोग्राम चलता है ...सिद्ध समाधि योग ... संयोगवश वह उसी दिन शुरू होने वाला था ..कांदिवली में ...मैं शाम को पहुंच गया ...पहले दिन इंट्रो ही होती है ..एक पेंफलेट मिला ...उसे पढ़ा तो तो उसमें एक बात लिखी थी जिस पढ़ कर मैंने उसी समय निश्चय किया कि यह तो अवश्य करूंगा ...उस में लिखा था कि किस तरह से हर कोई तनावग्रस्त है ...और तो और डाक्टर लोग मरीज़ को तो कहते हैं कि आप तनाव मत करिए लेकिन स्वयं वे भी तनाव से ग्रस्त हैं...

मैं अब सोचता हूं कि जो डाक्टर स्वयं सिगरेट पीता हो या पानमसाला चबाता हो, वह कैसे सख्ती से अपने मरीज़ को यह सब छोड़ने के लिए कह सकता है!

बस यह बात तनाव वाली बात मेरे दिल को छू गई ...और मैंने वह कोर्स किया ...उस के बाद मैं नियमित प्राणायाम् करता ...ध्यान भी हो जाता अपने अाप ही ....खाना-पीना भी उस शिक्षा के अनुसार ही चलता रहा ..बहुत समय तक मैं जुड़ा भी रहा ...एक फर्स्ट हैंड अनुभव जो योग का बेहद उम्दा रहा ...

अब मैं आलस की वजह से प्राणायाम् नहीं करता, ध्यान भी नहीं होता ....बस टहलना हो जाता है...वह भी कईं कईं हफ्तों के अंतराल के बाद...साईक्लिंग करने की सोचता रोज़ हूं. लेकिन कभी कभी ही जाता हूं...(धूप हो गई है, साईकिल में हवा नहीं है, ट्रैफिक बहुत है ...इन बहानों के चलते ...) ब्लड-प्रेशर की एक गोली खाता हूं..वह भी महीने में बीस दिन भूल जाता हूं....तो, यह तो हुई मेरी अापबीती ...बस, खाना पीना ठीक ले लेते हैं....कोई मांस-मझली नहीं, दारू-तंबाकू नहीं कभी भी ..

एक बात याद आ गई ...लगभग दस साल पहले की बात है .... एक मनोरोग चिकित्सक ने नया नया क्लीनिक खोला था ...उस का इश्तिहार आया पेपर में ..पढ़ा.....उस ने बड़े सनसनीखेज तरीके से उस लिखवाया था....

हर दस लोगों में से चार मनोरोगी...इन में से कहीं आप भी तो नहीं! .....और उस के आगे उसने दस बीस लक्षण लिख दिए....वे लक्षण ऐसे थे कि दस में से चार तो क्या, दस में से दस लोगों में वे दो चार मिल जाएं...

उस मनोरोग चिकित्सक की विद्वता को मैें सेल्यूट करता हूं ..और मनोरोगियों को बिना विलंब इन से संपर्क भी करना ही चाहिए...और कईं बार दवाईयां लेना ज़रूरी भी होता है....वे इस तरह के रोगों के एक्सपर्ट होते हैं, उन्हें तो अंदर तक की खबर होती है ...

और हम ठहरे बक बक करने से अपने आप को रोक न सकने वाले.....

वैसे मुझे आप बताइए कि आपने अपने आस पास कितने लोगों को डिप्रेशन के लिए किसी मनोरोगचिकित्सक से नियमित परामर्श अथवा दवाई लेते देखा है....

बहुत कम, आप को भी यही लगता है ना!

मैं एक बिल्कुल लेमैन की तरह से लिख रहा हूं ... लेकिन कोई बात नहीं ...ब्लॉग है, यह आज़ादी तो है ही .... मैंने तो जितने लोगों को भी डिप्रेशन की दवाईयां लेते देखा है ...ये बहुत ज़्यादा पढ़े लिखे दिखे ....और एक बात कहते हैं हमेशा कि दवाई लेते हैं तो सारा दिन नींद घेरे रहती है और न लेते तो सारा दिन खाते ही रहते हैं...

