कोरोना के बारे में इतना कुछ सोशल मीडिया में आ चुका है कि अब तो डाक्टर भी सोच रहे होंगे कि हमारे कहने लायक रहा ही क्या...
हक़ीक़त है कि बहुत कुछ दिखा इस टॉपिक के ऊपर -- हर तरफ़ से ..और क़िस्म की बातें ...बहुत सी बातें गुमराह करने वाली-- दिक्कत यह है कि जो इन बातों को सोशल मीडिया पर शेयर कर रहा है उसे भी इस बात का इल्म नहीं होता कि वह क्या शेयर कर रहा है, पर उसे किसी ने वह जानकारी भेजी और उस ने आगे सरका दी...
मैं भी ज़्यादा बातें नहीं करना चाहता --- इस पोस्ट में तो दो चार बातें ही करूंगा .. क्योंकि बहुत सी बातें तो हम लोग पहले ही से जानते हैं...
यह जो सोशल-डिस्टेंसिंग वाली बात है ना, यह गंभीरता से लेने वाली बात है ...बहुत दुःख हुआ उस दिन जिस दिन घर ही में थाली बजाने को कहा गया था और दुनिया बाज़ारों में ढोल-नगाड़े लेकर पहुंच गई.. इस से लॉक-डाउन का मक़सद ख़त्म हो जाता है ..
यह बात हम सब लोग कोरोना के बारेे में अच्छे से याद रख लें कि लॉक-डाउन के दौरान हम लोग कोरोना से जंग नहीं लड़ रहे हैं, हम इस से छिप रहे हैं ...इस का मतलब यह है कि लॉक-डाउन तो ज़रूरी है ही ...लेकिन जब लॉक-डाउन खुलेगा तो वह भी हमारे सब के इम्तिहान की घड़ी होगी...सरकारें जितना कर सकती हैं कर ही रही हैं, हम लोगों की भी ज़िम्मेदारी है -
इस बात तो नोट करें कि कोरोना अभी कहीं जाने वाला नहीं -- कब तक? - जब तक इस का कोई टीका तैयार नहीं हो जाता या लोगों में एक सामूहिक इम्यूनिटी पैदा नहीं हो जाती है ...इसे इंगलिश में हर्ड-इम्यूनिटी भी कह देते हैं ...इस बीमारी का टीका कब बनेगा..कोई कह रहा है एक साल लग सकता है, कोई डेढ़ साल कह रहा है ...सभी मेडीकल विशेषज्ञ इस काम में जुटे हुए हैं ...जी हां, एक तरीका तो वह है कि जब लोगों को इस का टीका लग जाएगा तो उन में इस बीमारी से लड़ने की शक्ति पैदा हो जाती है .. बिल्कुल वैसे ही जैसे बहुत सी दूसरी बीमारियों के लिए टीके लगते हैं और लोग उन बीमारीयों से बचे रहते हैं....यह तो एक तरीका है, दूसरा तरीका है ...अगर सारी जनसंख्या का कुछ प्रतिशत (मुझे नहीं प्रतिशत कितना है ..कुछ कह रहे हैं 60 फ़ीसद, कुछ कह रहे हैं 90 फ़ीसद, लेकिन इतनी गहराई में आप भी न जाएं) इस बीमारी से संक्रमित हो जायेगा ...चाहे उन में इस बीमारी का ज़्यादा जटिल रूप देखने को नहीं भी मिलेगा (और 80-85 प्रतिशत केसों में ऐसा ही होगा) या ऐसा भी हो सकता है कि उन में से बहुत से लोगों में कुछ लक्षण ही न हों ...चाहें किसी में लक्षण हों, चाहे थोड़े-बहुत लक्षण हों अथवा बीमारी की जटिल व्याधियों के लिए उसे अस्पताल में रहना पड़ा हो ....बात सीधी सीधी इतनी सी है कि जो भी हो लेकिन इन सब लोगों में इस बीमारी से लड़ने के लिए (इम्यूनिटी) एंटीबॉडी बन चुके हैं...यह एक तरह का हथियार होता है जो किसी बीमारी से हमारी रक्षा करता है ..
