कुछ दिन पहले हरिद्वार में दो भाईयों ने खेत से तोड़ कर ककड़ी क्या खाई, अपनी मौत को बुलावा दे दिया। उस के कुछ ही समय बाद उन की हालत इतनी बिगड़ गई कि एक भाई ने तो हस्पताल जाते जाते ही दम तोड़ दिया और कुछ समय बाद दूसरे की भी मृत्यु हो गई। कारण यह बताया जा रहा है कि जिन ककड़ीयों को इन भाईयों ने खेत से तोड़ कर खाया था उन पर कुछ समय पहले ही ज़हरीले कीटनाशक का स्प्रे किया गया था।
इस से एक बात फिर से उजागर हो गई है कि हम लोग खा क्या रहे हैं। यह तो अब हम सब लोग जान ही गये हैं कि हमारे यहां इन खतरनाक एवं प्रतिबंधित कीटनाशकों का भी जबरदस्त इस्तेमाल हो रहा है। रिपोर्टज़ यह भी हैं कि ये जो हमें सब्जियां-फल बड़े ताज़े ताज़े से रेहड़ीयों इत्यादि पर करीने से सजे हुये दिखते हैं इन पर भी कईं तरह के रासायनों का स्प्रे कर के इन्हें इतना फ्रेश दिखाया जाता है और ये रासायन बहुत हानिकारक होते हैं।
मैं जब भी खेतों में फसलों पर मजदूरों के द्वारा स्प्रे किया जाता देखता हूं तो अकसर उन के स्वास्थ्य के बारे में सोचता हूं कि वे किस तरह बिना किसी तरह की जानकारी के , बिना किसी तरह के सेफ्टी-गियर के...यहां तक कि बिना अपना मुंह एवं नाक ढके हुये.....इस तरह का काम करते रहते हैं। लेकिन कल ही मेरी नज़र एक रिपोर्ट पर पढ़ी है जिस में बताया गया है कि अमेरिका की शीर्ष हैल्थ एजेंसी ने यह बात कही है कि ऐसी लाईसैंसधारी पैस्टीसाइड स्प्रे करने वालों में जिन्होंने अपने जीवनकाल में एक-सौ दिन से ज़्यादा इन पैस्टीसाइडों को स्प्रे करना का काम किया है, उन में डायबिटीज़ रोग होने का खतरा 20 से 200 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
Licensed pesticide applicators who used chlorinated pesticides on more than 100 days in their lifetime were at greater risk of diabetes, according to researchers from the National Institutes of Health (NIH). The associations between specific pesticides and incident diabetes ranged from a 20 percent to a 200 percent increase in risk, said the scientists with the NIH's National Institute of Environmental Health Sciences (NIEHS) and the National Cancer Institute (NCI).
दो-चार दिन पहले पता चला कि अमेरिका के हैल्थ-विभाग की ओर से वहां के नागरिकों को कुछ तरह के टमाटरों का इस्तेमाल न करने की सलाह दी गई है। इस का कारण यह है कि उन के हैल्थ विभाग ने पता लगाया है कि कुछ इंफैक्टेड किस्म के टमाटरों की वजह से वहां कुछ लोगों को सालमोनैला इंफैक्शन ( salmonella infection) हो गई । यह इंफैक्शन एक बैक्टीरिया सालमोनैला की वजह से होती है जिस में दस्त लग जाते हैं जिन के साथ खून भी आने लगता है। वहां पर तो पब्लिक को इस बात के बारे में भी सचेत किया गया है कि वे जिन टमाटरों का इस्तेमाल कर रहे हैं उन के बारे में स्टोर से इस के बारे में भी पूरी जानकारी लें कि वे किस क्षेत्र की पैदावार हैं। फिर उन्होंने अपने नागरिकों को इस बारे में भी सचेत किया है कि टमाटर की कौन कौन सी किस्में इस साल्मोनैला इंफैक्शन से रहित हैं और इन का प्रयोग किया जा सकता है।
हम कहां खड़े हैं...........इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि हमारे देश में हर समय इन दस्तों, पेचिशों, एवं खूनी दस्तों के मरीज़ तैयार मिलते हैं, लेकिन कभी किसी तरह का कारण पता करने की कोशिश ही कहां की जाती हैं। कितने लोग हैं जो मल का टैस्ट करवाते हैं या करवा पाते हैं......कोई समझता है यह किसी शादी बियाह में खाने से हो गया, कोई कहता है कि यह गर्मी के मिजाज की वजह से है, कोई सोचता है कि इस का कारण यह है कि उसे रात में दही पचता नहीं है, कोई सोचता है कि तरबूज, खरबूजा खाने के बाद पानी लेने से ये दस्त हो गये हैं............बस, किसी तरह के कारण की गहराई में जाने की न तो कोशिश ही की जाती है ...............वैसे, हमारे यहां की समस्यायें हैं भी तो कितनी कंपलैक्स कि किसी पेचिश के मरीज को साफ-स्वच्छ पानी पीने का मशविरा देते हुये भी लगता है कि उससे मज़ाक सा ही किया जा रहा है..........कितने दिन पी लेगा वो उबला हुया पानी !!
अब आते हैं इस बात की तरफ़ की इस से आखिर हमें सीख क्या मिलती है............सीख यही है कि दोस्तो कितना भी कह लें, खाना तो यही सब कुछ ही हम ने है....लेकिन अगर कुछ थोड़ी बहुत जन-जागरूकता कम से कम इस बारे में हो जाये कि बिना अच्छी तरह धोये हुये कोई सब्जी-फल का सेवन तो एक इंस्टैंट ज़हर है ............लेकिन फिर भी रोज़ाना कितनी सी कीटनाशकों से लैस सब्जियों वगैरह का सेवन हम लोग करते हैं.....चाहे कितनी भी अच्छी तरह से धुल चुकी हों लेकिन उस से भी वे स्लो-प्वाईज़न जैसा असर तो रखती ही हैं। लेकिन इन के खाये बिना कोई चारा भी तो नहीं है। और अगर आप कहते हैं कि ऑगैनिक हो जाएं, तो दोस्तो यह तो आप को भी पता है कि यह कितने लोगों के बस की बात है !!
इन्हीं कीटनाशकों की वजह से मैंने भी पिछले दो-वर्ष से आम को चूस कर खाना बिलकुल बंद कर दिया है। हुया यूं कि दो साल पहले कईं बार ऐसा हो गया कि जब मैं आम को चूसता और बाद में उस की गुठली को निकालने के लिये उस का छिलका छीलता तो हैरान हो जाता कि बाहर से इतना बढ़िया दिखने वाला आम अंदर से इतना सड़ा-गला और कीड़े लगा हुआ....... और ऐसा बहुत बार हुआ.............बस, तब से इतनी नफ़रत हो गई है कि अब तो आम की फाड़ी काट कर उसे चम्मच से ही खाना ठीक लगता है.....कोशिश यही रहती है कि जहां तक हो सके आम के छिलके को मुंह ना ही लगाना पड़े।
कहीं ऐसा तो नहीं कि इस समय आप आम खा रहे हों और मैंने आप का मजा किरकिरा कर दिया हो...........खाइये, खाइये....इस गर्मी के मौसम में आनंद लूटिये।