हां, तो मेरा यह सब लिखने का आशय यही है कि मनोरोग चिकित्सक से अवश्य मिलें, बात करें, उन की सलाह भी मानें, अगर दवाई के लिए कहें तो वह भी आप को लेनी ही होगी, आप के पास कोई चारा भी तो नहीं ...

लेकिन इतना सब कुछ लिखने के बाद मैं यह भी लिखना चाहता हूं कि डिप्रेशन है, उदासी है ...तो पहले कुछ फ्री में मिलने वाले नुस्खे भी तो आजमा लिए जाएं...समस्या हमारी अब यह हो गई है कि हम होलिस्ट्क मैडिसन प्रैक्टिस नहीं कर पा रहे ...हर विशेषज्ञ अपने अपने हिस्से की बीमारी ढूंढने में पारंगत होता जा रहा है...trying perhaps up to molecular level! कोई बुराई भी नहीं है ....

लेकिन मुझे लगता है मन की उलझनें मन से ही सुलट सकती हैं....चलिए, मैं भी कुछ ऐसे ही उलट-सुलट विचार यहां लिख लूं...जो मुझे लगता है कि किसी को भी अवसाद से ऊपर उठा सकते हैं, और बचा भी सकते हैं... इन में से मैं बहुत से स्वयं भी नहीं करता हूं... I am in noway holier than you! ...लेकिन इन सब उपायों की सार्थकता को अनुभव अवश्य कर चुका हूं...

 आज सुबह मैं टहलने गया क्योंकि मुझे यह पोस्ट लिखनी थी ... 
सुबह जल्दी उठें, योग-प्राणायाम् करिए,  टहलने निकल पड़िए, शारीरिक परिश्रम करें... साईक्लिंग करें, कुछ खेलें....अपनी क्षमता के अनुसार ...अगर दौड़ नहीं सकते, तो टहलिए, जितना भी चल सकते हैं, चलिए, फिर आराम कीजिए....मेरे कुछ मरीज़ कहते हैं कि हम ज़्यादा चल ही नहीं सकते, मैं उन्हें कहता हूं पड़ोस के किसी पार्क में एक घंटा चले जाइए, सुबह की सूर्य की रोशनी में स्नान कीजिए, कहीं कोई गपशप हो जाए तो ठीक, वरना और भी ठीक, पेड़ पौधों की भव्यता से ऊर्जा मिलेगी आप को निःसंदेह ....चहचहाते पंक्षी आप की ज़िंदगी में भी चहक ले आएंगे ....शर्तिया ...आप तरोताज़ा वापिस लौटेंगे ... आप सुबह मैं भी टहल कर आया हूं... अच्छा लग रहा है, इसीलिए इतना सब कुछ लिख पा रहा हूं..


एक तो बात से बात निकल पड़ती है तो मुझे वह भी लिखनी पड़ती है ...कल एक पर्यावरण से संबंधित समारोह में था, वहां पर एक बहुत बड़े आदमी के घर की तारीफ़ के पुल बांधे जा रहे थे ..होता ही है यह सब कुछ ..करना भी पड़ता है ...हां, इन के घर में सौ तरह के तो पौधे हैं, चंदन का पेड़ भी है और १०० तरह के पंक्षी भी हैं.... उस समय तो मुझे कुछ ज़्यादा समझ में आया नहीं, लेकिन बात में ध्यान आया कि ये सभी पंक्षियों की प्रजातियां उस के यहां पिंजड़ों में कैद होंगी ......यह कोई बड़प्पन की बात नहीं, हमें तो तोते को भी पिंजड़े में रखना बहुत बुरी बात लगती है और १०० तरह की पक्षियों की प्रजातियां पिंजरों में .....पक्षी और फूल टहनियों पर भी मन को लुभाते हैं ...सब को खुशीयां देते हैं , किसी उदास के मन को खिलखिला देते हैं मुफ्त में ...गुलदस्ते और बुके वाले फूल पता नहीं क्यों असली होते हुए भी कितने बनावटी लगते हैं ....