अब एक बात और अच्छे से सुनिए ...बहुत सी बीमारीयां तो ऐसी ही होती हैं जैसे हैपेटाइटिस बी ...टेटनस, काली खांसी आदि कि एक बार शरीर में इन से बचाव का टीका लग गया तो यह हमें उसे बीमारी से सुरक्षा प्रदान करता है ... हां, यह होता है कि कईं बार डाक्टर के मशविरे के मुताबिक बूस्टर डोज़ लगवानी होती है ..
लेकिन मसला कोरोना में यह भी बताया जा रहा है कि कुछ केसों में यह दोबारा भी हो रहा है ....इसलिए किसी किस्म की ढिलाई की गुंजाइश नहीं है ......कोई ऐसा न समझे कि एक बार कोरोना हो गया तो फिर से नहीं होगा...इसलिए वह तो जैसे मरज़ी घूमे ...बिना मास्क लगाए और बिना सोशल-डिस्टेंसिग का ख़्याल रखे। नहीं, ऐसा मुनासिब नही है क्योंकि इस के फिर से होने के भी कुछ केस सामने आए हैं....मेडीकल वैज्ञानिकों को यह लग रहा है कि जिन लोगों में एक बार कोरोना होने के बाद दूसरी बार हुआ ...उन में यह वॉयरस के बदले हुए रूप (वॉयरस म्यूटेट होने से) की वजह से हो रहा है ....ये सब बातें अभी ज़्यादा खोज की स्टेज पर ही हैं, इसलिए बस इसे भी थोड़ा ख़्याल में रख लीजिए।
एक बात का ख्याल रखना और भी ज़रूरी है कि हो सकता है कि जिस इंसान को कोरोना इंफेक्शन तो है लेकिन लक्षण कुछ नहीं हैं....लेकिन क़ाबिले-गौर बात यह है कि यह शख्स भी वॉयरस संक्रमण आगे फैलाने में सक्षम है और संक्रमण होने से अगले 35 दिन तक ....चाहे ख़ुद इस में लक्षण नहीं हैं.....इसलिए यह जो बात है न कि हम लोग मुंह पर गमछा रख लेते हैं या महिलाएं कहती हैं कि हम फल-सब्जी लेने जाते हैं तो मुंह पर दुपट्टा रख लेते हैं ....नहीं, यह गलत है ...चेहरे पर घर पर बना हुआ फेस-मास्क तो लगाना ही होगा...हमेशा याद रखिए...
बाकी की बातें कल करेंगे .... लेकिन इतना ज़रूर ख़्यार रखिए कि घर में बने फेस-मास्क ज़रूर पहन लिया करें ... यह बहुत ज़रूरी है...यह जंग लंबी चलने वाली है ........इसलिए लॉक-डाउन के दिनों के बाद भी हमें एहतियात बरतनी होंगी ...मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है लॉक-डाउन खुलने के बाद कोरोना के केसों में बहुत इज़ाफ़ा होगा ....यह जो दो-तीन महीने का समय सरकारी सेहत विभाग को मिला है इस में बहुत सी तैयारियां की जा चुकी हैं और अभी भी की जा रही हैं ताकि अचानक बहुत से केसों के आ जाने से चिकित्सा तंत्र कैसे उन्हें संभाल पाने में सक्षम रहे..
कल सुबह मैं आप से रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढा़ने के बारे में विस्तार से बात करूंगा ...अच्छा, आज यहीं बंद करते हैं ....मस्त रहिए, स्वस्थ रहिए....हिंदु-मुस्लिम वाले मुद्दों में न उलझिए....कुछ हाथ नहीं लगेगा...हम सब एक हैं...बेचारे सब परेशान हैं...सब के लिए दुआ करिए...बड़ी ताक़त है दुआ में ...
