शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

डिप्रेशन ..आओ खुल कर बात करें..

आज विश्व स्वास्थय दिवस है ...जिस का इस बार का थीम भी यही है ..डिप्रेशन...आओ खुल कर बात करें..

लेेकिन आज मेरी तो बिल्कुल भी इच्छा नहीं है कि मैं वही घिसी पिटी बातें लिख कर आप को पका दूं...डिप्रेशन के बारे में जितनी भी काम की बातें हैं आप रेडियो, टीवी अखबार में और नेट पर देख-पढ़ लेते हैं, मुझे पता है आप सब नेट-सेवी हैं ...मैं तो बस आप से ऐसे बतियाना चाहता हूं जैसे हम लोग चौपाल पर बैठ कर हंसी-ठट्ठा कर रहे हों...ठीक है?

मुझे कभी भी निबंध की तरह अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिखना अच्छा लगता ही नहीं...कि डिप्रेशन बीमारी है क्या, इस के लक्षण क्या हैं, बचें कैसे और इलाज कैसे और कब करवाएं?....यह मेरा विषय है ही नहीं, क्योंकि मैं कोई विद्वान मनोचिकित्सक हूं ही नहीं....इसलिए बिल्कुल मन की बातें ही कहना चाहूंगा...

पढ़ाई लिखाई पूरी होने के बाद यह शायद १९९४ के आस पास की बात है कि मेरी भी तबीयत कुछ चिंता करने वाली हो चली थी..खामखां बातों की चिंता ..काल्पनिक बातों की चिंता ...बंबई में रहते थे ...मेरे साथ किसी ने ऐसे ही ज़िक्र किया कि एक योग विद्या का प्रोग्राम चलता है ...सिद्ध समाधि योग ... संयोगवश वह उसी दिन शुरू होने वाला था ..कांदिवली में ...मैं शाम को पहुंच गया ...पहले दिन इंट्रो ही होती है ..एक पेंफलेट मिला ...उसे पढ़ा तो तो उसमें एक बात लिखी थी जिस पढ़ कर मैंने उसी समय निश्चय किया कि यह तो अवश्य करूंगा ...उस में लिखा था कि किस तरह से हर कोई तनावग्रस्त है ...और तो और डाक्टर लोग मरीज़ को तो कहते हैं कि आप तनाव मत करिए लेकिन स्वयं वे भी तनाव से ग्रस्त हैं...

मैं अब सोचता हूं कि जो डाक्टर स्वयं सिगरेट पीता हो या पानमसाला चबाता हो, वह कैसे सख्ती से अपने मरीज़ को यह सब छोड़ने के लिए कह सकता है!

बस यह बात तनाव वाली बात मेरे दिल को छू गई ...और मैंने वह कोर्स किया ...उस के बाद मैं नियमित प्राणायाम् करता ...ध्यान भी हो जाता अपने अाप ही ....खाना-पीना भी उस शिक्षा के अनुसार ही चलता रहा ..बहुत समय तक मैं जुड़ा भी रहा ...एक फर्स्ट हैंड अनुभव जो योग का बेहद उम्दा रहा ...

अब मैं आलस की वजह से प्राणायाम् नहीं करता, ध्यान भी नहीं होता ....बस टहलना हो जाता है...वह भी कईं कईं हफ्तों के अंतराल के बाद...साईक्लिंग करने की सोचता रोज़ हूं. लेकिन कभी कभी ही जाता हूं...(धूप हो गई है, साईकिल में हवा नहीं है, ट्रैफिक बहुत है ...इन बहानों के चलते ...) ब्लड-प्रेशर की एक गोली खाता हूं..वह भी महीने में बीस दिन भूल जाता हूं....तो, यह तो हुई मेरी अापबीती ...बस, खाना पीना ठीक ले लेते हैं....कोई मांस-मझली नहीं, दारू-तंबाकू नहीं कभी भी ..

एक बात याद आ गई ...लगभग दस साल पहले की बात है .... एक मनोरोग चिकित्सक ने नया नया क्लीनिक खोला था ...उस का इश्तिहार आया पेपर में ..पढ़ा.....उस ने बड़े सनसनीखेज तरीके से उस लिखवाया था....

हर दस लोगों में से चार मनोरोगी...इन में से कहीं आप भी तो नहीं! .....और उस के आगे उसने दस बीस लक्षण लिख दिए....वे लक्षण ऐसे थे कि दस में से चार तो क्या, दस में से दस लोगों में वे दो चार मिल जाएं...