 खाने पीने का ध्यान रखना चाहिए...विशेषकर बढती उम्र के साथ नमक, चीनी और फैट्स और जंक फूड का ध्यान रखें.. तंबाकू, शराब , ड्रग्स से बच कर रहें.... 

जहां तक हो सके खुशमिजाजी कायम रखें...इस से बड़ा कोई स्ट्रैसबस्टर है नहीं असल में ...स्कूल के दोस्तों के वाट्सएप ग्रुप पर इतने बढ़िया बढ़िया जोक्स आते हैं कि कल पता नहीं मैं कितने समय बाद इन चुटकुलों को पढ़ कर अकेला बैठा हुआ भी ठहाके लगा रहा था ....खुलापन बहुत ज़रुरी है ...इस से भी आदमी हल्का बना रहता है ....तने हुए रहने से तनाव ही बढ़ता है ... मैंने ऐसा अनुभव किया है ...मन को तने रहने से तो बढ़ता ही है, मेरे जैसे का तो टाई लगाने से ही बढ़ जाता है .....पता नहीं वह गले में प्रेशर की वजह से या फिर टाई लगा कर मुझे एक अलग तरह से बिहेव करना पड़ता है ..इस की वजह से भी शायद फ़र्क पड़ता होगा...इसलिए मैंने बीस सालों से कभी टाई लगाई ही नहीं, जी हां, किसी भी शादी-ब्याह के समारोह में भी नहीं....क्योंकि हिंदोस्तान में एक रिवाज है कि वैसे चाहे कभी टाई लगाई हो या नहीं, लेकिन किसी की शादी ब्याह में टाई किसी से ही गांठ बंधवानी पड़े, अवश्य टांग लेते हैं.....वह भी चलता है, लेेकिन जब दारू चढ़ने पर ये टाईधारी बेहूदा हरकतें करते हैं ना, उस से सब कचरा हो जाता है ... 

खुलेपन से बात याद आई...एक टीवी के प्रोग्राम में विश्वविख्यात हार्ट रोग विशेषज्ञ ने भी कहा था ..

दिल खोल लै यारां नाल, 
नहीं ते डाक्टर खोलनगे औज़ारां नाल ...

एक दो बातें और कर के आज की चौपाल खत्म करते हैं....

कल टीवी पर ग्लोबल बाबा फिल्म देखी ...आप भी ज़रुर देखिए...किस तरह से कुछ बाबा लोगों ने भोली भाली जनता को अपने चंगुल में फंसा रखा है, आप सब जानते हैं......यू-ट्यूब पर भी पड़ी हुई है यह फिल्म ... पता नहीं इतने बाबा लोग कहां से उग आते हैं और इन के इतने अनुयायी भी कैसे बन जाते हैं, यह सब और भी अच्छे से समझने के लिए इसे देखिएगा...ट्रेलर मैं यहां दिखाए दे रहा हूं.. 


कल विनोद खन्ना साब की तबीयत के बारे में पढ़ा-देखा....आज सुबह मित्र खुशदीप सहगल की फेसबुक पोस्ट दिखी ...जो को मेरी भावनाएं भी व्यक्त करती दिखी....इसलिए यहां चिपकाए दे रहा हूं उसे ....


विनोद खन्ना साब का ज़िक्र हुआ तो उन के कुछ बेहतरीन गीत जो बचपन से लेकर अब तक सुनते चले आ रहे हैं...यहां आप के लिए बजा रहा हूं....आप भी इन गीतों के बहाने अपने पुराने दिनों की यादें ढूंढिए और इसी बहाने डिप्रेशन से दूर रहिए और इस महान कलाकार के शीघ्र अति शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करिए... 







बुधवार, 5 अप्रैल 2017

98 साल की उम्र में योग सिखाना...

अभी कुछ समय पहले मेरी मां ने मुझे अपने फोन में बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट दिखाई जिस में एक ९८ साल की महिला के बारे में बताया गया है कि वह इस उम्र में योग स्वयं तो करती ही हैं, वे एक योग शिक्षक भी हैं...