हक़ीक़त है कि बहुत कुछ दिखा इस टॉपिक के ऊपर -- हर तरफ़ से ..और क़िस्म की बातें ...बहुत सी बातें गुमराह करने वाली-- दिक्कत यह है कि जो इन बातों को सोशल मीडिया पर शेयर कर रहा है उसे भी इस बात का इल्म नहीं होता कि वह क्या शेयर कर रहा है, पर उसे किसी ने वह जानकारी भेजी और उस ने आगे सरका दी...
मैं भी ज़्यादा बातें नहीं करना चाहता --- इस पोस्ट में तो दो चार बातें ही करूंगा .. क्योंकि बहुत सी बातें तो हम लोग पहले ही से जानते हैं...
यह जो सोशल-डिस्टेंसिंग वाली बात है ना, यह गंभीरता से लेने वाली बात है ...बहुत दुःख हुआ उस दिन जिस दिन घर ही में थाली बजाने को कहा गया था और दुनिया बाज़ारों में ढोल-नगाड़े लेकर पहुंच गई.. इस से लॉक-डाउन का मक़सद ख़त्म हो जाता है ..
यह बात हम सब लोग कोरोना के बारेे में अच्छे से याद रख लें कि लॉक-डाउन के दौरान हम लोग कोरोना से जंग नहीं लड़ रहे हैं, हम इस से छिप रहे हैं ...इस का मतलब यह है कि लॉक-डाउन तो ज़रूरी है ही ...लेकिन जब लॉक-डाउन खुलेगा तो वह भी हमारे सब के इम्तिहान की घड़ी होगी...सरकारें जितना कर सकती हैं कर ही रही हैं, हम लोगों की भी ज़िम्मेदारी है -
इस बात तो नोट करें कि कोरोना अभी कहीं जाने वाला नहीं -- कब तक? - जब तक इस का कोई टीका तैयार नहीं हो जाता या लोगों में एक सामूहिक इम्यूनिटी पैदा नहीं हो जाती है ...इसे इंगलिश में हर्ड-इम्यूनिटी भी कह देते हैं ...इस बीमारी का टीका कब बनेगा..कोई कह रहा है एक साल लग सकता है, कोई डेढ़ साल कह रहा है ...सभी मेडीकल विशेषज्ञ इस काम में जुटे हुए हैं ...जी हां, एक तरीका तो वह है कि जब लोगों को इस का टीका लग जाएगा तो उन में इस बीमारी से लड़ने की शक्ति पैदा हो जाती है .. बिल्कुल वैसे ही जैसे बहुत सी दूसरी बीमारियों के लिए टीके लगते हैं और लोग उन बीमारीयों से बचे रहते हैं....यह तो एक तरीका है, दूसरा तरीका है ...अगर सारी जनसंख्या का कुछ प्रतिशत (मुझे नहीं प्रतिशत कितना है ..कुछ कह रहे हैं 60 फ़ीसद, कुछ कह रहे हैं 90 फ़ीसद, लेकिन इतनी गहराई में आप भी न जाएं) इस बीमारी से संक्रमित हो जायेगा ...चाहे उन में इस बीमारी का ज़्यादा जटिल रूप देखने को नहीं भी मिलेगा (और 80-85 प्रतिशत केसों में ऐसा ही होगा) या ऐसा भी हो सकता है कि उन में से बहुत से लोगों में कुछ लक्षण ही न हों ...चाहें किसी में लक्षण हों, चाहे थोड़े-बहुत लक्षण हों अथवा बीमारी की जटिल व्याधियों के लिए उसे अस्पताल में रहना पड़ा हो ....बात सीधी सीधी इतनी सी है कि जो भी हो लेकिन इन सब लोगों में इस बीमारी से लड़ने के लिए (इम्यूनिटी) एंटीबॉडी बन चुके हैं...यह एक तरह का हथियार होता है जो किसी बीमारी से हमारी रक्षा करता है ..
