आज सोच रहा हूं बंगाली डाक्टरों पर चंद बातें लिखूं... इन डाक्टरों से मेरा अभिप्रायः है वे डाक्टर जिन्होंने किसी तरह का प्रशिक्षण हासिल नहीं किया होता, बस जैसे तैसे अपना खोखा या गुमटी जमा लेते हैं...
मैंने तो देखा है हर शहर में ये नीम हकीम डाक्टर मिल जाते हैं और इन के चाहने वाले भी ...
अधिकतर ये अपने आप को भगंदर के इलाज का एक्सपर्ट मानते हैं.. शहर की दीवारों पर भी इन के इश्तिहार चिपके मिल जाते हैं कि एक ही टीके में पुरानी से पुरानी बवासीर और भगंदर का इलाज पाएं..
जाहिर सी बात है कि इन के किसी भी दावे में सच्चाई नहीं हो सकती .. प्रशिक्षित सर्जन जो ये काम करते हैं ... वे बीस तीस साल अपने प्रोफैशन में घिसने के बाद ही किसी मुश्किल केस को हैंडल कर पाते हैं..लेकिन ये नीम हकीम बंगाली डाक्टर किसी भी जटिल से जटिल केस की गारंटी ले लेते हैं...
हर प्रशिक्षित सर्जन को अपनी सीमाएं पता होती हैं..बहुत अच्छी बात है ...वह किसी भी मरीज़ का इलाज इस तरह से करता है कि वह किसी कारणवश पूर्णतयः ठीक न भी हो पाए तो भी वह बदतर नहीं हो जाए और सब से महत्वपूर्ण बात यह कि वह यह सुनिश्चित करता है कि सारा काम अच्छे से कीटाणुरहित औजारों से हो ताकि किसी भी तरह की भयंकर बीमारी का संप्रेषण न हो जाए... उस ने कम से कम दस साल यही कुछ सीखने की घोर तपस्या की होती है ..ऐसे ही नहीं डाक्टर बन जाते!!
लेकिन इन नीम हकीम बंगाली डाक्टरों के पास जाने पर पता ही नहीं कि वे कौन सी सूईं लगा रहे हैं...दवा के नाम पर अंदर क्या भेज रहे हैं...कौन से धागे ...कौन सी सूईंयां...सब कुछ गड़बड़झाला ....मुझे कईं मरीज़ पूछते हैं कभी तो मैं उन्हें बड़ी सख्ती से मान करता हूं कि यही कहता हूं कि अगर बवासीर ठीक हो भी गई (जो कि इन से होगी नहीं!) तो भी सौगात में वे कौन सी बीमारीयां ठेल देंगे, आप को महीनों या सालों बाद ही पता चलेगा! इस में उन का भी दोष नहीं है ...उन्हें जब खुद ही नहीं पता इन सब वैज्ञानिक सिद्धांतों का तो वे इन खतरों की कल्पना भी कैसे कर सकते हैं...
जब कोई आ कर कहता है कि मैं एक टीका लगवा कर या कुछ और इन के पास जाकर करवाने से ठीक हो गया..मुझे खुशी नहीं होती बिल्कुल ...क्योंकि जब मैं उन से पूछता हूं कि उस के बाद किसी सर्जन को दिखाया है तो जवाब मिलता है ...नहीं...इसलिए बिना प्रशिक्षित सर्जन के कोई भी कल्याण नहीं कर सकता ऐसी बीमारियों में...हां, सुना तो है कि आयुर्वैदिक पद्धति में भी बहुत कारगार इलाज है भगंदर , बवासीर जैसी बीमारियों के लिए .. लेकिन उस के बारे में ज़्यादा पता नहीं कि कहां पर होता है यह सब ...
मेरे एक निकट संबंधी ने भी करवाया यही टीकाकरण बवासीर के लिए....कुछ समय के लिए दब गई तकलीफ़, और फिर बाद में खूब जटिल आप्रेशन करवाना पड़ा और सर्जन की झिड़कियां खानी पड़ीं सो अलग...
दरअसल हमारे शरीर की आंतरिक संरचना है ही इतनी जटिल कि कैसे एक अनपढ़ बंदा जो कुछ भी नहीं जानता ... उस से खिलवाड़ कर सकता है ...और दुःख यही है कि यह सब हो रहा है....हर शहर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी की यह ड्यूटी है कि वह इस तरह के नीम हकीमों और झोलाछाप डाक्टरों पर नकेल कसें...
बेहतर होगा अगर जन मानस ही इतना जागरूक हो जाए कि बंगाली क्या, पंजाबी क्या और मारवाड़ी क्या, किसी भी नीम हकीम के चक्कर में फंसे ही नहीं ... जागो ग्राहक जागो ...हम भी नारा तो दे ही दें..