हमारा क्या है, सारा दिन अखबारों, पत्रिकाओं और मीडिया में घुसे रहते हैं...इस बीमारी से बचना है, उस बीमारी से बचना है तो यह करें, फलां फलां मेवे नहीं खाएंगे तो ढिमका रोग हो जायेगा...

अच्छी बात है रोगों की जानकारी लेना, उन से बचाव के बारे मेें एक साधारण सी जानकारी रखना ....बस उतनी जितनी ज़रूरत हो, ऐसा न हो कि हम खुद ही डाक्टर बन कर अपना और आसपास के लोगों का इलाज शुरू कर दें....आजकल हो कुछ कुछ यही रहा है ..लोग अपने आप ही पैथोलॉजी में चले जाते हैं, सीटी स्कैन या अल्ट्रासाउंड तक करवाने का निर्णय स्वयं ले लेते हैं...और प्राईवेट संस्थाओं में इन की इच्छा की पूर्ति भी तुरंत हो जाती है...

जितना भी यह मीडिया में ज्ञान सेहत से संबंधी पड़ा हुआ है..उम्दा है यकीनन, बस आप को यह अच्छे से पता होना चाहिए कि इस जानकारी का स्रोत क्या है...किसी का कोई vested interest तो नहीं है... धीरे धीरे आप समझने लगते हैं..सरकारी संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही जानकारी विश्वसनीय होती है बेशक ...लेकिन बहुत सी गैर सरकारी संस्थाएं भी बहुत बढ़िया जानकारी उपलब्ध करवाती हैं....बस, आप को ही थोड़ा परखना जरूरी है...

बहुत सी कमर्शियल साइटों की समस्या यह है कि ये सनसनी पैदा करती हैं...लोगों को भ्रमित तक कर सकती हैं...बहुत से इंजेक्शनों तक के बारे में यह सब चलता है कि नईं ऩईं बीमारियों से बचने के लिए जिस तरह से इंजेक्शन को कितना aggressively promote किया जाता है ..

होलिस्टिक बात तो योगी लोग ही करते हैं ... कुछ योगी भी हाई-टैक हो चले हैं..कहने को तो योग शिक्षा है, लेकिन यह भी प्रोफैशनल कालेज की शिक्षा जितनी महंगी हो चली है ..

उस दिन एक पति-पत्नी आए मेरे पास ... पुरूष का वजन पहले से कम लग रहा था...मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि यह सब योग की माया है ..हम एक आश्रम में रहे हैं ..तीन हज़ार रूपया कमरे का किराया था.. पंद्रह दिन रहे हैं..पचास हज़ार खर्च कर आये हैं...अब फिट महसूस करते हैं ....और उन्होंने बताया कि अब वह तीन हज़ार वाला कमरा पांच हज़ार प्रतिदिन के हिसाब से मिला करेगा ......और हां, अगर सुविधाएं इस से बढ़िया चाहिए ...तो दस हज़ार रूपये एक दिन के खर्च करने होंगे...

मेरा माथा ठनका एक बार तो ...मुझे जिज्ञासा हुई कि योग संस्थान में ऐसी कौन सी "अन्य सुविधाओं"की ज़रूरत पड़ती होगी कि इतने महंगे कमरे लेने के लिए लोग तैयार हो जाते हैं...उसने बताया कि हम लोगों को तो थैला उठा कर उस संस्थान में एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता था लेकिन यह जो १० हज़ार वाली कैटेगरी है, उन का सारा काम ...क्या बताया था उसने ..सोना बॉथ तक का प्रबंध भी उनके कमरे में ही हो जाता है...

मेरी तरह आप भी शायद यही मानते होंगे कि योग विद्या ऐसी कृपा है जो शुल्क की मोहताज नहीं हो सकती .. मैंने ऊपर जिस संस्थान के बारे में लिखा है, मुझे कोई आपत्ति नहीं है...वे जबरदस्ती तो किसी को रोकते नहीं, जिस के पास पैसा है वह कुछ भी खरीद सकता है, सेहत के सिवाय, लोग एग्ज़ीक्यूटिव क्लास में भी सफर करते हैं और बैलगाड़ी पर भी करते हैं ..अपने अपने साधनों की मौज है...

