गर्भाशय के कैंसर से बचाव का इंजैक्शन....
कल मैंने एच.पी.व्ही इंफैक्शन की बात की थी....यह समझना बेहद ज़रूरी है कि इस इंफैक्शन का गर्भाशय के मुख (cervix of uterus) के कैंसर में सीधा रोल है। एच.पी.व्ही का पूरा नाम है....ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस ( Human papilloma-virus).
शायद आप को भी यह सोच कर थोड़ा अजीब सा लग तो रहा होगा कि क्या वॉयरस से भी कैंसर होते हैं ....लेकिन मैडीकल वैज्ञानिकों ने इस को प्रमाणित कर दिया है। अब जब हम यहां महिलाओं के गर्भाशय के मुख पर होने वाले कैंसर की बात कर रहे हैं तो इस के बारे में यह जान लेना ज़रूरी है कि इस के लिये इसी एच.पी.व्ही इंफैक्शन को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
महिलाओं के इस गर्भाशय के मुख के कैंसर के बारे में यह भी जानना ज़रूरी है कि हर वर्ष हज़ारों महिलाओं की जान ले लेने वाले इस कैंसर के भारत में सब से ज़्यादा केस पाये जाते हैं। महिलाओं में जितने भी कैंसर के केस होते हैं उन में से 24प्रतिशत केस इसी गर्भाशय के कैंसर के होते हैं और 20 प्रतिशत केस स्तन-कैंसर के होते हैं। भारत में एक लाख तीन हज़ार से भी ज़्यादा नये केस हर वर्ष डिटेक्ट होते हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार हर वर्ष यह बीमारी भारत में 74000महिलाओं की जानें लील लेती है।
अब खबर यही है कि इस एच.पी.व्ही इंफैक्शन से बचाव का भी इंजैक्शन आ गया है। इस ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस की भी कईं किस्में होती हैं ...और इन में से दो किस्में ऐसी होती हैं जिन्हें गर्भाशय के कैंसर के 70प्रतिशत केसों के लिये जिम्मेदार माना जाता है.....तो, बहुत बड़ी खुशखबरी यही है कि इन एच.पी.व्ही की दोनों किस्मों से बचाव के लिये यह इंजैक्शन शत-प्रतिशत कारगर है।
अमेरिका की सरकारी फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन एजेंसी ने इस इंजैक्शन के 9 से 26 वर्ष की लड़कियों एवं युवा महिलाओं में इस्तेमाल की अनुमति दे दी है। यूरोप में भी यह इंजैक्शन चल रहा है। लेकिन भारत में अभी यह उपलब्ध नहीं है....वैसे तो यह अभी अच्छा-खासा महंगा भी है लेकिन महिलाओं को इतने भयानक एवं दर्दनाक जानलेवा रोग से बचाने के लिये शायद इस का मोल इस के इस्तेमाल के रास्ते में नहीं आयेगा।
वैसे अभी तो इंडियन काउंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च कुछ ही दिनों में इस इंजैक्शन के लिये एक क्लीनिकल ट्रायल शुरू करने जा रही है ...जो तीन वर्ष तक चलेगा और इस इंजैक्शन की भारतीय महिलाओं में सफलता सिद्ध होने के बाद ही इसे भारत में शुरू किया जायेगा।
इस नये वैक्सीन के बारे में यह बात भी बहुत ध्यान देने योग्य है कि यह वैक्सीन लड़कियों की एवं युवा महिलाओं की तो एच.पी.व्ही इंफैक्शन से रक्षा करता है लेकिन बड़ी उम्र की उन महिलाओं में जिन में पहले ही से एच.पी.व्ही इंफैक्शन मौजूद है उन में इस इंजैक्शन का कोई प्रभाव नहीं है।
एक बात और भी विशेष ध्यान देने योग्य है कि जिन महिलाओं को ये कैंसर से बचाव के ये इंजैक्शन दिये गये हैं ...उन को भी कैंसर के लिये नियमित जांच( cervical cancer screening) करवानी आवश्यक है।
गर्भाशय के कैंसर की स्क्रीनिंग से ध्यान आ रहा है कि विकसित देशों में इसी स्क्रीनिंग की वजह से ही इस के केसों में भारी कटौती संभव हो पायी है। लेकिन भारत में इस के केस बढ़ रहे हैं.....और अफसोस तो इसी बात का है कि इस तरह के कैंसर को इतनी आसानी से रोका जा सकता है, इस से बचा जा सकता है। इसी स्क्रीनिंग के लिये ही एक टैस्ट है ....पैप स्मीयिर( PAP Smear)…..यह बहुत ही सिंपल सा टैस्ट है जिस में बहुत ही आसानी से बिना किसी दर्द आदि के एक स्लाईड के ऊपर महिला के गर्भाशय से लिये कोशिकाओं की लैब में जांच की जाती है।( स्लाईड तैयार करने का काम स्त्री-रोग विशेषज्ञ द्वारा ही किया जाता है) । इस पैप-स्मीयर टैस्ट की वजह से बहुत सी जानें बच पाई हैं। लेकिन हमारे देश में आमतौर पर महिलाओं को आसानी से उपलब्ध नहीं है। और जहां है भी, वहां पर महिलायें अज्ञानता वश इसे करवाती नहीं हैं कि हमें क्या हुआ है, हम भली-चंगी तो हैं, ......लेकिन इस टैस्ट को बिना किसी तकलीफ़ के भी अपनी उम्र के अनुसार अपनी स्त्री-रोग विशेषज्ञ की सलाह अनुसार अवश्य करवाना चाहिये।
तो, कहने का भाव है कि गर्भाशय के कैंसर से बचाव के लिये इस्तेमाल किये जाने वाली इंजैक्शन की बातें तो हम ने कर लीं लेकिन हमारे यहां तो अभी तक महिलाओं में इस बीमारी के लिये रूटीन स्क्रीनिंग ( स्त्री-रोग विशेषज्ञ द्वारा नियमित परीक्षण, पैप-स्मीयर टैस्ट आदि) तक की जागरूकता नहीं है तो ऐसे में बिना नियमित स्क्रीनिंग के इस टीके का प्रभाव कितना कारगर होगा, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। वैसे भी इस समय ज़रूरत इस बात की है कि गर्भाशय कैंसर के लिये रूटीन स्क्रीनिंग को कैसे सब महिलाओं तक ...उन की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को बिल्कुल भी कंसिडर न करते हुये.......पहुंचाया जाये।
जाते जाते यही ध्यान आ रहा है कि महिलाओं के अधिकारों का महिलाओं के इस गर्भाशय के कैंसर से सीधा संबंध है। भारत में लड़कियां छोटी उम्र में ब्याह दी जाती हैं, बार-बार वे गर्भावस्था से गुज़रती हैं ...और इन का अपने पति की यौन-आदतों के ऊपर किसी भी तरह का बिल्कुल कंट्रोल होता नहीं है......इन सब की वजह से महिला की अपनी रिप्रोडक्टिव हैल्थ खतरे में पड़ जाती है।
इतना लिखने के बाद ध्यान आ रहा है कि इस एच.पी.व्ही इंफैक्शन से होने वाले गर्भाशय के कैंसर के बारे में इतनी बातें हो गईं .....लेकिन एच.पी.व्ही इंफैक्शन के बारे में कुछ अहम् बातें करनी अभी शेष हैं......ये चर्चा कल करेंगे कि यह इंफैक्शन महिलाओं में अकसर आती कहां से है।