मुझे रोज़ाना अपनी ओपीडी में बैठे बैठे यह प्रश्न बहुत परेशान करता है.......कि आखिर लोग बच्चों के दांतों को इतना लाइटली क्यों लेते हैं। वास्तविकता यह है कि ये दूध के दांत भी कम से कम पक्के दांतों के जितना ही महत्व तो रखते ही हैं....शायद उन से भी ज़्यादा, क्योंकि यह बिल्कुल ठीक कहा जाता है कि ये दूध के दांत तो पक्के दांतों की नींव हैं।
लेकिन मां-बाप यही समझ लेते हैं कि इन दूध के दांतों का क्या है, इन्होंने तो गिरना ही है और पक्के दांतों ने तो आना ही है। इसलिये बच्चों को डैंटिस्ट के पास ले जाने का काहे का झंझट लेना। लेकिन यह बहुत बड़ी गलतफहमी है।
और यह धारणा बच्चे के बिल्कुल छोटे होते ही शुरू हो जाती है। बच्चे के मुंह में दूध की बोतल लगी रहती है और वह सो जाता है जिस की वजह से उस के बहुत से दांतों में कीड़ा लग जाता है......( क्या यह वास्तव में कोई कीड़ा ही होता है , इस की चर्चा किसी दूसरी पोस्ट में करूंगा।) लेकिन फिर भी मां-बाप डैंटिस्ट के पास जाने से बचते रहते हैं।
जब बच्चों के दांत इतने ज़्यादा सड-गल जाते हैं कि वह दर्द की वजह से रात-रात भर मां-बाप को जागरण करने पर मजबूर करता है तो मां-बाप को मजबूरी में डैंटिस्ट के पास जाना ही पड़ता है। लेकिन अकसर बहुत से केसों में मैं रोज़ाना देखता हूं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.....दांत के नीचे फोड़ा( एबसैस) सा बना होता है......और बहुत बार तो इन दूध के दांतों को निकालना ही पड़ता है। अब शायद कईं लोग यह समझ रहे होंगे कि दूध के दांत ही तो हैं....इन्हें तो वैसे भी निकलना ही था....अब अगर डैंटिस्ट को इन्हें निकालना ही पड़ा तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा।
इस का जवाब देने की कोशिश कर रहा हूं ....ठीक है दूध के दांत गिरने हैं....लेकिन मुंह में मौजूद दूध के बीस दांतों के गिरने का अपना एक निश्चित समय है। वह समय कौन सा है ?........वह समय वह है जब उस के नीचे बन रहा पक्का दांत इतना तैयार हो जाता है कि उस के ऊपर आने के प्रैशर से दूध के दांत की जड़ धीरे धीरे घुलनी ( resorption of deciduous teeth) शुरू हो जाती है कि वह दूध का दांत धीरे धीरे इतना हिलना शुरू हो जाता है कि आम तौर पर बच्चा स्वयं ही उसे हिला हिला कर निकाल देता है.....( और हमारी और आप की तरह किसी मिट्टी वगैरा में फैंकने का टोटका कर लेता है !!!)...
यह तो हुया दूध के दांत के दांत का नार्मल गिरना......क्योंकि इस के गिरते ही कुछ दिनों में नीचे से आ रहा पर्मानैंट दांत इस की जगह ले लेता है और सब कुछ नार्मल हो जाता है। यह संतुलन कुदरत ने बेहद नाज़ुक सा बनाया हुया है....लेकिन यह संतुलन बिगड़ता है तब जब हमें बच्चों के दूध के दांतों को उन के नार्मल गिरने के समय से पहले ही निकलवाना पड़ जाता है...जैसा कि आज कल खूब हो रहा है क्योंकि बच्चे किसी के भी कहने में हैं नहीं....एक-एक, दो-दो हैं...इसलिये इन की पूरी दादागिरी है जनाब.......मॉम-डैड को टाइम है नहीं , बस जंक-फूड से, महंगी महंगी आइस-क्रीम से , विदेशी चाकलेटों के माध्यम से ही इन के सामान्य स्वास्थ्य के साथ साथ दांतों की सेहत का भी मलिया मेट किया जा रहा है। और फिर डैंटिस्टों के क्लीनिकों के चक्कर पे चक्कर................।
