यह पंजाबी का एक सुपर-डुपर गीत है जिस में एक पंजाबी मुटियार अपने माही से कह रही है कि तुम ने मुझे क्या मनाना था, तुम तो स्वयं ही मेरे से रूठ गये हो......लेकिन साथ में उसे यह भी आगाह कर रही है कि ज़माना तो तमाशा तो तमाशबीन है ही जो कि हमारे इस झगड़े में भी तमाशा देख रहा है। इसलिये मुटियार को यही चिन्ता सताये जा रही है कि अब मसला यह है कि अगर हम दोनों ही एक दूसरे से रूठ जायेंगे तो हमें आखिर मनायेगा। इस गीत को पंजाब के मशहूर गायक हंस राज हंस ने गाया है ....जिस में आप को सूफी गायकी के भी अंश मिलेंगे।
इस पंजाबी गीत में पंजाबन मुटियार तो अपने गबरू से यह भी कह देती है कि तेरे वियोग में अगर मैं हंजुओं(अश्रुओं) के सैलाब में डूब रही हूंगी तो मेरे को कौन उस सैलाब से निकाल कर गले लगायेगा।
वैसे पता नहीं मैं क्यों इतनी लंबी कमैंटरी दिये जा रहा हूं.......पता नहीं क्यों मैं तुहाडे अते इस गीत दे विचकार इक कबाब दी हड्डी जही बन रिहा हां.....सो मितरो, एह चलिया जे मैं ते तुसीं आनंद मानो इस पंजाबी विरसे दा।
वैसे यह गीत हमें कितना कुछ सिखा रहा है........इस के लिरिक्स में कितनी गहराई है.......सुनिये और महसूस कीजिए.........और इक दो लाइनां कदे कमैंटां विच वी सुट दिया करो.....बस , ऐवें ही नहीं, वधिया वधिया गीत सुन के लांबे हो गये.............एह ते मितरो कोई गल ना होई। अच्छा , हुन तुसीं एह फड़कदा होया गीत सुनों। नहीं, नहीं, इह न ध्यान करिया करों कि सवेरे सवेरे सिरफ धार्मिक गीत ही सुनने हन.........!! बस जो कुछ वी सुन के मज़ा आवे उस दे ही मेरे वांगू बुल्ले लुट लिया करो। जिउंदे-वसदे रहो ते खुशियां मानो, जी।