इस पोस्ट में मुझे आप के साथ बहुत सी बातें साझा करनी हैं...और कुछ सुरेश वाडेकर की गीत गाते हुए उस हाल की कुछ लाइव रिकार्डिंग भी शेयर करनी है ..इस से पहले हाल के बारे में कुछ बातें करते हैं....मैंने पिछली पोस्ट में लिख दिया कि मेरे पास वहां की तस्वीरें तो दर्जनों हैं लेकिन मैं उन्हें पोस्ट में लगा इसलिए नहीं रहा ताकि पढ़ने वालों की वहां जाने की उत्सुकता बनी रहे ..वे भी वहां जा कर किसी प्रोग्राम का आनंद लें...
लेकिन कुछ वक्त बाद मुझे यही लगा कि यह बात तो मुझे ही नहीं जंची ..कोई न कोई पढ़ने वाला इस पर सवाल तो उठा ही देगा। कुछ ही वक्त बाद एक कमैंट आया कि सुस्पेंस मत रखिए...सब कुछ पोस्ट कर दीजिए...मैं भी यही सोच रहा था कि मुंबई में रहने वालों के लिए तो चलिए, यह बात मुनासिब भी लगती है कि वे कभी न कभी वहां जाकर उस हाल के दीदार कर लेंगे ..लेकिन मुंबई से बाहर वालों का क्या..उन तक तो हाल का ज़ायका मुझे पूरा पहुंचाना ही होगा....या तो मैं इस के बारे में कुछ लिखता ही न, अगर लिखा है तो उसे बीच में कैसे छोड़ सकता हूं...
जी हां, वह एक हाल नहीं है..मुझे तो म्यूज़िक और आर्ट की कोई यूनिवर्सिटी जैसा लग रहा था वहां जा कर ..मैंने पिछली पोस्ट में भी लिखा कि वहां पर जिस तरह के आर्ट हैं, जिन महान् विभूतियों की तस्वीरें, उन से जुड़ी यादें हैं....सच में यह लगता है जैसे हम किसी म्यूज़िक के म्यूज़ियम में आए हैं...और किसी आलीशान म्यूज़ियम में...हां, अभी सारी तस्वीरें आप को दिखाते हैं...उस से पहले कुछ ज़रूरी बातें....
आप जब भी वहां जाइए तो यह सोच समझ कर जाइए कि वहां अंदर कोई पार्किंंग की जगह नहीं है ....यह बताना भी ज़रूरी नहीं ..वरना, वहां पहुंच कर मुझे आप बुरा-भला कहेंगे...बाहर सड़क पर कितनी गाड़ीयां लोग लगा पाते हैं, कैसे जुगाड़ करते हैं, यह मैंं कुछ नहीं जानता ...लेकिन वह एरिया वैसे ही इतना भीड़-भड़क्के वाले मिनी पंजाब (सायन कोलीवाड़ा) से इतना सटा हुआ है कि मुझे नहीं लगता कि आसपास कहीं गाड़ी पार्क करने की जगह होगी....अगर कहीं जगह का जुगाड़ हो भी गया तो किच किच ही होगी ..पार्क करते वक्त या निकालते वक्त ...नहीं तो उस रोड़ से लौटते वक्त...इसलिए या तो टैक्सी में जाइए...नहीं तो लोकल ट्रेन से....हार्बर लाइन के किंग सर्कल स्टेशन से तो 5-7 मिनट का ही रास्ता है ....और पनवेल वाली हार्बर लाइन के जीटीबी नगर से भी कुछ ज़्यादा दूर नहीं है यह जगह ...वहां से भी पैदल का ही रास्ता है ...गूगल करें तो कंफ्यूज़ हो जाते हैं कईं बार ..
और हां, हाल में वाश रूम वगैरा की अच्छी सुविधाएं हैं...लेकिन आप हाल के अंदर कोई बैग-वैग नहीं लेकर जा सकते...पानी की बोटल भी नहीं..अंदर कैंटीन में पानी मिल जाता है ...पानी ही क्यों, इंटर्वल में समोसे, चाय-काफी, वड़ा-पाव सब कुछ मिल रहा था..लेकिन उन काउंटरों पर भीड़ इतनी ज़्यादा थी कि मैं वहां तक पहुंचने की हिम्मत न जुटा पाया...एक डेयरी-मिल्क चाकलेट से ही काम चलाना पड़ा। समोसा-चाय लेने की इच्छा तो बहुत हो रही थी लेकिन मुमकिन नहीं लगा...शायद अब लाइनों में लगने का इतना सब्र ही नहीं रहा...