एक निकट संबंधी को भगंदर जैसी कुछ शिकायत थी... एमसीएच यूरोलॉजी को दिखा रहे थे .. क्या कहते हैं आप्रेशन के एक दिन पहले यूरोथ्रोस्कोपी हुई ...विशेषज्ञ को लगा कि इसे यूरेथर्र फिस्टूला ही मान कर आप्रेशन किया जायेगा.. फिश्चूला की जगह ही कुछ ऐसी थी ..अगले दिन सुबह आप्रेशन होने लगा तो सिविल अस्पताल के एक रिटायर्ड सर्जन भी वहां ओटी में बैठे हुए थे .. तो यूरोलॉजिस्ट ने उन्हें भी दिखा दिया केस ... उन्होंने देखते ही जांच कर के कहा कि ये भगंदर ही है .. high-end है ... और फिर उस यूरोलॉजिस्ट के कहने पर इन्होंने ही वह आप्रेशन किया ....मेरी भी इन सब के बारे में इतनी जानकारी नहीं है ...बस, यह मैंने इसलिए लिखा कि इतने इतने पढ़े-लिखे डाक्टर भी कभी कभी असमंजस में पड़ जाते हैं....कोई बात नहीं, सब के साथ होता है ...सीखते सीखते ही हम लोग पारंगत हो पाते हैं.......लेकिन इन बंगाली नीम हकीमों के पास तो जाना तो अपने पैर पर आप कुल्हाडी मारने जैसा है ..बच के रहिए, और दूसरों को भी बचाते रहिए...
हां, एक बात आज मित्र से पता चला ...उस ने इन पर अध्ययन किया ...कि ये सब बंगाल से आते हैं, बंगाली भाषा बोलते हैं.. और दुर्गा पूजा पर अपने गांव जाते है ं और लौटते समय गांव के कुछ लौंडों को साथ ले आते हैं... यह धागे से भगंदर को ठीक करने वाला काम सिखाने के लिए ...और जब इन को लगता है कि ये भी खिलाड़ी हो गये हैं तो ये आसपास के गांवों में जा बसते हैं....बंगाली डाक्टर का बोर्ड टंगवा कर भोले भाले लोगों की सेहत से खिलवाड़ करना शुरू कर देेते हैं..
मुझे आज ही यह पता चला कि इन के क्लिनिक के बाहर एक सांप भी होता है ...उम्मीद है सांप की तस्वीर ही होती होगी, यह तो मैं पूछना ही भूल गया.. लेकिन इस तरह के नीम हकीम अकसर सपेरों का काम भी कर लेते हैं ... सांप पकड़ने के लिए इन्हें बुलाया जाता है अकसर ...
बंगाली शब्द को उम्मीद है आप अन्यथा नहीं लेगें...बेहतर होगा...यह शब्द इसलिए इस्तेमाल किया है क्योंकि इन के बोर्डों पर कुछ ऐसा ही लिखा होता है ...
मैंने तो देखा है हर शहर में ये नीम हकीम डाक्टर मिल जाते हैं और इन के चाहने वाले भी ...
अधिकतर ये अपने आप को भगंदर के इलाज का एक्सपर्ट मानते हैं.. शहर की दीवारों पर भी इन के इश्तिहार चिपके मिल जाते हैं कि एक ही टीके में पुरानी से पुरानी बवासीर और भगंदर का इलाज पाएं..
जाहिर सी बात है कि इन के किसी भी दावे में सच्चाई नहीं हो सकती .. प्रशिक्षित सर्जन जो ये काम करते हैं ... वे बीस तीस साल अपने प्रोफैशन में घिसने के बाद ही किसी मुश्किल केस को हैंडल कर पाते हैं..लेकिन ये नीम हकीम बंगाली डाक्टर किसी भी जटिल से जटिल केस की गारंटी ले लेते हैं...
हर प्रशिक्षित सर्जन को अपनी सीमाएं पता होती हैं..बहुत अच्छी बात है ...वह किसी भी मरीज़ का इलाज इस तरह से करता है कि वह किसी कारणवश पूर्णतयः ठीक न भी हो पाए तो भी वह बदतर नहीं हो जाए और सब से महत्वपूर्ण बात यह कि वह यह सुनिश्चित करता है कि सारा काम अच्छे से कीटाणुरहित औजारों से हो ताकि किसी भी तरह की भयंकर बीमारी का संप्रेषण न हो जाए... उस ने कम से कम दस साल यही कुछ सीखने की घोर तपस्या की होती है ..ऐसे ही नहीं डाक्टर बन जाते!!
लेकिन इन नीम हकीम बंगाली डाक्टरों के पास जाने पर पता ही नहीं कि वे कौन सी सूईं लगा रहे हैं...दवा के नाम पर अंदर क्या भेज रहे हैं...कौन से धागे ...कौन सी सूईंयां...सब कुछ गड़बड़झाला ....मुझे कईं मरीज़ पूछते हैं कभी तो मैं उन्हें बड़ी सख्ती से मान करता हूं कि यही कहता हूं कि अगर बवासीर ठीक हो भी गई (जो कि इन से होगी नहीं!) तो भी सौगात में वे कौन सी बीमारीयां ठेल देंगे, आप को महीनों या सालों बाद ही पता चलेगा! इस में उन का भी दोष नहीं है ...उन्हें जब खुद ही नहीं पता इन सब वैज्ञानिक सिद्धांतों का तो वे इन खतरों की कल्पना भी कैसे कर सकते हैं...