इसलिए जिन संस्थानों में ज़्यादा पैसा लेने की बातें ज़्यादा होने लगती हैं, उन से कमर्शियल संस्थानों की महक आने लगती है....योग शिक्षा को भी मुझे लगता है कि आज कल कुछ अजीब से कमर्शियल ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है ...मुझे हमेशा से ही लगता रहा है कि योग विद्या ऐसी नहीं है कि आप जैसे बाज़ार में जाकर मिठाई खरीद लाए...जितने जेब में पैसे ज़्यादा हैं, उतनी बढ़िया खरीद लाएंगे ..ऐसा असंभव है ..योग विद्या में....यह तो एक गुरू की कृपा से ही एक दान के रूप में ही हासिल की जा सकती है ....फिर चाहे आप गुरु-दक्षिणा के रूप में जो भी समर्पित करना चाहें, वह आप की श्रद्धा है ....योग विद्या तो भई प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा के नियमों पर ही टिकी रहेगी तो ठीक है.......वरना यह भी एक धंधा ही बनता जा रहा है, विज्ञापनों को देखते हुए तो यही लग रहा है ....

चलिए, बस यही बंद करते हैं इस बात को ...यहां पर यह कुछ माला जपने की बात कर रहे हैं, इन्हें सुनते हैं...

जैसे राधा ने माला जपी शाम की .... 

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

आर ओ का पानी भी गड़बड़?

आर ओ के पानी के बारे में यहां वहां कुछ पढ़ते तो रहते हैं ...कि इसे पीने से यह गड़बड़ है ...कुछ ज़रूरी तत्व भी यह निकाल देता है ...लेकिन कभी गहनता से इस का ज़्यादा अध्ययन करने की ज़रूरत समझी नहीं...

क्या करेंगे समझ कर भी?...कोई विकल्प भी तो हो! ....वरना यहां वहां हर जगह बस सनसनी फैलाते जाएं, यह तो कोई बात न हुई...

जन साधारण तो कईं बार मार्कीट शक्तियों का खेल समझ ही नहीं पाता ....ये शक्तियां इतनी प्रबल हैं कि किसी चीज़ को भी बिकवा दें और किसी को भी बिल्कुल कंडम करवा दें...बहुत बड़ा खेल है...

आर ओ के बारे में दो दिन पहले भी वाट्सएप पर पढ़ा कि इस पानी को पीने से मिनरल्ज़ की कमी हो जाती है ...दरअसल वाट्सएप की किसी भी बात पर मुझे यकीं नहीं होता जब तक कि मैं स्वयं उस बात की पुष्टि न कर लूं...

इसीलिए मैंने गूगल सर्च किया ... तो रिज़ल्ट देख कर यही पता चला जिसे आप भी पढ़ सकते हैं...


खासा लंबा चौड़ा लेख है ...मैंने पूरा नहीं पढ़ा, आप चाहें तो पढ़ें लेकिन बातें वही कही गई हैं जो अकसर इस तरह के पानी के बारे में कही जाती हैं...

मैं सोच रहा था कि आज कल तो आर ओ का पानी इतना फैशन में है कि पानी के बताशे वाला भी अपनी दुकान पर बोर्ड टांग कर रखता है कि यहां बताशे के पानी के लिए आर ओ का पानी ही इस्तेमाल होता है ...

मैं कईं बार सोचता हूं कि पब्लिक सच में बड़ी कंफ्यूज़ हो जाती होगी कि किस की बात मानें ..अपने मन की मानें या हेमा मालिनी की बात मानें?

