एक इंगिलश की कहावत है ...Ignorance is bliss! ... अनुवाद इस का शायद यही होगा ... अनाडी़पन भी अच्छा होता है! गन्ने के रस के बारे में बात बाद में करते हैं, पहले मेडलाइन प्लस पर उपलब्ध मैडीकल खबरों की खबर ले ली जाए...शायद सैंकड़ों लेखों के आइडिया मुझे इन खबरों से आया करते थे ...फिर एक दिन विचार आया..कि नहीं, क्या करना इतना मैडीकल ज्ञान लोगों की सीधी सादी ज़िंदगी में ठूंस कर ...अपने अपने हिस्से का ज्ञान सब जुटा ही लेते हैं कैसे भी...इसलिए मुझे इस तरह के भारी भरकम ज्ञान से एक तरह से चिढ़ ही हो गई...
आज मुझे ध्यान आया कि चलिए देखते हैं क्या खबरें कह रही हैं सेहत के बारे में ....पूरी लिस्ट देख ली, कुछ भी तो नहीं लगा जिसे आप से शेयर किया जा सके या जिस पर कोई टिप्पणी की जा सके ... यह रहा वैसे इस का लिंक ...मैडलाइन प्लस ... इस के बारे में इतना बताते चलें कि यह अमेरिकी नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मैडीसन की साइट है जहां पर विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध रहती है .....
लेकिन वही बात है इतना भारी भरकम ज्ञान ढोने से क्या हासिल ....हमारे तो मुद्दे हैं, दूषित पानी से कब राहत मिलेगी, मच्छरों का आतंक कब कम होगा, और गन्ने का रस पिएं या ना पिएं !!
कल सुबह मैंने एक लेख ठेला था फलों के रस का सच हम जानते तो हैं, लेकिन ...
उस लेख पर एक कमैंट मुझे आया वाट्सएप पर जिस में मित्र ने लिखा कि ये फलों का जूस बेचने वाले भी कईं तरह के शोषण का शिकार होते हैं...इन्हें भी कुछ पुलिसवालों को मुफ़्त में जूस पिलाना पड़ता है और चूंकि ये लोग अपना धंधा खुले में तो कर नहीं सकते, ऐसे में इन्हें फंसाने का डर दिखा कर भी कुछ लोग इन से पैसे ऐंठ लेते हैं.. इसलिए ये लोग मुनाफ़ाखोरी के चक्कर में फिर जूस में मिलावट करना शुरू कर देते हैं...
लेकिन बात वही है कि अगर जूस वालों का शोषण हो रहा है तो वे कैसे पब्लिक की सेहत के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर सकते हैं! बीमार लोग अगर ऐसे जूस को पिएंगे तो वे और बीमार तो होंगे ही ..जब कि सेहतमंद लोग ही इसे पीकर बीमार हो जाते हैं .. इतने भयंकर कलर्ज़-़़कैमीकल्ज़ एक बार शरीर में गये तो ये लिवर और गुर्दे के सुपुर्द हो गए...अब ये इन अंगों में तबाही मचा के रख देते हैं....इन अंगों की कार्यप्रणाली को तो नुकसान पहुंचाते ही हैं, कैंसर जैसे रोगों का कारण भी बनते हैं...
एक मित्र ने इलाहाबाद की एक जगह का नाम लिखा ...कि वहां पर १० रूपये का मौसम्मी का जूस मिलता है लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे इतने में बेच लेते हैं...लेकिन मौसम्मियों में इस तरह के मीठे पानी आदि के टीके लगाने वाली बात से कुछ समझ में आया तो है ...लेकिन उन को यह संशय अभी भी है कि इतनी सारी मौसम्मियों को टीका लगाना भी तो बड़ा मुश्किल काम है! ......अखिलेश जी एक बैंकर हैं जिन्होंने यह लिखा है .. अखिलेश जी, यह कोई मुश्किल काम नहीं है...कौन सा डाक्टरी ताम-झाम के साथ टीके लगने हैं...जो पानी हाथ में आया, जो सूईं मिली....ठेल दिया टीका...आप ने पिछली पोस्ट की वीडियो में देखा ही यह सब कुछ कैसे हो रहा था।
वैसे मैं भी इस तरह के संशय से गुज़र चुका हूं...आज से २५-२६ साल पहले हम लोग जब बंबई रहने के लिए गये तो मैं देखा करता कि लोकल स्टेशनों के बाहर बड़े बडे़ टबों में संतरे का जूस ३-३, ५-५ रूपये में बिक रहा होता .. देखने में वह जूस ओरिजनल जूस जैसा ही दिखता ... लेकिन पिया कभी नहीं मैंने ...ग्राहकों को भ्रमित करने के लिए उन्होंने उसी टब पर रखी लकड़ी पर बीस तीस निचोड़े हुए संतरे भी रखे होते थे ... लेकिन जितना जूस उस टब में होता...वह एक संतरों से भरे हुए एक टैंपो का ही लगता!