चलिए, इंटर्वल खत्म हो गया...अंदर जाने पर सब से पहले बांसुरी पर मोहित शास्त्री ने रंगीला रे गीत बजाया...वाह..क़ाबिलेतारीफ़... दूसरे कलाकारों ने जो गीत सुनाए वे भी बहुत सुंदर थे ... ए दिले नादां....माए नी माए मुंडेर पे तेरी बोल रहा है कागा.....ये गलियां ये चौबारा, यहां आना न दोबारा...हिना फि्ल्म का अनारदाना ...अनारदाना.....
इस बार जब सुरेश वाडेकर जब स्टेज पर आए तो उन्होंने कुछ यादें शेयर कीं कि किस तरह से जब वह छः साल के थे तो उन्होंने सरस्वती मां लता मंगेश्कर के दर्शन किए ..बता रहे थे कि महाराष्ट्र शासन का क्रास मैदान में कोई अवार्ड प्रोग्राम चल रहा था ...अंदर जाने का कोई टिकट विकट तो था नहीं उन के पास...वे उन पतरों के पास खड़े हो गए जहां से गाड़ीयां बाहर निकलती हैं..बता रहे थे कि उन के पास उस कार्यक्रम का एक सोविनियर था...उस पर उन्होंंने लता जी के ऑटोग्राफ ले लिए ...
आगे बता रहे थे कि कुछ बरसों बाद वह जयदेव जी के साथ एक सहायक के तौर पर काम कर रहे थे ..जिस दिन लता जी ने वह गीत गाना था ...तुम्हें देखती हूं लगता है ऐसे ... उस दिन जयदेव जी ने उन्हें कहा कि वह भी कोरस में खड़े हो जाएं...लेकिन सुऱेश ने साफ मना कर दिया ..क्योंकि उन्होंने ठान रखा था कि प्लेबैक ही करना है और कुछ नहीं ...फिर उसी गाने के दौरान जयदेव ने उन्हें रिधम देने के लिए खड़ा कर दिया...बता रहे थे कि उन्हें लगा कि उन्हें हाथ हिलाते देख कर जयदेव जी और लता जी हंस रहे हैं....इसी बात पर उन्होंने हाथ हिलाना ही बंद कर दिया...
सुरेश ने बताया कि दादू (रविंद्र जैन) मेरा रक्षक में लता जी के गीत रिकार्ड करने वाले थे ..उन्होंने सुरेश को ऐसे ही बुला लिया ...वहां पर लता जी को कहने लगे कि यह सुरेश है ...अच्छा गाता है, दो तीन फिल्मों में गीत गा चुका है ...आप भी इसे सुनिए, यह भी कोल्हापुर से है। लता जी ने सुरेश से उस के बारे में उस के आई-बाबा के बारे में सब कुछ पूछा, कहां रह रहे हैं, सब कुछ पूछा ...सुरेश ने बताया कि उन की पूरी जन्म-पत्री लता जी ने पूछ ली और कहा कि जो गीत गा चुके हो उन्हें लेकर आओ।
सुरेश ने जिन फिल्मों के लिए गीत गाए थे, वह सभी लेकर लता जी के यहां पहुंच गए... उन्हें सुनने के बाद, लता जी ने फ़ौरन उसी वक्त लगभग सभी म्यूज़िक डायरेक्टर को फोन किया कि एक लड़का सुरेश वाडेकर आया है, अच्छा गाता है, आप भी उसे मौका दें। सुरेश ने बताया कि इस के बाद उन्हें 2-3 महीने में ही लता जी के साथ गाने का मौका मिल गया...और लता दीदी के साथ जो पहला गीत उन्होंने गाया उसे याद कर रहे थे, फिल्म क्रोधी का वह गीत....चल चमेली बाग में मेवा खिलाऊंगा..(इस लिंक कर आप इसे सुन सकते हैं..) ..और जिस तरह से यह गीत सुपरहिट हुआ वह तो हम सब ने देखा...
इस के बाद सुरेश ने ये गीत सुनाए.... आ जा रे मैं तो कब से खड़ी .....,, ये आंखें देख कर हम सारी दुनिया भूल जाते हैं......., लिखने वाले ने लिख डाले मिलने के साथ विछोड़े....।