अब एक बात और अच्छे से सुनिए ...बहुत सी बीमारीयां तो ऐसी ही होती हैं जैसे हैपेटाइटिस बी ...टेटनस, काली खांसी आदि कि एक बार शरीर में इन से बचाव का टीका लग गया तो यह हमें उसे बीमारी से सुरक्षा प्रदान करता है ... हां, यह होता है कि कईं बार डाक्टर के मशविरे के मुताबिक बूस्टर डोज़ लगवानी होती है ..
लेकिन मसला कोरोना में यह भी बताया जा रहा है कि कुछ केसों में यह दोबारा भी हो रहा है ....इसलिए किसी किस्म की ढिलाई की गुंजाइश नहीं है ......कोई ऐसा न समझे कि एक बार कोरोना हो गया तो फिर से नहीं होगा...इसलिए वह तो जैसे मरज़ी घूमे ...बिना मास्क लगाए और बिना सोशल-डिस्टेंसिग का ख़्याल रखे। नहीं, ऐसा मुनासिब नही है क्योंकि इस के फिर से होने के भी कुछ केस सामने आए हैं....मेडीकल वैज्ञानिकों को यह लग रहा है कि जिन लोगों में एक बार कोरोना होने के बाद दूसरी बार हुआ ...उन में यह वॉयरस के बदले हुए रूप (वॉयरस म्यूटेट होने से) की वजह से हो रहा है ....ये सब बातें अभी ज़्यादा खोज की स्टेज पर ही हैं, इसलिए बस इसे भी थोड़ा ख़्याल में रख लीजिए।
एक बात का ख्याल रखना और भी ज़रूरी है कि हो सकता है कि जिस इंसान को कोरोना इंफेक्शन तो है लेकिन लक्षण कुछ नहीं हैं....लेकिन क़ाबिले-गौर बात यह है कि यह शख्स भी वॉयरस संक्रमण आगे फैलाने में सक्षम है और संक्रमण होने से अगले 35 दिन तक ....चाहे ख़ुद इस में लक्षण नहीं हैं.....इसलिए यह जो बात है न कि हम लोग मुंह पर गमछा रख लेते हैं या महिलाएं कहती हैं कि हम फल-सब्जी लेने जाते हैं तो मुंह पर दुपट्टा रख लेते हैं ....नहीं, यह गलत है ...चेहरे पर घर पर बना हुआ फेस-मास्क तो लगाना ही होगा...हमेशा याद रखिए...
लेखक अपनी ड्यूटी पर |
बाकी की बातें कल करेंगे .... लेकिन इतना ज़रूर ख़्यार रखिए कि घर में बने फेस-मास्क ज़रूर पहन लिया करें ... यह बहुत ज़रूरी है...यह जंग लंबी चलने वाली है ........इसलिए लॉक-डाउन के दिनों के बाद भी हमें एहतियात बरतनी होंगी ...मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है लॉक-डाउन खुलने के बाद कोरोना के केसों में बहुत इज़ाफ़ा होगा ....यह जो दो-तीन महीने का समय सरकारी सेहत विभाग को मिला है इस में बहुत सी तैयारियां की जा चुकी हैं और अभी भी की जा रही हैं ताकि अचानक बहुत से केसों के आ जाने से चिकित्सा तंत्र कैसे उन्हें संभाल पाने में सक्षम रहे..
कल सुबह मैं आप से रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढा़ने के बारे में विस्तार से बात करूंगा ...अच्छा, आज यहीं बंद करते हैं ....मस्त रहिए, स्वस्थ रहिए....हिंदु-मुस्लिम वाले मुद्दों में न उलझिए....कुछ हाथ नहीं लगेगा...हम सब एक हैं...बेचारे सब परेशान हैं...सब के लिए दुआ करिए...बड़ी ताक़त है दुआ में ...