बहरहाल, गड़बड़झाला तो है सब जगह ... यह आप के ऊपर है कि आप किसे चुन रहे हैं... हां, गन्ने के रस की बात हो रही थी कि वह ही सब से बढ़िया है....बेशक, बढ़िया तो है ...लेेकिन डाक्टर लोग जैसे ही गर्मी आती है, गन्ने का रस बिकने लगता है तो सचेत करने लग जाते हैं कि अब पीलिया के केस भी बहुत आने लगे हैं...बच के रहिए...
गन्ने का रस मुझे बेहद पसंद है ....जब गन्ने के रस के गिलास में उस रस के अलावा कुछ नहीं दिखता था, तब इस रस का खूब लुत्फ़ उठाया... तीन चार गिलास एक साथ पीना आम बात थी ... अदरक, नींबू, बर्फ़ डाल कर ... रस निकालने वाली मशीन में गन्ने के रस साथ उस के पतीले में जाने वाले मशीन के तेल को भी देख कर भी नज़रअंदाज़ कर देते थे ...कि छोड़ यार, सब पी रहे हैं ना, कुछ नहीं होगा..। बर्फ़ के बारे में सोचते थे ही नहीं....गन्नों की साफ़ सफ़ाई का कुछ पता नहीं था..
४० साल पहले की बात करें तो एक जगह से स्कूल से लौटते समय गन्ने का रस पीते थे .. जहां पर एक बैल को (कोल्हू वाले बैल की तरह) जूस निकालने के लिए गोलाकार में घुमाया जाता था .. दूर से दिखता था कि गन्ने के रस के साथ कितना मशीन का तेल उस बाल्टी में जा रहा है .....लेकिन वही बात है ... अनाडी़पन में सब कुछ चलता है..आगे पीछे कुछ नहीं दिखता..
१९८० में पीलिया हो गया, किसी डाक्टर से परामर्श नहीं, कोई टेस्ट नहीं, कोई उपचार नहीं ...बस, पड़ोसियों के कहने पर रोटी छुड़वा दी गई और रोज़ाना पांच सात गिलास गन्ने के रस के पीने को मिलने गये .....
फिर लोगों में जागरूकता आने लगी .. गर्मी के दिनों में गन्ने का रस बेचने पर प्रतिबंध लगने लगा ...सरकारी फरमान जारी होने लगे ... लोग खूब धूप बत्ती लगा के मक्खियो ंको दूर रखने लगे .. लेकिन मुझे बंबई में गन्ने का रस पीने में कभी भी झिझक नहीं होती ...वे लोग गन्ने को धोते हैं ...पोंछते , साफ़ करते हैं .. और ध्यान करते हैं कि मक्खियां आसपास बिल्कुल नहीं हों...अधिकतर बंबई में ऐसे ही बिकता है गन्ने का रस ... कुछ साल पहले मैंने हैदराबाद में भी इतनी साफ सफाई से ही गन्ने का रस तैयार होता और बिकता देखा...कईं जगहों पर तो गन्नों का छिलका भी पहले उतार लिया जाता है और इन को रखा भी सलीके से जाता है ...बहुत अच्छा लगता है यह सब देख कर ...
जैसे ही गर्मियां आती हैं और गन्ने का रस बिकता दिखता है तो मैं डाक्टरी के अधकचरे ज्ञान को बड़ा कोसता हूं...सच में यह अधकचरे से भी कम ही है ...बस इतना है कि इन छोटी छोटी खुशियों से दूर रखता है ... मुझे अपने स्कूल-कालेज के दिनों की तरह तीन चार गिलास गन्ने का रस पीने की तमन्ना तो बहुत होती है .....लेकिन मैं पी नहीं पाता .... डर लगता है जिन खराब हालात में यह सब काम हो रहा होता है ...
यह एक ऐसा मुद्दा है जिस में कोई किसी को सलाह नहीं दे सकता ...और जहां तक सलाह की बात है ..लोग गुटखे-पान मसाले को थूकने की सलाह तो मानते नहीं है, फिर गन्ने का रस पीना किसी के कहने पर भला क्यों छोड़ने लगे!
