गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

फलों के रस का सच हम जानते तो हैं, लेकिन ...

मैंने १० साल पहले जब एक साथ अपने तीन चार ब्लॉग शुरु किये तो उन में से एक का नाम था ...हैल्थ टिप्स...

मुझे लिखने के लिए विषय ही ध्यान में नहीं आते थे...ऐसे ही एक दिन मैंने बाज़ार मेें बिकने वाले जूस पर कुछ लिखा था जिस का लिंक नीचे दिया है ...


पिछले कुछ वर्षों में भी लिखता रहा हूं कभी कभी इस विषय पर ...लेकिन कल एक मित्र ने फेसबुक पर एक वीडियो शेयर करी थी...यही जूस बनाने-पिलाने वाले गोरखधंधे के बारे में ..

इस में कुछ ऐसा देखा मौसंबी जूस के बारे में जिस की वजह से मुझे लगा कि यह तुरंत शेयर करने योग्य है ...

दरअसल बाकी सब बातों से मैं परिचित था ...लेकिन मौसंबी को भी इस तरह से टीके लगा कर भारी किया जाता है, यह शायद पहली बार मेरी नज़रों के सामने आया...

कल तक मैं बाज़ार में मिलने मौसंबी जूस को सब से ज़्यादा सेफ़ समझा करता था कि इसमें कोई मिलावट वाली हरकत नहीं होती होगी...लेकिन खुराफ़ाती लोग तो ठहरे नटवरलाल....

अब कोई यह तर्क दे कि बड़े बडे़ ठेकेदार करोड़ों रूपये के बिल्डिंगों के घोटाले कर जाते हैं...उन्हें कोई नहीं छूता... और ये छोटे मोटे व्यापारी ही सब लोगों को दिखते हैं....

ऐसा नहीं है, देर सवेर सभी घोटालेबाज काबू में आ ही जाते हैं...लेकिन छोटे धंधे के बहाने ऐसा नहीं है कि इन को छोड़ दिया जाए....कोई बीमार है, कितनी उम्मीद के साथ वह जूस पीता है कि वह अब ठीक हो जाएगा.....लेकिन ठीक क्या खाक होगा, ऐसा जूस पीने से वह....

मैं भी बाज़ार में केवल मौसंबी का जूस ही पीता हूं ..लेकिन अब यह वीडियो देखने के बाद तो यह भी नहीं पिया जायेगा...

हमेशा से ही यह प्रश्न तो रहा ही है कि ये जूस वाले ऊंची जगह में ग्राहकों की नज़रों से बच कर ही क्यों जूस बनाते हैं...पुराने दिनों में सब को लगता था कि थोड़े खराब फल भी ठेल देते होंगे, लेेकिन फिर भी लोग चुप थे....और यह भी लगता था कि पानी या बर्फ़ खूब मिला देते होंगे, यह भी सच तो था ही लेकिन कोई चारा था भी तो नहीं ...अगर जूस पीने गये ही हैं...

आपने भी नोटिस किया होगा कि फलों का रस बेचने वाला आपके सामने कुछ नहीं करता...

वैसे भी जूस की बजाए आप फल ही खा सकें तो और भी अच्छा... तीन चार संतरे खा लेंगे, दो तीन कीनू खा लेंगे तो हो गया ना जूस, और जो फाईबर वाला तत्व है वह भी आप तक पहुंच गया....लेकिन हां, कईं बार शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के लिए, बड़े बुज़ुर्गों के लिए जो अधिक चबा नहीं पाते ... थक जाते हैं....या छोटे बच्चे हैं, इन सब के लिए जूस हो सके तो घर पर ही तैयार करिए...

एक बात ....अगर आप को लगता है कि आप जहां से जूस पीते हैं वह बंदा यह सब नहीं करता तो भी यह एक खुशफहमी हो सकती है, मुझे तो यही लगता है ... कहां तक धक्के खा खाकर यह पता करने की कोशिश करते रहेंगे कि कौन असली है, कौन मिलावटी, कैसे ढूंढ पाएंगे...
असली नकली चेहरा तो फिर भी पता करना आसान है, लेकिन इन मिलावटी चीज़ों का पता लगाना एक दम मुश्किल ...

मुझे अभी ध्यान आया कि बाकी फलों के रस तो अकसर लोग घर में निकाल ही लेते हैं...लेकिन मौसंबी से जूस निकालने को ही बड़ी सिरदर्दी समझा जाता है ...मैंने सोचा कि आप को मौसंबी जूस निकालने वाली मशीन के इस्तेमाल का तरीका ही बता दिया जाए...बहुत सारे बंधु तो जानते होंगे, कुछ के लिेए नया होगा....