 हमारे यहां भी पानी में कुछ गड़बड़ तो है ही ....पानी के जग, पानी की बोतलों में सफेदी जम जाती है ...स्टील की पानी वाली टंकी में भी सफेद सफेद लेयर जम जाती है जिस में एक्वागार्ड से छना हुआ पानी स्टोर किया जाता है ... इस बार एक्वागार्ड की सर्विस करने वाला आया था तो कह रहा था कि अगर आप चाहें तो कोई यंत्र फिट कर देगा उसी मशीन में जिस से पानी की हार्डनेस कम हो जायेगी ...लेकिन फिर वही बात, इस से कुछ ज़रूरी trace elements भी तो निकल जाते हैं...यह तो तय ही है...

हम लोगों को भी इतने इतने साल हो गये मैडीकल फील़्ड में...हमें ही कोई पूछ ले कि क्या ठीक है, कौन सी मशीन ठीक है...हम भी क्या जवाब दें?... बड़ी कंफ्यूज़न है सच में ....

पानी में तो वैसे इतनी गड़बड़ होने लगी है कि सब को ही अपने पीने वाले पानी के बारे में कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रख लेना चाहिए...लखनऊ के पास एक जगह है ...नाम याद नहीं आ रहा, डेढ़ दो घंटे का रास्ता है ...एक बहुत बुज़ुर्ग इंसान है ..मेरा मरीज़ रहा है...कुछ अरसा पहले सारे दांत उखड़वाये थे मेरे से ...अब जब भी अस्पताल आता है तो ज़रूर मिल कर जाता है ...और पूछता है कि कुछ लाऊं, पेप्सी लेकर आऊं?....मैं हर बार हंस कर टाल देता हूं और हाथ जोड़ देता हूं...कल भी मिलने आया था..उस की बीवी हमारे अस्पताल में दाखिल थी, पेचिश और उल्टियों की वजह से...अब ठीक है ...खुश थे दोनों मियां-बीवी ...मैंने पूछा कि घर में पानी उबाल कर पीना....मेरी तरफ़ बड़ी हैरानी से देखने लगे ...मुझे पता है वे यह सब कभी नहीं करेंगे ....चलिए, मैं तो इन की सेहत की दुआ मांग ही सकता हूं...

हम लोगों की इस देश में समस्याएं बेहद विषम हैं....दो गुणा दो चार नहीं है यार यहां...सेहत से जुड़े भी फैसले लोगों को अपनी ही समझ के अनुसार - ठीक या गलत मैं नहीं कह रहा -- अपने आप ही करने पड़ते हैं...

दरअसल हम ने प्रकृति का इतना ज़्यादा दोहन कर लिया है और जल प्रदूषण का स्तर ऐसा कर दिया है कि मेरी एक तमन्ना है कि कुछ ऐसा हो जाए कि ये सब पालीथीन की थैलियां बंद हो जाएं...प्रतिबंध लगने से क्या फर्क पड़ा है, हम देख ही रहे हैं...कुछ ऐसी मुहिम चले कि कहीं भी ये प्लास्टिक की थैलियां नज़र ही न आएं...वही ४०-५० साल पुराने दिन लौट आएं जब हम लोग कभी बर्फ लेने जाते थे और थैला नहीं लेकर जाते थे तो उसे हाथ में ही उठा कर लाना होता था ...

देखो भई, अपनी सेहत के फैसले स्वयं लेने की आदत डालो, तथ्यों के आधार पर ...कौन सी मशीन ठीक है कौन सी नहीं है, नेट पर पढ़ा करो ...लेकिन कम ही ...ज़्यादा पढ़ने से भी आदमी और कंफ्यूज़ हो जाता है मेरी तरह ... मुझे पूरा यकीन है कि अगर हम आर ओ पानी के फायदे लिख कर सर्च करेंगे तो भी बीसियों रिज़ल्ट आ जायेंगे....

मैंने भी कुछ तो नहीं कहा इस पोस्ट में ...बस अपने मन की दो बातें कर के इसे बंद कर रहा हूं...जाते जाते एक गीत सुन कर अपनी कंफ्यूज़न को थोड़ा भूलने की कोशिश तो करिए...मैं भी उतना ही कंफ्यूज़ हूं जितने आप हैं... चलिए, इसे सुनते हैं...