जब कोई आ कर कहता है कि मैं एक टीका लगवा कर या कुछ और इन के पास जाकर करवाने से ठीक हो गया..मुझे खुशी नहीं होती बिल्कुल ...क्योंकि जब मैं उन से पूछता हूं कि उस के बाद किसी सर्जन को दिखाया है तो जवाब मिलता है ...नहीं...इसलिए बिना प्रशिक्षित सर्जन के कोई भी कल्याण नहीं कर सकता ऐसी बीमारियों में...हां, सुना तो है कि आयुर्वैदिक पद्धति में भी बहुत कारगार इलाज है भगंदर , बवासीर जैसी बीमारियों के लिए .. लेकिन उस के बारे में ज़्यादा पता नहीं कि कहां पर होता है यह सब ...
मेरे एक निकट संबंधी ने भी करवाया यही टीकाकरण बवासीर के लिए....कुछ समय के लिए दब गई तकलीफ़, और फिर बाद में खूब जटिल आप्रेशन करवाना पड़ा और सर्जन की झिड़कियां खानी पड़ीं सो अलग...
दरअसल हमारे शरीर की आंतरिक संरचना है ही इतनी जटिल कि कैसे एक अनपढ़ बंदा जो कुछ भी नहीं जानता ... उस से खिलवाड़ कर सकता है ...और दुःख यही है कि यह सब हो रहा है....हर शहर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी की यह ड्यूटी है कि वह इस तरह के नीम हकीमों और झोलाछाप डाक्टरों पर नकेल कसें...
बेहतर होगा अगर जन मानस ही इतना जागरूक हो जाए कि बंगाली क्या, पंजाबी क्या और मारवाड़ी क्या, किसी भी नीम हकीम के चक्कर में फंसे ही नहीं ... जागो ग्राहक जागो ...हम भी नारा तो दे ही दें..
एक निकट संबंधी को भगंदर जैसी कुछ शिकायत थी... एमसीएच यूरोलॉजी को दिखा रहे थे .. क्या कहते हैं आप्रेशन के एक दिन पहले यूरोथ्रोस्कोपी हुई ...विशेषज्ञ को लगा कि इसे यूरेथर्र फिस्टूला ही मान कर आप्रेशन किया जायेगा.. फिश्चूला की जगह ही कुछ ऐसी थी ..अगले दिन सुबह आप्रेशन होने लगा तो सिविल अस्पताल के एक रिटायर्ड सर्जन भी वहां ओटी में बैठे हुए थे .. तो यूरोलॉजिस्ट ने उन्हें भी दिखा दिया केस ... उन्होंने देखते ही जांच कर के कहा कि ये भगंदर ही है .. high-end है ... और फिर उस यूरोलॉजिस्ट के कहने पर इन्होंने ही वह आप्रेशन किया ....मेरी भी इन सब के बारे में इतनी जानकारी नहीं है ...बस, यह मैंने इसलिए लिखा कि इतने इतने पढ़े-लिखे डाक्टर भी कभी कभी असमंजस में पड़ जाते हैं....कोई बात नहीं, सब के साथ होता है ...सीखते सीखते ही हम लोग पारंगत हो पाते हैं.......लेकिन इन बंगाली नीम हकीमों के पास तो जाना तो अपने पैर पर आप कुल्हाडी मारने जैसा है ..बच के रहिए, और दूसरों को भी बचाते रहिए...
हां, एक बात आज मित्र से पता चला ...उस ने इन पर अध्ययन किया ...कि ये सब बंगाल से आते हैं, बंगाली भाषा बोलते हैं.. और दुर्गा पूजा पर अपने गांव जाते है ं और लौटते समय गांव के कुछ लौंडों को साथ ले आते हैं... यह धागे से भगंदर को ठीक करने वाला काम सिखाने के लिए ...और जब इन को लगता है कि ये भी खिलाड़ी हो गये हैं तो ये आसपास के गांवों में जा बसते हैं....बंगाली डाक्टर का बोर्ड टंगवा कर भोले भाले लोगों की सेहत से खिलवाड़ करना शुरू कर देेते हैं..
मुझे आज ही यह पता चला कि इन के क्लिनिक के बाहर एक सांप भी होता है ...उम्मीद है सांप की तस्वीर ही होती होगी, यह तो मैं पूछना ही भूल गया.. लेकिन इस तरह के नीम हकीम अकसर सपेरों का काम भी कर लेते हैं ... सांप पकड़ने के लिए इन्हें बुलाया जाता है अकसर ...
बंगाली शब्द को उम्मीद है आप अन्यथा नहीं लेगें...बेहतर होगा...यह शब्द इसलिए इस्तेमाल किया है क्योंकि इन के बोर्डों पर कुछ ऐसा ही लिखा होता है ...
बंगाली डाक्टर ...पुरानी से पुरानी बवासीर, भगंदर का शर्तिया इलाज ... एक ही टीके में जड़ से खत्म !!