उस मनोरोग चिकित्सक की विद्वता को मैें सेल्यूट करता हूं ..और मनोरोगियों को बिना विलंब इन से संपर्क भी करना ही चाहिए...और कईं बार दवाईयां लेना ज़रूरी भी होता है....वे इस तरह के रोगों के एक्सपर्ट होते हैं, उन्हें तो अंदर तक की खबर होती है ...

और हम ठहरे बक बक करने से अपने आप को रोक न सकने वाले.....

वैसे मुझे आप बताइए कि आपने अपने आस पास कितने लोगों को डिप्रेशन के लिए किसी मनोरोगचिकित्सक से नियमित परामर्श अथवा दवाई लेते देखा है....

बहुत कम, आप को भी यही लगता है ना!

मैं एक बिल्कुल लेमैन की तरह से लिख रहा हूं ... लेकिन कोई बात नहीं ...ब्लॉग है, यह आज़ादी तो है ही .... मैंने तो जितने लोगों को भी डिप्रेशन की दवाईयां लेते देखा है ...ये बहुत ज़्यादा पढ़े लिखे दिखे ....और एक बात कहते हैं हमेशा कि दवाई लेते हैं तो सारा दिन नींद घेरे रहती है और न लेते तो सारा दिन खाते ही रहते हैं...

हां, तो मेरा यह सब लिखने का आशय यही है कि मनोरोग चिकित्सक से अवश्य मिलें, बात करें, उन की सलाह भी मानें, अगर दवाई के लिए कहें तो वह भी आप को लेनी ही होगी, आप के पास कोई चारा भी तो नहीं ...

लेकिन इतना सब कुछ लिखने के बाद मैं यह भी लिखना चाहता हूं कि डिप्रेशन है, उदासी है ...तो पहले कुछ फ्री में मिलने वाले नुस्खे भी तो आजमा लिए जाएं...समस्या हमारी अब यह हो गई है कि हम होलिस्ट्क मैडिसन प्रैक्टिस नहीं कर पा रहे ...हर विशेषज्ञ अपने अपने हिस्से की बीमारी ढूंढने में पारंगत होता जा रहा है...trying perhaps up to molecular level! कोई बुराई भी नहीं है ....

लेकिन मुझे लगता है मन की उलझनें मन से ही सुलट सकती हैं....चलिए, मैं भी कुछ ऐसे ही उलट-सुलट विचार यहां लिख लूं...जो मुझे लगता है कि किसी को भी अवसाद से ऊपर उठा सकते हैं, और बचा भी सकते हैं... इन में से मैं बहुत से स्वयं भी नहीं करता हूं... I am in noway holier than you! ...लेकिन इन सब उपायों की सार्थकता को अनुभव अवश्य कर चुका हूं...

 आज सुबह मैं टहलने गया क्योंकि मुझे यह पोस्ट लिखनी थी ... 
सुबह जल्दी उठें, योग-प्राणायाम् करिए,  टहलने निकल पड़िए, शारीरिक परिश्रम करें... साईक्लिंग करें, कुछ खेलें....अपनी क्षमता के अनुसार ...अगर दौड़ नहीं सकते, तो टहलिए, जितना भी चल सकते हैं, चलिए, फिर आराम कीजिए....मेरे कुछ मरीज़ कहते हैं कि हम ज़्यादा चल ही नहीं सकते, मैं उन्हें कहता हूं पड़ोस के किसी पार्क में एक घंटा चले जाइए, सुबह की सूर्य की रोशनी में स्नान कीजिए, कहीं कोई गपशप हो जाए तो ठीक, वरना और भी ठीक, पेड़ पौधों की भव्यता से ऊर्जा मिलेगी आप को निःसंदेह ....चहचहाते पंक्षी आप की ज़िंदगी में भी चहक ले आएंगे ....शर्तिया ...आप तरोताज़ा वापिस लौटेंगे ... आप सुबह मैं भी टहल कर आया हूं... अच्छा लग रहा है, इसीलिए इतना सब कुछ लिख पा रहा हूं..


