शनिवार, 5 जनवरी 2008

धूल चाट रहे वाकिंग शूज़ को साफ़ करने के इलावा कोई चारा है ही नहीं....

अमेरिकन जर्नल आफ कारडीयोलाजी में छपे एक लेख के अनुसार धूल चाट रहे वाकिंग शूज़ को साफ़ करने के इलावा कोई चारा है ही नहीं....अगर हम सप्ताह में छः दिन रोज़ाना आधे घंटे तक तेज़-तेज़ सैर करते हैं तो इस से हम कमर से कमरा बन रही अपनी कमर को कम तो कर ही सकते हैं, इस के साथ ही साथ मोटापे एवं स्थूल जीवण-शैली( सिडेंटरी लाइफ-स्टाइल) के कारण होने वाले मैटाबालिक सिंड्रोम के रिस्क को भी कम करने में मदद मिलती है।

डयूक यूनिवर्सिटी मैडीकल सेंटर के इस अध्ययन में तो वैज्ञानिकों ने यहां तक देखा है कि अगर खाने-पीने की आदतों में कोई बदलाव न भी किया जाए तो भी तेज़-2 सैर करने से होने वाले लाभ तो हमें प्राप्त होते ही हैं। लेकिन, प्लीज़, मेरी बात मानिए तो इस खाने पीने की आदतों में कोई बदलाव न करने की आदत को आप इतना सीरियस्ली न ही लें--- जैसा हम लोगों का खान-पान है न, हमें तो वैसे ही बहुत ही ख्याल रखना होगा, दोस्तो।

दोस्तो, अमेरिका की लगभग एक चौथाई जनसंख्या इस मैटाबालिक सिंड्रोम से जूझ रही है। मैटाबालिक सिंड्रोम क्या है ?- दोस्तो, आप इतना जान लीजिए कि यह मैटाबालिक सिंड्रोम कई तरह के रिस्क फैक्टरों (risk factors) का एक समूह है जिस की वजह से हृदय रोग, डायबिटीज़ एवं स्ट्रोक होने की आशंका ज्यादा ही हो जाती है।

तो, चलिए, इन रिस्क फैक्टर्ज़ की ही कुछ बात कर लें ---अगर किसी व्यक्ति में नीचे लिखे पांच रिस्क फैक्टर्ज़ में से कम से कम तीन फैक्टर्ज़ हैं तो समझ लीजिए उसे मैटाबालिक सिंड्रोम है—
· बड़ी हुई कमर (large waistline)
· हाई-ब्लड प्रेशर
· नुकसान दायक ट्राईग्लिसरायड्स का बढ़ा हुया होना (high levels of harmful triglycerides)
· अच्छे ट्राइग्लिसरायड्स का स्तर कम होना (low levels of good cholesterol)
· हाई- ब्लड-शुगर
दोस्तो, अगर आप इन नुकसानदायक और फायदेमंद ट्राइग्लिसरायड्स की बात कुछ कुछ नहीं समझ पा रहे हैं तो कोई बात नहीं---बस इतना ही समझना काफी है कि जब हम अपने रक्त की जांच (लिपिड प्रोफाइल) करवाते हैं न, तो यह सारे स्तर हमें पता लग जाते हैं। दूसरा, यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि तेज़ तेज़ सैर करने से हमारे शरीर में ये नुकसान दायक तत्व कम होने लगते हैं और फायदेमंद ट्राइग्लिसरायड्स का स्तर बढ़ने लगता है जिस से रक्त की नाड़ियों में अवरोध पैदा होने की संभावना घटने लगती है।
अमेरिकी जर्नल आफ कार्डिलाजी के अनुसार बिल्कुल ही शारीरिक व्यायाम न करने से कुछ व्यायाम करना तो बेहतर है ही, और ज्यादा शारीरिक परिश्रम करना कम परिश्रम करने से तो निःसंदेह अच्छा है ही, लेकिन बिल्कुल शारीरिक व्यायाम करना तो भाई बेहद खतरनाक है।–क्या यही बात हम सैंकड़ों वर्षों से नहीं जानते ?
क्या हुया, आप तो डर से गए ?--- नहीं,नहीं, ऐसी डरने वाली कोई बात भी नहीं है, बस आज ही रैक पर पड़े अपने सैर करने वाले शूज़ की धूल साफ कर ही दीजिए। चलिए, मैं भी आज से यही प्रण करता हूं कि प्रवचनों पर खुद भी चल कर दिखाऊंगा...................
बेटा, ज़रा मेरे काले कैनव्स शूज़ देना !
तो, दोस्तो, आप भी उठिए, टहलते हुए किसी पार्क में मिलते हैं।....................
Good morning, India !!!!!
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4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रवीण जी क्या कमाल है। मैं आपकी प्रोफाइल और पोस्ट देख रहा था और ठीक उसी समय आप मेरे ब्लॉग पर थे। मैं 15 सालों से डायबिटीज का मरीज हूं। आपकी ये जानकारी यकीनन मेरे जैसे लोगों के लिए बहुत काम की हैं। वॉकिंग शूज अभी तक लिए ही नहीं। जल्दी ही ले लूंगा और कम से कम आधा घंटा तेज़-तेज़ चलने की कोशिश करूंगा। धन्यवाद

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  2. पिछले लगभग एक साल से वौकिंग शूज़ पर धूल सी ही जम रही है. रोज़ सोचता हूं कल से शुरुआत करेंगे. वो कल कभी आता ही नहीं. दिल्ली में बहुत सर्दी है आजकल. फिर भी... जल्दी ही...
    करेंगे शुरुआत.

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  3. मैं तो लगभग प्रतिदिन इन जूतों का उपयोग करती हूँ । ४.५ कि. मी. कि सैर पर जाती हूँ परन्तु मेरे मैटाबोलिक रेट ने कसम खा रखी है कि न्यून से न्यूनतम ही रहेगा । खैर, मैं तो फिर भी कहूँगी चलते रहिये और जितना तेज हो सके उतना तेज चलिये ।
    घुघूती बासूती

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  4. रोज सोचता हूँ कि सुबह उठकर घूमने जाउँ पर हाय रे आलसीपन ५ साल से नहीं जा पा रहा हूँ, क्योंकि केवल ५ साल से ही सोच रहा हूँ।

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