सब कुछ तो दिख ही रहा है इस मशीन के इस्तेमाल के बारे में, अब मैं किस चित्र को लेबल करूं!

हां, एक बात जाते जाते जोड़ना चाहता हूं कि आज कल डिब्बेबंद फलों के रस का चलन बहुत होने लगा है ...मैंने शायद १० साल पहले भी इन सब के बारे में कुछ लिखा था...लिंक नीचे दिया है ...


लिंक तो लगा दिये हैं मैंने अपने १० साल पुराने लेखों के ..लेकिन मुझे सच में पता नहीं कि मैंने इतने साल पहले इन में क्या लिखा था, लेकिन मैं इन लेखों को बाद में कभी पढ़ता नहीं हूं....क्योंकि मुझे फिर से याद आ जाता है कि मैं कितना बकवास लिखता हूं ......इसलिए मैं इन से हमेशा बचता हूं, जैसे हलवाई अपनी दुकान की मिठाईयों से बचता फिरता है..उसे उन मिठाईयों के अंदर की खबर होती है .....इसलिए मैं भी इस खुशफ़हमी में ही जीना चाहता हूं कि मैं रद्दी नहीं लिखता...

मैं सोच रहा था कि यह मशीन देखने में थोड़ी हार्ड-कोर दिख रही है लेकिन इस्तेमाल करने में बहुत आसान है ...

अचानक  पंजाबी सिंगर Hard Kaur का ध्यान आ गया है, इसलिए यह गीत लगा रहा हूं..

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

मैं हवा हूं, कहां वतन मेरा ...

कल दोपहर के समय मैं अपनी बिल्डिंग की पार्किंग से निकल रहा था तो मेरी नज़र अचानक इस फूल पर पड़ी....मैं देख कर दंग रह गया..पता नहीं इतना खूबसूरत फूल पहले कब देखा था, याद नहीं!

यह फूल लहरा रहा था उस लू में भी ...फुल मस्ती में...मुझे पौधे का भी नाम भी नहीं पता और ज़रुरत भी क्या है!...मुझे इस की बिल्कुल पतली सी टहनी को आराम से थामना पड़ा इस का यह फोटो खींचने के लिए...

हर बार जब भी इस तरह के फूल देखता हूं कि विचार ज़रूर आता है कि इसे तोड़ लेता हूं....लेकिन तोड़ता कभी नहीं, इस उम्मीद के साथ कि इस शाख पर लगे हुए पता नहीं ये कितनी उथल-पुथल हो चुकी रुहों को दुरुस्त करेंगे! कितने लोग इन्हें देखने भर ही राजी हो जाएंगे, मेरी तरह!

मैं ऐसा सोचता हूं कि आदमी अपने आप को जितना भी तुर्रमखां समझता हो, खुदा से बस थोड़ा ही कम समझता हो, लेकिन जब कभी इस तरह के बेनज़ीर कुदरती करिश्मे से रू-ब-रू होने का मौका मिलता है तो उसी पल ज़मीन पर लौट आता है ...

आगे चलें...

अभी अखबार उठाई तो हर तरफ़ ज्ञान बांटने की बातें...हंसी भी आई...सुबह आंख खुलने से रात नींद आने पर कमबख्त इतना ज्ञान बंट रहा है फोकट में कि उलझन होने लगती है कि यार, इतने ज्ञान का करेंगे क्या... इस का एक प्रतिशत भी इस्तेमाल तो हम करते नहीं, हो पाता नहीं या हो पायेगा नहीं, ये अलग बातें हैं!

मुझे ऐसे लगता है कि कुछ बातें हमारे मन में अब ठूंस दी गई हैं...मेरे पास अपने स्कूल के ज़माने के ४० साल पुराने एक दो स्कूल के मैगज़ीन हैं...कभी कभी देख लेता हूं और दोस्तों के साथ फोटो शेयर भी कर लेता हूं... मैंने कल ध्यान दिया ...४० साल तक कभी नहीं दिया...कि स्कूल के हाल में हवन हो रहा है और हमारे दो तीन टीचर जो सरदार जी थे, वे भी पूरी श्रद्धा के साथ आहूति दे रहे हैं...मैं अभी भी अपने आप से यही पूछ रहा हूं कि यह विचार मेरे मन में आज ४० साल बाद आया तो आया कैसे! ....शायद इसलिए ही आया कि अब हमें अपने धर्म को अपनी बाजू पर ओढ़ने की बातें होने लगी हैं ...हर बात में तर्क-वितर्क के बहाने ढूंढने की बात हो गई है ... योग करने को भी हम किसी धर्म के साथ जोड़ने की हिमाकत करने लगे हैं...और भी बहुत कुछ हो रहा है ..बस आंखे खुली रखिए और देखते रहिए ..लेकिन कभी भी इस भीड़ का हिस्सा न बनिए......बस अब आप से ही उम्मीद बची हुई है कि सब से बढ़िया आपसी सौहार्द का प्रतीक आप लोग ही हैं और आप ही रहेंगे, इतिहास गवाह है!

