भारतीय रेल केवल अपने रोलिंग-स्टॉक (रेल इंजन और गाड़ियों के डिब्बे जो रेल पटड़ी पर सरपट भागते हैं) की अच्छी सेहत की ही चिंता नहीं करती ...इसे रेल परिवार के 14 लाख सदस्यों की सेहत की भी पूरी चिंता रहती है ... क्योंकि यही वे लोग हैं जिन के भरोसे हम सब लोग कंबल ओढ़ कर लंबी तान कर रात को सो जाते हैं .... एक एक रेलकर्मी की भूमिका अगर आप जान लेंगें तो उस को नमन करने लगेंगे।
रेलवे के चिकित्सा विभाग का लक्ष्य रहता है कि हर कर्मचारी की एक साल में एक बार तो पूरी जांच हो ही जाए. इस के अलावा वह अनिवार्य जांच तो होती ही है जो रेल के चालकों, गार्डों और सैंकड़ों तरह के कर्मचारीयों की एक निश्चित अवधि के बाद होती है ...जिस में पास होने पर ही वे लोग गाड़ी के परिचालन से संबंधी कोई काम कर सकते हैं ...ऐसे में कुछ श्रेणीयां ऐसी भी हैं जिन के लिए इतनी गहन जांच अनिवार्य नहीं है ...इसलिए रेलवे वर्ष में विभिन्न कार्यालयों, रेल के कारखानों, रेल की उत्पादन इकाईयों, बड़े-छोटे स्टेशनों पर, रेलवे की कालोनियों, स्कूलों, सैंकड़ों अस्पतालों एवं स्वास्थ्य इकाईयों में हैल्थ-चैक-अप कैंप आयोजित करती ही रहती है ....जिस में हमेशा रेल कर्मी और उन के परिवारीजन बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.
आज भी यहां लखनऊ मंडल के चिकित्सा विभाग की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, डा वी.एम.सिन्हा की प्रेरणा से एवं उन के मार्गदर्शन में लखनऊ के चारबाग में रेलवे लोकोमोटिव वर्कशाप में एक मल्टी-स्पैशलिटी हैल्थ चैक-अप कैंप का आयोजन किया गया --आप को इस कारखाने के बारे में बताते चलें कि यह भारतीय रेल का एक अहम् इंजन कारखाना है जहां पर रेल के इंजनों का पूरा इलाज होता है ..और यहां से टनाटन डिक्लेयर होने के बाद ही ये रेल की लाइनों पर सरपट दौड़ते हैं...
सेहत के मामले में हम सब एक जैसे ही हैं ---चाहे डाक्टर हो या फिर आम आदमी --- बस, जब तक चलता है चलाते रहते हैं ...लेकिन इस मानसिकता से रोगों को बढ़ावा मिलता है ...इसलिेए जब ऐसे कारखानों में इस तरह के शिविर लगते हैं तो कर्मियों का उत्साह देखने लायक होता है ... वरना हम आलस्य करते हैं ...कभी कभी डरते भी हैं, झिझकते भी हैं कि पता नहीं डाक्टर लोग कौन सी बीमारी निकाल दें ....लेकिन जब ऐसी जगह पर कैंप लगते हैं तो कर्मचारी एक दूसरे की देखा देखी और खेल-खेल में अपनी सभी जांच करवाने के लिए प्रेरित हो जाते हैं ....
आज भी यह जो कैंप था इस में फिज़िशियन, आरथोपैडिक, डैंटल, ईएनटी, नेत्र रोग एवं महिला रोग विशेषज्ञ मौजूद थे - इस में डेढ़ सौ से ऊपर कर्मचारीयों की जांच हुई ...कुछ हाई-ब्लड शूगर और कुछ उच्च रक्तचाप के नये केस सामने आये ---इसी तरह से दूसरे विशेषज्ञों का भी यही अनुभव रहा. दांतों और मुंह के रोगों के बारे में तो कहूं तो एक भी कर्मचारी ऐसा नहीं था जिसे कोई न कोई दंत रोग न हो ...उन सब का उचित मार्गदर्शन किया गया कि उन्हें पास ही स्थित रेल के अस्पताल में आकर उचित इलाज करवाना चाहिए।
इस तरह के कैंप के कईं फायदें हैं ---जिन लोगों को अपने रोगों के बारे में पता होता है उन्हें अपनी बीमारी से संबंधित डाक्टर से मिल कर तसल्ली हो जाती है ... उन के लिए ज़रूरी हिदायतों को समय समय पर उन्हें याद दिलाना भी ज़रूरी होता है ... यह ख़बर भी लेनी ज़रूरी होती है कि वे नियमित दवाईयां ले भी रहे हैं या नहीं, बदपरहेज़ी तो नहीं कर रहे ... और नियमित जांच करवा भी रहे हैं या नहीं.... दूसरे लोग वे होते हैं जिन्हें कैंप वाले दिन ही किसी नईं बीमारी का पता चलता है ... और यह देखिए कि अगर इस तरह के कैंप नियमित लगते रहते हैं तो अकसर किसी भी बीमारी को प्रारंभिक अवस्था में ही पकड़ा जा सकता है...