पच्चीस साल डैंटल प्रैक्टिस करते करते यही निष्कर्ष निकाला है इलाज से परहेज भला कहावत दंत-चिकित्सा विज्ञान में बहुत ही अच्छी तरह फिट होती है। क्योंकि ट्रीटमैंट माडल तो बाहर के अमीर मुल्क ही नहीं निभा पाये तो हम लोगों की क्या बिसात है । सरकारी हस्पतालों के डैंटिस्टों के पास वर्क-लोड इतना ज़्यादा है कि क्या कहूं.......सारा दिन अपने काम में गड़े रहने के बावजूद भी ......डैंटिस्ट के मन को ही पता है कि वह मरीज़ों के इलाज के पैरामीटर पर कहां स्टैंड कर रहा है। इस का जवाब केवल उस सरकारी डैंटिस्ट की अंतर-आत्मा ही दे सकती है। दूसरी तरफ देखिये तो प्राइवेट डैंटिस्ट का खर्च आम आदमी नहीं उठा सकता ....प्रोफैशन में पूरे पच्चीस साल पिलने के बाद अगर ऐसी स्टेटमैंट दे रहा हूं तो यह पूरी तरह ठोस ही है........प्राइवेट डैंटिस्ट के पास जाना आम आदमी के बस की बात है नहीं.......एक तरह से देखा जाये तो वह भी क्या करे......उस ने भी इतने साल बिताये हैं पढ़ाई में, डैंटल चिकिस्ता के लिये इस्तेमाल होने वाली दवाईयां इतना महंगी हो गई हैं, प्राइवेट क्लीनिकों के खर्च इतने हो गये हैं, ए.सी -वे.सी के बिना अब बहुत मुश्किल होती है..................इतने ज़्यादा फैक्टर्ज़ हैं कि क्या क्या लिखूं। कहना बस इतना ही चाह रहा हूं कि डैंटल ट्रीटमैंट महंगी है और इस के बहुत से कारण हैं।
अच्छा तो मैं बात कर रहा था बच्चों के दूध के दांत समय से पहले जब निकलवाने पड़ जाते हैं तो अकसर गड़बड़ होने के चांस बहुत बढ़ जाते हैं ....क्यों ? ....वह इसलिये कि इन दूध के दांतों ने एक तरह से पक्के दांतों की जगह घेर कर रखी होती है और जब ये ही समय से पहले निकल जाते हैं तो कईं बार इन पक्के दांतों को अपनी निश्चित जगह पर जगह न मिलने के कारण कहीं इधर-उधर निकलना पड़ता है...और कईं बार तो ये जगह के अभाव के कारण मुंह में निकल ही नहीं पाते और जबड़े की हड्डी में ही दबे रह जाते हैं। और बहुत बहुत टेढ़े-मेढ़े होने की वजह से फिर इन के ऊपर तारें /ब्रेसेज़ लगवाने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं जिन में काफी पैसा भी खर्च होता है और समय भी बहुत लगता है।
तो, सलाह यही है कि छोटे बच्चों को एक साल की उम्र में डैंटिस्ट के पास पहली बार ले कर जाना बेहद लाजमी है। उस के बाद हर छःमहीने बाद हरेक बच्चे का डैंटिस्ट के द्वारा देखा जाना बहुत बहुत ज़रूरी है क्योंकि हम सब ने बहुत अच्छी तरह से पढ़ रखा है ना कि a stitch in time saves nine......तो फिर यहां भी यह बात बिल्कुल फिट बैठती है।
इसी तरह की बच्चों के दांतों की बातें मैं अपनी कुछ अगली पोस्टों में करूंगा और साथ में एक्स-रे के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट करता रहूंगा। तो, दांतों और मसूड़ों के परफैक्ट स्वास्थय का सुपरहिट फार्मूला तो यहां लिख ही दूं........रोज़ाना दो-बार ब्रुश करें.....रात को सोन से पहले ब्रुश करना सुबह वाले ब्रुश से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है और इस के साथ ही साथ सुबह सवेरे रोज़ाना जुबान साफ करने वाली पत्ती ( टंग-क्लीनर ) से जीभ रोज़ साफ करनी भी निहायत ज़रूरी है।
बाकी बातें फिर करते हैं, आज पहली बात अपनी पोस्ट आन-लाइन लिख रहा हूं, इसलिये डर भी रहा हूं कि कहीं कोई गलत कुंजी न दब जाये और यह गायब ही ना जाये.......ऐसा एक-दो बार पहले हो चुका है। इसलिये अब मैं तुरंत पब्लिश का बटन दबाने में ही बेहतरी समझ रहा हूं।