शायर लोग कभी कभी गीत नहीं लिखते, वे हमें हमारे दिलों को टटोलने के टोटके लिख जाते हैं या ईश्वर इन के घट में बस कर ऐसे रचनाओं का सृजन करवा देता है ......जैसे वह रिफ्यूज़ी फिल्म का वह गाना .....पंछी ..नदिया.. पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके....सरहद इंसानों के लिए है, सोचो...तुमने और मैंने क्या पाया इंसा हो के!

मुझे आज सुबह सुबह कुछ दिन पहले की एक दोपहर याद आ रही थी ...मैं दोपहर में सोया हुआ था...मेरा रेडियो अकसर मेरे सोने पर भी बजता ही रहता है ...इसे अडिक्शन कहते होंगे ...लेकिन जैसे ही मैं उठा तो उस्ताद अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन का इंटरव्यू चल रहा था, मुझे तो इन का नाम भी नहीं पता था, लेकिन इन की यह गज़ल मेरे मन में उतर गई....बेहतरीन! ..यू-ट्यूब पर इन के वीडियो की आवाज़ बहुत कम थी ...इसलिए किसी दूसरे कलाकार की वीडियो लगा रहा हूं..


सभी बातें कितनी सही कही गई हैं! 

रेडियो की वजह से मुझे इन महान शख्शियतों के बारे में पता चला ... पसंद अपनी अपनी होती है, मुझे रेडियो सुनना टीवी देखने से कहीं ज़्यादा सुकून देता है ...टीवी में अगर हम उन उछल कूद कर खबरें पढ़ने, दिखाने और सनसनी पैदा करने वाले कुछ कलाकारों की ताल के साथ ताल नहीं मिला पाते तो मेरा तो झट से सिर भारी हो जाता है ...इसलिेए मैं तो अकसर बचता हूं ..और नहीं तो पुरानी फिल्मी गीत वाला चैनल ही लगा रहने देता हूं... 

लेकिन टीवी देखने का भी एक सुनहरा दौर था ...अभी हम लोग सीरियल का ध्यान आया तो यू-ट्यूब पर ये बातें सुन लीं कि ये लोग कैसे तपस्या किया करते थे...तपस्या के बिना कुछ भी संभव नहीं है ...देखने में लग सकता है कोई जुगाड़बाजी कर के ऊपर पहुंच गया ....लेकिन स्थिरता बिना तपस्या के नहीं आ सकती! ... आप भी इस वीडियो को ज़रूर देखिए... 


तब यह भी नहीं था कि यह सीरियल पाकिस्तानी है, यह हिंदोस्तानी है....पाकिस्तान के बार्डर के साथ लगते पंजाब के ज़िलों में पाकिस्तान टीवी के बेहतरीन प्रोग्राम भी हम रोज़ देखा करते थे....एक तरह से समझ लीजिए....५० प्रतिशत समय तो वहां के बेहतरीन टीवी सीरियल देखते हुए बीत जाया करता था...गुरूवार को रात में एक दो तीन घंटे का पाकिस्तानी नाटक भी देखा करते थे ....अभी ध्यान आ रहा है ..पाकिस्तानी सीरियल का ...सोना चांदी का ...इन ड्रामों का एक एक किरदार याद है ...आज भी तीस साल बाद ... पता नहीं, आज कल ये प्रोग्राम आते हैं कि नहीं, मैंने पूछा नहीं किसी दोस्त से भी, शायर अब इन सूक्ष्म तरंगों पर भी प्रतिबंध लग चुका है ...


इन सब कलाकारों का भी कैनवेस बहुत बड़ा होता है...कोई भी इन्हें सरहदों में कैसे बांट सकता है....मैं हवा हूं, कहां वतन मेरा! .....अब इंटरनेट लोगों के पास है ..कुछ भी देख-सुन सकते हैं जैसे मैं सैंकड़ों बार राहत अली खां के इस गीत को सुन चुका हूं...


Universal brotherhood विश्व-बंधुत्व के अलावा कोई रास्ता है ही नहीं और हो भी नहीं सकता ... इसे समझ ले सारी दुनिया और इस रास्ते पर ही चलते जाएं....

देखिए, मैं भी ज्ञान की भारी भरकम बातें करने लग गया.....अब समय है इस पोस्ट को बंद करने का ... खुश रहिए, मस्त रहिए, सुबह सुबह ऐसा रूहानी गीत-संगीत सुनते रहिए...फूल-पत्ते, पंक्षी देखते, निहारते रहिए......सुप्रभात...आप का आज कल से बेहतर हो!