अच्छा एक कैटेगरी और भी है थोड़ी अलग सी --ये वो लोग हैं जो सोचते हैं कि तंबाकू, सिगरेट पीते बरसों बीत गये ... ड्रिंक करते भी कईं साल हो गये --अब पता नहीं शरीर में कितने पंगे हो चुके होंगे, अब इन व्यसनों को छोड़ कर क्या हो जाएगा ...इसलिए इन में एक झिझक, डर होता है ...लेकिन जब जांच करवाने पर चिकित्सक इन के कंधे पर मुस्कुराते हुए कहता है कि अभी भी हालत ऐसी गंभीर नहीं है, आज ही से यह सब छोड़ दीजिए.... इस का फ़ायदा आज ही से होना शुरू हो जायेगा .. मैंने अनुभव किया है कि ऐसे लोगों को भी ये सब व्यसन छोड़ने की बहुत बड़ी प्रेरणा मिलती है ..
नियमित जांच के फायदे ही फायदे हैं ... क्योंकि बहुत सी चीज़ें चिकित्सक की अनुभवी आंखें ही पकड़ पाती हैं...और एक बात, कईं बार आदमी छोटी मोटी तकलीफ़ों को नज़रअंदाज़ इसलिए कर देता है कि यह अपने आप ठीक हो जायेगी ...लेकिन चिकित्सक जब देखता है तो उसे वे किसी जटिल बीमारी के लक्षण लगते हैं ...और दूसरी तरफ़ कोई इंसान बिना वजह किसी तकलीफ़ की वजह से इसलिए खौफ़ज़दा रहता है कि पता नहीं यह कितनी बड़ी बीमारी हो ...लेकिन चिकित्सक जब उसे देखता है तो चंद दिनों की दवाई से ही वह निरोगी हो जाता है .... तो बात तो वही हुई ....जिस का काम उसी को साजे ....अपनी सेहत से संबंधित फ़ैसले ज़्यादा गूगल-वूगल के हवाले नहीं करने चाहिए....सीधे डाक्टर से बात करने से ही आप को चैन आ सकता है....
एक बात और कि कैंप में सभी पैरा मैडीकल कर्मियों ने भी बड़ा सराहनीय कार्य किया ---होता तो टीम-वर्क ही है ...सभी की ब्लड-शूगर जांच की गई, उन का बीएमआई इंडेक्स निकाल कर उन्हें इस के बारे में सचेत किया गया।
बातें और और भी बहुत ही लिखने वाली हैं ...लेकिन कोई कितना लिखे ....वैसे भी यह तो करने वाला काम है कि आप अपने चिकित्सक से पास जाकर नियमित जांच करवाते रहा करिए...और विशेषकर जब कभी ऐसे चैक-अप कैंप लगें तो इन का भरपूर फायदा लिया करें ....जिन चिकित्सकों तक आप को पहुंचने में अस्पताल में घंटों लग जाते हैं .......वे इक्ट्ठा हो कर आप के पास ही पहुंचे होते हैं ....अगर कोई इस मौके का भी फायदा न उठा पाए तो कोई उसे क्या कहे!!
पोस्ट को बंद मैं एक फिल्मी गीत से ही करना चाहता हूं क्योंकि इतनी भारी भरकम बोझिल बातों की काट भी अपने हिंदी फिल्मी गीत ही होते हैं ....मैं ऐसा मानता हूं ...तो आज कौन सा गीत लगा दें ....अच्छा, रेल इंजन कारखाने की बात चल रही है और उन महान इंसानों की सेहत की बात हो रही है जो अपनी मेहनत और लगन से इन इंजनों को सेहतमंद रखते हैं ... इसलिए विधाता फिल्म का रेल के इंजन में फिल्माया गया मेरा पसंदीदा गीत ही सुनते हैं... मेरे पास जो पुराने ज़माने के ड्राईवर आते हैं उन्हें मैं कभी जब पूछता हूं कि ड्राईवर साहब, विधाता तो देखी होगी आपने !! .....जिन्होंने देख रखी है वे हंस देते हैं और जिन्होंने अभी नहीं देखी होती वे कह देते हैं ...ज़रूर देखेंगे, डाक्टर साहब 😄