एक तो बात से बात निकल पड़ती है तो मुझे वह भी लिखनी पड़ती है ...कल एक पर्यावरण से संबंधित समारोह में था, वहां पर एक बहुत बड़े आदमी के घर की तारीफ़ के पुल बांधे जा रहे थे ..होता ही है यह सब कुछ ..करना भी पड़ता है ...हां, इन के घर में सौ तरह के तो पौधे हैं, चंदन का पेड़ भी है और १०० तरह के पंक्षी भी हैं.... उस समय तो मुझे कुछ ज़्यादा समझ में आया नहीं, लेकिन बात में ध्यान आया कि ये सभी पंक्षियों की प्रजातियां उस के यहां पिंजड़ों में कैद होंगी ......यह कोई बड़प्पन की बात नहीं, हमें तो तोते को भी पिंजड़े में रखना बहुत बुरी बात लगती है और १०० तरह की पक्षियों की प्रजातियां पिंजरों में .....पक्षी और फूल टहनियों पर भी मन को लुभाते हैं ...सब को खुशीयां देते हैं , किसी उदास के मन को खिलखिला देते हैं मुफ्त में ...गुलदस्ते और बुके वाले फूल पता नहीं क्यों असली होते हुए भी कितने बनावटी लगते हैं ....


 खाने पीने का ध्यान रखना चाहिए...विशेषकर बढती उम्र के साथ नमक, चीनी और फैट्स और जंक फूड का ध्यान रखें.. तंबाकू, शराब , ड्रग्स से बच कर रहें.... 

जहां तक हो सके खुशमिजाजी कायम रखें...इस से बड़ा कोई स्ट्रैसबस्टर है नहीं असल में ...स्कूल के दोस्तों के वाट्सएप ग्रुप पर इतने बढ़िया बढ़िया जोक्स आते हैं कि कल पता नहीं मैं कितने समय बाद इन चुटकुलों को पढ़ कर अकेला बैठा हुआ भी ठहाके लगा रहा था ....खुलापन बहुत ज़रुरी है ...इस से भी आदमी हल्का बना रहता है ....तने हुए रहने से तनाव ही बढ़ता है ... मैंने ऐसा अनुभव किया है ...मन को तने रहने से तो बढ़ता ही है, मेरे जैसे का तो टाई लगाने से ही बढ़ जाता है .....पता नहीं वह गले में प्रेशर की वजह से या फिर टाई लगा कर मुझे एक अलग तरह से बिहेव करना पड़ता है ..इस की वजह से भी शायद फ़र्क पड़ता होगा...इसलिए मैंने बीस सालों से कभी टाई लगाई ही नहीं, जी हां, किसी भी शादी-ब्याह के समारोह में भी नहीं....क्योंकि हिंदोस्तान में एक रिवाज है कि वैसे चाहे कभी टाई लगाई हो या नहीं, लेकिन किसी की शादी ब्याह में टाई किसी से ही गांठ बंधवानी पड़े, अवश्य टांग लेते हैं.....वह भी चलता है, लेेकिन जब दारू चढ़ने पर ये टाईधारी बेहूदा हरकतें करते हैं ना, उस से सब कचरा हो जाता है ... 

खुलेपन से बात याद आई...एक टीवी के प्रोग्राम में विश्वविख्यात हार्ट रोग विशेषज्ञ ने भी कहा था ..

दिल खोल लै यारां नाल, 
नहीं ते डाक्टर खोलनगे औज़ारां नाल ...

एक दो बातें और कर के आज की चौपाल खत्म करते हैं....

कल टीवी पर ग्लोबल बाबा फिल्म देखी ...आप भी ज़रुर देखिए...किस तरह से कुछ बाबा लोगों ने भोली भाली जनता को अपने चंगुल में फंसा रखा है, आप सब जानते हैं......यू-ट्यूब पर भी पड़ी हुई है यह फिल्म ... पता नहीं इतने बाबा लोग कहां से उग आते हैं और इन के इतने अनुयायी भी कैसे बन जाते हैं, यह सब और भी अच्छे से समझने के लिए इसे देखिएगा...ट्रेलर मैं यहां दिखाए दे रहा हूं.. 


कल विनोद खन्ना साब की तबीयत के बारे में पढ़ा-देखा....आज सुबह मित्र खुशदीप सहगल की फेसबुक पोस्ट दिखी ...जो को मेरी भावनाएं भी व्यक्त करती दिखी....इसलिए यहां चिपकाए दे रहा हूं उसे ....


विनोद खन्ना साब का ज़िक्र हुआ तो उन के कुछ बेहतरीन गीत जो बचपन से लेकर अब तक सुनते चले आ रहे हैं...यहां आप के लिए बजा रहा हूं....आप भी इन गीतों के बहाने अपने पुराने दिनों की यादें ढूंढिए और इसी बहाने डिप्रेशन से दूर रहिए और इस महान कलाकार के शीघ्र अति शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करिए...