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

आज फिर दिखा सेहतमंद नाश्ता....

अभी मैं टहलने गया हुआ था.. जहां पर जाते हैं वहां एक बाबा जी का सत्संग चल रहा था ..

सुबह का समय है, बहुत से लोग बाहर से अपना नाश्ता ले कर अंदर आ रहे थे....

मुझे पता है ऐसे मौकों पर नाश्ते का ध्यान आते ही पूड़ी-छोले, भटूरे छोले, जलेबी, समोसे, कचौड़ी का ध्यान आता है ...लेकिन प्रशंसा करनी पड़ेगी कि मैंने यह कहीं भी आसपास बिकता नहीं देखा...

बहुत से लोग बाहर से भुने हुए चने और पेठा लेकर आ रहे थे, लिफ़ाफों में ...अच्छा लगा मुझे यह देख कर ..

मैंने बाहर आ कर भी देखा ...इन सब चीज़ों की ही रेहड़ीयां लगी हुई थीं...भुने चने, केले, पेठा, लईया (चिवड़ा, फुलियां), खीरे-ककड़ी ...


कईं बार ऐसा लगता है कि हम लोग पैसे से अपनी आफ़त ही खरीदते हैं...जितने विकल्प किसी के पास कम होते हैं, मैंने देखा है वे उतना ही पौष्टिक नाश्ता कर लेते हैं...पर्यावरण के साथ साथ जेब, सेहत और साफ़-सफ़ाई के लिए भी उत्तम।

आप सफ़र के दौरान भी देखते होंगे कि बहुत से लोग अपना खाना साथ ही लेकर चलते हैं...वे लंबे समय पर चलने वाला खाना बनाने और रखने के सभी जुगाड़ अच्छे से जानते-समझते हैं... लईया-चना, चिवड़ा, सत्तू ....इतने सारे बेहतर विकल्प इन के पास उपलब्ध रहते हैं..

और मेरे जैसे वे लोग जो यह समझते हैं कि पैसा खर्च कर कुछ भी खरीद लेंगे, बेवकूफ़ी ही तो है ...जब भी मैंने सफर में ये पूड़ी-छोले, भटूरे छोले खाए, पकौड़े खरीदे, मेरी तबीयत तब तब खराब ही हुई...मैं अधमोया जैसा हो गया....और जैसे तैसे अपने गनतव्य पर पहुंच कर दवाईयां खाकर उस बिगड़ी तबीयत को दुरुस्त करने में लगा रहा..

अकसर हम लोग जो बाहर खाते हैं हमें पता ही नहीं होता किस तरह के बेसन है, कैसा तेल, कैसा दूध ....हां, सब जांच वांच होती रहती हैं, यह हमें अच्छे से ज्ञान है .. लेकिन अगर आप उन जांचों के भरोसे ही रहना चाहें...

ज्ञान नहीं बांट रहा हूं...बस इतना कह कर बात को विराम दूंगा कि बाहर से खरीदे जाने वाले खाने की तरफ़ सजग रहना होगा.. ऐसे ही तो वह कहावत नहीं बन गई...हमारी सेहत हमारे हाथ में!


दरअसल मुझे कहने में कोई हिचक नहीं है कि जिन लोगों के पास धन ज़्यादा है, उन के पास चोंचलेबाजी भी ज़्यादा हैं...ध्यान आ रहा है कुछ दिन पहले बंबई में एक जगह पर कोई रोटी जैसी चीज़ खा रहा था ...(मुझे उस का नाम नहीं पता)...रोटी जैसी ही थी दिखने में तो ...उस के ऊपर गुड़ की शक्कर का लेप लगा हुआ था....बिल्कुल थोड़ा, लेकिन उस का दाम १५० रूपये के करीब था..बताया गया मुझे कि यह रोटी अलग अलग तरह के अनाज को मिला कर तैयार की जाती है .. शाबाश! ..न तो मेरी भूख मिटी न ही प्यास...


अभी ध्यान आ रहा है अमृतसर के नाश्ते का ..हम लोग भी पहले यही सब कुछ रोज़ ही खाया करते थे....


कभी कभी खाने के लिए तो ठीक है यह सब कुछ..

मैं तो बहुत बार मज़ाक में कहता हूं कि अमृतसर के लोग तो भई खाते-पीते ऐसे हैं जैसे कि वे रब की जंज पर आये हुए हों...(रब की शादी पर बाराती बन कर आए हुए हों)...पंजाब में ऐसा खाना ही पसंद किया जाता है .. इसलिए यह फिक्र करने वाली बात है!