गन्ने के रस में कोई बुराई नहीं है ज़ाहिर सी बात है ... लेकिन मशीन की साफ़ सफ़ाई, बर्फ़ की क्वालिटी, आस पास की साफ़ सफ़ाई ... ये सब बातें देख कर आप को स्वयं ही यह निर्णय लेना होता है कि आप यहां से रस पिएंगे या नहीं, मैं तो ऐसा ही करता हूं ....किसी दुकान पर रूक कर बिना जूस पिए आगे बढ़ने से मैं झिझकता नहीं (चाहे मैं वैसे परले दर्जे का संकोची प्रवृत्ति का हूं) .....आखिर यह हमारी सेहत का मामला है !
फैसला आप के भी अपने हाथ में ही है ... कि गन्ने का रस पिएंगे और कहां से पिएंगे? लेकिन पता नहीं मुझे कैसे बैठे बैठे यह गीत ध्यान में आ गया ... हा हा ह हा हा हा हा ...आप भी सुनिए...गोरों की न कालों की, दुनिया है दिलदारों की ...
उस लेख पर एक कमैंट मुझे आया वाट्सएप पर जिस में मित्र ने लिखा कि ये फलों का जूस बेचने वाले भी कईं तरह के शोषण का शिकार होते हैं...इन्हें भी कुछ पुलिसवालों को मुफ़्त में जूस पिलाना पड़ता है और चूंकि ये लोग अपना धंधा खुले में तो कर नहीं सकते, ऐसे में इन्हें फंसाने का डर दिखा कर भी कुछ लोग इन से पैसे ऐंठ लेते हैं.. इसलिए ये लोग मुनाफ़ाखोरी के चक्कर में फिर जूस में मिलावट करना शुरू कर देते हैं...
लेकिन बात वही है कि अगर जूस वालों का शोषण हो रहा है तो वे कैसे पब्लिक की सेहत के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर सकते हैं! बीमार लोग अगर ऐसे जूस को पिएंगे तो वे और बीमार तो होंगे ही ..जब कि सेहतमंद लोग ही इसे पीकर बीमार हो जाते हैं .. इतने भयंकर कलर्ज़-़़कैमीकल्ज़ एक बार शरीर में गये तो ये लिवर और गुर्दे के सुपुर्द हो गए...अब ये इन अंगों में तबाही मचा के रख देते हैं....इन अंगों की कार्यप्रणाली को तो नुकसान पहुंचाते ही हैं, कैंसर जैसे रोगों का कारण भी बनते हैं...
एक मित्र ने इलाहाबाद की एक जगह का नाम लिखा ...कि वहां पर १० रूपये का मौसम्मी का जूस मिलता है लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे इतने में बेच लेते हैं...लेकिन मौसम्मियों में इस तरह के मीठे पानी आदि के टीके लगाने वाली बात से कुछ समझ में आया तो है ...लेकिन उन को यह संशय अभी भी है कि इतनी सारी मौसम्मियों को टीका लगाना भी तो बड़ा मुश्किल काम है! ......अखिलेश जी एक बैंकर हैं जिन्होंने यह लिखा है .. अखिलेश जी, यह कोई मुश्किल काम नहीं है...कौन सा डाक्टरी ताम-झाम के साथ टीके लगने हैं...जो पानी हाथ में आया, जो सूईं मिली....ठेल दिया टीका...आप ने पिछली पोस्ट की वीडियो में देखा ही यह सब कुछ कैसे हो रहा था।
वैसे मैं भी इस तरह के संशय से गुज़र चुका हूं...आज से २५-२६ साल पहले हम लोग जब बंबई रहने के लिए गये तो मैं देखा करता कि लोकल स्टेशनों के बाहर बड़े बडे़ टबों में संतरे का जूस ३-३, ५-५ रूपये में बिक रहा होता .. देखने में वह जूस ओरिजनल जूस जैसा ही दिखता ... लेकिन पिया कभी नहीं मैंने ...ग्राहकों को भ्रमित करने के लिए उन्होंने उसी टब पर रखी लकड़ी पर बीस तीस निचोड़े हुए संतरे भी रखे होते थे ... लेकिन जितना जूस उस टब में होता...वह एक संतरों से भरे हुए एक टैंपो का ही लगता!
बहरहाल, गड़बड़झाला तो है सब जगह ... यह आप के ऊपर है कि आप किसे चुन रहे हैं... हां, गन्ने के रस की बात हो रही थी कि वह ही सब से बढ़िया है....बेशक, बढ़िया तो है ...लेेकिन डाक्टर लोग जैसे ही गर्मी आती है, गन्ने का रस बिकने लगता है तो सचेत करने लग जाते हैं कि अब पीलिया के केस भी बहुत आने लगे हैं...बच के रहिए...
गन्ने का रस मुझे बेहद पसंद है ....जब गन्ने के रस के गिलास में उस रस के अलावा कुछ नहीं दिखता था, तब इस रस का खूब लुत्फ़ उठाया... तीन चार गिलास एक साथ पीना आम बात थी ... अदरक, नींबू, बर्फ़ डाल कर ... रस निकालने वाली मशीन में गन्ने के रस साथ उस के पतीले में जाने वाले मशीन के तेल को भी देख कर भी नज़रअंदाज़ कर देते थे ...कि छोड़ यार, सब पी रहे हैं ना, कुछ नहीं होगा..। बर्फ़ के बारे में सोचते थे ही नहीं....गन्नों की साफ़ सफ़ाई का कुछ पता नहीं था..
४० साल पहले की बात करें तो एक जगह से स्कूल से लौटते समय गन्ने का रस पीते थे .. जहां पर एक बैल को (कोल्हू वाले बैल की तरह) जूस निकालने के लिए गोलाकार में घुमाया जाता था .. दूर से दिखता था कि गन्ने के रस के साथ कितना मशीन का तेल उस बाल्टी में जा रहा है .....लेकिन वही बात है ... अनाडी़पन में सब कुछ चलता है..आगे पीछे कुछ नहीं दिखता..
१९८० में पीलिया हो गया, किसी डाक्टर से परामर्श नहीं, कोई टेस्ट नहीं, कोई उपचार नहीं ...बस, पड़ोसियों के कहने पर रोटी छुड़वा दी गई और रोज़ाना पांच सात गिलास गन्ने के रस के पीने को मिलने गये .....
फिर लोगों में जागरूकता आने लगी .. गर्मी के दिनों में गन्ने का रस बेचने पर प्रतिबंध लगने लगा ...सरकारी फरमान जारी होने लगे ... लोग खूब धूप बत्ती लगा के मक्खियो ंको दूर रखने लगे .. लेकिन मुझे बंबई में गन्ने का रस पीने में कभी भी झिझक नहीं होती ...वे लोग गन्ने को धोते हैं ...पोंछते , साफ़ करते हैं .. और ध्यान करते हैं कि मक्खियां आसपास बिल्कुल नहीं हों...अधिकतर बंबई में ऐसे ही बिकता है गन्ने का रस ... कुछ साल पहले मैंने हैदराबाद में भी इतनी साफ सफाई से ही गन्ने का रस तैयार होता और बिकता देखा...कईं जगहों पर तो गन्नों का छिलका भी पहले उतार लिया जाता है और इन को रखा भी सलीके से जाता है ...बहुत अच्छा लगता है यह सब देख कर ...
जैसे ही गर्मियां आती हैं और गन्ने का रस बिकता दिखता है तो मैं डाक्टरी के अधकचरे ज्ञान को बड़ा कोसता हूं...सच में यह अधकचरे से भी कम ही है ...बस इतना है कि इन छोटी छोटी खुशियों से दूर रखता है ... मुझे अपने स्कूल-कालेज के दिनों की तरह तीन चार गिलास गन्ने का रस पीने की तमन्ना तो बहुत होती है .....लेकिन मैं पी नहीं पाता .... डर लगता है जिन खराब हालात में यह सब काम हो रहा होता है ...
यह एक ऐसा मुद्दा है जिस में कोई किसी को सलाह नहीं दे सकता ...और जहां तक सलाह की बात है ..लोग गुटखे-पान मसाले को थूकने की सलाह तो मानते नहीं है, फिर गन्ने का रस पीना किसी के कहने पर भला क्यों छोड़ने लगे!
गन्ने के रस में कोई बुराई नहीं है ज़ाहिर सी बात है ... लेकिन मशीन की साफ़ सफ़ाई, बर्फ़ की क्वालिटी, आस पास की साफ़ सफ़ाई ... ये सब बातें देख कर आप को स्वयं ही यह निर्णय लेना होता है कि आप यहां से रस पिएंगे या नहीं, मैं तो ऐसा ही करता हूं ....किसी दुकान पर रूक कर बिना जूस पिए आगे बढ़ने से मैं झिझकता नहीं (चाहे मैं वैसे परले दर्जे का संकोची प्रवृत्ति का हूं) .....आखिर यह हमारी सेहत का मामला है !
फैसला आप के भी अपने हाथ में ही है ... कि गन्ने का रस पिएंगे और कहां से पिएंगे? लेकिन पता नहीं मुझे कैसे बैठे बैठे यह गीत ध्यान में आ गया ... हा हा ह हा हा हा हा ...आप भी सुनिए...गोरों की न कालों की, दुनिया है दिलदारों की ...